Surah सूरा अल्-काफ़िरून - Al-Kāfirūn - Aya count 6
قُلۡ یَـٰۤأَیُّهَا ٱلۡكَـٰفِرُونَ ﴿١﴾
(ऐ नबी!) आप कह दीजिए : ऐ काफ़िरो!
Arabic explanations of the Qur’an:
لَاۤ أَعۡبُدُ مَا تَعۡبُدُونَ ﴿٢﴾
मैं उसकी इबादत नहीं करता, जिसकी तुम इबादत करते हो।
Arabic explanations of the Qur’an:
وَلَاۤ أَنتُمۡ عَـٰبِدُونَ مَاۤ أَعۡبُدُ ﴿٣﴾
और न तुम उसकी इबादत करने वाले हो, जिसकी मैं इबादत करता हूँ।
Arabic explanations of the Qur’an:
وَلَاۤ أَنَا۠ عَابِدࣱ مَّا عَبَدتُّمۡ ﴿٤﴾
और न मैं उसकी इबादत करने वाला हूँ, जिसकी इबादत तुमने की है।
Arabic explanations of the Qur’an:
وَلَاۤ أَنتُمۡ عَـٰبِدُونَ مَاۤ أَعۡبُدُ ﴿٥﴾
और न तुम उसकी इबादत करने वाले हो, जिसकी मैं इबादत करता हूँ।
Arabic explanations of the Qur’an:
لَكُمۡ دِینُكُمۡ وَلِیَ دِینِ ﴿٦﴾
तुम्हारे लिए तुम्हारा धर्म तथा मेरे लिए मेरा धर्म है।[1]
1. (1-6) पूरी सूरत का भावार्थ यह है कि इस्लाम में वही ईमान (विश्वास) मान्य है, जो पूर्ण तौह़ीद (एकेश्वर्वाद) के साथ हो, अर्थात अल्लाह के अस्तित्व तथा गुणों और उसके अधिकारों में किसी को साझी न बनाया जाए। क़ुरआन की शिक्षानुसार जो अल्लाह को नहीं मानता, और जो मानता है परंतु उसके साथ देवी-देवताओं को भी मानात है, तो दोनों में कोई अंतर नहीं। उसके विशेष गुणों को किसी अन्य में मानना उसको न मानने ही के बराबर है और दोनों ही काफ़िर हैं। (देखिए : उम्मुल किताब, मौलाना आज़ाद)