Surah सूरा अर्-रअ़्द - Ar-Ra‘d

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Surah सूरा अर्-रअ़्द - Ar-Ra‘d - Aya count 43

الۤمۤرۚ تِلۡكَ ءَایَـٰتُ ٱلۡكِتَـٰبِۗ وَٱلَّذِیۤ أُنزِلَ إِلَیۡكَ مِن رَّبِّكَ ٱلۡحَقُّ وَلَـٰكِنَّ أَكۡثَرَ ٱلنَّاسِ لَا یُؤۡمِنُونَ ﴿١﴾

अलिफ़॰ लाम॰ मीम॰ रा॰। ये पूर्ण पुस्तक (क़ुरआन) की आयतें हैं। और जो कुछ (ऐ नबी!) आपपर, आपके पालनहार की ओर से उतारा गया है, सर्वथा सत्य है। परंतु अधिकतर लोग ईमान (विश्वास) नहीं लाते।


Arabic explanations of the Qur’an:

ٱللَّهُ ٱلَّذِی رَفَعَ ٱلسَّمَـٰوَ ٰ⁠تِ بِغَیۡرِ عَمَدࣲ تَرَوۡنَهَاۖ ثُمَّ ٱسۡتَوَىٰ عَلَى ٱلۡعَرۡشِۖ وَسَخَّرَ ٱلشَّمۡسَ وَٱلۡقَمَرَۖ كُلࣱّ یَجۡرِی لِأَجَلࣲ مُّسَمࣰّىۚ یُدَبِّرُ ٱلۡأَمۡرَ یُفَصِّلُ ٱلۡـَٔایَـٰتِ لَعَلَّكُم بِلِقَاۤءِ رَبِّكُمۡ تُوقِنُونَ ﴿٢﴾

अल्लाह वह है, जिसने आकाशों को बिना स्तंभों के ऊँचा किया, जिन्हें तुम देखते हो। फिर वह अर्श (सिंहासन) पर बुलंद हुआ। तथा सूरज और चाँद को वशीभूत किया। प्रत्येक एक नियत समय के लिए चल रहा है। वह हर काम की व्यवस्था करता है। वह निशानियों को विस्तार से बयान करता है, ताकि तुम अपने पालनहार से मिलने का विश्वास कर लो।


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وَهُوَ ٱلَّذِی مَدَّ ٱلۡأَرۡضَ وَجَعَلَ فِیهَا رَوَ ٰ⁠سِیَ وَأَنۡهَـٰرࣰاۖ وَمِن كُلِّ ٱلثَّمَرَ ٰ⁠تِ جَعَلَ فِیهَا زَوۡجَیۡنِ ٱثۡنَیۡنِۖ یُغۡشِی ٱلَّیۡلَ ٱلنَّهَارَۚ إِنَّ فِی ذَ ٰ⁠لِكَ لَـَٔایَـٰتࣲ لِّقَوۡمࣲ یَتَفَكَّرُونَ ﴿٣﴾

तथा वही है, जिसने धरती को फैलाया और उसमें पर्वत और नदियाँ बनाईं और प्रत्येक फल के दो-दो प्रकार बनाए। वह रात को दिन पर उढ़ा देता है। निःसंदेह इसमें उन लोगों के लिए निश्चय बहुत-सी निशानियाँ हैं, जो सोच-विचार करते हैं।


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وَفِی ٱلۡأَرۡضِ قِطَعࣱ مُّتَجَـٰوِرَ ٰ⁠تࣱ وَجَنَّـٰتࣱ مِّنۡ أَعۡنَـٰبࣲ وَزَرۡعࣱ وَنَخِیلࣱ صِنۡوَانࣱ وَغَیۡرُ صِنۡوَانࣲ یُسۡقَىٰ بِمَاۤءࣲ وَ ٰ⁠حِدࣲ وَنُفَضِّلُ بَعۡضَهَا عَلَىٰ بَعۡضࣲ فِی ٱلۡأُكُلِۚ إِنَّ فِی ذَ ٰ⁠لِكَ لَـَٔایَـٰتࣲ لِّقَوۡمࣲ یَعۡقِلُونَ ﴿٤﴾

और धरती में आपस में मिले हुए विभिन्न खंड हैं, तथा अंगूरों के बाग़, खेती और खजूर के पेड़ हैं, कई तनों वाले और एक तने वाले, जो एक ही जल से सींचे जाते हैं, और हम उनमें से कुछ को स्वाद आदि में कुछ से बढ़ा देते हैं। निःसंदेह इसमें उन लोगों के लिए निश्चय बहुत-सी निशानियाँ हैं, जो सूझ-बूझ रखते हैं।


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۞ وَإِن تَعۡجَبۡ فَعَجَبࣱ قَوۡلُهُمۡ أَءِذَا كُنَّا تُرَ ٰ⁠بًا أَءِنَّا لَفِی خَلۡقࣲ جَدِیدٍۗ أُوْلَـٰۤىِٕكَ ٱلَّذِینَ كَفَرُواْ بِرَبِّهِمۡۖ وَأُوْلَـٰۤىِٕكَ ٱلۡأَغۡلَـٰلُ فِیۤ أَعۡنَاقِهِمۡۖ وَأُوْلَـٰۤىِٕكَ أَصۡحَـٰبُ ٱلنَّارِۖ هُمۡ فِیهَا خَـٰلِدُونَ ﴿٥﴾

तथा यदि आप आश्चर्य करते हैं, तो उनका यह कहना[1] बुत आश्चर्यपूर्ण है कि क्या जब हम मिट्टी हो जाएँगे, तो क्या वास्तव में हम निश्चय एक नया जीवन पाएँगे। यही लोग हैं जिन्होंने अपने पालनहार के साथ कुफ़्र किया, तथा यही हैं जिनकी गर्दनों में तौक़ होंगे और यही नरक वाले हैं, वे उसमें सदैव रहने वाले हैं।

1. क्योंकि कि वे जानते हैं कि बीज धरती में सड़ कर मिल जाता है, फिर उससे पौधा उगता है।


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وَیَسۡتَعۡجِلُونَكَ بِٱلسَّیِّئَةِ قَبۡلَ ٱلۡحَسَنَةِ وَقَدۡ خَلَتۡ مِن قَبۡلِهِمُ ٱلۡمَثُلَـٰتُۗ وَإِنَّ رَبَّكَ لَذُو مَغۡفِرَةࣲ لِّلنَّاسِ عَلَىٰ ظُلۡمِهِمۡۖ وَإِنَّ رَبَّكَ لَشَدِیدُ ٱلۡعِقَابِ ﴿٦﴾

और वे आपसे भलाई (रहमत) से पहले बुराई (यातना) को जल्दी माँगते हैं। जबकि इनसे पहले कई शिक्षाप्रद यातनाएँ गुज़र चुकी हैं। और निःसंदेह आपका पालनहार निश्चय लोगों को उनके अत्याचार के बावजूद बहुत क्षमा करने वाला है। तथा निःसंदेह आपका पालनहार निश्चय कड़ी यातना देने वाला है।


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وَیَقُولُ ٱلَّذِینَ كَفَرُواْ لَوۡلَاۤ أُنزِلَ عَلَیۡهِ ءَایَةࣱ مِّن رَّبِّهِۦۤۗ إِنَّمَاۤ أَنتَ مُنذِرࣱۖ وَلِكُلِّ قَوۡمٍ هَادٍ ﴿٧﴾

तथा जो काफ़िर हो गए, वे कहते हैं : उसपर उसके पालनहार की ओर से कोई निशानी क्यों नहीं उतारी गई?[2] आप तो केवल एक डराने वाले हैं। तथा प्रत्येक जाति के लिए एक मार्गदर्शक है।

2. जिससे स्पष्ट हो जाता कि आप अल्लाह के रसूल हैं।


Arabic explanations of the Qur’an:

ٱللَّهُ یَعۡلَمُ مَا تَحۡمِلُ كُلُّ أُنثَىٰ وَمَا تَغِیضُ ٱلۡأَرۡحَامُ وَمَا تَزۡدَادُۚ وَكُلُّ شَیۡءٍ عِندَهُۥ بِمِقۡدَارٍ ﴿٨﴾

अल्लाह जानता है जो हर मादा (अपने पेट में) उठाए हुए है तथा जो कुछ गर्भाशय कम करते हैं और जो ज़्यादा[3] करते हैं। और प्रत्येक चीज़ उसके यहाँ एक अनुमान से है।

3. इब्ने उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा कहते हैं कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कहा : ग़ैब (परोक्ष) की कुंजियाँ पाँच हैं, जिन्हें केवल अल्लाह ही जानता है : कल की बात अल्लाह ही जानता है, और गर्भाशय जो कमी करते हैं उसे अल्लाह ही जानता है। वर्षा कब होगी उसे अल्लाह ही जानता है। और कोई प्राणी नहीं जानता कि वह किस धरती पर मरेगा। और न अल्लाह के सिवा कोई यह जानता है कि प्रलय कब आएगी। (सह़ीह़ बुख़ारी : 4697)


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عَـٰلِمُ ٱلۡغَیۡبِ وَٱلشَّهَـٰدَةِ ٱلۡكَبِیرُ ٱلۡمُتَعَالِ ﴿٩﴾

वह परोक्ष और प्रत्यक्ष को जानने वाला, बहुत बड़ा, अत्यंत ऊँचा है।


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سَوَاۤءࣱ مِّنكُم مَّنۡ أَسَرَّ ٱلۡقَوۡلَ وَمَن جَهَرَ بِهِۦ وَمَنۡ هُوَ مُسۡتَخۡفِۭ بِٱلَّیۡلِ وَسَارِبُۢ بِٱلنَّهَارِ ﴿١٠﴾

तुममें से जो चुपके से बात करे और जो ऊँची आवाज़ में बोले तथा जो रात के अंधेरे में छिपा हुआ है और जो दिन के उजाले में चलने वाला है, (उसके लिए) बराबर है।


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لَهُۥ مُعَقِّبَـٰتࣱ مِّنۢ بَیۡنِ یَدَیۡهِ وَمِنۡ خَلۡفِهِۦ یَحۡفَظُونَهُۥ مِنۡ أَمۡرِ ٱللَّهِۗ إِنَّ ٱللَّهَ لَا یُغَیِّرُ مَا بِقَوۡمٍ حَتَّىٰ یُغَیِّرُواْ مَا بِأَنفُسِهِمۡۗ وَإِذَاۤ أَرَادَ ٱللَّهُ بِقَوۡمࣲ سُوۤءࣰا فَلَا مَرَدَّ لَهُۥۚ وَمَا لَهُم مِّن دُونِهِۦ مِن وَالٍ ﴿١١﴾

उसके लिए उसके आगे और उसके पीछे बारी-बारी आने वाले कई पहरेदार (फरिश्ते) हैं, जो अल्लाह के आदेश से उसकी रक्षा करते हैं। निःसंदेह अल्लाह किसी जाति की दशा नहीं बदलता, जब तक वे स्वयं अपनी दशा न बदल लें। तथा जब अल्लाह किसी जाति के साथ बुराई का निश्चय कर ले, तो उसे हटाने का कोई उपाय नहीं, और उसके अलावा उनका कोई सहायक नहीं।


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هُوَ ٱلَّذِی یُرِیكُمُ ٱلۡبَرۡقَ خَوۡفࣰا وَطَمَعࣰا وَیُنشِئُ ٱلسَّحَابَ ٱلثِّقَالَ ﴿١٢﴾

वही है जो तुम्हें डराने और आशा[4] दिलाने के लिए बिजली दिखाता है और भारी बादल पैदा करता है।

4. अर्थात वर्षा होने की आशा।


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وَیُسَبِّحُ ٱلرَّعۡدُ بِحَمۡدِهِۦ وَٱلۡمَلَـٰۤىِٕكَةُ مِنۡ خِیفَتِهِۦ وَیُرۡسِلُ ٱلصَّوَ ٰ⁠عِقَ فَیُصِیبُ بِهَا مَن یَشَاۤءُ وَهُمۡ یُجَـٰدِلُونَ فِی ٱللَّهِ وَهُوَ شَدِیدُ ٱلۡمِحَالِ ﴿١٣﴾

और बादल की गरज, अल्लाह की प्रशंसा के साथ उसकी पवित्रता का वर्णन करती है, और फ़रिश्ते भी उसके भय से (उसकी पवित्रता का गुणगान करते हैं)। और वह कड़कने वाली बिजलियाँ भेजता है, फिर उन्हें जिसपर चाहता है, गिरा देता है, जबकि वे अल्लाह के बारे में झगड़ रहे होते हैं, और वह बहुत शक्ति वाला है।[5]

5. अर्थात जैसे कोई प्यासा पानी की ओर हाथ फैलाकर प्रार्थना करे कि मेरे मुँह में आ जा, तो न पानी में सुनने की शक्ति है न उसके मुँह तक पहुँचने की। ऐसे ही काफ़िर, अल्लाह के सिवा जिनको पुकारते हैं, न उनमें सुनने की शक्ति है और न वे उनकी सहायता करने का सामर्थ्य रखते हैं।


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لَهُۥ دَعۡوَةُ ٱلۡحَقِّۚ وَٱلَّذِینَ یَدۡعُونَ مِن دُونِهِۦ لَا یَسۡتَجِیبُونَ لَهُم بِشَیۡءٍ إِلَّا كَبَـٰسِطِ كَفَّیۡهِ إِلَى ٱلۡمَاۤءِ لِیَبۡلُغَ فَاهُ وَمَا هُوَ بِبَـٰلِغِهِۦۚ وَمَا دُعَاۤءُ ٱلۡكَـٰفِرِینَ إِلَّا فِی ضَلَـٰلࣲ ﴿١٤﴾

उसी को पुकारना सत्य है। और जिनको वे उसके सिवा पुकारते हैं, वे उनकी प्रार्थना कुछ भी स्वीकार नहीं करते, परंतु उस व्यक्ति की तरह जो अपनी दोनों हथेलियाँ पानी की ओर फैलाने वाला है, ताकि वह उसके मुँह तक पहुँच जाए, हालाँकि वह उस तक हरगिज़ पहुँचने वाला नहीं। और काफ़िरों की पुकार पूर्णतः व्यर्थ (निष्फल) है।


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وَلِلَّهِ یَسۡجُدُ مَن فِی ٱلسَّمَـٰوَ ٰ⁠تِ وَٱلۡأَرۡضِ طَوۡعࣰا وَكَرۡهࣰا وَظِلَـٰلُهُم بِٱلۡغُدُوِّ وَٱلۡـَٔاصَالِ ۩ ﴿١٥﴾

और आकाशों तथा धरती में जो भी है, अल्लाह ही को सजदा कर रहा है, स्वेच्छा से या अनिच्छा से और उनकी परछाइयाँ[6] भी सुबह और शाम।[7]

6. अर्थात सब उसके स्वभाविक नियम के अधीन हैं। 7. यहाँ सजदा करना चाहिए।


Arabic explanations of the Qur’an:

قُلۡ مَن رَّبُّ ٱلسَّمَـٰوَ ٰ⁠تِ وَٱلۡأَرۡضِ قُلِ ٱللَّهُۚ قُلۡ أَفَٱتَّخَذۡتُم مِّن دُونِهِۦۤ أَوۡلِیَاۤءَ لَا یَمۡلِكُونَ لِأَنفُسِهِمۡ نَفۡعࣰا وَلَا ضَرࣰّاۚ قُلۡ هَلۡ یَسۡتَوِی ٱلۡأَعۡمَىٰ وَٱلۡبَصِیرُ أَمۡ هَلۡ تَسۡتَوِی ٱلظُّلُمَـٰتُ وَٱلنُّورُۗ أَمۡ جَعَلُواْ لِلَّهِ شُرَكَاۤءَ خَلَقُواْ كَخَلۡقِهِۦ فَتَشَـٰبَهَ ٱلۡخَلۡقُ عَلَیۡهِمۡۚ قُلِ ٱللَّهُ خَـٰلِقُ كُلِّ شَیۡءࣲ وَهُوَ ٱلۡوَ ٰ⁠حِدُ ٱلۡقَهَّـٰرُ ﴿١٦﴾

उनसे पूछो : आकाशों तथा धरती का पालनहार कौन है? कह दो : अल्लाह। कहो : फिर क्या तुमने अल्लाह के सिवा उन्हें सहायक बना रखे हैं, जो अपने लिए न किसी लाभ का अधिकार रखते हैं और न किसी हानि का? उनसे कहो : क्या अंधा और देखने वाला बराबर होते हैं? या क्या अँधेरे और प्रकाश बराबर होते हैं?[8] या उन्होंने अल्लाह के लिए कुछ साझी बना लिए हैं, जिन्होंने उसके पैदा करने की तरह पैदा किया है, अतः पैदा करने का मामला उनपर उलझ गया है? आप कह दें : अल्लाह ही प्रत्येक चीज़ को पैदा करने वाला है[9] और वही अकेला, अत्यंत प्रभुत्वशाली है।

8. अँधेरे से अभिप्राय कुफ़्र के अँधेरे, तथा प्रकाश से अभिप्राय ईमान का प्रकाश है। 9. आयत का भावार्थ यह है कि जिसने इस विश्व की प्रत्येक वस्तु की उत्पत्ति की है, वही वास्तविक पूज्य है। और जो स्वयं उत्पत्ति हो वह पूज्य नहीं हो सकता। इस तथ्य को क़ुरआन पाक की और भी कई आयतों में प्रस्तुत किया गया है।


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أَنزَلَ مِنَ ٱلسَّمَاۤءِ مَاۤءࣰ فَسَالَتۡ أَوۡدِیَةُۢ بِقَدَرِهَا فَٱحۡتَمَلَ ٱلسَّیۡلُ زَبَدࣰا رَّابِیࣰاۖ وَمِمَّا یُوقِدُونَ عَلَیۡهِ فِی ٱلنَّارِ ٱبۡتِغَاۤءَ حِلۡیَةٍ أَوۡ مَتَـٰعࣲ زَبَدࣱ مِّثۡلُهُۥۚ كَذَ ٰ⁠لِكَ یَضۡرِبُ ٱللَّهُ ٱلۡحَقَّ وَٱلۡبَـٰطِلَۚ فَأَمَّا ٱلزَّبَدُ فَیَذۡهَبُ جُفَاۤءࣰۖ وَأَمَّا مَا یَنفَعُ ٱلنَّاسَ فَیَمۡكُثُ فِی ٱلۡأَرۡضِۚ كَذَ ٰ⁠لِكَ یَضۡرِبُ ٱللَّهُ ٱلۡأَمۡثَالَ ﴿١٧﴾

उसने आकाश से कुछ पानी उतारा, तो कई नाले अपनी-अपनी समाई के अनुसार बह निकले। फिर (पानी के) रेले ने उभरा हुआ झाग उठा लिया। और जिस चीज़ को वे कोई आभूषण अथवा सामान बनाने के लिए आग में तपाते हैं, उससे भी ऐसा ही झाग उभरता है। इसी प्रकार, अल्लाह सत्य तथा असत्य का उदाहरण प्रस्तुत करता है। फिर जो झाग है, वह सूखकर नष्ट हो जाता है और जो चीज़ लोगों को लाभ पहुँचाती है, वह धरती में रह जाती है। इसी प्रकार, अल्लाह उदाहरण प्रस्तुत करता है।[10]

10. इस उदाहरण में सत्य और असत्य के बीच संघर्ष को दिखाया गया है कि वह़्य द्वारा जो सत्य उतारा गया है, वह वर्षा के समान है। और जो उससे लाभ प्राप्त करते हैं, वह नालों के समान हैं। और सत्य के विरोधी सैलाब के झाग के समान हैं, जो कुछ देर के लिए उभरता है फिर विलय है जाता है। दूसरे उदाहरण में सत्य को सोने और चाँदी के समान बताया गया है जिसे पिघलाने से मैल उभरती है, फिर मैल उड़ती है। इसी प्रकार असत्य विलय हो जाता है और केवल सत्य रह जाता है।


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لِلَّذِینَ ٱسۡتَجَابُواْ لِرَبِّهِمُ ٱلۡحُسۡنَىٰۚ وَٱلَّذِینَ لَمۡ یَسۡتَجِیبُواْ لَهُۥ لَوۡ أَنَّ لَهُم مَّا فِی ٱلۡأَرۡضِ جَمِیعࣰا وَمِثۡلَهُۥ مَعَهُۥ لَٱفۡتَدَوۡاْ بِهِۦۤۚ أُوْلَـٰۤىِٕكَ لَهُمۡ سُوۤءُ ٱلۡحِسَابِ وَمَأۡوَىٰهُمۡ جَهَنَّمُۖ وَبِئۡسَ ٱلۡمِهَادُ ﴿١٨﴾

जिन लोगों ने अपने पालनहार की बात स्वीकार कर ली, उन्हीं के लिए भलाई है। और जिन्होंने उसकी बात स्वीकार न की, यदि उनके पास वह सब कुछ हो जो धरती में हैं और उसके साथ उतना और भी हो, तो वे अवश्य उसे (अल्लाह के दंड से) छुड़ौती में दे दें। यही लोग हैं जिनके लिए बुरा हिसाब है तथा उनका ठिकाना नरक है और वह बुरा ठिकाना है।


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۞ أَفَمَن یَعۡلَمُ أَنَّمَاۤ أُنزِلَ إِلَیۡكَ مِن رَّبِّكَ ٱلۡحَقُّ كَمَنۡ هُوَ أَعۡمَىٰۤۚ إِنَّمَا یَتَذَكَّرُ أُوْلُواْ ٱلۡأَلۡبَـٰبِ ﴿١٩﴾

फिर क्या वह व्यक्ति जो जानता है कि जो कुछ आपके पालनहार की ओर से आपपर उतारा गया है, वही सत्य है, उस व्यक्ति के समान है, जो अंधा है? उपदेश तो बुद्धि और समझ वाले ही स्वीकार करते हैं।


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ٱلَّذِینَ یُوفُونَ بِعَهۡدِ ٱللَّهِ وَلَا یَنقُضُونَ ٱلۡمِیثَـٰقَ ﴿٢٠﴾

जो अल्लाह के साथ की हुई प्रतिज्ञा[11] को पूरा करते हैं और दृढ़ प्रतिज्ञा को नहीं तोड़ते।

11. भाष्य के लिए देखिए : सूरतुल-आराफ़, आयत : 172


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وَٱلَّذِینَ یَصِلُونَ مَاۤ أَمَرَ ٱللَّهُ بِهِۦۤ أَن یُوصَلَ وَیَخۡشَوۡنَ رَبَّهُمۡ وَیَخَافُونَ سُوۤءَ ٱلۡحِسَابِ ﴿٢١﴾

और वे जो उस चीज़ को जोड़ते हैं, जिसके जोड़ने का अल्लाह ने आदेश दिया है और अपने पालनहार का भय रखते हैं तथा बुरे हिसाब से डरते हैं।


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وَٱلَّذِینَ صَبَرُواْ ٱبۡتِغَاۤءَ وَجۡهِ رَبِّهِمۡ وَأَقَامُواْ ٱلصَّلَوٰةَ وَأَنفَقُواْ مِمَّا رَزَقۡنَـٰهُمۡ سِرࣰّا وَعَلَانِیَةࣰ وَیَدۡرَءُونَ بِٱلۡحَسَنَةِ ٱلسَّیِّئَةَ أُوْلَـٰۤىِٕكَ لَهُمۡ عُقۡبَى ٱلدَّارِ ﴿٢٢﴾

तथा वे जिन्होंने अपने पालनहार का चेहरा चाहने के लिए धैर्य से काम लिया, और नमाज़ का आयोजन किया तथा हमने उन्हें जो कुछ प्रदान किया है, उसमें से छिपे और खुले ख़र्च किया, तथा भलाई के द्वारा बुराई को दूर करते हैं, यही लोग हैं जिनके लिए आख़िरत के घर का अच्छा परिणाम है।


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جَنَّـٰتُ عَدۡنࣲ یَدۡخُلُونَهَا وَمَن صَلَحَ مِنۡ ءَابَاۤىِٕهِمۡ وَأَزۡوَ ٰ⁠جِهِمۡ وَذُرِّیَّـٰتِهِمۡۖ وَٱلۡمَلَـٰۤىِٕكَةُ یَدۡخُلُونَ عَلَیۡهِم مِّن كُلِّ بَابࣲ ﴿٢٣﴾

सदैव रहने के बाग़, जिनमें वे प्रवेश करेंगे और उनके बाप-दादा और उनकी पत्नियों और उनकी संतानों में से जो नेक हुए (वे भी प्रवेश करेंगे)। तथा फ़रिश्ते प्रत्येक द्वार से उनके पास आएँगे।


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سَلَـٰمٌ عَلَیۡكُم بِمَا صَبَرۡتُمۡۚ فَنِعۡمَ عُقۡبَى ٱلدَّارِ ﴿٢٤﴾

(वे कहेंगे :) सलाम (शांति) हो तुमपर उसके बदले जो तुमने धैर्य किया। तो क्या ही अच्छा है इस घर (आखिरत) का परिणाम!


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وَٱلَّذِینَ یَنقُضُونَ عَهۡدَ ٱللَّهِ مِنۢ بَعۡدِ مِیثَـٰقِهِۦ وَیَقۡطَعُونَ مَاۤ أَمَرَ ٱللَّهُ بِهِۦۤ أَن یُوصَلَ وَیُفۡسِدُونَ فِی ٱلۡأَرۡضِ أُوْلَـٰۤىِٕكَ لَهُمُ ٱللَّعۡنَةُ وَلَهُمۡ سُوۤءُ ٱلدَّارِ ﴿٢٥﴾

और जो लोग अल्लाह की प्रतिज्ञा को उसे दृढ़ करने के बाद तोड़ देते हैं और उस चीज़ को काट देते हैं, जिसे अल्लाह ने जोड़ने[12] का आदेश दिया है और धरती में बिगाड़ पैदा करते हैं, यही लोगो हैं जिनके लिए लानत (धिक्कार) है और उन्हीं के लिए (आख़िरत का) बुरा घर है।

12. ह़दीस में आया है कि जो व्यक्ति यह चाहता हो कि उसकी जीविका अधिक, और आयु लंबी हो, तो वह अपने संबंधो को जोड़े। (सह़ीह़ बुख़ारी : 2067, सह़ीह़ मुस्लिम : 2557)


Arabic explanations of the Qur’an:

ٱللَّهُ یَبۡسُطُ ٱلرِّزۡقَ لِمَن یَشَاۤءُ وَیَقۡدِرُۚ وَفَرِحُواْ بِٱلۡحَیَوٰةِ ٱلدُّنۡیَا وَمَا ٱلۡحَیَوٰةُ ٱلدُّنۡیَا فِی ٱلۡـَٔاخِرَةِ إِلَّا مَتَـٰعࣱ ﴿٢٦﴾

और अल्लाह जिसके लिए चाहता है, जीविका विस्तृत कर देता है और (जिसके लिए चाहता है) तंग कर देता है। और वे (काफ़िर) सांसारिक जीवन पर प्रसन्न हो गए। हालाँकि सांसारिक जीवन आख़िरत के मुक़ाबले में थोड़े-से सामान के सिवा कुछ नहीं है।


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وَیَقُولُ ٱلَّذِینَ كَفَرُواْ لَوۡلَاۤ أُنزِلَ عَلَیۡهِ ءَایَةࣱ مِّن رَّبِّهِۦۚ قُلۡ إِنَّ ٱللَّهَ یُضِلُّ مَن یَشَاۤءُ وَیَهۡدِیۤ إِلَیۡهِ مَنۡ أَنَابَ ﴿٢٧﴾

और जिन लोगों ने कुफ़्र किया, वे कहते हैं : इसपर इसके पालनहार की ओर से कोई निशानी क्यों नहीं उतारी गई? (ऐ नबी!) आप कह दें : निःसंदेह अल्लाह जिसे चाहता है, पथभ्रष्ट कर देता है। और अपनी ओर उसे राह दिखाता है, जो उसकी ओर ध्यानमग्न हो।


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ٱلَّذِینَ ءَامَنُواْ وَتَطۡمَىِٕنُّ قُلُوبُهُم بِذِكۡرِ ٱللَّهِۗ أَلَا بِذِكۡرِ ٱللَّهِ تَطۡمَىِٕنُّ ٱلۡقُلُوبُ ﴿٢٨﴾

वे जो ईमान लाए और उनके दिलों को अल्लाह की याद से संतुष्टि मिलती है। सुन लो! अल्लाह की याद ही से दिलों को संतुष्टि मिलती है।


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ٱلَّذِینَ ءَامَنُواْ وَعَمِلُواْ ٱلصَّـٰلِحَـٰتِ طُوبَىٰ لَهُمۡ وَحُسۡنُ مَـَٔابࣲ ﴿٢٩﴾

जो लोग ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए उनके लिए आनंद[13] और उत्तम ठिकाना है।

13. यहाँ "तूबा" शब्द प्रयुक्त हुआ है। इसका शाब्दिक अर्थ : सुख और संपन्नता है। कुछ भाष्यकारों ने इसे स्वर्ग का एक वृक्ष बताया है जिसका साया बड़ा आनंददायक होगा।


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كَذَ ٰ⁠لِكَ أَرۡسَلۡنَـٰكَ فِیۤ أُمَّةࣲ قَدۡ خَلَتۡ مِن قَبۡلِهَاۤ أُمَمࣱ لِّتَتۡلُوَاْ عَلَیۡهِمُ ٱلَّذِیۤ أَوۡحَیۡنَاۤ إِلَیۡكَ وَهُمۡ یَكۡفُرُونَ بِٱلرَّحۡمَـٰنِۚ قُلۡ هُوَ رَبِّی لَاۤ إِلَـٰهَ إِلَّا هُوَ عَلَیۡهِ تَوَكَّلۡتُ وَإِلَیۡهِ مَتَابِ ﴿٣٠﴾

इसी प्रकार हमने आपको एक ऐसे समुदाय में रसूल बनाकर भेजा, जिससे पहले बहुत-से समुदाय गुज़र चुके हैं। ताकि आप उन्हें वह संदेश सुनाएँ, जो हमने आपकी ओर वह़्य द्वारा भेजा है। इस हाल में कि वे अत्यंत दयावान् (अल्लाह) का इनकार करते हैं। आप कह दें : वही मेरा पालनहार है। उसके सिवा कोई पूज्य नहीं है। मैंने उसी पर भरोसा किया है और उसी की ओर मुझे जाना है।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَلَوۡ أَنَّ قُرۡءَانࣰا سُیِّرَتۡ بِهِ ٱلۡجِبَالُ أَوۡ قُطِّعَتۡ بِهِ ٱلۡأَرۡضُ أَوۡ كُلِّمَ بِهِ ٱلۡمَوۡتَىٰۗ بَل لِّلَّهِ ٱلۡأَمۡرُ جَمِیعًاۗ أَفَلَمۡ یَاْیۡـَٔسِ ٱلَّذِینَ ءَامَنُوۤاْ أَن لَّوۡ یَشَاۤءُ ٱللَّهُ لَهَدَى ٱلنَّاسَ جَمِیعࣰاۗ وَلَا یَزَالُ ٱلَّذِینَ كَفَرُواْ تُصِیبُهُم بِمَا صَنَعُواْ قَارِعَةٌ أَوۡ تَحُلُّ قَرِیبࣰا مِّن دَارِهِمۡ حَتَّىٰ یَأۡتِیَ وَعۡدُ ٱللَّهِۚ إِنَّ ٱللَّهَ لَا یُخۡلِفُ ٱلۡمِیعَادَ ﴿٣١﴾

और यदि निश्चय कोई ऐसा क़ुरआन होता जिसके द्वारा पहाड़ चलाए[14] जाते, या उसके द्वारा धरती खंड-खंड कर दी जाती, या उसके द्वारा मुर्दों से बात की जाती (तो भी वे ईमान नहीं लाते)। बल्कि सारे का सारा काम अल्लाह ही के अधिकार में है। तो क्या जो लोग ईमान लाए हैं, निराश नहीं हुए कि यदि अल्लाह चाहे, तो निश्चय सब के सब लोगों को सीधी राह पर कर दे! और वे लोग जिन्होंने कुफ़्र किया, हमेशा इस हाल में रहेंगे कि उन्हें उनकी करतूतों के कारण कोई न कोई आपदा पहुँचती रहेगी, अथवा उनके घर के निकट उतरती रेहगी, यहाँ तक कि अल्लाह का वादा[15] आ जाए। निःसंदेह अल्लाह अपने वादे के विरुद्ध नहीं करता।

14. मक्का के काफ़िर आपसे यह माँग करते थे कि यदि आप नबी हैं, तो हमारे बाप-दादा को जीवित कर दें। ताकि हम उनसे बात करें। या मक्का के पर्वतों को खिसका दें। कुछ मुसलमानों के दिलों में भी यह इच्छा हुई कि ऐसा हो जाता है, तो संभव है कि वे ईमान ले आएँ। उसी पर यह आयत उतरी। (देखिए : फ़त्ह़ुल बयान, भाष्य सूरतुर-रा'द) 15. वादा से अभिप्राय प्रलय के आने का वादा है।


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وَلَقَدِ ٱسۡتُهۡزِئَ بِرُسُلࣲ مِّن قَبۡلِكَ فَأَمۡلَیۡتُ لِلَّذِینَ كَفَرُواْ ثُمَّ أَخَذۡتُهُمۡۖ فَكَیۡفَ كَانَ عِقَابِ ﴿٣٢﴾

और निःसंदेह आपसे पहले भी कई रसूलों का मज़ाक उड़ाया गया, तो मैंने काफ़िरों को मोहलत दी। फिर उन्हें पकड़ लिया। तो मेरी सज़ा कैसी थी?


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أَفَمَنۡ هُوَ قَاۤىِٕمٌ عَلَىٰ كُلِّ نَفۡسِۭ بِمَا كَسَبَتۡۗ وَجَعَلُواْ لِلَّهِ شُرَكَاۤءَ قُلۡ سَمُّوهُمۡۚ أَمۡ تُنَبِّـُٔونَهُۥ بِمَا لَا یَعۡلَمُ فِی ٱلۡأَرۡضِ أَم بِظَـٰهِرࣲ مِّنَ ٱلۡقَوۡلِۗ بَلۡ زُیِّنَ لِلَّذِینَ كَفَرُواْ مَكۡرُهُمۡ وَصُدُّواْ عَنِ ٱلسَّبِیلِۗ وَمَن یُضۡلِلِ ٱللَّهُ فَمَا لَهُۥ مِنۡ هَادࣲ ﴿٣٣﴾

तो क्या वह जो प्रत्येक प्राणी के कार्यों का संरक्षक है (वह उपासना के अधिक योग्य है या ये मूर्तियाँ?) और उन्होंने अल्लाह के कुछ साझी बना लिए हैं। आप कहिए कि उनके नाम बताओ। या क्या तुम उसे उस चीज़ की सूचना देते हो, जिसे वह धरती में नहीं जानता, या केवल ऊपर ही ऊपर[16] बातें कर रहे हो? बल्कि उन लोगों के लिए जिन्होंने कुफ़्र किया, उनका छल सुंदर बना दिया गया और वे सीधे रास्ते से रोक दिए गए। और जिसे अल्लाह पथभ्रष्ट कर दे, फिर उसे कोई राह दिखाने वाला नहीं।

16. अर्थात निर्मूल और निराधार।


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لَّهُمۡ عَذَابࣱ فِی ٱلۡحَیَوٰةِ ٱلدُّنۡیَاۖ وَلَعَذَابُ ٱلۡـَٔاخِرَةِ أَشَقُّۖ وَمَا لَهُم مِّنَ ٱللَّهِ مِن وَاقࣲ ﴿٣٤﴾

उनके लिए एक यातना सांसारिक जीवन में है और निश्चय आख़िरत की यातना अधिक कड़ी है। और उन्हें अल्लाह से कोई भी बचाने वाला नहीं।


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۞ مَّثَلُ ٱلۡجَنَّةِ ٱلَّتِی وُعِدَ ٱلۡمُتَّقُونَۖ تَجۡرِی مِن تَحۡتِهَا ٱلۡأَنۡهَـٰرُۖ أُكُلُهَا دَاۤىِٕمࣱ وَظِلُّهَاۚ تِلۡكَ عُقۡبَى ٱلَّذِینَ ٱتَّقَواْۚ وَّعُقۡبَى ٱلۡكَـٰفِرِینَ ٱلنَّارُ ﴿٣٥﴾

उस जन्नत की विशेषता, जिसका अल्लाह से डरने वालों (मुत्तक़ियों) से वादा किया गया है, यह है कि उसके नीचे से नहरें बह रही हैं, उसका फल हमेशा रहने वाला है और उसकी छाया भी। यह उन लोगों का परिणाम है, जो अल्लाह से डरते रहे। और काफ़िरों का परिणाम आग (जहन्नम) है।


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وَٱلَّذِینَ ءَاتَیۡنَـٰهُمُ ٱلۡكِتَـٰبَ یَفۡرَحُونَ بِمَاۤ أُنزِلَ إِلَیۡكَۖ وَمِنَ ٱلۡأَحۡزَابِ مَن یُنكِرُ بَعۡضَهُۥۚ قُلۡ إِنَّمَاۤ أُمِرۡتُ أَنۡ أَعۡبُدَ ٱللَّهَ وَلَاۤ أُشۡرِكَ بِهِۦۤۚ إِلَیۡهِ أَدۡعُواْ وَإِلَیۡهِ مَـَٔابِ ﴿٣٦﴾

और जिन्हें हमने पुस्तक दी है, वे उस (क़ुरआन) से प्रसन्न होते हैं[17], जो आपकी ओर उतारा गया है। और कुछ समूह ऐसे हैं, जो उसकी कुछ बातों का इनकार करते[18] हैं। आप कह दें कि मुझे तो यही आदेश दिया गया है कि मैं अल्लाह की इबादत करूँ और उसके साथ किसी को साझी न बनाऊँ। मैं उसी की ओर बुलाता हूँ और उसी की ओर मेरा लौटना है।[19]

17. अर्थात वे यहूदी, ईसाई और मूर्तिपूजक जो इस्लाम लाए। 18. अर्थात जो अब तक मुसलान नहीं हुए। 19. अर्थात कोई ईमान लाए या न लाए, मैं तो कदापि किसी को उसका साझी नहीं बना सकता।


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وَكَذَ ٰ⁠لِكَ أَنزَلۡنَـٰهُ حُكۡمًا عَرَبِیࣰّاۚ وَلَىِٕنِ ٱتَّبَعۡتَ أَهۡوَاۤءَهُم بَعۡدَ مَا جَاۤءَكَ مِنَ ٱلۡعِلۡمِ مَا لَكَ مِنَ ٱللَّهِ مِن وَلِیࣲّ وَلَا وَاقࣲ ﴿٣٧﴾

और इसी प्रकार, हमने इसे अरबी (भाषा का) फरमान बनाकर उतारा है।[20] और यदि आपने अपने पास ज्ञान आ जाने के बाद उन लोगों की इच्छाओं का अनुसरण किया, तो अल्लाह के मुक़ाबले में आपका न कोई सहायक होगा और न कोई बचाने वाला।

20. ताकि वे बहाना न करें कि हम क़ुरआन को समझ नहीं सके, इसलिए कि सारे नबियों पर जो पुस्तकें उतरीं, वे उन्हीं की भाषाओं में थीं।


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وَلَقَدۡ أَرۡسَلۡنَا رُسُلࣰا مِّن قَبۡلِكَ وَجَعَلۡنَا لَهُمۡ أَزۡوَ ٰ⁠جࣰا وَذُرِّیَّةࣰۚ وَمَا كَانَ لِرَسُولٍ أَن یَأۡتِیَ بِـَٔایَةٍ إِلَّا بِإِذۡنِ ٱللَّهِۗ لِكُلِّ أَجَلࣲ كِتَابࣱ ﴿٣٨﴾

और निश्चय हमने आपसे पहले कई रसूल भेजे और उनके लिए बीवियाँ और बच्चे[21] बनाए। और किसी रसूल के लिए संभव नहीं था कि वह अल्लाह की अनुमति के बिना कोई निशानी ले आता। हर समय के लिए एक लेख्य है।[22]

21. अर्थात वे मनुष्य थे, नूर या फ़रिश्ते नहीं। 22. अर्थात अल्लाह का वादा अपने समय पर पूरा होकर रहेगा। उसमें देर-सवेर नहीं होगी।


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یَمۡحُواْ ٱللَّهُ مَا یَشَاۤءُ وَیُثۡبِتُۖ وَعِندَهُۥۤ أُمُّ ٱلۡكِتَـٰبِ ﴿٣٩﴾

अल्लाह जो चाहता है, मिटा देता है और बाक़ी रखता है। और उसी के पास मूल किताब[23] है।

23. अर्थात "लौह़े मह़फ़ूज़" जिसमें सब कुछ अंकित है।


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وَإِن مَّا نُرِیَنَّكَ بَعۡضَ ٱلَّذِی نَعِدُهُمۡ أَوۡ نَتَوَفَّیَنَّكَ فَإِنَّمَا عَلَیۡكَ ٱلۡبَلَـٰغُ وَعَلَیۡنَا ٱلۡحِسَابُ ﴿٤٠﴾

और यदि हम वस्तुतः (ऐ नबी!) आपको उसमें से कुछ दिखा दें, जिसका हम उन (काफ़िरों) से वादा करते हैं या वास्तव में आपको उठा लें, तो आपका काम केवल उपदेश पहुँचा देना है और हमारे ज़िम्मे हिसाब लेना है।


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أَوَلَمۡ یَرَوۡاْ أَنَّا نَأۡتِی ٱلۡأَرۡضَ نَنقُصُهَا مِنۡ أَطۡرَافِهَاۚ وَٱللَّهُ یَحۡكُمُ لَا مُعَقِّبَ لِحُكۡمِهِۦۚ وَهُوَ سَرِیعُ ٱلۡحِسَابِ ﴿٤١﴾

क्या उन्होंने नहीं देखा कि हम धरती को, उसके किनारों से कम करते[24] जा रहे हैं। और अल्लाह ही फ़ैसला करता है। उसके फ़ैसले को कोई लौटाने वाला नहीं। और वह शीघ्र हिसाब लेने वाला है।

24. अर्थात मुसलमानों की विजय द्वारा काफ़िरों के देश में कमी करते जा रहे हैं।


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وَقَدۡ مَكَرَ ٱلَّذِینَ مِن قَبۡلِهِمۡ فَلِلَّهِ ٱلۡمَكۡرُ جَمِیعࣰاۖ یَعۡلَمُ مَا تَكۡسِبُ كُلُّ نَفۡسࣲۗ وَسَیَعۡلَمُ ٱلۡكُفَّـٰرُ لِمَنۡ عُقۡبَى ٱلدَّارِ ﴿٤٢﴾

तथा निःसंदहे उन लोगों ने (भी) उपाय किए, जो इनसे पहले थे, किंतु वास्तविक योजना तो पूरी की पूरी अल्लाह के हाथ में है। वह जानता है जो कुछ प्रत्येक प्राणी कर रहा है। और काफ़िरों को शीघ्र ही पता चल जाएगा कि उस घर का अच्छा परिणाम किसके लिए है?


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وَیَقُولُ ٱلَّذِینَ كَفَرُواْ لَسۡتَ مُرۡسَلࣰاۚ قُلۡ كَفَىٰ بِٱللَّهِ شَهِیدَۢا بَیۡنِی وَبَیۡنَكُمۡ وَمَنۡ عِندَهُۥ عِلۡمُ ٱلۡكِتَـٰبِ ﴿٤٣﴾

और वे लोग जिन्होंने कुफ़्र किया, कहते हैं : आप किसी तरह रसूल नहीं हैं। आप कह दें : मेरे और तुम्हारे बीच अल्लाह ही गवाह पर्याप्त है, तथा वह व्यक्ति भी जिसके पास किताब का ज्ञान है।[25]

25. अर्थात वे अह्ले किताब (यहूदी और ईसाई) जिनको अपनी पुस्तकों से नबी मुह़म्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के आने की शुभ सूचना का ज्ञान हुआ, तो वे इस्लाम ले आए, जैसे अब्दुल्लाह बिन सलाम तथा नजाशी (ह़ब्शा देश का राजा), और तमीम दारी इत्यादि। और वे आपके रसूल होने की गवाही देते हैं।


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