Surah सूरा अन्-नह़्ल - An-Nahl

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Surah सूरा अन्-नह़्ल - An-Nahl - Aya count 128

أَتَىٰۤ أَمۡرُ ٱللَّهِ فَلَا تَسۡتَعۡجِلُوهُۚ سُبۡحَـٰنَهُۥ وَتَعَـٰلَىٰ عَمَّا یُشۡرِكُونَ ﴿١﴾

अल्लाह का आदेश आ गया। अतः (ऐ काफ़िरो!) उसके जल्द आने की माँग न करो। वह (अल्लाह) पवित्र है और सर्वोच्च है उससे जो वे शरीक ठहराते हैं।


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یُنَزِّلُ ٱلۡمَلَـٰۤىِٕكَةَ بِٱلرُّوحِ مِنۡ أَمۡرِهِۦ عَلَىٰ مَن یَشَاۤءُ مِنۡ عِبَادِهِۦۤ أَنۡ أَنذِرُوۤاْ أَنَّهُۥ لَاۤ إِلَـٰهَ إِلَّاۤ أَنَا۠ فَٱتَّقُونِ ﴿٢﴾

वह फ़रिश्तों को वह़्य के साथ, अपने आदेश से, अपने बंदों में से जिस पर चाहता है, उतारता है कि (लोगों को) सावधान कर दो कि मेरे सिवा कोई (सत्य) पूज्य नहीं, अतः मुझ ही से डरो।


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خَلَقَ ٱلسَّمَـٰوَ ٰ⁠تِ وَٱلۡأَرۡضَ بِٱلۡحَقِّۚ تَعَـٰلَىٰ عَمَّا یُشۡرِكُونَ ﴿٣﴾

उसने आकाशों तथा धरती को सत्य के साथ पैदा किया। वह उससे बहुत ऊँचा है, जो वे शरीक बनाते हैं।


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خَلَقَ ٱلۡإِنسَـٰنَ مِن نُّطۡفَةࣲ فَإِذَا هُوَ خَصِیمࣱ مُّبِینࣱ ﴿٤﴾

उसने मनुष्य को एक बूँद वीर्य से पैदा किया। फिर अकस्मात् वह खुला झगड़ालू बन गया।


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وَٱلۡأَنۡعَـٰمَ خَلَقَهَاۖ لَكُمۡ فِیهَا دِفۡءࣱ وَمَنَـٰفِعُ وَمِنۡهَا تَأۡكُلُونَ ﴿٥﴾

तथा उसने चौपायों को पैदा किया, जिनमें तुम्हारे लिए गर्मी प्राप्त करने का सामान[1] और बहुत-से लाभ हैं और उन्हीं में से तुम खाते हो।

1. अर्थात उनकी ऊन तथा खाल से गर्म वस्त्र बनाते हो।


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وَلَكُمۡ فِیهَا جَمَالٌ حِینَ تُرِیحُونَ وَحِینَ تَسۡرَحُونَ ﴿٦﴾

तथा उनमें तुम्हारे लिए एक सौंदर्य है, जब तुम शाम को चराकर लाते हो और जब सुबह चराने को ले जाते हो।


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وَتَحۡمِلُ أَثۡقَالَكُمۡ إِلَىٰ بَلَدࣲ لَّمۡ تَكُونُواْ بَـٰلِغِیهِ إِلَّا بِشِقِّ ٱلۡأَنفُسِۚ إِنَّ رَبَّكُمۡ لَرَءُوفࣱ رَّحِیمࣱ ﴿٧﴾

और वे तुम्हारे बोझ, उस नगर तक लादकर ले जाते हैं, जहाँ तक तुम बिना कठोर परिश्रम के कभी पहुँचने वाले न थे। निःसंदेह तुम्हारा पालनहार अति करुणामय, अत्यंत दयावान् है।


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وَٱلۡخَیۡلَ وَٱلۡبِغَالَ وَٱلۡحَمِیرَ لِتَرۡكَبُوهَا وَزِینَةࣰۚ وَیَخۡلُقُ مَا لَا تَعۡلَمُونَ ﴿٨﴾

तथा घोड़े, खच्चर और गधे पैदा किए, ताकि तुम उनपर सवार हो और शोभा के लिए। तथा वह (अल्लाह) ऐसी चीज़ें पैदा करता है, जो तुम नहीं जानते।[2]

2. अर्थात सवारी के साधन इत्यादि। और आज हम उनमें से बहुत सी चीज़ों को अपनी आँखों से देख रहे हैं, जिनकी ओर अल्लाह ने आज से चौदह सौ वर्ष पहले इस आयत के अंदर संकेत किया था, जैसे कार, रेल और विमान आदि।


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وَعَلَى ٱللَّهِ قَصۡدُ ٱلسَّبِیلِ وَمِنۡهَا جَاۤىِٕرࣱۚ وَلَوۡ شَاۤءَ لَهَدَىٰكُمۡ أَجۡمَعِینَ ﴿٩﴾

और अल्लाह ही के ज़िम्मे, सीधी राह बताना है। और उन (रास्तों) में से कुछ (रास्ते) टेढ़े[3] हैं। तथा यदि अल्लाह चाहता, तो तुम सभी को सीधी राह दिखा देता।

3. अर्थात जो इस्लाम के विरुद्ध हैं।


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هُوَ ٱلَّذِیۤ أَنزَلَ مِنَ ٱلسَّمَاۤءِ مَاۤءࣰۖ لَّكُم مِّنۡهُ شَرَابࣱ وَمِنۡهُ شَجَرࣱ فِیهِ تُسِیمُونَ ﴿١٠﴾

वही है, जिसने आकाश से कुछ पानी उतारा, जिसमें से तुम पीते हो तथा उसी से पेड़-पौधे उगते हैं, जिनमें तुम (पशुओं को) चराते हो।


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یُنۢبِتُ لَكُم بِهِ ٱلزَّرۡعَ وَٱلزَّیۡتُونَ وَٱلنَّخِیلَ وَٱلۡأَعۡنَـٰبَ وَمِن كُلِّ ٱلثَّمَرَ ٰ⁠تِۚ إِنَّ فِی ذَ ٰ⁠لِكَ لَـَٔایَةࣰ لِّقَوۡمࣲ یَتَفَكَّرُونَ ﴿١١﴾

वह तुम्हारे लिए उससे खेती, ज़ैतून, खजूर, अंगूर और प्रत्येक प्रकार के फल उगाता है। निःसंदेह इसमें उन लोगों के लिए निश्चय बड़ी निशानी है, जो सोच-विचार करते हैं।


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وَسَخَّرَ لَكُمُ ٱلَّیۡلَ وَٱلنَّهَارَ وَٱلشَّمۡسَ وَٱلۡقَمَرَۖ وَٱلنُّجُومُ مُسَخَّرَ ٰ⁠تُۢ بِأَمۡرِهِۦۤۚ إِنَّ فِی ذَ ٰ⁠لِكَ لَـَٔایَـٰتࣲ لِّقَوۡمࣲ یَعۡقِلُونَ ﴿١٢﴾

और उसने रात और दिन, सूर्य और चाँद को तुम्हारे लिए कार्यरत कर रखा है, तथा तारे भी उसके आदेश के अधीन हैं। निःसंदेह इसमें उन लोगों के लिए निश्चय बहुत-सी निशानियाँ हैं, जो समझ-बूझ रखते हैं।


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وَمَا ذَرَأَ لَكُمۡ فِی ٱلۡأَرۡضِ مُخۡتَلِفًا أَلۡوَ ٰ⁠نُهُۥۤۚ إِنَّ فِی ذَ ٰ⁠لِكَ لَـَٔایَةࣰ لِّقَوۡمࣲ یَذَّكَّرُونَ ﴿١٣﴾

तथा उसने तुम्हारे लिए धरती में जो विभिन्न रंगों की चीज़ें पैदा की हैं (उन्हें भी तुम्हारे वश में किया)। निःसंदेह इसमें उन लोगों के लिए निश्चय बड़ी निशानी है, जो शिक्षा ग्रहण करते हैं।


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وَهُوَ ٱلَّذِی سَخَّرَ ٱلۡبَحۡرَ لِتَأۡكُلُواْ مِنۡهُ لَحۡمࣰا طَرِیࣰّا وَتَسۡتَخۡرِجُواْ مِنۡهُ حِلۡیَةࣰ تَلۡبَسُونَهَاۖ وَتَرَى ٱلۡفُلۡكَ مَوَاخِرَ فِیهِ وَلِتَبۡتَغُواْ مِن فَضۡلِهِۦ وَلَعَلَّكُمۡ تَشۡكُرُونَ ﴿١٤﴾

और वही है, जिसने सागर को (तुम्हारे) वश में कर दिया, ताकि तुम उससे ताज़ा मांस[4] खाओ और उससे आभूषण[5] निकालो, जिसे तुम पहनते हो। तथा तुम नौकाओं को देखते हो कि उसमें पानी को चीरती हुई चलती हैं, और ताकि तुम उसका कुछ अनुग्रह[6] तलाश करो और ताकि तुम शुक्रिया अदा करो।

4. अर्थात मछलियाँ। 5. अर्थात मोती और मूँगा निकालो। 6. अर्थात सागरों में व्यापारिक यात्रा करके अपनी जीविका की खोज करो।


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وَأَلۡقَىٰ فِی ٱلۡأَرۡضِ رَوَ ٰ⁠سِیَ أَن تَمِیدَ بِكُمۡ وَأَنۡهَـٰرࣰا وَسُبُلࣰا لَّعَلَّكُمۡ تَهۡتَدُونَ ﴿١٥﴾

और उसने धरती में पर्वत गाड़ दिए, ताकि वह (धरती) तुम्हें लेकर डगमगाने न लगे तथा नदियाँ और रास्ते बनाए, ताकि तुम मंज़िल तक पहुँच जाओ।


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وَعَلَـٰمَـٰتࣲۚ وَبِٱلنَّجۡمِ هُمۡ یَهۡتَدُونَ ﴿١٦﴾

तथा बहुत-से चिह्न (बनाए)। और वे सितारों से रास्ता[7] मालूम करते हैं।

7. अर्थात रात्रि में।


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أَفَمَن یَخۡلُقُ كَمَن لَّا یَخۡلُقُۚ أَفَلَا تَذَكَّرُونَ ﴿١٧﴾

तो क्या वह जो (ये सब चीज़ें) पैदा करता है, उसके समान है, जो (कुछ भी) पैदा नहीं करता? फिर क्या तुम उपदेश ग्रहण नहीं करते?[8]

8. और उसकी उत्पत्ति को उसका साझी और पूज्य बनाते हो।


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وَإِن تَعُدُّواْ نِعۡمَةَ ٱللَّهِ لَا تُحۡصُوهَاۤۗ إِنَّ ٱللَّهَ لَغَفُورࣱ رَّحِیمࣱ ﴿١٨﴾

और यदि तुम अल्लाह की नेमतों को गिनो, तो उन्हें गिन न सकोगे। निःसंदेह अल्लाह बड़ा क्षमाशील, अत्यंत दया करने वाला है।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَٱللَّهُ یَعۡلَمُ مَا تُسِرُّونَ وَمَا تُعۡلِنُونَ ﴿١٩﴾

तथा अल्लाह जानता है, जो तुम छिपाते हो और जो तुम प्रकट करते हो।


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وَٱلَّذِینَ یَدۡعُونَ مِن دُونِ ٱللَّهِ لَا یَخۡلُقُونَ شَیۡـࣰٔا وَهُمۡ یُخۡلَقُونَ ﴿٢٠﴾

और जिन्हें वे अल्लाह के सिवा पुकारते हैं, वे कुछ भी पैदा नहीं करते। और वे स्वयं पैदा किए जाते हैं।


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أَمۡوَ ٰ⁠تٌ غَیۡرُ أَحۡیَاۤءࣲۖ وَمَا یَشۡعُرُونَ أَیَّانَ یُبۡعَثُونَ ﴿٢١﴾

वे मृत हैं, जिनमें प्राण नहीं, और वे नहीं जानते कि कब उठाए जाएँगे।


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إِلَـٰهُكُمۡ إِلَـٰهࣱ وَ ٰ⁠حِدࣱۚ فَٱلَّذِینَ لَا یُؤۡمِنُونَ بِٱلۡـَٔاخِرَةِ قُلُوبُهُم مُّنكِرَةࣱ وَهُم مُّسۡتَكۡبِرُونَ ﴿٢٢﴾

तुम्हारा पूज्य एक ही पूज्य है। तो वे लोग जो आख़िरत पर ईमान नहीं रखते, उनके दिल इनकार करने वाले हैं और वे बहुत अभिमानी हैं।


Arabic explanations of the Qur’an:

لَا جَرَمَ أَنَّ ٱللَّهَ یَعۡلَمُ مَا یُسِرُّونَ وَمَا یُعۡلِنُونَۚ إِنَّهُۥ لَا یُحِبُّ ٱلۡمُسۡتَكۡبِرِینَ ﴿٢٣﴾

निश्चय ही अल्लाह जानता है, जो वे छिपाते हैं तथा जो प्रकट करते हैं। निःसंदेह वह अभिमानियों से प्रेम नहीं करता।


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وَإِذَا قِیلَ لَهُم مَّاذَاۤ أَنزَلَ رَبُّكُمۡ قَالُوۤاْ أَسَـٰطِیرُ ٱلۡأَوَّلِینَ ﴿٢٤﴾

और जब उनसे पूछा जाए कि तुम्हारे पालनहार ने क्या उतारा है?[9] तो कहते हैं कि पहले लोगों की कल्पित कहानियाँ हैं।

9. अर्थात मुह़म्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर। तो यह जानते हुए कि अल्लाह ने क़ुरआन उतारा है, झूठ बोलते हैं और स्वयं को तथा दूसरों को धोखा देते हैं।


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لِیَحۡمِلُوۤاْ أَوۡزَارَهُمۡ كَامِلَةࣰ یَوۡمَ ٱلۡقِیَـٰمَةِ وَمِنۡ أَوۡزَارِ ٱلَّذِینَ یُضِلُّونَهُم بِغَیۡرِ عِلۡمٍۗ أَلَا سَاۤءَ مَا یَزِرُونَ ﴿٢٥﴾

ताकि वे क़ियामत के दिन अपने (पापों के) बोझ पूरे उठाएँ तथा कुछ बोझ उनके भी जिन्हें वे ज्ञान के बिना गुमराह करते हैं। सुन लो! बुरा है वह बोझ जो वे उठा रहे है!


Arabic explanations of the Qur’an:

قَدۡ مَكَرَ ٱلَّذِینَ مِن قَبۡلِهِمۡ فَأَتَى ٱللَّهُ بُنۡیَـٰنَهُم مِّنَ ٱلۡقَوَاعِدِ فَخَرَّ عَلَیۡهِمُ ٱلسَّقۡفُ مِن فَوۡقِهِمۡ وَأَتَىٰهُمُ ٱلۡعَذَابُ مِنۡ حَیۡثُ لَا یَشۡعُرُونَ ﴿٢٦﴾

निश्चय इनसे पहले के लोगों ने भी साज़िशें कीं। तो अल्लाह ने उनके घरों को जड़ों से उखाड़ दिया। फिर उनपर उनके ऊपर से छत गिर पड़ी और उनपर वहाँ से यातना आई कि वे सोचते न थे।


Arabic explanations of the Qur’an:

ثُمَّ یَوۡمَ ٱلۡقِیَـٰمَةِ یُخۡزِیهِمۡ وَیَقُولُ أَیۡنَ شُرَكَاۤءِیَ ٱلَّذِینَ كُنتُمۡ تُشَـٰۤقُّونَ فِیهِمۡۚ قَالَ ٱلَّذِینَ أُوتُواْ ٱلۡعِلۡمَ إِنَّ ٱلۡخِزۡیَ ٱلۡیَوۡمَ وَٱلسُّوۤءَ عَلَى ٱلۡكَـٰفِرِینَ ﴿٢٧﴾

फिर क़ियामत के दिन वह उन्हें अपमानित करेगा और कहेगा : कहाँ हैं मेरे वे साझी जिनके बारे में तुम लड़ते-झगड़ते थे? वे लोग जिन्हें ज्ञान दिया गया कहेंगे : निःसंदेह आज अपमान तथा बुराई (यातना) काफ़िरों पर है।


Arabic explanations of the Qur’an:

ٱلَّذِینَ تَتَوَفَّىٰهُمُ ٱلۡمَلَـٰۤىِٕكَةُ ظَالِمِیۤ أَنفُسِهِمۡۖ فَأَلۡقَوُاْ ٱلسَّلَمَ مَا كُنَّا نَعۡمَلُ مِن سُوۤءِۭۚ بَلَىٰۤۚ إِنَّ ٱللَّهَ عَلِیمُۢ بِمَا كُنتُمۡ تَعۡمَلُونَ ﴿٢٨﴾

जिनके प्राण फ़रिश्ते इस हाल में निकालते हैं कि वे अपने ऊपर अत्याचार करने वाले होते हैं, तो वे (मौत देखकर) आज्ञाकारी बन जाते[10] हैं, (और कहते हैं कि) हम कोई बुरा काम नहीं किया करते थे। क्यों नहीं? निश्चय अल्लाह भली-भाँति जानने वाला है, जो तुम किया करते थे।

10. अर्थात मरण के समय अल्लाह को मान लेते हैं।


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فَٱدۡخُلُوۤاْ أَبۡوَ ٰ⁠بَ جَهَنَّمَ خَـٰلِدِینَ فِیهَاۖ فَلَبِئۡسَ مَثۡوَى ٱلۡمُتَكَبِّرِینَ ﴿٢٩﴾

अतः जहन्नम के द्वारों में प्रवेश कर जाओ। उसमें सदावासी रहोगे। तो क्या ही बुरा है अभिमानियों का ठिकाना!


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۞ وَقِیلَ لِلَّذِینَ ٱتَّقَوۡاْ مَاذَاۤ أَنزَلَ رَبُّكُمۡۚ قَالُواْ خَیۡرࣰاۗ لِّلَّذِینَ أَحۡسَنُواْ فِی هَـٰذِهِ ٱلدُّنۡیَا حَسَنَةࣱۚ وَلَدَارُ ٱلۡـَٔاخِرَةِ خَیۡرࣱۚ وَلَنِعۡمَ دَارُ ٱلۡمُتَّقِینَ ﴿٣٠﴾

और अपने रब का भय रखने वालों से पूछा गया कि तुम्हारे रब ने क्या उतारा है? तो उन्होंने कहा : बेहतरीन बात। जिन लोगों ने भलाई की, उनके लिए इस दुनिया में बड़ी भलाई है और आख़िरत का घर (जन्नत) तो कहीं बेहतर है। और निश्चय वह भय रखने वालों का अच्छा घर है!


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جَنَّـٰتُ عَدۡنࣲ یَدۡخُلُونَهَا تَجۡرِی مِن تَحۡتِهَا ٱلۡأَنۡهَـٰرُۖ لَهُمۡ فِیهَا مَا یَشَاۤءُونَۚ كَذَ ٰ⁠لِكَ یَجۡزِی ٱللَّهُ ٱلۡمُتَّقِینَ ﴿٣١﴾

सदा रहने के बाग़, जिनमें वे प्रवेश करेंगे, उनके नीचे से नहरें बहती होंगी। उनके लिए उनमें जो वे चाहेंगे (उपस्थित) होगा। इसी तरह अल्लाह भय रखने वालों को बदला देता है।


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ٱلَّذِینَ تَتَوَفَّىٰهُمُ ٱلۡمَلَـٰۤىِٕكَةُ طَیِّبِینَ یَقُولُونَ سَلَـٰمٌ عَلَیۡكُمُ ٱدۡخُلُواْ ٱلۡجَنَّةَ بِمَا كُنتُمۡ تَعۡمَلُونَ ﴿٣٢﴾

जिनके प्राण फ़रिश्ते इस हाल में निकालते हैं कि वे स्वच्छ-पवित्र होते हैं। वे (फ़रिश्ते) कहते हैं : तुमपर सलाम (शांति) हो। तुम अपने (अच्छे) कामों के बदले स्वर्ग में प्रवेश कर जाओ।


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هَلۡ یَنظُرُونَ إِلَّاۤ أَن تَأۡتِیَهُمُ ٱلۡمَلَـٰۤىِٕكَةُ أَوۡ یَأۡتِیَ أَمۡرُ رَبِّكَۚ كَذَ ٰ⁠لِكَ فَعَلَ ٱلَّذِینَ مِن قَبۡلِهِمۡۚ وَمَا ظَلَمَهُمُ ٱللَّهُ وَلَـٰكِن كَانُوۤاْ أَنفُسَهُمۡ یَظۡلِمُونَ ﴿٣٣﴾

क्या वे इस बात की प्रतीक्षा कर रहे हैं कि उनके पास फ़रिश्ते[11] आ जाएँ, अथवा आपके पालनहार का आदेश[12] आ पहुँचे? ऐसे ही उन लोगों ने किया, जो इनसे पहले थे और अल्लाह ने उनपर अत्याचार नहीं किया, लेकिन वे स्वयं अपने आपपर अत्याचार किया करते थे।

11. अर्थात प्राण निकालने के लिए। 12. अर्थात अल्लाह की यातना या प्रलय।


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فَأَصَابَهُمۡ سَیِّـَٔاتُ مَا عَمِلُواْ وَحَاقَ بِهِم مَّا كَانُواْ بِهِۦ یَسۡتَهۡزِءُونَ ﴿٣٤﴾

तो उनके कुकर्मों की बुराइयाँ[13] उनपर आ पड़ीं और उन्हें उसी (यातना) ने घेर लिया, जिसका वे मज़ाक उड़ाया करते थे।

13. अर्थात दुष्परिणाम।


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وَقَالَ ٱلَّذِینَ أَشۡرَكُواْ لَوۡ شَاۤءَ ٱللَّهُ مَا عَبَدۡنَا مِن دُونِهِۦ مِن شَیۡءࣲ نَّحۡنُ وَلَاۤ ءَابَاۤؤُنَا وَلَا حَرَّمۡنَا مِن دُونِهِۦ مِن شَیۡءࣲۚ كَذَ ٰ⁠لِكَ فَعَلَ ٱلَّذِینَ مِن قَبۡلِهِمۡۚ فَهَلۡ عَلَى ٱلرُّسُلِ إِلَّا ٱلۡبَلَـٰغُ ٱلۡمُبِینُ ﴿٣٥﴾

और अल्लाह का साझी बनाने वालों ने कहा : यदि अल्लाह चाहता, तो न हम उसके सिवा किसी भी चीज़ की इबादत करते और न हमारे बाप-दादा। और न हम उसके बिना किसी भी चीज़ को हराम ठहराते। इसी तरह उन लोगों ने किया जो इनसे पहले थे। तो रसूलों का कार्य केवल स्पष्ट रूप से उपदेश पहुँचा देने के सिवा और क्या है?


Arabic explanations of the Qur’an:

وَلَقَدۡ بَعَثۡنَا فِی كُلِّ أُمَّةࣲ رَّسُولًا أَنِ ٱعۡبُدُواْ ٱللَّهَ وَٱجۡتَنِبُواْ ٱلطَّـٰغُوتَۖ فَمِنۡهُم مَّنۡ هَدَى ٱللَّهُ وَمِنۡهُم مَّنۡ حَقَّتۡ عَلَیۡهِ ٱلضَّلَـٰلَةُۚ فَسِیرُواْ فِی ٱلۡأَرۡضِ فَٱنظُرُواْ كَیۡفَ كَانَ عَـٰقِبَةُ ٱلۡمُكَذِّبِینَ ﴿٣٦﴾

और निःसंदेह हमने प्रत्येक समुदाय में एक रसूल भेजा कि अल्लाह की इबादत करो और ताग़ूत (अल्लाह के अलावा की पूजा) से बचो। फिर उनमें से कुछ को अल्लाह ने सीधे मार्ग पर लगाया, तथा उनमें से कुछ पर पथभ्रष्टता सिद्ध हो गई। अतः तुम धरती में चलो-फिरो, फिर देखो कि झुठलाने वालों का परिणाम कैसा हुआ?


Arabic explanations of the Qur’an:

إِن تَحۡرِصۡ عَلَىٰ هُدَىٰهُمۡ فَإِنَّ ٱللَّهَ لَا یَهۡدِی مَن یُضِلُّۖ وَمَا لَهُم مِّن نَّـٰصِرِینَ ﴿٣٧﴾

(ऐ नबी!) यदि आप उनके मार्गदर्शन के लिए लालायित हैं, तो निःसंदेह अल्लाह उसे मार्गदर्शन प्रदान नहीं करता, जिसे वह गुमराह कर दे, और न कोई उनकी मदद करने वाले हैं।


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وَأَقۡسَمُواْ بِٱللَّهِ جَهۡدَ أَیۡمَـٰنِهِمۡ لَا یَبۡعَثُ ٱللَّهُ مَن یَمُوتُۚ بَلَىٰ وَعۡدًا عَلَیۡهِ حَقࣰّا وَلَـٰكِنَّ أَكۡثَرَ ٱلنَّاسِ لَا یَعۡلَمُونَ ﴿٣٨﴾

और उन (काफ़िरों) ने अपनी पक्की क़समें खाते हुए अल्लाह की क़सम खाई कि अल्लाह उसे पुनः जीवित नहीं करेगा, जो मर जाए। क्यों नहीं? यह तो उस (अल्लाह) के ऊपर एक सच्चा वादा है, परंतु अधिकतर लोग नहीं जानते।


Arabic explanations of the Qur’an:

لِیُبَیِّنَ لَهُمُ ٱلَّذِی یَخۡتَلِفُونَ فِیهِ وَلِیَعۡلَمَ ٱلَّذِینَ كَفَرُوۤاْ أَنَّهُمۡ كَانُواْ كَـٰذِبِینَ ﴿٣٩﴾

ताकि वह (अल्लाह) उनके लिए उस तथ्य को उजागर कर दे, जिसमें वे मतभेद[14] करते हैं और ताकि काफ़िर लोग जान लें कि वे झूठे थे।

14. अर्थात पुनरुज्जीवन आदि के विषय में।


Arabic explanations of the Qur’an:

إِنَّمَا قَوۡلُنَا لِشَیۡءٍ إِذَاۤ أَرَدۡنَـٰهُ أَن نَّقُولَ لَهُۥ كُن فَیَكُونُ ﴿٤٠﴾

हमारा कहना किसी चीज़ को, जब हम उसका इरादा कर लें, इसके सिवा कुछ नहीं होता कि हम उसे कहते हैं : 'हो जा', तो वह हो जाती है।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَٱلَّذِینَ هَاجَرُواْ فِی ٱللَّهِ مِنۢ بَعۡدِ مَا ظُلِمُواْ لَنُبَوِّئَنَّهُمۡ فِی ٱلدُّنۡیَا حَسَنَةࣰۖ وَلَأَجۡرُ ٱلۡـَٔاخِرَةِ أَكۡبَرُۚ لَوۡ كَانُواْ یَعۡلَمُونَ ﴿٤١﴾

तथा जिन लोगों ने अल्लाह के लिए घर-बार छोड़ा, इसके बाद कि उनपर अत्याचार किया गया, निःसंदेह हम उन्हें संसार में अवश्य अच्छा ठिकाना देंगे। और निश्चय आख़िरत का प्रतिफल सबसे बड़ा है। काश! वे[15] जानते होते।

15. इनसे अभिप्रेत नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के वे अनुयायी हैं, जिनको मक्का के मुश्रिकों ने अत्याचार करके निकाल दिया। और वे ह़ब्शा और फिर मदीना हिजरत कर गए।


Arabic explanations of the Qur’an:

ٱلَّذِینَ صَبَرُواْ وَعَلَىٰ رَبِّهِمۡ یَتَوَكَّلُونَ ﴿٤٢﴾

वे लोग जिन्होंने धैर्य से काम लिया तथा अपने पालनहार ही पर भरोसा करते हैं।


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وَمَاۤ أَرۡسَلۡنَا مِن قَبۡلِكَ إِلَّا رِجَالࣰا نُّوحِیۤ إِلَیۡهِمۡۖ فَسۡـَٔلُوۤاْ أَهۡلَ ٱلذِّكۡرِ إِن كُنتُمۡ لَا تَعۡلَمُونَ ﴿٤٣﴾

और (ऐ नबी!) हमने आपसे पहले जो भी रसूल भेजे, वे सभी पुरुष थे, जिनकी ओर हम वह़्य (प्रकाशना) करते थे। अतः यदि तुम (स्वयं) नहीं जानते हो, तो ज्ञान वालों से पूछ लो।[16]

16. मक्का के मुश्रिकों ने कहा कि यदि अल्लाह को कोई रसूल भेजना होता तो किसी फ़रिश्ते को भेजता। उसी पर यह आयत उतरी। ज्ञानियों से अभिप्राय वे अह्ले किताब हैं जिन्हें आकाशीय पुस्तकों का ज्ञान हो।


Arabic explanations of the Qur’an:

بِٱلۡبَیِّنَـٰتِ وَٱلزُّبُرِۗ وَأَنزَلۡنَاۤ إِلَیۡكَ ٱلذِّكۡرَ لِتُبَیِّنَ لِلنَّاسِ مَا نُزِّلَ إِلَیۡهِمۡ وَلَعَلَّهُمۡ یَتَفَكَّرُونَ ﴿٤٤﴾

(उन्हें) स्पष्ट प्रमाणों तथा पुस्तकों के साथ (भेजा)। और हमने आपकी ओर यह शिक्षा (क़ुरआन) उतारी, ताकि आप लोगों के सामने खोल-खोलकर बयान कर दें, जो कुछ उनकी ओर उतारा गया है और ताकि वे सोच-विचार करें।


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أَفَأَمِنَ ٱلَّذِینَ مَكَرُواْ ٱلسَّیِّـَٔاتِ أَن یَخۡسِفَ ٱللَّهُ بِهِمُ ٱلۡأَرۡضَ أَوۡ یَأۡتِیَهُمُ ٱلۡعَذَابُ مِنۡ حَیۡثُ لَا یَشۡعُرُونَ ﴿٤٥﴾

तो क्या बुरी चालें चलने वाले इस बात से निश्चिंत हो गए हैं कि अल्लाह उन्हें धरती में धँसा दे, अथवा उनपर यातना आ जाए, जहाँ से वे सोचते भी न हों?


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أَوۡ یَأۡخُذَهُمۡ فِی تَقَلُّبِهِمۡ فَمَا هُم بِمُعۡجِزِینَ ﴿٤٦﴾

या वह उन्हें उनके चलने-फिरने को दौरान पकड़ ले। तो वे (अल्लाह को) किसी तरह विवश करने वाले नहीं हैं।


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أَوۡ یَأۡخُذَهُمۡ عَلَىٰ تَخَوُّفࣲ فَإِنَّ رَبَّكُمۡ لَرَءُوفࣱ رَّحِیمٌ ﴿٤٧﴾

अथवा वह उन्हें भयभीत होने की दशा में पकड़[17] ले? निःसंदेह तुम्हारा पालनहार निश्चय अति करुणामय, अत्यंत दयावान् है।

17. अर्थात जबकि पहले से उन्हें आपदा का भय हो।


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أَوَلَمۡ یَرَوۡاْ إِلَىٰ مَا خَلَقَ ٱللَّهُ مِن شَیۡءࣲ یَتَفَیَّؤُاْ ظِلَـٰلُهُۥ عَنِ ٱلۡیَمِینِ وَٱلشَّمَاۤىِٕلِ سُجَّدࣰا لِّلَّهِ وَهُمۡ دَ ٰ⁠خِرُونَ ﴿٤٨﴾

क्या उन्होंने अल्लाह की पैदा की हुई कोई चीज़ नहीं देखी कि उसकी परछाइयाँ अल्लाह को सजदा करती हुई दाएँ तथा बाएँ झुकती हैं? जबकि वे विनम्र होती हैं।


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وَلِلَّهِ یَسۡجُدُ مَا فِی ٱلسَّمَـٰوَ ٰ⁠تِ وَمَا فِی ٱلۡأَرۡضِ مِن دَاۤبَّةࣲ وَٱلۡمَلَـٰۤىِٕكَةُ وَهُمۡ لَا یَسۡتَكۡبِرُونَ ﴿٤٩﴾

तथा आकाशों एवं धरती में जितने जीवधारी हैं, सब अल्लाह ही को सजदा करते हैं तथा फ़रिश्ते (भी)। और वे अहंकार नहीं करते।


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یَخَافُونَ رَبَّهُم مِّن فَوۡقِهِمۡ وَیَفۡعَلُونَ مَا یُؤۡمَرُونَ ۩ ﴿٥٠﴾

वे[18] अपने पालनहार से डरते हैं, जो उनके ऊपर है। और वे वही करते हैं, जो आदेश दिेए जाते हैं।

18. अर्थात फ़रिश्ते।


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۞ وَقَالَ ٱللَّهُ لَا تَتَّخِذُوۤاْ إِلَـٰهَیۡنِ ٱثۡنَیۡنِۖ إِنَّمَا هُوَ إِلَـٰهࣱ وَ ٰ⁠حِدࣱ فَإِیَّـٰیَ فَٱرۡهَبُونِ ﴿٥١﴾

और अल्लाह ने कहा : दो पूज्य न बनाओ। वह तो केवल एक ही पूज्य है। अतः तुम मुझी से डरो।


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وَلَهُۥ مَا فِی ٱلسَّمَـٰوَ ٰ⁠تِ وَٱلۡأَرۡضِ وَلَهُ ٱلدِّینُ وَاصِبًاۚ أَفَغَیۡرَ ٱللَّهِ تَتَّقُونَ ﴿٥٢﴾

और उसी का है, जो कुछ आकाशों में तथा जो कुछ धरती में है। और इबादत भी हमेशा उसी की है। तो क्या तुम अल्लाह के अलावा से डरते हो?


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وَمَا بِكُم مِّن نِّعۡمَةࣲ فَمِنَ ٱللَّهِۖ ثُمَّ إِذَا مَسَّكُمُ ٱلضُّرُّ فَإِلَیۡهِ تَجۡـَٔرُونَ ﴿٥٣﴾

तुम्हारे पास जो भी नेमत है, वह अल्लाह ही की ओर से है। फिर जब तुम्हें दुःख पहुँचता है, तो उसी की ओर गिड़गिड़ाते हो।


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ثُمَّ إِذَا كَشَفَ ٱلضُّرَّ عَنكُمۡ إِذَا فَرِیقࣱ مِّنكُم بِرَبِّهِمۡ یُشۡرِكُونَ ﴿٥٤﴾

फिर जब वह तुमसे उस कष्ट को दूर कर देता है, तो अचानक तुममें से कुछ लोग अपने रब के साथ साझी ठहराने लगते हैं।


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لِیَكۡفُرُواْ بِمَاۤ ءَاتَیۡنَـٰهُمۡۚ فَتَمَتَّعُواْ فَسَوۡفَ تَعۡلَمُونَ ﴿٥٥﴾

ताकि हमने उन्हें, जो कुछ प्रदान किया है, उसकी नाशुक्री करें। तो तुम (कुछ दिन) लाभ उठा लो। फिर तुम जल्द ही जान लोगे।


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وَیَجۡعَلُونَ لِمَا لَا یَعۡلَمُونَ نَصِیبࣰا مِّمَّا رَزَقۡنَـٰهُمۡۗ تَٱللَّهِ لَتُسۡـَٔلُنَّ عَمَّا كُنتُمۡ تَفۡتَرُونَ ﴿٥٦﴾

और वे हमारी दी हुई चीज़ों में उनका[19] भाग लगाते हैं, जो कुछ नहीं जानते। अल्लाह की क़सम! तुम जो झूठ गढ़ते हो, उसके संबंध में तुमसे अवश्य पूछा जाएगा।

19. अर्थात अपने देवी-देवताओं का, जो कुछ भी नहीं जानते; क्योंकि वे निर्जीव हैं, और न ही वे लाभ या हानि का अधिकार रखते हैं।


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وَیَجۡعَلُونَ لِلَّهِ ٱلۡبَنَـٰتِ سُبۡحَـٰنَهُۥ وَلَهُم مَّا یَشۡتَهُونَ ﴿٥٧﴾

और वे अल्लाह के लिए बेटियाँ ठहराते[20] हैं, वह पवित्र है! और अपने लिए वह[2!], जो वे चाहते हैं?

20. अरब के मुश्रिकों के पूज्यों में देवताओं से अधिक देवियाँ थीं। जिनके संबंध में उनका विचार था कि ये अल्लाह की पुत्रियाँ हैं। इसी प्रकार फ़रिश्तों को भी वे अल्लाह की पुत्रियाँ कहते थे, जिसका यहाँ खंडन किया गया है। 21. अर्थात पुत्र।


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وَإِذَا بُشِّرَ أَحَدُهُم بِٱلۡأُنثَىٰ ظَلَّ وَجۡهُهُۥ مُسۡوَدࣰّا وَهُوَ كَظِیمࣱ ﴿٥٨﴾

और जब उनमें से किसी को बेटी (के जन्म) की शुभ सूचना दी जाती है, तो उसका मुख काला हो जाता है और वह दुख से भरा होता है।


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یَتَوَ ٰ⁠رَىٰ مِنَ ٱلۡقَوۡمِ مِن سُوۤءِ مَا بُشِّرَ بِهِۦۤۚ أَیُمۡسِكُهُۥ عَلَىٰ هُونٍ أَمۡ یَدُسُّهُۥ فِی ٱلتُّرَابِۗ أَلَا سَاۤءَ مَا یَحۡكُمُونَ ﴿٥٩﴾

वह उस बुरी सूचना के कारण लोगों से छिपता फिरता है, जो उसे दी गई है। (सोचता है कि) क्या[22] उसे अपमान के साथ रहने दे, अथवा उसे मिट्टी में गाड़ दे? देखो! बहुत बुरा है, जो वे निर्णय करते हैं।

22. अर्थात जीवित रहने दे। इस्लाम से पूर्व अरब समाज के कुछ क़बीलों में पुत्रियों के जन्म को लज्जा की चीज़ समझा जाता था। जिसका चित्रण इस आयत में किया गया है।


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لِلَّذِینَ لَا یُؤۡمِنُونَ بِٱلۡـَٔاخِرَةِ مَثَلُ ٱلسَّوۡءِۖ وَلِلَّهِ ٱلۡمَثَلُ ٱلۡأَعۡلَىٰۚ وَهُوَ ٱلۡعَزِیزُ ٱلۡحَكِیمُ ﴿٦٠﴾

जो लोग आख़िरत (परलोक) को नहीं मानते, उनकी बुरी मिसाल है। और अल्लाह की सर्वोच्च विशेषता है, तथा वही प्रभुत्वशाली, पूर्ण हिकमत वाला है।


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وَلَوۡ یُؤَاخِذُ ٱللَّهُ ٱلنَّاسَ بِظُلۡمِهِم مَّا تَرَكَ عَلَیۡهَا مِن دَاۤبَّةࣲ وَلَـٰكِن یُؤَخِّرُهُمۡ إِلَىٰۤ أَجَلࣲ مُّسَمࣰّىۖ فَإِذَا جَاۤءَ أَجَلُهُمۡ لَا یَسۡتَـٔۡخِرُونَ سَاعَةࣰ وَلَا یَسۡتَقۡدِمُونَ ﴿٦١﴾

और यदि अल्लाह, लोगों को उनके अत्याचार[23] की वजह से पकड़े, तो धरती पर किसी जीवधारी को न छोड़े। परंतु वह उन्हें एक निर्धारित समय तक ढील[24] देता है। फिर जब उनका समय आ जाता है, तो एक घड़ी न पीछे रहते हैं और न आगे बढ़ते हैं।

23. अर्थात उनके शिर्क और पापाचार पर। 24. अर्थात अवसर देता है।


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وَیَجۡعَلُونَ لِلَّهِ مَا یَكۡرَهُونَۚ وَتَصِفُ أَلۡسِنَتُهُمُ ٱلۡكَذِبَ أَنَّ لَهُمُ ٱلۡحُسۡنَىٰۚ لَا جَرَمَ أَنَّ لَهُمُ ٱلنَّارَ وَأَنَّهُم مُّفۡرَطُونَ ﴿٦٢﴾

वे अल्लाह के लिए वह कुछ[25] ठहराते हैं, जिसे अपने लिए नापसंद करते हैं। और उनकी ज़बानें झूठ बोलती हैं कि उनके लिए अच्छा परिणाम है। कोई संदेह नहीं कि उन्हीं के लिए जहन्नम है और वे उसमें छोड़ दिए जाएँगे।

25. अर्थात पुत्रियाँ।


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تَٱللَّهِ لَقَدۡ أَرۡسَلۡنَاۤ إِلَىٰۤ أُمَمࣲ مِّن قَبۡلِكَ فَزَیَّنَ لَهُمُ ٱلشَّیۡطَـٰنُ أَعۡمَـٰلَهُمۡ فَهُوَ وَلِیُّهُمُ ٱلۡیَوۡمَ وَلَهُمۡ عَذَابٌ أَلِیمࣱ ﴿٦٣﴾

अल्लाह की क़सम! निश्चय हमने (ऐ नबी!) आपसे पहले बहुत-से समुदायों की ओर रसूल भेजे। तो शैतान ने उनके कुकर्मों को उनके लिए सुंदर बना दिया। अतः वही आज उनका सहायक है। और उन्हीं के लिए दुःखदायी यातना है।


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وَمَاۤ أَنزَلۡنَا عَلَیۡكَ ٱلۡكِتَـٰبَ إِلَّا لِتُبَیِّنَ لَهُمُ ٱلَّذِی ٱخۡتَلَفُواْ فِیهِ وَهُدࣰى وَرَحۡمَةࣰ لِّقَوۡمࣲ یُؤۡمِنُونَ ﴿٦٤﴾

और हमने आपपर यह पुस्तक (क़ुरआन) केवल इसलिए उतारी है कि आप उनके सामने वह बात खोल-खोलकर बयान कर दें, जिसमें उन्होंने मतभेद किया है। तथा उन लोगों के लिए मार्गदर्शन और दया के रूप में जो ईमान लाते हैं।


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وَٱللَّهُ أَنزَلَ مِنَ ٱلسَّمَاۤءِ مَاۤءࣰ فَأَحۡیَا بِهِ ٱلۡأَرۡضَ بَعۡدَ مَوۡتِهَاۤۚ إِنَّ فِی ذَ ٰ⁠لِكَ لَـَٔایَةࣰ لِّقَوۡمࣲ یَسۡمَعُونَ ﴿٦٥﴾

और अल्लाह ने आकाश से कुछ पानी बरसाया, फिर उससे धरती को उसके मृत होने के बाद जीवित कर दिया। निःसंदेह इसमें उन लोगों के लिए निश्चय एक निशानी है, जो सुनते हैं।


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وَإِنَّ لَكُمۡ فِی ٱلۡأَنۡعَـٰمِ لَعِبۡرَةࣰۖ نُّسۡقِیكُم مِّمَّا فِی بُطُونِهِۦ مِنۢ بَیۡنِ فَرۡثࣲ وَدَمࣲ لَّبَنًا خَالِصࣰا سَاۤىِٕغࣰا لِّلشَّـٰرِبِینَ ﴿٦٦﴾

तथा निःसंदेह तुम्हारे लिए पशुओं में बड़ा उपदेश है। हम उन चीज़ों में से जो उनके पेटों में हैं, गोबर और रक्त के मध्य से तुम्हें शुद्ध दूध पिलाते हैं, जो पीने वालों के लिए रुचिकर होता है।


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وَمِن ثَمَرَ ٰ⁠تِ ٱلنَّخِیلِ وَٱلۡأَعۡنَـٰبِ تَتَّخِذُونَ مِنۡهُ سَكَرࣰا وَرِزۡقًا حَسَنًاۚ إِنَّ فِی ذَ ٰ⁠لِكَ لَـَٔایَةࣰ لِّقَوۡمࣲ یَعۡقِلُونَ ﴿٦٧﴾

तथा खजूरों और अंगूरों के फलों से भी, जिससे तुम मादक पदार्थ तथा उत्तम रोज़ी बनाते हो। निःसंदेह इसमें उन लोगों के लिए एक निशानी है, जो समझ-बूझ रखते हैं।


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وَأَوۡحَىٰ رَبُّكَ إِلَى ٱلنَّحۡلِ أَنِ ٱتَّخِذِی مِنَ ٱلۡجِبَالِ بُیُوتࣰا وَمِنَ ٱلشَّجَرِ وَمِمَّا یَعۡرِشُونَ ﴿٦٨﴾

और तेरे पालनहार ने मधुमक्खी को प्रेरित किया कि कुछ पर्वतों में से घर (छत्ते) बना तथा कुछ वृक्षों में से और कुछ उसमें से जो लोग छप्पर बनाते हैं।


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ثُمَّ كُلِی مِن كُلِّ ٱلثَّمَرَ ٰ⁠تِ فَٱسۡلُكِی سُبُلَ رَبِّكِ ذُلُلࣰاۚ یَخۡرُجُ مِنۢ بُطُونِهَا شَرَابࣱ مُّخۡتَلِفٌ أَلۡوَ ٰ⁠نُهُۥ فِیهِ شِفَاۤءࣱ لِّلنَّاسِۚ إِنَّ فِی ذَ ٰ⁠لِكَ لَـَٔایَةࣰ لِّقَوۡمࣲ یَتَفَكَّرُونَ ﴿٦٩﴾

फिर हर तरह के फलों से खा, फिर अपने पालनहार के प्रशस्त किए हुए रास्तों पर चल। उनके पेटों से विभिन्न रंगों का एक पेय निकलता है, जिसमें लोगों के लिए आरोग्य (शिफ़ा) है। निःसंदेह इसमें उन लोगों के लिए निश्चय एक निशानी है, जो सोच-विचार करते हैं।


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وَٱللَّهُ خَلَقَكُمۡ ثُمَّ یَتَوَفَّىٰكُمۡۚ وَمِنكُم مَّن یُرَدُّ إِلَىٰۤ أَرۡذَلِ ٱلۡعُمُرِ لِكَیۡ لَا یَعۡلَمَ بَعۡدَ عِلۡمࣲ شَیۡـًٔاۚ إِنَّ ٱللَّهَ عَلِیمࣱ قَدِیرࣱ ﴿٧٠﴾

और अल्लाह ही ने तुम्हें पैदा किया। फिर वही तुम्हें मौत देता है। और तुममें से कोई वह है जो अति वृद्धावस्था की ओर पहुँचा दिया जाता है, ताकि वह जान लेने के पश्चात् कुछ न जाने। निःसंदेह अल्लाह सब कुछ जानने वाला, सर्वशक्तिमान है।[26]

26. अर्थात वह पुनः जीवित भी कर सकता है।


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وَٱللَّهُ فَضَّلَ بَعۡضَكُمۡ عَلَىٰ بَعۡضࣲ فِی ٱلرِّزۡقِۚ فَمَا ٱلَّذِینَ فُضِّلُواْ بِرَاۤدِّی رِزۡقِهِمۡ عَلَىٰ مَا مَلَكَتۡ أَیۡمَـٰنُهُمۡ فَهُمۡ فِیهِ سَوَاۤءٌۚ أَفَبِنِعۡمَةِ ٱللَّهِ یَجۡحَدُونَ ﴿٧١﴾

और अल्लाह ने तुममें से कुछ को, कुछ पर जीविका में श्रेष्ठता प्रदान की है। तो वे लोग जिन्हें श्रेष्ठता प्रदान की गई है, किसी तरह अपनी जीविका अपने दासों की ओर फेरने वाले नहीं कि वे उसमें बराबर हो जाएँ। तो क्या वे अल्लाह के उपकारों का इनकार करते हैं?[27]

27. आयत का भावार्थ यह है कि जब वे स्वयं अपने दासों को अपने बराबर करने के लिए तैयार नहीं हैं, तो फिर अल्लाह की उत्पत्ति और उसके दासों को कैसे पूजा-अर्चना में उसके बराबर करते हैं? क्या यह अल्लाह के उपकारों का इनकार नहीं है?


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وَٱللَّهُ جَعَلَ لَكُم مِّنۡ أَنفُسِكُمۡ أَزۡوَ ٰ⁠جࣰا وَجَعَلَ لَكُم مِّنۡ أَزۡوَ ٰ⁠جِكُم بَنِینَ وَحَفَدَةࣰ وَرَزَقَكُم مِّنَ ٱلطَّیِّبَـٰتِۚ أَفَبِٱلۡبَـٰطِلِ یُؤۡمِنُونَ وَبِنِعۡمَتِ ٱللَّهِ هُمۡ یَكۡفُرُونَ ﴿٧٢﴾

और अल्लाह ने तुम्हारे लिए खुद तुम्हीं में से पत्नियाँ बनाईं। और तुम्हारे लिए तुम्हारी पत्नियों से बेटे तथा पोते बनाए। और तुम्हें पवित्र चीज़ों से रोज़ी प्रदान की। तो क्या वे असत्य को मानते हैं और अल्लाह की नेमत का वे इनकार करते हैं?


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وَیَعۡبُدُونَ مِن دُونِ ٱللَّهِ مَا لَا یَمۡلِكُ لَهُمۡ رِزۡقࣰا مِّنَ ٱلسَّمَـٰوَ ٰ⁠تِ وَٱلۡأَرۡضِ شَیۡـࣰٔا وَلَا یَسۡتَطِیعُونَ ﴿٧٣﴾

और वे अल्लाह के सिवा उनकी उपासना करते हैं, जो न उन्हें आकाशों तथा धरती से कुछ भी जीविका देने के मालिक हैं और न वे इसका सामर्थ्य ही रखते हैं।


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فَلَا تَضۡرِبُواْ لِلَّهِ ٱلۡأَمۡثَالَۚ إِنَّ ٱللَّهَ یَعۡلَمُ وَأَنتُمۡ لَا تَعۡلَمُونَ ﴿٧٤﴾

अतः अल्लाह के लिए उदाहरण (उपमा) न गढ़ो। निःसंदेह अल्लाह जानता है और तुम नहीं जानते।[28]

28. क्यों कि उसके समान कोई नहीं।


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۞ ضَرَبَ ٱللَّهُ مَثَلًا عَبۡدࣰا مَّمۡلُوكࣰا لَّا یَقۡدِرُ عَلَىٰ شَیۡءࣲ وَمَن رَّزَقۡنَـٰهُ مِنَّا رِزۡقًا حَسَنࣰا فَهُوَ یُنفِقُ مِنۡهُ سِرࣰّا وَجَهۡرًاۖ هَلۡ یَسۡتَوُۥنَۚ ٱلۡحَمۡدُ لِلَّهِۚ بَلۡ أَكۡثَرُهُمۡ لَا یَعۡلَمُونَ ﴿٧٥﴾

अल्लाह ने एक उदाहरण[29] दिया है; एक पराधीन दास है, जो किसी चीज़ का सामर्थ्य नहीं रखता। और एक वह व्यक्ति है, जिसे हमने अपनी ओर से उत्तम जीविका प्रदान की है। तो वह उसमें से गुप्त रूप से और खुल्लम-खुल्ला खर्च करता है। क्या दोनों समान हो सकते हैं? सब प्रशंसा अल्लाह[30] के लिए है। बल्कि उनमें से अधिकतर लोग (यह बात) नहीं जानते।

29. आयत का भावार्थ यह है कि जैसे पराधीन दास और धनी स्वतंत्र व्यक्ति को तुम बराबर नहीं समझते, ऐसे मुझे और इन मूर्तियों को कैसे बराबर समझ रहे हो, जो एक मक्खी भी पैदा नहीं कर सकतीं। और यदि मक्खी उनका चढ़ावा ले भागे, तो वे छीन भी नहीं सकतीं? इससे बड़ा अत्याचार क्या हो सकता है? 30. अर्थात अल्लाह के सिवा तुम्हारे पूज्यों में से कोई प्रशंसा के लायक़ नहीं है।


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وَضَرَبَ ٱللَّهُ مَثَلࣰا رَّجُلَیۡنِ أَحَدُهُمَاۤ أَبۡكَمُ لَا یَقۡدِرُ عَلَىٰ شَیۡءࣲ وَهُوَ كَلٌّ عَلَىٰ مَوۡلَىٰهُ أَیۡنَمَا یُوَجِّههُّ لَا یَأۡتِ بِخَیۡرٍ هَلۡ یَسۡتَوِی هُوَ وَمَن یَأۡمُرُ بِٱلۡعَدۡلِ وَهُوَ عَلَىٰ صِرَ ٰ⁠طࣲ مُّسۡتَقِیمࣲ ﴿٧٦﴾

तथा अल्लाह ने एक (और) उदाहरण[31] दिया है; दो व्यक्ति हैं। जिनमें से एक गूँगा है। वह कुछ करने की योग्यता नहीं रखता और वह अपने मालिक पर बोझ है। वह उसे जहाँ भी भेजता है, कोई भलाई लेकर नहीं आता। तो क्या यह और वह व्यक्ति बराबर हैं, जो न्याय का आदेश देता है और वह (स्वयं) सीधे मार्ग पर है?

31. यह दूसरा उदाहरण है जो मूर्तियों का दिया है। जो गूँगी-बहरी होती हैं।


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وَلِلَّهِ غَیۡبُ ٱلسَّمَـٰوَ ٰ⁠تِ وَٱلۡأَرۡضِۚ وَمَاۤ أَمۡرُ ٱلسَّاعَةِ إِلَّا كَلَمۡحِ ٱلۡبَصَرِ أَوۡ هُوَ أَقۡرَبُۚ إِنَّ ٱللَّهَ عَلَىٰ كُلِّ شَیۡءࣲ قَدِیرࣱ ﴿٧٧﴾

और अल्लाह ही के पास आकाशों तथा धरती की छिपी[32] बातों का ज्ञान है। और क़ियामत का मामला तो बस पलक झपकने जैसा[33] है या उससे भी अधिक निकट है। निःसंदेह अल्लाह हर चीज़ पर सर्वशक्तिमान है।

32. अर्थात गुप्त तथ्यों का। 33. अर्थात पल भर में आएगी


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وَٱللَّهُ أَخۡرَجَكُم مِّنۢ بُطُونِ أُمَّهَـٰتِكُمۡ لَا تَعۡلَمُونَ شَیۡـࣰٔا وَجَعَلَ لَكُمُ ٱلسَّمۡعَ وَٱلۡأَبۡصَـٰرَ وَٱلۡأَفۡـِٔدَةَ لَعَلَّكُمۡ تَشۡكُرُونَ ﴿٧٨﴾

और अल्लाह ने तुम्हें तुम्हारी माताओं के पेटों से इस हाल में निकाला कि तुम कुछ न जानते थे। और उसने तुम्हारे लिए कान और आँखें और दिल बनाए, ताकि तुम शुक्रिया अदा करो।


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أَلَمۡ یَرَوۡاْ إِلَى ٱلطَّیۡرِ مُسَخَّرَ ٰ⁠تࣲ فِی جَوِّ ٱلسَّمَاۤءِ مَا یُمۡسِكُهُنَّ إِلَّا ٱللَّهُۚ إِنَّ فِی ذَ ٰ⁠لِكَ لَـَٔایَـٰتࣲ لِّقَوۡمࣲ یُؤۡمِنُونَ ﴿٧٩﴾

क्या उन्होंने पक्षियों की ओर नहीं देखा कि वे अंतरिक्ष में वशीभूत हैं? उन्हें अल्लाह ही थामता[34] है। निःसंदेह इसमें उन लोगों के लिए बहुत-सी निशानियाँ हैं, जो ईमान लाते हैं।

34. अर्थात पक्षियों को यह क्षमता अल्लाह ही ने दी है।


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وَٱللَّهُ جَعَلَ لَكُم مِّنۢ بُیُوتِكُمۡ سَكَنࣰا وَجَعَلَ لَكُم مِّن جُلُودِ ٱلۡأَنۡعَـٰمِ بُیُوتࣰا تَسۡتَخِفُّونَهَا یَوۡمَ ظَعۡنِكُمۡ وَیَوۡمَ إِقَامَتِكُمۡ وَمِنۡ أَصۡوَافِهَا وَأَوۡبَارِهَا وَأَشۡعَارِهَاۤ أَثَـٰثࣰا وَمَتَـٰعًا إِلَىٰ حِینࣲ ﴿٨٠﴾

और अल्लाह ने तुम्हारे लिए तुम्हारे घरों को निवास स्थान बनाए। और पशुओं की खालों से तुम्हारे लिए ऐसे घर[35] बनाए, जिन्हें तुम अपनी यात्रा के दिन तथा अपने ठहरने के दिन हल्का-फुल्का पाते हो। और उनके ऊन, उनके रोएँ और उनके बालों से (तुम्हारे लिए) विभिन्न वस्तुएँ और एक निर्धारित समय तक के लिए लाभ के सामान (बनाए)।

35. अर्थात चमड़ों के खेमे।


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وَٱللَّهُ جَعَلَ لَكُم مِّمَّا خَلَقَ ظِلَـٰلࣰا وَجَعَلَ لَكُم مِّنَ ٱلۡجِبَالِ أَكۡنَـٰنࣰا وَجَعَلَ لَكُمۡ سَرَ ٰ⁠بِیلَ تَقِیكُمُ ٱلۡحَرَّ وَسَرَ ٰ⁠بِیلَ تَقِیكُم بَأۡسَكُمۡۚ كَذَ ٰ⁠لِكَ یُتِمُّ نِعۡمَتَهُۥ عَلَیۡكُمۡ لَعَلَّكُمۡ تُسۡلِمُونَ ﴿٨١﴾

और अल्लाह ही ने तुम्हारे लिए अपनी पैदा की हुई चीज़ों की छाया बनाई, और तुम्हारे लिए पर्वतों में छिपने के स्थान बनाए, और तुम्हारे लिए ऐसे वस्त्र बनाए, जो तुम्हें गरमी से बचाते हैं, और ऐसे वस्त्र बनाए जो तुम्हें तुम्हारी लड़ाई में बचाते[36] हैं। इसी प्रकार, वह तुमपर अपनी नेमत पूरी करता है, ताकि तुम आज्ञाकारी बनो।

36. अर्थात कवच आदि।


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فَإِن تَوَلَّوۡاْ فَإِنَّمَا عَلَیۡكَ ٱلۡبَلَـٰغُ ٱلۡمُبِینُ ﴿٨٢﴾

फिर यदि वे मुँह फेरें, तो आपका कार्य केवल स्पष्ट रूप से संदेश पहुँचा देना है।


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یَعۡرِفُونَ نِعۡمَتَ ٱللَّهِ ثُمَّ یُنكِرُونَهَا وَأَكۡثَرُهُمُ ٱلۡكَـٰفِرُونَ ﴿٨٣﴾

वे अल्लाह की नेमत को पहचानते हैं, फिर उसका इनकार करते हैं और उनमें से अधिकतर लोग अकृतज्ञ हैं।


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وَیَوۡمَ نَبۡعَثُ مِن كُلِّ أُمَّةࣲ شَهِیدࣰا ثُمَّ لَا یُؤۡذَنُ لِلَّذِینَ كَفَرُواْ وَلَا هُمۡ یُسۡتَعۡتَبُونَ ﴿٨٤﴾

और जिस दिन[37] हम प्रत्येक समुदाय से एक गवाह खड़ा[38] करेंगे, फिर काफ़िरों को अनुमति नहीं दी जाएगी और न उनसे क्षमा की याचना स्वीकार की जाएगी।

37. अर्थात प्रलय के दिन। 38. (देखिए : सूरतुन्-निसा, आयत : 41)


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وَإِذَا رَءَا ٱلَّذِینَ ظَلَمُواْ ٱلۡعَذَابَ فَلَا یُخَفَّفُ عَنۡهُمۡ وَلَا هُمۡ یُنظَرُونَ ﴿٨٥﴾

और जब अत्याचारी लोग यातना देख लेंगे, तो न उनकी यातना कुछ कम की जाएगी और न उन्हें अवसर दिया[39] जाएगा।

39. अर्थात तौबा करने का।


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وَإِذَا رَءَا ٱلَّذِینَ أَشۡرَكُواْ شُرَكَاۤءَهُمۡ قَالُواْ رَبَّنَا هَـٰۤؤُلَاۤءِ شُرَكَاۤؤُنَا ٱلَّذِینَ كُنَّا نَدۡعُواْ مِن دُونِكَۖ فَأَلۡقَوۡاْ إِلَیۡهِمُ ٱلۡقَوۡلَ إِنَّكُمۡ لَكَـٰذِبُونَ ﴿٨٦﴾

और जब मुश्रिक अपने (ठहराए हुए) साझियों को देखेंगे, तो कहेंगे : ऐ हमारे पालनहार! यही हमारे वे साझी हैं, जिन्हें हम तेरे सिवा पुकारा करते थे। तो वे (साझी) उनकी ओर यह बात फेंक मारेंगे कि निश्चय तुम बिलकुल झूठे हो।


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وَأَلۡقَوۡاْ إِلَى ٱللَّهِ یَوۡمَىِٕذٍ ٱلسَّلَمَۖ وَضَلَّ عَنۡهُم مَّا كَانُواْ یَفۡتَرُونَ ﴿٨٧﴾

उस दिन वे अल्लाह के आगे समर्पण कर देंगे और जो कुछ वे मिथ्यारोपण किया करते थे, वह सब उनसे गुम हो जाएगा।


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ٱلَّذِینَ كَفَرُواْ وَصَدُّواْ عَن سَبِیلِ ٱللَّهِ زِدۡنَـٰهُمۡ عَذَابࣰا فَوۡقَ ٱلۡعَذَابِ بِمَا كَانُواْ یُفۡسِدُونَ ﴿٨٨﴾

जिन लोगों ने कुफ़्र किया और अल्लाह की राह से रोका, हम उन्हें यातना पर यातना बढ़ाते जाएँगे, उस बिगाड़ के बदले, जो वे पैदा किया करते थे।


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وَیَوۡمَ نَبۡعَثُ فِی كُلِّ أُمَّةࣲ شَهِیدًا عَلَیۡهِم مِّنۡ أَنفُسِهِمۡۖ وَجِئۡنَا بِكَ شَهِیدًا عَلَىٰ هَـٰۤؤُلَاۤءِۚ وَنَزَّلۡنَا عَلَیۡكَ ٱلۡكِتَـٰبَ تِبۡیَـٰنࣰا لِّكُلِّ شَیۡءࣲ وَهُدࣰى وَرَحۡمَةࣰ وَبُشۡرَىٰ لِلۡمُسۡلِمِینَ ﴿٨٩﴾

और जिस दिन हम प्रत्येक समुदाय में उनपर उन्हीं में से एक गवाह खड़ा करेंगे। और आपको इन लोगों पर गवाह बनाकर लाएँगे।[40] और हमने आपपर यह पुस्तक (क़ुरआन) अवतरित की, जो प्रत्येक विषय का स्पष्टीकरण और मार्गदर्शन और दया और आज्ञाकारियों के लिए शुभ सूचना है।

40. (देखिए : सूरतुल-बक़रा, आयत :143)


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۞ إِنَّ ٱللَّهَ یَأۡمُرُ بِٱلۡعَدۡلِ وَٱلۡإِحۡسَـٰنِ وَإِیتَاۤىِٕ ذِی ٱلۡقُرۡبَىٰ وَیَنۡهَىٰ عَنِ ٱلۡفَحۡشَاۤءِ وَٱلۡمُنكَرِ وَٱلۡبَغۡیِۚ یَعِظُكُمۡ لَعَلَّكُمۡ تَذَكَّرُونَ ﴿٩٠﴾

निःसंदेह अल्लाह न्याय और उपकार और निकटवर्तियों को देने का आदेश देता है और अश्लीलता और बुराई और सरकशी से रोकता है। वह तुम्हें नसीहत करता है, ताकि तुम नसीहत हासिल करो।


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وَأَوۡفُواْ بِعَهۡدِ ٱللَّهِ إِذَا عَـٰهَدتُّمۡ وَلَا تَنقُضُواْ ٱلۡأَیۡمَـٰنَ بَعۡدَ تَوۡكِیدِهَا وَقَدۡ جَعَلۡتُمُ ٱللَّهَ عَلَیۡكُمۡ كَفِیلًاۚ إِنَّ ٱللَّهَ یَعۡلَمُ مَا تَفۡعَلُونَ ﴿٩١﴾

और अल्लाह की प्रतिज्ञा को पूरा करो, जब तुम परस्पर प्रतिज्ञा करो। तथा क़समों को उन्हें सुदृढ़ करने के पश्चात् मत तोड़ो, हालाँकि निश्चय तुमने अल्लाह को अपने आपपर ज़ामिन (गवाह) बनाया है। निःसंदेह अल्लाह जानता है, जो कुछ तुम करते हो।


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وَلَا تَكُونُواْ كَٱلَّتِی نَقَضَتۡ غَزۡلَهَا مِنۢ بَعۡدِ قُوَّةٍ أَنكَـٰثࣰا تَتَّخِذُونَ أَیۡمَـٰنَكُمۡ دَخَلَۢا بَیۡنَكُمۡ أَن تَكُونَ أُمَّةٌ هِیَ أَرۡبَىٰ مِنۡ أُمَّةٍۚ إِنَّمَا یَبۡلُوكُمُ ٱللَّهُ بِهِۦۚ وَلَیُبَیِّنَنَّ لَكُمۡ یَوۡمَ ٱلۡقِیَـٰمَةِ مَا كُنتُمۡ فِیهِ تَخۡتَلِفُونَ ﴿٩٢﴾

और उस स्त्री की तरह न बन जाओ, जिसने अपना सूत मज़बूत कातने के बाद उधेड़ दिया। तुम अपनी क़समों को परस्पर धोखा देने का माध्यम बनाते हो, ताकि एक समुदाय दूसरे समुदाय से अधिक हो जाए। अल्लाह इसके[41] द्वारा तुम्हारी परीक्षा लेता है। और निश्चय क़ियामत के दिन वह तुम्हारे लिए उसे अवश्य स्पष्ट कर देगा, जिसमें तुम मतभेद किया करते थे।

41. अर्थात किसी समुदाय से समझौता करके विश्वासघात न किया जाए कि दूसरे समुदाय से अधिक लाभ मिलने पर समझौता तोड़ दिया जाए।


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وَلَوۡ شَاۤءَ ٱللَّهُ لَجَعَلَكُمۡ أُمَّةࣰ وَ ٰ⁠حِدَةࣰ وَلَـٰكِن یُضِلُّ مَن یَشَاۤءُ وَیَهۡدِی مَن یَشَاۤءُۚ وَلَتُسۡـَٔلُنَّ عَمَّا كُنتُمۡ تَعۡمَلُونَ ﴿٩٣﴾

और यदि अल्लाह चाहता, तो निश्चय तुम्हें एक ही समुदाय बना देता। परंतु वह जिसे चाहता है, राह से भटका देता है और जिसे चाहता है, सीधा रास्ता दिखा देता है। और निश्चय तुमसे उसके बारे में अवश्य पूछा जाएगा, जो तुम किया करते थे।


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وَلَا تَتَّخِذُوۤاْ أَیۡمَـٰنَكُمۡ دَخَلَۢا بَیۡنَكُمۡ فَتَزِلَّ قَدَمُۢ بَعۡدَ ثُبُوتِهَا وَتَذُوقُواْ ٱلسُّوۤءَ بِمَا صَدَدتُّمۡ عَن سَبِیلِ ٱللَّهِ وَلَكُمۡ عَذَابٌ عَظِیمࣱ ﴿٩٤﴾

और अपनी क़समों को आपस में धोखे का साधन न बनाओ। कहीं ऐसा न हो कि कोई क़दम जमने के बाद फिसल[42] जाए और तुम्हें अल्लाह के मार्ग से रोकने के कारण बुरा परिणाम चखना पड़े और तुम्हारे लिए (परलोक में) बड़ी यातना हो।

42. अर्थात ऐसा न हो कि कोई व्यक्ति इस्लाम की सत्यता को स्वीकार करने के पश्चात् केवल तुम्हारे दुराचार को देखकर इस्लाम से फिर जाए। और तुम्हारे समुदाय में सम्मिलित होने से रुक जाए। अन्यथा तुम्हारा व्यवहार भी दूसरों से कुछ भिन्न नहीं है।


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وَلَا تَشۡتَرُواْ بِعَهۡدِ ٱللَّهِ ثَمَنࣰا قَلِیلًاۚ إِنَّمَا عِندَ ٱللَّهِ هُوَ خَیۡرࣱ لَّكُمۡ إِن كُنتُمۡ تَعۡلَمُونَ ﴿٩٥﴾

और अल्लाह की प्रतिज्ञा को थोड़ी सी कीमत के लिए न बेचो।[43] निःसंदेह जो अल्लाह के पास है, वही तुम्हारे लिए उत्तम है, यदि तुम जानते हो।

43. अर्थात सांसारिक लाभ के लिए वचन भंग न करो। (देखिए : सूरतुल आराफ़, आयत : 172)


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مَا عِندَكُمۡ یَنفَدُ وَمَا عِندَ ٱللَّهِ بَاقࣲۗ وَلَنَجۡزِیَنَّ ٱلَّذِینَ صَبَرُوۤاْ أَجۡرَهُم بِأَحۡسَنِ مَا كَانُواْ یَعۡمَلُونَ ﴿٩٦﴾

जो तुम्हारे पास है, वह ख़त्म हो जाएगा, और जो अल्लाह के पास है, वह बाकी रहने वाला है। और निश्चय हम धैर्य से काम लेने वालों को उनका बदला उन उत्तम कार्यों के अनुसार प्रदान करेंगे जो वे किया करते थे।


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مَنۡ عَمِلَ صَـٰلِحࣰا مِّن ذَكَرٍ أَوۡ أُنثَىٰ وَهُوَ مُؤۡمِنࣱ فَلَنُحۡیِیَنَّهُۥ حَیَوٰةࣰ طَیِّبَةࣰۖ وَلَنَجۡزِیَنَّهُمۡ أَجۡرَهُم بِأَحۡسَنِ مَا كَانُواْ یَعۡمَلُونَ ﴿٩٧﴾

जो भी अच्छा कार्य करे, नर हो अथवा नारी, जबकि वह ईमान वाला हो, तो हम उसे अच्छा जीवन व्यतीत कराएँगे। और निश्चय हम उन्हें उनका बदला उन उत्तम कार्यों के अनुसार प्रदान करेंगे जो वे किया करते थे।


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فَإِذَا قَرَأۡتَ ٱلۡقُرۡءَانَ فَٱسۡتَعِذۡ بِٱللَّهِ مِنَ ٱلشَّیۡطَـٰنِ ٱلرَّجِیمِ ﴿٩٨﴾

अतः जब तुम क़ुरआन पढ़ने लगो, तो धिक्कारे हुए शैतान से अल्लाह की शरण[44] माँग लिया करो।

44. अर्थात "अऊज़ुबिल्लाहि मिनश्शैतानिर्रजीम" पढ़ लिया करो।


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إِنَّهُۥ لَیۡسَ لَهُۥ سُلۡطَـٰنٌ عَلَى ٱلَّذِینَ ءَامَنُواْ وَعَلَىٰ رَبِّهِمۡ یَتَوَكَّلُونَ ﴿٩٩﴾

निःसंदेह तथ्य यह है कि उसका उन लोगों पर कोई प्रभुत्व नहीं, जो ईमान लाए और केवल अपने पालनहार पर भरोसा रखते हैं।


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إِنَّمَا سُلۡطَـٰنُهُۥ عَلَى ٱلَّذِینَ یَتَوَلَّوۡنَهُۥ وَٱلَّذِینَ هُم بِهِۦ مُشۡرِكُونَ ﴿١٠٠﴾

उसका वश तो केवल उन लोगों पर है, जो उससे दोस्ती रखते हैं और जो उसके कारण शिर्क करने वाले हैं।


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وَإِذَا بَدَّلۡنَاۤ ءَایَةࣰ مَّكَانَ ءَایَةࣲ وَٱللَّهُ أَعۡلَمُ بِمَا یُنَزِّلُ قَالُوۤاْ إِنَّمَاۤ أَنتَ مُفۡتَرِۭۚ بَلۡ أَكۡثَرُهُمۡ لَا یَعۡلَمُونَ ﴿١٠١﴾

और जब हम किसी आयत के स्थान पर कोई आयत बदलकर लाते हैं, और अल्लाह अधिक जानने वाला है, जो वह उतारता है, तो वे कहते हैं : तू तो गढ़कर लाने वाला है, बल्कि उनके अधिकतर लोग नहीं जानते।


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قُلۡ نَزَّلَهُۥ رُوحُ ٱلۡقُدُسِ مِن رَّبِّكَ بِٱلۡحَقِّ لِیُثَبِّتَ ٱلَّذِینَ ءَامَنُواْ وَهُدࣰى وَبُشۡرَىٰ لِلۡمُسۡلِمِینَ ﴿١٠٢﴾

आप कह दें कि इसे रूह़ुल क़ुदुस[45] ने आपके पालनहार की ओर से सत्य के साथ थोड़ा-थोड़ा करके उतारा है। ताकि उन लोगों के पाँव जमा दे, जो ईमान लाए। तथा आज्ञाकारियों के लिए मार्गदर्शन और शुभ सूचना हो।

45. इसका अर्थ पवित्रात्मा है। जो जिब्रील अलैहिस्सलाम की उपाधि है। यही वह फ़रिश्ता है जो वह़्य लाता था।


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وَلَقَدۡ نَعۡلَمُ أَنَّهُمۡ یَقُولُونَ إِنَّمَا یُعَلِّمُهُۥ بَشَرࣱۗ لِّسَانُ ٱلَّذِی یُلۡحِدُونَ إِلَیۡهِ أَعۡجَمِیࣱّ وَهَـٰذَا لِسَانٌ عَرَبِیࣱّ مُّبِینٌ ﴿١٠٣﴾

तथा निःसंदेह हम जानते हैं कि वे (काफ़िर) कहते हैं : इसे तो एक मानव ही सिखाता[46] है। उस व्यक्ति की भाषा जिसकी ओर वे ग़लत निस्बत कर रहे हैं, अजमी (ग़ैर-अरबी)[47] है और यह स्पष्ट अरबी भाषा है।

46. इस आयत में मक्का के मिश्रणवादियों के इस आरोप का खंडन किया गया है कि क़ुरआन आपको एक विदेशी सिखा रहा है। 47. अर्थात मक्का वाले जिसे कहते हैं कि वह मुह़म्मद को क़ुरआन सिखाता है उसकी भाषा तो अरबी है ही नहीं, तो वह आपको क़ुरआन कैसे सिखा सकता है, जो बहुत उत्तम तथा श्रेष्ठ अरबी भाषा में है। क्या वे इतना भी नहीं समझते?


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إِنَّ ٱلَّذِینَ لَا یُؤۡمِنُونَ بِـَٔایَـٰتِ ٱللَّهِ لَا یَهۡدِیهِمُ ٱللَّهُ وَلَهُمۡ عَذَابٌ أَلِیمٌ ﴿١٠٤﴾

निःसंदेह जो लोग अल्लाह की आयतों पर ईमान नहीं लाते, अल्लाह उन्हें सीधा रास्ता नहीं दिखाता और उन्हीं के लिए दुःखदायी यातना है।


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إِنَّمَا یَفۡتَرِی ٱلۡكَذِبَ ٱلَّذِینَ لَا یُؤۡمِنُونَ بِـَٔایَـٰتِ ٱللَّهِۖ وَأُوْلَـٰۤىِٕكَ هُمُ ٱلۡكَـٰذِبُونَ ﴿١٠٥﴾

झूठ तो वही लोग गढ़ते हैं, जो अल्लाह की आयतों पर ईमान नहीं रखते और वही लोग झूठे हैं।


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مَن كَفَرَ بِٱللَّهِ مِنۢ بَعۡدِ إِیمَـٰنِهِۦۤ إِلَّا مَنۡ أُكۡرِهَ وَقَلۡبُهُۥ مُطۡمَىِٕنُّۢ بِٱلۡإِیمَـٰنِ وَلَـٰكِن مَّن شَرَحَ بِٱلۡكُفۡرِ صَدۡرࣰا فَعَلَیۡهِمۡ غَضَبࣱ مِّنَ ٱللَّهِ وَلَهُمۡ عَذَابٌ عَظِیمࣱ ﴿١٠٦﴾

जिसने ईमान लाने के बाद अल्लाह के साथ कुफ़्र किया, सिवाय उसके जो इसके लिए विवश कर दिया गया हो और उसका दिल ईमान से संतुष्ट हो, लेकिन जिसने अपना सीना कुफ़्र के लिए खोल दिया[48] हो, तो ऐसे लोगों पर अल्लाह का प्रकोप है और उन्हीं के लिए बड़ी यातना है।

48. अर्थात स्वेच्छा से कुफ़्र किया हो।


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ذَ ٰ⁠لِكَ بِأَنَّهُمُ ٱسۡتَحَبُّواْ ٱلۡحَیَوٰةَ ٱلدُّنۡیَا عَلَى ٱلۡـَٔاخِرَةِ وَأَنَّ ٱللَّهَ لَا یَهۡدِی ٱلۡقَوۡمَ ٱلۡكَـٰفِرِینَ ﴿١٠٧﴾

यह इसलिए कि उन्होंने दुनिया के जीवन को आख़िरत की तुलना में प्रिय रखा। और यह कि अल्लाह काफ़िरों को सीधे मार्ग का सामर्थ्य नहीं देता।


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أُوْلَـٰۤىِٕكَ ٱلَّذِینَ طَبَعَ ٱللَّهُ عَلَىٰ قُلُوبِهِمۡ وَسَمۡعِهِمۡ وَأَبۡصَـٰرِهِمۡۖ وَأُوْلَـٰۤىِٕكَ هُمُ ٱلۡغَـٰفِلُونَ ﴿١٠٨﴾

ये वही लोग हैं, जिनके दिलों और उनके कानों और उनकी आँखों पर अल्लाह ने मुहर लगा दी है तथा यही लोग हैं जो बिल्कुल ग़ाफ़िल हैं।


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لَا جَرَمَ أَنَّهُمۡ فِی ٱلۡـَٔاخِرَةِ هُمُ ٱلۡخَـٰسِرُونَ ﴿١٠٩﴾

कोई संदेह नहीं कि यही लोग आख़िरत में घाटा उठाने वाले हैं।


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ثُمَّ إِنَّ رَبَّكَ لِلَّذِینَ هَاجَرُواْ مِنۢ بَعۡدِ مَا فُتِنُواْ ثُمَّ جَـٰهَدُواْ وَصَبَرُوۤاْ إِنَّ رَبَّكَ مِنۢ بَعۡدِهَا لَغَفُورࣱ رَّحِیمࣱ ﴿١١٠﴾

फिर निःसंदेह आपका पालनहार उन लोगों[49] के लिए जिन्होंने आज़माइशों का सामना करने के बाद हिजरत की, फिर जिहाद किया और धैर्य रखा, निश्चय आपका पालनहार इस (परीक्षा) के बाद बड़ा क्षमाशील, अत्यंत दयावान् है।

49. इनसे अभिप्रेत नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के वे अनुयायी हैं, जो मक्का से मदीना हिजरत कर गए।


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۞ یَوۡمَ تَأۡتِی كُلُّ نَفۡسࣲ تُجَـٰدِلُ عَن نَّفۡسِهَا وَتُوَفَّىٰ كُلُّ نَفۡسࣲ مَّا عَمِلَتۡ وَهُمۡ لَا یُظۡلَمُونَ ﴿١١١﴾

जिस दिन प्रत्येक व्यक्ति अपने ही लिए झगड़ता हुआ आएगा और प्रत्येक व्यक्ति को उसके कर्मों का पूरा बदला दिया जाएगा और उनपर अत्याचार नहीं किया जाएगा।


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وَضَرَبَ ٱللَّهُ مَثَلࣰا قَرۡیَةࣰ كَانَتۡ ءَامِنَةࣰ مُّطۡمَىِٕنَّةࣰ یَأۡتِیهَا رِزۡقُهَا رَغَدࣰا مِّن كُلِّ مَكَانࣲ فَكَفَرَتۡ بِأَنۡعُمِ ٱللَّهِ فَأَذَ ٰ⁠قَهَا ٱللَّهُ لِبَاسَ ٱلۡجُوعِ وَٱلۡخَوۡفِ بِمَا كَانُواْ یَصۡنَعُونَ ﴿١١٢﴾

अल्लाह ने एक बस्ती का उदाहरण दिया है, जो सुरक्षा और शांति वाली थी। उसकी रोज़ी प्रत्येक स्थान से आसानी के साथ पहुँच रही थी। फिर उसने अल्लाह की नेमतों की नाशुक्री की, तो अल्लाह ने उसे भूख और भय का वस्त्र[50] पहना दिया, उसके बदले जो वे[51] किया करते थे।

50. अर्थात उनपर भूख और भय की आपदाएँ छा गईं। 51. अर्थात उस बस्ती के निवासी। और इस बस्ती से अभिप्रेत मक्का है, जिनपर उनके कुफ़्र के कारण अकाल पड़ा।


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وَلَقَدۡ جَاۤءَهُمۡ رَسُولࣱ مِّنۡهُمۡ فَكَذَّبُوهُ فَأَخَذَهُمُ ٱلۡعَذَابُ وَهُمۡ ظَـٰلِمُونَ ﴿١١٣﴾

और निःसंदेह उनके पास उन्हीं में से एक रसूल[52] आया, तो उन्होंने उसे झुठला दिया। अतः उन्हें यातना ने इस हाल में पकड़ लिया कि वे अत्याचारी थे।

52. अर्थात मुह़म्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम मक्का के क़ुरैशी वंश से ही थे, फिर भी उन्होंने आपकी बात को नहीं माना।


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فَكُلُواْ مِمَّا رَزَقَكُمُ ٱللَّهُ حَلَـٰلࣰا طَیِّبࣰا وَٱشۡكُرُواْ نِعۡمَتَ ٱللَّهِ إِن كُنتُمۡ إِیَّاهُ تَعۡبُدُونَ ﴿١١٤﴾

अतः उस हलाल एवं पवित्र रोज़ी में से खाओ, जो अल्लाह ने तुम्हें प्रदान की है और अल्लाह की नेमत का शुक्रिया अदा करो, यदि तुम उसी की इबादत करते हो।


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إِنَّمَا حَرَّمَ عَلَیۡكُمُ ٱلۡمَیۡتَةَ وَٱلدَّمَ وَلَحۡمَ ٱلۡخِنزِیرِ وَمَاۤ أُهِلَّ لِغَیۡرِ ٱللَّهِ بِهِۦۖ فَمَنِ ٱضۡطُرَّ غَیۡرَ بَاغࣲ وَلَا عَادࣲ فَإِنَّ ٱللَّهَ غَفُورࣱ رَّحِیمࣱ ﴿١١٥﴾

अल्लाह ने तुमपर जो चीज़ें हराम की हैं, वे यह हैं - मुर्दार, (बहता) रक्त, सूअर का मांस तथा वह वस्तु जिसपर अल्लाह के सिवा किसी और का नाम पुकारा जाए।[53] फिर जो (इन वस्तुओं को खाने पर) विवश हो जाए, जबकि वह न (हराम के उपयोग की) इच्छा रखता हो और न आवश्यकता की सीमा से आगे[54] बढ़ रहा हो, तो उसपर कोई दोष नहीं। अल्लाह अति क्षमाशील, अत्यंत दयावान् है।

53. अर्थात अल्लाह के सिवा अन्य के नाम से बलि दिया गया पशु। ह़दीस में है कि जो अल्लाह के सिवा दूसरे के नाम से बलि दे उसपर अल्लाह की धिक्कार है। (सह़ीह़ बुख़ारी : 1978) 54. (देखिए : सूरतुल-बक़रा, आयत : 173, सूरतुल-माइदा, आयत : 3, तथा सूरतुल-अन्आम, आयत : 145)


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وَلَا تَقُولُواْ لِمَا تَصِفُ أَلۡسِنَتُكُمُ ٱلۡكَذِبَ هَـٰذَا حَلَـٰلࣱ وَهَـٰذَا حَرَامࣱ لِّتَفۡتَرُواْ عَلَى ٱللَّهِ ٱلۡكَذِبَۚ إِنَّ ٱلَّذِینَ یَفۡتَرُونَ عَلَى ٱللَّهِ ٱلۡكَذِبَ لَا یُفۡلِحُونَ ﴿١١٦﴾

और उसके कारण जो तुम्हारी ज़बानें झूठ कहती हैं, मत कहो कि यह हलाल (वैध) है और यह हराम (निषिद्ध) है, ताकि अल्लाह पर झूठ[55] गढ़ो। निःसंदेह जो लोग अल्लाह पर झूठ गढ़ते हैं, वे (कभी) सफल नहीं होते।

55. क्योंकि ह़लाल और ह़राम करने का अधिकार केवल अल्लाह को है।


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مَتَـٰعࣱ قَلِیلࣱ وَلَهُمۡ عَذَابٌ أَلِیمࣱ ﴿١١٧﴾

बहुत थोड़ा लाभ है और उनके लिए दर्दनाक यातना है।


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وَعَلَى ٱلَّذِینَ هَادُواْ حَرَّمۡنَا مَا قَصَصۡنَا عَلَیۡكَ مِن قَبۡلُۖ وَمَا ظَلَمۡنَـٰهُمۡ وَلَـٰكِن كَانُوۤاْ أَنفُسَهُمۡ یَظۡلِمُونَ ﴿١١٨﴾

और यहूदियों पर हमने वे चीज़ें हराम कीं, जिनका वर्णन हम इससे पहले[56] आपके सामने कर चुके हैं। और हमने उनपर अत्याचार नहीं किया, परन्तु वे अपने आप ही पर अत्याचार करते थे।

56. इससे संकेत सूरतुल-अन्आम, आयत : 26 की ओर है।


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ثُمَّ إِنَّ رَبَّكَ لِلَّذِینَ عَمِلُواْ ٱلسُّوۤءَ بِجَهَـٰلَةࣲ ثُمَّ تَابُواْ مِنۢ بَعۡدِ ذَ ٰ⁠لِكَ وَأَصۡلَحُوۤاْ إِنَّ رَبَّكَ مِنۢ بَعۡدِهَا لَغَفُورࣱ رَّحِیمٌ ﴿١١٩﴾

फिर निःसंदेह आपका पालनहार उन लोगों के लिए, जो अज्ञानतावश बुराई कर बैठे, फिर उसके बाद तौबा कर ली और अपना सुधार कर लिया, तो निश्चय ही आपका पालनहार इसके बाद अति क्षमाशील, बड़ा दयावान् है।


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إِنَّ إِبۡرَ ٰ⁠هِیمَ كَانَ أُمَّةࣰ قَانِتࣰا لِّلَّهِ حَنِیفࣰا وَلَمۡ یَكُ مِنَ ٱلۡمُشۡرِكِینَ ﴿١٢٠﴾

निःसंदेह इबराहीम एक समुदाय[57] थे। वह अल्लाह के आज्ञाकारी, उसकी ओर एकाग्र थे। और बहुदेववादियों (मुश्रिकों) में से नहीं थे।

57. अर्थात वह अकेले संपूर्ण समुदाय थे। क्योंकि उनके वंश से दो बड़ी उम्मतें बनीं : एक बनी इसराईल, और दूसरी बनी इसमाईल जो बाद में अरब कहलाए। इसका एक दूसरा अर्थ मुखिया भी होता है।


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شَاكِرࣰا لِّأَنۡعُمِهِۚ ٱجۡتَبَىٰهُ وَهَدَىٰهُ إِلَىٰ صِرَ ٰ⁠طࣲ مُّسۡتَقِیمࣲ ﴿١٢١﴾

वह उसके अनुग्रहों के प्रति आभार प्रकट करने वाले थे। उस (अल्लाह) ने उन्हें चुन लिया और सीधे रास्ते की ओर उनका मार्गदर्शन किया।


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وَءَاتَیۡنَـٰهُ فِی ٱلدُّنۡیَا حَسَنَةࣰۖ وَإِنَّهُۥ فِی ٱلۡـَٔاخِرَةِ لَمِنَ ٱلصَّـٰلِحِینَ ﴿١٢٢﴾

और हमने उन्हें संसार में भलाई प्रदान की और निःसंदेह वह आख़िरत में भी निश्चय सदाचारियों में से हैं।


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ثُمَّ أَوۡحَیۡنَاۤ إِلَیۡكَ أَنِ ٱتَّبِعۡ مِلَّةَ إِبۡرَ ٰ⁠هِیمَ حَنِیفࣰاۖ وَمَا كَانَ مِنَ ٱلۡمُشۡرِكِینَ ﴿١٢٣﴾

फिर हमने (ऐ नबी!) आपकी ओर वह़्य की कि इबराहीम के धर्म का अनुसरण करें जो (एक अल्लाह की ओर) एकाग्र थे और वह बहुदेववादियों में से न थे।


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إِنَّمَا جُعِلَ ٱلسَّبۡتُ عَلَى ٱلَّذِینَ ٱخۡتَلَفُواْ فِیهِۚ وَإِنَّ رَبَّكَ لَیَحۡكُمُ بَیۡنَهُمۡ یَوۡمَ ٱلۡقِیَـٰمَةِ فِیمَا كَانُواْ فِیهِ یَخۡتَلِفُونَ ﴿١٢٤﴾

सब्त' (शनिवार के दिन का सम्मान)[58] तो केवल उन लोगों पर अनिवार्य किया गया, जिन्होंने उसके विषय में मतभेद किया। और निःसंदेह आपका पालनहार उनके बीच क़ियामत के दिन निश्चय उस विषय में फ़ैसला करेगा, जिसमें वे मतभेद किया करते थे।

58. अर्थात सब्त का सम्मान जैसे इस्लाम में नहीं है, इसी प्रकार इबराहीम अलैहिस्स्लाम के धर्म में भी नहीं है। यह तो केवल उनके लिए निर्धारित किया गया, जिन्होंने विभेद करके जुमुआ के दिन की जगह सब्त का दिन निर्धारित कर लिया। तो अल्लाह ने उनके लिए उसी का सम्मान अनिवार्य कर दिया कि इसमें शिकार न करो। (देखिए : सूरतुल-आराफ़, आयत : 163)


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ٱدۡعُ إِلَىٰ سَبِیلِ رَبِّكَ بِٱلۡحِكۡمَةِ وَٱلۡمَوۡعِظَةِ ٱلۡحَسَنَةِۖ وَجَـٰدِلۡهُم بِٱلَّتِی هِیَ أَحۡسَنُۚ إِنَّ رَبَّكَ هُوَ أَعۡلَمُ بِمَن ضَلَّ عَن سَبِیلِهِۦ وَهُوَ أَعۡلَمُ بِٱلۡمُهۡتَدِینَ ﴿١٢٥﴾

(ऐ नबी!) आप उन्हें अपने पालनहार के मार्ग (इस्लाम) की ओर हिकमत तथा सदुपदेश के साथ बुलाएँ और उनसे ऐसे ढंग से वाद-विवाद करें, जो सबसे उत्तम है। निःसंदेह आपका पालनहार उसे सबसे अधिक जानने वाला है, जो उसके मार्ग से भटक गया और वही सीधे मार्ग पर चलने वालों को भी अधिक जानने वाला है।


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وَإِنۡ عَاقَبۡتُمۡ فَعَاقِبُواْ بِمِثۡلِ مَا عُوقِبۡتُم بِهِۦۖ وَلَىِٕن صَبَرۡتُمۡ لَهُوَ خَیۡرࣱ لِّلصَّـٰبِرِینَ ﴿١٢٦﴾

और यदि तुम बदला लो, तो उतना ही बदला लो जितना तुम्हें कष्ट पहुँचाया गया है। और निःसंदेह यदि तुम सब्र करो तो निश्चय वह सब्र करने वालों के लिए बेहतर है।


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وَٱصۡبِرۡ وَمَا صَبۡرُكَ إِلَّا بِٱللَّهِۚ وَلَا تَحۡزَنۡ عَلَیۡهِمۡ وَلَا تَكُ فِی ضَیۡقࣲ مِّمَّا یَمۡكُرُونَ ﴿١٢٧﴾

और (ऐ नबी!) आप सब्र करें। और आपका सब्र करना अल्लाह ही की तौफ़ीक़ से है। और उन पर शोक न करें तथा वे जो चालें चल रहे हैं, उनसे आप का दिल तंग न हो।


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إِنَّ ٱللَّهَ مَعَ ٱلَّذِینَ ٱتَّقَواْ وَّٱلَّذِینَ هُم مُّحۡسِنُونَ ﴿١٢٨﴾

निःसंदेह अल्लाह उन लोगों के साथ है, जो उससे डरते हैं और जो उत्तम कार्य करने वाले हैं।


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