Surah सूरा अल्-कह्फ़ - Al-Kahf

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Surah सूरा अल्-कह्फ़ - Al-Kahf - Aya count 110

ٱلۡحَمۡدُ لِلَّهِ ٱلَّذِیۤ أَنزَلَ عَلَىٰ عَبۡدِهِ ٱلۡكِتَـٰبَ وَلَمۡ یَجۡعَل لَّهُۥ عِوَجَاۜ ﴿١﴾

सब प्रशंसा अल्लाह ही के लिए है, जिसने अपने बंदे पर पुस्तक उतारी, और उसमें कोई टेढ़ नहीं रखी।


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قَیِّمࣰا لِّیُنذِرَ بَأۡسࣰا شَدِیدࣰا مِّن لَّدُنۡهُ وَیُبَشِّرَ ٱلۡمُؤۡمِنِینَ ٱلَّذِینَ یَعۡمَلُونَ ٱلصَّـٰلِحَـٰتِ أَنَّ لَهُمۡ أَجۡرًا حَسَنࣰا ﴿٢﴾

(बल्कि उसे) अति सीधा (बनाया)। ताकि वह (अल्लाह) अपनी ओर से आने वाली कठोर यातना से डराए, और उन ईमान वालों को जो अच्छे कार्य करते हैं, शुभ सूचना सुना दे कि उनके लिए अच्छा बदला है।


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مَّـٰكِثِینَ فِیهِ أَبَدࣰا ﴿٣﴾

जिसमें वे हमेशा रहने वाले होंगे।


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وَیُنذِرَ ٱلَّذِینَ قَالُواْ ٱتَّخَذَ ٱللَّهُ وَلَدࣰا ﴿٤﴾

और उन लोगों को डराए, जिन्होंने कहा कि अल्लाह ने कोई संतान बना रखी है।


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مَّا لَهُم بِهِۦ مِنۡ عِلۡمࣲ وَلَا لِـَٔابَاۤىِٕهِمۡۚ كَبُرَتۡ كَلِمَةࣰ تَخۡرُجُ مِنۡ أَفۡوَ ٰ⁠هِهِمۡۚ إِن یَقُولُونَ إِلَّا كَذِبࣰا ﴿٥﴾

न उन्हें इसका कुछ ज्ञान है और न उनके बाप-दादा को। बहुत बड़ी (गंभीर) बात है, जो उनके मुँह से निकल रही है। वे सरासर झूठ बोल रहे हैं।


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فَلَعَلَّكَ بَـٰخِعࣱ نَّفۡسَكَ عَلَىٰۤ ءَاثَـٰرِهِمۡ إِن لَّمۡ یُؤۡمِنُواْ بِهَـٰذَا ٱلۡحَدِیثِ أَسَفًا ﴿٦﴾

ऐसा लगता है कि यदि वे इस 'हदीस' (क़ुरआन) पर ईमान नहीं लाए, तो आप इनके पीछे दुःख से अपना प्राण ही खो देंगे।


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إِنَّا جَعَلۡنَا مَا عَلَى ٱلۡأَرۡضِ زِینَةࣰ لَّهَا لِنَبۡلُوَهُمۡ أَیُّهُمۡ أَحۡسَنُ عَمَلࣰا ﴿٧﴾

निःसंदेह जो कुछ धरती के ऊपर है, हमने उसे उसकी शोभा बनाया है। ताकि हम उनका परीक्षण करें कि उनमें कौन कर्म की दृष्टि से सबसे अच्छा है?


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وَإِنَّا لَجَـٰعِلُونَ مَا عَلَیۡهَا صَعِیدࣰا جُرُزًا ﴿٨﴾

और जो कुछ उस (धरती) के ऊपर है, निःसंदेह हम उसे चटियल मैदान कर देने[1] वाले हैं।

1. अर्थात प्रलय के दिन।


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أَمۡ حَسِبۡتَ أَنَّ أَصۡحَـٰبَ ٱلۡكَهۡفِ وَٱلرَّقِیمِ كَانُواْ مِنۡ ءَایَـٰتِنَا عَجَبًا ﴿٩﴾

(ऐ नबी!) क्या आपने समझ रखा है कि गुफा तथा शिलालेख वाले[2], हमारी अद्भुत निशानियों में से थे?[3]

2. कुछ भाष्यकारों ने लिखा है कि "रक़ीम" शब्द जिसका अर्थ शिलालेख किया गया है, एक बस्ती का नाम है। 3. अर्थात आकाशों तथा धरती की उत्पत्ति हमारी शक्ति का इससे भी बड़ा लक्षण है।


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إِذۡ أَوَى ٱلۡفِتۡیَةُ إِلَى ٱلۡكَهۡفِ فَقَالُواْ رَبَّنَاۤ ءَاتِنَا مِن لَّدُنكَ رَحۡمَةࣰ وَهَیِّئۡ لَنَا مِنۡ أَمۡرِنَا رَشَدࣰا ﴿١٠﴾

जब उन युवकों ने गुफा में शरण ली[4], तो उन्होंने कहा : ऐ हमारे पालनहार! हमें अपने पास से दया प्रदान कर और हमारे लिए हमारे मामले में मार्गदर्शन (सीधे रास्ते पर चलने) को आसान कर दे।

4. अर्थात नवयुवकों ने अपने ईमान की रक्षा के लिए गुफा में शरण ली। जिस गुफा के ऊपर आगे चलकर उनके नामों का स्मारक शिलालेख लगा दिया गया था। उल्लेखों से यह विदित होता है कि युवक ईसा अलैहिस्सलाम के अनुयायियों में से थे। और रोम के मुश्रिक राजा की प्रजा थे। जो एकेश्वरवादियों का शत्रु था। और उन्हें मूर्ति पूजा के लिए बाध्य करता था। इसलिए वे अपने ईमान की रक्षा के लिए जार्डन की गुफा में चले गए, जो नये शोध के अनुसार जार्डन की राजधानी से 8 की◦ मी◦ दूर (रजीब) में अवशेषज्ञों को मिली है। जिस गुफा के ऊपर सात स्तंभों की मस्जिद के खँडहर और गुफा के भीतर आठ समाधियाँ तथा उत्तरी दीवार पर पुरानी यूनानी लिपि में एक शिलालेख मिला है और उसपर किसी जीव का चित्र भी है। जो कुत्ते का चित्र बताया जाता है और यह 'रजीब' ही 'रक़ीम' का बदला हुआ रूप है। (देखिए : भाष्य दावतुल क़ुरआन : 2/983)


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فَضَرَبۡنَا عَلَىٰۤ ءَاذَانِهِمۡ فِی ٱلۡكَهۡفِ سِنِینَ عَدَدࣰا ﴿١١﴾

तो हमने उन्हें गुफा में सुला दिया कई वर्षों तक।


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ثُمَّ بَعَثۡنَـٰهُمۡ لِنَعۡلَمَ أَیُّ ٱلۡحِزۡبَیۡنِ أَحۡصَىٰ لِمَا لَبِثُوۤاْ أَمَدࣰا ﴿١٢﴾

फिर हमने उन्हें (नींद से) उठाया, ताकि हम जान लें कि दोनों समूहों में से कौन उस अवधि को अधिक याद रखने वाला है, जो वे ठहरे?


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نَّحۡنُ نَقُصُّ عَلَیۡكَ نَبَأَهُم بِٱلۡحَقِّۚ إِنَّهُمۡ فِتۡیَةٌ ءَامَنُواْ بِرَبِّهِمۡ وَزِدۡنَـٰهُمۡ هُدࣰى ﴿١٣﴾

हम आपसे उनका हाल ठीक-ठीक बयान करते हैं। निःसंदेह, वे कुछ युवक थे, जो अपने पालनहार पर ईमान लाए और हमने उन्हें हिदायत में अधिक कर दिया।


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وَرَبَطۡنَا عَلَىٰ قُلُوبِهِمۡ إِذۡ قَامُواْ فَقَالُواْ رَبُّنَا رَبُّ ٱلسَّمَـٰوَ ٰ⁠تِ وَٱلۡأَرۡضِ لَن نَّدۡعُوَاْ مِن دُونِهِۦۤ إِلَـٰهࣰاۖ لَّقَدۡ قُلۡنَاۤ إِذࣰا شَطَطًا ﴿١٤﴾

और हमने उनके दिलों को मज़बूत कर दिया, जब वे खड़े हुए, तो बोले : हमारा पालनहार तो आकाशों और धरती का पालनहार है। हम उसके सिवा किसी पूज्य को हरगिज़ नहीं पुकारेंगे। (यदि ऐसा किया) तो निश्चय ही हमने सत्य से हटी हुई बात कही।


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هَـٰۤؤُلَاۤءِ قَوۡمُنَا ٱتَّخَذُواْ مِن دُونِهِۦۤ ءَالِهَةࣰۖ لَّوۡلَا یَأۡتُونَ عَلَیۡهِم بِسُلۡطَـٰنِۭ بَیِّنࣲۖ فَمَنۡ أَظۡلَمُ مِمَّنِ ٱفۡتَرَىٰ عَلَى ٱللَّهِ كَذِبࣰا ﴿١٥﴾

ये हमारी जाति के लोग हैं। इन्होंने अल्लाह के सिवा अन्य पूज्य बना लिए हैं। ये उन (के पूज्य होने) पर कोई स्पष्ट प्रमाण क्यों नहीं लाते? फिर उससे बड़ा अत्याचारी कौन होगा, जो अल्लाह पर झूठ गढ़े?


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وَإِذِ ٱعۡتَزَلۡتُمُوهُمۡ وَمَا یَعۡبُدُونَ إِلَّا ٱللَّهَ فَأۡوُۥۤاْ إِلَى ٱلۡكَهۡفِ یَنشُرۡ لَكُمۡ رَبُّكُم مِّن رَّحۡمَتِهِۦ وَیُهَیِّئۡ لَكُم مِّنۡ أَمۡرِكُم مِّرۡفَقࣰا ﴿١٦﴾

और जब तुमने उनसे तथा अल्लाह के अतिरिक्त उनके पूज्यों से किनारा कर लिया, तो अब गुफा में शरण लो। तुम्हारा पालनहार तुम्हारे लिए अपनी कुछ दया खोल देगा, तथा तुम्हारे लिए तुम्हारे काम में कोई आसानी पैदा कर देगा।


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۞ وَتَرَى ٱلشَّمۡسَ إِذَا طَلَعَت تَّزَ ٰ⁠وَرُ عَن كَهۡفِهِمۡ ذَاتَ ٱلۡیَمِینِ وَإِذَا غَرَبَت تَّقۡرِضُهُمۡ ذَاتَ ٱلشِّمَالِ وَهُمۡ فِی فَجۡوَةࣲ مِّنۡهُۚ ذَ ٰ⁠لِكَ مِنۡ ءَایَـٰتِ ٱللَّهِۗ مَن یَهۡدِ ٱللَّهُ فَهُوَ ٱلۡمُهۡتَدِۖ وَمَن یُضۡلِلۡ فَلَن تَجِدَ لَهُۥ وَلِیࣰّا مُّرۡشِدࣰا ﴿١٧﴾

और तुम सूर्य को देखोगे, जब वह निकलता है, तो उनकी गुफा से दायीं ओर झुक (हट) जाता है और जब डूबता है, तो उनसे बायीं ओर कतरा जाता है और वे उस (गुफा) के एक विस्तृत स्थान में हैं। यह अल्लाह की निशानियों में से है। और जिसे अल्लाह मार्ग दिखा दे, वही मार्ग पाने वाला है और जिसे राह से हटा दे, तो तुम उसके लिए हरगिज़ कोई मार्ग दर्शाने वाला सहायक नहीं पाओगे।


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وَتَحۡسَبُهُمۡ أَیۡقَاظࣰا وَهُمۡ رُقُودࣱۚ وَنُقَلِّبُهُمۡ ذَاتَ ٱلۡیَمِینِ وَذَاتَ ٱلشِّمَالِۖ وَكَلۡبُهُم بَـٰسِطࣱ ذِرَاعَیۡهِ بِٱلۡوَصِیدِۚ لَوِ ٱطَّلَعۡتَ عَلَیۡهِمۡ لَوَلَّیۡتَ مِنۡهُمۡ فِرَارࣰا وَلَمُلِئۡتَ مِنۡهُمۡ رُعۡبࣰا ﴿١٨﴾

और तुम[5] उन्हें समझते कि जाग रहे हैं, जबकि वे सोए हुए थे। और हम उन्हें दायें तथा बायें फेरते रहे। और उनका कुत्ता गुफा की चौखट पर अपनी दोनों बाहें फैलाए हुए था। यदि तुम झाँककर देख लेते, तो पीठ फेरकर भाग जाते और उनसे भयभीत हो जाते।

5. इसमें किसी को भी संबोधित माना जा सकता है, जो उन्हें उस दशा में देख सके।


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وَكَذَ ٰ⁠لِكَ بَعَثۡنَـٰهُمۡ لِیَتَسَاۤءَلُواْ بَیۡنَهُمۡۚ قَالَ قَاۤىِٕلࣱ مِّنۡهُمۡ كَمۡ لَبِثۡتُمۡۖ قَالُواْ لَبِثۡنَا یَوۡمًا أَوۡ بَعۡضَ یَوۡمࣲۚ قَالُواْ رَبُّكُمۡ أَعۡلَمُ بِمَا لَبِثۡتُمۡ فَٱبۡعَثُوۤاْ أَحَدَكُم بِوَرِقِكُمۡ هَـٰذِهِۦۤ إِلَى ٱلۡمَدِینَةِ فَلۡیَنظُرۡ أَیُّهَاۤ أَزۡكَىٰ طَعَامࣰا فَلۡیَأۡتِكُم بِرِزۡقࣲ مِّنۡهُ وَلۡیَتَلَطَّفۡ وَلَا یُشۡعِرَنَّ بِكُمۡ أَحَدًا ﴿١٩﴾

और इसी प्रकार, हमने उन्हें जगा दिया, ताकि वे आपस में एक-दूसरे से पूछें। उनमें से एक कहने वाले ने कहा : तुम कितना समय ठहरे? उन्होंने कहा : हम एक दिन या दिन का कुछ हिस्सा ठहरे। (फिर) उन्होंने कहा : तुम्हारा पालनहार अधिक जानता है कि तुम कितना (समय) ठहरे। (अब) अपने में से किसी को अपना यह चाँदी का सिक्का देकर नगर की ओर भेजो। फिर वह देखे कि किसके पास अधिक स्वच्छ (पवित्र) भोजन है, तो वह उसमें से तुम्हारे लिए कुछ खाना ले आए, तथा वह नरमी व सावधानी बरते और तुम्हारे बारे में किसी को बिल्कुल ख़बर न होने दे।


Arabic explanations of the Qur’an:

إِنَّهُمۡ إِن یَظۡهَرُواْ عَلَیۡكُمۡ یَرۡجُمُوكُمۡ أَوۡ یُعِیدُوكُمۡ فِی مِلَّتِهِمۡ وَلَن تُفۡلِحُوۤاْ إِذًا أَبَدࣰا ﴿٢٠﴾

क्योंकि यदि वे तुम्हें जान जाएँगे, तो तुम्हें पथराव करके मार डालेंगे या तुम्हें अपने धर्म में लौटा लेंगे और उस समय तुम कभी सफल नहीं हो सकोगे।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَكَذَ ٰ⁠لِكَ أَعۡثَرۡنَا عَلَیۡهِمۡ لِیَعۡلَمُوۤاْ أَنَّ وَعۡدَ ٱللَّهِ حَقࣱّ وَأَنَّ ٱلسَّاعَةَ لَا رَیۡبَ فِیهَاۤ إِذۡ یَتَنَـٰزَعُونَ بَیۡنَهُمۡ أَمۡرَهُمۡۖ فَقَالُواْ ٱبۡنُواْ عَلَیۡهِم بُنۡیَـٰنࣰاۖ رَّبُّهُمۡ أَعۡلَمُ بِهِمۡۚ قَالَ ٱلَّذِینَ غَلَبُواْ عَلَىٰۤ أَمۡرِهِمۡ لَنَتَّخِذَنَّ عَلَیۡهِم مَّسۡجِدࣰا ﴿٢١﴾

और इसी प्रकार, हमने (लोगों को) उनसे अवगत करा दिया, ताकि वे जान लें कि अल्लाह का वादा सत्य है, और क़ियामत (के आने) में कोई संदेह[6] नहीं। (याद करो) जब वे[7] (उनके विषय में) आपस में विवाद करने लगे। कुछ लोगों ने कहा : उनपर कोई भवन निर्माण करा दो, उनका पालनहार उनके बारे में अधिक जानता है। जो लोग उनके मामले में प्रभावी रहे, उन्होंने कहा : हम तो उन (की गुफा के स्थान) पर अवश्य एक मस्जिद बनाएँगे।

6. जिसके आने पर सबको उनके कर्मों का फल दिया जाएगा। 7. अर्थात जब पुराने सिक्के और भाषा के कारण उनका भेद खुल गया और वहाँ के लोगों को उनकी कथा का ज्ञान हो गया, तो फिर वे अपनी गुफा ही में मर गए। और उनके विषय में यह विवाद उत्पन्न हो गया। यहाँ यह ज्ञातव्य है कि इस्लाम में समाधियों पर मस्जिद बनाना, और उसमें नमाज़ पढ़ना तथा उसपर कोई निर्माण करना अवैध है। जिसका पूरा विवरण ह़दीसों में मिलेगा। (सह़ीह़ बुख़ारी : 435, मुस्लिम : 531-32)


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سَیَقُولُونَ ثَلَـٰثَةࣱ رَّابِعُهُمۡ كَلۡبُهُمۡ وَیَقُولُونَ خَمۡسَةࣱ سَادِسُهُمۡ كَلۡبُهُمۡ رَجۡمَۢا بِٱلۡغَیۡبِۖ وَیَقُولُونَ سَبۡعَةࣱ وَثَامِنُهُمۡ كَلۡبُهُمۡۚ قُل رَّبِّیۤ أَعۡلَمُ بِعِدَّتِهِم مَّا یَعۡلَمُهُمۡ إِلَّا قَلِیلࣱۗ فَلَا تُمَارِ فِیهِمۡ إِلَّا مِرَاۤءࣰ ظَـٰهِرࣰا وَلَا تَسۡتَفۡتِ فِیهِم مِّنۡهُمۡ أَحَدࣰا ﴿٢٢﴾

अब कुछ[8] लोग कहेंगे : वे तीन हैं, उनका चौथा उनका कुत्ता है। और कुछ कहेंगे : वे पाँच हैं, उनका छठा उनका कुत्ता है। ये लोग अँधेरे में तीर चलाते हैं। और (कुछ लोग) कहेंगे : वे सात हैं, उनका आठवाँ उनका कुत्ता है। (ऐ नबी!) आप कह दें : मेरा पालनहार ही उनकी संख्या को भली-भाँति जानता है। उन्हें बहुत थोड़े लोगों के सिवा कोई नहीं जानता।[9] अतः आप उनके संबंध में बहस न करें, सिवाय सरसरी बहस के, और आप उनके विषय में इनमें से किसी से भी न पूछें।[10]

8. इनसे मुराद नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के युग के अह्ले किताब हैं। 9. भावार्थ यह है कि उनकी संख्या का सही ज्ञान तो अल्लाह ही को है, किंतु वास्तव में ध्यान देने की बात यह है कि इससे हमें क्या शिक्षा मिल रही है। 10. क्योंकि आपको उनके बारे में अल्लाह के बताने के कारण उन लोगों से अधिक ज्ञान है। और उनके पास कोई ज्ञान नहीं। इसलिए किसी से पूछने की आवश्यक्ता भी नहीं है।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَلَا تَقُولَنَّ لِشَاْیۡءٍ إِنِّی فَاعِلࣱ ذَ ٰ⁠لِكَ غَدًا ﴿٢٣﴾

और किसी चीज़ के बारे में हरगिज़ न कहें : निःसंदेह मैं इसे कल करने वाला हूँ।


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إِلَّاۤ أَن یَشَاۤءَ ٱللَّهُۚ وَٱذۡكُر رَّبَّكَ إِذَا نَسِیتَ وَقُلۡ عَسَىٰۤ أَن یَهۡدِیَنِ رَبِّی لِأَقۡرَبَ مِنۡ هَـٰذَا رَشَدࣰا ﴿٢٤﴾

परंतु यह कि अल्लाह[11] चाहे। तथा जब भूल जाएँ तो अपने पालनहार को याद करें और कहें : आशा है कि मेरा पालनहार मुझे हिदायत (भलाई) का इससे निकटतर मार्ग दिखा दे।

11. अर्थात भविष्य में कुछ करने का निश्चय करें, तो "इन् शा अल्लाह" कहें। अर्थता यदि अल्लाह ने चाहा तो।


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وَلَبِثُواْ فِی كَهۡفِهِمۡ ثَلَـٰثَ مِاْئَةࣲ سِنِینَ وَٱزۡدَادُواْ تِسۡعࣰا ﴿٢٥﴾

और वे अपनी गुफा में तीन सौ वर्ष रहे और नौ वर्ष और अधिक[12] रहे।

12. अर्थात सूर्य के वर्ष से तीन सौ वर्ष, और चाँद के वर्ष से नौ वर्ष अधिक गुफा में सोए रहे।


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قُلِ ٱللَّهُ أَعۡلَمُ بِمَا لَبِثُواْۖ لَهُۥ غَیۡبُ ٱلسَّمَـٰوَ ٰ⁠تِ وَٱلۡأَرۡضِۖ أَبۡصِرۡ بِهِۦ وَأَسۡمِعۡۚ مَا لَهُم مِّن دُونِهِۦ مِن وَلِیࣲّ وَلَا یُشۡرِكُ فِی حُكۡمِهِۦۤ أَحَدࣰا ﴿٢٦﴾

आप कह दें : अल्लाह ही उनके ठहरे रहने की अवधि को बेहतर जानता है। आकाशों तथा धरती की छिपी हुई बातें उसी के ज्ञान में हैं। वह क्या ही खूब देखने वाला और क्या ही खूब सुनने वाला है। न उसके सिवा उनका कोई सहायक है और न वह अपने शासन में किसी को साझी बनाता है।


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وَٱتۡلُ مَاۤ أُوحِیَ إِلَیۡكَ مِن كِتَابِ رَبِّكَۖ لَا مُبَدِّلَ لِكَلِمَـٰتِهِۦ وَلَن تَجِدَ مِن دُونِهِۦ مُلۡتَحَدࣰا ﴿٢٧﴾

और आपके पालनहार की किताब में से आपकी ओर जो वह़्य की गई है, उसे पढ़ते रहें। उसकी बातों को कोई बदलने वाला नहीं है। और आप उसके सिवा कोई शरण लेने की जगह हरगिज़ नहीं पाएँगे।


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وَٱصۡبِرۡ نَفۡسَكَ مَعَ ٱلَّذِینَ یَدۡعُونَ رَبَّهُم بِٱلۡغَدَوٰةِ وَٱلۡعَشِیِّ یُرِیدُونَ وَجۡهَهُۥۖ وَلَا تَعۡدُ عَیۡنَاكَ عَنۡهُمۡ تُرِیدُ زِینَةَ ٱلۡحَیَوٰةِ ٱلدُّنۡیَاۖ وَلَا تُطِعۡ مَنۡ أَغۡفَلۡنَا قَلۡبَهُۥ عَن ذِكۡرِنَا وَٱتَّبَعَ هَوَىٰهُ وَكَانَ أَمۡرُهُۥ فُرُطࣰا ﴿٢٨﴾

और अपने आपको उन लोगों के साथ रोके रखें, जो सुबह-शाम अपने पालनहार को पुकारते हैं। वे उसका चेहरा चाहते हैं। और सांसारिक जीवन की शोभा की चाह[13] में अपनी आँखों को उनसे न फेरें। और उसकी बात न मानें, जिसके दिल को हमने अपनी याद से ग़ाफ़िल कर दिया है, और वह अपनी इच्छा के पीछे लगा हुआ है, और उसका मामला हद से बढ़ा हुआ है।

13. भाष्यकारों ने लिखा है कि यह आयत उस समय उतरी जब मुश्रिक क़ुरैश के कुछ प्रमुखों ने नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से यह माँग की, कि आप अपने निर्धन अनुयायियों के साथ न रहें। तो हम आपके पास आकर आपकी बातें सुनेंगे। इसलिए अल्लाह ने आपको आदेश दिया कि इनका आदर किया जाए, ऐसा नहीं होना चाहिए कि इनकी उपेक्षा करके उन धनवानों की बात मानी जाए जो अल्लाह की याद से निश्चेत हैं।


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وَقُلِ ٱلۡحَقُّ مِن رَّبِّكُمۡۖ فَمَن شَاۤءَ فَلۡیُؤۡمِن وَمَن شَاۤءَ فَلۡیَكۡفُرۡۚ إِنَّاۤ أَعۡتَدۡنَا لِلظَّـٰلِمِینَ نَارًا أَحَاطَ بِهِمۡ سُرَادِقُهَاۚ وَإِن یَسۡتَغِیثُواْ یُغَاثُواْ بِمَاۤءࣲ كَٱلۡمُهۡلِ یَشۡوِی ٱلۡوُجُوهَۚ بِئۡسَ ٱلشَّرَابُ وَسَاۤءَتۡ مُرۡتَفَقًا ﴿٢٩﴾

आप कह दें : यह सत्य तुम्हारे पालनहार की ओर से है। अब जो चाहे, ईमान लाए और जो चाहे कुफ़्र करे। निःसंदेह हमने अत्याचारियों के लिए ऐसी आग तैयार कर रखी है, जिसकी दीवारें[14] उन्हें घेर लेंगी। और यदि वे फ़र्याद करेंगे, तो उन्हें ऐसा जल दिया जाएगा, जो तेल की तलछट जैसा होगा, जो चेहरों को भून डालेगा। वह क्या ही बुरा पेय है और वह क्या ही बुरा विश्राम स्थान है!

14. क़ुरआन में "सुरादिक़" शब्द प्रयुक्त हुआ है। जिसका अर्थ प्राचीर, अर्थात वह दीवार है जो नरक के चारों ओर बनाई गई है।


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إِنَّ ٱلَّذِینَ ءَامَنُواْ وَعَمِلُواْ ٱلصَّـٰلِحَـٰتِ إِنَّا لَا نُضِیعُ أَجۡرَ مَنۡ أَحۡسَنَ عَمَلًا ﴿٣٠﴾

निःसंदेह जो लोग ईमान लाए तथा अच्छे कार्य किए। निश्चय हम उसका प्रतिफल व्यर्थ नहीं करते, जिसने अच्छे कार्य किए।


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أُوْلَـٰۤىِٕكَ لَهُمۡ جَنَّـٰتُ عَدۡنࣲ تَجۡرِی مِن تَحۡتِهِمُ ٱلۡأَنۡهَـٰرُ یُحَلَّوۡنَ فِیهَا مِنۡ أَسَاوِرَ مِن ذَهَبࣲ وَیَلۡبَسُونَ ثِیَابًا خُضۡرࣰا مِّن سُندُسࣲ وَإِسۡتَبۡرَقࣲ مُّتَّكِـِٔینَ فِیهَا عَلَى ٱلۡأَرَاۤىِٕكِۚ نِعۡمَ ٱلثَّوَابُ وَحَسُنَتۡ مُرۡتَفَقࣰا ﴿٣١﴾

यही लोग हैं, जिनके लिए स्थायी बाग़ हैं, जिनके नीचे से नहरें बहती हैं। वहाँ उन्हें सोने के कंगन[15] पहनाए जाएँगे। तथा वे महीन और गाढ़े रेशम के हरे वस्त्र पहनेंगे। वहाँ तख़्तों पर तकिया लगाए हुए होंगे। यह क्या ही अच्छा बदला है और क्या ही अच्छा विश्राम स्थान है।

15. यह स्वर्ग वासियों का स्वर्ण कंगन है। किंतु संसार में इस्लाम की शिक्षानुसार पुरुषों के लिए सोने का कंगन पहनना ह़राम है।


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۞ وَٱضۡرِبۡ لَهُم مَّثَلࣰا رَّجُلَیۡنِ جَعَلۡنَا لِأَحَدِهِمَا جَنَّتَیۡنِ مِنۡ أَعۡنَـٰبࣲ وَحَفَفۡنَـٰهُمَا بِنَخۡلࣲ وَجَعَلۡنَا بَیۡنَهُمَا زَرۡعࣰا ﴿٣٢﴾

और (ऐ नबी!) आप उन्हें दो व्यक्तियों का एक उदाहरण दें; जिनमें से एक को हमने अंगूरों के दो बाग़ दिए और हमने दोनों को खजूरों के पेड़ों से घेर दिया और दोनों के बीच कुछ खेती रखी।


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كِلۡتَا ٱلۡجَنَّتَیۡنِ ءَاتَتۡ أُكُلَهَا وَلَمۡ تَظۡلِم مِّنۡهُ شَیۡـࣰٔاۚ وَفَجَّرۡنَا خِلَـٰلَهُمَا نَهَرࣰا ﴿٣٣﴾

दोनों बाग़ों ने अपने पूरे फल दिए और उसमें से कुछ कमी नहीं की। और हमने दोनों के बीच एक नहर जारी कर दी।


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وَكَانَ لَهُۥ ثَمَرࣱ فَقَالَ لِصَـٰحِبِهِۦ وَهُوَ یُحَاوِرُهُۥۤ أَنَا۠ أَكۡثَرُ مِنكَ مَالࣰا وَأَعَزُّ نَفَرࣰا ﴿٣٤﴾

और उसके पास बहुत-सा फल था। तो उसने अपने साथी से, जबकि वह उससे बात कर रहा था, कहा : मैं तुझसे धन-दौलत में अधिक हूँ तथा जत्थे में भी बढ़कर हूँ।


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وَدَخَلَ جَنَّتَهُۥ وَهُوَ ظَالِمࣱ لِّنَفۡسِهِۦ قَالَ مَاۤ أَظُنُّ أَن تَبِیدَ هَـٰذِهِۦۤ أَبَدࣰا ﴿٣٥﴾

और उसने अपने बाग़ में (इस हाल में) प्रवेश किया कि वह अपने आप पर अत्याचार करने वाला था। उसने कहा : मैं नहीं समझता कि इसका कभी विनाश होगा।


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وَمَاۤ أَظُنُّ ٱلسَّاعَةَ قَاۤىِٕمَةࣰ وَلَىِٕن رُّدِدتُّ إِلَىٰ رَبِّی لَأَجِدَنَّ خَیۡرࣰا مِّنۡهَا مُنقَلَبࣰا ﴿٣٦﴾

और न मैं यह समझता हूँ कि क़ियामत आने वाली है। और वाक़ई यदि मुझे अपने पालनहार की ओर लौटाया गया, तो निश्चय ही मैं ज़रूर इससे उत्तम लौटने का स्थान पाऊँगा।


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قَالَ لَهُۥ صَاحِبُهُۥ وَهُوَ یُحَاوِرُهُۥۤ أَكَفَرۡتَ بِٱلَّذِی خَلَقَكَ مِن تُرَابࣲ ثُمَّ مِن نُّطۡفَةࣲ ثُمَّ سَوَّىٰكَ رَجُلࣰا ﴿٣٧﴾

उसके साथी ने, जबकि वह उससे बातें कर रहा था, उससे कहा : क्या तूने उसके साथ कुफ़्र किया, जिसने तुझे तुच्छ मिट्टी से पैदा किया, फिर वीर्य से, फिर तुझे ठीक-ठाक एक पुरुष बना दिया?


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لَّـٰكِنَّا۠ هُوَ ٱللَّهُ رَبِّی وَلَاۤ أُشۡرِكُ بِرَبِّیۤ أَحَدࣰا ﴿٣٨﴾

लेकिन मैं, तो वह अल्लाह ही मेरा पालनहार है और मैं अपने पालनहार के साथ किसी को साझी नहीं बनाता।


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وَلَوۡلَاۤ إِذۡ دَخَلۡتَ جَنَّتَكَ قُلۡتَ مَا شَاۤءَ ٱللَّهُ لَا قُوَّةَ إِلَّا بِٱللَّهِۚ إِن تَرَنِ أَنَا۠ أَقَلَّ مِنكَ مَالࣰا وَوَلَدࣰا ﴿٣٩﴾

और जब तूने अपने बाग़ में प्रवेश किया, तो क्यों नहीं कहा : ''जो अल्लाह ने चाहा, अल्लाह की मदद के बिना कोई शक्ति नहीं'', यदि तू मुझे देखता है कि मैं धन तथा संतान में तुझसे कमतर हूँ।


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فَعَسَىٰ رَبِّیۤ أَن یُؤۡتِیَنِ خَیۡرࣰا مِّن جَنَّتِكَ وَیُرۡسِلَ عَلَیۡهَا حُسۡبَانࣰا مِّنَ ٱلسَّمَاۤءِ فَتُصۡبِحَ صَعِیدࣰا زَلَقًا ﴿٤٠﴾

तो आशा है कि मेरा पालनहार मुझे तेरे बाग़ से अच्छा प्रदान कर दे, और इस (बाग़) पर आकाश से कोई आपदा भेज दे, तो यह (चटियल) चिकनी भूमि बन जाए।


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أَوۡ یُصۡبِحَ مَاۤؤُهَا غَوۡرࣰا فَلَن تَسۡتَطِیعَ لَهُۥ طَلَبࣰا ﴿٤١﴾

या उसका पानी गहरा हो जाए, फिर तू उसे कभी तलाश न कर सकेगा।


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وَأُحِیطَ بِثَمَرِهِۦ فَأَصۡبَحَ یُقَلِّبُ كَفَّیۡهِ عَلَىٰ مَاۤ أَنفَقَ فِیهَا وَهِیَ خَاوِیَةٌ عَلَىٰ عُرُوشِهَا وَیَقُولُ یَـٰلَیۡتَنِی لَمۡ أُشۡرِكۡ بِرَبِّیۤ أَحَدࣰا ﴿٤٢﴾

(अंततः) उसका सारा फल मारा गया।[16] फिर वह अपने दोनों हाथ मलता रह गया, उस (धन) पर जो उसमें खर्च किया था। जबकि वह (बाग़) अपने छप्परों सहित गिरा हुआ था और वह कहता था : काश मैं अपने पालनहार के साथ किसी को साझी न बनाता।

16. अर्थात आपदा ने घेर लिया।


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وَلَمۡ تَكُن لَّهُۥ فِئَةࣱ یَنصُرُونَهُۥ مِن دُونِ ٱللَّهِ وَمَا كَانَ مُنتَصِرًا ﴿٤٣﴾

और नहीं था उसके पास कोई जत्था, जो अल्लाह के मुक़ाबले में उसकी मदद करता और न वह अपनी सहायता आप कर सका।


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هُنَالِكَ ٱلۡوَلَـٰیَةُ لِلَّهِ ٱلۡحَقِّۚ هُوَ خَیۡرࣱ ثَوَابࣰا وَخَیۡرٌ عُقۡبࣰا ﴿٤٤﴾

वहाँ सहायता करना केवल परम सत्य अल्लाह के अधिकार में है। वह प्रतिफल प्रदान करने में सबसे बेहतर तथा परिणाम कि दृष्टि से सबसे अच्छा है।


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وَٱضۡرِبۡ لَهُم مَّثَلَ ٱلۡحَیَوٰةِ ٱلدُّنۡیَا كَمَاۤءٍ أَنزَلۡنَـٰهُ مِنَ ٱلسَّمَاۤءِ فَٱخۡتَلَطَ بِهِۦ نَبَاتُ ٱلۡأَرۡضِ فَأَصۡبَحَ هَشِیمࣰا تَذۡرُوهُ ٱلرِّیَـٰحُۗ وَكَانَ ٱللَّهُ عَلَىٰ كُلِّ شَیۡءࣲ مُّقۡتَدِرًا ﴿٤٥﴾

और (ऐ नबी!) आप उन्हें सांसारिक जीवन का उदाहरण दें, वह उस पानी के समान है, जिसे हमने आकाश से बरसाया, तो पृथ्वी की वनस्पति (घनी होकर) उसके साथ मिल गई। फिर वह चूरा-चूरा हो गई, जिसे हवाएँ उड़ाए फिरती[17] हैं। और अल्लाह प्रत्येक चीज़ का सामर्थ्य रखने वाला है।

17. अर्थात सांसारिक जीवन और उसका सुख-सुविधा सब सामयिक है।


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ٱلۡمَالُ وَٱلۡبَنُونَ زِینَةُ ٱلۡحَیَوٰةِ ٱلدُّنۡیَاۖ وَٱلۡبَـٰقِیَـٰتُ ٱلصَّـٰلِحَـٰتُ خَیۡرٌ عِندَ رَبِّكَ ثَوَابࣰا وَخَیۡرٌ أَمَلࣰا ﴿٤٦﴾

धन और पुत्र सांसारिक जीवन की शोभा हैं। और बाकी रहने वाली नेकियाँ तेरे पालनहार के यहाँ सवाब में बहुत उत्तम और आशा की दृष्टि से भी बहुत बेहतर हैं।


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وَیَوۡمَ نُسَیِّرُ ٱلۡجِبَالَ وَتَرَى ٱلۡأَرۡضَ بَارِزَةࣰ وَحَشَرۡنَـٰهُمۡ فَلَمۡ نُغَادِرۡ مِنۡهُمۡ أَحَدࣰا ﴿٤٧﴾

तथा जिस दिन हम पर्वतों को चलाएँगे, और तुम धरती को साफ़ मैदान[18] देखोगे, और हम उन्हें एकत्रित करेंगे, तो उनमें से किसी को नहीं छोड़ेंगे।

18. अर्थात न उसमें कोई चिह्न होगा न छिपने का स्थान।


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وَعُرِضُواْ عَلَىٰ رَبِّكَ صَفࣰّا لَّقَدۡ جِئۡتُمُونَا كَمَا خَلَقۡنَـٰكُمۡ أَوَّلَ مَرَّةِۭۚ بَلۡ زَعَمۡتُمۡ أَلَّن نَّجۡعَلَ لَكُم مَّوۡعِدࣰا ﴿٤٨﴾

और वे आपके पालनहार के समक्ष पंक्तिबद्ध प्रस्तुत किए जाएँगे। (और कहा जाएगा :) निश्चय ही तुम हमारे पास उसी तरह आए हो, जैसे हमने तुम्हें पहली बार पैदा किया था। बल्कि तुम समझते थे कि हम तुम्हारे लिए वादे का कोई समय निर्धारित नहीं करेंगे।


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وَوُضِعَ ٱلۡكِتَـٰبُ فَتَرَى ٱلۡمُجۡرِمِینَ مُشۡفِقِینَ مِمَّا فِیهِ وَیَقُولُونَ یَـٰوَیۡلَتَنَا مَالِ هَـٰذَا ٱلۡكِتَـٰبِ لَا یُغَادِرُ صَغِیرَةࣰ وَلَا كَبِیرَةً إِلَّاۤ أَحۡصَىٰهَاۚ وَوَجَدُواْ مَا عَمِلُواْ حَاضِرࣰاۗ وَلَا یَظۡلِمُ رَبُّكَ أَحَدࣰا ﴿٤٩﴾

और किताब[19] सामने रख दी जाएगी, तो आप अपराधियों को देखेंगे कि जो कुछ उसमें होगा, उससे डरने वाले होंगे और कहेंगे : हाय हमारा विनाश! यह कैसी किताब है, जो न कोई छोटी बात छोड़ती है न बड़ी, परंतु उसने उसे संरक्षित कर रखा है। तथा उन्होंने जो कर्म किए थे, सब अंकित पाएँगे। और आपका पालनहार किसी पर अत्याचार नहीं करेगा।

19. अर्थात प्रत्येक का कर्मपत्र जो उसने सांसारिक जीवन में किया है।


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وَإِذۡ قُلۡنَا لِلۡمَلَـٰۤىِٕكَةِ ٱسۡجُدُواْ لِـَٔادَمَ فَسَجَدُوۤاْ إِلَّاۤ إِبۡلِیسَ كَانَ مِنَ ٱلۡجِنِّ فَفَسَقَ عَنۡ أَمۡرِ رَبِّهِۦۤۗ أَفَتَتَّخِذُونَهُۥ وَذُرِّیَّتَهُۥۤ أَوۡلِیَاۤءَ مِن دُونِی وَهُمۡ لَكُمۡ عَدُوُّۢۚ بِئۡسَ لِلظَّـٰلِمِینَ بَدَلࣰا ﴿٥٠﴾

तथा (याद करो) जब हमने फ़रिश्तों से कहा : आदम को सजदा करो। तो इबलीस के सिवा सबने सजदा किया। वह जिन्नों में से था। अतः उसने अपने पालनहार के आदेश का उल्लंघन किया। क्या फिर (भी) तुम उसे और उसकी संतान को मुझे छोड़कर मित्र बनाते हो, जबकि वे तुम्हारे शत्रु हैं? वह (शैतान) अत्याचारियों के लिए क्या ही बुरा बदल (विकल्प) है।


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۞ مَّاۤ أَشۡهَدتُّهُمۡ خَلۡقَ ٱلسَّمَـٰوَ ٰ⁠تِ وَٱلۡأَرۡضِ وَلَا خَلۡقَ أَنفُسِهِمۡ وَمَا كُنتُ مُتَّخِذَ ٱلۡمُضِلِّینَ عَضُدࣰا ﴿٥١﴾

मैंने उन्हें न आकाशों तथा धरती के पैदा करने में उपस्थित किया और न स्वयं उनके पैदा करने में, और न ही मैं पथभ्रष्ट करने वालों को सहायक[20] बनाने वाला था।

20. भावार्थ यह है कि विश्व की उत्पत्ति के समय इनका अस्तित्व न था। यह तो बाद में उत्पन्न किए गए हैं। उनकी उत्पत्ति में भी उनसे कोई सहायता नहीं ली गई, तो फिर ये अल्लाह के बराबर कैसे हो गए।


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وَیَوۡمَ یَقُولُ نَادُواْ شُرَكَاۤءِیَ ٱلَّذِینَ زَعَمۡتُمۡ فَدَعَوۡهُمۡ فَلَمۡ یَسۡتَجِیبُواْ لَهُمۡ وَجَعَلۡنَا بَیۡنَهُم مَّوۡبِقࣰا ﴿٥٢﴾

और जिस दिन वह (अल्लाह) कहेगा : मेरे उन साझियों को पुकारो, जिनका तुम दावा करते थे। तो ये उन्हें पुकारेंगे, पर वे इन्हें कोई उत्तर नहीं देंगे। और हम उनके बीच एक विनाश का स्थान बना देंगे।


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وَرَءَا ٱلۡمُجۡرِمُونَ ٱلنَّارَ فَظَنُّوۤاْ أَنَّهُم مُّوَاقِعُوهَا وَلَمۡ یَجِدُواْ عَنۡهَا مَصۡرِفࣰا ﴿٥٣﴾

और अपराधी लोग जहन्नम को देखेंगे, तो उन्हें यक़ीन हो जाएगा कि वे उसमें गिरने वाले हैं। और उससे फिरने (बचने) का कोई स्थान नहीं पाएँगे।


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وَلَقَدۡ صَرَّفۡنَا فِی هَـٰذَا ٱلۡقُرۡءَانِ لِلنَّاسِ مِن كُلِّ مَثَلࣲۚ وَكَانَ ٱلۡإِنسَـٰنُ أَكۡثَرَ شَیۡءࣲ جَدَلࣰا ﴿٥٤﴾

और हमने इस क़ुरआन में लोगों (को समझाने) के लिए हर प्रकार के उदाहरण प्रस्तुत किए हैं। और इनसान सब चीज़ों से अधिक झगड़ालू है।


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وَمَا مَنَعَ ٱلنَّاسَ أَن یُؤۡمِنُوۤاْ إِذۡ جَاۤءَهُمُ ٱلۡهُدَىٰ وَیَسۡتَغۡفِرُواْ رَبَّهُمۡ إِلَّاۤ أَن تَأۡتِیَهُمۡ سُنَّةُ ٱلۡأَوَّلِینَ أَوۡ یَأۡتِیَهُمُ ٱلۡعَذَابُ قُبُلࣰا ﴿٥٥﴾

और जब लोगों के पास मार्गदर्शन आ गया, तो उन्हें ईमान लाने और अपने पालनहार से क्षमा याचना करने से केवल इस बात ने रोका कि उनको भी पहले लोगों जैसा मामला पेश आ जाए या यातना उनके सामने आ खड़ी हो।


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وَمَا نُرۡسِلُ ٱلۡمُرۡسَلِینَ إِلَّا مُبَشِّرِینَ وَمُنذِرِینَۚ وَیُجَـٰدِلُ ٱلَّذِینَ كَفَرُواْ بِٱلۡبَـٰطِلِ لِیُدۡحِضُواْ بِهِ ٱلۡحَقَّۖ وَٱتَّخَذُوۤاْ ءَایَـٰتِی وَمَاۤ أُنذِرُواْ هُزُوࣰا ﴿٥٦﴾

तथा हम रसूलों को केवल शुभ सूचना देने वाले और डराने वाले बनाकर भेजते हैं। और जो काफ़िर हैं, वे असत्य के सहारे झगड़ा करते हैं, ताकि उसके द्वारा सत्य को विचलित[21] कर दें। और उन्होंने हमारी आयतों को तथा उन चीज़ों को जिनसे उन्हें डराया गया, मज़ाक बना लिया।

21. अर्थात सत्य को दबा दें।


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وَمَنۡ أَظۡلَمُ مِمَّن ذُكِّرَ بِـَٔایَـٰتِ رَبِّهِۦ فَأَعۡرَضَ عَنۡهَا وَنَسِیَ مَا قَدَّمَتۡ یَدَاهُۚ إِنَّا جَعَلۡنَا عَلَىٰ قُلُوبِهِمۡ أَكِنَّةً أَن یَفۡقَهُوهُ وَفِیۤ ءَاذَانِهِمۡ وَقۡرࣰاۖ وَإِن تَدۡعُهُمۡ إِلَى ٱلۡهُدَىٰ فَلَن یَهۡتَدُوۤاْ إِذًا أَبَدࣰا ﴿٥٧﴾

और उससे बड़ा अत्याचारी कौन है, जिसे उसके पालनहार की आयतें सुनाकर समझाया जाए, तो वह उनसे मुँह मोड़ ले और जो कुछ उसके दोनों हाथों ने आगे भेजा हो, उसे भूल जाए? निःसंदेह हमने उनके दिलों पर पर्दे डाल दिए हैं कि उसे[22] समझ न पाएँ और उनके कानों में बोझ डाल दिया है। और यदि आप उन्हें सीधी राह की ओर बुलाएँ, तब (भी) वे कभी सीधी राह पर नहीं आएँगे।

22. अर्थात क़ुरआन को।


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وَرَبُّكَ ٱلۡغَفُورُ ذُو ٱلرَّحۡمَةِۖ لَوۡ یُؤَاخِذُهُم بِمَا كَسَبُواْ لَعَجَّلَ لَهُمُ ٱلۡعَذَابَۚ بَل لَّهُم مَّوۡعِدࣱ لَّن یَجِدُواْ مِن دُونِهِۦ مَوۡىِٕلࣰا ﴿٥٨﴾

और आपका पालनहार अत्यंत क्षमाशील, दयावान् है। यदि वह उन्हें उसकी वजह से पकड़े, जो उन्होंने कमाया है, तो निश्चय उनपर शीघ्र ही यातना भेज दे। बल्कि उनके लिए वादे का एक समय है, जिससे बचने का उन्हें कदापि कोई स्थान नहीं मिलेगा।


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وَتِلۡكَ ٱلۡقُرَىٰۤ أَهۡلَكۡنَـٰهُمۡ لَمَّا ظَلَمُواْ وَجَعَلۡنَا لِمَهۡلِكِهِم مَّوۡعِدࣰا ﴿٥٩﴾

तथा यही बस्तियाँ हैं, हमने इन (के निवासियों) का विनाश कर दिया, जब उन्होंने अत्याचार किया। और हमने उनके विनाश का एक समय निश्चित कर रखा था।


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وَإِذۡ قَالَ مُوسَىٰ لِفَتَىٰهُ لَاۤ أَبۡرَحُ حَتَّىٰۤ أَبۡلُغَ مَجۡمَعَ ٱلۡبَحۡرَیۡنِ أَوۡ أَمۡضِیَ حُقُبࣰا ﴿٦٠﴾

तथा (याद करो) जब मूसा ने अपने युवक (सेवक) से कहा : मैं बराबर चलता रहूँगा, यहाँ तक कि दो सागरों के संगम पर पहुँच जाऊँ या वर्षों चलता रहूँ।[23]

23. मूसा अलैहिस्सलाम की यात्रा का कारण यह बना था कि वह एक बार भाषण दे रहे थे। तो किसी ने पूछा कि इस संसार में सर्वाधिक ज्ञानी कौन है? मूसा ने कहा : मैं हूँ। यह बात अल्लाह को अप्रिय लगी। और मूसा से फरमाया कि दो सागरों के संगम के पास मेरा एक बंदा है जो तुमसे अधिक ज्ञानी है। मूसा ने कहा : मैं उससे कैसे मिल सकता हूँ? अल्लाह ने फरमाया : एक मछली रख लो, और जिस स्थान पर वह खो जाए, तो वहीं वह मिलेगा। और वह अपने सेवक यूशा' बिन नून को लेकर निकल पड़े। (संक्षिप्त अनुवाद, सह़ीह़ बुख़ारी : 4725)


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فَلَمَّا بَلَغَا مَجۡمَعَ بَیۡنِهِمَا نَسِیَا حُوتَهُمَا فَٱتَّخَذَ سَبِیلَهُۥ فِی ٱلۡبَحۡرِ سَرَبࣰا ﴿٦١﴾

फिर जब वे दोनों उन दोनों (सागरों) के मिलने की जगह पर पहुँचे, तो वे दोनों अपनी मछली भूल गए और उसने सागर में अपना रास्ता सुरंग जैसा बना लिया।


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فَلَمَّا جَاوَزَا قَالَ لِفَتَىٰهُ ءَاتِنَا غَدَاۤءَنَا لَقَدۡ لَقِینَا مِن سَفَرِنَا هَـٰذَا نَصَبࣰا ﴿٦٢﴾

फिर जब दोनों आगे बढ़ गए, तो मूसा ने अपने सेवक से कहा कि हमारा खाना लाओ। हम अपनी इस यात्रा से काफ़ी थक गए हैं।


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قَالَ أَرَءَیۡتَ إِذۡ أَوَیۡنَاۤ إِلَى ٱلصَّخۡرَةِ فَإِنِّی نَسِیتُ ٱلۡحُوتَ وَمَاۤ أَنسَىٰنِیهُ إِلَّا ٱلشَّیۡطَـٰنُ أَنۡ أَذۡكُرَهُۥۚ وَٱتَّخَذَ سَبِیلَهُۥ فِی ٱلۡبَحۡرِ عَجَبࣰا ﴿٦٣﴾

उसने कहा : क्या आपने देखा? जब हम चट्टान के पास ठहरे थे तो निःसंदेह मैं मछली भूल गया, और मुझे शैतान ही ने भुलाया कि मैं (आपसे) उसकी चर्चा करूँ, और उसने अनोखे तरीक़े से सागर में अपनी राह बना ली।


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قَالَ ذَ ٰ⁠لِكَ مَا كُنَّا نَبۡغِۚ فَٱرۡتَدَّا عَلَىٰۤ ءَاثَارِهِمَا قَصَصࣰا ﴿٦٤﴾

मूसा ने कहा : यही तो है, जो हम तलाश कर रहे थे। फिर वे दोनों अपने क़दमों के निशान देखते हुए वापस लौटे।


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فَوَجَدَا عَبۡدࣰا مِّنۡ عِبَادِنَاۤ ءَاتَیۡنَـٰهُ رَحۡمَةࣰ مِّنۡ عِندِنَا وَعَلَّمۡنَـٰهُ مِن لَّدُنَّا عِلۡمࣰا ﴿٦٥﴾

तो उन दोनों ने हमारे बंदों में से एक बंदे[24] को पाया, जिसे हमने अपने पास से दया प्रदान की थी और उसे अपने पास से एक ज्ञान सिखाया था।

24. इससे अभिप्रेत आदरणीय ख़ज़िर अलैहिस्सलाम हैं।


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قَالَ لَهُۥ مُوسَىٰ هَلۡ أَتَّبِعُكَ عَلَىٰۤ أَن تُعَلِّمَنِ مِمَّا عُلِّمۡتَ رُشۡدࣰا ﴿٦٦﴾

मूसा ने उनसे कहा : क्या मैं आपका अनुसरण करूँ, इस (शर्त) पर कि मुझे उस मार्गदर्शन की बातों में से कुछ सिखा दें, जो आपको सिखाई गई हैं?


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قَالَ إِنَّكَ لَن تَسۡتَطِیعَ مَعِیَ صَبۡرࣰا ﴿٦٧﴾

उन्होंने कहा : तुम मेरे साथ हरगिज़ धैर्य न रख सकोगे।


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وَكَیۡفَ تَصۡبِرُ عَلَىٰ مَا لَمۡ تُحِطۡ بِهِۦ خُبۡرࣰا ﴿٦٨﴾

और तुम उसपर कैसे धीरज रख सकते हो, जिसका तुम्हें पूरा ज्ञान नहीं?


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قَالَ سَتَجِدُنِیۤ إِن شَاۤءَ ٱللَّهُ صَابِرࣰا وَلَاۤ أَعۡصِی لَكَ أَمۡرࣰا ﴿٦٩﴾

उसने कहा : यदि अल्लाह ने चाहा, तो आप मुझे धैर्य रखने वाला पाएँगे और मैं आपके किसी आदेश का उल्लंघन नहीं करूँगा।


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قَالَ فَإِنِ ٱتَّبَعۡتَنِی فَلَا تَسۡـَٔلۡنِی عَن شَیۡءٍ حَتَّىٰۤ أُحۡدِثَ لَكَ مِنۡهُ ذِكۡرࣰا ﴿٧٠﴾

उन्होंने कहा : यदि तुम्हें मेरा अनुसरण करना है, तो मुझसे किसी चीज़ के बारे में प्रश्न न करना, यहाँ तक कि मैं (स्वयं ही) तुमसे उसकी चर्चा शुरू करूँ।


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فَٱنطَلَقَا حَتَّىٰۤ إِذَا رَكِبَا فِی ٱلسَّفِینَةِ خَرَقَهَاۖ قَالَ أَخَرَقۡتَهَا لِتُغۡرِقَ أَهۡلَهَا لَقَدۡ جِئۡتَ شَیۡـًٔا إِمۡرࣰا ﴿٧١﴾

फिर वे दोनों चले, यहाँ तक कि जब वे नौका पर सवार हुए, तो उस (ख़ज़िर) ने उसे फाड़ दिया। मूसा ने कहा : क्या आपने इसे इसलिए फाड़ दिया है कि इसके सवारों को डुबो दें? निश्चित रूप से आपने एक गंभीर काम कर डाला।


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قَالَ أَلَمۡ أَقُلۡ إِنَّكَ لَن تَسۡتَطِیعَ مَعِیَ صَبۡرࣰا ﴿٧٢﴾

उन्होंने कहा : क्या मैंने नहीं कहा था कि तुम मेरे साथ हरगिज़ धैर्य न रख सकोगे?


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قَالَ لَا تُؤَاخِذۡنِی بِمَا نَسِیتُ وَلَا تُرۡهِقۡنِی مِنۡ أَمۡرِی عُسۡرࣰا ﴿٧٣﴾

मूसा ने कहा : मुझे मेरी भूल पर न पकड़ें और मेरे मामले में मुझे किसी कठिनाई में न डालें।


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فَٱنطَلَقَا حَتَّىٰۤ إِذَا لَقِیَا غُلَـٰمࣰا فَقَتَلَهُۥ قَالَ أَقَتَلۡتَ نَفۡسࣰا زَكِیَّةَۢ بِغَیۡرِ نَفۡسࣲ لَّقَدۡ جِئۡتَ شَیۡـࣰٔا نُّكۡرࣰا ﴿٧٤﴾

फिर वे दोनों चल पड़े, यहाँ तक कि जब वे एक बालक से मिले, तो उस (ख़ज़िर) ने उसे क़त्ल कर दिया। उस (मूसा) ने कहा : क्या आपने एक निर्दोष जान को किसी जान के बदले के बिना[25] क़त्ल कर दिया? निःसंदेह आपने बहुत ही बुरा काम किया।

25. अर्थात उसने किसी प्राणी को नहीं मारा कि उसके बदले में उसे मारा जाए।


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۞ قَالَ أَلَمۡ أَقُل لَّكَ إِنَّكَ لَن تَسۡتَطِیعَ مَعِیَ صَبۡرࣰا ﴿٧٥﴾

उन्होंने कहा : क्या मैंने तुमसे नहीं कहा था कि निश्चय तुम मेरे साथ हरगिज़ धैर्य न रख सकोगे?


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قَالَ إِن سَأَلۡتُكَ عَن شَیۡءِۭ بَعۡدَهَا فَلَا تُصَـٰحِبۡنِیۖ قَدۡ بَلَغۡتَ مِن لَّدُنِّی عُذۡرࣰا ﴿٧٦﴾

(मूसा ने) कहा : यदि मैं इसके बाद आपसे किसी चीज़ के विषय में प्रश्न करूँ, तो मुझे अपने साथ न रखें। निश्चय आप मेरी ओर से उज़्र को पहुँच[26] चुके।

26. अर्थात अब कोई प्रश्न करूँ तो आपके पास मुझे अपने साथ न रखने का उचित कारण होगा।


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فَٱنطَلَقَا حَتَّىٰۤ إِذَاۤ أَتَیَاۤ أَهۡلَ قَرۡیَةٍ ٱسۡتَطۡعَمَاۤ أَهۡلَهَا فَأَبَوۡاْ أَن یُضَیِّفُوهُمَا فَوَجَدَا فِیهَا جِدَارࣰا یُرِیدُ أَن یَنقَضَّ فَأَقَامَهُۥۖ قَالَ لَوۡ شِئۡتَ لَتَّخَذۡتَ عَلَیۡهِ أَجۡرࣰا ﴿٧٧﴾

फिर दोनो चले, यहाँ तक कि जब एक गाँव वालों के पास आए, तो उसके वासियों से भोजन माँगा। परंतु उन्होंने उनका अतिथि सत्कार करने से इनकार कर दिया। फिर वहाँ उन्होंने एक दीवार पाई, जो गिरा चाहती थी। तो उस (खज़िर) ने उसे सीधा कर दिया। (मूसा ने) कहा : यदि आप चाहते, तो इसपर पारिश्रमिक ले लेते।


Arabic explanations of the Qur’an:

قَالَ هَـٰذَا فِرَاقُ بَیۡنِی وَبَیۡنِكَۚ سَأُنَبِّئُكَ بِتَأۡوِیلِ مَا لَمۡ تَسۡتَطِع عَّلَیۡهِ صَبۡرًا ﴿٧٨﴾

उसने कहा : यह मेरे और तुम्हारे बीच जुदाई है। मैं तुम्हें उसकी वास्तविकता बताऊँगा, जिसपर तुम धैर्य नहीं रख सके।


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أَمَّا ٱلسَّفِینَةُ فَكَانَتۡ لِمَسَـٰكِینَ یَعۡمَلُونَ فِی ٱلۡبَحۡرِ فَأَرَدتُّ أَنۡ أَعِیبَهَا وَكَانَ وَرَاۤءَهُم مَّلِكࣱ یَأۡخُذُ كُلَّ سَفِینَةٍ غَصۡبࣰا ﴿٧٩﴾

रही नाव, तो वह कुछ निर्धनों की थी, जो सागर में काम करते थे। तो मैंने चाहा कि उसे ख़राब[27] कर दूँ और उनके आगे एक राजा था, जो हर (अच्छी) नाव को छीन लेता था।

27 . अर्थात उसमें छेद कर दूँ।


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وَأَمَّا ٱلۡغُلَـٰمُ فَكَانَ أَبَوَاهُ مُؤۡمِنَیۡنِ فَخَشِینَاۤ أَن یُرۡهِقَهُمَا طُغۡیَـٰنࣰا وَكُفۡرࣰا ﴿٨٠﴾

और रहा बालक, तो उसके माता-पिता दोनों ईमान वाले थे। अतः हम डरे कि वह उन दोनों को अवज्ञा और कुफ़्र में फँसा देगा।


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فَأَرَدۡنَاۤ أَن یُبۡدِلَهُمَا رَبُّهُمَا خَیۡرࣰا مِّنۡهُ زَكَوٰةࣰ وَأَقۡرَبَ رُحۡمࣰا ﴿٨١﴾

इसलिए हमने चाहा कि उन दोनों का पालनहार उन्हें बदले में ऐसा बच्चा दे, जो पवित्रता में उससे बेहतर और करुणा में अधिक क़रीब हो।


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وَأَمَّا ٱلۡجِدَارُ فَكَانَ لِغُلَـٰمَیۡنِ یَتِیمَیۡنِ فِی ٱلۡمَدِینَةِ وَكَانَ تَحۡتَهُۥ كَنزࣱ لَّهُمَا وَكَانَ أَبُوهُمَا صَـٰلِحࣰا فَأَرَادَ رَبُّكَ أَن یَبۡلُغَاۤ أَشُدَّهُمَا وَیَسۡتَخۡرِجَا كَنزَهُمَا رَحۡمَةࣰ مِّن رَّبِّكَۚ وَمَا فَعَلۡتُهُۥ عَنۡ أَمۡرِیۚ ذَ ٰ⁠لِكَ تَأۡوِیلُ مَا لَمۡ تَسۡطِع عَّلَیۡهِ صَبۡرࣰا ﴿٨٢﴾

और रही दीवार, तो वह शहर के दो अनाथ लड़कों की थी और उसके नीचे उन दोनों के लिए एक खज़ाना था और उनके पिता नेक थे। तो तेरे पालनहार ने चाहा कि वे दोनों अपनी जवानी को पहुँच जाएँ और अपना खज़ाना निकाल लें, तेरे पालनहार की ओर से दया स्वरूप। और मैंने यह अपनी मर्जी से नहीं किया।[28] यह है उन बातों का असली सच जिनपर तुम धैर्य न रख सके।

28. ये सभी कार्य, विशेष रूप से निर्दोष बालक का वध धार्मिक नियम से उचित न था। इसलिए मूसा (अलैहिस्सलाम) इसको सहन न कर सके। किंतु ख़ज़िर को विशेष ज्ञान दिया गया था जो मूसा (अलैहिस्सलाम) के पास नहीं था। इस प्रकार अल्लाह ने जता दिया कि हर ज्ञानी के ऊपर भी कोई ज्ञानी है।


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وَیَسۡـَٔلُونَكَ عَن ذِی ٱلۡقَرۡنَیۡنِۖ قُلۡ سَأَتۡلُواْ عَلَیۡكُم مِّنۡهُ ذِكۡرًا ﴿٨٣﴾

और (ऐ नबी!) वे आपसे ज़ुल-क़रनैन[29] के विषय में प्रश्न करते हैं। आप कह दें : मैं तुम्हें उसका कुछ वृत्तांत पढ़कर सुनाऊँगा।

29. यह तीसरे प्रश्न का उत्तर है जिसे यहूदियों ने मक्का के मिश्रणवादियों द्वारा नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से कराया था। ज़ुल-क़रनैन के आगामी आयतों में जो गुण-कर्म बताए गए हैं उनसे विदित होता है कि वह एक सदाचारी विजेता राजा था। मौलाना अबुल कलाम आज़ाद के शोध के अनुसार यह वही राजा है जिसे यूनानी साईरस, हिब्रू भाषा में खोरिस तथा अरब में ख़ुसरु के नाम से पुकारा जाता है। जिसका शासन काल 559 ई. पूर्व है। वह लिखते हैं कि 1838 ई. में साईरस की एक पत्थर की मूर्ति अस्तख़र के खंडहरों में मिली है। जिसमें बाज़ पक्षी की भाँति उसके दो पंख तथा उसके सिर पर भेड़ के समान दो सींग हैं। इसमें मीडिया और फ़ारस के दो राज्यों की उपमा दो सींगों से दी गई है। (देखिए : तर्जमानुल क़ुरआन, भाग : 3, पृष्ठ : 436-438)


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إِنَّا مَكَّنَّا لَهُۥ فِی ٱلۡأَرۡضِ وَءَاتَیۡنَـٰهُ مِن كُلِّ شَیۡءࣲ سَبَبࣰا ﴿٨٤﴾

हमने उसे धरती में प्रभुत्व प्रदान किया तथा उसे प्रत्येक प्रकार का साधन दिया।


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فَأَتۡبَعَ سَبَبًا ﴿٨٥﴾

तो वह कुछ सामान लेकर चला।


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حَتَّىٰۤ إِذَا بَلَغَ مَغۡرِبَ ٱلشَّمۡسِ وَجَدَهَا تَغۡرُبُ فِی عَیۡنٍ حَمِئَةࣲ وَوَجَدَ عِندَهَا قَوۡمࣰاۖ قُلۡنَا یَـٰذَا ٱلۡقَرۡنَیۡنِ إِمَّاۤ أَن تُعَذِّبَ وَإِمَّاۤ أَن تَتَّخِذَ فِیهِمۡ حُسۡنࣰا ﴿٨٦﴾

यहाँ तक कि जब वह सूर्यास्त के स्थान[30] तक पहुँचा, तो उसे पाया कि वह एक काले कीचड़ वाले जलस्रोत में डूब रहा है और उसके पास एक जाति को पाया। हमने कहा : ऐ ज़ुल-क़रनैन! या तो तू उन्हें यातना दे और या तो तू उनके साथ अच्छा व्यवहार कर।

30. अर्थात पश्चिम की अंतिम सीमा तक।


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قَالَ أَمَّا مَن ظَلَمَ فَسَوۡفَ نُعَذِّبُهُۥ ثُمَّ یُرَدُّ إِلَىٰ رَبِّهِۦ فَیُعَذِّبُهُۥ عَذَابࣰا نُّكۡرࣰا ﴿٨٧﴾

उसने कहा : जो अत्याचार करेगा, हम उसे शीघ्र दंड देंगे। फिर वह अपने पालनहार की ओर लौटाया[31] जाएगा, तो वह उसे बहुत बुरी यातना देगा।

31. अर्थात निधन के पश्चात् प्रलय के दिन।


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وَأَمَّا مَنۡ ءَامَنَ وَعَمِلَ صَـٰلِحࣰا فَلَهُۥ جَزَاۤءً ٱلۡحُسۡنَىٰۖ وَسَنَقُولُ لَهُۥ مِنۡ أَمۡرِنَا یُسۡرࣰا ﴿٨٨﴾

परंतु जो ईमान लाया और उसने अच्छा कर्म किया, तो उसके लिए बदले में भलाई है और शीघ्र ही हम उसे अपने काम में से सर्वथा सरलता का आदेश देंगे।


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ثُمَّ أَتۡبَعَ سَبَبًا ﴿٨٩﴾

फिर वह कुछ और सामान लेकर चला।


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حَتَّىٰۤ إِذَا بَلَغَ مَطۡلِعَ ٱلشَّمۡسِ وَجَدَهَا تَطۡلُعُ عَلَىٰ قَوۡمࣲ لَّمۡ نَجۡعَل لَّهُم مِّن دُونِهَا سِتۡرࣰا ﴿٩٠﴾

यहाँ तक कि जब वह सूरज उगने के स्थान पर पहुँचा, तो उसे ऐसे लोगों पर उगता हुआ पाया, जिनके लिए हमने उसके सामने पर्दा नहीं बनाया था।


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كَذَ ٰ⁠لِكَۖ وَقَدۡ أَحَطۡنَا بِمَا لَدَیۡهِ خُبۡرࣰا ﴿٩١﴾

मामला ऐसा ही था और उस (ज़ुल-क़रनैन) के पास जो कुछ था, निश्चित रूप से वह हमारे ज्ञान के घेरे में था।


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ثُمَّ أَتۡبَعَ سَبَبًا ﴿٩٢﴾

फिर वह कुछ और सामान लेकर चला।


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حَتَّىٰۤ إِذَا بَلَغَ بَیۡنَ ٱلسَّدَّیۡنِ وَجَدَ مِن دُونِهِمَا قَوۡمࣰا لَّا یَكَادُونَ یَفۡقَهُونَ قَوۡلࣰا ﴿٩٣﴾

यहाँ तक कि जब वह दो पर्वतों के बीच पहुँचा, तो उन दोनों की उस ओर एक जाति को पाया, जो क़रीब न थी कि कोई बात समझे।[32]

32. अर्थात अपनी भाषा के सिवा कोई भाषा नहीं समझती थी।


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قَالُواْ یَـٰذَا ٱلۡقَرۡنَیۡنِ إِنَّ یَأۡجُوجَ وَمَأۡجُوجَ مُفۡسِدُونَ فِی ٱلۡأَرۡضِ فَهَلۡ نَجۡعَلُ لَكَ خَرۡجًا عَلَىٰۤ أَن تَجۡعَلَ بَیۡنَنَا وَبَیۡنَهُمۡ سَدࣰّا ﴿٩٤﴾

उन्होंने कहा : ऐ ज़ुल-क़रनैन! निःसंदेह याजूज और माजूज इस भूभाग में उत्पात मचाने वाले हैं। तो क्या हम आपके लिए कुछ राजस्व तय कर दें, इस शर्त पर कि आप हमारे और उनके बीच एक अवरोध बना दें?


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قَالَ مَا مَكَّنِّی فِیهِ رَبِّی خَیۡرࣱ فَأَعِینُونِی بِقُوَّةٍ أَجۡعَلۡ بَیۡنَكُمۡ وَبَیۡنَهُمۡ رَدۡمًا ﴿٩٥﴾

उसने कहा : मेरे पालनहार ने जो कुछ मुझे प्रदान किया है, वह उत्तम है। अतः तुम श्रमशक्ति से मेरी सहायता करो, मैं तुम्हारे और उनके बीच एक मोटी (और दृढ़) दीवार बना दूँगा।


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ءَاتُونِی زُبَرَ ٱلۡحَدِیدِۖ حَتَّىٰۤ إِذَا سَاوَىٰ بَیۡنَ ٱلصَّدَفَیۡنِ قَالَ ٱنفُخُواْۖ حَتَّىٰۤ إِذَا جَعَلَهُۥ نَارࣰا قَالَ ءَاتُونِیۤ أُفۡرِغۡ عَلَیۡهِ قِطۡرࣰا ﴿٩٦﴾

मुझे लोहे के टुकड़े ला दो, यहाँ तक कि जब दोनों पहाड़ों के बीच का हिस्सा ऊपर तक बराबर कर दिया, तो कहा : अब इसमें आग दहकाओ, यहाँ तक कि जब उसे आग कर दिया, तो कहा : मुझे पिघला हुआ ताँबा ला दो, ताकि मैं इसपर उँड़ेल दूँ।


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فَمَا ٱسۡطَـٰعُوۤاْ أَن یَظۡهَرُوهُ وَمَا ٱسۡتَطَـٰعُواْ لَهُۥ نَقۡبࣰا ﴿٩٧﴾

फिर उनमें न यह शक्ति रही कि उस पर चढ़ सकें और न वे उसमें कोई छेद कर सके।


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قَالَ هَـٰذَا رَحۡمَةࣱ مِّن رَّبِّیۖ فَإِذَا جَاۤءَ وَعۡدُ رَبِّی جَعَلَهُۥ دَكَّاۤءَۖ وَكَانَ وَعۡدُ رَبِّی حَقࣰّا ﴿٩٨﴾

उस (ज़ुलक़रनैन) ने कहा : यह मेरे पालनहार की ओर से एक दया है। फिर जब मेरे पालनहार का वादा[33] आ जाएगा, तो वह इसे पृथ्वी के बराबर कर देगा, और मेरे पालनहार का वादा हमेशा से सच्चा है।

33. वादा से अभिप्राय प्रलय के आने का समय है। जैसी कि सह़ीह़ बुख़ारी ह़दीस संख्या : 3346 आदि में आता है कि क़ियामत आने के समीप याजूज-माजूज वह दीवार तोड़ कर निकलेंगे, और धरती में उपद्रव मचा देंगे।


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۞ وَتَرَكۡنَا بَعۡضَهُمۡ یَوۡمَىِٕذࣲ یَمُوجُ فِی بَعۡضࣲۖ وَنُفِخَ فِی ٱلصُّورِ فَجَمَعۡنَـٰهُمۡ جَمۡعࣰا ﴿٩٩﴾

और उस[34] दिन हम उन्हें इस अवस्था में छोड़ देंगे कि वे एक-दूसरे से मौजों की तरह परस्पर गुत्थम-गुत्था हो जाएँगे और “सूर” फूँक दिया जाएगा, तो हम उन सभी को इकट्ठा करेंगे।

34. इस आयत में उस प्रलय के आने के समय की दशा का चित्रण किया गया है जिसे ज़ुल-क़रनैन ने सच्चा वादा कहा है।


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وَعَرَضۡنَا جَهَنَّمَ یَوۡمَىِٕذࣲ لِّلۡكَـٰفِرِینَ عَرۡضًا ﴿١٠٠﴾

और उस दिन हम जहन्नम को काफिरों के ठीक सामने कर देंगे।


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ٱلَّذِینَ كَانَتۡ أَعۡیُنُهُمۡ فِی غِطَاۤءٍ عَن ذِكۡرِی وَكَانُواْ لَا یَسۡتَطِیعُونَ سَمۡعًا ﴿١٠١﴾

जिनकी आँखें मेरी याद से पर्दे में थीं और वे सुन ही नहीं सकते थे।


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أَفَحَسِبَ ٱلَّذِینَ كَفَرُوۤاْ أَن یَتَّخِذُواْ عِبَادِی مِن دُونِیۤ أَوۡلِیَاۤءَۚ إِنَّاۤ أَعۡتَدۡنَا جَهَنَّمَ لِلۡكَـٰفِرِینَ نُزُلࣰا ﴿١٠٢﴾

तो क्या जिन लोगों ने कुफ़्र किया, उन्होंने यह सोचा है कि वे मुझे छोड़कर मेरे बंदों को सहायक बना लेंगे? निःसंदेह हमने जहन्नम को काफिरों के लिए आतिथ्य के रूप में तैयार कर रखा है।


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قُلۡ هَلۡ نُنَبِّئُكُم بِٱلۡأَخۡسَرِینَ أَعۡمَـٰلًا ﴿١٠٣﴾

आप कह दें : क्या हम तुम्हें उन लोगों के बारे में बताएँ जो कर्मों में सबसे अधिक घाटा वाले हैं?


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ٱلَّذِینَ ضَلَّ سَعۡیُهُمۡ فِی ٱلۡحَیَوٰةِ ٱلدُّنۡیَا وَهُمۡ یَحۡسَبُونَ أَنَّهُمۡ یُحۡسِنُونَ صُنۡعًا ﴿١٠٤﴾

वे लोग जिनका प्रयास संसार के जीवन में व्यर्थ हो गया है और वे सोचते हैं कि निःसंदेह वे एक अच्छा काम कर रहे हैं।


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أُوْلَـٰۤىِٕكَ ٱلَّذِینَ كَفَرُواْ بِـَٔایَـٰتِ رَبِّهِمۡ وَلِقَاۤىِٕهِۦ فَحَبِطَتۡ أَعۡمَـٰلُهُمۡ فَلَا نُقِیمُ لَهُمۡ یَوۡمَ ٱلۡقِیَـٰمَةِ وَزۡنࣰا ﴿١٠٥﴾

यही वे लोग हैं, जिन्होंने अपने पालनहार की आयतों और उससे मिलन का इनकार किया। तो उनके कर्म बेकार हो गए, अतः हम क़ियामत के दिन उनके लिए कोई वज़न नहीं रखेंगे।[35]

35. अर्थात उनका हमारे यहाँ कोई भार न होगा। ह़दीस में आया है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कहा : क़ियामत के दिन एक भारी भरकम व्यक्ति आएगा। मगर अल्लाह के सदन में उसका भार मच्छर के पंख के बराबर भी नहीं होगा। फिर आपने इसी आयत को पढ़ा। (सह़ीह़ बुख़ारी : 4729)


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ذَ ٰ⁠لِكَ جَزَاۤؤُهُمۡ جَهَنَّمُ بِمَا كَفَرُواْ وَٱتَّخَذُوۤاْ ءَایَـٰتِی وَرُسُلِی هُزُوًا ﴿١٠٦﴾

यह उनका बदला नरक है, इस कारण कि उन्होंने कुफ़्र किया और मेरी आयतों और मेरे रसूलों का मज़ाक उड़ाया।


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إِنَّ ٱلَّذِینَ ءَامَنُواْ وَعَمِلُواْ ٱلصَّـٰلِحَـٰتِ كَانَتۡ لَهُمۡ جَنَّـٰتُ ٱلۡفِرۡدَوۡسِ نُزُلًا ﴿١٠٧﴾

निःसंदेह जो लोग ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए, उनके आतिथ्य के लिए फ़िरदौस[36] के बाग़ होंगे।

36. फ़िरदौस, स्वर्ग के सर्वोच्च स्थान का नाम है। (सह़ीह़ बुख़ारी : 7423)


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خَـٰلِدِینَ فِیهَا لَا یَبۡغُونَ عَنۡهَا حِوَلࣰا ﴿١٠٨﴾

उनमें हमेशा रहने वाले होंगे, वे उससे स्थान बदलना नहीं चाहेंगे।


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قُل لَّوۡ كَانَ ٱلۡبَحۡرُ مِدَادࣰا لِّكَلِمَـٰتِ رَبِّی لَنَفِدَ ٱلۡبَحۡرُ قَبۡلَ أَن تَنفَدَ كَلِمَـٰتُ رَبِّی وَلَوۡ جِئۡنَا بِمِثۡلِهِۦ مَدَدࣰا ﴿١٠٩﴾

(ऐ नबी!) आप कह दें : यदि सागर मेरे पालनहार की बातें लिखने के लिए स्याही बन जाए, तो निश्चय सागर समाप्त हो जाएगा इससे पहले कि मेरे पालनहार की बातें समाप्त हों, यद्यपि हम उसके बराबर और स्याही ले आएँ।


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قُلۡ إِنَّمَاۤ أَنَا۠ بَشَرࣱ مِّثۡلُكُمۡ یُوحَىٰۤ إِلَیَّ أَنَّمَاۤ إِلَـٰهُكُمۡ إِلَـٰهࣱ وَ ٰ⁠حِدࣱۖ فَمَن كَانَ یَرۡجُواْ لِقَاۤءَ رَبِّهِۦ فَلۡیَعۡمَلۡ عَمَلࣰا صَـٰلِحࣰا وَلَا یُشۡرِكۡ بِعِبَادَةِ رَبِّهِۦۤ أَحَدَۢا ﴿١١٠﴾

आप कह दे : मैं तो तुम्हारे जैसा ही एक मनुष्य हूँ, मेरी ओर प्रकाशना (वह़्य) की जाती है कि तुम्हारा पूज्य केवल एक ही पूज्य है। अतः जो कोई अपने पालनहार से मिलने की आशा रखता हो, उसके लिए आवश्यक है कि वह अच्छे कर्म करे और अपने पालनहार की इबादत में किसी को साझी न बनाए।


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