Surah सूरा यूनुस - Yūnus

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Surah सूरा यूनुस - Yūnus - Aya count 109

الۤرۚ تِلۡكَ ءَایَـٰتُ ٱلۡكِتَـٰبِ ٱلۡحَكِیمِ ﴿١﴾

अलिफ़, लाम, रा। ये पूर्ण हिकमत वाली किताब की आयतें हैं।


Arabic explanations of the Qur’an:

أَكَانَ لِلنَّاسِ عَجَبًا أَنۡ أَوۡحَیۡنَاۤ إِلَىٰ رَجُلࣲ مِّنۡهُمۡ أَنۡ أَنذِرِ ٱلنَّاسَ وَبَشِّرِ ٱلَّذِینَ ءَامَنُوۤاْ أَنَّ لَهُمۡ قَدَمَ صِدۡقٍ عِندَ رَبِّهِمۡۗ قَالَ ٱلۡكَـٰفِرُونَ إِنَّ هَـٰذَا لَسَـٰحِرࣱ مُّبِینٌ ﴿٢﴾

क्या लोगों के लिए आश्चर्य की बात है कि हमने उनमें से एक व्यक्ति की ओर वह़्य (प्रकाशना) भेजी कि लोगों को डराए और उन लोगों को शुभ-सूचना दे, जो ईमान लाए हैं कि उनके लिए उनके पालनहार के पास उच्च स्थान है। काफ़िरों ने कहा : निःसंदेह यह तो खुला जादूगर है।


Arabic explanations of the Qur’an:

إِنَّ رَبَّكُمُ ٱللَّهُ ٱلَّذِی خَلَقَ ٱلسَّمَـٰوَ ٰ⁠تِ وَٱلۡأَرۡضَ فِی سِتَّةِ أَیَّامࣲ ثُمَّ ٱسۡتَوَىٰ عَلَى ٱلۡعَرۡشِۖ یُدَبِّرُ ٱلۡأَمۡرَۖ مَا مِن شَفِیعٍ إِلَّا مِنۢ بَعۡدِ إِذۡنِهِۦۚ ذَ ٰ⁠لِكُمُ ٱللَّهُ رَبُّكُمۡ فَٱعۡبُدُوهُۚ أَفَلَا تَذَكَّرُونَ ﴿٣﴾

निःसंदेह तुम्हारा पालनहार अल्लाह ही है, जिसने आकाशों तथा धरती को छह दिनों में पैदा किया, फिर अर्श (सिंहासन) पर बुलंद हुआ। वह हर चीज़ की व्यवस्था चला रहा है। कोई सिफ़ारिश करने वाला नहीं परंतु उसकी अनुमति के बाद। वही अल्लाह तुम्हारा पालनहार है, अतः उसी की इबादत करो। क्या तुम उपदेश ग्रहण नहीं करतेॽ[1]

1. भावार्थ यह है कि जब विश्व की व्यवस्था वही अकेला कर रहा है, तो पूज्य भी वही अकेला होना चाहिए।


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إِلَیۡهِ مَرۡجِعُكُمۡ جَمِیعࣰاۖ وَعۡدَ ٱللَّهِ حَقًّاۚ إِنَّهُۥ یَبۡدَؤُاْ ٱلۡخَلۡقَ ثُمَّ یُعِیدُهُۥ لِیَجۡزِیَ ٱلَّذِینَ ءَامَنُواْ وَعَمِلُواْ ٱلصَّـٰلِحَـٰتِ بِٱلۡقِسۡطِۚ وَٱلَّذِینَ كَفَرُواْ لَهُمۡ شَرَابࣱ مِّنۡ حَمِیمࣲ وَعَذَابٌ أَلِیمُۢ بِمَا كَانُواْ یَكۡفُرُونَ ﴿٤﴾

तुम सब को उसी की ओर लौटना है। यह अल्लाह का सच्चा वादा है। निःसंदेह वही रचना का आरंभ करता है, फिर उसे दोबारा पैदा करेगा, ताकि उन लोगों को न्याय के साथ बदला[2] दे, जो ईमान लाए और अच्छे कर्म किए। तथा जिन लोगों ने कुफ़्र किया, उनके लिए खौलते हुए जल का पेय और दर्दनाक यातना है, उसके बदले जो वे कुफ़्र किया करते थे।

2. भावार्थ यह है कि यह दूसरा परलोक का जीवन इसलिए आवश्यक है कि कर्मों के फल का नियम यह चाहता है कि जब एक जीवन कर्म के लिए है, तो दूसरा कर्मों के प्रतिफल के लिए होना चाहिए।


Arabic explanations of the Qur’an:

هُوَ ٱلَّذِی جَعَلَ ٱلشَّمۡسَ ضِیَاۤءࣰ وَٱلۡقَمَرَ نُورࣰا وَقَدَّرَهُۥ مَنَازِلَ لِتَعۡلَمُواْ عَدَدَ ٱلسِّنِینَ وَٱلۡحِسَابَۚ مَا خَلَقَ ٱللَّهُ ذَ ٰ⁠لِكَ إِلَّا بِٱلۡحَقِّۚ یُفَصِّلُ ٱلۡـَٔایَـٰتِ لِقَوۡمࣲ یَعۡلَمُونَ ﴿٥﴾

वही है जिसने सूर्य को ज्योति तथा चाँद को प्रकाश बनाया और उस (चाँद) की मंज़िलें निर्धारित कीं, ताकि तुम वर्षों की गिनती तथा हिसाब जान सको। अल्लाह ने इन सब को सत्य के साथ बनाया है। वह उन लोगों के लिए निशानियों को खोलकर बयान करता है, जो जानते हैं।


Arabic explanations of the Qur’an:

إِنَّ فِی ٱخۡتِلَـٰفِ ٱلَّیۡلِ وَٱلنَّهَارِ وَمَا خَلَقَ ٱللَّهُ فِی ٱلسَّمَـٰوَ ٰ⁠تِ وَٱلۡأَرۡضِ لَـَٔایَـٰتࣲ لِّقَوۡمࣲ یَتَّقُونَ ﴿٦﴾

निःसंदेह रात और दिन के एक-दूसरे के बाद आने में और उन चीज़ों में जो अल्लाह ने आकाशों तथा धरती में पैदा की हैं, निश्चय उन लोगों के लिए निशानियाँ हैं, जो अल्लाह का डर रखते हैं।


Arabic explanations of the Qur’an:

إِنَّ ٱلَّذِینَ لَا یَرۡجُونَ لِقَاۤءَنَا وَرَضُواْ بِٱلۡحَیَوٰةِ ٱلدُّنۡیَا وَٱطۡمَأَنُّواْ بِهَا وَٱلَّذِینَ هُمۡ عَنۡ ءَایَـٰتِنَا غَـٰفِلُونَ ﴿٧﴾

निःसंदेह जो लोग हमसे मिलने की आशा नहीं रखते और वे सांसारिक जीवन से प्रसन्न हो गए तथा उसी से संतुष्ट हो गए और वे लोग जो हमारी निशानियों से असावधान हैं।


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أُوْلَـٰۤىِٕكَ مَأۡوَىٰهُمُ ٱلنَّارُ بِمَا كَانُواْ یَكۡسِبُونَ ﴿٨﴾

यही लोग हैं जिनका ठिकाना जहन्नम है, उसके बदले जो वे कमाया करते थे।


Arabic explanations of the Qur’an:

إِنَّ ٱلَّذِینَ ءَامَنُواْ وَعَمِلُواْ ٱلصَّـٰلِحَـٰتِ یَهۡدِیهِمۡ رَبُّهُم بِإِیمَـٰنِهِمۡۖ تَجۡرِی مِن تَحۡتِهِمُ ٱلۡأَنۡهَـٰرُ فِی جَنَّـٰتِ ٱلنَّعِیمِ ﴿٩﴾

निःसंदेह जो लोग ईमान लाए और अच्छे कर्म किए, उनका पालनहार उनके ईमान के कारण उनका मार्गदर्शन करेगा, उनके नीचे नेमत के बाग़ों में नहरें बहती होंगी।


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دَعۡوَىٰهُمۡ فِیهَا سُبۡحَـٰنَكَ ٱللَّهُمَّ وَتَحِیَّتُهُمۡ فِیهَا سَلَـٰمࣱۚ وَءَاخِرُ دَعۡوَىٰهُمۡ أَنِ ٱلۡحَمۡدُ لِلَّهِ رَبِّ ٱلۡعَـٰلَمِینَ ﴿١٠﴾

उनमें उनकी प्रार्थना यह होगी : ''ऐ अल्लाह! तू पवित्र है।'' और उनमें उनका अभिवादन 'सलाम' होगा, और उनकी प्रार्थना का अंत यह होगा कि : ''सब प्रशंसा अल्लाह के लिए है, जो सारे संसारों का पालनहार है।''


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۞ وَلَوۡ یُعَجِّلُ ٱللَّهُ لِلنَّاسِ ٱلشَّرَّ ٱسۡتِعۡجَالَهُم بِٱلۡخَیۡرِ لَقُضِیَ إِلَیۡهِمۡ أَجَلُهُمۡۖ فَنَذَرُ ٱلَّذِینَ لَا یَرۡجُونَ لِقَاۤءَنَا فِی طُغۡیَـٰنِهِمۡ یَعۡمَهُونَ ﴿١١﴾

और अगर अल्लाह लोगों को बुराई जल्दी दे दे, उन्हें बहुत जल्दी भलाई प्रदान करने की तरह, तो निश्चय उनकी ओर उनकी अवधि पूरी कर दी जाए। (किंतु) हम उन लोगों को जो हमसे मिलने की आशा नहीं रखते, उनकी सरकशी ही में भटकता[3] हुआ छोड़ देते हैं।

3. आयत का अर्थ यह है कि अल्लाह का दुष्कर्मों का दंड देने का नियम यह नहीं है कि तुरंत संसार ही में उसका कुफल दे दिया जाए। परंतु दुष्कर्मी को यहाँ अवसर दिया जाता है, अन्यथा उनका समय कभी का पूरा हो चुका होता।


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وَإِذَا مَسَّ ٱلۡإِنسَـٰنَ ٱلضُّرُّ دَعَانَا لِجَنۢبِهِۦۤ أَوۡ قَاعِدًا أَوۡ قَاۤىِٕمࣰا فَلَمَّا كَشَفۡنَا عَنۡهُ ضُرَّهُۥ مَرَّ كَأَن لَّمۡ یَدۡعُنَاۤ إِلَىٰ ضُرࣲّ مَّسَّهُۥۚ كَذَ ٰ⁠لِكَ زُیِّنَ لِلۡمُسۡرِفِینَ مَا كَانُواْ یَعۡمَلُونَ ﴿١٢﴾

और जब मनुष्य को कोई दुःख पहुँचता है, तो अपने पहलू पर, या बैठा हुआ या खड़ा हुआ हमें पुकारता है। फिर जब हम उससे उसका दुःख दूर कर देते हैं, तो ऐसे चल देता है, जैसे उसने हमें किसी दुःख के पहुँचने पर पुकारा ही नहीं। इसी प्रकार सीमा से आगे बढ़ने वालों के लिए शोभित कर दिया गया, जो वे किया करते थे।


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وَلَقَدۡ أَهۡلَكۡنَا ٱلۡقُرُونَ مِن قَبۡلِكُمۡ لَمَّا ظَلَمُواْ وَجَاۤءَتۡهُمۡ رُسُلُهُم بِٱلۡبَیِّنَـٰتِ وَمَا كَانُواْ لِیُؤۡمِنُواْۚ كَذَ ٰ⁠لِكَ نَجۡزِی ٱلۡقَوۡمَ ٱلۡمُجۡرِمِینَ ﴿١٣﴾

और निःसंदेह हमने तुमसे पहले बहुत-से समुदायों को विनष्ट कर दिया, जब उन्होंने अत्याचार किया। हालाँकि उनके रसूल उनके पास खुली निशानियाँ लेकर आए थे, परंतु वे ऐसे नहीं थे कि ईमान लाते। इसी प्रकार हम अपराधी लोगों को बदला दिया करते हैं।


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ثُمَّ جَعَلۡنَـٰكُمۡ خَلَـٰۤىِٕفَ فِی ٱلۡأَرۡضِ مِنۢ بَعۡدِهِمۡ لِنَنظُرَ كَیۡفَ تَعۡمَلُونَ ﴿١٤﴾

फिर उनके बद हमने तुम्हें धरती में उत्तराधिकारी बनाया, ताकि हम देखें कि तुम कैसे कार्य करते हो?


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وَإِذَا تُتۡلَىٰ عَلَیۡهِمۡ ءَایَاتُنَا بَیِّنَـٰتࣲ قَالَ ٱلَّذِینَ لَا یَرۡجُونَ لِقَاۤءَنَا ٱئۡتِ بِقُرۡءَانٍ غَیۡرِ هَـٰذَاۤ أَوۡ بَدِّلۡهُۚ قُلۡ مَا یَكُونُ لِیۤ أَنۡ أُبَدِّلَهُۥ مِن تِلۡقَاۤىِٕ نَفۡسِیۤۖ إِنۡ أَتَّبِعُ إِلَّا مَا یُوحَىٰۤ إِلَیَّۖ إِنِّیۤ أَخَافُ إِنۡ عَصَیۡتُ رَبِّی عَذَابَ یَوۡمٍ عَظِیمࣲ ﴿١٥﴾

और जब उन्हें हमारी स्पष्ट आयतें सुनाई जाती हैं, तो जो लोग हमसे मिलने की आशा नहीं रखते, वे कहते हैं : "इसके अलावा कोई और क़ुरआन ले आओ, या इसे बदल दो।" कह दो : मेरे लिए यह संभव नहीं है कि मैं इसे अपनी ओर से बदल दूँ। मैं तो केवल उसी का पालन करता हूँ, जो मेरी ओर वह़्य की जाती है। निःसंदेह, यदि मैं अपने पालनहार की अवज्ञा करूँ, तो मुझे एक बड़े दिन की यातना का डर है।


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قُل لَّوۡ شَاۤءَ ٱللَّهُ مَا تَلَوۡتُهُۥ عَلَیۡكُمۡ وَلَاۤ أَدۡرَىٰكُم بِهِۦۖ فَقَدۡ لَبِثۡتُ فِیكُمۡ عُمُرࣰا مِّن قَبۡلِهِۦۤۚ أَفَلَا تَعۡقِلُونَ ﴿١٦﴾

आप कह दें : यदि अल्लाह चाहता, तो मैं तुम्हें इसे पढ़कर न सुनाता और न वह तुम्हें इसकी ख़बर देता। फिर निःसंदेह मैं इससे पहले तुम्हारे बीच जीवन की एक अवधि व्यतीत कर चुका हूँ। तो क्या तुम नहीं समझतेॽ[4]

4. आयत का भावार्थ यह है कि यदि तुम एक इसी बात पर विचार करो कि मैं तुम्हारे लिए कोई अपरिचित, अज्ञात नहीं हूँ। मैं तुम्ही में से हूँ। यहीं मक्का में पैदा हुआ, और चालीस वर्ष की आयु तुम्हारे बीच व्यतीत की। मेरा पूरा जीवन चरित्र तुम्हारे सामने है, इस अवधि में तुमने सत्य और अमानत के विरुद्ध मुझ में कोई बात नहीं देखी, तो अब चालीस वर्ष के पश्चात् यह कैसे हो सकता है कि अल्लाह पर यह मिथ्या आरोप लगा दूँ कि उसने यह क़ुरआन मुझपर उतारा है? मेरा पवित्र जीवन स्वयं इस बात का प्रमाण है कि यह क़ुरआन अल्लाह की वाणी है। और मैं उसका नबी हूँ। और उसी की अनुमति से यह क़ुरआन तुम्हें सुना रहा हूँ।


Arabic explanations of the Qur’an:

فَمَنۡ أَظۡلَمُ مِمَّنِ ٱفۡتَرَىٰ عَلَى ٱللَّهِ كَذِبًا أَوۡ كَذَّبَ بِـَٔایَـٰتِهِۦۤۚ إِنَّهُۥ لَا یُفۡلِحُ ٱلۡمُجۡرِمُونَ ﴿١٧﴾

फिर उससे बढ़कर अत्याचारी कौन होगा, जो अल्लाह पर झूठा आरोप लगाए अथवा उसकी आयतों को झुठलाएॽ निःसंदेह अपराधी लोग सफल नहीं होते।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَیَعۡبُدُونَ مِن دُونِ ٱللَّهِ مَا لَا یَضُرُّهُمۡ وَلَا یَنفَعُهُمۡ وَیَقُولُونَ هَـٰۤؤُلَاۤءِ شُفَعَـٰۤؤُنَا عِندَ ٱللَّهِۚ قُلۡ أَتُنَبِّـُٔونَ ٱللَّهَ بِمَا لَا یَعۡلَمُ فِی ٱلسَّمَـٰوَ ٰ⁠تِ وَلَا فِی ٱلۡأَرۡضِۚ سُبۡحَـٰنَهُۥ وَتَعَـٰلَىٰ عَمَّا یُشۡرِكُونَ ﴿١٨﴾

और वे लोग अल्लाह को छोड़कर उनको पूजते हैं, जो न उन्हें कोई हानि पहुँचाते हैं और न उन्हें कोई लाभ पहुँचाते हैं और कहते हैं कि ये लोग अल्लाह के यहाँ हमारे सिफ़ारिशी हैं। आप कह दें : क्या तुम अल्लाह को ऐसी बात की सूचना दे रहे हो, जिसे वह न आकाशों में जानता है और न धरती में? वह पवित्र है और उससे बहुत ऊँचा है, जिसे वे साझीदार ठहराते हैं।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَمَا كَانَ ٱلنَّاسُ إِلَّاۤ أُمَّةࣰ وَ ٰ⁠حِدَةࣰ فَٱخۡتَلَفُواْۚ وَلَوۡلَا كَلِمَةࣱ سَبَقَتۡ مِن رَّبِّكَ لَقُضِیَ بَیۡنَهُمۡ فِیمَا فِیهِ یَخۡتَلِفُونَ ﴿١٩﴾

तथा लोग एक ही समुदाय थे, फिर वे अलग-अलग[5] हो गए और यदि वह बात न होती जो तुम्हारे पालनहार की ओर से पहले ही निश्चित हो चुकी[6], तो उनके बीच उसके बारे में अवश्य फ़ैसला कर दिया जाता, जिसमें वे विभेद कर रहे हैं।

5. अतः कुछ शिर्क करने और देवी-देवताओं को पूजने लगे। (इब्ने कसीर) 6. कि वह लोगों के बीच होने वाले मतभेद के बारे में इस दुनिया में फैसला नहीं करेगा।


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وَیَقُولُونَ لَوۡلَاۤ أُنزِلَ عَلَیۡهِ ءَایَةࣱ مِّن رَّبِّهِۦۖ فَقُلۡ إِنَّمَا ٱلۡغَیۡبُ لِلَّهِ فَٱنتَظِرُوۤاْ إِنِّی مَعَكُم مِّنَ ٱلۡمُنتَظِرِینَ ﴿٢٠﴾

और वे कहते हैं कि उसपर उसके पालनहार की ओर से कोई निशानी क्यों नहीं उतारी गईॽ[7] आप कह दें : परोक्ष (का ज्ञान) तो केवल अल्लाह के पास है। अतः तुम प्रतीक्षा करो, मैं भी तुम्हारे साथ प्रतीक्षा करने वालों में से हूँ।[8]

7. जैसे कि उनके लिए सफ़ा पहाड़ी को सोना या मक्का के पहाड़ों को हटाकर उनकी जगह नहरें और बाग़ बना दिया जाता। (इब्ने कसीर) 8. अर्थात अल्लाह के आदेश की।


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وَإِذَاۤ أَذَقۡنَا ٱلنَّاسَ رَحۡمَةࣰ مِّنۢ بَعۡدِ ضَرَّاۤءَ مَسَّتۡهُمۡ إِذَا لَهُم مَّكۡرࣱ فِیۤ ءَایَاتِنَاۚ قُلِ ٱللَّهُ أَسۡرَعُ مَكۡرًاۚ إِنَّ رُسُلَنَا یَكۡتُبُونَ مَا تَمۡكُرُونَ ﴿٢١﴾

और जब हम लोगों को उनके किसी तकलीफ़ में पड़ने के बाद कोई दया चखाते हैं, तो अचानक उनके लिए हमारी आयतों के बारे में कोई न कोई चाल होती है। कह दें कि अल्लाह अधिक तेज़ उपाय करने वाला है। निःसंदेह हमारे भेजे हुए (फ़रिश्ते) लिख रहे हैं, जो तुम चाल चलते हो।


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هُوَ ٱلَّذِی یُسَیِّرُكُمۡ فِی ٱلۡبَرِّ وَٱلۡبَحۡرِۖ حَتَّىٰۤ إِذَا كُنتُمۡ فِی ٱلۡفُلۡكِ وَجَرَیۡنَ بِهِم بِرِیحࣲ طَیِّبَةࣲ وَفَرِحُواْ بِهَا جَاۤءَتۡهَا رِیحٌ عَاصِفࣱ وَجَاۤءَهُمُ ٱلۡمَوۡجُ مِن كُلِّ مَكَانࣲ وَظَنُّوۤاْ أَنَّهُمۡ أُحِیطَ بِهِمۡ دَعَوُاْ ٱللَّهَ مُخۡلِصِینَ لَهُ ٱلدِّینَ لَىِٕنۡ أَنجَیۡتَنَا مِنۡ هَـٰذِهِۦ لَنَكُونَنَّ مِنَ ٱلشَّـٰكِرِینَ ﴿٢٢﴾

वही है जो तुम्हें जल और थल में चलाता है, यहाँ तक कि जब तुम नावों में होते हो और वे उन्हें लेकर अच्छी (अनुकूल) हवा के सहारे चल पड़ती हैं और वे उससे प्रसन्न हो उठते हैं, कि अचानक एक तेज़ हवा उन (नावों) पर आती है और उनपर प्रत्येक स्थान से लहरें आ जाती हैं और वे समझते हैं कि निःसंदेह उन्हें घेर लिया गया है, तो वे अल्लाह को इस तरह पुकारते हैं कि उसके लिए हर इबादत को विशुद्ध करने वाले[9] होते हैं, निश्चय अगर तूने हमें उससे नजात दे दी, तो हम अवश्य ही शुक्रगुज़ारों में से होंगे।

9. और सब देवी-देवताओं को भूल जाते हैं।


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فَلَمَّاۤ أَنجَىٰهُمۡ إِذَا هُمۡ یَبۡغُونَ فِی ٱلۡأَرۡضِ بِغَیۡرِ ٱلۡحَقِّۗ یَـٰۤأَیُّهَا ٱلنَّاسُ إِنَّمَا بَغۡیُكُمۡ عَلَىٰۤ أَنفُسِكُمۖ مَّتَـٰعَ ٱلۡحَیَوٰةِ ٱلدُّنۡیَاۖ ثُمَّ إِلَیۡنَا مَرۡجِعُكُمۡ فَنُنَبِّئُكُم بِمَا كُنتُمۡ تَعۡمَلُونَ ﴿٢٣﴾

फिर जब वह उन्हें बचा लेता है, तो वे अचानक धरती में नाहक़ सरकशी करने लगते हैं। ऐ लोगो! तुम्हारी सरकशी, तुम्हारे अपने ही विरुद्ध है। ये सांसारिक जीवन के कुछ लाभ[10] हैं। फिर तुम्हें हमारी ही ओर लौटकर आना है। तब हम तुम्हें बताएँगे जो कुछ तुम किया करते थे।

10. भावार्थ यह है कि जब तक सांसारिक जीवन के संसाधन का कोई सहारा होता है, तो लोग अल्लाह को भूले रहते हैं। और जब यह सहारा नहीं होता, तो उनका अंतर्ज्ञान उभरता है। और वे अल्लाह को पुकारने लगते हैं। और जब दुःख दूर हो जाता है, तो फिर वही दशा हो जाती है। इस्लाम यह शिक्षा देता है कि सदा सुख-दुख में उसे याद करते रहो।


Arabic explanations of the Qur’an:

إِنَّمَا مَثَلُ ٱلۡحَیَوٰةِ ٱلدُّنۡیَا كَمَاۤءٍ أَنزَلۡنَـٰهُ مِنَ ٱلسَّمَاۤءِ فَٱخۡتَلَطَ بِهِۦ نَبَاتُ ٱلۡأَرۡضِ مِمَّا یَأۡكُلُ ٱلنَّاسُ وَٱلۡأَنۡعَـٰمُ حَتَّىٰۤ إِذَاۤ أَخَذَتِ ٱلۡأَرۡضُ زُخۡرُفَهَا وَٱزَّیَّنَتۡ وَظَنَّ أَهۡلُهَاۤ أَنَّهُمۡ قَـٰدِرُونَ عَلَیۡهَاۤ أَتَىٰهَاۤ أَمۡرُنَا لَیۡلًا أَوۡ نَهَارࣰا فَجَعَلۡنَـٰهَا حَصِیدࣰا كَأَن لَّمۡ تَغۡنَ بِٱلۡأَمۡسِۚ كَذَ ٰ⁠لِكَ نُفَصِّلُ ٱلۡـَٔایَـٰتِ لِقَوۡمࣲ یَتَفَكَّرُونَ ﴿٢٤﴾

सांसारिक जीवन की मिसाल तो बस उस पानी जैसी है, जिसे हमने आकाश से बरसाया, तो उसके साथ धरती से उगने वाले पौधे ख़ूब मिल गए, जिन्हें इनसान और जानवर खाते हैं, यहाँ तक कि जब धरती ने अपनी शोभा पूरी कर ली और खूब ससज्जित हो गई और उसके मालिकों ने समझ लिया कि निःसंदेह वे उसपर सक्षम हैं, तो रात या दिन में उसपर हमारा आदेश आ गया, तो हमने उसे कटी हुई कर दिया, जैसे वह कल थी ही नहीं।[11] इसी प्रकार हम उन लोगों के लिए आयतें खोलकर बयान करते हैं, जो मनन-चिंतन करते हैं।

11. अर्थात सांसारिक आनंद और सुख वर्षा की उपज के समान सामयिक और अस्थायी है।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَٱللَّهُ یَدۡعُوۤاْ إِلَىٰ دَارِ ٱلسَّلَـٰمِ وَیَهۡدِی مَن یَشَاۤءُ إِلَىٰ صِرَ ٰ⁠طࣲ مُّسۡتَقِیمࣲ ﴿٢٥﴾

और अल्लाह शांति के घर की ओर बुलाता है और जिसे चाहता है सीधा मार्ग दिखा देता है।


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۞ لِّلَّذِینَ أَحۡسَنُواْ ٱلۡحُسۡنَىٰ وَزِیَادَةࣱۖ وَلَا یَرۡهَقُ وُجُوهَهُمۡ قَتَرࣱ وَلَا ذِلَّةٌۚ أُوْلَـٰۤىِٕكَ أَصۡحَـٰبُ ٱلۡجَنَّةِۖ هُمۡ فِیهَا خَـٰلِدُونَ ﴿٢٦﴾

जिन लोगों ने अच्छे कर्म किए, उन्हीं के लिए सबसे अच्छा बदला और कुछ अधिक[12] है और उनके चेहरों पर न कोई कलौंस छाएगी और न ज़िल्लत। यही लोग जन्नत वाले हैं, वे उसमें हमेशा रहने वाले हैं।

12. अधिकांश भाष्यकारों ने "अधिक" का भावार्थ "आख़िरत में अल्लाह का दर्शन" और "अच्छा बदला" का "जन्नत" किया है। (इब्ने कसीर)


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وَٱلَّذِینَ كَسَبُواْ ٱلسَّیِّـَٔاتِ جَزَاۤءُ سَیِّئَةِۭ بِمِثۡلِهَا وَتَرۡهَقُهُمۡ ذِلَّةࣱۖ مَّا لَهُم مِّنَ ٱللَّهِ مِنۡ عَاصِمࣲۖ كَأَنَّمَاۤ أُغۡشِیَتۡ وُجُوهُهُمۡ قِطَعࣰا مِّنَ ٱلَّیۡلِ مُظۡلِمًاۚ أُوْلَـٰۤىِٕكَ أَصۡحَـٰبُ ٱلنَّارِۖ هُمۡ فِیهَا خَـٰلِدُونَ ﴿٢٧﴾

और जिन लोगों ने बुराइयाँ कमाईं, तो किसी भी बुराई का बदला उसी के समान मिलेगा और उनपर अपमान छाया होगा। उन्हें अल्लाह से बचाने वाला कोई न होगा। मानो कि उनके चेहरों पर अँधेरी रात के बहुत-से टुकड़े ओढ़ा दिए गए हों। यही लोग जहन्नम वाले हैं। वे उसमें हमेशा रहने वाले हैं।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَیَوۡمَ نَحۡشُرُهُمۡ جَمِیعࣰا ثُمَّ نَقُولُ لِلَّذِینَ أَشۡرَكُواْ مَكَانَكُمۡ أَنتُمۡ وَشُرَكَاۤؤُكُمۡۚ فَزَیَّلۡنَا بَیۡنَهُمۡۖ وَقَالَ شُرَكَاۤؤُهُم مَّا كُنتُمۡ إِیَّانَا تَعۡبُدُونَ ﴿٢٨﴾

और जिस दिन हम उन सबको एकत्र करेंगे, फिर हम उन लोगों से, जिन्होंने शिर्क किया, कहेंगे : तुम अपने साझीदारों समेत अपनी जगह ठहरे रहो, फिर हम उनके बीच अलगाव कर देंगे और उनके साझीदार कहेंगे कि तुम हमारी इबादत तो नहीं किया करते थे।


Arabic explanations of the Qur’an:

فَكَفَىٰ بِٱللَّهِ شَهِیدَۢا بَیۡنَنَا وَبَیۡنَكُمۡ إِن كُنَّا عَنۡ عِبَادَتِكُمۡ لَغَـٰفِلِینَ ﴿٢٩﴾

अतः हमारे और तुम्हारे बीच अल्लाह ही गवाह काफ़ी है कि निःसंदेह हम तुम्हारी इबादत से निश्चय बेख़बर थे।


Arabic explanations of the Qur’an:

هُنَالِكَ تَبۡلُواْ كُلُّ نَفۡسࣲ مَّاۤ أَسۡلَفَتۡۚ وَرُدُّوۤاْ إِلَى ٱللَّهِ مَوۡلَىٰهُمُ ٱلۡحَقِّۖ وَضَلَّ عَنۡهُم مَّا كَانُواْ یَفۡتَرُونَ ﴿٣٠﴾

उस अवसर पर प्रत्येक व्यक्ति अपने पहले के किए हुए कामों को जाँच लेगा और वे अपने सच्चे मालिक अल्लाह की ओर लौटाए जाएँगे और वे जो कुछ झूठा आरोप लगाया करते थे, सब उनसे गुम हो जाएगा।


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قُلۡ مَن یَرۡزُقُكُم مِّنَ ٱلسَّمَاۤءِ وَٱلۡأَرۡضِ أَمَّن یَمۡلِكُ ٱلسَّمۡعَ وَٱلۡأَبۡصَـٰرَ وَمَن یُخۡرِجُ ٱلۡحَیَّ مِنَ ٱلۡمَیِّتِ وَیُخۡرِجُ ٱلۡمَیِّتَ مِنَ ٱلۡحَیِّ وَمَن یُدَبِّرُ ٱلۡأَمۡرَۚ فَسَیَقُولُونَ ٱللَّهُۚ فَقُلۡ أَفَلَا تَتَّقُونَ ﴿٣١﴾

कहो : वह कौन है जो तुम्हें आकाश और धरती[13] से जीविका देता है? या फिर कान और आँख का मालिक कौन है? और कौन जीवित को मृत से निकालता और मृत को जीवित से निकालता है? और कौन है जो हर काम का प्रबंध करता है? तो वे ज़रूर कहेंगे : ''अल्लाह''[14], तो कहो : फिर क्या तुम डरते नहीं?

13. आकाश की वर्षा तथा धरती की उपज से। 14. जब यह स्वीकार करते हो कि संसार की व्यवस्था अल्लाह ही कर रहा है तो इबादत भी उसी की होनी चाहिए।


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فَذَ ٰ⁠لِكُمُ ٱللَّهُ رَبُّكُمُ ٱلۡحَقُّۖ فَمَاذَا بَعۡدَ ٱلۡحَقِّ إِلَّا ٱلضَّلَـٰلُۖ فَأَنَّىٰ تُصۡرَفُونَ ﴿٣٢﴾

तो वह अल्लाह ही तुम्हारा सच्चा पालनहार है, फिर सत्य के बाद पथभ्रष्टता के सिवा और क्या हैॽ फिर तुम कहाँ फेरे जाते हो?


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كَذَ ٰ⁠لِكَ حَقَّتۡ كَلِمَتُ رَبِّكَ عَلَى ٱلَّذِینَ فَسَقُوۤاْ أَنَّهُمۡ لَا یُؤۡمِنُونَ ﴿٣٣﴾

इसी प्रकार आपके पालनहार की बात उन लोगों के बारे में सत्य सिद्ध हुई जिन्होंने अवज्ञा की थी कि वे ईमान नहीं लाएँगे।


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قُلۡ هَلۡ مِن شُرَكَاۤىِٕكُم مَّن یَبۡدَؤُاْ ٱلۡخَلۡقَ ثُمَّ یُعِیدُهُۥۚ قُلِ ٱللَّهُ یَبۡدَؤُاْ ٱلۡخَلۡقَ ثُمَّ یُعِیدُهُۥۖ فَأَنَّىٰ تُؤۡفَكُونَ ﴿٣٤﴾

(आप उनसे) कह दें : क्या तुम्हारे साझीदारों में से कोई है, जो सृष्टि का आरंभ करता हो, फिर उसे दोबारा बनाता होॽ आप कह दें : अल्लाह ही सृष्टि का आरंभ करता है, फिर उसे दोबारा बनाता है, तो तुम कहाँ बहकाए जाते होॽ


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قُلۡ هَلۡ مِن شُرَكَاۤىِٕكُم مَّن یَهۡدِیۤ إِلَى ٱلۡحَقِّۚ قُلِ ٱللَّهُ یَهۡدِی لِلۡحَقِّۗ أَفَمَن یَهۡدِیۤ إِلَى ٱلۡحَقِّ أَحَقُّ أَن یُتَّبَعَ أَمَّن لَّا یَهِدِّیۤ إِلَّاۤ أَن یُهۡدَىٰۖ فَمَا لَكُمۡ كَیۡفَ تَحۡكُمُونَ ﴿٣٥﴾

आप कह दें कि क्या तुम्हारे साझीदारों में से कोई है, जो सत्य की ओर मार्गदर्शन करे? आप कह दें कि अल्लाह ही सत्य का मार्गदर्शन करता है। तो क्या जो सत्य की ओर मार्गदर्शन करे, वह अधिक हक़दार है कि उसका अनुसरण किया जाए, या वह जो स्वयं रास्ता नहीं पाता सिवाय इसके कि उसे रास्ता बताया जाए? फिर तुम्हें क्या है, तुम कैसे फ़ैसला करते होॽ


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وَمَا یَتَّبِعُ أَكۡثَرُهُمۡ إِلَّا ظَنًّاۚ إِنَّ ٱلظَّنَّ لَا یُغۡنِی مِنَ ٱلۡحَقِّ شَیۡـًٔاۚ إِنَّ ٱللَّهَ عَلِیمُۢ بِمَا یَفۡعَلُونَ ﴿٣٦﴾

और उनमें से अधिकांश लोग केवल अनुमान का पालन करते हैं। निश्चित रूप से अनुमान सत्य की तुलना में किसी काम का नहीं है। निःसंदेह अल्लाह उसे भली-भाँति जानने वाला है, जो कुछ वे कर रहे हैं।


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وَمَا كَانَ هَـٰذَا ٱلۡقُرۡءَانُ أَن یُفۡتَرَىٰ مِن دُونِ ٱللَّهِ وَلَـٰكِن تَصۡدِیقَ ٱلَّذِی بَیۡنَ یَدَیۡهِ وَتَفۡصِیلَ ٱلۡكِتَـٰبِ لَا رَیۡبَ فِیهِ مِن رَّبِّ ٱلۡعَـٰلَمِینَ ﴿٣٧﴾

और यह क़ुरआन ऐसा नहीं है कि अल्लाह के अलावा किसी और द्वारा घड़ लिया जाए, बल्कि यह उसकी पुष्टि करता है, जो इससे पहले है और किताब का विवरण (अर्थात् हलाल एवं हराम तथा धर्म के नियमों की व्याख्या) है। इसमें कोई संदेह नहीं कि यह सारे संसारों के पालनहार की ओर से है।


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أَمۡ یَقُولُونَ ٱفۡتَرَىٰهُۖ قُلۡ فَأۡتُواْ بِسُورَةࣲ مِّثۡلِهِۦ وَٱدۡعُواْ مَنِ ٱسۡتَطَعۡتُم مِّن دُونِ ٱللَّهِ إِن كُنتُمۡ صَـٰدِقِینَ ﴿٣٨﴾

क्या वे कहते हैं कि उसने इस (क़ुरआन) को स्वयं गढ़ लिया हैॽ आप कह दें : तो तुम इस जैसी एक सूरत ले आओ और अल्लाह के सिवा जिसे बुला सको बुला लो, यदि तुम सच्चे हो।


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بَلۡ كَذَّبُواْ بِمَا لَمۡ یُحِیطُواْ بِعِلۡمِهِۦ وَلَمَّا یَأۡتِهِمۡ تَأۡوِیلُهُۥۚ كَذَ ٰ⁠لِكَ كَذَّبَ ٱلَّذِینَ مِن قَبۡلِهِمۡۖ فَٱنظُرۡ كَیۡفَ كَانَ عَـٰقِبَةُ ٱلظَّـٰلِمِینَ ﴿٣٩﴾

बल्कि उन्होंने उस चीज़ को झुठला दिया, जो उनके ज्ञान के घेरे में नहीं[15] आया, हालाँकि उसका वास्तविक तथ्य अभी तक उनके पास नहीं आया था। इसी तरह उन लोगों ने झुठलाया जो इनसे पहले थे। तो देखो कि अत्याचारियों का परिणाम कैसा हुआ?

15. अर्थात् बिना सोचे समझे इसे झुठलाने के लिए तैयार हो गए।


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وَمِنۡهُم مَّن یُؤۡمِنُ بِهِۦ وَمِنۡهُم مَّن لَّا یُؤۡمِنُ بِهِۦۚ وَرَبُّكَ أَعۡلَمُ بِٱلۡمُفۡسِدِینَ ﴿٤٠﴾

और उनमें से कुछ ऐसे हैं जो इस (क़ुरआन) पर ईमान लाते हैं और उनमें से कुछ ऐसे हैं जो इसपर ईमान नहीं लाते और आपका पालनहार बिगाड़ पैदा करने वालों को भली-भाँति जानने वाला है।


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وَإِن كَذَّبُوكَ فَقُل لِّی عَمَلِی وَلَكُمۡ عَمَلُكُمۡۖ أَنتُم بَرِیۤـُٔونَ مِمَّاۤ أَعۡمَلُ وَأَنَا۠ بَرِیۤءࣱ مِّمَّا تَعۡمَلُونَ ﴿٤١﴾

और यदि वे आपको झुठलाएँ, तो आप कह दें कि मेरे लिए मेरा कर्म है और तुम्हारे लिए तुम्हारा कर्म। तुमपर उसका दोष नहीं, जो मैं करता हूँ और मुझपर उसका दोष नहीं, जो तुम करते हो।


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وَمِنۡهُم مَّن یَسۡتَمِعُونَ إِلَیۡكَۚ أَفَأَنتَ تُسۡمِعُ ٱلصُّمَّ وَلَوۡ كَانُواْ لَا یَعۡقِلُونَ ﴿٤٢﴾

और उनमें से कुछ ऐसे हैं, जो आपकी ओर कान लगाते हैं। तो क्या आप बहरों[16] को सुनाएँगे, अगरचे वे कुछ भी न समझते होंॽ

16. अर्थात् जो दिल और अंतर्ज्ञान के बहरे हैं।


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وَمِنۡهُم مَّن یَنظُرُ إِلَیۡكَۚ أَفَأَنتَ تَهۡدِی ٱلۡعُمۡیَ وَلَوۡ كَانُواْ لَا یُبۡصِرُونَ ﴿٤٣﴾

और उनमें से कुछ ऐसे हैं, जो आपकी ओर देखते हैं। तो क्या आप अंधों को मार्ग दिखाएँगे, यद्यपि वे न देखते होंॽ


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إِنَّ ٱللَّهَ لَا یَظۡلِمُ ٱلنَّاسَ شَیۡـࣰٔا وَلَـٰكِنَّ ٱلنَّاسَ أَنفُسَهُمۡ یَظۡلِمُونَ ﴿٤٤﴾

निःसंदेह अल्लाह लोगों पर कुछ भी अत्याचार नहीं करता, परंतु लोग स्वयं ही अपने ऊपर अत्याचार करते हैं।[17]

17. भावार्थ यह है कि लोग अल्लाह की दी हुई समझ-बूझ से काम न ले कर सत्य और वास्तविकता के ज्ञान की योग्यता खो देते हैं।


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وَیَوۡمَ یَحۡشُرُهُمۡ كَأَن لَّمۡ یَلۡبَثُوۤاْ إِلَّا سَاعَةࣰ مِّنَ ٱلنَّهَارِ یَتَعَارَفُونَ بَیۡنَهُمۡۚ قَدۡ خَسِرَ ٱلَّذِینَ كَذَّبُواْ بِلِقَاۤءِ ٱللَّهِ وَمَا كَانُواْ مُهۡتَدِینَ ﴿٤٥﴾

और जिस दिन वह उन्हें इकट्ठा करेगा, (उन्हें लगेगा) मानो वे दिन की एक घड़ी भर ठहरे हों, वे एक-दूसरे को पहचानेंगे। निःसंदेह वे लोग घाटे में पड़ गए, जिन्होंने अल्लाह से मिलने को झुठलाया और वे मार्ग पाने वाले न हुए।


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وَإِمَّا نُرِیَنَّكَ بَعۡضَ ٱلَّذِی نَعِدُهُمۡ أَوۡ نَتَوَفَّیَنَّكَ فَإِلَیۡنَا مَرۡجِعُهُمۡ ثُمَّ ٱللَّهُ شَهِیدٌ عَلَىٰ مَا یَفۡعَلُونَ ﴿٤٦﴾

और अगर कभी हम आपको उसका कुछ हिस्सा दिखा दें, जो हम उनसे वादा करते हैं, या आपको उठा ही लें, तो उनकी वापसी हमारी ही ओर है, फिर जो कुछ वे कर रहे हैं अल्लाह उसका गवाह है।


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وَلِكُلِّ أُمَّةࣲ رَّسُولࣱۖ فَإِذَا جَاۤءَ رَسُولُهُمۡ قُضِیَ بَیۡنَهُم بِٱلۡقِسۡطِ وَهُمۡ لَا یُظۡلَمُونَ ﴿٤٧﴾

और प्रत्येक समुदाय के लिए एक रसूल है। फिर जब उनका रसूल आ जाता है, तो उनके बीच न्याय के साथ फ़ैसला कर दिया जाता है और उनपर अत्याचार नहीं किया जाता।


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وَیَقُولُونَ مَتَىٰ هَـٰذَا ٱلۡوَعۡدُ إِن كُنتُمۡ صَـٰدِقِینَ ﴿٤٨﴾

और वे कहते हैं कि यह वादा कब पूरा होगा, यदि तुम सच्चे होॽ


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قُل لَّاۤ أَمۡلِكُ لِنَفۡسِی ضَرࣰّا وَلَا نَفۡعًا إِلَّا مَا شَاۤءَ ٱللَّهُۗ لِكُلِّ أُمَّةٍ أَجَلٌۚ إِذَا جَاۤءَ أَجَلُهُمۡ فَلَا یَسۡتَـٔۡخِرُونَ سَاعَةࣰ وَلَا یَسۡتَقۡدِمُونَ ﴿٤٩﴾

आप कह दें कि मैं अपने लिए किसी हानि या लाभ का मालिक नहीं हूँ, परंतु जो अल्लाह चाहे। प्रत्येक समुदाय का एक समय है। जब उनका समय आ जाता है, तो वे एक घड़ी न पीछे रहते हैं और न आगे बढ़ते हैं।


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قُلۡ أَرَءَیۡتُمۡ إِنۡ أَتَىٰكُمۡ عَذَابُهُۥ بَیَـٰتًا أَوۡ نَهَارࣰا مَّاذَا یَسۡتَعۡجِلُ مِنۡهُ ٱلۡمُجۡرِمُونَ ﴿٥٠﴾

(ऐ नबी!) कह दें कि तुम बताओ, यदि उसकी यातना तुमपर रात को या दिन के समय आ जाए, तो अपराधी इसमें से कौन-सी चीज़ जल्दी माँग रहे हैं?


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أَثُمَّ إِذَا مَا وَقَعَ ءَامَنتُم بِهِۦۤۚ ءَاۤلۡـَٔـٰنَ وَقَدۡ كُنتُم بِهِۦ تَسۡتَعۡجِلُونَ ﴿٥١﴾

क्या फिर जब वह (यातना) आ जाएगी, तो उसपर ईमान लाओगे? क्या अब! हालाँकि निश्चय तुम इसी के लिए जल्दी मचा रहे थे?


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ثُمَّ قِیلَ لِلَّذِینَ ظَلَمُواْ ذُوقُواْ عَذَابَ ٱلۡخُلۡدِ هَلۡ تُجۡزَوۡنَ إِلَّا بِمَا كُنتُمۡ تَكۡسِبُونَ ﴿٥٢﴾

फिर अत्याचारियों से कहा जाएगा कि स्थायी यातना का मज़ा चखो। तुम्हें उसी का बदला दिया जाएगा, जो तुम कमाया करते थे।


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۞ وَیَسۡتَنۢبِـُٔونَكَ أَحَقٌّ هُوَۖ قُلۡ إِی وَرَبِّیۤ إِنَّهُۥ لَحَقࣱّۖ وَمَاۤ أَنتُم بِمُعۡجِزِینَ ﴿٥٣﴾

और वे आपसे पूछते हैं कि क्या यह बात सत्य ही है? आप कह दें : हाँ, मेरे पालनहार की क़सम! निःसंदेह यह अवश्य सत्य है और तुम अल्लाह को बिल्कुल भी विवश करने वाले नहीं हो।


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وَلَوۡ أَنَّ لِكُلِّ نَفۡسࣲ ظَلَمَتۡ مَا فِی ٱلۡأَرۡضِ لَٱفۡتَدَتۡ بِهِۦۗ وَأَسَرُّواْ ٱلنَّدَامَةَ لَمَّا رَأَوُاْ ٱلۡعَذَابَۖ وَقُضِیَ بَیۡنَهُم بِٱلۡقِسۡطِ وَهُمۡ لَا یُظۡلَمُونَ ﴿٥٤﴾

यदि अपने आपपर अत्याचार करने वाले व्यक्ति के पास वह सब कुछ हो, जो धरती पर है, तो वह उसे अवश्य छुड़ौती के रूप में दे डाले। और जब वे यातना को देखेंगे, तो अपने पछतावे को छिपाएँगे। तथा उनके बीच न्याय के साथ फ़ैसला कर दिया जाएगा और उनपर कोई अत्याचार नहीं किया जाएगा।


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أَلَاۤ إِنَّ لِلَّهِ مَا فِی ٱلسَّمَـٰوَ ٰ⁠تِ وَٱلۡأَرۡضِۗ أَلَاۤ إِنَّ وَعۡدَ ٱللَّهِ حَقࣱّ وَلَـٰكِنَّ أَكۡثَرَهُمۡ لَا یَعۡلَمُونَ ﴿٥٥﴾

सुनो! आकाशों और धरती में जो कुछ है, अल्लाह ही का है। सुनो! निःसंदेह अल्लाह का वादा सच्चा है, लेकिन उनमें से अधिकतर लोग नहीं जानते।


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هُوَ یُحۡیِۦ وَیُمِیتُ وَإِلَیۡهِ تُرۡجَعُونَ ﴿٥٦﴾

वही जीवन देता तथा मारता है और उसी की ओर तुम लौटाए जाओगे।[18]

18. प्रलय के दिन अपने कर्मों का फल भोगने के लिए।


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یَـٰۤأَیُّهَا ٱلنَّاسُ قَدۡ جَاۤءَتۡكُم مَّوۡعِظَةࣱ مِّن رَّبِّكُمۡ وَشِفَاۤءࣱ لِّمَا فِی ٱلصُّدُورِ وَهُدࣰى وَرَحۡمَةࣱ لِّلۡمُؤۡمِنِینَ ﴿٥٧﴾

ऐ लोगो! निःसंदेह तुम्हारे पास तुम्हारे पालनहार की ओर से बड़ी नसीहत और सीनों में जो कुछ (रोग) है उसके लिए पूर्णतया शिफ़ा और ईमान वालों के लिए सर्वथा हिदायत और रहमत आई है।


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قُلۡ بِفَضۡلِ ٱللَّهِ وَبِرَحۡمَتِهِۦ فَبِذَ ٰ⁠لِكَ فَلۡیَفۡرَحُواْ هُوَ خَیۡرࣱ مِّمَّا یَجۡمَعُونَ ﴿٥٨﴾

आप कह दें : (यह) अल्लाह के अनुग्रह और उसकी दया के कारण है। अतः उन्हें इसी पर प्रसन्न होना चाहिए। यह उससे उत्तम है, जो वे इकट्ठा कर रहे हैं।


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قُلۡ أَرَءَیۡتُم مَّاۤ أَنزَلَ ٱللَّهُ لَكُم مِّن رِّزۡقࣲ فَجَعَلۡتُم مِّنۡهُ حَرَامࣰا وَحَلَـٰلࣰا قُلۡ ءَاۤللَّهُ أَذِنَ لَكُمۡۖ أَمۡ عَلَى ٱللَّهِ تَفۡتَرُونَ ﴿٥٩﴾

(ऐ नबी!) कह दें : क्या तुमने देखा जो अल्लाह ने तुम्हारे लिए रोज़ी उतारी है, फिर तुमने उसमें से कुछ को हराम और कुछ को हलाल ठहरा लिया? (आप उनसे) पूछें : क्या अल्लाह ने तुम्हें (इसकी) अनुमति दी है या तुम अल्लाह पर झूठा आरोप लगा रहे होॽ[19]

19. आयत का भावार्थ यह है कि किसी चीज़ को वर्जित करने का अधिकार केवल अल्लाह को है। अपने विचार से किसी चीज़ को अवैध करना अल्लाह पर झूठा आरोप लगाना है।


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وَمَا ظَنُّ ٱلَّذِینَ یَفۡتَرُونَ عَلَى ٱللَّهِ ٱلۡكَذِبَ یَوۡمَ ٱلۡقِیَـٰمَةِۗ إِنَّ ٱللَّهَ لَذُو فَضۡلٍ عَلَى ٱلنَّاسِ وَلَـٰكِنَّ أَكۡثَرَهُمۡ لَا یَشۡكُرُونَ ﴿٦٠﴾

और जो लोग अल्लाह पर झूठा आरोप लगा रहे हैं, उनका क़ियामत के दिन के बारे में क्या ख़याल हैॽ निःसंदेह अल्लाह तो लोगों पर बड़े अनुग्रह[20] वाला है, परंतु उनमें से अक्सर शुक्र अदा नहीं करते।

20. इसीलिए प्रलय तक का अवसर दिया है और उन्हें दंड देने में जल्दी नहीं की।


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وَمَا تَكُونُ فِی شَأۡنࣲ وَمَا تَتۡلُواْ مِنۡهُ مِن قُرۡءَانࣲ وَلَا تَعۡمَلُونَ مِنۡ عَمَلٍ إِلَّا كُنَّا عَلَیۡكُمۡ شُهُودًا إِذۡ تُفِیضُونَ فِیهِۚ وَمَا یَعۡزُبُ عَن رَّبِّكَ مِن مِّثۡقَالِ ذَرَّةࣲ فِی ٱلۡأَرۡضِ وَلَا فِی ٱلسَّمَاۤءِ وَلَاۤ أَصۡغَرَ مِن ذَ ٰ⁠لِكَ وَلَاۤ أَكۡبَرَ إِلَّا فِی كِتَـٰبࣲ مُّبِینٍ ﴿٦١﴾

(ऐ नबी!) आप जिस दशा में भी होते हैं और क़ुरआन में से जो कुछ भी पढ़ते हैं, तथा (ऐ ईमान वालो!) तुम जो भी कर्म करते हो, हम तुम्हें देख रहे होते हैं, जब तुम उसमें लगे होतो हो। और आपके पालनहार से कोई कण भर भी चीज़ न तो धरती में छिपी रहती है और न आकाश में, तथा न उससे कोई छोटी चीज़ है और न बड़ी, परंतु एक स्पष्ट पुस्तक में मौजूद है।


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أَلَاۤ إِنَّ أَوۡلِیَاۤءَ ٱللَّهِ لَا خَوۡفٌ عَلَیۡهِمۡ وَلَا هُمۡ یَحۡزَنُونَ ﴿٦٢﴾

सुन लो! निःसंदेह अल्लाह के मित्रों को न कोई भय है और न वे शोकाकुल होंगे।


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ٱلَّذِینَ ءَامَنُواْ وَكَانُواْ یَتَّقُونَ ﴿٦٣﴾

वे लोग जो ईमान लाए और अल्लाह से डरते थे।


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لَهُمُ ٱلۡبُشۡرَىٰ فِی ٱلۡحَیَوٰةِ ٱلدُّنۡیَا وَفِی ٱلۡـَٔاخِرَةِۚ لَا تَبۡدِیلَ لِكَلِمَـٰتِ ٱللَّهِۚ ذَ ٰ⁠لِكَ هُوَ ٱلۡفَوۡزُ ٱلۡعَظِیمُ ﴿٦٤﴾

उन्हीं के लिए सांसारिक जीवन में शुभ सूचना है और आख़िरत में भी। अल्लाह की बातों के लिए कोई बदलाव नहीं है। यही बहुत बड़ी सफलता है।


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وَلَا یَحۡزُنكَ قَوۡلُهُمۡۘ إِنَّ ٱلۡعِزَّةَ لِلَّهِ جَمِیعًاۚ هُوَ ٱلسَّمِیعُ ٱلۡعَلِیمُ ﴿٦٥﴾

तथा (ऐ नबी!) आपको उनकी बात दुःखी न करे। निःसंदेह सारा प्रभुत्व अल्लाह ही के लिए है। वही सब कुछ सुनने वाला, सब कुछ जानने वाला है।


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أَلَاۤ إِنَّ لِلَّهِ مَن فِی ٱلسَّمَـٰوَ ٰ⁠تِ وَمَن فِی ٱلۡأَرۡضِۗ وَمَا یَتَّبِعُ ٱلَّذِینَ یَدۡعُونَ مِن دُونِ ٱللَّهِ شُرَكَاۤءَۚ إِن یَتَّبِعُونَ إِلَّا ٱلظَّنَّ وَإِنۡ هُمۡ إِلَّا یَخۡرُصُونَ ﴿٦٦﴾

सुन लो! निःसंदेह अल्लाह ही के लिए है जो कोई आसमानों में है और जो कोई ज़मीन में है और जो अल्लाह के सिवा दूसरे साझीदारों को पुकारते हैं, वे किस चीज़ की पैरवी कर रहे हैंॽ वे केवल अनुमान की पैरवी कर रहे हैं और वे मात्र अटकलें लगा रहे हैं।


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هُوَ ٱلَّذِی جَعَلَ لَكُمُ ٱلَّیۡلَ لِتَسۡكُنُواْ فِیهِ وَٱلنَّهَارَ مُبۡصِرًاۚ إِنَّ فِی ذَ ٰ⁠لِكَ لَـَٔایَـٰتࣲ لِّقَوۡمࣲ یَسۡمَعُونَ ﴿٦٧﴾

वही है, जिसने तुम्हारे लिए रात बनाई, ताकि उसमें आराम करो और दिन को प्रकाशमान बनाया। निःसंदेह इसमें उन लोगों के लिए बहुत-सी निशानियाँ हैं, जो सुनते हैं।


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قَالُواْ ٱتَّخَذَ ٱللَّهُ وَلَدࣰاۗ سُبۡحَـٰنَهُۥۖ هُوَ ٱلۡغَنِیُّۖ لَهُۥ مَا فِی ٱلسَّمَـٰوَ ٰ⁠تِ وَمَا فِی ٱلۡأَرۡضِۚ إِنۡ عِندَكُم مِّن سُلۡطَـٰنِۭ بِهَـٰذَاۤۚ أَتَقُولُونَ عَلَى ٱللَّهِ مَا لَا تَعۡلَمُونَ ﴿٦٨﴾

उन्होंने कहा कि अल्लाह ने कोई औलाद बना रखी है। वह पवित्र है, वह निस्पृह है। जो कुछ आकाशों में है और जो कुछ धरती में है, उसी का है।तुम्हारे पास इसका कोई प्रमाण नहीं है। क्या तुम अल्लाह के विषय में ऐसी बात कहते हो, जिसे तुम नहीं जानते?


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قُلۡ إِنَّ ٱلَّذِینَ یَفۡتَرُونَ عَلَى ٱللَّهِ ٱلۡكَذِبَ لَا یُفۡلِحُونَ ﴿٦٩﴾

आप कह दें : निःसंदेह जो लोग अल्लाह पर झूठ गढ़ते हैं, वे सफल नहीं होंगे।


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مَتَـٰعࣱ فِی ٱلدُّنۡیَا ثُمَّ إِلَیۡنَا مَرۡجِعُهُمۡ ثُمَّ نُذِیقُهُمُ ٱلۡعَذَابَ ٱلشَّدِیدَ بِمَا كَانُواْ یَكۡفُرُونَ ﴿٧٠﴾

दुनिया में थोड़ा-सा फ़ायदा है, फिर हमारी ही तरफ़ उनकी वापसी है, फिर हम उन्हें बहुत सख़्त अज़ाब चखाएँगे, उसके कारण जो वे कुफ़्र करते थे।


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۞ وَٱتۡلُ عَلَیۡهِمۡ نَبَأَ نُوحٍ إِذۡ قَالَ لِقَوۡمِهِۦ یَـٰقَوۡمِ إِن كَانَ كَبُرَ عَلَیۡكُم مَّقَامِی وَتَذۡكِیرِی بِـَٔایَـٰتِ ٱللَّهِ فَعَلَى ٱللَّهِ تَوَكَّلۡتُ فَأَجۡمِعُوۤاْ أَمۡرَكُمۡ وَشُرَكَاۤءَكُمۡ ثُمَّ لَا یَكُنۡ أَمۡرُكُمۡ عَلَیۡكُمۡ غُمَّةࣰ ثُمَّ ٱقۡضُوۤاْ إِلَیَّ وَلَا تُنظِرُونِ ﴿٧١﴾

तथा उन्हें नूह का समाचार सुनाएँ, जब उन्होंने अपनी जाति से कहा : ऐ मेरी जाति के लोगो! यदि मेरा खड़ा होना और अल्लाह की आयतों के द्वारा नसीहत करना तुमपर भारी पड़ गया, तो मैंने अल्लाह ही पर भरोसा किया है। अतः तुम अपना मामला अपने साझीदारों के साथ मिलकर पक्का कर लो, फिर तुम्हारा मामला तुमपर किसी तरह रहस्य न रहे। फिर (जो करना हो) मेरे साथ कर डालो और मुझे मोहलत न दो।


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فَإِن تَوَلَّیۡتُمۡ فَمَا سَأَلۡتُكُم مِّنۡ أَجۡرٍۖ إِنۡ أَجۡرِیَ إِلَّا عَلَى ٱللَّهِۖ وَأُمِرۡتُ أَنۡ أَكُونَ مِنَ ٱلۡمُسۡلِمِینَ ﴿٧٢﴾

फिर यदि तुम मुँह फेर लो, तो मैंने तुमसे कोई पारिश्रमिक नहीं माँगा, मेरा पारिश्रमिक तो अल्लाह के ज़िम्मे है और मुझे आदेश दिया गया है कि मैं आज्ञाकारियों में से हो जाऊँ।


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فَكَذَّبُوهُ فَنَجَّیۡنَـٰهُ وَمَن مَّعَهُۥ فِی ٱلۡفُلۡكِ وَجَعَلۡنَـٰهُمۡ خَلَـٰۤىِٕفَ وَأَغۡرَقۡنَا ٱلَّذِینَ كَذَّبُواْ بِـَٔایَـٰتِنَاۖ فَٱنظُرۡ كَیۡفَ كَانَ عَـٰقِبَةُ ٱلۡمُنذَرِینَ ﴿٧٣﴾

किंतु उन्होंने उसे झुठला दिया, तो हमने उसे और उन लोगों को जो उसके साथ कश्ती में थे बचा लिया और उन्हें उत्तराधिकारी बना दिया और उन लोगों को डुबो दिया जिन्होंने हमारी आयतों को झुठलाया था। तो देखिए उन लोगों का परिणाम कैसा हुआ जिन्हें डराया गया था।


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ثُمَّ بَعَثۡنَا مِنۢ بَعۡدِهِۦ رُسُلًا إِلَىٰ قَوۡمِهِمۡ فَجَاۤءُوهُم بِٱلۡبَیِّنَـٰتِ فَمَا كَانُواْ لِیُؤۡمِنُواْ بِمَا كَذَّبُواْ بِهِۦ مِن قَبۡلُۚ كَذَ ٰ⁠لِكَ نَطۡبَعُ عَلَىٰ قُلُوبِ ٱلۡمُعۡتَدِینَ ﴿٧٤﴾

फिर उसके बाद हमने कई रसूल उनकी जाति की ओर भेजे, तो वे उनके पास खुली निशानियाँ लेकर आए। पर वे ऐसे न थे कि जिसे वे पहले झुठला चुके थे, उसपर ईमान लाते। इसी तरह हम सीमा से आगे बढ़ने वालों के दिलों पर मुहर[21] लगा देते हैं।

21. अर्थात् जो बिना सोचे-समझे सत्य को नकार देते हैं, उनके सत्य को स्वीकार करने की स्वभाविक योग्यता खो जाती है।


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ثُمَّ بَعَثۡنَا مِنۢ بَعۡدِهِم مُّوسَىٰ وَهَـٰرُونَ إِلَىٰ فِرۡعَوۡنَ وَمَلَإِیْهِۦ بِـَٔایَـٰتِنَا فَٱسۡتَكۡبَرُواْ وَكَانُواْ قَوۡمࣰا مُّجۡرِمِینَ ﴿٧٥﴾

फिर उनके बाद हमने मूसा और हारून को अपनी निशानियों के साथ फ़िरऔन और उसके सरदारों के पास भेजा, तो उन्होंने बहुत घमंड किया और वे अपराधी लोग थे।


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فَلَمَّا جَاۤءَهُمُ ٱلۡحَقُّ مِنۡ عِندِنَا قَالُوۤاْ إِنَّ هَـٰذَا لَسِحۡرࣱ مُّبِینࣱ ﴿٧٦﴾

अतः जब उनके पास हमारी ओर से सत्य आया, तो उन्होंने कहा कि : नि:संदेह यह तो खुला जादू है।


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قَالَ مُوسَىٰۤ أَتَقُولُونَ لِلۡحَقِّ لَمَّا جَاۤءَكُمۡۖ أَسِحۡرٌ هَـٰذَا وَلَا یُفۡلِحُ ٱلسَّـٰحِرُونَ ﴿٧٧﴾

मूसा (अलैहिस्सलाम) ने कहा : क्या तुम सत्य के बारे में (ऐसा) कहते हो, जब वह तुम्हारे पास आया? क्या जादू है यह? हालाँकि, जादूगर सफल नहीं होते।


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قَالُوۤاْ أَجِئۡتَنَا لِتَلۡفِتَنَا عَمَّا وَجَدۡنَا عَلَیۡهِ ءَابَاۤءَنَا وَتَكُونَ لَكُمَا ٱلۡكِبۡرِیَاۤءُ فِی ٱلۡأَرۡضِ وَمَا نَحۡنُ لَكُمَا بِمُؤۡمِنِینَ ﴿٧٨﴾

उन्होंने कहा : क्या तू हमारे पास इसलिए आया है कि हमको उस मार्ग से फेर दे जिसपर हमने अपने बाप-दादा को पाया है और इस देश में तुम दोनों की बड़ाई स्थापित हो जाए? और हम तुम दोनों को बिलकुल मानने वाले नहीं।


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وَقَالَ فِرۡعَوۡنُ ٱئۡتُونِی بِكُلِّ سَـٰحِرٍ عَلِیمࣲ ﴿٧٩﴾

और फ़िरऔन ने कहा : हर कुशल जादूगर को मेरे पास लेकर आओ।


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فَلَمَّا جَاۤءَ ٱلسَّحَرَةُ قَالَ لَهُم مُّوسَىٰۤ أَلۡقُواْ مَاۤ أَنتُم مُّلۡقُونَ ﴿٨٠﴾

फिर जब जादूगर आ गए, तो मूसा ने उनसे कहा : जो कुछ तुम फेंकने वाले हो, फेंको।


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فَلَمَّاۤ أَلۡقَوۡاْ قَالَ مُوسَىٰ مَا جِئۡتُم بِهِ ٱلسِّحۡرُۖ إِنَّ ٱللَّهَ سَیُبۡطِلُهُۥۤ إِنَّ ٱللَّهَ لَا یُصۡلِحُ عَمَلَ ٱلۡمُفۡسِدِینَ ﴿٨١﴾

फिर जब उन्होंने फेंक दिया, तो मूसा ने कहा : तुम जो कुछ लाए हो, वह तो जादू है। निश्चय ही अल्लाह उसे शीघ्र ही निष्फल कर देगा। निःसंदेह अल्लाह बिगाड़ पैदा करने वालों का काम बनने नहीं देता।


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وَیُحِقُّ ٱللَّهُ ٱلۡحَقَّ بِكَلِمَـٰتِهِۦ وَلَوۡ كَرِهَ ٱلۡمُجۡرِمُونَ ﴿٨٢﴾

और अल्लाह सत्य को, अपने शब्दों से, सत्य कर दिखाता है, यद्यपि अपराधियों को बुरा लगे।


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فَمَاۤ ءَامَنَ لِمُوسَىٰۤ إِلَّا ذُرِّیَّةࣱ مِّن قَوۡمِهِۦ عَلَىٰ خَوۡفࣲ مِّن فِرۡعَوۡنَ وَمَلَإِیْهِمۡ أَن یَفۡتِنَهُمۡۚ وَإِنَّ فِرۡعَوۡنَ لَعَالࣲ فِی ٱلۡأَرۡضِ وَإِنَّهُۥ لَمِنَ ٱلۡمُسۡرِفِینَ ﴿٨٣﴾

चुनाँचे मूसा पर उसकी जाति के कुछ युवाओं के सिवा कोई ईमान न लाया, (वह भी) फ़िरऔन और उनके सरदारों से डरते हुए कि कहीं वे उन्हें आज़माइश में न डाल दें। और निःसंदेह फ़िरऔन का धरती में बड़ा प्रभुत्व था और निश्चय ही वह हद पार करने वालों में से था।


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وَقَالَ مُوسَىٰ یَـٰقَوۡمِ إِن كُنتُمۡ ءَامَنتُم بِٱللَّهِ فَعَلَیۡهِ تَوَكَّلُوۤاْ إِن كُنتُم مُّسۡلِمِینَ ﴿٨٤﴾

और मूसा ने कहा : ऐ मेरी जाति के लोगो! यदि तुम अल्लाह पर ईमान लाए हो, तो उसी पर भरोसा करो, यदि तुम आज्ञाकारी हो।


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فَقَالُواْ عَلَى ٱللَّهِ تَوَكَّلۡنَا رَبَّنَا لَا تَجۡعَلۡنَا فِتۡنَةࣰ لِّلۡقَوۡمِ ٱلظَّـٰلِمِینَ ﴿٨٥﴾

तो उन्होंने कहा : हमने अल्लाह ही पर भरोसा किया है। ऐ हमारे पालनहार! हमें अत्याचारी लोगों के लिए आज़माइश न बना।


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وَنَجِّنَا بِرَحۡمَتِكَ مِنَ ٱلۡقَوۡمِ ٱلۡكَـٰفِرِینَ ﴿٨٦﴾

और हमें काफ़िर लोगों से अपनी रहमत से नजात दे।


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وَأَوۡحَیۡنَاۤ إِلَىٰ مُوسَىٰ وَأَخِیهِ أَن تَبَوَّءَا لِقَوۡمِكُمَا بِمِصۡرَ بُیُوتࣰا وَٱجۡعَلُواْ بُیُوتَكُمۡ قِبۡلَةࣰ وَأَقِیمُواْ ٱلصَّلَوٰةَۗ وَبَشِّرِ ٱلۡمُؤۡمِنِینَ ﴿٨٧﴾

और हमने मूसा तथा उनके भाई (हारून) की ओर वह़्य भेजी कि अपनी जाति के लिए मिस्र में कुछ घरों को उपासनागृह नियत कर लो, और अपने घरों को क़िबले की तरफ़ बना लो, और नमाज़ क़ायम करो, और ईमान वालों को ख़ुशख़बरी दे दो।

22. "क़िबला" उस दिशा को कहा जाता है जिसकी ओर मुख करके नमाज़ पढ़ी जाती है।


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وَقَالَ مُوسَىٰ رَبَّنَاۤ إِنَّكَ ءَاتَیۡتَ فِرۡعَوۡنَ وَمَلَأَهُۥ زِینَةࣰ وَأَمۡوَ ٰ⁠لࣰا فِی ٱلۡحَیَوٰةِ ٱلدُّنۡیَا رَبَّنَا لِیُضِلُّواْ عَن سَبِیلِكَۖ رَبَّنَا ٱطۡمِسۡ عَلَىٰۤ أَمۡوَ ٰ⁠لِهِمۡ وَٱشۡدُدۡ عَلَىٰ قُلُوبِهِمۡ فَلَا یُؤۡمِنُواْ حَتَّىٰ یَرَوُاْ ٱلۡعَذَابَ ٱلۡأَلِیمَ ﴿٨٨﴾

और मूसा ने कहा : ऐ हमारे पालनहार! तूने फ़िरऔन और उसके सरदारों को सांसारिक जीवन में शोभा-सामग्री तथा धन-संपत्ति प्रदान की है, ऐ हमारे पालनहार! ताकि वे (लोगों को) तेरे मार्ग से भटकाएँ। ऐ मेरे पालनहार! उनके धनों को मिटा दे और उनके दिलों को कसकर बाँध दे, ताकि वे ईमान न लाएँ, यहाँ तक कि दर्दनाक अज़ाब देख लें।


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قَالَ قَدۡ أُجِیبَت دَّعۡوَتُكُمَا فَٱسۡتَقِیمَا وَلَا تَتَّبِعَاۤنِّ سَبِیلَ ٱلَّذِینَ لَا یَعۡلَمُونَ ﴿٨٩﴾

अल्लाह ने कहा : निःसंदेह तुम दोनों की प्रार्थना स्वीकार कर ली गई। अतः तुम दोनों दृढ़ रहो और उन लोगों के मार्ग पर न चलो, जो नहीं जानते।


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۞ وَجَـٰوَزۡنَا بِبَنِیۤ إِسۡرَ ٰ⁠ۤءِیلَ ٱلۡبَحۡرَ فَأَتۡبَعَهُمۡ فِرۡعَوۡنُ وَجُنُودُهُۥ بَغۡیࣰا وَعَدۡوًاۖ حَتَّىٰۤ إِذَاۤ أَدۡرَكَهُ ٱلۡغَرَقُ قَالَ ءَامَنتُ أَنَّهُۥ لَاۤ إِلَـٰهَ إِلَّا ٱلَّذِیۤ ءَامَنَتۡ بِهِۦ بَنُوۤاْ إِسۡرَ ٰ⁠ۤءِیلَ وَأَنَا۠ مِنَ ٱلۡمُسۡلِمِینَ ﴿٩٠﴾

और हमने बनी इसराईल को सागर पार करा दिया, तो फ़िरऔन और उसकी सेना ने सरकशी और ज़्यादती करते हुए उनका पीछा किया। यहाँ तक कि जब वह डूबने लगा, तो बोला : मैं ईमान ले आया कि निःसंदेह उसके सिवा कोई पूज्य नहीं, जिसपर बनी इसराईल ईमान लाए हैं और मैं आज्ञाकारियों में से हूँ।


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ءَاۤلۡـَٔـٰنَ وَقَدۡ عَصَیۡتَ قَبۡلُ وَكُنتَ مِنَ ٱلۡمُفۡسِدِینَ ﴿٩١﴾

क्या अब? हालाँकि निःसंदेह तूने इससे पहले अवज्ञा की और तू बिगाड़ पैदा करने वालों में से था।


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فَٱلۡیَوۡمَ نُنَجِّیكَ بِبَدَنِكَ لِتَكُونَ لِمَنۡ خَلۡفَكَ ءَایَةࣰۚ وَإِنَّ كَثِیرࣰا مِّنَ ٱلنَّاسِ عَنۡ ءَایَـٰتِنَا لَغَـٰفِلُونَ ﴿٩٢﴾

अतः आज हम तेरे शरीर को बचा लेंगे, ताकि तू अपने बाद आने वालों के लिए एक बड़ी निशानी[23] बन जाए और निःसंदेह बहुत-से लोग हमारी निशानियों से निश्चय ग़ाफ़िल हैं।

23. बताया जाता है कि 1898 ई◦ में इस फ़िरऔन का मम्मी किया हुआ शव मिल गया है, जो क़ाहिरा के विचित्रालय (अजायबघर) में रखा हुआ है।


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وَلَقَدۡ بَوَّأۡنَا بَنِیۤ إِسۡرَ ٰ⁠ۤءِیلَ مُبَوَّأَ صِدۡقࣲ وَرَزَقۡنَـٰهُم مِّنَ ٱلطَّیِّبَـٰتِ فَمَا ٱخۡتَلَفُواْ حَتَّىٰ جَاۤءَهُمُ ٱلۡعِلۡمُۚ إِنَّ رَبَّكَ یَقۡضِی بَیۡنَهُمۡ یَوۡمَ ٱلۡقِیَـٰمَةِ فِیمَا كَانُواْ فِیهِ یَخۡتَلِفُونَ ﴿٩٣﴾

और निःसंदेह हमने बनी इसराईल को सम्मानित ठिकाना[24] दिया और उन्हें पाकीज़ा चीज़ों से जीविका प्रदान की। फिर उन्होंने आपस में मतभेद नहीं किया, यहाँ तक कि उनके पास ज्ञान आ गया। निःसंदेह आपका पालनहार क़ियामत के दिन उनके बीच उस चीज़ का निर्णय कर देगा, जिसमें वे मतभेद करते थे।

24. इससे अभिप्राय मिस्र और शाम (लेवंत) के नगर हें।


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فَإِن كُنتَ فِی شَكࣲّ مِّمَّاۤ أَنزَلۡنَاۤ إِلَیۡكَ فَسۡـَٔلِ ٱلَّذِینَ یَقۡرَءُونَ ٱلۡكِتَـٰبَ مِن قَبۡلِكَۚ لَقَدۡ جَاۤءَكَ ٱلۡحَقُّ مِن رَّبِّكَ فَلَا تَكُونَنَّ مِنَ ٱلۡمُمۡتَرِینَ ﴿٩٤﴾

फिर यदि आपको उसमें कुछ संदेह[25] हो, जो हमने आपकी ओर उतारा है, तो उन लोगों से पूछ लें, जो आपसे पहले किताब पढ़ते हैं। निःसंदेह आपके पास आपके पालनहार की ओर से सत्य आ चुका है। अतः आप हरगिज़ संदेह करने वालों में से न हों।

25. आयत में संबोधित नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को किया गया है। परंतु वास्तव में उनको संबोधित किया गया है जिनको कुछ संदेह था। यह अरबी की एक भाषा शैली है।


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وَلَا تَكُونَنَّ مِنَ ٱلَّذِینَ كَذَّبُواْ بِـَٔایَـٰتِ ٱللَّهِ فَتَكُونَ مِنَ ٱلۡخَـٰسِرِینَ ﴿٩٥﴾

तथा आप उन लोगों में कभी न होना, जिन्होंने अल्लाह की आयतों को झुठलाया, अन्यथा आप घाटा उठाने वालों में से हो जाएँगे।


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إِنَّ ٱلَّذِینَ حَقَّتۡ عَلَیۡهِمۡ كَلِمَتُ رَبِّكَ لَا یُؤۡمِنُونَ ﴿٩٦﴾

निःसंदेह जिन लोगों के विरुद्ध आपके पालनहार का फ़ैसला सिद्ध हो चुका, वे ईमान नहीं लाएँगे।


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وَلَوۡ جَاۤءَتۡهُمۡ كُلُّ ءَایَةٍ حَتَّىٰ یَرَوُاْ ٱلۡعَذَابَ ٱلۡأَلِیمَ ﴿٩٧﴾

चाहे उनके पास हर निशानी आ जाए, यहाँ तक कि वे दर्दनाक अज़ाब देख लें।


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فَلَوۡلَا كَانَتۡ قَرۡیَةٌ ءَامَنَتۡ فَنَفَعَهَاۤ إِیمَـٰنُهَاۤ إِلَّا قَوۡمَ یُونُسَ لَمَّاۤ ءَامَنُواْ كَشَفۡنَا عَنۡهُمۡ عَذَابَ ٱلۡخِزۡیِ فِی ٱلۡحَیَوٰةِ ٱلدُّنۡیَا وَمَتَّعۡنَـٰهُمۡ إِلَىٰ حِینࣲ ﴿٩٨﴾

तो कोई ऐसी बस्ती[26] क्यों न हुई जो ईमान लाई हो, फिर उसके ईमान ने उसे लाभ पहुँचाया हो, सिवाए यूनुस की जाति के लोगों के। जब वे ईमान ले आए, तो हमने उनसे सांसारिक जीवन में अपमान की यातना को टाल दिया[27] और उन्हें एक निश्चित समय तक लाभ उठाने का अवसर दे दिया।

26. अर्थात यातना का लक्षण देखने के पश्चात्। 27. यूनुस अलैहिस्सलाम का युग ईसा मसीह़ से आठ सौ वर्ष पहले बताया जाता है। भाष्यकारों ने लिखा है कि वह यातना की सूचना देकर अल्लाह की अनुमति के बिना अपने नगर नीनवा से निकल गए। इसलिए जब यातना के लक्षण नागरिकों ने देखे और अल्लाह से क्षमा याचना करने लगे, तो उनसे यातना दूर कर दी गई। (इब्ने कसीर)


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وَلَوۡ شَاۤءَ رَبُّكَ لَـَٔامَنَ مَن فِی ٱلۡأَرۡضِ كُلُّهُمۡ جَمِیعًاۚ أَفَأَنتَ تُكۡرِهُ ٱلنَّاسَ حَتَّىٰ یَكُونُواْ مُؤۡمِنِینَ ﴿٩٩﴾

और यदि आपका पालनहार चाहता, तो निश्चय धरती में रहने वाले सभी लोग ईमान ले आते। तो क्या आप लोगों को बाध्य करेंगे कि वे मोमिन बन जाएँॽ[28]

28. इस आयत में यह बताया गया है कि सत्धर्म और ईमान ऐसा विषय है जिसमें बल का प्रयोग नहीं किया जा सकता। यह अनहोनी बात है कि किसी को बलपूर्वक मुसलमान बना लिया जाए। (देखिए : सूरतुल-बक़रह, आयत : 256)


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وَمَا كَانَ لِنَفۡسٍ أَن تُؤۡمِنَ إِلَّا بِإِذۡنِ ٱللَّهِۚ وَیَجۡعَلُ ٱلرِّجۡسَ عَلَى ٱلَّذِینَ لَا یَعۡقِلُونَ ﴿١٠٠﴾

किसी प्राणी के लिए यह संभव नहीं है कि वह अल्लाह की अनुमति[29] के बिना ईमान लाए और वह उन लोगों पर मलिनता डाल देता है, जो समझ नहीं रखते।

29. अर्थात् उसके स्वभाविक नियम के अनुसार जो सोच-विचार से काम लेता है, वही ईमान लाता है।


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قُلِ ٱنظُرُواْ مَاذَا فِی ٱلسَّمَـٰوَ ٰ⁠تِ وَٱلۡأَرۡضِۚ وَمَا تُغۡنِی ٱلۡـَٔایَـٰتُ وَٱلنُّذُرُ عَن قَوۡمࣲ لَّا یُؤۡمِنُونَ ﴿١٠١﴾

(ऐ नबी!) उनसे कह दें : तुम देखो आकाशों और धरती में क्या कुछ है? तथा निशानियाँ और चेतावनियाँ उन लोगों के लिए किसी काम की नहीं हैं जो ईमान नहीं लाते।


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فَهَلۡ یَنتَظِرُونَ إِلَّا مِثۡلَ أَیَّامِ ٱلَّذِینَ خَلَوۡاْ مِن قَبۡلِهِمۡۚ قُلۡ فَٱنتَظِرُوۤاْ إِنِّی مَعَكُم مِّنَ ٱلۡمُنتَظِرِینَ ﴿١٠٢﴾

तो क्या ये लोग उन लोगों के दिनों के समान (दिनों) की प्रतीक्षा कर रहे हैं, जो उनसे पहले गुज़र चुके हैंॽ आप कह दें : फिर प्रतीक्षा करो, निश्चय मैं भी तुम्हारे साथ प्रतीक्षा करने वालों में से हूँ।


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ثُمَّ نُنَجِّی رُسُلَنَا وَٱلَّذِینَ ءَامَنُواْۚ كَذَ ٰ⁠لِكَ حَقًّا عَلَیۡنَا نُنجِ ٱلۡمُؤۡمِنِینَ ﴿١٠٣﴾

फिर हम अपने रसूलों को और ईमान लाने वालों को बचा लेते हैं। इसी तरह हमपर हक़ है कि हम ईमान वालों को बचा लें।


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قُلۡ یَـٰۤأَیُّهَا ٱلنَّاسُ إِن كُنتُمۡ فِی شَكࣲّ مِّن دِینِی فَلَاۤ أَعۡبُدُ ٱلَّذِینَ تَعۡبُدُونَ مِن دُونِ ٱللَّهِ وَلَـٰكِنۡ أَعۡبُدُ ٱللَّهَ ٱلَّذِی یَتَوَفَّىٰكُمۡۖ وَأُمِرۡتُ أَنۡ أَكُونَ مِنَ ٱلۡمُؤۡمِنِینَ ﴿١٠٤﴾

आप कह दें : ऐ लोगो! यदि तुम मेरे धर्म के बारे में किसी संदेह में हो, तो मैं उनकी इबादत नहीं करता, जिनकी तुम अल्लाह को छोड़कर इबादत करते हो, बल्कि मैं उस अल्लाह की इबादत करता हूँ, जो तुम्हें मौत देता है और मुझे आदेश दिया गया है कि मैं ईमान वालों में से जाऊँ।


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وَأَنۡ أَقِمۡ وَجۡهَكَ لِلدِّینِ حَنِیفࣰا وَلَا تَكُونَنَّ مِنَ ٱلۡمُشۡرِكِینَ ﴿١٠٥﴾

और यह कि आप एकाग्र होकर अपना मुख इस धर्म की ओर सीधा रखें और कदापि बहुदेववादियों में से न हों।


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وَلَا تَدۡعُ مِن دُونِ ٱللَّهِ مَا لَا یَنفَعُكَ وَلَا یَضُرُّكَۖ فَإِن فَعَلۡتَ فَإِنَّكَ إِذࣰا مِّنَ ٱلظَّـٰلِمِینَ ﴿١٠٦﴾

और अल्लाह को छोड़कर उसे न पुकारें, जो न आपको लाभ पहुँचाए और न आपको हानि पहुँचा सके। फिर यदि आपने ऐसा किया, तो निश्चय ही आप उस समय अत्याचारियों में से हो जाएँगे।


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وَإِن یَمۡسَسۡكَ ٱللَّهُ بِضُرࣲّ فَلَا كَاشِفَ لَهُۥۤ إِلَّا هُوَۖ وَإِن یُرِدۡكَ بِخَیۡرࣲ فَلَا رَاۤدَّ لِفَضۡلِهِۦۚ یُصِیبُ بِهِۦ مَن یَشَاۤءُ مِنۡ عِبَادِهِۦۚ وَهُوَ ٱلۡغَفُورُ ٱلرَّحِیمُ ﴿١٠٧﴾

और यदि अल्लाह आपको कोई कष्ट पहुँचाए, तो उसके सिवा कोई उसे दूर करने वाला नहीं और यदि वह आपके लिए कोई भलाई चाहे, तो उसके अनुग्रह को कोई हटाने वाला नहीं। वह उसे अपने बंदों में से जिसे चाहता है, प्रदान करता है तथा वही बड़ा क्षमाशील, अत्यंत दयावान् है।


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قُلۡ یَـٰۤأَیُّهَا ٱلنَّاسُ قَدۡ جَاۤءَكُمُ ٱلۡحَقُّ مِن رَّبِّكُمۡۖ فَمَنِ ٱهۡتَدَىٰ فَإِنَّمَا یَهۡتَدِی لِنَفۡسِهِۦۖ وَمَن ضَلَّ فَإِنَّمَا یَضِلُّ عَلَیۡهَاۖ وَمَاۤ أَنَا۠ عَلَیۡكُم بِوَكِیلࣲ ﴿١٠٨﴾

(ऐ नबी!) आप कह दें : ऐ लोगो! निःसंदेह तुम्हारे पालनहार की ओर से तुम्हारे पास सत्य[30] आ गया है। तो जो सीधे मार्ग पर आया, तो वह अपने आप ही के लिए मार्ग पर आता है और जो पथभ्रष्ट हुआ, तो वह अपने आप ही पर पथभ्रष्ट होता है और मैं तुमपर हरगिज़ कोई निरीक्षक नहीं हूँ।[31]

30. अर्थात मुह़म्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम क़ुरआन लेकर आ गए हैं। 31. अर्थात मेरा कर्तव्य यह नहीं है कि तुम्हें बलपूर्वक सीधे मार्ग पर कर दूँ।


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وَٱتَّبِعۡ مَا یُوحَىٰۤ إِلَیۡكَ وَٱصۡبِرۡ حَتَّىٰ یَحۡكُمَ ٱللَّهُۚ وَهُوَ خَیۡرُ ٱلۡحَـٰكِمِینَ ﴿١٠٩﴾

और आप उसी का अनुसरण करें, जो आपकी ओर वह़्य की जाती है और धैर्य से काम लें, यहाँ तक कि अल्लाह फ़ैसला कर दे और वह सब फ़ैसला करने वालों से बेहतर है।


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