Surah सूरा हूद - Hūd

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Surah सूरा हूद - Hūd - Aya count 123

الۤرۚ كِتَـٰبٌ أُحۡكِمَتۡ ءَایَـٰتُهُۥ ثُمَّ فُصِّلَتۡ مِن لَّدُنۡ حَكِیمٍ خَبِیرٍ ﴿١﴾

अलिफ, लाम, रा। यह एक पुस्तक है, जिसकी आयतें सुदृढ़ की गईं, फिर उन्हें सविस्तार स्पष्ट किया गया एक पूर्ण हिकमत वाले की ओर से जो पूरी ख़बर रखने वाला है।


Arabic explanations of the Qur’an:

أَلَّا تَعۡبُدُوۤاْ إِلَّا ٱللَّهَۚ إِنَّنِی لَكُم مِّنۡهُ نَذِیرࣱ وَبَشِیرࣱ ﴿٢﴾

यह कि अल्लाह के सिवा किसी की इबादत न करो। निःसंदेह मैं तुम्हारे लिए उसकी ओर से एक डराने वाला तथा शुभ सूचना देने वाला हूँ।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَأَنِ ٱسۡتَغۡفِرُواْ رَبَّكُمۡ ثُمَّ تُوبُوۤاْ إِلَیۡهِ یُمَتِّعۡكُم مَّتَـٰعًا حَسَنًا إِلَىٰۤ أَجَلࣲ مُّسَمࣰّى وَیُؤۡتِ كُلَّ ذِی فَضۡلࣲ فَضۡلَهُۥۖ وَإِن تَوَلَّوۡاْ فَإِنِّیۤ أَخَافُ عَلَیۡكُمۡ عَذَابَ یَوۡمࣲ كَبِیرٍ ﴿٣﴾

और यह कि अपने पालनहार से क्षमा माँगो, फिर उसकी ओर पलट आओ। वह तुम्हें एक निर्धारित अवधि तक उत्तम सामग्री प्रदान करेगा और प्रत्येक अतिरिक्त सत्कर्म करने वाले को उसका अतिरिक्त बदला देगा और यदि तुम फिर गह, तो मैं तुमपर एक बड़े दिन की यातना से डरता हूँ।


Arabic explanations of the Qur’an:

إِلَى ٱللَّهِ مَرۡجِعُكُمۡۖ وَهُوَ عَلَىٰ كُلِّ شَیۡءࣲ قَدِیرٌ ﴿٤﴾

अल्लाह ही की ओर तुम्हारा लौटना है और वह हर चीज़ पर सर्वशक्तिमान है।


Arabic explanations of the Qur’an:

أَلَاۤ إِنَّهُمۡ یَثۡنُونَ صُدُورَهُمۡ لِیَسۡتَخۡفُواْ مِنۡهُۚ أَلَا حِینَ یَسۡتَغۡشُونَ ثِیَابَهُمۡ یَعۡلَمُ مَا یُسِرُّونَ وَمَا یُعۡلِنُونَۚ إِنَّهُۥ عَلِیمُۢ بِذَاتِ ٱلصُّدُورِ ﴿٥﴾

सुन लो! निःसंदेह वे अपने सीनों को मोड़ते हैं, ताकि उस (अल्लाह) से छिपे रहें। सुन लो! जब वे अपने कपड़े ख़ूब लपेट लेते हैं, वह जानता है जो कुछ वे छिपाते हैं और जो कुछ प्रकट करते हैं। निःसंदेह वह सीनों की बातों को भली-भाँति जानने वाला है।[1]

1. आयत का भावार्थ यह है कि मिश्रणवादी अपने दिलों में कुफ़्र को यह समझ कर छिपाते हैं कि अल्लाह उसे नहीं जानेगा। जबकि वह उनके खुले-छिपे और उनके दिलों के भेदों तक को जानता है।


Arabic explanations of the Qur’an:

۞ وَمَا مِن دَاۤبَّةࣲ فِی ٱلۡأَرۡضِ إِلَّا عَلَى ٱللَّهِ رِزۡقُهَا وَیَعۡلَمُ مُسۡتَقَرَّهَا وَمُسۡتَوۡدَعَهَاۚ كُلࣱّ فِی كِتَـٰبࣲ مُّبِینࣲ ﴿٦﴾

और धरती पर चलने-फिरने वाला जो भी प्राणी है, उसकी रोज़ी अल्लाह के ज़िम्मे है। वह उसके ठहरने के स्थान तथा उसके सौंपे जाने के स्थान को जानता है। सब कुछ एक स्पष्ट पुस्तक में (अंकित) है।[2]

2. अर्थात अल्लाह प्रत्येक व्यक्ति के जीवन-मरण आदि की सब दशाओं से अवगत है।


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وَهُوَ ٱلَّذِی خَلَقَ ٱلسَّمَـٰوَ ٰ⁠تِ وَٱلۡأَرۡضَ فِی سِتَّةِ أَیَّامࣲ وَكَانَ عَرۡشُهُۥ عَلَى ٱلۡمَاۤءِ لِیَبۡلُوَكُمۡ أَیُّكُمۡ أَحۡسَنُ عَمَلࣰاۗ وَلَىِٕن قُلۡتَ إِنَّكُم مَّبۡعُوثُونَ مِنۢ بَعۡدِ ٱلۡمَوۡتِ لَیَقُولَنَّ ٱلَّذِینَ كَفَرُوۤاْ إِنۡ هَـٰذَاۤ إِلَّا سِحۡرࣱ مُّبِینࣱ ﴿٧﴾

और वही है, जिसने आकाशों तथा धरती को छः दिनों में पैदा किया। उस समय उसका सिंहासन पानी पर था। ताकि तुम्हारी परीक्षा ले कि तुममें किसका कर्म सबसे उत्तम है। और (ऐ नबी!) यदि आप उनसे कहें कि निःसंदेह तुम मरने के बाद पुनः जीवित किए जाओगे, तो जिन लोगों ने कुफ़्र किया, वे अवश्य कहेंगे कि यह तो खुला जादू है।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَلَىِٕنۡ أَخَّرۡنَا عَنۡهُمُ ٱلۡعَذَابَ إِلَىٰۤ أُمَّةࣲ مَّعۡدُودَةࣲ لَّیَقُولُنَّ مَا یَحۡبِسُهُۥۤۗ أَلَا یَوۡمَ یَأۡتِیهِمۡ لَیۡسَ مَصۡرُوفًا عَنۡهُمۡ وَحَاقَ بِهِم مَّا كَانُواْ بِهِۦ یَسۡتَهۡزِءُونَ ﴿٨﴾

और यदि हम एक गिनी-चुनी अवधि तक उनसे यातना को विलंबित कर दें, तो अवश्य कहेंगे कि किस चीज़ ने उसे रोक रखा है? सुन लो! वह जिस दिन उनपर आ जाएगी, तो उनपर से टाली नहीं जाएगी। और वह (यातना) उन्हें घेर लेगी, जिसकी वे हँसी उड़ाया करते थे।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَلَىِٕنۡ أَذَقۡنَا ٱلۡإِنسَـٰنَ مِنَّا رَحۡمَةࣰ ثُمَّ نَزَعۡنَـٰهَا مِنۡهُ إِنَّهُۥ لَیَـُٔوسࣱ كَفُورࣱ ﴿٩﴾

और यदि हम मनुष्य को अपनी तरफ़ से किसी दया (नेमत) का स्वाद चखा दें, फिर उसे उससे छीन लें, तो निश्चय ही वह अति निराश, बड़ा नाशुक्रा हो जाता है।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَلَىِٕنۡ أَذَقۡنَـٰهُ نَعۡمَاۤءَ بَعۡدَ ضَرَّاۤءَ مَسَّتۡهُ لَیَقُولَنَّ ذَهَبَ ٱلسَّیِّـَٔاتُ عَنِّیۤۚ إِنَّهُۥ لَفَرِحࣱ فَخُورٌ ﴿١٠﴾

और यदि हम उसे विपत्ति पहुँचने के बाद कोई नेमत चखाएँ, तो निश्चय ही वह अवश्य कहेगा : समस्त विपत्तियाँ मुझसे दूर हो गईं। निःसंदेह वह बहुत इतराने वाला, बहुत गर्व करने वाला है।[3]

3. इसमें मनुष्य की स्वभाविक दशा की ओर संकेत है।


Arabic explanations of the Qur’an:

إِلَّا ٱلَّذِینَ صَبَرُواْ وَعَمِلُواْ ٱلصَّـٰلِحَـٰتِ أُوْلَـٰۤىِٕكَ لَهُم مَّغۡفِرَةࣱ وَأَجۡرࣱ كَبِیرࣱ ﴿١١﴾

परन्तु जिन लोगों ने धैर्य से काम लिया और अच्छे कर्म करते रहे, ऐस लोगों के लिए क्षमा और बड़ा प्रतिफल है।


Arabic explanations of the Qur’an:

فَلَعَلَّكَ تَارِكُۢ بَعۡضَ مَا یُوحَىٰۤ إِلَیۡكَ وَضَاۤىِٕقُۢ بِهِۦ صَدۡرُكَ أَن یَقُولُواْ لَوۡلَاۤ أُنزِلَ عَلَیۡهِ كَنزٌ أَوۡ جَاۤءَ مَعَهُۥ مَلَكٌۚ إِنَّمَاۤ أَنتَ نَذِیرࣱۚ وَٱللَّهُ عَلَىٰ كُلِّ شَیۡءࣲ وَكِیلٌ ﴿١٢﴾

तो (ऐ नबी!) संभवतः आप अपनी ओर की जाने वाली वह़्य के कुछ भाग (का प्रसार) छोड़ देने वाले हैं, और उसके (प्रसार के) कारण आपका सीना तंग हो रहा है कि वे कहेंगे कि इसपर कोई ख़ज़ाना क्यों नहीं उतारा गया या इसके साथ कोई फरिश्ता क्यों नहीं आया? (तो सुनिए) आप केवल सचेत करने वाले हैं और अल्लाह ही प्रत्येक चीज़ का संरक्षक है।


Arabic explanations of the Qur’an:

أَمۡ یَقُولُونَ ٱفۡتَرَىٰهُۖ قُلۡ فَأۡتُواْ بِعَشۡرِ سُوَرࣲ مِّثۡلِهِۦ مُفۡتَرَیَـٰتࣲ وَٱدۡعُواْ مَنِ ٱسۡتَطَعۡتُم مِّن دُونِ ٱللَّهِ إِن كُنتُمۡ صَـٰدِقِینَ ﴿١٣﴾

बल्कि क्या वे कहते हैं कि उसने इस (क़ुरआन) को स्वयं गढ़ लिया है? आप कह दें कि इस जैसी गढ़ी हुई दस सूरतें ले आओ[4] और अल्लाह के सिवा, जिसे बुला सकते हो, बुला लो, यदि तुम सच्चे हो।

4. अल्लाह का यह चैलेंज है कि अगर तुमको शंका है कि यह क़ुरआन मुह़म्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने स्वयं बना लिया है, तो तुम इस जैसी दस सूरतें ही बना कर दिखा दो। और यह चैलेंज प्रलय तक के लिए है। और कोई दस तो क्या, इस जैसी एक सूरत भी नहीं ला सकता। (देखिए : सूरत यूनुस, आयत : 38 तथा सूरतुल-बक़रह, आयत : 23)


Arabic explanations of the Qur’an:

فَإِلَّمۡ یَسۡتَجِیبُواْ لَكُمۡ فَٱعۡلَمُوۤاْ أَنَّمَاۤ أُنزِلَ بِعِلۡمِ ٱللَّهِ وَأَن لَّاۤ إِلَـٰهَ إِلَّا هُوَۖ فَهَلۡ أَنتُم مُّسۡلِمُونَ ﴿١٤﴾

फिर यदि वे तुम्हारी मांग पूरी न करें, तो जान लो कि यह (क़ुरआन) अल्लाह के ज्ञान के साथ उतारा गया है और यह कि उसके सिवा कोई पूज्य नहीं। तो क्या तुम मुसलमान होते हो?


Arabic explanations of the Qur’an:

مَن كَانَ یُرِیدُ ٱلۡحَیَوٰةَ ٱلدُّنۡیَا وَزِینَتَهَا نُوَفِّ إِلَیۡهِمۡ أَعۡمَـٰلَهُمۡ فِیهَا وَهُمۡ فِیهَا لَا یُبۡخَسُونَ ﴿١٥﴾

जो व्यक्ति सांसारिक जीवन तथा उसकी शोभा चाहता हो, हम ऐसे लोगों को उनके कर्मों का बदला इसी (दुनिया) में दे देते हैं और इसमें उनका कोई हक़ नहीं मारा जाता।


Arabic explanations of the Qur’an:

أُوْلَـٰۤىِٕكَ ٱلَّذِینَ لَیۡسَ لَهُمۡ فِی ٱلۡـَٔاخِرَةِ إِلَّا ٱلنَّارُۖ وَحَبِطَ مَا صَنَعُواْ فِیهَا وَبَـٰطِلࣱ مَّا كَانُواْ یَعۡمَلُونَ ﴿١٦﴾

यही वे लोग हैं, जिनके लिए आख़िरत में आग के सिवा कुछ नहीं है और उनके दुनिया में किए हुए समस्त कार्य व्यर्थ हो जाएँगे और उनका सारा किया-धरा अकारथ होकर रह जाएगा।


Arabic explanations of the Qur’an:

أَفَمَن كَانَ عَلَىٰ بَیِّنَةࣲ مِّن رَّبِّهِۦ وَیَتۡلُوهُ شَاهِدࣱ مِّنۡهُ وَمِن قَبۡلِهِۦ كِتَـٰبُ مُوسَىٰۤ إِمَامࣰا وَرَحۡمَةًۚ أُوْلَـٰۤىِٕكَ یُؤۡمِنُونَ بِهِۦۚ وَمَن یَكۡفُرۡ بِهِۦ مِنَ ٱلۡأَحۡزَابِ فَٱلنَّارُ مَوۡعِدُهُۥۚ فَلَا تَكُ فِی مِرۡیَةࣲ مِّنۡهُۚ إِنَّهُ ٱلۡحَقُّ مِن رَّبِّكَ وَلَـٰكِنَّ أَكۡثَرَ ٱلنَّاسِ لَا یُؤۡمِنُونَ ﴿١٧﴾

तो क्या वह व्यक्ति जो अपने पालनहार की ओर से स्पष्ट प्रमाण[5] रखता हो और उसके बाद अल्लाह की ओर से एक गवाह[6] भी आ जाए, तथा उससे पहले मूसा की पुस्तक मार्गदर्शक और दया के रूप में उपस्थित रही हो (वह गुमराही में पड़े हुए लोगों के समान हो सकता है?) ऐसे ही लोग इस (क़ुरआन) पर ईमान रखते हैं। और इन समूहों में से जो व्यक्ति भी इसका इनकार करेगा, तो उसके वादा की जगह (ठिकाना) दोज़ख है। अतः आप इसके बारे में किसी संदेह में न पड़ें। निःसंदेह यह आपके पालनहार की ओर से सत्य है। परंतु अधिकतर लोग ईमान (विश्वास) नहीं रखते।

5. अर्थात जो अपने अस्तित्व तथा विश्व की रचना और व्यवस्था पर विचार करके यह जानता था कि इसका स्वामी तथा शासक केवल अल्लाह ही है, उसके अतिरिक्त कोई अन्य नहीं हो सकता। 6. अर्थात नबी और क़ुरआन।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَمَنۡ أَظۡلَمُ مِمَّنِ ٱفۡتَرَىٰ عَلَى ٱللَّهِ كَذِبًاۚ أُوْلَـٰۤىِٕكَ یُعۡرَضُونَ عَلَىٰ رَبِّهِمۡ وَیَقُولُ ٱلۡأَشۡهَـٰدُ هَـٰۤؤُلَاۤءِ ٱلَّذِینَ كَذَبُواْ عَلَىٰ رَبِّهِمۡۚ أَلَا لَعۡنَةُ ٱللَّهِ عَلَى ٱلظَّـٰلِمِینَ ﴿١٨﴾

और उससे बड़ा अत्याचारी कौन होगा, जो अल्लाह पर झूठ गढ़े? ऐसे लोग अपने पालनहार के समक्ष प्रस्तुत किए जाएँगे और गवाही देने वाले कहेंगे कि यही वे लोग हैं जिन्होंने अपने पालनहार पर झूठ गढ़ा था। सुन लो! अत्याचारियों पर अल्लाह की धिक्कार है।


Arabic explanations of the Qur’an:

ٱلَّذِینَ یَصُدُّونَ عَن سَبِیلِ ٱللَّهِ وَیَبۡغُونَهَا عِوَجࣰا وَهُم بِٱلۡـَٔاخِرَةِ هُمۡ كَـٰفِرُونَ ﴿١٩﴾

जो अल्लाह के मार्ग से रोकते हैं और उसे टेढ़ा बनाना चाहते हैं और वही आख़िरत का इनकार करने वाले हैं।


Arabic explanations of the Qur’an:

أُوْلَـٰۤىِٕكَ لَمۡ یَكُونُواْ مُعۡجِزِینَ فِی ٱلۡأَرۡضِ وَمَا كَانَ لَهُم مِّن دُونِ ٱللَّهِ مِنۡ أَوۡلِیَاۤءَۘ یُضَـٰعَفُ لَهُمُ ٱلۡعَذَابُۚ مَا كَانُواْ یَسۡتَطِیعُونَ ٱلسَّمۡعَ وَمَا كَانُواْ یُبۡصِرُونَ ﴿٢٠﴾

वे धरती में अल्लाह की यातना से बचकर भाग नहीं सकते और न उनका अल्लाह के सिवा कोई सहायक है। उनके लिए यातना दुगुनी कर दी जाएगी। वे (दुनिया में) न सुन सकते थे, न देख सकते थे।


Arabic explanations of the Qur’an:

أُوْلَـٰۤىِٕكَ ٱلَّذِینَ خَسِرُوۤاْ أَنفُسَهُمۡ وَضَلَّ عَنۡهُم مَّا كَانُواْ یَفۡتَرُونَ ﴿٢١﴾

ये वही लोग हैं, जिन्होंने अपने आपको घाटे में डाला और वह सब कुछ उनसे खो गया, जो वे झूठ गढ़ा करते थे।


Arabic explanations of the Qur’an:

لَا جَرَمَ أَنَّهُمۡ فِی ٱلۡـَٔاخِرَةِ هُمُ ٱلۡأَخۡسَرُونَ ﴿٢٢﴾

इसमें कोई संदेह नहीं कि यही लोग आख़िरत में सबसे अधिक घाटा उठाने वाले हैं।


Arabic explanations of the Qur’an:

إِنَّ ٱلَّذِینَ ءَامَنُواْ وَعَمِلُواْ ٱلصَّـٰلِحَـٰتِ وَأَخۡبَتُوۤاْ إِلَىٰ رَبِّهِمۡ أُوْلَـٰۤىِٕكَ أَصۡحَـٰبُ ٱلۡجَنَّةِۖ هُمۡ فِیهَا خَـٰلِدُونَ ﴿٢٣﴾

निःसंदेह जो लोग ईमान लाए और अच्छे कार्य किए, तथा अपने पालनहार के सामने विनम्रता प्रकट की, वही लोग जन्नत वाले हैं। वे उसमें हमेशा रहेंगे।


Arabic explanations of the Qur’an:

۞ مَثَلُ ٱلۡفَرِیقَیۡنِ كَٱلۡأَعۡمَىٰ وَٱلۡأَصَمِّ وَٱلۡبَصِیرِ وَٱلسَّمِیعِۚ هَلۡ یَسۡتَوِیَانِ مَثَلًاۚ أَفَلَا تَذَكَّرُونَ ﴿٢٤﴾

दोनों पक्षों का उदाहरण अंधे और बहरे तथा देखने और सुनने वाले की तरह है। क्या ये दोनों उदाहरण में बराबर हो सकते हैं? क्या तुम (इससे) नसीहत नहीं पकड़ते?[7]

7. कि दोनों का परिणाम एक नहीं हो सकता। एक को नरक में और दूसरे को स्वर्ग में जाना है। ( देखिए : सूरतुल-ह़श्र, आयत : 20)


Arabic explanations of the Qur’an:

وَلَقَدۡ أَرۡسَلۡنَا نُوحًا إِلَىٰ قَوۡمِهِۦۤ إِنِّی لَكُمۡ نَذِیرࣱ مُّبِینٌ ﴿٢٥﴾

और हमने नूह़ को उसकी जाति की ओर रसूल बनाकर भेजा। (उन्होंने कहा :) निःसंदेह मैं तुम्हें साफ़-साफ़ सावधान करने वाला हूँ।


Arabic explanations of the Qur’an:

أَن لَّا تَعۡبُدُوۤاْ إِلَّا ٱللَّهَۖ إِنِّیۤ أَخَافُ عَلَیۡكُمۡ عَذَابَ یَوۡمٍ أَلِیمࣲ ﴿٢٦﴾

कि तुम केवल अल्लाह की इबादत करो। निःसंदेह मैं तुमपर एक दर्दनाक दिन की यातना से डरता हूँ।


Arabic explanations of the Qur’an:

فَقَالَ ٱلۡمَلَأُ ٱلَّذِینَ كَفَرُواْ مِن قَوۡمِهِۦ مَا نَرَىٰكَ إِلَّا بَشَرࣰا مِّثۡلَنَا وَمَا نَرَىٰكَ ٱتَّبَعَكَ إِلَّا ٱلَّذِینَ هُمۡ أَرَاذِلُنَا بَادِیَ ٱلرَّأۡیِ وَمَا نَرَىٰ لَكُمۡ عَلَیۡنَا مِن فَضۡلِۭ بَلۡ نَظُنُّكُمۡ كَـٰذِبِینَ ﴿٢٧﴾

तो उनकी जाति के उन प्रमुखों ने कहा, जिन्होंने कुफ्र किया था : हम तो तुम्हें अपने ही जैसा इनसान समझते हैं और हम देख रहे हैं कि तुम्हारा अनुसरण केवल वही लोग कर रहे हैं, जो हम में नीच हैं, जिन्होंने बिना सोचे-समझे तुम्हारी पैरवी की है।और हम अपने ऊपर तुम्हारी कोई श्रेष्ठता भी नहीं देखते। बल्कि हम तो तुम्हें झूठा समझते हैं।


Arabic explanations of the Qur’an:

قَالَ یَـٰقَوۡمِ أَرَءَیۡتُمۡ إِن كُنتُ عَلَىٰ بَیِّنَةࣲ مِّن رَّبِّی وَءَاتَىٰنِی رَحۡمَةࣰ مِّنۡ عِندِهِۦ فَعُمِّیَتۡ عَلَیۡكُمۡ أَنُلۡزِمُكُمُوهَا وَأَنتُمۡ لَهَا كَـٰرِهُونَ ﴿٢٨﴾

नूह़ ने कहा : ऐ मेरी जाति के लोगो! क्या तुमने इस बात पर विचार किया कि यदि मैं अपने पालनहार की ओर से एक स्पष्ट प्रमाण पर हूँ और उसने मुझे अपने पास से दया[8] प्रदान की हो, फिर वह तुम्हें सुझाई न दे, तो क्या हम तुम्हें उसको मानने पर मजबूर[9] कर सकते हैं, जबकि तुम उसे नापसंद करते हो?

8. अर्थात नुबुव्वत और मार्गदर्शन। 9. अर्थात मैं बलपूर्वक तुम्हें सत्य नहीं मनवा सकता।


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وَیَـٰقَوۡمِ لَاۤ أَسۡـَٔلُكُمۡ عَلَیۡهِ مَالًاۖ إِنۡ أَجۡرِیَ إِلَّا عَلَى ٱللَّهِۚ وَمَاۤ أَنَا۠ بِطَارِدِ ٱلَّذِینَ ءَامَنُوۤاْۚ إِنَّهُم مُّلَـٰقُواْ رَبِّهِمۡ وَلَـٰكِنِّیۤ أَرَىٰكُمۡ قَوۡمࣰا تَجۡهَلُونَ ﴿٢٩﴾

और ऐ मेरी जाति के लोगो! मैं इस (संदेश के प्रचार) पर तुमसे कोई धन नहीं माँगता। मेरा बदला बस अल्लाह के ऊपर है। और मैं (अपने यहाँ से) उन लोगों को दूर नहीं हटा सकता, जो ईमान लाए हैं। निःसंदेह वे अपने पालनहार से मिलने वाले हैं। परन्तु मैं देख रहा हूँ कि तुम जाहिलों जैसी बातें कर रहे हो।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَیَـٰقَوۡمِ مَن یَنصُرُنِی مِنَ ٱللَّهِ إِن طَرَدتُّهُمۡۚ أَفَلَا تَذَكَّرُونَ ﴿٣٠﴾

और ऐ मेरी जाति के लोगो! अल्लाह के मुक़ाबले में कौन मेरी सहायता[10] करेगा, यदि मैं उन्हें अपने पास से निष्कासित कर दूँ? क्या तुम विचार नहीं करते?

10. अर्थात अल्लाह की पकड़ से कौन बचाएगा, जिसके पास ईमान और कर्म की प्रधानता है, धन-धान्य की नहीं।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَلَاۤ أَقُولُ لَكُمۡ عِندِی خَزَاۤىِٕنُ ٱللَّهِ وَلَاۤ أَعۡلَمُ ٱلۡغَیۡبَ وَلَاۤ أَقُولُ إِنِّی مَلَكࣱ وَلَاۤ أَقُولُ لِلَّذِینَ تَزۡدَرِیۤ أَعۡیُنُكُمۡ لَن یُؤۡتِیَهُمُ ٱللَّهُ خَیۡرًاۖ ٱللَّهُ أَعۡلَمُ بِمَا فِیۤ أَنفُسِهِمۡ إِنِّیۤ إِذࣰا لَّمِنَ ٱلظَّـٰلِمِینَ ﴿٣١﴾

और मैं तुमसे यह नहीं कहता कि मेरे पास अल्लाह के ख़ज़ाने हैं और न मुझे परोक्ष का ज्ञान है और न मैं यह कहता हूँ कि निःसंदेह मैं एक फ़रिश्ता हूँ और न ही मैं उन लोगों के बारे में जिन्हें तुम्हारी आँखें तुच्छ समझती हैं, यह कहता हूँ कि अल्लाह उन्हें हरगिज़ कोई भलाई नहीं देगा। अल्लाह अधिक जानता है, जो कुछ उनके दिलों में है। (यदि मैं ऐसा कहूँ,) तो निश्चय ही मैं अत्याचारियों में से हो जाऊँगा।


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قَالُواْ یَـٰنُوحُ قَدۡ جَـٰدَلۡتَنَا فَأَكۡثَرۡتَ جِدَ ٰ⁠لَنَا فَأۡتِنَا بِمَا تَعِدُنَاۤ إِن كُنتَ مِنَ ٱلصَّـٰدِقِینَ ﴿٣٢﴾

उन लोगों ने कहा : ऐ नूह़! तुमने हमसे झगड़ा किया और बहुत झगड़ लिया। अतः अब वह (यातना) हम पर ले आओ, जिसका तुम हमसे वादा करते हो, यदि तुम सच्चे हो।


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قَالَ إِنَّمَا یَأۡتِیكُم بِهِ ٱللَّهُ إِن شَاۤءَ وَمَاۤ أَنتُم بِمُعۡجِزِینَ ﴿٣٣﴾

उसने कहा : उसे तो तुम्हारे पास अल्लाह ही लाएगा, यदि वह चाहेगा और तुम (उसे) विवश करने वाले नहीं हो।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَلَا یَنفَعُكُمۡ نُصۡحِیۤ إِنۡ أَرَدتُّ أَنۡ أَنصَحَ لَكُمۡ إِن كَانَ ٱللَّهُ یُرِیدُ أَن یُغۡوِیَكُمۡۚ هُوَ رَبُّكُمۡ وَإِلَیۡهِ تُرۡجَعُونَ ﴿٣٤﴾

और मेरा उपदेश करना तुम्हें कोई लाभ नहीं देगा, अगर मैं तुम्हें उपदेश करना चाहूँ, जबकि अल्लाह तुम्हें गुमराह करना चाहता हो। वही तुम्हारा पालनहार है और तुम उसी की ओर लौटाए जाओगे।


Arabic explanations of the Qur’an:

أَمۡ یَقُولُونَ ٱفۡتَرَىٰهُۖ قُلۡ إِنِ ٱفۡتَرَیۡتُهُۥ فَعَلَیَّ إِجۡرَامِی وَأَنَا۠ بَرِیۤءࣱ مِّمَّا تُجۡرِمُونَ ﴿٣٥﴾

क्या वे कहते हैं कि उसने इसे गढ़ लिया है? तुम कह दो कि यदि मैंने इसे गढ़ लिया है, तो मेरा अपराध मुझी पर है और मैं उससे निर्दोष हूँ, जो अपराध तुम कर रहे हो।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَأُوحِیَ إِلَىٰ نُوحٍ أَنَّهُۥ لَن یُؤۡمِنَ مِن قَوۡمِكَ إِلَّا مَن قَدۡ ءَامَنَ فَلَا تَبۡتَىِٕسۡ بِمَا كَانُواْ یَفۡعَلُونَ ﴿٣٦﴾

और नूह़ की ओर वह़्य (प्रकाशना) की गई कि तुम्हारी जाति में से जो लोग ईमान ला चुके हैं, अब उनके सिवा कोई ईमान नहीं लाएगा। अतः वे जो कुछ कर रहे हैं, उससे तुम दुःखी न हो।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَٱصۡنَعِ ٱلۡفُلۡكَ بِأَعۡیُنِنَا وَوَحۡیِنَا وَلَا تُخَـٰطِبۡنِی فِی ٱلَّذِینَ ظَلَمُوۤاْ إِنَّهُم مُّغۡرَقُونَ ﴿٣٧﴾

और हमारी आँखों के सामने और हमारी वह़्य के अनुसार एक नाव बनाओ और मुझसे उन लोगों के बारे में कुछ[11] न कहना, जिन्होंने अत्याचार किया है। निःसंदेह वे डुबाए जाने वाले हैं।

11. अर्थात प्रार्थना और सिफ़ारिश न करना।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَیَصۡنَعُ ٱلۡفُلۡكَ وَكُلَّمَا مَرَّ عَلَیۡهِ مَلَأࣱ مِّن قَوۡمِهِۦ سَخِرُواْ مِنۡهُۚ قَالَ إِن تَسۡخَرُواْ مِنَّا فَإِنَّا نَسۡخَرُ مِنكُمۡ كَمَا تَسۡخَرُونَ ﴿٣٨﴾

और वह नाव बनाने लगा। और जब भी उसकी जाति के प्रमुख लोग उसके पास से गुज़रते, तो उसकी हँसी उड़ाते। नूह़ ने कहा : यदि तुम हमारी हँसी उड़ाते हो, तो हम भी ऐसे ही (एक दिन) तुम्हारी हँसी उड़ाएँगे।


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فَسَوۡفَ تَعۡلَمُونَ مَن یَأۡتِیهِ عَذَابࣱ یُخۡزِیهِ وَیَحِلُّ عَلَیۡهِ عَذَابࣱ مُّقِیمٌ ﴿٣٩﴾

फिर तुम्हें जल्द ही पता चल जाएगा कि किसपर अपमानकारी यातना आती है और किसपर स्थायी यातना उतरती है?


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حَتَّىٰۤ إِذَا جَاۤءَ أَمۡرُنَا وَفَارَ ٱلتَّنُّورُ قُلۡنَا ٱحۡمِلۡ فِیهَا مِن كُلࣲّ زَوۡجَیۡنِ ٱثۡنَیۡنِ وَأَهۡلَكَ إِلَّا مَن سَبَقَ عَلَیۡهِ ٱلۡقَوۡلُ وَمَنۡ ءَامَنَۚ وَمَاۤ ءَامَنَ مَعَهُۥۤ إِلَّا قَلِیلࣱ ﴿٤٠﴾

यहाँ तक कि जब हमारा आदेश आ गया और तन्नूर उबलने लगा, तो हमने (नूह़ से) कहा : "उसमें प्रत्येक प्रकार के जीवों में से जोड़े-जोड़े चढ़ा लो और अपने परिजनों को (भी चढ़ा लो) सिवाय उसके जिसके बारे में पहले ही बता दिया गाय है और उन लोगों को (भी चढ़ा लो) जो ईमान लाए हैं।" और उसके साथ थोड़े लोग ही ईमान लाए थे।


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۞ وَقَالَ ٱرۡكَبُواْ فِیهَا بِسۡمِ ٱللَّهِ مَجۡرٜىٰهَا وَمُرۡسَىٰهَاۤۚ إِنَّ رَبِّی لَغَفُورࣱ رَّحِیمࣱ ﴿٤١﴾

और नूह़ ने कहा : इसमें सवार हो जाओ। अल्लाह के नाम ही से इसका चलना तथा इसका ठहरना है। निःसंदेह मेरा पालनहार बड़ा क्षमाशील, दयावान् है।


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وَهِیَ تَجۡرِی بِهِمۡ فِی مَوۡجࣲ كَٱلۡجِبَالِ وَنَادَىٰ نُوحٌ ٱبۡنَهُۥ وَكَانَ فِی مَعۡزِلࣲ یَـٰبُنَیَّ ٱرۡكَب مَّعَنَا وَلَا تَكُن مَّعَ ٱلۡكَـٰفِرِینَ ﴿٤٢﴾

और वह उन्हें लिए पर्वतों जैसी ऊँची लहरों में चलती रही। और नूह़ ने अपने बेटे को, जो (उनसे) अलग-थलग था, पुकारा : ऐ मेरे बेटे! मेरे साथ सवार हो जा और काफ़िरों के साथ न रह।


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قَالَ سَـَٔاوِیۤ إِلَىٰ جَبَلࣲ یَعۡصِمُنِی مِنَ ٱلۡمَاۤءِۚ قَالَ لَا عَاصِمَ ٱلۡیَوۡمَ مِنۡ أَمۡرِ ٱللَّهِ إِلَّا مَن رَّحِمَۚ وَحَالَ بَیۡنَهُمَا ٱلۡمَوۡجُ فَكَانَ مِنَ ٱلۡمُغۡرَقِینَ ﴿٤٣﴾

उसने कहा : मैं किसी पर्वत की ओर शरण ले लूँगा, जो मुझे पानी से बचा लेगा। नूह़ ने कहा : आज अल्लाह के आदेश (यातना) से कोई बचाने वाला नहीं। यह और बात है कि किसी पर उसकी दया हो जाए। और (इतने ही में) दोनों के बीच एक लहर आ गई और वह डूबने वालों में से हो गया।


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وَقِیلَ یَـٰۤأَرۡضُ ٱبۡلَعِی مَاۤءَكِ وَیَـٰسَمَاۤءُ أَقۡلِعِی وَغِیضَ ٱلۡمَاۤءُ وَقُضِیَ ٱلۡأَمۡرُ وَٱسۡتَوَتۡ عَلَى ٱلۡجُودِیِّۖ وَقِیلَ بُعۡدࣰا لِّلۡقَوۡمِ ٱلظَّـٰلِمِینَ ﴿٤٤﴾

और कहा गया : ऐ धरती! अपना पानी निगल जा और ऐ आकाश! थम जा और पानी उतर गया और आदेश पूरा कर दिया गया और नाव 'जूदी'[12] पर ठहर गई और कहा गया कि अत्याचारियों के लिए (अल्लाह की दया से) दूरी है।

12. "जूदी" एक पर्वत का नाम है, जो कुर्दिस्तान में "इब्ने उमर" द्वीप के उत्तर-पूर्व ओर स्थित है। और आज भी जूदी के नाम से ही प्रसिद्ध है।


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وَنَادَىٰ نُوحࣱ رَّبَّهُۥ فَقَالَ رَبِّ إِنَّ ٱبۡنِی مِنۡ أَهۡلِی وَإِنَّ وَعۡدَكَ ٱلۡحَقُّ وَأَنتَ أَحۡكَمُ ٱلۡحَـٰكِمِینَ ﴿٤٥﴾

तथा नूह़ ने अपने पालनहार को पुकारा और कहा : मेरे पालनहार! मेरा बेटा मेरे घर वालों में से है और निःसंदेह तेरा वचन सत्य है तथा तू ही सबसे अच्छा निर्णय करने वाला है।


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قَالَ یَـٰنُوحُ إِنَّهُۥ لَیۡسَ مِنۡ أَهۡلِكَۖ إِنَّهُۥ عَمَلٌ غَیۡرُ صَـٰلِحࣲۖ فَلَا تَسۡـَٔلۡنِ مَا لَیۡسَ لَكَ بِهِۦ عِلۡمٌۖ إِنِّیۤ أَعِظُكَ أَن تَكُونَ مِنَ ٱلۡجَـٰهِلِینَ ﴿٤٦﴾

(अल्लाह ने) कहा : ऐ नूह़! वह तेरे घर वालों में से नहीं है। यह माँग उचित नहीं है। अतः मुझसे उस चीज़ का प्रश्न न कर, जिसका तुझे कोई ज्ञान नहीं। मैं तुझे समझाता हूँ कि अज्ञानियों में से न हो जा।


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قَالَ رَبِّ إِنِّیۤ أَعُوذُ بِكَ أَنۡ أَسۡـَٔلَكَ مَا لَیۡسَ لِی بِهِۦ عِلۡمࣱۖ وَإِلَّا تَغۡفِرۡ لِی وَتَرۡحَمۡنِیۤ أَكُن مِّنَ ٱلۡخَـٰسِرِینَ ﴿٤٧﴾

नूह़ ने कहा : मेरे पालनहार! मैं तेरी शरण चाहता हूँ इस बात से कि मैं तुझसे ऐसी चीज़ का प्रश्न करूँ, जिस (की वास्तविक्ता) का मुझे कोई ज्ञान नहीं[13] और यदि तूने मुझे क्षमा नहीं किया और मुझपर दया नहीं की, तो मैं नुक़सान उठाने वालों में से हो जाऊँगा।

13. अर्थात जब नूह़ (अलैहिस्सलाम) को बता दिया गया कि तुम्हारा पुत्र ईमान वालों में से नहीं है, इसलिए वह अल्लाह के अज़ाब से बच नहीं सकता, तो नूह़ अलैहिस्सलाम तुरंत अल्लाह से क्षमा माँगने लगे।


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قِیلَ یَـٰنُوحُ ٱهۡبِطۡ بِسَلَـٰمࣲ مِّنَّا وَبَرَكَـٰتٍ عَلَیۡكَ وَعَلَىٰۤ أُمَمࣲ مِّمَّن مَّعَكَۚ وَأُمَمࣱ سَنُمَتِّعُهُمۡ ثُمَّ یَمَسُّهُم مِّنَّا عَذَابٌ أَلِیمࣱ ﴿٤٨﴾

कहा गया : ऐ नूह़! हमारी ओर से सुरक्षा और बरकतों के साथ उतर जाओ, जो तुम पर और उन समूहो पर हैं जो तुम्हारे साथ हैं। तथा कुछ समूह ऐसे हैं, जिन्हें हम (दुनिया में) जीवन-यापन सामग्री प्रदान करेंगें, फिर उन्हें हमारी ओर से कष्टदायक यातना पहुँचेगी।


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تِلۡكَ مِنۡ أَنۢبَاۤءِ ٱلۡغَیۡبِ نُوحِیهَاۤ إِلَیۡكَۖ مَا كُنتَ تَعۡلَمُهَاۤ أَنتَ وَلَا قَوۡمُكَ مِن قَبۡلِ هَـٰذَاۖ فَٱصۡبِرۡۖ إِنَّ ٱلۡعَـٰقِبَةَ لِلۡمُتَّقِینَ ﴿٤٩﴾

ये ग़ैब (परोक्ष) की कुछ बातें हैं, जिन्हें (ऐ नबी!) हम आपकी ओर वह़्य कर रहे हैं। इससे पूर्व न तो आप इन्हें जानते थे और न आपकी जाति के लोग। अतः आप सब्र करें। निःसंदेह अच्छा परिणाम तक़वा वालों के लिए है।


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وَإِلَىٰ عَادٍ أَخَاهُمۡ هُودࣰاۚ قَالَ یَـٰقَوۡمِ ٱعۡبُدُواْ ٱللَّهَ مَا لَكُم مِّنۡ إِلَـٰهٍ غَیۡرُهُۥۤۖ إِنۡ أَنتُمۡ إِلَّا مُفۡتَرُونَ ﴿٥٠﴾

और 'आद' (जाति) की ओर उनके भाई हूद को भेजा। उन्होंने कहा : ऐ मेरी जाति के लोगो! अल्लाह की इबादत (उपासना) करो। उसके अलावा तुम्हारा कोई पूज्य नहीं। तुम तो केवल झूठी बातें गढ़ने वाले लोग हो।[14]

14. अर्थात अल्लाह के सिवा तुमने जो पूज्य बना रखे हैं, वे तुम्हारे मनगढ़ंत पूज्य हैं।


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یَـٰقَوۡمِ لَاۤ أَسۡـَٔلُكُمۡ عَلَیۡهِ أَجۡرًاۖ إِنۡ أَجۡرِیَ إِلَّا عَلَى ٱلَّذِی فَطَرَنِیۤۚ أَفَلَا تَعۡقِلُونَ ﴿٥١﴾

ऐ मेरी जाति के लोगो! मैं तुमसे इस (उपदेश) पर कोई बदला नहीं चाहता; मेरा पारिश्रमिक (बदला) उसी (अल्लाह) पर है, जिसने मुझे पैदा किया है। तो क्या तुम (इसे) नहीं समझते?[15]

15. अर्थात यदि तुम समझ रखते, तो अवश्य सोचते कि एक व्यक्ति अपने किसी सांसारिक स्वार्थ के बिना क्यों हमें रात-दिन उपदेश दे रहा है और सारे दुःख झेल रहा है? उसके पास कोई ऐसी बात अवश्य होगी जिसके लिए अपनी जान जोखिम में डाल रहा है।


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وَیَـٰقَوۡمِ ٱسۡتَغۡفِرُواْ رَبَّكُمۡ ثُمَّ تُوبُوۤاْ إِلَیۡهِ یُرۡسِلِ ٱلسَّمَاۤءَ عَلَیۡكُم مِّدۡرَارࣰا وَیَزِدۡكُمۡ قُوَّةً إِلَىٰ قُوَّتِكُمۡ وَلَا تَتَوَلَّوۡاْ مُجۡرِمِینَ ﴿٥٢﴾

ऐ मेरी जाति के लोगो! अपने पालनहार से क्षमा याचना करो। फिर उसकी ओर पलट आओ। वह आकाश से तुमपर खूब बारिश बरसाएगा और तुम्हारी शक्ति और अधिक बढ़ा देगा और विमुख हो कर अपराधी न बनो।


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قَالُواْ یَـٰهُودُ مَا جِئۡتَنَا بِبَیِّنَةࣲ وَمَا نَحۡنُ بِتَارِكِیۤ ءَالِهَتِنَا عَن قَوۡلِكَ وَمَا نَحۡنُ لَكَ بِمُؤۡمِنِینَ ﴿٥٣﴾

उन्होंने कहा : ऐ हूद! तुम हमारे पास कोई स्पष्ट प्रमाण लेकर नहीं आए तथा हम तुम्हारी बात के कारण अपने पूज्यों को छोड़ने वाले नहीं हैं और न हम तुम्हारा विश्वास करने वाले हैं।


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إِن نَّقُولُ إِلَّا ٱعۡتَرَىٰكَ بَعۡضُ ءَالِهَتِنَا بِسُوۤءࣲۗ قَالَ إِنِّیۤ أُشۡهِدُ ٱللَّهَ وَٱشۡهَدُوۤاْ أَنِّی بَرِیۤءࣱ مِّمَّا تُشۡرِكُونَ ﴿٥٤﴾

हम तो यही कहेंगे कि हमारे किसी देवता ने तुझे पागल बना दिया है। हूद ने कहा : मैं अल्लाह को (गवाह) बनाता हूँ और तुम भी गवाह रहो कि मैं उस शिर्क से बरी हूँ, जो तुम कर रहे हो।


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مِن دُونِهِۦۖ فَكِیدُونِی جَمِیعࣰا ثُمَّ لَا تُنظِرُونِ ﴿٥٥﴾

उस (अल्लाह) के सिवा। अतः तुम सब मिलकर मेरे विरुद्ध चाल चलो, फिर मुझे मोहलत न दो।[16]

16. अर्थात तुम और तुम्हारे सब देवी-देवता मिलकर भी मेरा कुछ बिगाड़ नहीं सकते। क्योंकि मेरा भरोसा जिस अल्लाह पर है, पूरा संसार उसके नियंत्रण में है, उसके आगे किसी की शक्ति नहीं कि किसी का कुछ बिगाड़ सके।


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إِنِّی تَوَكَّلۡتُ عَلَى ٱللَّهِ رَبِّی وَرَبِّكُمۚ مَّا مِن دَاۤبَّةٍ إِلَّا هُوَ ءَاخِذُۢ بِنَاصِیَتِهَاۤۚ إِنَّ رَبِّی عَلَىٰ صِرَ ٰ⁠طࣲ مُّسۡتَقِیمࣲ ﴿٥٦﴾

निःसंदेह मैंने अपने पालनहार और तुम्हारे पालनहार, अल्लाह पर भरोसा किया है। कोई चलने वाला जीव नहीं, परंतु वह उसके माथे के बालों को पकड़े हुए है। निश्चय ही मेरा पालनहार सीधे रास्ते[17] पर है।

17. अर्थात उसका रास्ता अत्याचार का रास्ता नहीं हो सकता कि तुम दुराचारी और कुपथ में रहकर सफल रहो और मैं सदाचारी रहकर हानि में पड़ूँ।


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فَإِن تَوَلَّوۡاْ فَقَدۡ أَبۡلَغۡتُكُم مَّاۤ أُرۡسِلۡتُ بِهِۦۤ إِلَیۡكُمۡۚ وَیَسۡتَخۡلِفُ رَبِّی قَوۡمًا غَیۡرَكُمۡ وَلَا تَضُرُّونَهُۥ شَیۡـًٔاۚ إِنَّ رَبِّی عَلَىٰ كُلِّ شَیۡءٍ حَفِیظࣱ ﴿٥٧﴾

फिर यदि तुम मुँह फेरो, तो मैं तुम्हें वह संदेश पहुँचा चुका, जिसे देकर मुझे तुम्हारी ओर भेजा गया था। और मेरा पालनहार तुम्हारे स्थान पर किसी अन्य जाति को ले आएगा[18] और तुम उसे कुछ भी हानि नहीं पहुँचा सकोगे। निःसंदेह मेरा पालनहार प्रत्येक चीज़ पर संरक्षक है।

18. अर्थात तुम्हें ध्वस्त निरस्त कर देगा।


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وَلَمَّا جَاۤءَ أَمۡرُنَا نَجَّیۡنَا هُودࣰا وَٱلَّذِینَ ءَامَنُواْ مَعَهُۥ بِرَحۡمَةࣲ مِّنَّا وَنَجَّیۡنَـٰهُم مِّنۡ عَذَابٍ غَلِیظࣲ ﴿٥٨﴾

और जब हमारा आदेश आ पहुँचा, तो हमने हूद और उसके साथ ईमान लाने वालों को अपनी दया से बचा लिया। तथा हमने उन्हें एक कठोर यातना से छुटकारा दिया।


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وَتِلۡكَ عَادࣱۖ جَحَدُواْ بِـَٔایَـٰتِ رَبِّهِمۡ وَعَصَوۡاْ رُسُلَهُۥ وَٱتَّبَعُوۤاْ أَمۡرَ كُلِّ جَبَّارٍ عَنِیدࣲ ﴿٥٩﴾

ये वही 'आद' (जाति) के लोग हैं, जिन्होंने अपने पालनहार की आयतों (निशानियों) का इनकार किया और उसके रसूलों की बात नहीं मानी और हर ऐसे व्यक्ति के पीछे चलते रहे, जो अभिमानी, उद्दंड हो।


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وَأُتۡبِعُواْ فِی هَـٰذِهِ ٱلدُّنۡیَا لَعۡنَةࣰ وَیَوۡمَ ٱلۡقِیَـٰمَةِۗ أَلَاۤ إِنَّ عَادࣰا كَفَرُواْ رَبَّهُمۡۗ أَلَا بُعۡدࣰا لِّعَادࣲ قَوۡمِ هُودࣲ ﴿٦٠﴾

और इस संसार में उनके साथ धिक्कार लगा दी गई तथा क़ियामत के दिन भी लगी रहेगी। सुनो! आद ने अपने पालनहार का इनकार किया। सुनो! हूद की जाति आद के लिए दूरी[19] हो!

19. अर्थात अल्लाह की दया से दूरी। इसका प्रयोग धिक्कार और विनाश के अर्थ में होता है।


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۞ وَإِلَىٰ ثَمُودَ أَخَاهُمۡ صَـٰلِحࣰاۚ قَالَ یَـٰقَوۡمِ ٱعۡبُدُواْ ٱللَّهَ مَا لَكُم مِّنۡ إِلَـٰهٍ غَیۡرُهُۥۖ هُوَ أَنشَأَكُم مِّنَ ٱلۡأَرۡضِ وَٱسۡتَعۡمَرَكُمۡ فِیهَا فَٱسۡتَغۡفِرُوهُ ثُمَّ تُوبُوۤاْ إِلَیۡهِۚ إِنَّ رَبِّی قَرِیبࣱ مُّجِیبࣱ ﴿٦١﴾

और समूद[20] की ओर उनके भाई सालेह़ को भेजा। उसने कहा : ऐ मेरी जाति के लोगो! अल्लाह की इबादत (पूजा) करो, उसके सिवा तुम्हारा कोई पूज्य नहीं है। उसी ने तुम्हें धरती से पैदा किया और तुम्हें उसमें बसाया। अतः उससे क्षमा माँगो; फिर उसकी ओर पलट आओ। निःसंदेह मेरा पालनहार निकट है (और प्रार्थनाओं को) स्वीकार करने वाला है।[21]

20. यह जाति तबूक और मदीना के बीच "अल-ह़िज्र" में आबाद थी। 21. देखिए : सूरतुल-बक़रह, आयत : 186.


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قَالُواْ یَـٰصَـٰلِحُ قَدۡ كُنتَ فِینَا مَرۡجُوࣰّا قَبۡلَ هَـٰذَاۤۖ أَتَنۡهَىٰنَاۤ أَن نَّعۡبُدَ مَا یَعۡبُدُ ءَابَاۤؤُنَا وَإِنَّنَا لَفِی شَكࣲّ مِّمَّا تَدۡعُونَاۤ إِلَیۡهِ مُرِیبࣲ ﴿٦٢﴾

उन्होंने कहा : ऐ सालेह! हमें इससे पहले तुझसे बड़ी आशाएँ थीं। क्या तू हमें उन (बुतों) की पूजा करने से रोक रहा है, जिनकी पूजा हमारे बाप-दादा करते आए हैं? तू जिस चीज़ की ओर हमें बुला रहा है, निःसंदेह उसके बारे में हमें (ऐसा) संदेह है, जो हमें दुविधा में डाले हुए है।


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قَالَ یَـٰقَوۡمِ أَرَءَیۡتُمۡ إِن كُنتُ عَلَىٰ بَیِّنَةࣲ مِّن رَّبِّی وَءَاتَىٰنِی مِنۡهُ رَحۡمَةࣰ فَمَن یَنصُرُنِی مِنَ ٱللَّهِ إِنۡ عَصَیۡتُهُۥۖ فَمَا تَزِیدُونَنِی غَیۡرَ تَخۡسِیرࣲ ﴿٦٣﴾

उस (सालेह़) ने कहा : ऐ मेरी जाति के लोगो! क्या तुमने विचार किया कि यदि मैं अपने पालनहार की ओर से एक स्पष्ट प्रमाण पर हूँ और उसने मुझे अपनी दया प्रदान की हो, फिर मैं उसकी अवज्ञा करूँ, तो कौन है, जो अल्लाह के मुक़ाबले में मेरी सहायता करेगा? तुम मुझे घाटे में डालने के सिवा कुछ नहीं करोगे।


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وَیَـٰقَوۡمِ هَـٰذِهِۦ نَاقَةُ ٱللَّهِ لَكُمۡ ءَایَةࣰۖ فَذَرُوهَا تَأۡكُلۡ فِیۤ أَرۡضِ ٱللَّهِۖ وَلَا تَمَسُّوهَا بِسُوۤءࣲ فَیَأۡخُذَكُمۡ عَذَابࣱ قَرِیبࣱ ﴿٦٤﴾

और ऐ मेरी जाति के लोगो! यह अल्लाह की ऊँटनी[22] तुम्हारे लिए एक निशानी है। अतः इसे छोड़ दो, अल्लाह की धरती में चरती फिरे और इसे कोई कष्ट न पहुँचाओ, अन्यथा तुम्हें अति शीघ्र यातना पकड़ लेगी।

22. उसे अल्लाह की ऊँटनी इसलिए कहा गया है कि उसे अल्लाह ने उनके लिए एक पर्वत से निकाला था। क्योंकि उन्होंने उसकी माँग की थी कि यदि पर्वत से ऊँटनी निकलेगी, तो हम ईमान ले आएँगे। (तफ़्सीर क़ुर्तुबी)


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فَعَقَرُوهَا فَقَالَ تَمَتَّعُواْ فِی دَارِكُمۡ ثَلَـٰثَةَ أَیَّامࣲۖ ذَ ٰ⁠لِكَ وَعۡدٌ غَیۡرُ مَكۡذُوبࣲ ﴿٦٥﴾

तो उन्होंने उसे मार डाला। तब सालेह़ ने कहा : तुम अपने नगर में तीन दिन अपने जीवन का आनंद लो! यह वचन झूठा सिद्ध होने वाला नहीं है।


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فَلَمَّا جَاۤءَ أَمۡرُنَا نَجَّیۡنَا صَـٰلِحࣰا وَٱلَّذِینَ ءَامَنُواْ مَعَهُۥ بِرَحۡمَةࣲ مِّنَّا وَمِنۡ خِزۡیِ یَوۡمِىِٕذٍۚ إِنَّ رَبَّكَ هُوَ ٱلۡقَوِیُّ ٱلۡعَزِیزُ ﴿٦٦﴾

फिर जब हमारा आदेश आ गया, तो हमने सालेह़ को और उन लोगों को जो उसके साथ ईमान लाए थे, अपनी दया से बचा लिया और उस दिन के अपमान से भी (उन्हें सुरक्षित रखा)। निःसंदेह आपका पालनहार ही शक्तिशाली, प्रभुत्वशाली है।


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وَأَخَذَ ٱلَّذِینَ ظَلَمُواْ ٱلصَّیۡحَةُ فَأَصۡبَحُواْ فِی دِیَـٰرِهِمۡ جَـٰثِمِینَ ﴿٦٧﴾

और अत्याचारियों को भयंकर आवाज़ (चीत्कार) ने पकड़ लिया और वे अपने घरों में औंधे पड़े रह गए।


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كَأَن لَّمۡ یَغۡنَوۡاْ فِیهَاۤۗ أَلَاۤ إِنَّ ثَمُودَاْ كَفَرُواْ رَبَّهُمۡۗ أَلَا بُعۡدࣰا لِّثَمُودَ ﴿٦٨﴾

जैसै वे वहाँ कभी बसे ही नहीं थे। सावधान! समूद ने अपने पालनहार का इनकार किया। सुन लो! समूद के लिए (अल्लाह की दया से) दूरी हो।


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وَلَقَدۡ جَاۤءَتۡ رُسُلُنَاۤ إِبۡرَ ٰ⁠هِیمَ بِٱلۡبُشۡرَىٰ قَالُواْ سَلَـٰمࣰاۖ قَالَ سَلَـٰمࣱۖ فَمَا لَبِثَ أَن جَاۤءَ بِعِجۡلٍ حَنِیذࣲ ﴿٦٩﴾

और हमारे फ़रिश्ते इबराहीम के पास शुभ सूचना लेकर आए। उन्होंने सलाम कहा, तो इबराहीम ने सलाम का जवाब दिया। फिर देर न हुई कि वह एक भुना हुआ वछड़ा[23] ले आया।

23. अर्थात अतिथि सत्कार के लिए।


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فَلَمَّا رَءَاۤ أَیۡدِیَهُمۡ لَا تَصِلُ إِلَیۡهِ نَكِرَهُمۡ وَأَوۡجَسَ مِنۡهُمۡ خِیفَةࣰۚ قَالُواْ لَا تَخَفۡ إِنَّاۤ أُرۡسِلۡنَاۤ إِلَىٰ قَوۡمِ لُوطࣲ ﴿٧٠﴾

फिर जब देखा कि उनके हाथ खाने की ओर नहीं बढ़ रहे हैं, तो उनके प्रति अचंभे में पड़ गए और दिल में उनसे भय महसूस किया। उन्होंने कहा : भय न करो। दरअसल हम लूत[24] की जाति की ओर भेजे गए हैं।

24. लूत अलैहिस्सलाम को भाष्यकारों ने इबराहीम अलैहिस्सलाम का भतीजा बताया है, जिनको अल्लाह ने सदूम की ओर नबी बना कर भेजा।


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وَٱمۡرَأَتُهُۥ قَاۤىِٕمَةࣱ فَضَحِكَتۡ فَبَشَّرۡنَـٰهَا بِإِسۡحَـٰقَ وَمِن وَرَاۤءِ إِسۡحَـٰقَ یَعۡقُوبَ ﴿٧١﴾

और उस (इबराहीम) की पत्नी खड़ी थी। चुनाँचे वह हँस पड़ी[25], तो हमने उसे इसह़ाक़ की और इसह़ाक़ के बाद याक़ूब की शुभ सूचना[26] दी।

25. कि भय की कोई बात नहीं है। 26. फ़रिश्तों द्वारा।


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قَالَتۡ یَـٰوَیۡلَتَىٰۤ ءَأَلِدُ وَأَنَا۠ عَجُوزࣱ وَهَـٰذَا بَعۡلِی شَیۡخًاۖ إِنَّ هَـٰذَا لَشَیۡءٌ عَجِیبࣱ ﴿٧٢﴾

वह बोली : हाय मेरा दुर्भाग्य! क्या मेरी संतान होगी, जबकि मैं बूढ़ी हो चुकी हूँ और मेरा यह पति भी बूढ़ा है? वास्तव में, यह बड़े आश्चर्य की बात है।


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قَالُوۤاْ أَتَعۡجَبِینَ مِنۡ أَمۡرِ ٱللَّهِۖ رَحۡمَتُ ٱللَّهِ وَبَرَكَـٰتُهُۥ عَلَیۡكُمۡ أَهۡلَ ٱلۡبَیۡتِۚ إِنَّهُۥ حَمِیدࣱ مَّجِیدࣱ ﴿٧٣﴾

फ़रिश्तों ने कहा : क्या तू अल्लाह के आदेश पर आश्चर्य करती है? ऐ घर वालो! तुम सब पर अल्लाह की दया तथा बरकतों की वर्षा हो। निःसंदेह वह अति प्रशंसित, गौरवशाली है।


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فَلَمَّا ذَهَبَ عَنۡ إِبۡرَ ٰ⁠هِیمَ ٱلرَّوۡعُ وَجَاۤءَتۡهُ ٱلۡبُشۡرَىٰ یُجَـٰدِلُنَا فِی قَوۡمِ لُوطٍ ﴿٧٤﴾

फिर जब इबराहीम का भय दूर हो गया और उसे शुभ सूचना मिल गई, तो वह हमसे लूत की जाति के बारे में झगड़ने लगा।[27]

27. अर्थात प्रार्थना करने लगा कि लूत की जाति को और संभलने का अवसर दिया जाए। हो सकता है कि वे ईमान ले आएँ।


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إِنَّ إِبۡرَ ٰ⁠هِیمَ لَحَلِیمٌ أَوَّ ٰ⁠هࣱ مُّنِیبࣱ ﴿٧٥﴾

निःसंदेह इबराहीम बड़ा सहनशील, बहुत विलाप करने वाला और हर मामले में अल्लाह की ओर पलटने वाला था।


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یَـٰۤإِبۡرَ ٰ⁠هِیمُ أَعۡرِضۡ عَنۡ هَـٰذَاۤۖ إِنَّهُۥ قَدۡ جَاۤءَ أَمۡرُ رَبِّكَۖ وَإِنَّهُمۡ ءَاتِیهِمۡ عَذَابٌ غَیۡرُ مَرۡدُودࣲ ﴿٧٦﴾

(फ़रिश्तों ने कहा :) ऐ इबराहीम! इस बात को रहने दो। निःसंदेह तुम्हारे पालनहार का आदेश[28] आ चुका तथा उनपर ऐसी यातना आने वाली है, जो हटाई जाने वाली नहीं।

28. आर्थात यातना का आदेश।


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وَلَمَّا جَاۤءَتۡ رُسُلُنَا لُوطࣰا سِیۤءَ بِهِمۡ وَضَاقَ بِهِمۡ ذَرۡعࣰا وَقَالَ هَـٰذَا یَوۡمٌ عَصِیبࣱ ﴿٧٧﴾

और जब हमारे फ़रिश्ते लूत के पास आए, तो उनका आना उसे बुरा लगा और उनके कारण व्याकुल[29] हो गया और कहा : यह तो बड़ा कठोर दिन है।

29. फ़रिश्ते सुंदर किशोरों के रूप में आए थे। और लूत अलैहिस्सलाम की जाति का आचरण यह था कि वे बालमैथुन में रूचि रखती थे। इसलिए उन्होंने उनको पकड़ने की कोशिश की। इसीलिए इन अतिथियों के आने पर लूत अलैहिस्सलाम व्याकुल हो गए थे।


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وَجَاۤءَهُۥ قَوۡمُهُۥ یُهۡرَعُونَ إِلَیۡهِ وَمِن قَبۡلُ كَانُواْ یَعۡمَلُونَ ٱلسَّیِّـَٔاتِۚ قَالَ یَـٰقَوۡمِ هَـٰۤؤُلَاۤءِ بَنَاتِی هُنَّ أَطۡهَرُ لَكُمۡۖ فَٱتَّقُواْ ٱللَّهَ وَلَا تُخۡزُونِ فِی ضَیۡفِیۤۖ أَلَیۡسَ مِنكُمۡ رَجُلࣱ رَّشِیدࣱ ﴿٧٨﴾

और उसकी जाति के लोग दौड़ते हुए उसके पास आ गए और वे पहले से कुकर्म[30] किया करते थे। उसने कहा : ऐ मेरी जाति के लोगो! ये मेरी[31] बेटियाँ हैं, ये तुम्हारे लिए अधिक पवित्र हैं। अतः अल्लाह से डरो और मुझे मेरे अतिथियों में अपमानित न करो। क्या तुममें कोई भला आदमी नहीं?

30. अर्थात बालमैथुन। (तफ़्सीर क़ुर्तुबी) 31. अर्थात बस्ती की स्त्रियाँ। क्योंकि जाति का नबी उनके पिता के समान होता है। (तफ़्सीर क़ुर्तुबी)


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قَالُواْ لَقَدۡ عَلِمۡتَ مَا لَنَا فِی بَنَاتِكَ مِنۡ حَقࣲّ وَإِنَّكَ لَتَعۡلَمُ مَا نُرِیدُ ﴿٧٩﴾

उन लोगों ने कहा : निश्चय तुम तो जानते हो कि हमें तुम्हारी बेटियों से कोई मतलब नहीं।[32] तथा निःसंदेह तुम भली-भाँति जानते हो कि हम क्या चाहते हैं।

32. अर्थात हमें स्त्रियों में कोई रूचि नहीं है।


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قَالَ لَوۡ أَنَّ لِی بِكُمۡ قُوَّةً أَوۡ ءَاوِیۤ إِلَىٰ رُكۡنࣲ شَدِیدࣲ ﴿٨٠﴾

लूत ने कहा : काश, मेरे पास तुमसे मुक़ाबले की शक्ति होती या मैं किसी मज़बूत सहारे की शरण लेता!


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قَالُواْ یَـٰلُوطُ إِنَّا رُسُلُ رَبِّكَ لَن یَصِلُوۤاْ إِلَیۡكَۖ فَأَسۡرِ بِأَهۡلِكَ بِقِطۡعࣲ مِّنَ ٱلَّیۡلِ وَلَا یَلۡتَفِتۡ مِنكُمۡ أَحَدٌ إِلَّا ٱمۡرَأَتَكَۖ إِنَّهُۥ مُصِیبُهَا مَاۤ أَصَابَهُمۡۚ إِنَّ مَوۡعِدَهُمُ ٱلصُّبۡحُۚ أَلَیۡسَ ٱلصُّبۡحُ بِقَرِیبࣲ ﴿٨١﴾

फ़रिश्तों ने कहा : ऐ लूत! हम तेरे पालनहार के भेजे हुए (फ़रिश्ते) हैं। वे कदापि तेरे पास नहीं पहुँच सकेंगे। अतः तू रात के किसी हिस्से में अपने घरवालों को लेकर निकल जा और तुममें से कोई पीछे मुड़कर न देखे, सिवाय तेरी पत्नी के। उसपर भी वही बीतने वाला है, जो उनपर बीतेगा। उनकी यातना का निर्धारित समय प्रातः काल है। क्या प्रातः काल निकट नहीं है?


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فَلَمَّا جَاۤءَ أَمۡرُنَا جَعَلۡنَا عَـٰلِیَهَا سَافِلَهَا وَأَمۡطَرۡنَا عَلَیۡهَا حِجَارَةࣰ مِّن سِجِّیلࣲ مَّنضُودࣲ ﴿٨٢﴾

फिर जब हमारा आदेश आ गया, तो हमने उस बस्ती को तहस-नहस कर दिया और उनपर कंकरियों की ताबड़-तोड़ बारिश कर दी।


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مُّسَوَّمَةً عِندَ رَبِّكَۖ وَمَا هِیَ مِنَ ٱلظَّـٰلِمِینَ بِبَعِیدࣲ ﴿٨٣﴾

जो तेरे पालनहार के यहाँ चिह्न लगाई हुई थीं और वह[33] अत्याचारियों[34] से कुछ दूर नहीं।

33. अर्थात सदूम, जो समूद की बस्ती थी। 34. अर्थात आज भी जो उनकी नीति पर चल रहे हैं, उनपर ऐसी ही यातना आ सकती है।


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۞ وَإِلَىٰ مَدۡیَنَ أَخَاهُمۡ شُعَیۡبࣰاۚ قَالَ یَـٰقَوۡمِ ٱعۡبُدُواْ ٱللَّهَ مَا لَكُم مِّنۡ إِلَـٰهٍ غَیۡرُهُۥۖ وَلَا تَنقُصُواْ ٱلۡمِكۡیَالَ وَٱلۡمِیزَانَۖ إِنِّیۤ أَرَىٰكُم بِخَیۡرࣲ وَإِنِّیۤ أَخَافُ عَلَیۡكُمۡ عَذَابَ یَوۡمࣲ مُّحِیطࣲ ﴿٨٤﴾

और मदयन की ओर उनके भाई शुऐब को भेजा। उसने कहा : ऐ मेरी जाति के लोगो! अल्लाह की इबादत (उपासना) करो, उसके सिवा कोई तुम्हारा पूज्य नहीं और नाप-तौल में कमी न करो।[35] निःसंदेह मैं तुम्हें अच्छी स्थिति में देख रहा हूँ। और निःसंदेह मैं तुमपर एक घेर लेने वाले दिन की यातना से डरता हूँ।

35. शुऐब की जाति में शिर्क (मिश्रणवाद) के सिवा नाप-तौल में कमी करने का रोग भी था।


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وَیَـٰقَوۡمِ أَوۡفُواْ ٱلۡمِكۡیَالَ وَٱلۡمِیزَانَ بِٱلۡقِسۡطِۖ وَلَا تَبۡخَسُواْ ٱلنَّاسَ أَشۡیَاۤءَهُمۡ وَلَا تَعۡثَوۡاْ فِی ٱلۡأَرۡضِ مُفۡسِدِینَ ﴿٨٥﴾

ऐ मेरी जाति के लोगो! न्याय के साथ नाप और तौल को पूरा रखो और लोगों को उनकी चीज़ें कम न दो तथा धरती में उपद्रव फैलाते न फिरो।


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بَقِیَّتُ ٱللَّهِ خَیۡرࣱ لَّكُمۡ إِن كُنتُم مُّؤۡمِنِینَۚ وَمَاۤ أَنَا۠ عَلَیۡكُم بِحَفِیظࣲ ﴿٨٦﴾

अल्लाह की दी हुई बचत, तुम्हारे लिए अच्छी है, यदि तुम ईमान वाले हो और मैं तुमपर कोई संरक्षक नहीं हूँ।


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قَالُواْ یَـٰشُعَیۡبُ أَصَلَوٰتُكَ تَأۡمُرُكَ أَن نَّتۡرُكَ مَا یَعۡبُدُ ءَابَاۤؤُنَاۤ أَوۡ أَن نَّفۡعَلَ فِیۤ أَمۡوَ ٰ⁠لِنَا مَا نَشَـٰۤؤُاْۖ إِنَّكَ لَأَنتَ ٱلۡحَلِیمُ ٱلرَّشِیدُ ﴿٨٧﴾

उन्होंने कहा : ऐ शुऐब! क्या तेरी नमाज़ (इबादत) तुझे आदेश दे रही है कि हम उसे त्याग दें, जिसकी पूजा हमारे बाप-दादा करते आए हैं? अथवा अपने धन में वह न करें जो करना चाहें? वास्तव में, तू बड़ा ही सहनशील तथा भला व्यक्ति है!


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قَالَ یَـٰقَوۡمِ أَرَءَیۡتُمۡ إِن كُنتُ عَلَىٰ بَیِّنَةࣲ مِّن رَّبِّی وَرَزَقَنِی مِنۡهُ رِزۡقًا حَسَنࣰاۚ وَمَاۤ أُرِیدُ أَنۡ أُخَالِفَكُمۡ إِلَىٰ مَاۤ أَنۡهَىٰكُمۡ عَنۡهُۚ إِنۡ أُرِیدُ إِلَّا ٱلۡإِصۡلَـٰحَ مَا ٱسۡتَطَعۡتُۚ وَمَا تَوۡفِیقِیۤ إِلَّا بِٱللَّهِۚ عَلَیۡهِ تَوَكَّلۡتُ وَإِلَیۡهِ أُنِیبُ ﴿٨٨﴾

शुऐब ने कहा : ऐ मेरी जाति के लोगो! तुम बताओ, यदि मैं अपने पालनहार की ओर से स्पष्ट प्रमाण पर हूँ और उसने मुझे अच्छी जीविका प्रदान की हो, (तो कैसे तुम्हारा साथ दूँ?) मैं नहीं चाहता कि तुम्हारा विरोध करते हुए वह कार्य करूँ, जिससे तुम्हें रोक रहा हूँ। मैं जहाँ तक हो सके, सुधार ही चाहता हूँ और यह जो कुछ करना चाहता हूँ, मुझे इसका सामर्थ्य अल्लाह ही से मिलेगा। मैंने उसी पर भरोसा किया है और उसी की ओर लौटता हूँ।


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وَیَـٰقَوۡمِ لَا یَجۡرِمَنَّكُمۡ شِقَاقِیۤ أَن یُصِیبَكُم مِّثۡلُ مَاۤ أَصَابَ قَوۡمَ نُوحٍ أَوۡ قَوۡمَ هُودٍ أَوۡ قَوۡمَ صَـٰلِحࣲۚ وَمَا قَوۡمُ لُوطࣲ مِّنكُم بِبَعِیدࣲ ﴿٨٩﴾

ऐ मेरी जाति के लोगो! तुम्हें मेरा विरोध इस बात पर न उभारे कि तुमपर वैसी ही यातना आ पड़े, जो नूह़ की जाति, या हूद की जाति, या सालेह़ की जाति पर आई। और लूत की जाति तुमसे कुछ दूर नहीं है।


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وَٱسۡتَغۡفِرُواْ رَبَّكُمۡ ثُمَّ تُوبُوۤاْ إِلَیۡهِۚ إِنَّ رَبِّی رَحِیمࣱ وَدُودࣱ ﴿٩٠﴾

और अपने पालनहार से क्षमा माँगो, फिर उसी की ओर पलट आओ। निःसंदेह मेरा पालनहार अति दयालु तथा प्रेम करने वाला है।


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قَالُواْ یَـٰشُعَیۡبُ مَا نَفۡقَهُ كَثِیرࣰا مِّمَّا تَقُولُ وَإِنَّا لَنَرَىٰكَ فِینَا ضَعِیفࣰاۖ وَلَوۡلَا رَهۡطُكَ لَرَجَمۡنَـٰكَۖ وَمَاۤ أَنتَ عَلَیۡنَا بِعَزِیزࣲ ﴿٩١﴾

उन्होंने कहा : ऐ शुऐब! तुम्हारी बहुत-सी बातें हम नहीं समझते और हम तुम्हें अपने बीच निर्बल देख रहे हैं। और यदि तुम्हारा क़बीला (हमारे धर्म पर) न होता, तो हम तुम्हें पथराव करके मार डालते और तुम हमारी नज़र में प्रतिष्ठित भी नहीं हो।


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قَالَ یَـٰقَوۡمِ أَرَهۡطِیۤ أَعَزُّ عَلَیۡكُم مِّنَ ٱللَّهِ وَٱتَّخَذۡتُمُوهُ وَرَاۤءَكُمۡ ظِهۡرِیًّاۖ إِنَّ رَبِّی بِمَا تَعۡمَلُونَ مُحِیطࣱ ﴿٩٢﴾

उसने कहा : ऐ मेरी जाति के लोगो! क्या मेरा क़बीला तुम्हारे निकट अल्लाह से अधिक प्रभावशाली है?! और तुमने उस (अल्लाह) को पीठ पीछे डाल दिया है।[36] निःसंदेह मेरा पालनहार उसे घेरे में लिए हुए है, जो कुछ तुम कर रहे हो।

36. अर्थात तुम मेरे भाई बंधु के भय से मेरे विरुद्ध कुछ करने से रुक गए, तो क्या वे तुम्हारे विचार में अल्लाह से अधिक प्रभाव रखते हैं?


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وَیَـٰقَوۡمِ ٱعۡمَلُواْ عَلَىٰ مَكَانَتِكُمۡ إِنِّی عَـٰمِلࣱۖ سَوۡفَ تَعۡلَمُونَ مَن یَأۡتِیهِ عَذَابࣱ یُخۡزِیهِ وَمَنۡ هُوَ كَـٰذِبࣱۖ وَٱرۡتَقِبُوۤاْ إِنِّی مَعَكُمۡ رَقِیبࣱ ﴿٩٣﴾

और ऐ मेरी जाति के लोगो! तुम अपने तरीक़े पर काम करो, मैं (भी अपने तरीक़े पर) काम कर रहा हूँ। तुम्हें बहुत जल्द पता चल जाएगा कि किसपर अपमानित कर देने वाली यातना आती है और कौन झूठा है? तथा तुम प्रतीक्षा करो, मैं (भी) तुम्हारे साथ प्रतीक्षा करने वाला हूँ।


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وَلَمَّا جَاۤءَ أَمۡرُنَا نَجَّیۡنَا شُعَیۡبࣰا وَٱلَّذِینَ ءَامَنُواْ مَعَهُۥ بِرَحۡمَةࣲ مِّنَّا وَأَخَذَتِ ٱلَّذِینَ ظَلَمُواْ ٱلصَّیۡحَةُ فَأَصۡبَحُواْ فِی دِیَـٰرِهِمۡ جَـٰثِمِینَ ﴿٩٤﴾

और जब हमारा आदेश आ गया, तो हमने शुऐब को और उसके साथ ईमान लाने वालों को अपनी दया से बचा लिया और अत्याचारियों को भयंकर आवाज़ (चीत्कार) ने पकड़ लिया। फिर वे अपने घरों में औंधे मुँह पड़े रह गए।


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كَأَن لَّمۡ یَغۡنَوۡاْ فِیهَاۤۗ أَلَا بُعۡدࣰا لِّمَدۡیَنَ كَمَا بَعِدَتۡ ثَمُودُ ﴿٩٥﴾

जैसै वे वहाँ कभी बसे ही नहीं थे। सुन लो! मदयन वाले भी वैसे ही (अल्लाह की दया से) दूर कर दिए गए, जैसे समूद जाति के लोग दूर कर दिए गए।


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وَلَقَدۡ أَرۡسَلۡنَا مُوسَىٰ بِـَٔایَـٰتِنَا وَسُلۡطَـٰنࣲ مُّبِینٍ ﴿٩٦﴾

और हमने मूसा को अपनी निशानियों (चमत्कार) तथा स्पष्ट प्रमाण के साथ भेजा।


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إِلَىٰ فِرۡعَوۡنَ وَمَلَإِیْهِۦ فَٱتَّبَعُوۤاْ أَمۡرَ فِرۡعَوۡنَۖ وَمَاۤ أَمۡرُ فِرۡعَوۡنَ بِرَشِیدࣲ ﴿٩٧﴾

फ़िरऔन और उसके प्रमुखों की ओर। तो उन्होंने फ़िरऔन के आदेश का पालन किया। जबकि फ़िरऔन का आदेश सटीक नहीं था।


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یَقۡدُمُ قَوۡمَهُۥ یَوۡمَ ٱلۡقِیَـٰمَةِ فَأَوۡرَدَهُمُ ٱلنَّارَۖ وَبِئۡسَ ٱلۡوِرۡدُ ٱلۡمَوۡرُودُ ﴿٩٨﴾

वह क़ियामत के दिन अपनी जाति के आगे-आगे चलेगा और उनको नरक में उतारेगा और वह क्या ही बुरा उतरने का स्थान है!


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وَأُتۡبِعُواْ فِی هَـٰذِهِۦ لَعۡنَةࣰ وَیَوۡمَ ٱلۡقِیَـٰمَةِۚ بِئۡسَ ٱلرِّفۡدُ ٱلۡمَرۡفُودُ ﴿٩٩﴾

और इस दुनिया में उनके पीछे लानत (धिक्कार) लगा दी गई और क़ियामत के दिन भी। कैसा बुरा पुरस्कार है, जो उन्हें दिया जाएगा!


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ذَ ٰ⁠لِكَ مِنۡ أَنۢبَاۤءِ ٱلۡقُرَىٰ نَقُصُّهُۥ عَلَیۡكَۖ مِنۡهَا قَاۤىِٕمࣱ وَحَصِیدࣱ ﴿١٠٠﴾

(ऐ नबी!) ये बस्तियों के समाचार हैं, जिनका वर्णन हम आपके सामने कर रहे हैं। उनमें से कुछ खड़ी हैं और कुछ उजड़ चुकी हैं।


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وَمَا ظَلَمۡنَـٰهُمۡ وَلَـٰكِن ظَلَمُوۤاْ أَنفُسَهُمۡۖ فَمَاۤ أَغۡنَتۡ عَنۡهُمۡ ءَالِهَتُهُمُ ٱلَّتِی یَدۡعُونَ مِن دُونِ ٱللَّهِ مِن شَیۡءࣲ لَّمَّا جَاۤءَ أَمۡرُ رَبِّكَۖ وَمَا زَادُوهُمۡ غَیۡرَ تَتۡبِیبࣲ ﴿١٠١﴾

और हमने उनपर अत्याचार नहीं किया, परंतु उन्होंने स्वयं अपने ऊपर अत्याचार किया। जब आपके पालनहार का आदेश आ गया, तो उनके वे पूज्य, जिन्हें वे अल्लाह के सिवा पुकारा करते थे, उनके कुछ भी काम न आए और उन्होंने केवल उन्हें हानि ही पहुँचाया।[37]

37. अर्थात ये जातियाँ अपने देवी-देवता की पूजा इसलिए करती थीं कि वे उन्हें लाभ पहुँचाएँगे। किंतु उनकी पूजा ही उनपर अधिक यातना का कारण बन गई।


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وَكَذَ ٰ⁠لِكَ أَخۡذُ رَبِّكَ إِذَاۤ أَخَذَ ٱلۡقُرَىٰ وَهِیَ ظَـٰلِمَةٌۚ إِنَّ أَخۡذَهُۥۤ أَلِیمࣱ شَدِیدٌ ﴿١٠٢﴾

और तेरे पालनहार की पकड़ ऐसी ही होती है, जब वह अत्याचार करने वाली बस्तियों को पकड़ता है। निःसंदेह उसकी पकड़ बहुत दर्दनाक, बहुत कठोर होती है।[38]

38. नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का कथन है कि अल्लाह अत्याचारी को अवसर देता है, यहाँ तक कि जब उसे पकड़ता है तो उससे बचता नहीं, और आपने फिर यही आयत पढ़ी। (सह़ीह़ बुख़ारी, ह़दीस संख्या : 4686)


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إِنَّ فِی ذَ ٰ⁠لِكَ لَـَٔایَةࣰ لِّمَنۡ خَافَ عَذَابَ ٱلۡـَٔاخِرَةِۚ ذَ ٰ⁠لِكَ یَوۡمࣱ مَّجۡمُوعࣱ لَّهُ ٱلنَّاسُ وَذَ ٰ⁠لِكَ یَوۡمࣱ مَّشۡهُودࣱ ﴿١٠٣﴾

निश्चय ही इसमें उसके लिए एक निशानी है, जो आख़िरत की यातना से डरे। वह ऐसा दिन होगा, जिसके लिए सभी लोग एकत्रित किए जाएँगे तथा उस दिन सभी लोग उपस्थित होंगे।


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وَمَا نُؤَخِّرُهُۥۤ إِلَّا لِأَجَلࣲ مَّعۡدُودࣲ ﴿١٠٤﴾

और हम उसे केवल एक निर्धारित अवधि के लिए पीछे कर रहे हैं।


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یَوۡمَ یَأۡتِ لَا تَكَلَّمُ نَفۡسٌ إِلَّا بِإِذۡنِهِۦۚ فَمِنۡهُمۡ شَقِیࣱّ وَسَعِیدࣱ ﴿١٠٥﴾

जिस दिन वह आ जाएगा, तो अल्लाह की अनुमति के बिना कोई प्राणी बात नहीं कर सकेगा, फिर उनमें से कुछ अभागे होंगे और कुछ भाग्यशाली होंगे।


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فَأَمَّا ٱلَّذِینَ شَقُواْ فَفِی ٱلنَّارِ لَهُمۡ فِیهَا زَفِیرࣱ وَشَهِیقٌ ﴿١٠٦﴾

चुनाँचे जो लोग अभागे होंगे, वे नरक में होंगे, उसमें उन्हें चीखना और चिल्लाना होगा।


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خَـٰلِدِینَ فِیهَا مَا دَامَتِ ٱلسَّمَـٰوَ ٰ⁠تُ وَٱلۡأَرۡضُ إِلَّا مَا شَاۤءَ رَبُّكَۚ إِنَّ رَبَّكَ فَعَّالࣱ لِّمَا یُرِیدُ ﴿١٠٧﴾

वे उसमें हमेशा रहेंगे, जब तक आकाश तथा धरती अवस्थित हैं। परन्तु यह कि आपका पालनहार कुछ और चाहे। निःसंदेह आपका पालनहार जो चाहे, करने वाला है।


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۞ وَأَمَّا ٱلَّذِینَ سُعِدُواْ فَفِی ٱلۡجَنَّةِ خَـٰلِدِینَ فِیهَا مَا دَامَتِ ٱلسَّمَـٰوَ ٰ⁠تُ وَٱلۡأَرۡضُ إِلَّا مَا شَاۤءَ رَبُّكَۖ عَطَاۤءً غَیۡرَ مَجۡذُوذࣲ ﴿١٠٨﴾

लेकिन जो भाग्यशाली हैं, तो (वे) स्वर्ग में होंगे, वे उसमें सदैव रहेंगे जब तक आकाश तथा धरती विद्यमान् हैं। परन्तु यह कि आपका पालनहार कुछ और चाहे। यह एक अनंत प्रदान है।


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فَلَا تَكُ فِی مِرۡیَةࣲ مِّمَّا یَعۡبُدُ هَـٰۤؤُلَاۤءِۚ مَا یَعۡبُدُونَ إِلَّا كَمَا یَعۡبُدُ ءَابَاۤؤُهُم مِّن قَبۡلُۚ وَإِنَّا لَمُوَفُّوهُمۡ نَصِیبَهُمۡ غَیۡرَ مَنقُوصࣲ ﴿١٠٩﴾

अतः (ऐ नबी!) आप उसके बारे में किसी संदेह में न रहें, जिसे ये पूजते हैं। ये उसी प्रकार पूजते हैं, जैसे इनसे पहले इनके बाप-दादा पूजते[39] थे। निःसंदेह हम इन्हें इनका हिस्सा बिना किसी कमी के पूरा-पूरा देने वाले हैं।

39. अर्थात इनकी पूजा निर्मूल और बाप-दादा की परंपरा पर आधारित है, जिसका सत्य से कोई संबंध नहीं है।


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وَلَقَدۡ ءَاتَیۡنَا مُوسَى ٱلۡكِتَـٰبَ فَٱخۡتُلِفَ فِیهِۚ وَلَوۡلَا كَلِمَةࣱ سَبَقَتۡ مِن رَّبِّكَ لَقُضِیَ بَیۡنَهُمۡۚ وَإِنَّهُمۡ لَفِی شَكࣲّ مِّنۡهُ مُرِیبࣲ ﴿١١٠﴾

और हमने मूसा को पुस्तक (तौरात) प्रदान की। तो उसमें विभेद किया गया। और यदि आपके पालनहार ने पहले से एक बात[40] निश्चित न की होती, तो उनके बीच निर्णय कर दिया गया होता। और निःसंदेह वे[41] उस (क़ुरआन) के बारे में असमंजस में डाल देनेवाले संदेह में पड़े हुए हैं।

40. अर्थात यह कि संसार में प्रत्येक को अपनी इच्छानुसार कर्म करने का अवसर दिया जाएगा। 41. अर्थात मिश्रणवादी क़ुरआन के विषय में।


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وَإِنَّ كُلࣰّا لَّمَّا لَیُوَفِّیَنَّهُمۡ رَبُّكَ أَعۡمَـٰلَهُمۡۚ إِنَّهُۥ بِمَا یَعۡمَلُونَ خَبِیرࣱ ﴿١١١﴾

और निःसंदेह आपका पालनहार अवश्य प्रत्येक व्यक्ति को उसके कर्मों का पूरा बदला देगा। निश्चित रूप से वह उनके कर्मों से सूचित है।


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فَٱسۡتَقِمۡ كَمَاۤ أُمِرۡتَ وَمَن تَابَ مَعَكَ وَلَا تَطۡغَوۡاْۚ إِنَّهُۥ بِمَا تَعۡمَلُونَ بَصِیرࣱ ﴿١١٢﴾

अतः (ऐ नबी!) आप सुदृढ़ रहें जैसा आपको आदेश दिया गया है और वे लोग भी जिन्होंने आपके साथ तौबा की। तथा तुम सीमा का उल्लंघन[42] न करो, निःसंदेह वह (अल्लाह) जो कुछ तुम कर रहे हो, उसे ख़ूब देखने वाला है।

42. अर्थात धर्मादेश की सीमा का।


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وَلَا تَرۡكَنُوۤاْ إِلَى ٱلَّذِینَ ظَلَمُواْ فَتَمَسَّكُمُ ٱلنَّارُ وَمَا لَكُم مِّن دُونِ ٱللَّهِ مِنۡ أَوۡلِیَاۤءَ ثُمَّ لَا تُنصَرُونَ ﴿١١٣﴾

और अत्याचारियों की ओर न झुक पड़ो। अन्यथा तुम्हें भी आग पकड़ लेगी और अल्लाह के सिवा तुम्हारा कोई सहायक नहीं होगा (जो तुम्हें बचा सके)। फिर तुम्हारी सहायता नहीं की जाएगी।


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وَأَقِمِ ٱلصَّلَوٰةَ طَرَفَیِ ٱلنَّهَارِ وَزُلَفࣰا مِّنَ ٱلَّیۡلِۚ إِنَّ ٱلۡحَسَنَـٰتِ یُذۡهِبۡنَ ٱلسَّیِّـَٔاتِۚ ذَ ٰ⁠لِكَ ذِكۡرَىٰ لِلذَّ ٰ⁠كِرِینَ ﴿١١٤﴾

तथा आप दिन के दोनों सिरों में और रात के कुछ क्षणों[43] में नमाज़ क़ायम करें। निःसंदेह नेकियाँ बुराइयों को दूर कर देती[44] हैं। यह एक शिक्षा है, शिक्षा ग्रहण करने वालों के लिए।

43. नमाज़ के समय के सविस्तार विवरण के लिए देखिए सूरत बनी इसराईल, आयत : 78, सूरत ताहा, आयत : 130, तथा सूरतुर्-रूम, आयत : 17-18. 44. ह़दीस में आता है कि आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमाया : यदि किसी के द्वार पर एक नहर जारी हो, जिसमें वह पाँच बार स्नान करता हो, तो क्या उसके शरीर पर कुछ मैल रह जाएगी? इसी प्रकार पाँचों नमाज़ों से अल्लाह पापों को मिटा देता है। (बुख़ारी : 528, मुस्लिम : 667) किंतु बड़े-बड़े पाप जैसे शिर्क, हत्या इत्यादि बिना तौबा के क्षमा नहीं किए जाते।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَٱصۡبِرۡ فَإِنَّ ٱللَّهَ لَا یُضِیعُ أَجۡرَ ٱلۡمُحۡسِنِینَ ﴿١١٥﴾

तथा आप धैर्य से काम लें, क्योंकि अल्लाह सदाचारियों का प्रतिफल नष्ट नहीं करता।


Arabic explanations of the Qur’an:

فَلَوۡلَا كَانَ مِنَ ٱلۡقُرُونِ مِن قَبۡلِكُمۡ أُوْلُواْ بَقِیَّةࣲ یَنۡهَوۡنَ عَنِ ٱلۡفَسَادِ فِی ٱلۡأَرۡضِ إِلَّا قَلِیلࣰا مِّمَّنۡ أَنجَیۡنَا مِنۡهُمۡۗ وَٱتَّبَعَ ٱلَّذِینَ ظَلَمُواْ مَاۤ أُتۡرِفُواْ فِیهِ وَكَانُواْ مُجۡرِمِینَ ﴿١١٦﴾

फिर तुमसे पहले गुज़रे हुए समुदायों में ऐसे बचे खुचे भले-समझदार लोग क्यों न हुए, जो धरती में बिगाड़ से रोकते? सिवाय उन थोड़े-से लोगों के, जिन्हें हमने उनमें से बचा लिया। और अत्याचारी लोग तो उसी सुख-सामग्री के पीछे पड़े रहे, जिसमें वे रखे गए थे और वे तो थे ही अपराधी।


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وَمَا كَانَ رَبُّكَ لِیُهۡلِكَ ٱلۡقُرَىٰ بِظُلۡمࣲ وَأَهۡلُهَا مُصۡلِحُونَ ﴿١١٧﴾

और आपका पालनहार ऐसा नहीं है कि वह बस्तियों को अन्यायपूर्वक विनष्ट कर दे, जबकि उनके निवासी सुधार करने वाले हों।


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وَلَوۡ شَاۤءَ رَبُّكَ لَجَعَلَ ٱلنَّاسَ أُمَّةࣰ وَ ٰ⁠حِدَةࣰۖ وَلَا یَزَالُونَ مُخۡتَلِفِینَ ﴿١١٨﴾

और यदि आपका पालनहार चाहता, तो सब लोगों को एक ही समुदाय बना देता और वे सदैव विभेद करते ही रहेंगे।


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إِلَّا مَن رَّحِمَ رَبُّكَۚ وَلِذَ ٰ⁠لِكَ خَلَقَهُمۡۗ وَتَمَّتۡ كَلِمَةُ رَبِّكَ لَأَمۡلَأَنَّ جَهَنَّمَ مِنَ ٱلۡجِنَّةِ وَٱلنَّاسِ أَجۡمَعِینَ ﴿١١٩﴾

सिवाय उसके, जिसपर आपका पालनहार दया करे और इसी के लिए उसने उन्हें पैदा किया।[45] और आपके पालनहार की बात पूरी हो गई कि मैं नरक को सब जिन्नों तथा इनसानों से अवश्य भर दूँगा।[46]

45. अर्थात एक ही सत्धर्म पर सबको कर देता। परंतु उसने प्रत्येक को अपने विचार की स्वतंत्रता दी है कि जिस धर्म या विचार को चाहे अपनाए ताकि प्रलय के दिन सत्धर्म को ग्रहण न करने पर उन्हें यातना का स्वाद चखाया जाए। 46. क्योंकि इस स्वतंत्रता का ग़लत प्रयोग करके अधिकतर लोग सत्धर्म को छोड़ बैठे।


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وَكُلࣰّا نَّقُصُّ عَلَیۡكَ مِنۡ أَنۢبَاۤءِ ٱلرُّسُلِ مَا نُثَبِّتُ بِهِۦ فُؤَادَكَۚ وَجَاۤءَكَ فِی هَـٰذِهِ ٱلۡحَقُّ وَمَوۡعِظَةࣱ وَذِكۡرَىٰ لِلۡمُؤۡمِنِینَ ﴿١٢٠﴾

और हम रसूलों की खबरों में से आपको हर वह खबर सुनाते हैं, जिसके द्वारा हम आपके दिल को सुदृढ़ रखते हैं। और इसमें आपके पास सत्य आ गया है और ईमान वालों के लिए उपदेश और अनुस्मरण भी।


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وَقُل لِّلَّذِینَ لَا یُؤۡمِنُونَ ٱعۡمَلُواْ عَلَىٰ مَكَانَتِكُمۡ إِنَّا عَـٰمِلُونَ ﴿١٢١﴾

और (ऐ नबी!) आप उनसे कह दें, जो ईमान नहीं लाते कि तुम अपने रास्ते पर काम करते रहो। निःसंदेह हम (भी) काम करने वाले हैं।


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وَٱنتَظِرُوۤاْ إِنَّا مُنتَظِرُونَ ﴿١٢٢﴾

तथा तुम प्रतीक्षा[47] करो, निःसंदेह हम भी प्रतीक्षा करने वाले हैं।

47. अर्थात अपने परिणाम की।


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وَلِلَّهِ غَیۡبُ ٱلسَّمَـٰوَ ٰ⁠تِ وَٱلۡأَرۡضِ وَإِلَیۡهِ یُرۡجَعُ ٱلۡأَمۡرُ كُلُّهُۥ فَٱعۡبُدۡهُ وَتَوَكَّلۡ عَلَیۡهِۚ وَمَا رَبُّكَ بِغَـٰفِلٍ عَمَّا تَعۡمَلُونَ ﴿١٢٣﴾

अल्लाह ही के पास आकाशों तथा धरती की छिपी हुई चीज़ों का ज्ञान है और सभी मामले उसी की ओर लौटाए जाते हैं। अतः आप उसी की इबादत (उपासना) करें और उसी पर भरोसा करें। और आपका पालनहार उससे अनभिज्ञ नहीं है, जो तुम कर रहे हो।


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