ذَ ٰلِكَ ٱلۡكِتَـٰبُ لَا رَیۡبَۛ فِیهِۛ هُدࣰى لِّلۡمُتَّقِینَ ﴿٢﴾
यह (क़ुरआन) वह पुस्तक है, जिसमें कोई संदेह नहीं, परहेज़गारों के लिए सर्वथा मार्गदर्शन है।
ٱلَّذِینَ یُؤۡمِنُونَ بِٱلۡغَیۡبِ وَیُقِیمُونَ ٱلصَّلَوٰةَ وَمِمَّا رَزَقۡنَـٰهُمۡ یُنفِقُونَ ﴿٣﴾
वे लोग जो ग़ैब (परोक्ष)[1] पर ईमान लाते हैं, और नमाज़ की स्थापना करते हैं और जो कुछ हमने उन्हें दिया है, उसमें से ख़र्च करते हैं।
وَٱلَّذِینَ یُؤۡمِنُونَ بِمَاۤ أُنزِلَ إِلَیۡكَ وَمَاۤ أُنزِلَ مِن قَبۡلِكَ وَبِٱلۡـَٔاخِرَةِ هُمۡ یُوقِنُونَ ﴿٤﴾
तथा जो उसपर ईमान लाते हैं जो तुम्हारी ओर उतारा गया और जो तुमसे पहले उतारा गया[2] और आख़िरत[3] पर वही लोग विश्वास रखते हैं।
أُوْلَـٰۤىِٕكَ عَلَىٰ هُدࣰى مِّن رَّبِّهِمۡۖ وَأُوْلَـٰۤىِٕكَ هُمُ ٱلۡمُفۡلِحُونَ ﴿٥﴾
यही लोग अपने पालनहार के बताए हुए मार्ग पर हैं तथा यही लोग सफल हैं।
إِنَّ ٱلَّذِینَ كَفَرُواْ سَوَاۤءٌ عَلَیۡهِمۡ ءَأَنذَرۡتَهُمۡ أَمۡ لَمۡ تُنذِرۡهُمۡ لَا یُؤۡمِنُونَ ﴿٦﴾
निःसंदेह[4] जिन लोगों ने कुफ़्र किया, उनपर बराबर है, चाहे आपने उन्हें डराया हो या उन्हें न डराया हो, वे ईमान नहीं लाएँगे।
خَتَمَ ٱللَّهُ عَلَىٰ قُلُوبِهِمۡ وَعَلَىٰ سَمۡعِهِمۡۖ وَعَلَىٰۤ أَبۡصَـٰرِهِمۡ غِشَـٰوَةࣱۖ وَلَهُمۡ عَذَابٌ عَظِیمࣱ ﴿٧﴾
अल्लाह ने उनके दिलों पर तथा उनके कानों पर मुहर लगा दी और उनकी आँखों पर भारी पर्दा है तथा उनके लिए बहुत बड़ी यातना है।
وَمِنَ ٱلنَّاسِ مَن یَقُولُ ءَامَنَّا بِٱللَّهِ وَبِٱلۡیَوۡمِ ٱلۡـَٔاخِرِ وَمَا هُم بِمُؤۡمِنِینَ ﴿٨﴾
और[5] कुछ लोग ऐसे हैं, जो कहते हैं कि हम अल्लाह पर तथा आख़िरत के दिन पर ईमान लाए, हालाँकि वे हरगिज़ मोमिन नहीं।
یُخَـٰدِعُونَ ٱللَّهَ وَٱلَّذِینَ ءَامَنُواْ وَمَا یَخۡدَعُونَ إِلَّاۤ أَنفُسَهُمۡ وَمَا یَشۡعُرُونَ ﴿٩﴾
वे अल्लाह तथा ईमान वालों से धोखाबाज़ी करते हैं। हालाँकि वे अपनी जानों के सिवा किसी को धोखा नहीं दे रहे, परंतु वे समझते नहीं।
فِی قُلُوبِهِم مَّرَضࣱ فَزَادَهُمُ ٱللَّهُ مَرَضࣰاۖ وَلَهُمۡ عَذَابٌ أَلِیمُۢ بِمَا كَانُواْ یَكۡذِبُونَ ﴿١٠﴾
उनके दिलों ही में एक रोग है, तो अल्लाह ने उन्हें रोग में और बढ़ा दिया और उनके लिए दर्दनाक यातना है, इस कारण कि वे झूठ बोलते थे।
وَإِذَا قِیلَ لَهُمۡ لَا تُفۡسِدُواْ فِی ٱلۡأَرۡضِ قَالُوۤاْ إِنَّمَا نَحۡنُ مُصۡلِحُونَ ﴿١١﴾
और जब उनसे कहा जाता है कि धरती में उपद्रव न करो, तो कहते हैं कि हम तो केवल सुधार करने वाले हैं।
أَلَاۤ إِنَّهُمۡ هُمُ ٱلۡمُفۡسِدُونَ وَلَـٰكِن لَّا یَشۡعُرُونَ ﴿١٢﴾
सावधान! निश्चय वही तो उपद्रव करने वाले हैं, परंतु वे नहीं समझते।
وَإِذَا قِیلَ لَهُمۡ ءَامِنُواْ كَمَاۤ ءَامَنَ ٱلنَّاسُ قَالُوۤاْ أَنُؤۡمِنُ كَمَاۤ ءَامَنَ ٱلسُّفَهَاۤءُۗ أَلَاۤ إِنَّهُمۡ هُمُ ٱلسُّفَهَاۤءُ وَلَـٰكِن لَّا یَعۡلَمُونَ ﴿١٣﴾
तथा[6] जब उनसे कहा जाता है : ईमान लाओ जिस तरह लोग ईमान लाए हैं, तो कहते हैं : क्या हम ईमान लाएँ, जैसे मूर्ख ईमान लाए हैं? सुन लो! निःसंदेह वे स्वयं ही मूर्ख हैं, परंतु वे नहीं जानते।
وَإِذَا لَقُواْ ٱلَّذِینَ ءَامَنُواْ قَالُوۤاْ ءَامَنَّا وَإِذَا خَلَوۡاْ إِلَىٰ شَیَـٰطِینِهِمۡ قَالُوۤاْ إِنَّا مَعَكُمۡ إِنَّمَا نَحۡنُ مُسۡتَهۡزِءُونَ ﴿١٤﴾
तथा जब वे ईमान लाने वालों से मिलते हैं, तो कहते हैं कि हम ईमान ले आए और जब अकेले में अपने शैतानों (प्रमुखों) के साथ होते हैं, तो कहते हैं कि निःसंदेह हम तुम्हारे साथ हैं। हम तो केवल उपहास करने वाले हैं।
ٱللَّهُ یَسۡتَهۡزِئُ بِهِمۡ وَیَمُدُّهُمۡ فِی طُغۡیَـٰنِهِمۡ یَعۡمَهُونَ ﴿١٥﴾
अल्लाह उनका मज़ाक़ उड़ाता है और उन्हें ढील दे रहा है, अपनी सरकशी में भटकते फिरते हैं।
أُوْلَـٰۤىِٕكَ ٱلَّذِینَ ٱشۡتَرَوُاْ ٱلضَّلَـٰلَةَ بِٱلۡهُدَىٰ فَمَا رَبِحَت تِّجَـٰرَتُهُمۡ وَمَا كَانُواْ مُهۡتَدِینَ ﴿١٦﴾
यही लोग हैं, जिन्होंने हिदायत (मार्गदर्शन) के बदले गुमराही खरीद ली। तो न उनके व्यापार ने लाभ दिया और न वे हिदायत पाने वाले बने।
مَثَلُهُمۡ كَمَثَلِ ٱلَّذِی ٱسۡتَوۡقَدَ نَارࣰا فَلَمَّاۤ أَضَاۤءَتۡ مَا حَوۡلَهُۥ ذَهَبَ ٱللَّهُ بِنُورِهِمۡ وَتَرَكَهُمۡ فِی ظُلُمَـٰتࣲ لَّا یُبۡصِرُونَ ﴿١٧﴾
उनका[7] उदाहरण उस व्यक्ति के उदाहरण जैसा है, जिसने एक आग भड़काई, फिर जब उसने उसके आस-पास की चीज़ों को प्रकाशित कर दिया, तो अल्लाह ने उनका प्रकाश छीन लिया और उन्हें कई तरह के अँधेरों में छोड़ दिया कि वे नहीं देखते।
صُمُّۢ بُكۡمٌ عُمۡیࣱ فَهُمۡ لَا یَرۡجِعُونَ ﴿١٨﴾
(वे) बहरे हैं, गूँगे हैं, अंधे हैं। अतः वे नहीं लौटते।
أَوۡ كَصَیِّبࣲ مِّنَ ٱلسَّمَاۤءِ فِیهِ ظُلُمَـٰتࣱ وَرَعۡدࣱ وَبَرۡقࣱ یَجۡعَلُونَ أَصَـٰبِعَهُمۡ فِیۤ ءَاذَانِهِم مِّنَ ٱلصَّوَ ٰعِقِ حَذَرَ ٱلۡمَوۡتِۚ وَٱللَّهُ مُحِیطُۢ بِٱلۡكَـٰفِرِینَ ﴿١٩﴾
या[8] आकाश से होने वाली वर्षा के समान, जिसमें कई अँधेरे हैं, तथा गरज और चमक है। वे कड़कने वाली बिजलियों के कारण मृत्यु के भय से अपनी उंगलियाँ अपने कानों में डाल लेते हैं और अल्लाह काफ़िरों को घेरे हुए है।
یَكَادُ ٱلۡبَرۡقُ یَخۡطَفُ أَبۡصَـٰرَهُمۡۖ كُلَّمَاۤ أَضَاۤءَ لَهُم مَّشَوۡاْ فِیهِ وَإِذَاۤ أَظۡلَمَ عَلَیۡهِمۡ قَامُواْۚ وَلَوۡ شَاۤءَ ٱللَّهُ لَذَهَبَ بِسَمۡعِهِمۡ وَأَبۡصَـٰرِهِمۡۚ إِنَّ ٱللَّهَ عَلَىٰ كُلِّ شَیۡءࣲ قَدِیرࣱ ﴿٢٠﴾
निकट है कि बिजली उनकी आँखों को उचक ले जाए। जब भी वह उनके लिए रोशनी करती है, तो उसमें चल पड़ते हैं और जब वह उनपर अँधेरा कर देती है, तो खड़े हो जाते हैं। और यदि अल्लाह चाहता, तो अवश्य उनके कान और उनकी आँखों को ले जाता। निःसंदेह अल्लाह हर चीज़ पर सर्वशक्तिमान है।
یَـٰۤأَیُّهَا ٱلنَّاسُ ٱعۡبُدُواْ رَبَّكُمُ ٱلَّذِی خَلَقَكُمۡ وَٱلَّذِینَ مِن قَبۡلِكُمۡ لَعَلَّكُمۡ تَتَّقُونَ ﴿٢١﴾
ऐ लोगो! अपने उस पालनहार की इबादत करो, जिसने तुम्हें तथा तुमसे पहले के लोगों को पैदा किया, ताकि तुम बच[9] जाओ।
ٱلَّذِی جَعَلَ لَكُمُ ٱلۡأَرۡضَ فِرَ ٰشࣰا وَٱلسَّمَاۤءَ بِنَاۤءࣰ وَأَنزَلَ مِنَ ٱلسَّمَاۤءِ مَاۤءࣰ فَأَخۡرَجَ بِهِۦ مِنَ ٱلثَّمَرَ ٰتِ رِزۡقࣰا لَّكُمۡۖ فَلَا تَجۡعَلُواْ لِلَّهِ أَندَادࣰا وَأَنتُمۡ تَعۡلَمُونَ ﴿٢٢﴾
जिसने तुम्हारे लिए धरती को एक बिछौना तथा आकाश को एक छत बनाया और आकाश से कुछ पानी उतारा, फिर उससे कई प्रकार के फल तुम्हारी जीविका के लिए पैदा किए। अतः अल्लाह के लिए किसी प्रकार के साझी न बनाओ, जबकि तुम जानते हो।[10]
وَإِن كُنتُمۡ فِی رَیۡبࣲ مِّمَّا نَزَّلۡنَا عَلَىٰ عَبۡدِنَا فَأۡتُواْ بِسُورَةࣲ مِّن مِّثۡلِهِۦ وَٱدۡعُواْ شُهَدَاۤءَكُم مِّن دُونِ ٱللَّهِ إِن كُنتُمۡ صَـٰدِقِینَ ﴿٢٣﴾
और यदि तुम उस (पुस्तक) के बारे में किसी संदेह में हो, जो हमने अपने बंदे पर उतारा है, तो उसके समान एक सूरत ले आओ और अल्लाह के सिवा अपने समर्थकों को भी बुला लो, यदि तुम सच्चे[11] हो।
فَإِن لَّمۡ تَفۡعَلُواْ وَلَن تَفۡعَلُواْ فَٱتَّقُواْ ٱلنَّارَ ٱلَّتِی وَقُودُهَا ٱلنَّاسُ وَٱلۡحِجَارَةُۖ أُعِدَّتۡ لِلۡكَـٰفِرِینَ ﴿٢٤﴾
फिर यदि तुमने ऐसा न किया और तुम ऐसा कभी नहीं कर पाओगे, तो उस आग से बचो, जिसका ईंधन मानव तथा पत्थर हैं, जो काफ़िरों के लिए तैयार की गई है।
وَبَشِّرِ ٱلَّذِینَ ءَامَنُواْ وَعَمِلُواْ ٱلصَّـٰلِحَـٰتِ أَنَّ لَهُمۡ جَنَّـٰتࣲ تَجۡرِی مِن تَحۡتِهَا ٱلۡأَنۡهَـٰرُۖ كُلَّمَا رُزِقُواْ مِنۡهَا مِن ثَمَرَةࣲ رِّزۡقࣰا قَالُواْ هَـٰذَا ٱلَّذِی رُزِقۡنَا مِن قَبۡلُۖ وَأُتُواْ بِهِۦ مُتَشَـٰبِهࣰاۖ وَلَهُمۡ فِیهَاۤ أَزۡوَ ٰجࣱ مُّطَهَّرَةࣱۖ وَهُمۡ فِیهَا خَـٰلِدُونَ ﴿٢٥﴾
और (ऐ नबी!) उन लोगों को शुभ सूचना दे दो, जो ईमान लाए तथा उन्होंने अच्छे काम किए कि निःसंदेह उनके लिए ऐसे स्वर्ग हैं, जिनके नीचे से नहरें बहती हैं। जब कभी उनमें से कोई फल उन्हें खाने के लिए दिया जाएगा, तो कहेंगे : यह तो वही है, जो इससे पहले हमें दिया गया था, तथा उन्हें एक-दूसरे से मिलता-जुलता फल दिया जाएगा तथा उनके लिए उनमें पवित्र पत्नियाँ होंगी और वे उनमें हमेशा रहने वाले हैं।
۞ إِنَّ ٱللَّهَ لَا یَسۡتَحۡیِۦۤ أَن یَضۡرِبَ مَثَلࣰا مَّا بَعُوضَةࣰ فَمَا فَوۡقَهَاۚ فَأَمَّا ٱلَّذِینَ ءَامَنُواْ فَیَعۡلَمُونَ أَنَّهُ ٱلۡحَقُّ مِن رَّبِّهِمۡۖ وَأَمَّا ٱلَّذِینَ كَفَرُواْ فَیَقُولُونَ مَاذَاۤ أَرَادَ ٱللَّهُ بِهَـٰذَا مَثَلࣰاۘ یُضِلُّ بِهِۦ كَثِیرࣰا وَیَهۡدِی بِهِۦ كَثِیرࣰاۚ وَمَا یُضِلُّ بِهِۦۤ إِلَّا ٱلۡفَـٰسِقِینَ ﴿٢٦﴾
निःसंदेह अल्लाह[12] मच्छर अथवा उससे तुच्छ चीज़ की मिसाल देने से नहीं शरमाता। फिर जो ईमान लाए, वे जानते हैं कि यह उनके पालनहार की ओर से सत्य है और रहे वे जिन्होंने कुफ़्र किया, तो वे कहते हैं : अल्लाह ने इसके साथ उदाहरण देकर क्या इरादा किया है? वह इसके साथ बहुतों को गुमराह करता है और इसके साथ बहुतों को हिदायत देता है तथा वह इसके साथ केवल अवज्ञाकारियों को गुमराह करता है।
ٱلَّذِینَ یَنقُضُونَ عَهۡدَ ٱللَّهِ مِنۢ بَعۡدِ مِیثَـٰقِهِۦ وَیَقۡطَعُونَ مَاۤ أَمَرَ ٱللَّهُ بِهِۦۤ أَن یُوصَلَ وَیُفۡسِدُونَ فِی ٱلۡأَرۡضِۚ أُوْلَـٰۤىِٕكَ هُمُ ٱلۡخَـٰسِرُونَ ﴿٢٧﴾
जो अल्लाह से पक्का वचन करने के बाद उसे भंग कर देते हैं तथा जिसे अल्लाह ने जोड़ने का आदेश दिया है, उसे तोड़ते हैं और धरती में उपद्रव करते हैं, यही लोग घाटा उठाने वाले हैं।
كَیۡفَ تَكۡفُرُونَ بِٱللَّهِ وَكُنتُمۡ أَمۡوَ ٰتࣰا فَأَحۡیَـٰكُمۡۖ ثُمَّ یُمِیتُكُمۡ ثُمَّ یُحۡیِیكُمۡ ثُمَّ إِلَیۡهِ تُرۡجَعُونَ ﴿٢٨﴾
तुम अल्लाह का इनकार कैसे करते हो? जबकि तुम निर्जीव थे, तो उसने तुम्हें जीवन दिया, फिर वह तुम्हें मौत देगा, फिर तुम्हें (परलोक में) जीवित करेगा, फिर तुम उसी की ओर लौटाए[13] जाओगे।
هُوَ ٱلَّذِی خَلَقَ لَكُم مَّا فِی ٱلۡأَرۡضِ جَمِیعࣰا ثُمَّ ٱسۡتَوَىٰۤ إِلَى ٱلسَّمَاۤءِ فَسَوَّىٰهُنَّ سَبۡعَ سَمَـٰوَ ٰتࣲۚ وَهُوَ بِكُلِّ شَیۡءٍ عَلِیمࣱ ﴿٢٩﴾
वही है, जिसने धरती में जो कुछ है, सब तुम्हारे लिए पैदा किया, फिर आकाश की ओर रुख़ किया, तो उन्हें ठीक करके सात आकाश बना दिया और वह प्रत्येक चीज़ को ख़ूब जानने वाला है।
وَإِذۡ قَالَ رَبُّكَ لِلۡمَلَـٰۤىِٕكَةِ إِنِّی جَاعِلࣱ فِی ٱلۡأَرۡضِ خَلِیفَةࣰۖ قَالُوۤاْ أَتَجۡعَلُ فِیهَا مَن یُفۡسِدُ فِیهَا وَیَسۡفِكُ ٱلدِّمَاۤءَ وَنَحۡنُ نُسَبِّحُ بِحَمۡدِكَ وَنُقَدِّسُ لَكَۖ قَالَ إِنِّیۤ أَعۡلَمُ مَا لَا تَعۡلَمُونَ ﴿٣٠﴾
और (ऐ नबी! याद कीजिए) जब आपके पालनहार ने फ़रिश्तों से कहा कि मैं धरती में एक ख़लीफ़ा[14] बनाने वाला हूँ। उन्होंने कहा : क्या तू उसमें उसको बनाएगा, जो उसमें उपद्रव करेगा तथा बहुत रक्तपात करेगा, जबकि हम तेरी प्रशंसा के साथ तेरा गुणगान करते और तेरी पवित्रता का वर्णन करते हैं। (अल्लाह ने) फरमाया : निःसंदेह मैं जानता हूँ जो तुम नहीं जानते।
وَعَلَّمَ ءَادَمَ ٱلۡأَسۡمَاۤءَ كُلَّهَا ثُمَّ عَرَضَهُمۡ عَلَى ٱلۡمَلَـٰۤىِٕكَةِ فَقَالَ أَنۢبِـُٔونِی بِأَسۡمَاۤءِ هَـٰۤؤُلَاۤءِ إِن كُنتُمۡ صَـٰدِقِینَ ﴿٣١﴾
और उस (अल्लाह) ने आदम[15] को सभी नाम सिखा दिए, फिर उन्हें फ़रिश्तों के समक्ष प्रस्तुत किया, फिर फरमाया : मुझे इनके नाम बताओ, यदि तुम सच्चे हो।
قَالُواْ سُبۡحَـٰنَكَ لَا عِلۡمَ لَنَاۤ إِلَّا مَا عَلَّمۡتَنَاۤۖ إِنَّكَ أَنتَ ٱلۡعَلِیمُ ٱلۡحَكِیمُ ﴿٣٢﴾
उन्होंने कहा : तू पवित्र है। हमें कुछ ज्ञान नहीं परंतु जो तूने हमें सिखाया। निःसंदेह तू ही सब कुछ जानने वाला, पूर्ण हिकमत[16] वाला है।
قَالَ یَـٰۤـَٔادَمُ أَنۢبِئۡهُم بِأَسۡمَاۤىِٕهِمۡۖ فَلَمَّاۤ أَنۢبَأَهُم بِأَسۡمَاۤىِٕهِمۡ قَالَ أَلَمۡ أَقُل لَّكُمۡ إِنِّیۤ أَعۡلَمُ غَیۡبَ ٱلسَّمَـٰوَ ٰتِ وَٱلۡأَرۡضِ وَأَعۡلَمُ مَا تُبۡدُونَ وَمَا كُنتُمۡ تَكۡتُمُونَ ﴿٣٣﴾
(अल्लाह ने) फरमाया : ऐ आदम! उन्हें इनके नाम बताओ। तो जब उस (आदम) ने उन्हें उनके नाम बता दिए, तो अल्लाह ने कहा : क्या मैंने तुमसे नहीं कहा था कि निःसंदेह मैं ही आकाशों तथा धरती की छिपी बातों को जानता हूँ तथा जानता हूँ जो कुछ तुम ज़ाहिर करते हो और जो कुछ तुम छिपाते हो।
وَإِذۡ قُلۡنَا لِلۡمَلَـٰۤىِٕكَةِ ٱسۡجُدُواْ لِـَٔادَمَ فَسَجَدُوۤاْ إِلَّاۤ إِبۡلِیسَ أَبَىٰ وَٱسۡتَكۡبَرَ وَكَانَ مِنَ ٱلۡكَـٰفِرِینَ ﴿٣٤﴾
और जब हमने फ़रिश्तों से कहा : आदम को सजदा करो, तो उन्होंने सजदा किया सिवाय इबलीस के। उसने इनकार किया और अभिमान किया और काफ़िरों में से हो गया।
وَقُلۡنَا یَـٰۤـَٔادَمُ ٱسۡكُنۡ أَنتَ وَزَوۡجُكَ ٱلۡجَنَّةَ وَكُلَا مِنۡهَا رَغَدًا حَیۡثُ شِئۡتُمَا وَلَا تَقۡرَبَا هَـٰذِهِ ٱلشَّجَرَةَ فَتَكُونَا مِنَ ٱلظَّـٰلِمِینَ ﴿٣٥﴾
और हमने कहा : ऐ आदम! तुम और तुम्हारी पत्नी जन्नत में निवास करो और दोनों उसमें से जहाँ से चाहो वहाँ से (आराम और) बहुतायत से खाओ। और तुम दोनों इस वृक्ष के क़रीब न जाना, अन्यथा तुम दोनों अत्याचारियों में से हो जाओगे।
فَأَزَلَّهُمَا ٱلشَّیۡطَـٰنُ عَنۡهَا فَأَخۡرَجَهُمَا مِمَّا كَانَا فِیهِۖ وَقُلۡنَا ٱهۡبِطُواْ بَعۡضُكُمۡ لِبَعۡضٍ عَدُوࣱّۖ وَلَكُمۡ فِی ٱلۡأَرۡضِ مُسۡتَقَرࣱّ وَمَتَـٰعٌ إِلَىٰ حِینࣲ ﴿٣٦﴾
तो शैतान ने दोनों को उससे फिसला दिया, चुनाँचे उन्हें उससे निकाल दिया, जिसमें वे दोनों थे और हमने कहा : उतर जाओ, तुम एक-दूसरे के शत्रु हो और तुम्हारे लिए धरती में एक समय[17] तक ठहरना तथा लाभ उठाना है।
فَتَلَقَّىٰۤ ءَادَمُ مِن رَّبِّهِۦ كَلِمَـٰتࣲ فَتَابَ عَلَیۡهِۚ إِنَّهُۥ هُوَ ٱلتَّوَّابُ ٱلرَّحِیمُ ﴿٣٧﴾
फिर आदम ने अपने पालनहार से कुछ शब्द सीख लिए, तो उसने उसकी तौबा क़बूल कर ली। निश्चय वही है जो बहुत तौबा क़बूल करने वाला, अत्यंत दयावान्[18] है।
قُلۡنَا ٱهۡبِطُواْ مِنۡهَا جَمِیعࣰاۖ فَإِمَّا یَأۡتِیَنَّكُم مِّنِّی هُدࣰى فَمَن تَبِعَ هُدَایَ فَلَا خَوۡفٌ عَلَیۡهِمۡ وَلَا هُمۡ یَحۡزَنُونَ ﴿٣٨﴾
हमने कहा : सब के सब इससे उतर जाओ। फिर यदि तुम्हारे पास मेरी ओर से कोई मार्गदर्शन आए, तो जिसने मेरे मार्गदर्शन का पालन किया, तो उनपर न कोई डर है और न वे शोकाकुल होंगे।
وَٱلَّذِینَ كَفَرُواْ وَكَذَّبُواْ بِـَٔایَـٰتِنَاۤ أُوْلَـٰۤىِٕكَ أَصۡحَـٰبُ ٱلنَّارِۖ هُمۡ فِیهَا خَـٰلِدُونَ ﴿٣٩﴾
तथा जिन्होंने कुफ़्र किया और हमारी आयतों को झुठलाया, वही लोग आग (नरक) वाले हैं, वे उसमें हमेशा रहने वाले हैं।
یَـٰبَنِیۤ إِسۡرَ ٰۤءِیلَ ٱذۡكُرُواْ نِعۡمَتِیَ ٱلَّتِیۤ أَنۡعَمۡتُ عَلَیۡكُمۡ وَأَوۡفُواْ بِعَهۡدِیۤ أُوفِ بِعَهۡدِكُمۡ وَإِیَّـٰیَ فَٱرۡهَبُونِ ﴿٤٠﴾
ऐ बनी इसराईल![19] मेरी वह नेमत याद करो, जो मैंने तुम्हें प्रदान की, तथा तुम मेरी प्रतिज्ञा को पूरा करो, मैं तुम्हारी प्रतिज्ञा को पूरा करूँगा, तथा केवल मुझी से डरो।[20]
وَءَامِنُواْ بِمَاۤ أَنزَلۡتُ مُصَدِّقࣰا لِّمَا مَعَكُمۡ وَلَا تَكُونُوۤاْ أَوَّلَ كَافِرِۭ بِهِۦۖ وَلَا تَشۡتَرُواْ بِـَٔایَـٰتِی ثَمَنࣰا قَلِیلࣰا وَإِیَّـٰیَ فَٱتَّقُونِ ﴿٤١﴾
तथा उस (क़ुरआन) पर ईमान लाओ, जो मैंने उतारा है, उसकी पुष्टि करने वाला है जो तुम्हारे पास[21] है और तुम सबसे पहले इससे कुफ़्र करने वाले न बनो तथा मेरी आयतों के बदले थोड़ा मूल्य न लो और केवल मुझी से डरो।
وَلَا تَلۡبِسُواْ ٱلۡحَقَّ بِٱلۡبَـٰطِلِ وَتَكۡتُمُواْ ٱلۡحَقَّ وَأَنتُمۡ تَعۡلَمُونَ ﴿٤٢﴾
तथा सत्य को असत्य से न मिलाओ और न सत्य को जानते हुए छिपाओ।[22]
وَأَقِیمُواْ ٱلصَّلَوٰةَ وَءَاتُواْ ٱلزَّكَوٰةَ وَٱرۡكَعُواْ مَعَ ٱلرَّ ٰكِعِینَ ﴿٤٣﴾
तथा नमाज़ क़ायम करो और ज़कात दो और झुकने वालों के साथ झुक जाओ।
۞ أَتَأۡمُرُونَ ٱلنَّاسَ بِٱلۡبِرِّ وَتَنسَوۡنَ أَنفُسَكُمۡ وَأَنتُمۡ تَتۡلُونَ ٱلۡكِتَـٰبَۚ أَفَلَا تَعۡقِلُونَ ﴿٤٤﴾
क्या तुम लोगों को सत्कर्म का आदेश देते हो और अपने आपको भूल जाते हो, हालाँकि तुम पुस्तक पढ़ते हो! तो क्या तुम नहीं समझते?[23]
وَٱسۡتَعِینُواْ بِٱلصَّبۡرِ وَٱلصَّلَوٰةِۚ وَإِنَّهَا لَكَبِیرَةٌ إِلَّا عَلَى ٱلۡخَـٰشِعِینَ ﴿٤٥﴾
तथा सब्र और नमाज़ से मदद माँगो और निःसंदेह वह (नमाज़) निश्चय बहुत भारी है, परंतु अल्लाह के प्रति पूर्ण समर्पण करने वालों पर (नहीं)।[24]
ٱلَّذِینَ یَظُنُّونَ أَنَّهُم مُّلَـٰقُواْ رَبِّهِمۡ وَأَنَّهُمۡ إِلَیۡهِ رَ ٰجِعُونَ ﴿٤٦﴾
जो विश्वास रखते हैं कि निःसंदेह वे अपने पालनहार से मिलने वाले हैं और यह कि निःसंदेह वे उसी की ओर लौटने वाले हैं।
یَـٰبَنِیۤ إِسۡرَ ٰۤءِیلَ ٱذۡكُرُواْ نِعۡمَتِیَ ٱلَّتِیۤ أَنۡعَمۡتُ عَلَیۡكُمۡ وَأَنِّی فَضَّلۡتُكُمۡ عَلَى ٱلۡعَـٰلَمِینَ ﴿٤٧﴾
ऐ इसराईल की संतान! मेरे उस अनुग्रह को याद करो, जो मैंने तुमपर किया और यह कि निःसंदेह मैंने ही तुम्हें संसार वालों पर श्रेष्ठता प्रदान की।
وَٱتَّقُواْ یَوۡمࣰا لَّا تَجۡزِی نَفۡسٌ عَن نَّفۡسࣲ شَیۡـࣰٔا وَلَا یُقۡبَلُ مِنۡهَا شَفَـٰعَةࣱ وَلَا یُؤۡخَذُ مِنۡهَا عَدۡلࣱ وَلَا هُمۡ یُنصَرُونَ ﴿٤٨﴾
तथा उस दिन से डरो, जब कोई किसी के कुछ काम न आएगा, और न उससे कोई अनुशंसा (सिफ़ारिश) स्वीकार की जाएगी, और न उससे कोई फ़िदया (दंड राशि) लिया जाएगा और न उनकी मदद की जाएगी।
وَإِذۡ نَجَّیۡنَـٰكُم مِّنۡ ءَالِ فِرۡعَوۡنَ یَسُومُونَكُمۡ سُوۤءَ ٱلۡعَذَابِ یُذَبِّحُونَ أَبۡنَاۤءَكُمۡ وَیَسۡتَحۡیُونَ نِسَاۤءَكُمۡۚ وَفِی ذَ ٰلِكُم بَلَاۤءࣱ مِّن رَّبِّكُمۡ عَظِیمࣱ ﴿٤٩﴾
तथा (वह समय याद करो) जब हमने तुम्हें फ़िरऔनियों[25] से मुक्ति दिलाई, जो तुम्हें बुरी यातना देते थे; तुम्हारे बेटों को बुरी तरह ज़बह कर देते थे तथा तुम्हारी स्त्रियों को जीवित छोड़ देते थे। इसमें तुम्हारे पालनहार की ओर से बड़ी परीक्षा थी।
وَإِذۡ فَرَقۡنَا بِكُمُ ٱلۡبَحۡرَ فَأَنجَیۡنَـٰكُمۡ وَأَغۡرَقۡنَاۤ ءَالَ فِرۡعَوۡنَ وَأَنتُمۡ تَنظُرُونَ ﴿٥٠﴾
तथा (उस समय को याद करो) जब हमने तुम्हारे लिए सागर को फाड़ दिया, फिर हमने तुम्हें बचा लिया और फ़िरऔनियों को डुबो दिया और तुम देख रहे थे।
وَإِذۡ وَ ٰعَدۡنَا مُوسَىٰۤ أَرۡبَعِینَ لَیۡلَةࣰ ثُمَّ ٱتَّخَذۡتُمُ ٱلۡعِجۡلَ مِنۢ بَعۡدِهِۦ وَأَنتُمۡ ظَـٰلِمُونَ ﴿٥١﴾
तथा (याद करो) जब हमने मूसा को (तौरात प्रदान करने के लिए) चालीस रातों का वादा किया, फिर उसके बाद तुमने बछड़े को (पूज्य) बना लिया और तुम अत्याचारी थे।
ثُمَّ عَفَوۡنَا عَنكُم مِّنۢ بَعۡدِ ذَ ٰلِكَ لَعَلَّكُمۡ تَشۡكُرُونَ ﴿٥٢﴾
फिर हमने इसके बाद तुम्हें क्षमा कर दिया, ताकि तुम शुक्रगुज़ार बनो।
وَإِذۡ ءَاتَیۡنَا مُوسَى ٱلۡكِتَـٰبَ وَٱلۡفُرۡقَانَ لَعَلَّكُمۡ تَهۡتَدُونَ ﴿٥٣﴾
तथा (हमारी वह अनुग्रह भी याद करो) जब हमने मूसा को पुस्तक (तौरात) और (सत्य एवं असत्य के बीच) अंतर करने वाली चीज़[26] प्रदान की, ताकि तुम मार्गदर्शन पा सको।
وَإِذۡ قَالَ مُوسَىٰ لِقَوۡمِهِۦ یَـٰقَوۡمِ إِنَّكُمۡ ظَلَمۡتُمۡ أَنفُسَكُم بِٱتِّخَاذِكُمُ ٱلۡعِجۡلَ فَتُوبُوۤاْ إِلَىٰ بَارِىِٕكُمۡ فَٱقۡتُلُوۤاْ أَنفُسَكُمۡ ذَ ٰلِكُمۡ خَیۡرࣱ لَّكُمۡ عِندَ بَارِىِٕكُمۡ فَتَابَ عَلَیۡكُمۡۚ إِنَّهُۥ هُوَ ٱلتَّوَّابُ ٱلرَّحِیمُ ﴿٥٤﴾
तथा (वह समय याद करो) जब मूसा ने अपनी जाति से कहा : ऐ मेरी जाति के लोगो! निःसंदेह तुमने बछड़े को पूज्य बनाकर अपने आपपर अत्याचार किया है। अतः तुम अपने पैदा करने वाले के समक्ष तौबा करो और आपस में एक-दूसरे[27] को क़त्ल करो। यही तुम्हारे लिए तुम्हारे पैदा करने वाले के निकट बेहतर है। फिर उसने तुम्हारी तौबा क़बूल कर ली। निःसंदेह वही बहुत तौबा क़बूल करने वाला, अत्यंत दयावान् है।
وَإِذۡ قُلۡتُمۡ یَـٰمُوسَىٰ لَن نُّؤۡمِنَ لَكَ حَتَّىٰ نَرَى ٱللَّهَ جَهۡرَةࣰ فَأَخَذَتۡكُمُ ٱلصَّـٰعِقَةُ وَأَنتُمۡ تَنظُرُونَ ﴿٥٥﴾
तथा (वह समय याद करो) जब तुमने कहा : ऐ मूसा! हम कदापि तुम्हारा विश्वास नहीं करेंगे, यहाँ तक कि हम अल्लाह को खुल्लम-खुल्ला देख लें! तो तुम्हें बिजली की कड़क ने पकड़ लिया और तुम देख रहे थे।
ثُمَّ بَعَثۡنَـٰكُم مِّنۢ بَعۡدِ مَوۡتِكُمۡ لَعَلَّكُمۡ تَشۡكُرُونَ ﴿٥٦﴾
फिर हमने तुम्हें तुम्हारे मरने के बाद जीवित किया, ताकि तुम आभार प्रकट करो।
وَظَلَّلۡنَا عَلَیۡكُمُ ٱلۡغَمَامَ وَأَنزَلۡنَا عَلَیۡكُمُ ٱلۡمَنَّ وَٱلسَّلۡوَىٰۖ كُلُواْ مِن طَیِّبَـٰتِ مَا رَزَقۡنَـٰكُمۡۚ وَمَا ظَلَمُونَا وَلَـٰكِن كَانُوۤاْ أَنفُسَهُمۡ یَظۡلِمُونَ ﴿٥٧﴾
और हमने तुमपर बादलों की छाया[28] की, तथा हमने तुमपर 'मन्न'[29] और 'सलवा' उतारा, (और तुमसे कहा :) उन अच्छी पाक चीज़ों में से खाओ, जो हमने तुम्हें प्रदान की हैं। और उन्होंने हमपर अत्याचार नहीं किया, परंतु वे अपने आप ही पर अत्याचार किया करते थे।
وَإِذۡ قُلۡنَا ٱدۡخُلُواْ هَـٰذِهِ ٱلۡقَرۡیَةَ فَكُلُواْ مِنۡهَا حَیۡثُ شِئۡتُمۡ رَغَدࣰا وَٱدۡخُلُواْ ٱلۡبَابَ سُجَّدࣰا وَقُولُواْ حِطَّةࣱ نَّغۡفِرۡ لَكُمۡ خَطَـٰیَـٰكُمۡۚ وَسَنَزِیدُ ٱلۡمُحۡسِنِینَ ﴿٥٨﴾
और (याद करो) जब हमने कहा : इस बस्ती[30] में प्रवेश कर जाओ, फिर इसमें से जहाँ से चाहो, (आराम और) बहुतायत से खाओ, और इसके द्वार से सिर झुकाए हुए प्रवेश करो, और कहो क्षमा कर दे, तो हम तुम्हारे पापों को क्षमा कर देंगे तथा हम नेकी करने वालों को शीघ्र ही अधिक प्रदान करेंगे।
فَبَدَّلَ ٱلَّذِینَ ظَلَمُواْ قَوۡلًا غَیۡرَ ٱلَّذِی قِیلَ لَهُمۡ فَأَنزَلۡنَا عَلَى ٱلَّذِینَ ظَلَمُواْ رِجۡزࣰا مِّنَ ٱلسَّمَاۤءِ بِمَا كَانُواْ یَفۡسُقُونَ ﴿٥٩﴾
फिर इन अत्याचारियों ने बात को उसके विपरीत बदल दिया, जो उनसे कही गई थी। तो हमने इन अत्याचारियों पर आकाश से एक यातना उतारी, इस कारण कि वे अवज्ञा करते थे।
۞ وَإِذِ ٱسۡتَسۡقَىٰ مُوسَىٰ لِقَوۡمِهِۦ فَقُلۡنَا ٱضۡرِب بِّعَصَاكَ ٱلۡحَجَرَۖ فَٱنفَجَرَتۡ مِنۡهُ ٱثۡنَتَا عَشۡرَةَ عَیۡنࣰاۖ قَدۡ عَلِمَ كُلُّ أُنَاسࣲ مَّشۡرَبَهُمۡۖ كُلُواْ وَٱشۡرَبُواْ مِن رِّزۡقِ ٱللَّهِ وَلَا تَعۡثَوۡاْ فِی ٱلۡأَرۡضِ مُفۡسِدِینَ ﴿٦٠﴾
तथा (वह समय याद करो) जब मूसा ने अपनी जाति के लिए पानी माँगा, तो हमने कहा : अपनी लाठी पत्थर पर मारो। तो उससे बारह[31] सोते फूट निकले। निःसंदेह सब लोगों ने अपने पीने के स्थान को जान लिया। अल्लाह के दिए हुए में से खाओ और पियो और धरती में बिगाड़ फैलाते न फिरो।
وَإِذۡ قُلۡتُمۡ یَـٰمُوسَىٰ لَن نَّصۡبِرَ عَلَىٰ طَعَامࣲ وَ ٰحِدࣲ فَٱدۡعُ لَنَا رَبَّكَ یُخۡرِجۡ لَنَا مِمَّا تُنۢبِتُ ٱلۡأَرۡضُ مِنۢ بَقۡلِهَا وَقِثَّاۤىِٕهَا وَفُومِهَا وَعَدَسِهَا وَبَصَلِهَاۖ قَالَ أَتَسۡتَبۡدِلُونَ ٱلَّذِی هُوَ أَدۡنَىٰ بِٱلَّذِی هُوَ خَیۡرٌۚ ٱهۡبِطُواْ مِصۡرࣰا فَإِنَّ لَكُم مَّا سَأَلۡتُمۡۗ وَضُرِبَتۡ عَلَیۡهِمُ ٱلذِّلَّةُ وَٱلۡمَسۡكَنَةُ وَبَاۤءُو بِغَضَبࣲ مِّنَ ٱللَّهِۗ ذَ ٰلِكَ بِأَنَّهُمۡ كَانُواْ یَكۡفُرُونَ بِـَٔایَـٰتِ ٱللَّهِ وَیَقۡتُلُونَ ٱلنَّبِیِّـۧنَ بِغَیۡرِ ٱلۡحَقِّۗ ذَ ٰلِكَ بِمَا عَصَواْ وَّكَانُواْ یَعۡتَدُونَ ﴿٦١﴾
तथा (उस समय को याद करो) जब तुमने कहा : ऐ मूसा! हम एक (ही प्रकार के) खाने पर कदापि संतोष नहीं करेंगे। अतः हमारे लिए अपने पालनहार से प्रार्थना करो, वह हमारे लिए कुछ ऐसी चीज़ें निकाले जो धरती अपनी तरकारी, और अपनी ककड़ी, और अपने गेहूँ, और अपने मसूर और अपने प्याज़ में से उगाती है। (मूसा ने) कहा : क्या तुम उत्तम वस्तु के बदले कमतर वस्तु माँग रहे हो? किसी नगर में जा उतरो, तो निश्चय तुम्हारे लिए वह कुछ होगा, जो तुमने माँगा। तथा उनपर अपमान और निर्धनता थोप दी गई और वे अल्लाह की ओर से भारी प्रकोप के साथ लौटे। यह इसलिए कि वे अल्लाह की आयतों का इनकार करते और नबियों की अकारण हत्या करते थे। यह इसलिए कि उन्होंने अवज्ञा की तथा वे (धर्म की) सीमा का उल्लंघन करते थे।
إِنَّ ٱلَّذِینَ ءَامَنُواْ وَٱلَّذِینَ هَادُواْ وَٱلنَّصَـٰرَىٰ وَٱلصَّـٰبِـِٔینَ مَنۡ ءَامَنَ بِٱللَّهِ وَٱلۡیَوۡمِ ٱلۡـَٔاخِرِ وَعَمِلَ صَـٰلِحࣰا فَلَهُمۡ أَجۡرُهُمۡ عِندَ رَبِّهِمۡ وَلَا خَوۡفٌ عَلَیۡهِمۡ وَلَا هُمۡ یَحۡزَنُونَ ﴿٦٢﴾
निःसंदेह जो लोग ईमान लाए, और जो यहूदी बने, तथा ईसाई और साबी, जो भी अल्लाह तथा अंतिम दिन पर ईमान लाएगा और अच्छे कर्म करेगा, तो उनके लिए उनका प्रतिफल उनके पालनहार के पास है और उनपर न कोई डर है और न वे शोकाकुल होंगे।[32]
وَإِذۡ أَخَذۡنَا مِیثَـٰقَكُمۡ وَرَفَعۡنَا فَوۡقَكُمُ ٱلطُّورَ خُذُواْ مَاۤ ءَاتَیۡنَـٰكُم بِقُوَّةࣲ وَٱذۡكُرُواْ مَا فِیهِ لَعَلَّكُمۡ تَتَّقُونَ ﴿٦٣﴾
और (उस समय को याद करो) जब हमने तुमसे दृढ़ वचन लिया और तूर (पर्वत) को तुम्हारे ऊपर उठाया। हमने जो (पुस्तक) तुम्हें दी है, उसे मज़बूती से पकड़ो और जो उसमें (आदेश-निर्देश) है, उसे याद करो; ताकि तुम (अज़ाब से) बच जाओ।
ثُمَّ تَوَلَّیۡتُم مِّنۢ بَعۡدِ ذَ ٰلِكَۖ فَلَوۡلَا فَضۡلُ ٱللَّهِ عَلَیۡكُمۡ وَرَحۡمَتُهُۥ لَكُنتُم مِّنَ ٱلۡخَـٰسِرِینَ ﴿٦٤﴾
फिर तुम उसके बाद फिर गए। तो यदि तुमपर अल्लाह का अनुग्रह और उसकी दया न होती, तो निश्चय तुम नुक़सान उठाने वालों में से होते।
وَلَقَدۡ عَلِمۡتُمُ ٱلَّذِینَ ٱعۡتَدَوۡاْ مِنكُمۡ فِی ٱلسَّبۡتِ فَقُلۡنَا لَهُمۡ كُونُواْ قِرَدَةً خَـٰسِـِٔینَ ﴿٦٥﴾
और निःसंदेह तुम उन लोगों को जान चुके हो, जो तुममें से शनिवार (के दिन) में सीमा से बढ़ गए। तो हमने उनसे कहा कि तुम अपमानित बंदर[33] बन जाओ।
فَجَعَلۡنَـٰهَا نَكَـٰلࣰا لِّمَا بَیۡنَ یَدَیۡهَا وَمَا خَلۡفَهَا وَمَوۡعِظَةࣰ لِّلۡمُتَّقِینَ ﴿٦٦﴾
फिर हमने इसे उन लोगों के लिए जो इसके सामने थे और जो इसके पीछे थे, एक इबरत और (अल्लाह से) डरने वालों के लिए एक उपदेश बना दिया।
وَإِذۡ قَالَ مُوسَىٰ لِقَوۡمِهِۦۤ إِنَّ ٱللَّهَ یَأۡمُرُكُمۡ أَن تَذۡبَحُواْ بَقَرَةࣰۖ قَالُوۤاْ أَتَتَّخِذُنَا هُزُوࣰاۖ قَالَ أَعُوذُ بِٱللَّهِ أَنۡ أَكُونَ مِنَ ٱلۡجَـٰهِلِینَ ﴿٦٧﴾
तथा (याद करो) जब मूसा ने अपनी जाति से कहा : निःसंदेह अल्लाह तुम्हें एक गाय ज़बह करने का आदेश देता है। उन्होंने कहा : क्या आप हमें मज़ाक़ बनाते हैं? (मूसा ने) कहा : मैं अल्लाह की पनाह माँगता हूँ कि मैं मूर्खों में से हो जाऊँ।
قَالُواْ ٱدۡعُ لَنَا رَبَّكَ یُبَیِّن لَّنَا مَا هِیَۚ قَالَ إِنَّهُۥ یَقُولُ إِنَّهَا بَقَرَةࣱ لَّا فَارِضࣱ وَلَا بِكۡرٌ عَوَانُۢ بَیۡنَ ذَ ٰلِكَۖ فَٱفۡعَلُواْ مَا تُؤۡمَرُونَ ﴿٦٨﴾
उन्होंने कहा : हमारे लिए अपने पालनहार से प्रार्थना करो, वह हमारे लिए स्पष्ट कर दे वह (गाय) क्या है? (मूसा ने) कहा : निःसंदेह वह कहता है : निःसंदेह वह ऐसी गाय है, जो न बूढ़ी है और न बछड़ी, इसके बीच आयु की है। अतः तुम्हें जो आदेश दिया जा रहा है, उसका पालन करो।
قَالُواْ ٱدۡعُ لَنَا رَبَّكَ یُبَیِّن لَّنَا مَا لَوۡنُهَاۚ قَالَ إِنَّهُۥ یَقُولُ إِنَّهَا بَقَرَةࣱ صَفۡرَاۤءُ فَاقِعࣱ لَّوۡنُهَا تَسُرُّ ٱلنَّـٰظِرِینَ ﴿٦٩﴾
उन्होंने कहा : हमारे लिए अपने पालनहार से प्रार्थना करो, वह हमारे लिए स्पष्ट कर दे उसका रंग क्या है? (मूसा ने) कहा : निःसंदेह वह कहता है कि निःसंदेह वह गाय पीले रंग की है, उसका रंग ख़ूब गहरा है, देखने वालों को प्रसन्न करती है।
قَالُواْ ٱدۡعُ لَنَا رَبَّكَ یُبَیِّن لَّنَا مَا هِیَ إِنَّ ٱلۡبَقَرَ تَشَـٰبَهَ عَلَیۡنَا وَإِنَّاۤ إِن شَاۤءَ ٱللَّهُ لَمُهۡتَدُونَ ﴿٧٠﴾
उन्होंने कहा : हमारे लिए अपने पालनहार से प्रार्थना करो, वह हमारे लिए स्पष्ट कर दे वह (गाय) क्या है? निःसंदेह गायें हमपर एक-दूसरे से मिलती-जुलती हो गई हैं। और निश्चय हम यदि अल्लाह ने चाहा, तो उद्देश्य तक पहुँचने ही वाले हैं।
قَالَ إِنَّهُۥ یَقُولُ إِنَّهَا بَقَرَةࣱ لَّا ذَلُولࣱ تُثِیرُ ٱلۡأَرۡضَ وَلَا تَسۡقِی ٱلۡحَرۡثَ مُسَلَّمَةࣱ لَّا شِیَةَ فِیهَاۚ قَالُواْ ٱلۡـَٔـٰنَ جِئۡتَ بِٱلۡحَقِّۚ فَذَبَحُوهَا وَمَا كَادُواْ یَفۡعَلُونَ ﴿٧١﴾
(मूसा ने) कहा : निःसंदेह वह कहता है कि निःसंदेह वह ऐसी गाय है जो न (जोतने हेतु) सधाई हुई है कि भूमि जोतती हो, और न खेती को पानी देती है। सही-सालिम (दोष रहित) है, उसमें किसी और रंग का निशान नहीं। उन्होंने कहा : अब तू सही बात लाया है। फिर उन्होंने उसे ज़बह़ किया, और वे क़रीब न थे कि करते।
وَإِذۡ قَتَلۡتُمۡ نَفۡسࣰا فَٱدَّ ٰرَ ٰٔۡ تُمۡ فِیهَاۖ وَٱللَّهُ مُخۡرِجࣱ مَّا كُنتُمۡ تَكۡتُمُونَ ﴿٧٢﴾
और (वह समय याद करो) जब तुमने एक व्यक्ति की हत्या कर दी, फिर तुमने उसके बारे में झगड़ा किया और अल्लाह उस बात को निकालने वाला था, जो तुम छिपा रहे थे।
فَقُلۡنَا ٱضۡرِبُوهُ بِبَعۡضِهَاۚ كَذَ ٰلِكَ یُحۡیِ ٱللَّهُ ٱلۡمَوۡتَىٰ وَیُرِیكُمۡ ءَایَـٰتِهِۦ لَعَلَّكُمۡ تَعۡقِلُونَ ﴿٧٣﴾
अतः हमने कहा इस (मक़्तूल) पर उस (गाय) का कोई टुकड़ा मारो।[34] इसी प्रकार अल्लाह मुर्दों को जीवित करता है और तुम्हें अपनी निशानियाँ दिखाता है; ताकि तुम समझो।
ثُمَّ قَسَتۡ قُلُوبُكُم مِّنۢ بَعۡدِ ذَ ٰلِكَ فَهِیَ كَٱلۡحِجَارَةِ أَوۡ أَشَدُّ قَسۡوَةࣰۚ وَإِنَّ مِنَ ٱلۡحِجَارَةِ لَمَا یَتَفَجَّرُ مِنۡهُ ٱلۡأَنۡهَـٰرُۚ وَإِنَّ مِنۡهَا لَمَا یَشَّقَّقُ فَیَخۡرُجُ مِنۡهُ ٱلۡمَاۤءُۚ وَإِنَّ مِنۡهَا لَمَا یَهۡبِطُ مِنۡ خَشۡیَةِ ٱللَّهِۗ وَمَا ٱللَّهُ بِغَـٰفِلٍ عَمَّا تَعۡمَلُونَ ﴿٧٤﴾
फिर इन (निशानियों को देखने) के बाद तुम्हारे दिल कठोर हो गए, तो वे पत्थरों के समान हैं, या कठोरता में (उनसे भी) बढ़कर हैं; और निःसंदेह पत्थरों में से कुछ ऐसे हैं, जिनसे नहरें फूट निकलती हैं, और निःसंदेह उनमें से कुछ वे हैं जो फट जाते हैं, तो उनसे पानी निकलता है, और निःसंदेह उनमें से कुछ वे हैं जो अल्लाह के डर से गिर पड़ते हैं और अल्लाह उससे बिल्कुल ग़ाफ़िल नहीं जो तुम कर रहे हो।
۞ أَفَتَطۡمَعُونَ أَن یُؤۡمِنُواْ لَكُمۡ وَقَدۡ كَانَ فَرِیقࣱ مِّنۡهُمۡ یَسۡمَعُونَ كَلَـٰمَ ٱللَّهِ ثُمَّ یُحَرِّفُونَهُۥ مِنۢ بَعۡدِ مَا عَقَلُوهُ وَهُمۡ یَعۡلَمُونَ ﴿٧٥﴾
तो क्या तुम आशा रखते हो कि वे तुम्हारी बात मान लेंगे, जबकि उनमें से कुछ लोग ऐसे रहे हैं, जो अल्लाह की वाणी (तौरात) को सुनते हैं, फिर उसे बदल डालते हैं, इसके बाद कि उसे समझ चुके होते हैं और वे जानते हैं।
وَإِذَا لَقُواْ ٱلَّذِینَ ءَامَنُواْ قَالُوۤاْ ءَامَنَّا وَإِذَا خَلَا بَعۡضُهُمۡ إِلَىٰ بَعۡضࣲ قَالُوۤاْ أَتُحَدِّثُونَهُم بِمَا فَتَحَ ٱللَّهُ عَلَیۡكُمۡ لِیُحَاۤجُّوكُم بِهِۦ عِندَ رَبِّكُمۡۚ أَفَلَا تَعۡقِلُونَ ﴿٧٦﴾
तथा जब वे ईमान लाने वालों से मिलते हैं, तो कहते हैं कि हम ईमान[35] ले आए और जब वे आपस में एक-दूसरे के साथ एकांत में होते हैं, तो कहते हैं क्या तुम उन्हें वे बातें बताते हो, जो अल्लाह ने तुमपर खोली[36] हैं, ताकि वे उनके साथ तुम्हारे पालनहार के पास तुमसे झगड़ा करें, तो क्या तुम नहीं समझते?
أَوَلَا یَعۡلَمُونَ أَنَّ ٱللَّهَ یَعۡلَمُ مَا یُسِرُّونَ وَمَا یُعۡلِنُونَ ﴿٧٧﴾
और क्या वे नहीं जानते कि निःसंदेह अल्लाह जानता है, जो कुछ वे छिपाते हैं और जो कुछ ज़ाहिर करते हैं?
وَمِنۡهُمۡ أُمِّیُّونَ لَا یَعۡلَمُونَ ٱلۡكِتَـٰبَ إِلَّاۤ أَمَانِیَّ وَإِنۡ هُمۡ إِلَّا یَظُنُّونَ ﴿٧٨﴾
तथा उनमें से कुछ अनपढ़ हैं, जो पुस्तक का ज्ञान नहीं रखते सिवाय कुछ कामनाओं के, तथा वे केवल अनुमान लगाते हैं।
فَوَیۡلࣱ لِّلَّذِینَ یَكۡتُبُونَ ٱلۡكِتَـٰبَ بِأَیۡدِیهِمۡ ثُمَّ یَقُولُونَ هَـٰذَا مِنۡ عِندِ ٱللَّهِ لِیَشۡتَرُواْ بِهِۦ ثَمَنࣰا قَلِیلࣰاۖ فَوَیۡلࣱ لَّهُم مِّمَّا كَتَبَتۡ أَیۡدِیهِمۡ وَوَیۡلࣱ لَّهُم مِّمَّا یَكۡسِبُونَ ﴿٧٩﴾
तो उन लोगों के लिए[37] बड़ा विनाश है, जो अपने हाथों से पुस्तक लिखते हैं, फिर कहते हैं कि यह अल्लाह की ओर से है, ताकि उसके द्वारा थोड़ा मूल्य हासिल करें! तो उनके लिए बड़ा विनाश उसके कारण है, जो उनके हाथों ने लिखा और उनके लिए बड़ा विनाश उसके कारण है जो वे कमाते हैं।
وَقَالُواْ لَن تَمَسَّنَا ٱلنَّارُ إِلَّاۤ أَیَّامࣰا مَّعۡدُودَةࣰۚ قُلۡ أَتَّخَذۡتُمۡ عِندَ ٱللَّهِ عَهۡدࣰا فَلَن یُخۡلِفَ ٱللَّهُ عَهۡدَهُۥۤۖ أَمۡ تَقُولُونَ عَلَى ٱللَّهِ مَا لَا تَعۡلَمُونَ ﴿٨٠﴾
तथा उन्होंने कहा कि हमें जहन्नम की आग गिनती के कुछ दिनों के सिवा हरगिज़ नहीं छुएगी। (ऐ नबी!) कह दीजिए कि क्या तुमने अल्लाह से कोई वचन ले रखा है, तो अल्लाह कदापि अपने वचन के विरुद्ध नहीं करेगा, या तुम अल्लाह पर वह बात कहते हो, जिसका तुम्हें ज्ञान नहीं।
بَلَىٰۚ مَن كَسَبَ سَیِّئَةࣰ وَأَحَـٰطَتۡ بِهِۦ خَطِیۤـَٔتُهُۥ فَأُوْلَـٰۤىِٕكَ أَصۡحَـٰبُ ٱلنَّارِۖ هُمۡ فِیهَا خَـٰلِدُونَ ﴿٨١﴾
क्यों[38] नहीं! जिसने बड़ी बुराई कमाई और उसके पाप ने उसे घेर लिया, तो वही लोग आग (जहन्नम) वाले हैं, वे उसमें हमेशा रहने वाले हैं।
وَٱلَّذِینَ ءَامَنُواْ وَعَمِلُواْ ٱلصَّـٰلِحَـٰتِ أُوْلَـٰۤىِٕكَ أَصۡحَـٰبُ ٱلۡجَنَّةِۖ هُمۡ فِیهَا خَـٰلِدُونَ ﴿٨٢﴾
तथा जो लोग ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कार्य किए, वही जन्नत वाले हैं, वे उसमें हमेशा रहने वाले हैं।
وَإِذۡ أَخَذۡنَا مِیثَـٰقَ بَنِیۤ إِسۡرَ ٰۤءِیلَ لَا تَعۡبُدُونَ إِلَّا ٱللَّهَ وَبِٱلۡوَ ٰلِدَیۡنِ إِحۡسَانࣰا وَذِی ٱلۡقُرۡبَىٰ وَٱلۡیَتَـٰمَىٰ وَٱلۡمَسَـٰكِینِ وَقُولُواْ لِلنَّاسِ حُسۡنࣰا وَأَقِیمُواْ ٱلصَّلَوٰةَ وَءَاتُواْ ٱلزَّكَوٰةَ ثُمَّ تَوَلَّیۡتُمۡ إِلَّا قَلِیلࣰا مِّنكُمۡ وَأَنتُم مُّعۡرِضُونَ ﴿٨٣﴾
और (उस समय को याद करो) जब हमने बनी इसराईल से पक्का वचन लिया कि तुम अल्लाह के सिवा किसी की इबादत नहीं करोगे, तथा माता-पिता, रिश्तेदारों, अनाथों और निर्धनों के साथ अच्छा व्यवहार करोगे। और लोगों से भली बात कहो, तथा नमाज़ क़ायम करो और ज़कात दो। फिर तुम में से थोड़े लोगों के सिवा सब फिर गए और तुम मुँह फेरने वाले थे।
وَإِذۡ أَخَذۡنَا مِیثَـٰقَكُمۡ لَا تَسۡفِكُونَ دِمَاۤءَكُمۡ وَلَا تُخۡرِجُونَ أَنفُسَكُم مِّن دِیَـٰرِكُمۡ ثُمَّ أَقۡرَرۡتُمۡ وَأَنتُمۡ تَشۡهَدُونَ ﴿٨٤﴾
तथा (याद करो) जब हमने तुमसे पक्का वचन लिया कि तुम अपने ख़ून नहीं बहाओगे और न अपने आपको अपने घरों से निकालोगे। फिर तुमने स्वीकार किया और तुम स्वयं गवाही देते हो।
ثُمَّ أَنتُمۡ هَـٰۤؤُلَاۤءِ تَقۡتُلُونَ أَنفُسَكُمۡ وَتُخۡرِجُونَ فَرِیقࣰا مِّنكُم مِّن دِیَـٰرِهِمۡ تَظَـٰهَرُونَ عَلَیۡهِم بِٱلۡإِثۡمِ وَٱلۡعُدۡوَ ٰنِ وَإِن یَأۡتُوكُمۡ أُسَـٰرَىٰ تُفَـٰدُوهُمۡ وَهُوَ مُحَرَّمٌ عَلَیۡكُمۡ إِخۡرَاجُهُمۡۚ أَفَتُؤۡمِنُونَ بِبَعۡضِ ٱلۡكِتَـٰبِ وَتَكۡفُرُونَ بِبَعۡضࣲۚ فَمَا جَزَاۤءُ مَن یَفۡعَلُ ذَ ٰلِكَ مِنكُمۡ إِلَّا خِزۡیࣱ فِی ٱلۡحَیَوٰةِ ٱلدُّنۡیَاۖ وَیَوۡمَ ٱلۡقِیَـٰمَةِ یُرَدُّونَ إِلَىٰۤ أَشَدِّ ٱلۡعَذَابِۗ وَمَا ٱللَّهُ بِغَـٰفِلٍ عَمَّا تَعۡمَلُونَ ﴿٨٥﴾
फिर[39] तुम ही वे लोग हो कि अपने आपकी हत्या करते हो और अपने में से एक गिरोह को उनके घरों से निकालते हो, उनके विरुद्ध पाप तथा अत्याचार के साथ एक-दूसरे की मदद करते हो और यदि वे बंदी होकर तुम्हारे पास आएँ, तो उनका फ़िदया देते हो, हालाँकि उन्हें निकालना ही तुमपर ह़राम (निषिद्ध) है। तो क्या तुम पुस्तक के कुछ भाग पर ईमान रखते हो और कुछ का इनकार करते हो? फिर तुममें से जो ऐसा करे, उसका प्रतिफल इसके सिवा क्या है कि सांसारिक जीवन में अपमान हो तथा क़ियामत के दिन वे अत्यंत कठोर यातना (अज़ाब) की ओर लौटाए जाएँगे? और अल्लाह बिलकुल उससे असावधान नहीं जो तुम करते हो!
أُوْلَـٰۤىِٕكَ ٱلَّذِینَ ٱشۡتَرَوُاْ ٱلۡحَیَوٰةَ ٱلدُّنۡیَا بِٱلۡـَٔاخِرَةِۖ فَلَا یُخَفَّفُ عَنۡهُمُ ٱلۡعَذَابُ وَلَا هُمۡ یُنصَرُونَ ﴿٨٦﴾
यही वे लोग हैं, जिन्होंने आख़िरत (परलोक) के बदले सांसारिक जीवन ख़रीद लिया। अतः न उनसे अज़ाब हल्का किया जाएगा और न उनकी सहायता की जाएगी।
وَلَقَدۡ ءَاتَیۡنَا مُوسَى ٱلۡكِتَـٰبَ وَقَفَّیۡنَا مِنۢ بَعۡدِهِۦ بِٱلرُّسُلِۖ وَءَاتَیۡنَا عِیسَى ٱبۡنَ مَرۡیَمَ ٱلۡبَیِّنَـٰتِ وَأَیَّدۡنَـٰهُ بِرُوحِ ٱلۡقُدُسِۗ أَفَكُلَّمَا جَاۤءَكُمۡ رَسُولُۢ بِمَا لَا تَهۡوَىٰۤ أَنفُسُكُمُ ٱسۡتَكۡبَرۡتُمۡ فَفَرِیقࣰا كَذَّبۡتُمۡ وَفَرِیقࣰا تَقۡتُلُونَ ﴿٨٧﴾
तथा निःसंदेह हमने मूसा को पुस्तक (तौरात) प्रदान की और उसके बाद लगातार रसूल भेजे, और हमने मरयम के पुत्र ईसा को खुली निशानियाँ दीं और रूह़ुल-क़ुदुस[40] (पवित्र-आत्मा) द्वारा उन्हें शक्ति प्रदान की। फिर क्या जब कभी कोई रसूल तुम्हारे पास वह चीज़ लेकर आया जिसे तुम्हारे दिल न चाहते थे, तो तुमने अभिमान किया, चुनाँचे एक समूह को झुठला दिया और एक समूह की हत्या करते रहे।
وَقَالُواْ قُلُوبُنَا غُلۡفُۢۚ بَل لَّعَنَهُمُ ٱللَّهُ بِكُفۡرِهِمۡ فَقَلِیلࣰا مَّا یُؤۡمِنُونَ ﴿٨٨﴾
तथा उन्होंने कहा कि हमारे दिल तो बंद[41] हैं। बल्कि अल्लाह ने उनके कुफ़्र (इनकार) के कारण उन्हें धिक्कार दिया है। इसलिए वे बहुत कम ईमान लाते हैं।
وَلَمَّا جَاۤءَهُمۡ كِتَـٰبࣱ مِّنۡ عِندِ ٱللَّهِ مُصَدِّقࣱ لِّمَا مَعَهُمۡ وَكَانُواْ مِن قَبۡلُ یَسۡتَفۡتِحُونَ عَلَى ٱلَّذِینَ كَفَرُواْ فَلَمَّا جَاۤءَهُم مَّا عَرَفُواْ كَفَرُواْ بِهِۦۚ فَلَعۡنَةُ ٱللَّهِ عَلَى ٱلۡكَـٰفِرِینَ ﴿٨٩﴾
और जब उनके पास अल्लाह की ओर से एक पुस्तक (क़ुरआन) आई, जो उसकी पुष्टि करने वाली है, जो उनके पास है, हालाँकि वे इससे पूर्व काफ़िरों पर विजय की प्रार्थना किया करते थे, फिर जब उनके पास वह चीज़ आ गई, जिसे उन्होंने पहचान लिया, तो उन्होंने उसका इनकार[42] कर दिया। तो काफ़िरों पर अल्लाह की लानत है।
بِئۡسَمَا ٱشۡتَرَوۡاْ بِهِۦۤ أَنفُسَهُمۡ أَن یَكۡفُرُواْ بِمَاۤ أَنزَلَ ٱللَّهُ بَغۡیًا أَن یُنَزِّلَ ٱللَّهُ مِن فَضۡلِهِۦ عَلَىٰ مَن یَشَاۤءُ مِنۡ عِبَادِهِۦۖ فَبَاۤءُو بِغَضَبٍ عَلَىٰ غَضَبࣲۚ وَلِلۡكَـٰفِرِینَ عَذَابࣱ مُّهِینࣱ ﴿٩٠﴾
बहुत बुरी है वह चीज़ जिसके बदले उन्होंने अपने आपको बेच डाला, कि उस चीज़ का इनकार कर दें, जो अल्लाह ने उतारी[43] है, इस द्वेष (हठ) के कारण कि अल्लाह अपना कुछ अनुग्रह अपने बंदों में से जिसपर[44] चाहता है, उतारता है। अतः वे प्रकोप पर प्रकोप लेकर लौटे और (ऐसे) काफ़िरों के लिए अपमानजनक यातना है।
وَإِذَا قِیلَ لَهُمۡ ءَامِنُواْ بِمَاۤ أَنزَلَ ٱللَّهُ قَالُواْ نُؤۡمِنُ بِمَاۤ أُنزِلَ عَلَیۡنَا وَیَكۡفُرُونَ بِمَا وَرَاۤءَهُۥ وَهُوَ ٱلۡحَقُّ مُصَدِّقࣰا لِّمَا مَعَهُمۡۗ قُلۡ فَلِمَ تَقۡتُلُونَ أَنۢبِیَاۤءَ ٱللَّهِ مِن قَبۡلُ إِن كُنتُم مُّؤۡمِنِینَ ﴿٩١﴾
और जब उनसे कहा जाता है उस पर ईमान लाओ जो अल्लाह ने उतारा[45] है, तो कहते हैं : हम उसपर ईमान रखते हैं जो हमपर उतारा गया है, और जो उसके अलावा है, उसका वे इनकार करते हैं! जबकि वही सत्य है, उनके पास जो कुछ है उसकी पुष्टि करने वाला है। आप (उनसे) कह दीजिए कि अगर तुम ईमान वाले थे, तो फिर इससे पहले अल्लाह के नबियों की हत्या क्यों किया करते थे?
۞ وَلَقَدۡ جَاۤءَكُم مُّوسَىٰ بِٱلۡبَیِّنَـٰتِ ثُمَّ ٱتَّخَذۡتُمُ ٱلۡعِجۡلَ مِنۢ بَعۡدِهِۦ وَأَنتُمۡ ظَـٰلِمُونَ ﴿٩٢﴾
और निःसंदेह मूसा तुम्हारे पास खुली निशानियाँ लेकर आए, फिर तुमने उसके बाद बछड़े को (पूज्य) बना लिया और तुम अत्याचारी थे।
وَإِذۡ أَخَذۡنَا مِیثَـٰقَكُمۡ وَرَفَعۡنَا فَوۡقَكُمُ ٱلطُّورَ خُذُواْ مَاۤ ءَاتَیۡنَـٰكُم بِقُوَّةࣲ وَٱسۡمَعُواْۖ قَالُواْ سَمِعۡنَا وَعَصَیۡنَا وَأُشۡرِبُواْ فِی قُلُوبِهِمُ ٱلۡعِجۡلَ بِكُفۡرِهِمۡۚ قُلۡ بِئۡسَمَا یَأۡمُرُكُم بِهِۦۤ إِیمَـٰنُكُمۡ إِن كُنتُم مُّؤۡمِنِینَ ﴿٩٣﴾
और (याद करो) जब हमने तुमसे पक्का वचन लिया और तुम्हारे ऊपर तूर पर्वत उठा लिया। (हमने कहा :) हमने तुम्हें जो दिया है, उसे मज़बूती से पकड़ो और सुनो। उन्होंने कहा : हमने सुना और नहीं माना। और उनके कुफ़्र के कारण उनके दिलों में बछड़े की मुहब्बत पिला दी गई। (ऐ नबी!) आप कह दीजिए : बुरी है वह चीज़, जिसका आदेश तुम्हें तुम्हारा ईमान देता है, यदि तुम ईमान वाले हो।
قُلۡ إِن كَانَتۡ لَكُمُ ٱلدَّارُ ٱلۡـَٔاخِرَةُ عِندَ ٱللَّهِ خَالِصَةࣰ مِّن دُونِ ٱلنَّاسِ فَتَمَنَّوُاْ ٱلۡمَوۡتَ إِن كُنتُمۡ صَـٰدِقِینَ ﴿٩٤﴾
(ऐ नबी!) आप कह दीजिए : यदि आख़िरत का घर अल्लाह के पास सब लोगों को छोड़कर विशेष रूप से तुम्हारे ही लिए है, तो तुम मौत की कामना करो, यदि तुम सच्चे हो।
وَلَن یَتَمَنَّوۡهُ أَبَدَۢا بِمَا قَدَّمَتۡ أَیۡدِیهِمۡۚ وَٱللَّهُ عَلِیمُۢ بِٱلظَّـٰلِمِینَ ﴿٩٥﴾
और वे हरगिज़ उसकी कामना कभी नहीं करेंगे, उसके कारण जो उनके हाथों ने आगे भेजा और अल्लाह अत्याचारियों को ख़ूब जानने वाला है।
وَلَتَجِدَنَّهُمۡ أَحۡرَصَ ٱلنَّاسِ عَلَىٰ حَیَوٰةࣲ وَمِنَ ٱلَّذِینَ أَشۡرَكُواْۚ یَوَدُّ أَحَدُهُمۡ لَوۡ یُعَمَّرُ أَلۡفَ سَنَةࣲ وَمَا هُوَ بِمُزَحۡزِحِهِۦ مِنَ ٱلۡعَذَابِ أَن یُعَمَّرَۗ وَٱللَّهُ بَصِیرُۢ بِمَا یَعۡمَلُونَ ﴿٩٦﴾
और निःसंदेह तुम उन्हें सब लोगों से बढ़कर किसी भी तरह जीने का लोभी पाओगे और उनसे भी जिन्होंने शिर्क किया। उनका (हर) एक व्यक्ति चाहता है काश! उसे हज़ार वर्ष की आयु दी जाए। हालाँकि यह उसे अज़ाब से बचाने वाला नहीं कि उसे लंबी आयु दी जाए और अल्लाह ख़ूब देखने वाला है, जो कुछ वे कर रहे हैं।
قُلۡ مَن كَانَ عَدُوࣰّا لِّجِبۡرِیلَ فَإِنَّهُۥ نَزَّلَهُۥ عَلَىٰ قَلۡبِكَ بِإِذۡنِ ٱللَّهِ مُصَدِّقࣰا لِّمَا بَیۡنَ یَدَیۡهِ وَهُدࣰى وَبُشۡرَىٰ لِلۡمُؤۡمِنِینَ ﴿٩٧﴾
(ऐ नबी!)[46] कह दीजिए कि जो व्यक्ति जिबरील का शत्रु हो, तो निःसंदेह उसने इसे आपके दिल पर अल्लाह के आदेश से उतारा है, उसकी पुष्टि करने वाला है, जो इससे पूर्व है तथा ईमान वालों के लिए मार्गदर्शन एवं शुभ समाचार है।
مَن كَانَ عَدُوࣰّا لِّلَّهِ وَمَلَـٰۤىِٕكَتِهِۦ وَرُسُلِهِۦ وَجِبۡرِیلَ وَمِیكَىٰلَ فَإِنَّ ٱللَّهَ عَدُوࣱّ لِّلۡكَـٰفِرِینَ ﴿٩٨﴾
जो कोई अल्लाह और उसके फ़रिश्तों और उसके रसूलों और जिबरील तथा मीकाल का शत्रु हो, तो निःसंदेह अल्लाह सब काफ़िरों का शत्रु है।[47]
وَلَقَدۡ أَنزَلۡنَاۤ إِلَیۡكَ ءَایَـٰتِۭ بَیِّنَـٰتࣲۖ وَمَا یَكۡفُرُ بِهَاۤ إِلَّا ٱلۡفَـٰسِقُونَ ﴿٩٩﴾
और निःसंदेह हमने (ऐ नबी!) आपकी ओर खुली आयतें उतारी हैं और उनका इनकार केवल वही लोग[48] करते हैं, जो फ़ासिक़ (अवज्ञा करने वाले) हैं।
أَوَكُلَّمَا عَـٰهَدُواْ عَهۡدࣰا نَّبَذَهُۥ فَرِیقࣱ مِّنۡهُمۚ بَلۡ أَكۡثَرُهُمۡ لَا یُؤۡمِنُونَ ﴿١٠٠﴾
और क्या जब कभी उन्होंने कोई वचन दिया, तो उनके एक समूह ने उसे तोड़ दिया? बल्कि उनमें अधिकतर ईमान नहीं रखते।
وَلَمَّا جَاۤءَهُمۡ رَسُولࣱ مِّنۡ عِندِ ٱللَّهِ مُصَدِّقࣱ لِّمَا مَعَهُمۡ نَبَذَ فَرِیقࣱ مِّنَ ٱلَّذِینَ أُوتُواْ ٱلۡكِتَـٰبَ كِتَـٰبَ ٱللَّهِ وَرَاۤءَ ظُهُورِهِمۡ كَأَنَّهُمۡ لَا یَعۡلَمُونَ ﴿١٠١﴾
तथा जब उनके पास अल्लाह की ओर से एक रसूल उसकी पुष्टि करने वाला आया,[49] जो उनके पास है, तो उन लोगों में से एक समूह ने, जिन्हें पुस्तक दी गई थी, अल्लाह की पुस्तक को अपनी पीठों के पीछे ऐसे फेंक दिया, जैसे वे नहीं जानते।
وَٱتَّبَعُواْ مَا تَتۡلُواْ ٱلشَّیَـٰطِینُ عَلَىٰ مُلۡكِ سُلَیۡمَـٰنَۖ وَمَا كَفَرَ سُلَیۡمَـٰنُ وَلَـٰكِنَّ ٱلشَّیَـٰطِینَ كَفَرُواْ یُعَلِّمُونَ ٱلنَّاسَ ٱلسِّحۡرَ وَمَاۤ أُنزِلَ عَلَى ٱلۡمَلَكَیۡنِ بِبَابِلَ هَـٰرُوتَ وَمَـٰرُوتَۚ وَمَا یُعَلِّمَانِ مِنۡ أَحَدٍ حَتَّىٰ یَقُولَاۤ إِنَّمَا نَحۡنُ فِتۡنَةࣱ فَلَا تَكۡفُرۡۖ فَیَتَعَلَّمُونَ مِنۡهُمَا مَا یُفَرِّقُونَ بِهِۦ بَیۡنَ ٱلۡمَرۡءِ وَزَوۡجِهِۦۚ وَمَا هُم بِضَاۤرِّینَ بِهِۦ مِنۡ أَحَدٍ إِلَّا بِإِذۡنِ ٱللَّهِۚ وَیَتَعَلَّمُونَ مَا یَضُرُّهُمۡ وَلَا یَنفَعُهُمۡۚ وَلَقَدۡ عَلِمُواْ لَمَنِ ٱشۡتَرَىٰهُ مَا لَهُۥ فِی ٱلۡـَٔاخِرَةِ مِنۡ خَلَـٰقࣲۚ وَلَبِئۡسَ مَا شَرَوۡاْ بِهِۦۤ أَنفُسَهُمۡۚ لَوۡ كَانُواْ یَعۡلَمُونَ ﴿١٠٢﴾
तथा वे उस चीज़ के पीछे लग गए जो शैतान सुलैमान के शासन काल में पढ़ते थे। तथा सुलैमान ने कुफ़्र नहीं किया, लेकिन शैतानों ने कुफ़्र किया कि लोगों को जादू सिखाते थे, (और वे उस चीज़ के पीछे लग गए) जो बाबिल में दो फ़रिश्तों; हारूत और मारूत पर उतारी गई। हालाँकि वे दोनों किसी को भी नहीं सिखाते थे, यहाँ तक कि कह देते कि हम केवल एक आज़माइश हैं, इसलिए तू कुफ़्र न कर। फिर वे उन दोनों से वह चीज़ सीखते, जिसके द्वारा वे आदमी और उसकी पत्नी के बीच जुदाई डाल देते। और वे अल्लाह की अनुमति के बिना उसके द्वारा किसी को हानि पहुँचाने वाले न थे। और वे ऐसी चीज़ सीखते थे, जो उन्हें हानि पहुँचाती और उन्हें लाभ न देती थी। हालाँकि निःसंदेह वे भली-भाँति जान चुके थे कि जिसने इसे ख़रीदा, आख़िरत में उसका कोई भाग नहीं। और निःसंदेह बुरी है वह चीज़ जिसके बदले उन्होंने अपने आपको बेच डाला।[50] काश! वे जानते होते।
وَلَوۡ أَنَّهُمۡ ءَامَنُواْ وَٱتَّقَوۡاْ لَمَثُوبَةࣱ مِّنۡ عِندِ ٱللَّهِ خَیۡرࣱۚ لَّوۡ كَانُواْ یَعۡلَمُونَ ﴿١٠٣﴾
और यदि वे सचमुच ईमान लाते और अल्लाह से डरते, तो निश्चय अल्लाह के पास से थोड़ा बदला भी बहुत बेहतर था, काश! वे जानते होते।
یَـٰۤأَیُّهَا ٱلَّذِینَ ءَامَنُواْ لَا تَقُولُواْ رَ ٰعِنَا وَقُولُواْ ٱنظُرۡنَا وَٱسۡمَعُواْۗ وَلِلۡكَـٰفِرِینَ عَذَابٌ أَلِیمࣱ ﴿١٠٤﴾
ऐ ईमान वालो! तुम 'राइना'[51] (हमारा ध्यान रखिए) न कहो, और 'उन्ज़ुरना' (हमारी ओर देखिए) कहो और सुनो तथा काफ़िरों के लिए दुखदायी यातना है।
مَّا یَوَدُّ ٱلَّذِینَ كَفَرُواْ مِنۡ أَهۡلِ ٱلۡكِتَـٰبِ وَلَا ٱلۡمُشۡرِكِینَ أَن یُنَزَّلَ عَلَیۡكُم مِّنۡ خَیۡرࣲ مِّن رَّبِّكُمۡۚ وَٱللَّهُ یَخۡتَصُّ بِرَحۡمَتِهِۦ مَن یَشَاۤءُۚ وَٱللَّهُ ذُو ٱلۡفَضۡلِ ٱلۡعَظِیمِ ﴿١٠٥﴾
काफ़िर लोग, अह्ले किताब में से हों या मुश्रिकों (अनेकेश्वरवादियों) में से, नहीं चाहते कि तुम पर तुम्हारे पालनहार की ओर से कोई भलाई उतारी जाए और अल्लाह जिसे चाहता है, अपनी दया के साथ खास कर लेता है और अल्लाह बहुत बड़े अनुग्रह वाला है।
۞ مَا نَنسَخۡ مِنۡ ءَایَةٍ أَوۡ نُنسِهَا نَأۡتِ بِخَیۡرࣲ مِّنۡهَاۤ أَوۡ مِثۡلِهَاۤۗ أَلَمۡ تَعۡلَمۡ أَنَّ ٱللَّهَ عَلَىٰ كُلِّ شَیۡءࣲ قَدِیرٌ ﴿١٠٦﴾
हम जो भी आयत मन्सूख़ (निरस्त) करते हैं, या उसे भुला देते हैं, तो उससे बेहतर, या उसके समान (और) ले आते हैं। क्या तुमने नहीं जाना कि निःसंदेह अल्लाह हर चीज़[52] पर सर्वशक्तिमान है।
أَلَمۡ تَعۡلَمۡ أَنَّ ٱللَّهَ لَهُۥ مُلۡكُ ٱلسَّمَـٰوَ ٰتِ وَٱلۡأَرۡضِۗ وَمَا لَكُم مِّن دُونِ ٱللَّهِ مِن وَلِیࣲّ وَلَا نَصِیرٍ ﴿١٠٧﴾
क्या तुमने नहीं जाना कि आकाशों एवं धरती का राज्य अल्लाह ही के लिए है और अल्लाह के सिवा तुम्हारा न कोई दोस्त है और न कोई सहायक।
أَمۡ تُرِیدُونَ أَن تَسۡـَٔلُواْ رَسُولَكُمۡ كَمَا سُىِٕلَ مُوسَىٰ مِن قَبۡلُۗ وَمَن یَتَبَدَّلِ ٱلۡكُفۡرَ بِٱلۡإِیمَـٰنِ فَقَدۡ ضَلَّ سَوَاۤءَ ٱلسَّبِیلِ ﴿١٠٨﴾
या तुम चाहते हो कि अपने रसूल से सवाल करो, जैसे इससे पहले मूसा से सवाल किए गए? और जो कोई ईमान के बदले कुफ़्र को अपना ले, तो निःसंदे वह सीधे मार्ग से भटक गया।
وَدَّ كَثِیرࣱ مِّنۡ أَهۡلِ ٱلۡكِتَـٰبِ لَوۡ یَرُدُّونَكُم مِّنۢ بَعۡدِ إِیمَـٰنِكُمۡ كُفَّارًا حَسَدࣰا مِّنۡ عِندِ أَنفُسِهِم مِّنۢ بَعۡدِ مَا تَبَیَّنَ لَهُمُ ٱلۡحَقُّۖ فَٱعۡفُواْ وَٱصۡفَحُواْ حَتَّىٰ یَأۡتِیَ ٱللَّهُ بِأَمۡرِهِۦۤۗ إِنَّ ٱللَّهَ عَلَىٰ كُلِّ شَیۡءࣲ قَدِیرࣱ ﴿١٠٩﴾
बहुत-से अह्ले किताब चाहते हैं काश! वे तुम्हें तुम्हारे ईमान के बाद फिर काफ़िर बना दें, अपने दिलों की ईर्ष्या के कारण, इसके बाद कि उनके लिए सत्य ख़ूब स्पष्ट हो चुका। तो तुम क्षमा करो और माफ़ कर दो, यहाँ तक कि अल्लाह अपना हुक्म ले आए। निःसंदेह अल्लाह हर चीज़ पर सर्वशक्तिमान है।
وَأَقِیمُواْ ٱلصَّلَوٰةَ وَءَاتُواْ ٱلزَّكَوٰةَۚ وَمَا تُقَدِّمُواْ لِأَنفُسِكُم مِّنۡ خَیۡرࣲ تَجِدُوهُ عِندَ ٱللَّهِۗ إِنَّ ٱللَّهَ بِمَا تَعۡمَلُونَ بَصِیرࣱ ﴿١١٠﴾
तथा नमाज़ क़ायम करो और ज़कात दो और जो भी भलाई तुम अपने लिए आगे भेजोगे, उसे अल्लाह के पास पा लोगे। निःसंदेह अल्लाह जो कुछ तुम करते हो, उसे ख़ूब देखने वाला है।
وَقَالُواْ لَن یَدۡخُلَ ٱلۡجَنَّةَ إِلَّا مَن كَانَ هُودًا أَوۡ نَصَـٰرَىٰۗ تِلۡكَ أَمَانِیُّهُمۡۗ قُلۡ هَاتُواْ بُرۡهَـٰنَكُمۡ إِن كُنتُمۡ صَـٰدِقِینَ ﴿١١١﴾
तथा उन्होंने कहा जन्नत में हरगिज़ नहीं जाएँगे, परंतु जो यहूदी होंगे या ईसाई।[53] ये उनकी कामनाएँ ही हैं। (उनसे) कहो : लाओ अपने प्रमाण, यदि तुम सच्चे हो।
بَلَىٰۚ مَنۡ أَسۡلَمَ وَجۡهَهُۥ لِلَّهِ وَهُوَ مُحۡسِنࣱ فَلَهُۥۤ أَجۡرُهُۥ عِندَ رَبِّهِۦ وَلَا خَوۡفٌ عَلَیۡهِمۡ وَلَا هُمۡ یَحۡزَنُونَ ﴿١١٢﴾
क्यों नहीं,[54] जिसने अपना चेहरा अल्लाह के अधीन कर दिया और वह अच्छा कार्या करने वाला हो, तो उसके लिए उसका बदला उसके पालनहार के पास है और न उनपर कोई भय है और न वे शोकाकुल होंगे।
وَقَالَتِ ٱلۡیَهُودُ لَیۡسَتِ ٱلنَّصَـٰرَىٰ عَلَىٰ شَیۡءࣲ وَقَالَتِ ٱلنَّصَـٰرَىٰ لَیۡسَتِ ٱلۡیَهُودُ عَلَىٰ شَیۡءࣲ وَهُمۡ یَتۡلُونَ ٱلۡكِتَـٰبَۗ كَذَ ٰلِكَ قَالَ ٱلَّذِینَ لَا یَعۡلَمُونَ مِثۡلَ قَوۡلِهِمۡۚ فَٱللَّهُ یَحۡكُمُ بَیۡنَهُمۡ یَوۡمَ ٱلۡقِیَـٰمَةِ فِیمَا كَانُواْ فِیهِ یَخۡتَلِفُونَ ﴿١١٣﴾
तथा यहूदियों ने कहा कि ईसाई किसी चीज़ पर नहीं हैं और ईसाइयों ने कहा कि यहूदी किसी चीज़ पर नहीं हैं। हालाँकि वे पुस्तक[55] पढ़ते हैं। इसी तरह उन लोगों ने भी जो कुछ ज्ञान नहीं रखते,[56] उनकी बात जैसी बात कही। अब अल्लाह उनके बीच क़ियामत के दिन उस बारे में फैसला करेगा, जिसमें वे मतभेद किया करते थे।
وَمَنۡ أَظۡلَمُ مِمَّن مَّنَعَ مَسَـٰجِدَ ٱللَّهِ أَن یُذۡكَرَ فِیهَا ٱسۡمُهُۥ وَسَعَىٰ فِی خَرَابِهَاۤۚ أُوْلَـٰۤىِٕكَ مَا كَانَ لَهُمۡ أَن یَدۡخُلُوهَاۤ إِلَّا خَاۤىِٕفِینَۚ لَهُمۡ فِی ٱلدُّنۡیَا خِزۡیࣱ وَلَهُمۡ فِی ٱلۡـَٔاخِرَةِ عَذَابٌ عَظِیمࣱ ﴿١١٤﴾
और उससे बड़ा अत्याचारी कौन है, जो अल्लाह की मस्जिदों में उसके नाम का स्मरण करने से रोके और उन्हें उजाड़ने का प्रयास करे?[57] ऐसे लोगों का हक़ नहीं कि उनमें प्रवेश करते परंतु डरते हुए। उनके लिए संसार ही में अपमान है और उनके लिए आख़िरत में बड़ी यातना है।
وَلِلَّهِ ٱلۡمَشۡرِقُ وَٱلۡمَغۡرِبُۚ فَأَیۡنَمَا تُوَلُّواْ فَثَمَّ وَجۡهُ ٱللَّهِۚ إِنَّ ٱللَّهَ وَ ٰسِعٌ عَلِیمࣱ ﴿١١٥﴾
तथा पूर्व और पश्चिम अल्लाह ही के हैं, तो तुम जिस ओर रुख करो,[58] सो वहीं अल्लाह का चेहरा है। निःसंदेह अल्लाह विस्तार वाला, सब कुछ जानने वाला है।
وَقَالُواْ ٱتَّخَذَ ٱللَّهُ وَلَدࣰاۗ سُبۡحَـٰنَهُۥۖ بَل لَّهُۥ مَا فِی ٱلسَّمَـٰوَ ٰتِ وَٱلۡأَرۡضِۖ كُلࣱّ لَّهُۥ قَـٰنِتُونَ ﴿١١٦﴾
तथा उन्होंने कहा[59] कि अल्लाह ने कोई संतान बना रखी है, वह पवित्र है। बल्कि उसी का है जो कुछ आकाशों तथा धरती में है, सब उसी के आज्ञाकारी हैं।
بَدِیعُ ٱلسَّمَـٰوَ ٰتِ وَٱلۡأَرۡضِۖ وَإِذَا قَضَىٰۤ أَمۡرࣰا فَإِنَّمَا یَقُولُ لَهُۥ كُن فَیَكُونُ ﴿١١٧﴾
वह आकाशों तथा धरती का आविष्कारक है और जब किसी काम का निर्णय करता है, तो उससे मात्र यही कहता है कि "हो जा" तो वह हो जाता है।
وَقَالَ ٱلَّذِینَ لَا یَعۡلَمُونَ لَوۡلَا یُكَلِّمُنَا ٱللَّهُ أَوۡ تَأۡتِینَاۤ ءَایَةࣱۗ كَذَ ٰلِكَ قَالَ ٱلَّذِینَ مِن قَبۡلِهِم مِّثۡلَ قَوۡلِهِمۡۘ تَشَـٰبَهَتۡ قُلُوبُهُمۡۗ قَدۡ بَیَّنَّا ٱلۡـَٔایَـٰتِ لِقَوۡمࣲ یُوقِنُونَ ﴿١١٨﴾
तथा उन लोगों ने कहा जो ज्ञान[60] नहीं रखते : अल्लाह हमसे बात क्यों नहीं करता? या हमारे पास कोई निशानी क्यों नहीं आती? इसी प्रकार उन लोगों ने जो इनसे पूर्व थे, इनकी बात जैसी बात कही। इनके दिल एक-दूसरे जैसे हो गए हैं। निःसंदेह हमने उन लोगों के लिए निशानियाँ खोलकर बयान कर दी हैं, जो विश्वास करते हैं।
إِنَّاۤ أَرۡسَلۡنَـٰكَ بِٱلۡحَقِّ بَشِیرࣰا وَنَذِیرࣰاۖ وَلَا تُسۡـَٔلُ عَنۡ أَصۡحَـٰبِ ٱلۡجَحِیمِ ﴿١١٩﴾
निःसंदेह (ऐ नबी!) हमने आपको सत्य के साथ खुशख़बरी देने वाला तथा डराने वाला[61] बनाकर भेजा है। और आपसे दोज़ख़ियों के बारे में नहीं पूछा जाएगा।
وَلَن تَرۡضَىٰ عَنكَ ٱلۡیَهُودُ وَلَا ٱلنَّصَـٰرَىٰ حَتَّىٰ تَتَّبِعَ مِلَّتَهُمۡۗ قُلۡ إِنَّ هُدَى ٱللَّهِ هُوَ ٱلۡهُدَىٰۗ وَلَىِٕنِ ٱتَّبَعۡتَ أَهۡوَاۤءَهُم بَعۡدَ ٱلَّذِی جَاۤءَكَ مِنَ ٱلۡعِلۡمِ مَا لَكَ مِنَ ٱللَّهِ مِن وَلِیࣲّ وَلَا نَصِیرٍ ﴿١٢٠﴾
(ऐ नबी!) यहूदी तथा ईसाई आपसे हरगिज़ राज़ी न होंगे, यहाँ तक कि आप उनके धर्म की पैरवी करें। आप कह दीजिए कि निःसंदेह अल्लाह का मार्गदर्शन ही असल मार्गदर्शन है, और यदि आपने उनकी इच्छाओं का अनुसरण किया, उस ज्ञान के बाद जो आपके पास आया है, तो अल्लाह से (बचाने में) आपका न कोई मित्र होगा और न कोई सहायक।
ٱلَّذِینَ ءَاتَیۡنَـٰهُمُ ٱلۡكِتَـٰبَ یَتۡلُونَهُۥ حَقَّ تِلَاوَتِهِۦۤ أُوْلَـٰۤىِٕكَ یُؤۡمِنُونَ بِهِۦۗ وَمَن یَكۡفُرۡ بِهِۦ فَأُوْلَـٰۤىِٕكَ هُمُ ٱلۡخَـٰسِرُونَ ﴿١٢١﴾
वे लोग जिन्हें हमने किताब दी है, उसे पढ़ते हैं जैसे उसे पढ़ने का हक़ है, ये लोग उसपर ईमान रखते हैं और जो कोई उसका इनकार करे, तो वही लोग घाटा उठाने वाले हैं।
یَـٰبَنِیۤ إِسۡرَ ٰۤءِیلَ ٱذۡكُرُواْ نِعۡمَتِیَ ٱلَّتِیۤ أَنۡعَمۡتُ عَلَیۡكُمۡ وَأَنِّی فَضَّلۡتُكُمۡ عَلَى ٱلۡعَـٰلَمِینَ ﴿١٢٢﴾
ऐ इसराईल की संतान! मेरे उस अनुग्रह को याद करो, जो मैंने तुमपर किया और यह कि निःसंदेह मैंने ही तुम्हें संसार वालों पर श्रेष्ठता प्रदान की।
وَٱتَّقُواْ یَوۡمࣰا لَّا تَجۡزِی نَفۡسٌ عَن نَّفۡسࣲ شَیۡـࣰٔا وَلَا یُقۡبَلُ مِنۡهَا عَدۡلࣱ وَلَا تَنفَعُهَا شَفَـٰعَةࣱ وَلَا هُمۡ یُنصَرُونَ ﴿١٢٣﴾
तथा उस दिन से डरो, जब कोई किसी के कुछ काम न आएगा, और न उससे कोई फ़िदया (दंड राशि) स्वीकार किया जाएगा और न उसे कोई अनुशंसा (सिफ़ारिश) लाभ देगी, और न उनकी मदद की जाएगी।
۞ وَإِذِ ٱبۡتَلَىٰۤ إِبۡرَ ٰهِـۧمَ رَبُّهُۥ بِكَلِمَـٰتࣲ فَأَتَمَّهُنَّۖ قَالَ إِنِّی جَاعِلُكَ لِلنَّاسِ إِمَامࣰاۖ قَالَ وَمِن ذُرِّیَّتِیۖ قَالَ لَا یَنَالُ عَهۡدِی ٱلظَّـٰلِمِینَ ﴿١٢٤﴾
और (उस समय को याद करो) जब इबराहीम को उसके पालनहार ने कुछ बातों के साथ आज़माया, तो उसने उन्हें पूरा कर दिया। उसने कहा : निःसंदेह मैं तुम्हें लोगों का इमाम (पेशवा) बनाने वाला हूँ। (इबराहीम ने) कहा : तथा मेरी संतान में से भी? (अल्लाह ने) फरमाया : मेरा वचन अत्याचारियों[62] को नहीं पहुँचता।
وَإِذۡ جَعَلۡنَا ٱلۡبَیۡتَ مَثَابَةࣰ لِّلنَّاسِ وَأَمۡنࣰا وَٱتَّخِذُواْ مِن مَّقَامِ إِبۡرَ ٰهِـۧمَ مُصَلࣰّىۖ وَعَهِدۡنَاۤ إِلَىٰۤ إِبۡرَ ٰهِـۧمَ وَإِسۡمَـٰعِیلَ أَن طَهِّرَا بَیۡتِیَ لِلطَّاۤىِٕفِینَ وَٱلۡعَـٰكِفِینَ وَٱلرُّكَّعِ ٱلسُّجُودِ ﴿١٢٥﴾
और (उस समय को याद करो) जब हमने इस घर (काबा) को लोगों के लिए लौट कर आने की जगह तथा सर्वथा शांति बनाया, तथा (आदेश दिया) तुम 'मक़ामे इबराहीम' (इबराहीम के खड़े होने की जगह) को नमाज़ का स्थान[63] बनाओ। तथा हमने इबराहीम और इसमाईल को ताकीदी हुक्म दिया कि तुम दोनों मेरे घर को तवाफ़ (परिक्रमा) करने वालों तथा एतिकाफ़[64] करने वालों और रुकू' एवं सजदा करने वालों के लिए पवित्र (साफ़) रखो।
وَإِذۡ قَالَ إِبۡرَ ٰهِـۧمُ رَبِّ ٱجۡعَلۡ هَـٰذَا بَلَدًا ءَامِنࣰا وَٱرۡزُقۡ أَهۡلَهُۥ مِنَ ٱلثَّمَرَ ٰتِ مَنۡ ءَامَنَ مِنۡهُم بِٱللَّهِ وَٱلۡیَوۡمِ ٱلۡـَٔاخِرِۚ قَالَ وَمَن كَفَرَ فَأُمَتِّعُهُۥ قَلِیلࣰا ثُمَّ أَضۡطَرُّهُۥۤ إِلَىٰ عَذَابِ ٱلنَّارِۖ وَبِئۡسَ ٱلۡمَصِیرُ ﴿١٢٦﴾
और (उस समय को याद करो) जब इबराहीम ने कहा : ऐ मेरे पालनहार! इस (जगह) को शांति वाला नगर बना दे और इसके वासियों को फलों से रोज़ी दे, जो उनमें से अल्लाह और अंतिम दिन पर ईमान लाए। (अल्लाह ने) फरमाया : और जिसने कुफ़्र किया, तो मैं उसे भी थोड़ा-सा लाभ दूँगा, फिर उसे आग की यातना की ओर विवश करूँगा और वह लौटने का बुरा स्थान है।
وَإِذۡ یَرۡفَعُ إِبۡرَ ٰهِـۧمُ ٱلۡقَوَاعِدَ مِنَ ٱلۡبَیۡتِ وَإِسۡمَـٰعِیلُ رَبَّنَا تَقَبَّلۡ مِنَّاۤۖ إِنَّكَ أَنتَ ٱلسَّمِیعُ ٱلۡعَلِیمُ ﴿١٢٧﴾
और (याद करो) जब इबराहीम और इसमाईल इस घर की बुनियादें उठा रहे थे (और कह रहे थे :) ऐ हमारे पालनहार! हमसे स्वीकार कर ले। निःसंदेह तू ही सब कुछ सुनने वाला, सब कुछ जानने वाला है।
رَبَّنَا وَٱجۡعَلۡنَا مُسۡلِمَیۡنِ لَكَ وَمِن ذُرِّیَّتِنَاۤ أُمَّةࣰ مُّسۡلِمَةࣰ لَّكَ وَأَرِنَا مَنَاسِكَنَا وَتُبۡ عَلَیۡنَاۤۖ إِنَّكَ أَنتَ ٱلتَّوَّابُ ٱلرَّحِیمُ ﴿١٢٨﴾
ऐ हमारे पालनहार! और हमें अपना आज्ञाकारी बना और हमारी संतान में से भी एक समुदाय अपना आज्ञाकारी बना और हमें अपनी इबादत के तरीक़े दिखा तथा हमारी तौबा क़बूल फरमा। निःसंदेह तू ही बहुत तौबा क़बूल करने वाला, अत्यंत दयावान् है।
رَبَّنَا وَٱبۡعَثۡ فِیهِمۡ رَسُولࣰا مِّنۡهُمۡ یَتۡلُواْ عَلَیۡهِمۡ ءَایَـٰتِكَ وَیُعَلِّمُهُمُ ٱلۡكِتَـٰبَ وَٱلۡحِكۡمَةَ وَیُزَكِّیهِمۡۖ إِنَّكَ أَنتَ ٱلۡعَزِیزُ ٱلۡحَكِیمُ ﴿١٢٩﴾
ऐ हमारे पालनहार! और उनमें उन्हीं में से एक रसूल भेज, जो उनपर तेरी आयतें पढ़े, और उन्हें पुस्तक (क़ुरआन) तथा ह़िकमत (सुन्नत) की शिक्षा दे और उन्हें पाक करे। निःसंदेह तू ही सब पर प्रभुत्वशाली, पूर्ण हिकमत वाला है।[65]
وَمَن یَرۡغَبُ عَن مِّلَّةِ إِبۡرَ ٰهِـۧمَ إِلَّا مَن سَفِهَ نَفۡسَهُۥۚ وَلَقَدِ ٱصۡطَفَیۡنَـٰهُ فِی ٱلدُّنۡیَاۖ وَإِنَّهُۥ فِی ٱلۡـَٔاخِرَةِ لَمِنَ ٱلصَّـٰلِحِینَ ﴿١٣٠﴾
तथा कौन है जो इबराहीम के धर्म से विमुख होगा, सिवाय उसके जिसने अपने आपको मूर्ख बना लिया। निःसंदेह हमने उसे संसार में चुन लिया[66] तथा निःसंदेह वह आख़िरत (परलोक) में निश्चय सदाचारियों में से है।
إِذۡ قَالَ لَهُۥ رَبُّهُۥۤ أَسۡلِمۡۖ قَالَ أَسۡلَمۡتُ لِرَبِّ ٱلۡعَـٰلَمِینَ ﴿١٣١﴾
जब उसके पालनहार ने उससे कहा : (मेरा) आज्ञाकारी हो जा। उसने कहा : मैं सर्व संसार के पालनहार का आज्ञाकारी हो गया।
وَوَصَّىٰ بِهَاۤ إِبۡرَ ٰهِـۧمُ بَنِیهِ وَیَعۡقُوبُ یَـٰبَنِیَّ إِنَّ ٱللَّهَ ٱصۡطَفَىٰ لَكُمُ ٱلدِّینَ فَلَا تَمُوتُنَّ إِلَّا وَأَنتُم مُّسۡلِمُونَ ﴿١٣٢﴾
तथा इसी की वसीयत इबराहीम ने अपने बेटों को की और याक़ूब ने भी। ऐ मेरे बेटो! निःसंदेह अल्लाह ने तुम्हारे लिए यह धर्म (इस्लाम) चुन लिया है। सो, तुम हरगिज़ न मरना परंतु इस हाल में कि तुम मुसलमान (आज्ञाकारी) हो।
أَمۡ كُنتُمۡ شُهَدَاۤءَ إِذۡ حَضَرَ یَعۡقُوبَ ٱلۡمَوۡتُ إِذۡ قَالَ لِبَنِیهِ مَا تَعۡبُدُونَ مِنۢ بَعۡدِیۖ قَالُواْ نَعۡبُدُ إِلَـٰهَكَ وَإِلَـٰهَ ءَابَاۤىِٕكَ إِبۡرَ ٰهِـۧمَ وَإِسۡمَـٰعِیلَ وَإِسۡحَـٰقَ إِلَـٰهࣰا وَ ٰحِدࣰا وَنَحۡنُ لَهُۥ مُسۡلِمُونَ ﴿١٣٣﴾
या तुम मौजूद थे, जब याक़ूब की मृत्यु का समय आया, जब उसने अपने बेटों से कहा : तुम मेरे बाद किसकी इबादत करोगे? उन्होंने उत्तर दिया : हम तेरे पूज्य और तेरे बाप-दादा इबराहीम और इसमाईल और इसहाक़ के पूज्य की इबादत करेंगे, जो एक ही पूज्य है, और हम उसी के आज्ञाकारी हैं।
تِلۡكَ أُمَّةࣱ قَدۡ خَلَتۡۖ لَهَا مَا كَسَبَتۡ وَلَكُم مَّا كَسَبۡتُمۡۖ وَلَا تُسۡـَٔلُونَ عَمَّا كَانُواْ یَعۡمَلُونَ ﴿١٣٤﴾
यह एक समुदाय था, जो गुज़र चुका। उसके लिए वह है जो उसने कमाया, और तुम्हारे लिए वह है जो तुमने कमाया। और तुमसे उसके बारे में नहीं पूछा जाएगा, जो वे किया करते थे।
وَقَالُواْ كُونُواْ هُودًا أَوۡ نَصَـٰرَىٰ تَهۡتَدُواْۗ قُلۡ بَلۡ مِلَّةَ إِبۡرَ ٰهِـۧمَ حَنِیفࣰاۖ وَمَا كَانَ مِنَ ٱلۡمُشۡرِكِینَ ﴿١٣٥﴾
और उन्होंने कहा : यहूदी अथवा ईसाई हो जाओ, मार्गदर्शन पा जाओगे। आप कह दें : बल्कि (हम) इबराहीम के धर्म (का अनुसरण करेंगे), जो एक अल्लाह का होने वाला था और अनेकेश्वरवादियों में से नहीं था।
قُولُوۤاْ ءَامَنَّا بِٱللَّهِ وَمَاۤ أُنزِلَ إِلَیۡنَا وَمَاۤ أُنزِلَ إِلَىٰۤ إِبۡرَ ٰهِـۧمَ وَإِسۡمَـٰعِیلَ وَإِسۡحَـٰقَ وَیَعۡقُوبَ وَٱلۡأَسۡبَاطِ وَمَاۤ أُوتِیَ مُوسَىٰ وَعِیسَىٰ وَمَاۤ أُوتِیَ ٱلنَّبِیُّونَ مِن رَّبِّهِمۡ لَا نُفَرِّقُ بَیۡنَ أَحَدࣲ مِّنۡهُمۡ وَنَحۡنُ لَهُۥ مُسۡلِمُونَ ﴿١٣٦﴾
(ऐ मुसलमानो!) तुम कह दो : हम अल्लाह पर ईमान लाए और उसपर जो हमारी ओर उतारा गया, और जो इबराहीम और इसमाईल और इसह़ाक़ और याक़ूब तथा उसकी संतान की ओर उतारा गया, और जो मूसा एवं ईसा को दिया गया तथा जो समस्त नबियों को उनके पालनहार की ओर से दिया गया। हम उनमें से किसी एक के बीच अंतर नहीं करते और हम उसी (अल्लाह) के आज्ञाकारी हैं।
فَإِنۡ ءَامَنُواْ بِمِثۡلِ مَاۤ ءَامَنتُم بِهِۦ فَقَدِ ٱهۡتَدَواْۖ وَّإِن تَوَلَّوۡاْ فَإِنَّمَا هُمۡ فِی شِقَاقࣲۖ فَسَیَكۡفِیكَهُمُ ٱللَّهُۚ وَهُوَ ٱلسَّمِیعُ ٱلۡعَلِیمُ ﴿١٣٧﴾
फिर यदि वे उस जैसी चीज़ पर ईमान लाएँ, जिसपर तुम ईमान लाए हो, तो निश्चय वे मार्गदर्शन पा गए और यदि वे फिर जाएँ, तो वे मात्र विरोध में पड़े हुए हैं। अतः निकट ही अल्लाह तुझे उनके मुक़ाबले में काफ़ी हो जाएगा और वही सब कुछ सुनने वाला, सब कुछ जानने वाला है।
صِبۡغَةَ ٱللَّهِ وَمَنۡ أَحۡسَنُ مِنَ ٱللَّهِ صِبۡغَةࣰۖ وَنَحۡنُ لَهُۥ عَـٰبِدُونَ ﴿١٣٨﴾
अल्लाह का रंग[67] ग्रहण करो और रंग में अल्लाह से बेहतर कौन है? और हम उसी की इबादत करने वाले हैं।
قُلۡ أَتُحَاۤجُّونَنَا فِی ٱللَّهِ وَهُوَ رَبُّنَا وَرَبُّكُمۡ وَلَنَاۤ أَعۡمَـٰلُنَا وَلَكُمۡ أَعۡمَـٰلُكُمۡ وَنَحۡنُ لَهُۥ مُخۡلِصُونَ ﴿١٣٩﴾
(ऐ नबी!) कह दो : क्या तुम हमसे अल्लाह के बारे में झगड़ते हो? हालाँकि वही हमारा पालनहार तथा तुम्हारा पालनहार है[68] और हमारे लिए हमारे कर्म हैं और तुम्हारे लिए तुम्हारे कर्म, और हम उसी के लिए मुख़्लिस (निष्ठावान) हैं।
أَمۡ تَقُولُونَ إِنَّ إِبۡرَ ٰهِـۧمَ وَإِسۡمَـٰعِیلَ وَإِسۡحَـٰقَ وَیَعۡقُوبَ وَٱلۡأَسۡبَاطَ كَانُواْ هُودًا أَوۡ نَصَـٰرَىٰۗ قُلۡ ءَأَنتُمۡ أَعۡلَمُ أَمِ ٱللَّهُۗ وَمَنۡ أَظۡلَمُ مِمَّن كَتَمَ شَهَـٰدَةً عِندَهُۥ مِنَ ٱللَّهِۗ وَمَا ٱللَّهُ بِغَـٰفِلٍ عَمَّا تَعۡمَلُونَ ﴿١٤٠﴾
(ऐ अह्ले किताब!) या तुम कहते हो कि इबराहीम और इसमाईल और इसह़ाक़ और याक़ूब तथा उनकी औलाद यहूदी या ईसाई थे? (ऐ नबी! उनसे) कह दो : क्या तुम अधिक जानते हो अथवा अल्लाह? और उससे बड़ा अत्याचारी कौन है, जिसने वह गवाही छिपा ली, जो उसके पास अल्लाह की ओर से थी। और अल्लाह हरगिज़ उससे ग़ाफ़िल नहीं जो तुम करते हो।[69]
تِلۡكَ أُمَّةࣱ قَدۡ خَلَتۡۖ لَهَا مَا كَسَبَتۡ وَلَكُم مَّا كَسَبۡتُمۡۖ وَلَا تُسۡـَٔلُونَ عَمَّا كَانُواْ یَعۡمَلُونَ ﴿١٤١﴾
यह एक समुदाय था, जो गुज़र चुका। उसके लिए वह है जो उसने कमाया, और तुम्हारे लिए वह है जो तुमने कमाया। और तुमसे उसके बारे में नहीं पूछा जाएगा, जो वे किया करते थे।[70]
۞ سَیَقُولُ ٱلسُّفَهَاۤءُ مِنَ ٱلنَّاسِ مَا وَلَّىٰهُمۡ عَن قِبۡلَتِهِمُ ٱلَّتِی كَانُواْ عَلَیۡهَاۚ قُل لِّلَّهِ ٱلۡمَشۡرِقُ وَٱلۡمَغۡرِبُۚ یَهۡدِی مَن یَشَاۤءُ إِلَىٰ صِرَ ٰطࣲ مُّسۡتَقِیمࣲ ﴿١٤٢﴾
शीघ्र ही मूर्ख लोग कहेंगे कि उन्हें उनके उस क़िबले[71] से, जिस पर वे थे किस चीज़ ने फेर दिया? (ऐ नबी!) कह दीजिए कि पूर्व और पश्चिम अल्लाह ही के हैं। वह जिसे चाहता है, सीधी राह पर लगा देता है।
وَكَذَ ٰلِكَ جَعَلۡنَـٰكُمۡ أُمَّةࣰ وَسَطࣰا لِّتَكُونُواْ شُهَدَاۤءَ عَلَى ٱلنَّاسِ وَیَكُونَ ٱلرَّسُولُ عَلَیۡكُمۡ شَهِیدࣰاۗ وَمَا جَعَلۡنَا ٱلۡقِبۡلَةَ ٱلَّتِی كُنتَ عَلَیۡهَاۤ إِلَّا لِنَعۡلَمَ مَن یَتَّبِعُ ٱلرَّسُولَ مِمَّن یَنقَلِبُ عَلَىٰ عَقِبَیۡهِۚ وَإِن كَانَتۡ لَكَبِیرَةً إِلَّا عَلَى ٱلَّذِینَ هَدَى ٱللَّهُۗ وَمَا كَانَ ٱللَّهُ لِیُضِیعَ إِیمَـٰنَكُمۡۚ إِنَّ ٱللَّهَ بِٱلنَّاسِ لَرَءُوفࣱ رَّحِیمࣱ ﴿١٤٣﴾
और इसी प्रकार हमने तुम्हें सबसे बेहतर उम्मत (समुदाय) बनाया; ताकि तुम लोगों पर गवाही देने[72] वाले बनो और रसूल तुमपर गवाही देने वाला बने। और हमने वह क़िबला जिसपर तुम थे, इसलिए निर्धारित किया था, ताकि हम जान लें कि कौन (इस) रसूल का अनुसरण करता है, उससे (अलग करके) जो अपनी ऐड़ियों पर फिर जाता है। और निःसंदेह यह बात निश्चय बहुत बड़ी थी, परंतु उन लोगों पर (नहीं) जिन्हें अल्लाह ने हिदायत दी और अल्लाह कभी ऐसा नहीं कि तुम्हारा ईमान (अर्थात् क़िबला बदलने से पहले पढ़ी गई नमाज़ों) को व्यर्थ कर दे।[73] निःसंदेह अल्लाह लोगों पर अत्यंत करुणा करने वाला, अत्यंत दयावान् है।
قَدۡ نَرَىٰ تَقَلُّبَ وَجۡهِكَ فِی ٱلسَّمَاۤءِۖ فَلَنُوَلِّیَنَّكَ قِبۡلَةࣰ تَرۡضَىٰهَاۚ فَوَلِّ وَجۡهَكَ شَطۡرَ ٱلۡمَسۡجِدِ ٱلۡحَرَامِۚ وَحَیۡثُ مَا كُنتُمۡ فَوَلُّواْ وُجُوهَكُمۡ شَطۡرَهُۥۗ وَإِنَّ ٱلَّذِینَ أُوتُواْ ٱلۡكِتَـٰبَ لَیَعۡلَمُونَ أَنَّهُ ٱلۡحَقُّ مِن رَّبِّهِمۡۗ وَمَا ٱللَّهُ بِغَـٰفِلٍ عَمَّا یَعۡمَلُونَ ﴿١٤٤﴾
निश्चय (ऐ नबी!) हम आपके चेहरे का बार-बार आकाश की ओर उठना देख रहे हैं। तो निश्चय हम आपको उस क़िबले की ओर अवश्य फेर देंगे, जिसे आप पसंद करते हैं। तो (अब) अपना चेहरा मस्जिदे ह़राम की ओर फेर लें,[74] तथा तुम जहाँ भी हो, तो अपने चेहरे उसी की ओर फेर लो। निःसंदेह वे लोग जिन्हें किताब दी गई है निश्चय जानते हैं कि निःसंदेह उनके पालनहार की ओर से यही सत्य है[75] और अल्लाह उससे हरगिज़ ग़ाफ़िल नहीं जो वे कर रहे हैं।
وَلَىِٕنۡ أَتَیۡتَ ٱلَّذِینَ أُوتُواْ ٱلۡكِتَـٰبَ بِكُلِّ ءَایَةࣲ مَّا تَبِعُواْ قِبۡلَتَكَۚ وَمَاۤ أَنتَ بِتَابِعࣲ قِبۡلَتَهُمۡۚ وَمَا بَعۡضُهُم بِتَابِعࣲ قِبۡلَةَ بَعۡضࣲۚ وَلَىِٕنِ ٱتَّبَعۡتَ أَهۡوَاۤءَهُم مِّنۢ بَعۡدِ مَا جَاۤءَكَ مِنَ ٱلۡعِلۡمِ إِنَّكَ إِذࣰا لَّمِنَ ٱلظَّـٰلِمِینَ ﴿١٤٥﴾
और निश्चय यदि आप उन लोगों के पास जिन्हें किताब दी गई है, हर निशानी भी ले आएँ, वे आपके क़िबले का अनुसरण नहीं करेंगे और न आप उनके क़िबले का अनुसरण करने वाले हैं। और न उनमें से कोई दूसरे के क़िबले का अनुसरण करने वाला है। और निश्चय यदि आपने उनकी इच्छाओं का पालन किया, उस ज्ञान के बाद जो आपके पास आया है, तो निःसंदेह उस समय आप अवश्य अत्याचारियों में से हो जाएँगे।
ٱلَّذِینَ ءَاتَیۡنَـٰهُمُ ٱلۡكِتَـٰبَ یَعۡرِفُونَهُۥ كَمَا یَعۡرِفُونَ أَبۡنَاۤءَهُمۡۖ وَإِنَّ فَرِیقࣰا مِّنۡهُمۡ لَیَكۡتُمُونَ ٱلۡحَقَّ وَهُمۡ یَعۡلَمُونَ ﴿١٤٦﴾
जिन्हें हमने पुस्तक दी है, वे उसे वैसे ही[76] जानते हैं, जैसे अपने बेटों को पहचानते हैं, और निःसंदेह उनमें से एक समूह जानते हुए भी सत्य को छिपाता है।
ٱلۡحَقُّ مِن رَّبِّكَ فَلَا تَكُونَنَّ مِنَ ٱلۡمُمۡتَرِینَ ﴿١٤٧﴾
यह सत्य आपके पालनहार की ओर से है। अतः आप कदापि संदेह करने वालों में से न हों।
وَلِكُلࣲّ وِجۡهَةٌ هُوَ مُوَلِّیهَاۖ فَٱسۡتَبِقُواْ ٱلۡخَیۡرَ ٰتِۚ أَیۡنَ مَا تَكُونُواْ یَأۡتِ بِكُمُ ٱللَّهُ جَمِیعًاۚ إِنَّ ٱللَّهَ عَلَىٰ كُلِّ شَیۡءࣲ قَدِیرࣱ ﴿١٤٨﴾
प्रत्येक के लिए एक दिशा है, जिसकी ओर वह मुख करने वाला है। अतः तुम भलाइयों में एक-दूसरे आगे बढ़ो। तुम जहाँ कही भी होगे, अल्लाह तुम्हें इकट्ठा करके लाएगा। निःसंदेह अल्लाह हर चीज़ पर सर्वशक्तिमान है।
وَمِنۡ حَیۡثُ خَرَجۡتَ فَوَلِّ وَجۡهَكَ شَطۡرَ ٱلۡمَسۡجِدِ ٱلۡحَرَامِۖ وَإِنَّهُۥ لَلۡحَقُّ مِن رَّبِّكَۗ وَمَا ٱللَّهُ بِغَـٰفِلٍ عَمَّا تَعۡمَلُونَ ﴿١٤٩﴾
और आप जहाँ से भी निकलें, तो अपना चेहरा मस्जिदे-ह़राम की ओर फेर लें। और निःसंदेह यही आपके पालनहार की ओर से सत्य है और अल्लाह उससे हरगिज़ ग़ाफ़िल नहीं जो तुम करते हो।
وَمِنۡ حَیۡثُ خَرَجۡتَ فَوَلِّ وَجۡهَكَ شَطۡرَ ٱلۡمَسۡجِدِ ٱلۡحَرَامِۚ وَحَیۡثُ مَا كُنتُمۡ فَوَلُّواْ وُجُوهَكُمۡ شَطۡرَهُۥ لِئَلَّا یَكُونَ لِلنَّاسِ عَلَیۡكُمۡ حُجَّةٌ إِلَّا ٱلَّذِینَ ظَلَمُواْ مِنۡهُمۡ فَلَا تَخۡشَوۡهُمۡ وَٱخۡشَوۡنِی وَلِأُتِمَّ نِعۡمَتِی عَلَیۡكُمۡ وَلَعَلَّكُمۡ تَهۡتَدُونَ ﴿١٥٠﴾
और आप जहाँ से भी निकलें, अपना चेहरा मस्जिदे-ह़राम की ओर फेर लें। और (ऐ मुसलमानों!) तुम जहाँ भी हो, अपने चेहरे उसी की ओर फेर लो। ताकि लोगों के पास तुम्हारे विरुद्ध कोई हुज्जत (तर्क) न रहे, सिवाय उनके जिन्होंने उनमें से अत्याचार किया। अतः उनसे मत डरो, (बल्कि) मुझसे डरो, और ताकि मैं अपनी नेमत तुमपर पूरी करूँ और ताकि तुम मार्गदर्शन पाओ।
كَمَاۤ أَرۡسَلۡنَا فِیكُمۡ رَسُولࣰا مِّنكُمۡ یَتۡلُواْ عَلَیۡكُمۡ ءَایَـٰتِنَا وَیُزَكِّیكُمۡ وَیُعَلِّمُكُمُ ٱلۡكِتَـٰبَ وَٱلۡحِكۡمَةَ وَیُعَلِّمُكُم مَّا لَمۡ تَكُونُواْ تَعۡلَمُونَ ﴿١٥١﴾
जिस तरह हमने तुम्हारे बीच एक रसूल तुम्हीं में से भेजा, जो तुमपर हमारी आयतें पढ़ता और तुम्हें पाक करता और तुम्हें किताब (क़ुरआन) तथा ह़िकमत (सुन्नत) सिखाता है और तुम्हें वह कुछ सिखाता है, जो तुम नहीं जानते थे।
فَٱذۡكُرُونِیۤ أَذۡكُرۡكُمۡ وَٱشۡكُرُواْ لِی وَلَا تَكۡفُرُونِ ﴿١٥٢﴾
अतः तुम मुझे याद करो,[77] मैं तुम्हें याद करूँगा।[78] और मेरा शुक्र अदा करो तथा मेरी नाशुक्री न करो।
یَـٰۤأَیُّهَا ٱلَّذِینَ ءَامَنُواْ ٱسۡتَعِینُواْ بِٱلصَّبۡرِ وَٱلصَّلَوٰةِۚ إِنَّ ٱللَّهَ مَعَ ٱلصَّـٰبِرِینَ ﴿١٥٣﴾
ऐ ईमान वालो! धैर्य तथा नमाज़ के साथ मदद प्राप्त करो। निःसंदेह अल्लाह धैर्य रखने वालों के साथ है।
وَلَا تَقُولُواْ لِمَن یُقۡتَلُ فِی سَبِیلِ ٱللَّهِ أَمۡوَ ٰتُۢۚ بَلۡ أَحۡیَاۤءࣱ وَلَـٰكِن لَّا تَشۡعُرُونَ ﴿١٥٤﴾
तथा जो अल्लाह की राह में मारे जाएँ, उन्हें मुर्दा न कहो, बल्कि (वे) ज़िंदा हैं, परंतु तुम नहीं समझते।
وَلَنَبۡلُوَنَّكُم بِشَیۡءࣲ مِّنَ ٱلۡخَوۡفِ وَٱلۡجُوعِ وَنَقۡصࣲ مِّنَ ٱلۡأَمۡوَ ٰلِ وَٱلۡأَنفُسِ وَٱلثَّمَرَ ٰتِۗ وَبَشِّرِ ٱلصَّـٰبِرِینَ ﴿١٥٥﴾
तथा निश्चय हम तुम्हें भय और भूख तथा धनों, प्राणों और फलों की कमी में से किसी न किसी चीज़ के साथ अवश्य आज़माएँगे। और (ऐ नबी!) सब्र करने वालों को शुभ समाचार सुना दें।
ٱلَّذِینَ إِذَاۤ أَصَـٰبَتۡهُم مُّصِیبَةࣱ قَالُوۤاْ إِنَّا لِلَّهِ وَإِنَّاۤ إِلَیۡهِ رَ ٰجِعُونَ ﴿١٥٦﴾
वे लोग कि जब उन्हें कोई मुसीबत पहुँचती है, तो कहते हैं : निःसंदेह हम अल्लाह के हैं और निःसंदेह हम उसी की ओर लौटने वाले हैं।
أُوْلَـٰۤىِٕكَ عَلَیۡهِمۡ صَلَوَ ٰتࣱ مِّن رَّبِّهِمۡ وَرَحۡمَةࣱۖ وَأُوْلَـٰۤىِٕكَ هُمُ ٱلۡمُهۡتَدُونَ ﴿١٥٧﴾
यही लोग हैं जिनपर उनके रब की ओर से कई कृपाएँ तथा बड़ी दया है, और यही लोग मार्गदर्शन पाने वाले हैं।
۞ إِنَّ ٱلصَّفَا وَٱلۡمَرۡوَةَ مِن شَعَاۤىِٕرِ ٱللَّهِۖ فَمَنۡ حَجَّ ٱلۡبَیۡتَ أَوِ ٱعۡتَمَرَ فَلَا جُنَاحَ عَلَیۡهِ أَن یَطَّوَّفَ بِهِمَاۚ وَمَن تَطَوَّعَ خَیۡرࣰا فَإِنَّ ٱللَّهَ شَاكِرٌ عَلِیمٌ ﴿١٥٨﴾
निःसंदेह सफ़ा और मरवा[79] अल्लाह की निशानियों में से हैं। अतः जो कोई इस घर का हज्ज करे या उम्रा करे, तो उसपर कोई दोष नहीं कि इन दोनों का तवाफ़ करे। और जो कोई स्वेच्छा से भलाई का कार्य करे, तो निःसंदेह अल्लाह (उसकी) क़द्र करने वाला, सब कुछ जानने वाला है।
إِنَّ ٱلَّذِینَ یَكۡتُمُونَ مَاۤ أَنزَلۡنَا مِنَ ٱلۡبَیِّنَـٰتِ وَٱلۡهُدَىٰ مِنۢ بَعۡدِ مَا بَیَّنَّـٰهُ لِلنَّاسِ فِی ٱلۡكِتَـٰبِ أُوْلَـٰۤىِٕكَ یَلۡعَنُهُمُ ٱللَّهُ وَیَلۡعَنُهُمُ ٱللَّـٰعِنُونَ ﴿١٥٩﴾
निःसंदेह जो लोग उसको छिपाते हैं जो हमने स्पष्ट प्रमाणों और मार्गदर्शन में से उतारा है, इसके बाद कि हमने उसे लोगों के लिए किताब[80] में स्पष्ट कर दिया है, उनपर अल्लाह लानत करता है[81] और सब लानत करने वाले उनपर लानत करते हैं।
إِلَّا ٱلَّذِینَ تَابُواْ وَأَصۡلَحُواْ وَبَیَّنُواْ فَأُوْلَـٰۤىِٕكَ أَتُوبُ عَلَیۡهِمۡ وَأَنَا ٱلتَّوَّابُ ٱلرَّحِیمُ ﴿١٦٠﴾
परंतु वे लोग जिन्होंने तौबा कर ली और सुधार कर लिया और खोलकर बयान कर दिया, तो ये लोग हैं जिनकी मैं तौबा स्वीकार करता हूँ और मैं ही बहुत तौबा क़बूल करने वाला, अत्यंत दयावान् हूँ।
إِنَّ ٱلَّذِینَ كَفَرُواْ وَمَاتُواْ وَهُمۡ كُفَّارٌ أُوْلَـٰۤىِٕكَ عَلَیۡهِمۡ لَعۡنَةُ ٱللَّهِ وَٱلۡمَلَـٰۤىِٕكَةِ وَٱلنَّاسِ أَجۡمَعِینَ ﴿١٦١﴾
निःसंदेह वे लोग जिन्होंने कुफ़्र किया और इस हाल में मर गए कि वे काफ़िर थे, ऐसे लोग हैं जिनपर अल्लाह की और फ़रिश्तों तथा लोगों की, सब की लानत है।
خَـٰلِدِینَ فِیهَا لَا یُخَفَّفُ عَنۡهُمُ ٱلۡعَذَابُ وَلَا هُمۡ یُنظَرُونَ ﴿١٦٢﴾
वे हमेशा इसी (दशा) में रहने वाले हैं, न उनसे यातना हल्की की जाएगी और न उन्हें मोहलत दी जाएगी।
وَإِلَـٰهُكُمۡ إِلَـٰهࣱ وَ ٰحِدࣱۖ لَّاۤ إِلَـٰهَ إِلَّا هُوَ ٱلرَّحۡمَـٰنُ ٱلرَّحِیمُ ﴿١٦٣﴾
और तुम्हारा पूज्य (मा'बूद) एक ही[82] पूज्य (मा'बूद) है, उसके सिवा कोई पूज्य (मा'बूद) नहीं, अत्यंत दयावान्, असीम दयालु है।
إِنَّ فِی خَلۡقِ ٱلسَّمَـٰوَ ٰتِ وَٱلۡأَرۡضِ وَٱخۡتِلَـٰفِ ٱلَّیۡلِ وَٱلنَّهَارِ وَٱلۡفُلۡكِ ٱلَّتِی تَجۡرِی فِی ٱلۡبَحۡرِ بِمَا یَنفَعُ ٱلنَّاسَ وَمَاۤ أَنزَلَ ٱللَّهُ مِنَ ٱلسَّمَاۤءِ مِن مَّاۤءࣲ فَأَحۡیَا بِهِ ٱلۡأَرۡضَ بَعۡدَ مَوۡتِهَا وَبَثَّ فِیهَا مِن كُلِّ دَاۤبَّةࣲ وَتَصۡرِیفِ ٱلرِّیَـٰحِ وَٱلسَّحَابِ ٱلۡمُسَخَّرِ بَیۡنَ ٱلسَّمَاۤءِ وَٱلۡأَرۡضِ لَـَٔایَـٰتࣲ لِّقَوۡمࣲ یَعۡقِلُونَ ﴿١٦٤﴾
निःसंदेह आकाशों और धरती की रचना तथा रात और दिन के बदलने में, तथा उन नावों में जो लोगों को लाभ देने वाली चीज़ें लेकर सागरों में चलती हैं, और उस पानी में जो जो अल्लाह ने आकाश से उतारा, फिर उसके द्वारा धरती को उसकी मृत्यु के पश्चात् जीवित कर दिया और उसमें हर प्रकार के जानवर फैला दिए, तथा हवाओं को फेरने (बदलने) में और उस बादल में, जो आकाश और धरती के बीच वशीभूत[83] किया हुआ है, (इन सब चीज़ों में) उन लोगों के लिए बहुत-सी निशानियाँ हैं, जो समझ-बूझ रखते हैं।
وَمِنَ ٱلنَّاسِ مَن یَتَّخِذُ مِن دُونِ ٱللَّهِ أَندَادࣰا یُحِبُّونَهُمۡ كَحُبِّ ٱللَّهِۖ وَٱلَّذِینَ ءَامَنُوۤاْ أَشَدُّ حُبࣰّا لِّلَّهِۗ وَلَوۡ یَرَى ٱلَّذِینَ ظَلَمُوۤاْ إِذۡ یَرَوۡنَ ٱلۡعَذَابَ أَنَّ ٱلۡقُوَّةَ لِلَّهِ جَمِیعࣰا وَأَنَّ ٱللَّهَ شَدِیدُ ٱلۡعَذَابِ ﴿١٦٥﴾
कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो अल्लाह के सिवा कुछ साझी बना लेते हैं, जिनसे वे अल्लाह के प्रेम जैसा प्रेम करते हैं। तथा वे लोग जो ईमान लाए, अल्लाह से प्रेम में सबसे बढ़कर होते हैं। और काश! वे लोग जिन्होंने अत्याचार किया उस समय को देख लें[84] जब वे यातना को देखेंगे,[85] (तो जान लें) कि निःसंदेह शक्ति सब की सब अल्लाह ही के लिए है और यह कि निःसंदेह अल्लाह बहुत सख़्त अज़ाब वाला है।
إِذۡ تَبَرَّأَ ٱلَّذِینَ ٱتُّبِعُواْ مِنَ ٱلَّذِینَ ٱتَّبَعُواْ وَرَأَوُاْ ٱلۡعَذَابَ وَتَقَطَّعَتۡ بِهِمُ ٱلۡأَسۡبَابُ ﴿١٦٦﴾
जब[86] वे लोग जिनका अनुसरण किया गया[87] था, उन लोगों से बिल्कुल अलग हो जाएँगे जिन्होंने (उनकी) पैरवी की और वे यातना को देख लेंगे और उनके आपस के संबंध पूर्णतया समाप्त हो जाएँगे।
وَقَالَ ٱلَّذِینَ ٱتَّبَعُواْ لَوۡ أَنَّ لَنَا كَرَّةࣰ فَنَتَبَرَّأَ مِنۡهُمۡ كَمَا تَبَرَّءُواْ مِنَّاۗ كَذَ ٰلِكَ یُرِیهِمُ ٱللَّهُ أَعۡمَـٰلَهُمۡ حَسَرَ ٰتٍ عَلَیۡهِمۡۖ وَمَا هُم بِخَـٰرِجِینَ مِنَ ٱلنَّارِ ﴿١٦٧﴾
तथा जिन लोगों ने अनुसरण किया था, कहेंगे : काश! हमारे लिए एक बार पुनः (संसार में) जाना होता, तो हम इनसे वैसे ही बिल्कुल अलग हो जाते, जैसे ये हमसे बिल्कुल अलग हो गए। ऐसे ही अल्लाह उनके कर्मों को उनके लिए अफ़सोस बनाकर दिखाएगा और वे किसी भी तरह आग से निकलने वाले नहीं हैं।
یَـٰۤأَیُّهَا ٱلنَّاسُ كُلُواْ مِمَّا فِی ٱلۡأَرۡضِ حَلَـٰلࣰا طَیِّبࣰا وَلَا تَتَّبِعُواْ خُطُوَ ٰتِ ٱلشَّیۡطَـٰنِۚ إِنَّهُۥ لَكُمۡ عَدُوࣱّ مُّبِینٌ ﴿١٦٨﴾
ऐ लोगो! उन चीज़ों में से खाओ जो धरती में ह़लाल, पाकीज़ा हैं और शैतान के पदचिह्नों का अनुसरण न करो।[88] निःसंदेह वह तुम्हारा खुला शत्रु है।
إِنَّمَا یَأۡمُرُكُم بِٱلسُّوۤءِ وَٱلۡفَحۡشَاۤءِ وَأَن تَقُولُواْ عَلَى ٱللَّهِ مَا لَا تَعۡلَمُونَ ﴿١٦٩﴾
वह तो तुम्हें बुराई और निर्लज्जता ही का आदेश देता है और यह कि तुम अल्लाह पर वह बात कहो,[89] जो तुम नहीं जानते।
وَإِذَا قِیلَ لَهُمُ ٱتَّبِعُواْ مَاۤ أَنزَلَ ٱللَّهُ قَالُواْ بَلۡ نَتَّبِعُ مَاۤ أَلۡفَیۡنَا عَلَیۡهِ ءَابَاۤءَنَاۤۚ أَوَلَوۡ كَانَ ءَابَاۤؤُهُمۡ لَا یَعۡقِلُونَ شَیۡـࣰٔا وَلَا یَهۡتَدُونَ ﴿١٧٠﴾
और जब उनसे[90] कहा जाता है कि उसका अनुसरण करो जो अल्लाह ने (क़ुरआन) उतारा है, तो कहते हैं : बल्कि हम तो उसका अनुसरण करेंगे जिसपर हमने अपने बाप-दादा को पाया है। क्या अगरचे उनके बाप-दादा न कुछ समझते हों और न मार्गदर्शन पाते हों?
وَمَثَلُ ٱلَّذِینَ كَفَرُواْ كَمَثَلِ ٱلَّذِی یَنۡعِقُ بِمَا لَا یَسۡمَعُ إِلَّا دُعَاۤءࣰ وَنِدَاۤءࣰۚ صُمُّۢ بُكۡمٌ عُمۡیࣱ فَهُمۡ لَا یَعۡقِلُونَ ﴿١٧١﴾
उन लोगों का उदाहरण जिन्होंने कुफ़्र किया, उस व्यक्ति के उदाहरण जैसा है, जो उन जानवरों को पुकारता है, जो पुकार और आवाज़ के सिवा कुछ[91] नहीं सुनते। वे बहरे हैं, गूँगे हैं, अंधे हैं, इसलिए वे नहीं समझते।
یَـٰۤأَیُّهَا ٱلَّذِینَ ءَامَنُواْ كُلُواْ مِن طَیِّبَـٰتِ مَا رَزَقۡنَـٰكُمۡ وَٱشۡكُرُواْ لِلَّهِ إِن كُنتُمۡ إِیَّاهُ تَعۡبُدُونَ ﴿١٧٢﴾
ऐ ईमान वालो! उन पवित्र चीज़ों में से खाओ, जो हमने तुम्हें प्रदान की हैं तथा अल्लाह का शुक्र अदा करो, यदि तुम केवल उसी की इबादत करते हो।
إِنَّمَا حَرَّمَ عَلَیۡكُمُ ٱلۡمَیۡتَةَ وَٱلدَّمَ وَلَحۡمَ ٱلۡخِنزِیرِ وَمَاۤ أُهِلَّ بِهِۦ لِغَیۡرِ ٱللَّهِۖ فَمَنِ ٱضۡطُرَّ غَیۡرَ بَاغࣲ وَلَا عَادࣲ فَلَاۤ إِثۡمَ عَلَیۡهِۚ إِنَّ ٱللَّهَ غَفُورࣱ رَّحِیمٌ ﴿١٧٣﴾
उस (अल्लाह) ने तो तुमपर केवल मुर्दार[92] और ख़ून और सूअर का माँस और हर वह चीज़ हराम की है, जिसपर ग़ैरुल्लाह (अल्लाह के अलावा) का नाम पुकारा जाए। फिर जो (इनमें से कोई चीज़ खाने पर) विवश हो जाए, इस हाल में कि वह न अवज्ञा करने वाला हो और न सीमा से आगे बढ़ने वाला, तो उसपर कोई दोष नहीं। निःसंदेह अल्लाह अति क्षमाशील, अत्यंत दयावान् है।[93]
إِنَّ ٱلَّذِینَ یَكۡتُمُونَ مَاۤ أَنزَلَ ٱللَّهُ مِنَ ٱلۡكِتَـٰبِ وَیَشۡتَرُونَ بِهِۦ ثَمَنࣰا قَلِیلًا أُوْلَـٰۤىِٕكَ مَا یَأۡكُلُونَ فِی بُطُونِهِمۡ إِلَّا ٱلنَّارَ وَلَا یُكَلِّمُهُمُ ٱللَّهُ یَوۡمَ ٱلۡقِیَـٰمَةِ وَلَا یُزَكِّیهِمۡ وَلَهُمۡ عَذَابٌ أَلِیمٌ ﴿١٧٤﴾
निःसंदेह जो लोग छिपाते हैं जो अल्लाह ने किताब में से उतारा है और उसके बदले थोड़ा मूल्य प्राप्त करते हैं, वे लोग अपने पेटों में आग के सिवा कुछ नहीं खा रहे। तथा न अल्लाह क़ियामत के दिन उनसे बात करेगा और न उन्हें पाक करेगा और उनके लिए दुःखदायी यातना है।
أُوْلَـٰۤىِٕكَ ٱلَّذِینَ ٱشۡتَرَوُاْ ٱلضَّلَـٰلَةَ بِٱلۡهُدَىٰ وَٱلۡعَذَابَ بِٱلۡمَغۡفِرَةِۚ فَمَاۤ أَصۡبَرَهُمۡ عَلَى ٱلنَّارِ ﴿١٧٥﴾
यही लोग हैं, जिन्होंने हिदायत के बदले गुमराही तथा क्षमा के बदले यातना ख़रीद ली। तो वे आग पर कितना अधिक सब्र करने वाले हैं?
ذَ ٰلِكَ بِأَنَّ ٱللَّهَ نَزَّلَ ٱلۡكِتَـٰبَ بِٱلۡحَقِّۗ وَإِنَّ ٱلَّذِینَ ٱخۡتَلَفُواْ فِی ٱلۡكِتَـٰبِ لَفِی شِقَاقِۭ بَعِیدࣲ ﴿١٧٦﴾
यह (यातना) इस कारण है कि निःसंदेह अल्लाह ने यह पुस्तक सत्य के साथ उतारी है, और निःसंदेह जिन लोगों ने पुस्तक में मतभेद किया है, निश्चय वे बहुत दूर के विरोध में (पड़े) हैं।
۞ لَّیۡسَ ٱلۡبِرَّ أَن تُوَلُّواْ وُجُوهَكُمۡ قِبَلَ ٱلۡمَشۡرِقِ وَٱلۡمَغۡرِبِ وَلَـٰكِنَّ ٱلۡبِرَّ مَنۡ ءَامَنَ بِٱللَّهِ وَٱلۡیَوۡمِ ٱلۡـَٔاخِرِ وَٱلۡمَلَـٰۤىِٕكَةِ وَٱلۡكِتَـٰبِ وَٱلنَّبِیِّـۧنَ وَءَاتَى ٱلۡمَالَ عَلَىٰ حُبِّهِۦ ذَوِی ٱلۡقُرۡبَىٰ وَٱلۡیَتَـٰمَىٰ وَٱلۡمَسَـٰكِینَ وَٱبۡنَ ٱلسَّبِیلِ وَٱلسَّاۤىِٕلِینَ وَفِی ٱلرِّقَابِ وَأَقَامَ ٱلصَّلَوٰةَ وَءَاتَى ٱلزَّكَوٰةَ وَٱلۡمُوفُونَ بِعَهۡدِهِمۡ إِذَا عَـٰهَدُواْۖ وَٱلصَّـٰبِرِینَ فِی ٱلۡبَأۡسَاۤءِ وَٱلضَّرَّاۤءِ وَحِینَ ٱلۡبَأۡسِۗ أُوْلَـٰۤىِٕكَ ٱلَّذِینَ صَدَقُواْۖ وَأُوْلَـٰۤىِٕكَ هُمُ ٱلۡمُتَّقُونَ ﴿١٧٧﴾
नेकी केवल यही नहीं कि तुम अपने मुँह पूर्व और पश्चिम की ओर फेर लो! बल्कि असल नेकी तो उसकी है, जो अल्लाह और अंतिम दिन (आख़िरत) और फ़रिश्तों और पुस्तकों और नबियों पर ईमान लाए, और धन दे उसके मोह के बावजूद रिशतेदारों और अनाथों और निर्धनों और यात्री तथा माँगने वालों को और गर्दनें छुड़ाने में, और नमाज़ क़ायम करे और ज़कात दे, और जो अपनी प्रतिज्ञा पूरी करने वाले हैं जब प्रतिज्ञा करें, और जो तंगी और कष्ट में और लड़ाई के समय धैर्य रखने वाले हैं। यही लोग हैं जो सच्चे सिद्ध हुए तथा यही (अल्लाह से) डरने वाले हैं।[94]
یَـٰۤأَیُّهَا ٱلَّذِینَ ءَامَنُواْ كُتِبَ عَلَیۡكُمُ ٱلۡقِصَاصُ فِی ٱلۡقَتۡلَىۖ ٱلۡحُرُّ بِٱلۡحُرِّ وَٱلۡعَبۡدُ بِٱلۡعَبۡدِ وَٱلۡأُنثَىٰ بِٱلۡأُنثَىٰۚ فَمَنۡ عُفِیَ لَهُۥ مِنۡ أَخِیهِ شَیۡءࣱ فَٱتِّبَاعُۢ بِٱلۡمَعۡرُوفِ وَأَدَاۤءٌ إِلَیۡهِ بِإِحۡسَـٰنࣲۗ ذَ ٰلِكَ تَخۡفِیفࣱ مِّن رَّبِّكُمۡ وَرَحۡمَةࣱۗ فَمَنِ ٱعۡتَدَىٰ بَعۡدَ ذَ ٰلِكَ فَلَهُۥ عَذَابٌ أَلِیمࣱ ﴿١٧٨﴾
ऐ ईमान वालो! तुमपर क़त्ल किए गए व्यक्तियों के बारे में क़िसास (बदला लेना) फ़र्ज़ (अनिवार्य)[95] कर दिया गया है। आज़ाद के बदले आज़ाद, ग़ुलाम के बदले ग़ुलाम और औरत के बदले औरत (को क़त्ल किया जाएगा)। फिर जिसे उसके भाई की ओर से कुछ भी क्षमा[96] कर दिया जाए, तो ऐसे में सामान्य रीति के अनुसार (क़ातिल का) अनुसरण करना चाहिए और भले तरीक़े से उसके पास पहुँचा देना चाहिए। यह तुम्हारे पालनहार की ओर से एक प्रकार की सुविधा तथा एक दया है। फिर जो इसके बाद अत्याचार[97] करे, तो उसके लिए दर्दनाक यातना है।
وَلَكُمۡ فِی ٱلۡقِصَاصِ حَیَوٰةࣱ یَـٰۤأُوْلِی ٱلۡأَلۡبَـٰبِ لَعَلَّكُمۡ تَتَّقُونَ ﴿١٧٩﴾
और ऐ बुद्धि वालो! तुम्हारे लिए क़िसास (बदला) लेने में जीवन है, ताकि तुम तक़वा अपनाओ।[98]
كُتِبَ عَلَیۡكُمۡ إِذَا حَضَرَ أَحَدَكُمُ ٱلۡمَوۡتُ إِن تَرَكَ خَیۡرًا ٱلۡوَصِیَّةُ لِلۡوَ ٰلِدَیۡنِ وَٱلۡأَقۡرَبِینَ بِٱلۡمَعۡرُوفِۖ حَقًّا عَلَى ٱلۡمُتَّقِینَ ﴿١٨٠﴾
और जब तुममें से किसी की मृत्यु का समय आ पहुँचे और वह धन छोड़ रहा हो, तो उसपर माता-पिता और रिश्तेदारों के लिए अच्छे तरीक़े से वसिय्यत करना ज़रूरी कर दिया गया है। यह अल्लाह से डरने वालों पर सुनिश्चित (आवश्यक)[99] है।
فَمَنۢ بَدَّلَهُۥ بَعۡدَ مَا سَمِعَهُۥ فَإِنَّمَاۤ إِثۡمُهُۥ عَلَى ٱلَّذِینَ یُبَدِّلُونَهُۥۤۚ إِنَّ ٱللَّهَ سَمِیعٌ عَلِیمࣱ ﴿١٨١﴾
फिर जो व्यक्ति उसे उसके सुनने के बाद बदल दे, तो उसका पाप उन्हीं लोगों पर है, जो उसे बदल दें। निश्चय अल्लाह सब कुछ सुनने वाला, सब कुछ जानने वाला है।
فَمَنۡ خَافَ مِن مُّوصࣲ جَنَفًا أَوۡ إِثۡمࣰا فَأَصۡلَحَ بَیۡنَهُمۡ فَلَاۤ إِثۡمَ عَلَیۡهِۚ إِنَّ ٱللَّهَ غَفُورࣱ رَّحِیمࣱ ﴿١٨٢﴾
परंतु जिस व्यक्ति को किसी वसीयत करने वाले से किसी प्रकार के पक्षपात या पाप का डर हो, फिर वह उनके बीच सुधार कर दे, तो उसपर कोई पाप नहीं। निश्चय अल्लाह अति क्षमाशील, अत्यंत दयावान् है।
یَـٰۤأَیُّهَا ٱلَّذِینَ ءَامَنُواْ كُتِبَ عَلَیۡكُمُ ٱلصِّیَامُ كَمَا كُتِبَ عَلَى ٱلَّذِینَ مِن قَبۡلِكُمۡ لَعَلَّكُمۡ تَتَّقُونَ ﴿١٨٣﴾
ऐ ईमान वालो! तुमपर रोज़ा[100] रखना फ़र्ज़ (अनिवार्य) कर दिया गया है, जैसे उन लोगों पर फ़र्ज़ (अनिवार्य) किया गया जो तुमसे पहले थे, ताकि तुम परहेज़गार बन जाओ।
أَیَّامࣰا مَّعۡدُودَ ٰتࣲۚ فَمَن كَانَ مِنكُم مَّرِیضًا أَوۡ عَلَىٰ سَفَرࣲ فَعِدَّةࣱ مِّنۡ أَیَّامٍ أُخَرَۚ وَعَلَى ٱلَّذِینَ یُطِیقُونَهُۥ فِدۡیَةࣱ طَعَامُ مِسۡكِینࣲۖ فَمَن تَطَوَّعَ خَیۡرࣰا فَهُوَ خَیۡرࣱ لَّهُۥۚ وَأَن تَصُومُواْ خَیۡرࣱ لَّكُمۡ إِن كُنتُمۡ تَعۡلَمُونَ ﴿١٨٤﴾
गिने हुए चंद दिनों में। फिर तुममें से जो बीमार हो, अथवा किसी यात्रा पर हो, तो दूसरे दिनों से गिनती पूरी करना है। और जो लोग इसकी शक्ति रखते हों (परंतु रोज़ा न रखें), उनपर फ़िदया एक निर्धन का खाना है।[101] फिर जो व्यक्ति स्वेच्छा से नेकी करे, तो वह उसके लिए बेहतर है। और तुम्हारा रोज़ा रखना तुम्हारे लिए बेहतर है, यदि तुम जानते हो।
شَهۡرُ رَمَضَانَ ٱلَّذِیۤ أُنزِلَ فِیهِ ٱلۡقُرۡءَانُ هُدࣰى لِّلنَّاسِ وَبَیِّنَـٰتࣲ مِّنَ ٱلۡهُدَىٰ وَٱلۡفُرۡقَانِۚ فَمَن شَهِدَ مِنكُمُ ٱلشَّهۡرَ فَلۡیَصُمۡهُۖ وَمَن كَانَ مَرِیضًا أَوۡ عَلَىٰ سَفَرࣲ فَعِدَّةࣱ مِّنۡ أَیَّامٍ أُخَرَۗ یُرِیدُ ٱللَّهُ بِكُمُ ٱلۡیُسۡرَ وَلَا یُرِیدُ بِكُمُ ٱلۡعُسۡرَ وَلِتُكۡمِلُواْ ٱلۡعِدَّةَ وَلِتُكَبِّرُواْ ٱللَّهَ عَلَىٰ مَا هَدَىٰكُمۡ وَلَعَلَّكُمۡ تَشۡكُرُونَ ﴿١٨٥﴾
रमज़ान का महीना वह है, जिसमें क़ुरआन उतारा गया, जो लोगों के लिए मार्गदर्शन है तथा मार्गदर्शन और (सत्य एवं असत्य के बीच) अंतर करने के स्पष्ट प्रमाण हैं। अतः तुममें से जो व्यक्ति इस महीने में उपस्थित[102] हो, तो वह इसका रोज़ा रखे। तथा जो बीमार[103] हो अथवा किसी यात्रा[104] पर हो, तो दूसरे दिनों से गिनती पूरी करना है। अल्लाह तुम्हारे साथ आसानी चाहता है, तुम्हारे साथ तंगी नहीं चाहता। और ताकि तुम गिनती पूरी करो और ताकि तुम इस बात पर अल्लाह की महिमा का वर्णन करो कि उसने तुम्हें मार्गदर्शन प्रदान किया और ताकि तुम उसका शुक्र अदा करो।[105]
وَإِذَا سَأَلَكَ عِبَادِی عَنِّی فَإِنِّی قَرِیبٌۖ أُجِیبُ دَعۡوَةَ ٱلدَّاعِ إِذَا دَعَانِۖ فَلۡیَسۡتَجِیبُواْ لِی وَلۡیُؤۡمِنُواْ بِی لَعَلَّهُمۡ یَرۡشُدُونَ ﴿١٨٦﴾
और (ऐ नबी!) जब मेरे बंदे आपसे मेरे बारे में पूछें, तो निश्चय मैं (उनसे) क़रीब हूँ। मैं पुकारने वाले की दुआ क़बूल करता हूँ जब वह मुझे पुकारता है। तो उन्हें चाहिए कि वे मेरी बात मानें तथा मुझपर ईमान लाएँ, ताकि वे मार्गदर्शन पाएँ।
أُحِلَّ لَكُمۡ لَیۡلَةَ ٱلصِّیَامِ ٱلرَّفَثُ إِلَىٰ نِسَاۤىِٕكُمۡۚ هُنَّ لِبَاسࣱ لَّكُمۡ وَأَنتُمۡ لِبَاسࣱ لَّهُنَّۗ عَلِمَ ٱللَّهُ أَنَّكُمۡ كُنتُمۡ تَخۡتَانُونَ أَنفُسَكُمۡ فَتَابَ عَلَیۡكُمۡ وَعَفَا عَنكُمۡۖ فَٱلۡـَٔـٰنَ بَـٰشِرُوهُنَّ وَٱبۡتَغُواْ مَا كَتَبَ ٱللَّهُ لَكُمۡۚ وَكُلُواْ وَٱشۡرَبُواْ حَتَّىٰ یَتَبَیَّنَ لَكُمُ ٱلۡخَیۡطُ ٱلۡأَبۡیَضُ مِنَ ٱلۡخَیۡطِ ٱلۡأَسۡوَدِ مِنَ ٱلۡفَجۡرِۖ ثُمَّ أَتِمُّواْ ٱلصِّیَامَ إِلَى ٱلَّیۡلِۚ وَلَا تُبَـٰشِرُوهُنَّ وَأَنتُمۡ عَـٰكِفُونَ فِی ٱلۡمَسَـٰجِدِۗ تِلۡكَ حُدُودُ ٱللَّهِ فَلَا تَقۡرَبُوهَاۗ كَذَ ٰلِكَ یُبَیِّنُ ٱللَّهُ ءَایَـٰتِهِۦ لِلنَّاسِ لَعَلَّهُمۡ یَتَّقُونَ ﴿١٨٧﴾
तुम्हारे लिए रोज़े की रात में अपनी स्त्रियों से सहवास करना ह़लाल कर दिया गया है। वे तुम्हारे लिए वस्त्र[106] हैं तथा तुम उनके लिए वस्त्र हो। अल्लाह ने जान लिया कि तुम अपने आपसे ख़यानत[107] करते थे। तो उसने तुमपर दया करते हुए तुम्हारी तौबा स्वीकार कर ली तथा तुम्हें क्षमा कर दिया। तो अब तुम उनसे (रात में) सहवास करो और जो अल्लाह ने तुम्हारे लिए लिखा है उसे तलब करो, तथा खाओ और पियो, यहाँ तक कि तुम्हारे लिए भोर की सफेद धारी रात की काली धारी से स्पष्ट हो जाए,[108] फिर रोज़े को रात (सूर्य डूबने) तक पूरा करो। और उनसे सहवास न करो, जबकि तुम मस्जिदों में ऐतिकाफ़ में हो। ये अल्लाह की सीमाएँ हैं, अतः इनके क़रीब न जाओ। इसी प्रकार अल्लाह लोगों के लिए अपनी आयतों को स्पष्ट करता है, ताकि वे बच जाएँ।
وَلَا تَأۡكُلُوۤاْ أَمۡوَ ٰلَكُم بَیۡنَكُم بِٱلۡبَـٰطِلِ وَتُدۡلُواْ بِهَاۤ إِلَى ٱلۡحُكَّامِ لِتَأۡكُلُواْ فَرِیقࣰا مِّنۡ أَمۡوَ ٰلِ ٱلنَّاسِ بِٱلۡإِثۡمِ وَأَنتُمۡ تَعۡلَمُونَ ﴿١٨٨﴾
तथा आपस में एक-दूसरे का धन अवैध रूप से न खाओ और न उन्हें अधिकारियों के पास ले जाओ, ताकि लोगों के धन का कुछ भाग गुनाह[109] के साथ खा जाओ, हालाँकि तुम जानते हो।
۞ یَسۡـَٔلُونَكَ عَنِ ٱلۡأَهِلَّةِۖ قُلۡ هِیَ مَوَ ٰقِیتُ لِلنَّاسِ وَٱلۡحَجِّۗ وَلَیۡسَ ٱلۡبِرُّ بِأَن تَأۡتُواْ ٱلۡبُیُوتَ مِن ظُهُورِهَا وَلَـٰكِنَّ ٱلۡبِرَّ مَنِ ٱتَّقَىٰۗ وَأۡتُواْ ٱلۡبُیُوتَ مِنۡ أَبۡوَ ٰبِهَاۚ وَٱتَّقُواْ ٱللَّهَ لَعَلَّكُمۡ تُفۡلِحُونَ ﴿١٨٩﴾
(ऐ नबी!) लोग आपसे नये चाँदों के बारे में पूछते हैं। आप कह दें, वे लोगों के लिए और हज्ज के लिए समय जानने के माध्यम हैं। और नेकी हरगिज़ यह नहीं कि घरों में उनके पीछे से आओ। बल्कि नेकी उसकी है जो (अल्लाह की अवज्ञा से) बचे। तथा घरों में उनके द्वारों से आओ और अल्लाह से डरो, ताकि तुम सफल हो जाओ।[110]
وَقَـٰتِلُواْ فِی سَبِیلِ ٱللَّهِ ٱلَّذِینَ یُقَـٰتِلُونَكُمۡ وَلَا تَعۡتَدُوۤاْۚ إِنَّ ٱللَّهَ لَا یُحِبُّ ٱلۡمُعۡتَدِینَ ﴿١٩٠﴾
तथा अल्लाह की राह में, उनसे युद्ध करो, जो तुमसे युद्ध करते हैं, और अत्याचार न करो, निःसंदेह अल्लाह अत्याचार करने वालों से प्रेम नहीं करता।
وَٱقۡتُلُوهُمۡ حَیۡثُ ثَقِفۡتُمُوهُمۡ وَأَخۡرِجُوهُم مِّنۡ حَیۡثُ أَخۡرَجُوكُمۡۚ وَٱلۡفِتۡنَةُ أَشَدُّ مِنَ ٱلۡقَتۡلِۚ وَلَا تُقَـٰتِلُوهُمۡ عِندَ ٱلۡمَسۡجِدِ ٱلۡحَرَامِ حَتَّىٰ یُقَـٰتِلُوكُمۡ فِیهِۖ فَإِن قَـٰتَلُوكُمۡ فَٱقۡتُلُوهُمۡۗ كَذَ ٰلِكَ جَزَاۤءُ ٱلۡكَـٰفِرِینَ ﴿١٩١﴾
और उन्हें क़त्ल करो जहाँ उन्हें पाओ, और उन्हें वहाँ से निकालो जहाँ से उन्होंने तुम्हें निकाला है, और फ़ितना[111], क़त्ल करने से अधिक सख़्त है। और उनसे मस्जिदे ह़राम के पास युद्ध न करो, जब तक वे तुमसे वहाँ युद्ध न करें।[112] फिर यदि वे तुमसे युद्ध करें, तो उन्हें क़त्ल करो, ऐसे ही काफ़िरों का बदला है।
فَإِنِ ٱنتَهَوۡاْ فَإِنَّ ٱللَّهَ غَفُورࣱ رَّحِیمࣱ ﴿١٩٢﴾
फिर यदि वे (युद्ध से) रुक जाएँ, तो निःसंदेह अल्लाह बेहद क्षमा करनेवाला, अत्यंत दयावान् है।
وَقَـٰتِلُوهُمۡ حَتَّىٰ لَا تَكُونَ فِتۡنَةࣱ وَیَكُونَ ٱلدِّینُ لِلَّهِۖ فَإِنِ ٱنتَهَوۡاْ فَلَا عُدۡوَ ٰنَ إِلَّا عَلَى ٱلظَّـٰلِمِینَ ﴿١٩٣﴾
तथा उनसे युद्ध करो, यहाँ तक कि कोई फ़ितना शेष न रहे और धर्म अल्लाह के लिए हो जाए। फिर यदि वे बाज़ आ जाएँ, तो अत्याचारियों के सिवा किसी पर कोई ज़्यादती (जायज़) नहीं।
ٱلشَّهۡرُ ٱلۡحَرَامُ بِٱلشَّهۡرِ ٱلۡحَرَامِ وَٱلۡحُرُمَـٰتُ قِصَاصࣱۚ فَمَنِ ٱعۡتَدَىٰ عَلَیۡكُمۡ فَٱعۡتَدُواْ عَلَیۡهِ بِمِثۡلِ مَا ٱعۡتَدَىٰ عَلَیۡكُمۡۚ وَٱتَّقُواْ ٱللَّهَ وَٱعۡلَمُوۤاْ أَنَّ ٱللَّهَ مَعَ ٱلۡمُتَّقِینَ ﴿١٩٤﴾
हुरमत वाला[113] महीना, हुरमत वाले महीने के बदले है और सब हुरमतों में क़िसास (बराबरी का बदला) है। अतः जो तुमपर ज़्यादती करे, तो तुम उसपर उसी के समान ज़्यादती करो, जैसी उसने तुमपर ज़्यादती की है तथा अल्लाह से डरो और जान लो कि अल्लाह डरने वालों के साथ है।
وَأَنفِقُواْ فِی سَبِیلِ ٱللَّهِ وَلَا تُلۡقُواْ بِأَیۡدِیكُمۡ إِلَى ٱلتَّهۡلُكَةِ وَأَحۡسِنُوۤاْۚ إِنَّ ٱللَّهَ یُحِبُّ ٱلۡمُحۡسِنِینَ ﴿١٩٥﴾
तथा अल्लाह के मार्ग में (धन) ख़र्च करो और अपने आपको विनाश में न डालो तथा नेकी करो, निःसंदेह अल्लाह नेकी करने वालों से प्रेम करता है।
وَأَتِمُّواْ ٱلۡحَجَّ وَٱلۡعُمۡرَةَ لِلَّهِۚ فَإِنۡ أُحۡصِرۡتُمۡ فَمَا ٱسۡتَیۡسَرَ مِنَ ٱلۡهَدۡیِۖ وَلَا تَحۡلِقُواْ رُءُوسَكُمۡ حَتَّىٰ یَبۡلُغَ ٱلۡهَدۡیُ مَحِلَّهُۥۚ فَمَن كَانَ مِنكُم مَّرِیضًا أَوۡ بِهِۦۤ أَذࣰى مِّن رَّأۡسِهِۦ فَفِدۡیَةࣱ مِّن صِیَامٍ أَوۡ صَدَقَةٍ أَوۡ نُسُكࣲۚ فَإِذَاۤ أَمِنتُمۡ فَمَن تَمَتَّعَ بِٱلۡعُمۡرَةِ إِلَى ٱلۡحَجِّ فَمَا ٱسۡتَیۡسَرَ مِنَ ٱلۡهَدۡیِۚ فَمَن لَّمۡ یَجِدۡ فَصِیَامُ ثَلَـٰثَةِ أَیَّامࣲ فِی ٱلۡحَجِّ وَسَبۡعَةٍ إِذَا رَجَعۡتُمۡۗ تِلۡكَ عَشَرَةࣱ كَامِلَةࣱۗ ذَ ٰلِكَ لِمَن لَّمۡ یَكُنۡ أَهۡلُهُۥ حَاضِرِی ٱلۡمَسۡجِدِ ٱلۡحَرَامِۚ وَٱتَّقُواْ ٱللَّهَ وَٱعۡلَمُوۤاْ أَنَّ ٱللَّهَ شَدِیدُ ٱلۡعِقَابِ ﴿١٩٦﴾
तथा ह़ज्ज और उमरा अल्लाह के लिए पूरा करो। फिर यदि तुम रोक दिए जाओ,[114] तो क़ुर्बानी में से जो उपलब्ध हो (कर दो)। और अपने सिर न मुँडाओ, जब तक कि क़ुर्बानी अपने ज़बह के स्थान तक न पहुँच जाए।[115] फिर तुममें से जो व्यक्ति बीमार हो या उसके सिर में कोई तकलीफ़ हो (और उसके कारण सिर मुँडा ले), तो रोज़े या सदक़ा या क़ुर्बानी में से कोई एक फ़िदया[116] है। फिर जब तुम निश्चिंत हो जाओ, तो (ऐसे में) जो व्यक्ति ह़ज्ज (के एहराम बाँधने) तक उमरे से लाभ[117] उठाए, तो क़ुर्बानी में से जो उपलब्ध हो, करे। फिर जिसके पास (क़ुर्बानी) उपलब्ध न हो, तो वह तीन रोज़े ह़ज्ज के दौरान रखे और सात दिन के उस समय रखे, जब तुम (घर) वापस जाओ। ये पूरे दस हैं। ये उसके लिए हैं, जिसके घर वाले मस्जिदे-ह़राम के निवासी न हों। और अल्लाह से डरो तथा जान लो कि निःसंदेह अल्लाह बहुत सख़्त अज़ाब वाला है।
ٱلۡحَجُّ أَشۡهُرࣱ مَّعۡلُومَـٰتࣱۚ فَمَن فَرَضَ فِیهِنَّ ٱلۡحَجَّ فَلَا رَفَثَ وَلَا فُسُوقَ وَلَا جِدَالَ فِی ٱلۡحَجِّۗ وَمَا تَفۡعَلُواْ مِنۡ خَیۡرࣲ یَعۡلَمۡهُ ٱللَّهُۗ وَتَزَوَّدُواْ فَإِنَّ خَیۡرَ ٱلزَّادِ ٱلتَّقۡوَىٰۖ وَٱتَّقُونِ یَـٰۤأُوْلِی ٱلۡأَلۡبَـٰبِ ﴿١٩٧﴾
ह़ज्ज चंद जाने-माने महीने हैं। फिर जो व्यक्ति इनमें ह़ज्ज अनिवार्य कर ले, तो ह़ज्ज के दौरान न कोई काम-वासना की बात हो और न कोई अवज्ञा और न कोई झगड़ा। तथा तुम जो भी नेकी का काम करोगे, अल्लाह उसे जान लेगा। और पाथेय ले लो, (और जान लो कि) सबसे अच्छा पाथेय परहेज़गारी है तथा ऐ बुद्धि वालो! मुझसे डरो।
لَیۡسَ عَلَیۡكُمۡ جُنَاحٌ أَن تَبۡتَغُواْ فَضۡلࣰا مِّن رَّبِّكُمۡۚ فَإِذَاۤ أَفَضۡتُم مِّنۡ عَرَفَـٰتࣲ فَٱذۡكُرُواْ ٱللَّهَ عِندَ ٱلۡمَشۡعَرِ ٱلۡحَرَامِۖ وَٱذۡكُرُوهُ كَمَا هَدَىٰكُمۡ وَإِن كُنتُم مِّن قَبۡلِهِۦ لَمِنَ ٱلضَّاۤلِّینَ ﴿١٩٨﴾
तथा तुमपर कोई दोष[118] नहीं कि अपने पालनहार का अनुग्रह (फ़ज़्ल) तलाश करो। फिर जब तुम अरफ़ात[119] से प्रस्थान करो, तो मश्अरे ह़राम (मुज़दलिफ़ा) के पास अल्लाह को याद करो और उसको उसी तरह याद करो, जैसे उसने तुम्हारा मार्गदर्शन किया है। और निःसंदेह इससे पहले तुम गुमराह लोगों में से थे।
ثُمَّ أَفِیضُواْ مِنۡ حَیۡثُ أَفَاضَ ٱلنَّاسُ وَٱسۡتَغۡفِرُواْ ٱللَّهَۚ إِنَّ ٱللَّهَ غَفُورࣱ رَّحِیمࣱ ﴿١٩٩﴾
फिर तुम[120] उस जगह से वापस आओ, जहाँ से सब लोग वापस आएँ तथा अल्लाह से क्षमा माँगो। निश्चय अल्लाह अति क्षमाशील, अत्यंत दयावान् है।
فَإِذَا قَضَیۡتُم مَّنَـٰسِكَكُمۡ فَٱذۡكُرُواْ ٱللَّهَ كَذِكۡرِكُمۡ ءَابَاۤءَكُمۡ أَوۡ أَشَدَّ ذِكۡرࣰاۗ فَمِنَ ٱلنَّاسِ مَن یَقُولُ رَبَّنَاۤ ءَاتِنَا فِی ٱلدُّنۡیَا وَمَا لَهُۥ فِی ٱلۡـَٔاخِرَةِ مِنۡ خَلَـٰقࣲ ﴿٢٠٠﴾
और जब तुम अपने ह़ज्ज के कार्य पूरे कर लो, तो अल्लाह को याद करो, जैसे अपने बाप-दादा को याद किया करते थे, बल्कि उससे भी बढ़कर याद[121] करो। फिर लोगों में से कोई तो ऐसा है जो कहता है : ऐ हमारे पालनहार! हमें दुनिया में दे दे। और आख़िरत में उसका कोई हिस्सा नहीं।
وَمِنۡهُم مَّن یَقُولُ رَبَّنَاۤ ءَاتِنَا فِی ٱلدُّنۡیَا حَسَنَةࣰ وَفِی ٱلۡـَٔاخِرَةِ حَسَنَةࣰ وَقِنَا عَذَابَ ٱلنَّارِ ﴿٢٠١﴾
तथा उनमें से कोई ऐसा है, जो कहता है : ऐ हमारे पालनहार! हमें दुनिया में भलाई तथा आख़िरत में भी भलाई दे और हमें आग के अज़ाब से बचा।
أُوْلَـٰۤىِٕكَ لَهُمۡ نَصِیبࣱ مِّمَّا كَسَبُواْۚ وَٱللَّهُ سَرِیعُ ٱلۡحِسَابِ ﴿٢٠٢﴾
यही लोग हैं, जिनके लिए उसमें से एक हिस्सा है, जो उन्होंने कमाया और अल्लाह बहुत जल्द ह़िसाब लेने वाला है।
۞ وَٱذۡكُرُواْ ٱللَّهَ فِیۤ أَیَّامࣲ مَّعۡدُودَ ٰتࣲۚ فَمَن تَعَجَّلَ فِی یَوۡمَیۡنِ فَلَاۤ إِثۡمَ عَلَیۡهِ وَمَن تَأَخَّرَ فَلَاۤ إِثۡمَ عَلَیۡهِۖ لِمَنِ ٱتَّقَىٰۗ وَٱتَّقُواْ ٱللَّهَ وَٱعۡلَمُوۤاْ أَنَّكُمۡ إِلَیۡهِ تُحۡشَرُونَ ﴿٢٠٣﴾
तथा अल्लाह को चंद गिने हुए दिनों[122] में याद करो। फिर जो दो दिनों में (मिना से) जल्द चला[123] जाए, तो उसपर कोई दोष नहीं और जो देर[124] से निकले, तो उसपर भी कोई दोष नहीं, उस व्यक्ति के लिए जो (अल्लाह से) डरे तथा अल्लाह से डरो और जान लो कि निःसंदेह तुम उसी की ओर एकत्र किए जाओगो।
وَمِنَ ٱلنَّاسِ مَن یُعۡجِبُكَ قَوۡلُهُۥ فِی ٱلۡحَیَوٰةِ ٱلدُّنۡیَا وَیُشۡهِدُ ٱللَّهَ عَلَىٰ مَا فِی قَلۡبِهِۦ وَهُوَ أَلَدُّ ٱلۡخِصَامِ ﴿٢٠٤﴾
लोगों[124] में कोई व्यक्ति ऐसा भी है जिसकी बात सांसारिक जीवन के बारे में (ऐ नबी!) आपको अच्छी लगती है और वह अल्लाह को उसपर गवाह बनाता है जो उसके दिल में हैं, हालाँकि वह बड़ा झगड़ालू है।
وَإِذَا تَوَلَّىٰ سَعَىٰ فِی ٱلۡأَرۡضِ لِیُفۡسِدَ فِیهَا وَیُهۡلِكَ ٱلۡحَرۡثَ وَٱلنَّسۡلَۚ وَٱللَّهُ لَا یُحِبُّ ٱلۡفَسَادَ ﴿٢٠٥﴾
तथा जब वह वापस जाता है, तो धरती में दौड़-धूप करता है ताकि उसमें उपद्रव फैलाए तथा खेती और नस्ल (पशुओं) का विनाश करे और अल्लाह उपद्रव को पसंद नहीं करता।
وَإِذَا قِیلَ لَهُ ٱتَّقِ ٱللَّهَ أَخَذَتۡهُ ٱلۡعِزَّةُ بِٱلۡإِثۡمِۚ فَحَسۡبُهُۥ جَهَنَّمُۖ وَلَبِئۡسَ ٱلۡمِهَادُ ﴿٢٠٦﴾
तथा जब उससे कहा जाता है कि अल्लाह से डर, तो उसका गौरव उसे पाप में पकड़े रखता है। अतः उसके (दंड के) लिए जहन्नम ही काफ़ी है और निश्चय वह बहुत बुरा ठिकाना है।
وَمِنَ ٱلنَّاسِ مَن یَشۡرِی نَفۡسَهُ ٱبۡتِغَاۤءَ مَرۡضَاتِ ٱللَّهِۚ وَٱللَّهُ رَءُوفُۢ بِٱلۡعِبَادِ ﴿٢٠٧﴾
तथा लोगों में ऐसा व्यक्ति भी है, जो अल्लाह की प्रसन्नता की खोज में अपना प्राण बेच[125] देता है और अल्लाह उन बंदों पर अनंत करुणामय है।
یَـٰۤأَیُّهَا ٱلَّذِینَ ءَامَنُواْ ٱدۡخُلُواْ فِی ٱلسِّلۡمِ كَاۤفَّةࣰ وَلَا تَتَّبِعُواْ خُطُوَ ٰتِ ٱلشَّیۡطَـٰنِۚ إِنَّهُۥ لَكُمۡ عَدُوࣱّ مُّبِینࣱ ﴿٢٠٨﴾
ऐ ईमान वालो! इस्लाम में पूर्ण रूप से प्रेश[126] कर जाओ और शैतान के पदचिह्नों पर न चलो। निश्चय वह तुम्हारा खुला दुश्मन है।
فَإِن زَلَلۡتُم مِّنۢ بَعۡدِ مَا جَاۤءَتۡكُمُ ٱلۡبَیِّنَـٰتُ فَٱعۡلَمُوۤاْ أَنَّ ٱللَّهَ عَزِیزٌ حَكِیمٌ ﴿٢٠٩﴾
फिर यदि इसके बाद फिसल जाओ कि तुम्हारे पास स्पष्ट दलीलें[127] आ चुकीं, तो जान लो कि निःसंदेह अल्लाह अत्यंत प्रभुत्वशाली, पूर्ण ह़िकमत वाला[128] है।
هَلۡ یَنظُرُونَ إِلَّاۤ أَن یَأۡتِیَهُمُ ٱللَّهُ فِی ظُلَلࣲ مِّنَ ٱلۡغَمَامِ وَٱلۡمَلَـٰۤىِٕكَةُ وَقُضِیَ ٱلۡأَمۡرُۚ وَإِلَى ٱللَّهِ تُرۡجَعُ ٱلۡأُمُورُ ﴿٢١٠﴾
वे (इन स्पष्ट प्रमाणों के बाद) इसके सिवा किस चीज़ की प्रतीक्षा कर रहे हैं कि उनके पास अल्लाह बादलों के सायों में आ जाए तथा फ़रिश्ते भी और मामले का निर्णय कर दिया जाए और सब काम अल्लाह ही की ओर लौटाए[129[ जाते हैं।
سَلۡ بَنِیۤ إِسۡرَ ٰۤءِیلَ كَمۡ ءَاتَیۡنَـٰهُم مِّنۡ ءَایَةِۭ بَیِّنَةࣲۗ وَمَن یُبَدِّلۡ نِعۡمَةَ ٱللَّهِ مِنۢ بَعۡدِ مَا جَاۤءَتۡهُ فَإِنَّ ٱللَّهَ شَدِیدُ ٱلۡعِقَابِ ﴿٢١١﴾
बनी इसराईल से पूछो कि हमने उन्हें कितनी खुली निशानियाँ दीं। और जो अल्लाह की नेमत को बदल दे, इसके बाद कि वह उसके पास आ चुकी हो, तो निश्चय अल्लाह बहुत सख़्त अज़ाब वाला है।
زُیِّنَ لِلَّذِینَ كَفَرُواْ ٱلۡحَیَوٰةُ ٱلدُّنۡیَا وَیَسۡخَرُونَ مِنَ ٱلَّذِینَ ءَامَنُواْۘ وَٱلَّذِینَ ٱتَّقَوۡاْ فَوۡقَهُمۡ یَوۡمَ ٱلۡقِیَـٰمَةِۗ وَٱللَّهُ یَرۡزُقُ مَن یَشَاۤءُ بِغَیۡرِ حِسَابࣲ ﴿٢١٢﴾
उन लोगों के लिए जिन्होंने कुफ़्र किया, सांसारिक जीवन आकर्षक बना दिया गया है तथा वे ईमान लाने वालों का मज़ाक़[130] उड़ाते हैं। हालाँकि जो लोग (अल्लाह का) डर रखने वाले हैं, वे क़ियामत के दिन उनसे ऊपर[131] होंगे तथा अल्लाह जिसे चाहता है, असंख्य जीविका प्रदान करता है।
كَانَ ٱلنَّاسُ أُمَّةࣰ وَ ٰحِدَةࣰ فَبَعَثَ ٱللَّهُ ٱلنَّبِیِّـۧنَ مُبَشِّرِینَ وَمُنذِرِینَ وَأَنزَلَ مَعَهُمُ ٱلۡكِتَـٰبَ بِٱلۡحَقِّ لِیَحۡكُمَ بَیۡنَ ٱلنَّاسِ فِیمَا ٱخۡتَلَفُواْ فِیهِۚ وَمَا ٱخۡتَلَفَ فِیهِ إِلَّا ٱلَّذِینَ أُوتُوهُ مِنۢ بَعۡدِ مَا جَاۤءَتۡهُمُ ٱلۡبَیِّنَـٰتُ بَغۡیَۢا بَیۡنَهُمۡۖ فَهَدَى ٱللَّهُ ٱلَّذِینَ ءَامَنُواْ لِمَا ٱخۡتَلَفُواْ فِیهِ مِنَ ٱلۡحَقِّ بِإِذۡنِهِۦۗ وَٱللَّهُ یَهۡدِی مَن یَشَاۤءُ إِلَىٰ صِرَ ٰطࣲ مُّسۡتَقِیمٍ ﴿٢١٣﴾
(आरंभ में) सब लोग एक ही समुदाय थे। (फिर विभेद हुआ) तो अल्लाह ने नबी भेजे, शुभ समाचार सुनाने वाले[132] और डराने वाले, और उनपर सत्य के साथ पुस्तक उतारी, ताकि वह लोगों के बीच उन बातों का फैसला करे, जिनमें उन्होंने मतभेद किया था। और उसमें मतभेद उन्हीं लोगों ने किया, जिन्हें वह दी गई थी, इसके बाद कि उनके पास स्पष्ट निशानियाँ आ चुकीं, आपस के हठ के कारण। फिर जो लोग ईमान लाए, अल्लाह ने उन्हें अपनी आज्ञा से सत्य में से उस बात का मार्गदर्शन किया, जिसमें उन्होंने मतभेद किया था और अल्लाह जिसे चाहता है, सीधा मार्ग दर्शाता है।
أَمۡ حَسِبۡتُمۡ أَن تَدۡخُلُواْ ٱلۡجَنَّةَ وَلَمَّا یَأۡتِكُم مَّثَلُ ٱلَّذِینَ خَلَوۡاْ مِن قَبۡلِكُمۖ مَّسَّتۡهُمُ ٱلۡبَأۡسَاۤءُ وَٱلضَّرَّاۤءُ وَزُلۡزِلُواْ حَتَّىٰ یَقُولَ ٱلرَّسُولُ وَٱلَّذِینَ ءَامَنُواْ مَعَهُۥ مَتَىٰ نَصۡرُ ٱللَّهِۗ أَلَاۤ إِنَّ نَصۡرَ ٱللَّهِ قَرِیبࣱ ﴿٢١٤﴾
या तुमने समझ रखा है कि तुम जन्नत में प्रवेश कर जाओगे, हालाँकि अभी तक तुमपर उन लोगों जैसी दशा नहीं आई, जो तुमसे पूर्व थे। उन्हें तंगी और तकलीफ़ पहुँची तथा वे सख़्त हिला दिए गए, यहाँ तक कि वह रसूल और जो लोग उसके साथ ईमान लाए थे, कह उठे : अल्लाह की सहायता कब आएगी? सुन लो, निःसंदेह अल्लाह की सहायता क़रीब[133] है।
یَسۡـَٔلُونَكَ مَاذَا یُنفِقُونَۖ قُلۡ مَاۤ أَنفَقۡتُم مِّنۡ خَیۡرࣲ فَلِلۡوَ ٰلِدَیۡنِ وَٱلۡأَقۡرَبِینَ وَٱلۡیَتَـٰمَىٰ وَٱلۡمَسَـٰكِینِ وَٱبۡنِ ٱلسَّبِیلِۗ وَمَا تَفۡعَلُواْ مِنۡ خَیۡرࣲ فَإِنَّ ٱللَّهَ بِهِۦ عَلِیمࣱ ﴿٢١٥﴾
(ऐ नबी!) वे आपसे पूछते हैं क्या चीज़ ख़र्च करें? (उनसे) कह दीजिए : तुम भलाई में से जो भी खर्च करो, तो वह माता-पिता, अधिक क़रीबी रिश्तेदारों, अनाथों, मिसकीनों (निर्धनों) तथा यात्रियों के लिए है। तथा तुम नेकी में से जो कुछ भी करोगे, तो निःसंदेह अल्लाह उसे भलि-भाँति जानने वाला है।
كُتِبَ عَلَیۡكُمُ ٱلۡقِتَالُ وَهُوَ كُرۡهࣱ لَّكُمۡۖ وَعَسَىٰۤ أَن تَكۡرَهُواْ شَیۡـࣰٔا وَهُوَ خَیۡرࣱ لَّكُمۡۖ وَعَسَىٰۤ أَن تُحِبُّواْ شَیۡـࣰٔا وَهُوَ شَرࣱّ لَّكُمۡۚ وَٱللَّهُ یَعۡلَمُ وَأَنتُمۡ لَا تَعۡلَمُونَ ﴿٢١٦﴾
(ऐ ईमान वालो!) तुमपर युद्ध करना अनिवार्य कर दिया गया है, हालाँकि वह तुम्हें बिल्कुल नापसंद है। और हो सकता है कि तुम एक चीज़ को नापसंद करो और वह तुम्हारे लिए बेहतर हो और हो सकता कि तुम एक चीज़ को पसंद करो और वह तुम्हारे लिए बुरी हो। और अल्लाह जानता है और तुम नहीं जानते।[134]
یَسۡـَٔلُونَكَ عَنِ ٱلشَّهۡرِ ٱلۡحَرَامِ قِتَالࣲ فِیهِۖ قُلۡ قِتَالࣱ فِیهِ كَبِیرࣱۚ وَصَدٌّ عَن سَبِیلِ ٱللَّهِ وَكُفۡرُۢ بِهِۦ وَٱلۡمَسۡجِدِ ٱلۡحَرَامِ وَإِخۡرَاجُ أَهۡلِهِۦ مِنۡهُ أَكۡبَرُ عِندَ ٱللَّهِۚ وَٱلۡفِتۡنَةُ أَكۡبَرُ مِنَ ٱلۡقَتۡلِۗ وَلَا یَزَالُونَ یُقَـٰتِلُونَكُمۡ حَتَّىٰ یَرُدُّوكُمۡ عَن دِینِكُمۡ إِنِ ٱسۡتَطَـٰعُواْۚ وَمَن یَرۡتَدِدۡ مِنكُمۡ عَن دِینِهِۦ فَیَمُتۡ وَهُوَ كَافِرࣱ فَأُوْلَـٰۤىِٕكَ حَبِطَتۡ أَعۡمَـٰلُهُمۡ فِی ٱلدُّنۡیَا وَٱلۡـَٔاخِرَةِۖ وَأُوْلَـٰۤىِٕكَ أَصۡحَـٰبُ ٱلنَّارِۖ هُمۡ فِیهَا خَـٰلِدُونَ ﴿٢١٧﴾
(ऐ नबी!) वे[135] आपसे सम्मानित मास में युद्ध करने के बारे में पूछते हैं। आप उनसे कह दें कि उसमें युद्ध करना बहुत गंभीर (पाप) है, परंतु अल्लाह के मार्ग से रोकना और उसका इनकार करना और मस्जिदे-ह़राम से रोकना और उसके वासियों को उससे निकालना, अल्लाह के निकट उससे भी बड़ा (पाप) है, तथा फ़ितना (शिर्क), हत्या से अधिक बड़ा है। और वे तुमसे हमेशा युद्ध करते रहेंगे, यहाँ तक कि तुम्हें तुम्हारे धर्म से फेर दें, यदि कर सकें, और तुममें से जो व्यक्ति अपने धर्म (इस्लाम) से फिर जाए, फिर इस हाल में मरे कि वह काफ़िर हो, तो ये ऐसे लोग हैं जिनके कार्य दुनिया तथा आख़िरत में बर्बाद हो गए तथा यही लोग आग वाले हैं, वे उसमें हमेशा रहने वाले हैं।
إِنَّ ٱلَّذِینَ ءَامَنُواْ وَٱلَّذِینَ هَاجَرُواْ وَجَـٰهَدُواْ فِی سَبِیلِ ٱللَّهِ أُوْلَـٰۤىِٕكَ یَرۡجُونَ رَحۡمَتَ ٱللَّهِۚ وَٱللَّهُ غَفُورࣱ رَّحِیمࣱ ﴿٢١٨﴾
निःसंदेह जो लोग ईमान लाए और जिन्होंने हिजरत[136] की तथा अल्लाह की राह में जिहाद किया, वही अल्लाह की दया की आशा रखते हैं तथा अल्लाह अत्यंत क्षमाशील, असीम दयालु है।
۞ یَسۡـَٔلُونَكَ عَنِ ٱلۡخَمۡرِ وَٱلۡمَیۡسِرِۖ قُلۡ فِیهِمَاۤ إِثۡمࣱ كَبِیرࣱ وَمَنَـٰفِعُ لِلنَّاسِ وَإِثۡمُهُمَاۤ أَكۡبَرُ مِن نَّفۡعِهِمَاۗ وَیَسۡـَٔلُونَكَ مَاذَا یُنفِقُونَۖ قُلِ ٱلۡعَفۡوَۗ كَذَ ٰلِكَ یُبَیِّنُ ٱللَّهُ لَكُمُ ٱلۡـَٔایَـٰتِ لَعَلَّكُمۡ تَتَفَكَّرُونَ ﴿٢١٩﴾
(ऐ नबी!) वे आपसे शराब और जुए के बारे में पूछते हैं। आप बता दें कि इन दोनों में बड़ा पाप है तथा लोगों के लिए कुछ लाभ हैं, और इन दोनों का पाप इनके लाभ से बड़ा[137] है। तथा वे आपसे पूछते हैं कि क्या चीज़ ख़र्च करें। (उनसे) कह दीजिए जो आवश्यकता से अधिक हो। इसी प्रकार अल्लाह तुम्हारे लिए आयतों को स्पष्ट करता है, ताकि तुम सोच-विचार करो।
فِی ٱلدُّنۡیَا وَٱلۡـَٔاخِرَةِۗ وَیَسۡـَٔلُونَكَ عَنِ ٱلۡیَتَـٰمَىٰۖ قُلۡ إِصۡلَاحࣱ لَّهُمۡ خَیۡرࣱۖ وَإِن تُخَالِطُوهُمۡ فَإِخۡوَ ٰنُكُمۡۚ وَٱللَّهُ یَعۡلَمُ ٱلۡمُفۡسِدَ مِنَ ٱلۡمُصۡلِحِۚ وَلَوۡ شَاۤءَ ٱللَّهُ لَأَعۡنَتَكُمۡۚ إِنَّ ٱللَّهَ عَزِیزٌ حَكِیمࣱ ﴿٢٢٠﴾
दुनिया और आख़िरत के बारे में। और वे आपसे अनाथों के विषय में पूछते हैं। (उनसे) कह दीजिए उनके लिए सुधार करते रहना बेहतर है। यदि तुम उन्हें अपने साथ मिलाकर रखो, तो वे तुम्हारे भाई हैं और अल्लाह बिगाड़ने वाले को सुधारने वाले से जानता है। और यदि अल्लाह चाहता, तो तुम्हें अवश्य कष्ट[138] में डाल देता। निःसंदेह अल्लाह सब पर प्रभुत्वशाली, पूर्ण हिकमत वाला है।
وَلَا تَنكِحُواْ ٱلۡمُشۡرِكَـٰتِ حَتَّىٰ یُؤۡمِنَّۚ وَلَأَمَةࣱ مُّؤۡمِنَةٌ خَیۡرࣱ مِّن مُّشۡرِكَةࣲ وَلَوۡ أَعۡجَبَتۡكُمۡۗ وَلَا تُنكِحُواْ ٱلۡمُشۡرِكِینَ حَتَّىٰ یُؤۡمِنُواْۚ وَلَعَبۡدࣱ مُّؤۡمِنٌ خَیۡرࣱ مِّن مُّشۡرِكࣲ وَلَوۡ أَعۡجَبَكُمۡۗ أُوْلَـٰۤىِٕكَ یَدۡعُونَ إِلَى ٱلنَّارِۖ وَٱللَّهُ یَدۡعُوۤاْ إِلَى ٱلۡجَنَّةِ وَٱلۡمَغۡفِرَةِ بِإِذۡنِهِۦۖ وَیُبَیِّنُ ءَایَـٰتِهِۦ لِلنَّاسِ لَعَلَّهُمۡ یَتَذَكَّرُونَ ﴿٢٢١﴾
तथा मुश्रिक[139] स्त्रियों से विवाह न करो, यहाँ तक कि वे ईमान ले आएँ और निश्चय एक ईमान वाली दासी किसी भी मुश्रिक स्त्री से उत्तम है, यद्यपि वह तुम्हें अच्छी लगे। और अपनी स्त्रियों का निकाह़ मुश्रिकों से न करो, यहाँ तक कि वे ईमान ले आएँ और निश्चय एक ईमान वाला दास किसी भी मुश्रिक (पुरुष) से उत्तम है, यद्यपि वह तुम्हें अच्छा लगे। ये लोग आग की ओर बुलाते हैं तथा अल्लाह अपनी आज्ञा से जन्नत और क्षमा की ओर बुलाता है और लोगों के लिए अपनी आयतें खोलकर बयान करता है, ताकि वे शिक्षा ग्रहण करें।
وَیَسۡـَٔلُونَكَ عَنِ ٱلۡمَحِیضِۖ قُلۡ هُوَ أَذࣰى فَٱعۡتَزِلُواْ ٱلنِّسَاۤءَ فِی ٱلۡمَحِیضِ وَلَا تَقۡرَبُوهُنَّ حَتَّىٰ یَطۡهُرۡنَۖ فَإِذَا تَطَهَّرۡنَ فَأۡتُوهُنَّ مِنۡ حَیۡثُ أَمَرَكُمُ ٱللَّهُۚ إِنَّ ٱللَّهَ یُحِبُّ ٱلتَّوَّ ٰبِینَ وَیُحِبُّ ٱلۡمُتَطَهِّرِینَ ﴿٢٢٢﴾
तथा वे आपसे मासिक धर्म के विषय में पूछते हैं। आप कह दें : वह एक तरह की गंदगी है। अतः मासिक धर्म की स्थिति में औरतों से अलग रहो और उनके पास न जाओ, यहाँ तक कि वे पाक हो जाएँ। फिर जब वे (स्नान करके) पाक-साफ़ हो जाएँ, तो उनके पास आओ, जहाँ से अल्लाह ने तुम्हें अनुमति दी है। निःसंदेह अल्लाह उनसे प्रेम करता है जो बहुत तौबा करने वाले हैं और उनसे प्रेम करता है जो बहुत पाक रहने वाले हैं।
نِسَاۤؤُكُمۡ حَرۡثࣱ لَّكُمۡ فَأۡتُواْ حَرۡثَكُمۡ أَنَّىٰ شِئۡتُمۡۖ وَقَدِّمُواْ لِأَنفُسِكُمۡۚ وَٱتَّقُواْ ٱللَّهَ وَٱعۡلَمُوۤاْ أَنَّكُم مُّلَـٰقُوهُۗ وَبَشِّرِ ٱلۡمُؤۡمِنِینَ ﴿٢٢٣﴾
तुम्हारी पत्नियाँ तुम्हारे लिए खेती[140] हैं। सो अपनी खेती में जिस तरह चाहो आओ और अपने लिए (अच्छे कार्य) आगे भेजो। तथा अल्लाह से डरो और जान लो कि निश्चय तुम उससे मिलने वाले हो और ईमान वालों को शुभ सूचना सुना दो।
وَلَا تَجۡعَلُواْ ٱللَّهَ عُرۡضَةࣰ لِّأَیۡمَـٰنِكُمۡ أَن تَبَرُّواْ وَتَتَّقُواْ وَتُصۡلِحُواْ بَیۡنَ ٱلنَّاسِۚ وَٱللَّهُ سَمِیعٌ عَلِیمࣱ ﴿٢٢٤﴾
तथा अल्लाह की क़सम को भलाई करने, परहेज़गारी की राह पर चलने और लोगों के बीच मेल-मिलाप कराने के विरुद्ध तर्क[141] न बनाओ। और अल्लाह सब कुछ सुनने वाला, सब कुछ जानने वाला है।
لَّا یُؤَاخِذُكُمُ ٱللَّهُ بِٱللَّغۡوِ فِیۤ أَیۡمَـٰنِكُمۡ وَلَـٰكِن یُؤَاخِذُكُم بِمَا كَسَبَتۡ قُلُوبُكُمۡۗ وَٱللَّهُ غَفُورٌ حَلِیمࣱ ﴿٢٢٥﴾
अल्लाह तुम्हें तुम्हारी क़समों में निरर्थक पर नहीं पकड़ता, बल्कि तुम्हें उसपर पकड़ता है, जिसका तुम्हारे दिलों ने इरादा किया है। और अल्लाह बहुत क्षमा करने वाला, अत्यंत सहनशील है।
لِّلَّذِینَ یُؤۡلُونَ مِن نِّسَاۤىِٕهِمۡ تَرَبُّصُ أَرۡبَعَةِ أَشۡهُرࣲۖ فَإِن فَاۤءُو فَإِنَّ ٱللَّهَ غَفُورࣱ رَّحِیمࣱ ﴿٢٢٦﴾
उन लोगों के लिए जो अपनी पत्नियों से (संभोग न करने की) क़सम खा लेते हैं, चार महीने प्रतीक्षा करना है। फिर[142] यदि वे (इस बीच) अपनी क़सम से फिर जाएँ, तो निःसंदेह अल्लाह अति क्षमाशील, अत्यंत दयावान् है।
وَإِنۡ عَزَمُواْ ٱلطَّلَـٰقَ فَإِنَّ ٱللَّهَ سَمِیعٌ عَلِیمࣱ ﴿٢٢٧﴾
और यदि वे तलाक़ का पक्का इरादा कर लें, तो निःसंदेह अल्लाह सब कुछ सुनने वाला, सब कुछ जानने वाला है।
وَٱلۡمُطَلَّقَـٰتُ یَتَرَبَّصۡنَ بِأَنفُسِهِنَّ ثَلَـٰثَةَ قُرُوۤءࣲۚ وَلَا یَحِلُّ لَهُنَّ أَن یَكۡتُمۡنَ مَا خَلَقَ ٱللَّهُ فِیۤ أَرۡحَامِهِنَّ إِن كُنَّ یُؤۡمِنَّ بِٱللَّهِ وَٱلۡیَوۡمِ ٱلۡـَٔاخِرِۚ وَبُعُولَتُهُنَّ أَحَقُّ بِرَدِّهِنَّ فِی ذَ ٰلِكَ إِنۡ أَرَادُوۤاْ إِصۡلَـٰحࣰاۚ وَلَهُنَّ مِثۡلُ ٱلَّذِی عَلَیۡهِنَّ بِٱلۡمَعۡرُوفِۚ وَلِلرِّجَالِ عَلَیۡهِنَّ دَرَجَةࣱۗ وَٱللَّهُ عَزِیزٌ حَكِیمٌ ﴿٢٢٨﴾
तथा जिन स्त्रियों को तलाक़ दे दी गई है, वे तीन बार मासिक धर्म आने तक अपने आपको (विवाह से) प्रतीक्षा में रखें। और उनके लिए ह़लाल (वैध) नहीं कि वह चीज़ छिपाएँ जो अल्लाह ने उनके गर्भाशयों में पैदा[143] की है, यदि वे अल्लाह तथा अंतिम दिन पर ईमान रखती हैं। तथा उनके पति इस अवधि में उन्हें वापस लौटाने के अधिक हक़दार[144] हैं, यदि वे मामला ठीक रखने[145] का इरादा रखते हों। तथा परंपरा के अनुसार उन (स्त्रियों)[146] के लिए उसी तरह अधिकार (हक़) है, जैसे उनके ऊपर (पुरुषों का) अधिकार है। तथा पुरुषों को उन (स्त्रियों) पर एक दर्जा प्राप्त है और अल्लाह सब पर प्रभुत्वशाली, पूर्ण हिकमत वाला है।
ٱلطَّلَـٰقُ مَرَّتَانِۖ فَإِمۡسَاكُۢ بِمَعۡرُوفٍ أَوۡ تَسۡرِیحُۢ بِإِحۡسَـٰنࣲۗ وَلَا یَحِلُّ لَكُمۡ أَن تَأۡخُذُواْ مِمَّاۤ ءَاتَیۡتُمُوهُنَّ شَیۡـًٔا إِلَّاۤ أَن یَخَافَاۤ أَلَّا یُقِیمَا حُدُودَ ٱللَّهِۖ فَإِنۡ خِفۡتُمۡ أَلَّا یُقِیمَا حُدُودَ ٱللَّهِ فَلَا جُنَاحَ عَلَیۡهِمَا فِیمَا ٱفۡتَدَتۡ بِهِۦۗ تِلۡكَ حُدُودُ ٱللَّهِ فَلَا تَعۡتَدُوهَاۚ وَمَن یَتَعَدَّ حُدُودَ ٱللَّهِ فَأُوْلَـٰۤىِٕكَ هُمُ ٱلظَّـٰلِمُونَ ﴿٢٢٩﴾
यह तलाक़ दो बार है। फिर या तो अच्छे तरीक़े से रख लेना है, या नेकी के साथ छोड़ देना है। और तुम्हारे लिए ह़लाल (वैध) नहीं कि उसमें से जो तुमने उन्हें दिया है, कुछ भी लो, सिवाय इसके कि उन दोनों को इस बात का डर हो कि वे अल्लाह की सीमाओं को क़ायम न रख सकेंगे। फिर यदि तुम्हें भय[147] हो कि वे दोनों (पति-पत्नी) अल्लाह की सीमाओं को क़ायम न रख सकेंगे, तो उन दोनों पर उसमें कोई दोष (पाप) नहीं जो पत्नी अपनी जान छुड़ाने[148] के बदले में दे दे। ये अल्लाह की सीमाएँ हैं, अतः इनसे आगे मत बढ़ो और जो अल्लाह की सीमाओं से आगे बढ़ेगा, तो यही लोग अत्याचारी हैं।
فَإِن طَلَّقَهَا فَلَا تَحِلُّ لَهُۥ مِنۢ بَعۡدُ حَتَّىٰ تَنكِحَ زَوۡجًا غَیۡرَهُۥۗ فَإِن طَلَّقَهَا فَلَا جُنَاحَ عَلَیۡهِمَاۤ أَن یَتَرَاجَعَاۤ إِن ظَنَّاۤ أَن یُقِیمَا حُدُودَ ٱللَّهِۗ وَتِلۡكَ حُدُودُ ٱللَّهِ یُبَیِّنُهَا لِقَوۡمࣲ یَعۡلَمُونَ ﴿٢٣٠﴾
फिर यदि वह उसे (तीसरी) तलाक़ दे दे, तो उसके बाद वह उसके लिए ह़लाल (वैध) नहीं होगी, यहाँ तक कि उसके अलावा किसी अन्य पति से विवाह करे। फिर यदि वह उसे तलाक़ दे दे, तो (पहले) दोनों पर कोई पाप नहीं कि दोनों आपस में रुजू' (दोबारा मिलाप) कर लें, यदि वे दोनों समझें कि अल्लाह की सीमाओं को क़ायम रखेंगे।[149] और ये अल्लाह की सीमाएँ हैं, वह उन्हें उन लोगों के लिए खोलकर बयान करता है, जो ज्ञान रखते हैं।
وَإِذَا طَلَّقۡتُمُ ٱلنِّسَاۤءَ فَبَلَغۡنَ أَجَلَهُنَّ فَأَمۡسِكُوهُنَّ بِمَعۡرُوفٍ أَوۡ سَرِّحُوهُنَّ بِمَعۡرُوفࣲۚ وَلَا تُمۡسِكُوهُنَّ ضِرَارࣰا لِّتَعۡتَدُواْۚ وَمَن یَفۡعَلۡ ذَ ٰلِكَ فَقَدۡ ظَلَمَ نَفۡسَهُۥۚ وَلَا تَتَّخِذُوۤاْ ءَایَـٰتِ ٱللَّهِ هُزُوࣰاۚ وَٱذۡكُرُواْ نِعۡمَتَ ٱللَّهِ عَلَیۡكُمۡ وَمَاۤ أَنزَلَ عَلَیۡكُم مِّنَ ٱلۡكِتَـٰبِ وَٱلۡحِكۡمَةِ یَعِظُكُم بِهِۦۚ وَٱتَّقُواْ ٱللَّهَ وَٱعۡلَمُوۤاْ أَنَّ ٱللَّهَ بِكُلِّ شَیۡءٍ عَلِیمࣱ ﴿٢٣١﴾
और जब तुम स्त्रियों को तलाक़ दे दो, फिर वे अपनी इद्दत (निश्चित अवधि) को पहुँच जाएँ, तो उन्हें भले तरीक़े से रख लो अथवा उन्हें भले तरीक़े से छोड़ दो। तथा उन्हें हानि पहुँचाने के लिए न रोके रखो, ताकि उनपर अत्याचार करो। और जो कोई ऐसा करे, तो निःसंदेह उसने स्वयं अपने आपपर अत्याचार किया। तथा अल्लाह की आयतों को मज़ाक़ न बनाओ। और अपने ऊपर अल्लाह की नेमत को याद करो तथा उसको भी (याद करो) जो उसने पुस्तक (क़ुरआन) एवं ह़िकमत (सुन्नत) में से तुमपर उतारा है, वह तुम्हें उसके साथ उपदेश देता है। तथा अल्लाह से डरो और जान लो कि अल्लाह हर चीज़ को ख़ूब जानने वाला है।[149]
وَإِذَا طَلَّقۡتُمُ ٱلنِّسَاۤءَ فَبَلَغۡنَ أَجَلَهُنَّ فَلَا تَعۡضُلُوهُنَّ أَن یَنكِحۡنَ أَزۡوَ ٰجَهُنَّ إِذَا تَرَ ٰضَوۡاْ بَیۡنَهُم بِٱلۡمَعۡرُوفِۗ ذَ ٰلِكَ یُوعَظُ بِهِۦ مَن كَانَ مِنكُمۡ یُؤۡمِنُ بِٱللَّهِ وَٱلۡیَوۡمِ ٱلۡـَٔاخِرِۗ ذَ ٰلِكُمۡ أَزۡكَىٰ لَكُمۡ وَأَطۡهَرُۚ وَٱللَّهُ یَعۡلَمُ وَأَنتُمۡ لَا تَعۡلَمُونَ ﴿٢٣٢﴾
और जब तुम स्त्रियों को तलाक़ दो, फिर वे अपनी निश्चित अवधि (इद्दत) को पहुँच जाएँ, तो उन्हें अपने पतियों से विवाह करने से न रोको, जबकि वे भले तरीक़े से आपस में विवाह करने पर सहमत हो जाएँ। यह बात है जिसका उपदेश तुममें से उसे दिया जा रहा है, जो अल्लाह तथा अंतिम दिन (प्रलय) पर ईमान रखता है। यह तुम्हारे लिए अधिक स्वच्छ तथा अधिक पवित्र है और अल्लाह जानता है और तुम नहीं जानते।
۞ وَٱلۡوَ ٰلِدَ ٰتُ یُرۡضِعۡنَ أَوۡلَـٰدَهُنَّ حَوۡلَیۡنِ كَامِلَیۡنِۖ لِمَنۡ أَرَادَ أَن یُتِمَّ ٱلرَّضَاعَةَۚ وَعَلَى ٱلۡمَوۡلُودِ لَهُۥ رِزۡقُهُنَّ وَكِسۡوَتُهُنَّ بِٱلۡمَعۡرُوفِۚ لَا تُكَلَّفُ نَفۡسٌ إِلَّا وُسۡعَهَاۚ لَا تُضَاۤرَّ وَ ٰلِدَةُۢ بِوَلَدِهَا وَلَا مَوۡلُودࣱ لَّهُۥ بِوَلَدِهِۦۚ وَعَلَى ٱلۡوَارِثِ مِثۡلُ ذَ ٰلِكَۗ فَإِنۡ أَرَادَا فِصَالًا عَن تَرَاضࣲ مِّنۡهُمَا وَتَشَاوُرࣲ فَلَا جُنَاحَ عَلَیۡهِمَاۗ وَإِنۡ أَرَدتُّمۡ أَن تَسۡتَرۡضِعُوۤاْ أَوۡلَـٰدَكُمۡ فَلَا جُنَاحَ عَلَیۡكُمۡ إِذَا سَلَّمۡتُم مَّاۤ ءَاتَیۡتُم بِٱلۡمَعۡرُوفِۗ وَٱتَّقُواْ ٱللَّهَ وَٱعۡلَمُوۤاْ أَنَّ ٱللَّهَ بِمَا تَعۡمَلُونَ بَصِیرࣱ ﴿٢٣٣﴾
और माताएँ अपने बच्चों को पूरे दो वर्ष दूध पिलाएँ, उसके लिए जो चाहे कि दूध पीने की अवधि पूरी करे। और बच्चे के पिता के ज़िम्मे परंपरा के अनुसार उन (औरतों) का खाना और उनका कपड़ा है। किसी पर उसकी शक्ति से अधिक बोझ नहीं डाला जाएगा; न माँ को उसके बच्चे के कारण हानि पहुँचाई जाए और न पिता को उसके बच्चे की वजह से। और इसी प्रकार की ज़िम्मेदारी (उसके) वारिस पर भी है। फिर यदि दोनों आपस की सहमति तथा परस्पर परामर्श से (दो वर्ष से पहले) दूध छुड़ाना चाहें, तो दोनों पर कोई पाप नहीं। और यदि तुम्हारा इरादा (किसी अन्य स्त्री से) दूध पिलवाने का हो, तो तुमपर कोई पाप नहीं, जब रीति के अनुसार वह भुगतान कर दो, जो तुमने देना तय किया था। तथा अल्लाह से डरो और जान लो कि तुम जो कुछ करते हो, निःसंदेह अल्लाह उसे देख रहा है।[150]
وَٱلَّذِینَ یُتَوَفَّوۡنَ مِنكُمۡ وَیَذَرُونَ أَزۡوَ ٰجࣰا یَتَرَبَّصۡنَ بِأَنفُسِهِنَّ أَرۡبَعَةَ أَشۡهُرࣲ وَعَشۡرࣰاۖ فَإِذَا بَلَغۡنَ أَجَلَهُنَّ فَلَا جُنَاحَ عَلَیۡكُمۡ فِیمَا فَعَلۡنَ فِیۤ أَنفُسِهِنَّ بِٱلۡمَعۡرُوفِۗ وَٱللَّهُ بِمَا تَعۡمَلُونَ خَبِیرࣱ ﴿٢٣٤﴾
और जो लोग तुममें से मर जाएँ और पत्नियाँ छोड़ जाएँ, वे (पत्नियाँ) अपने आपको चार महीने और दस दिन प्रतीक्षा में रखें।[151] फिर जब वे अपनी इद्दत (निर्धारित अवधि) को पहुँच जाएँ, तो तुमपर उसमें कोई पाप[152] नहीं जो वे नियमानुसार अपने बारे में करें, तथा अल्लाह उससे जो कुछ तुम करते हो पूरी तरह अवगत है।
وَلَا جُنَاحَ عَلَیۡكُمۡ فِیمَا عَرَّضۡتُم بِهِۦ مِنۡ خِطۡبَةِ ٱلنِّسَاۤءِ أَوۡ أَكۡنَنتُمۡ فِیۤ أَنفُسِكُمۡۚ عَلِمَ ٱللَّهُ أَنَّكُمۡ سَتَذۡكُرُونَهُنَّ وَلَـٰكِن لَّا تُوَاعِدُوهُنَّ سِرًّا إِلَّاۤ أَن تَقُولُواْ قَوۡلࣰا مَّعۡرُوفࣰاۚ وَلَا تَعۡزِمُواْ عُقۡدَةَ ٱلنِّكَاحِ حَتَّىٰ یَبۡلُغَ ٱلۡكِتَـٰبُ أَجَلَهُۥۚ وَٱعۡلَمُوۤاْ أَنَّ ٱللَّهَ یَعۡلَمُ مَا فِیۤ أَنفُسِكُمۡ فَٱحۡذَرُوهُۚ وَٱعۡلَمُوۤاْ أَنَّ ٱللَّهَ غَفُورٌ حَلِیمࣱ ﴿٢٣٥﴾
और तुमपर इस बात में कोई गुनाह नहीं कि उन (इद्दत गुज़ारने वाली) स्त्रियों को विवाह के संदेश का संकेत दो, या (उसे) अपने मन में छिपाए रखो। अल्लाह जानता है कि तुम उन्हें अवश्य याद करोगे, परंतु उनसे गुप्त रूप से विवाह का वादा न करो, सिवाय इसके कि रीति के अनुसार[153] कोई बात कहो। तथा विवाह का अनुबंध पक्का न करो, यहाँ तक कि लिखा हुआ हुक्म अपनी अवधि को पहुँच जाए।[154] तथा जान लो कि निःसंदेह अल्लाह तुम्हारे मन की बातों को जानता है। अतः उससे डरो और जान लो कि अल्लाह बहुत क्षमा करने वाला, अत्यंत सहनशील है।
لَّا جُنَاحَ عَلَیۡكُمۡ إِن طَلَّقۡتُمُ ٱلنِّسَاۤءَ مَا لَمۡ تَمَسُّوهُنَّ أَوۡ تَفۡرِضُواْ لَهُنَّ فَرِیضَةࣰۚ وَمَتِّعُوهُنَّ عَلَى ٱلۡمُوسِعِ قَدَرُهُۥ وَعَلَى ٱلۡمُقۡتِرِ قَدَرُهُۥ مَتَـٰعَۢا بِٱلۡمَعۡرُوفِۖ حَقًّا عَلَى ٱلۡمُحۡسِنِینَ ﴿٢٣٦﴾
तुमपर कोई पाप नहीं, यदि तुम स्त्रियों को तलाक़ दे दो जबकि तुमने (अभी) उन्हें न हाथ लगाया हो और न उनके लिए कुछ महर निर्धारित किया हो। (लेकिन) उन्हें रीति के अनुसार कुछ सामान दे दो; विस्तार वाले पर अपनी क्षमता के अनुसार तथा तंगदस्त पर अपनी क्षमता के अनुसार देय है। सत्कर्म करने वालों पर यह हक़ है।
وَإِن طَلَّقۡتُمُوهُنَّ مِن قَبۡلِ أَن تَمَسُّوهُنَّ وَقَدۡ فَرَضۡتُمۡ لَهُنَّ فَرِیضَةࣰ فَنِصۡفُ مَا فَرَضۡتُمۡ إِلَّاۤ أَن یَعۡفُونَ أَوۡ یَعۡفُوَاْ ٱلَّذِی بِیَدِهِۦ عُقۡدَةُ ٱلنِّكَاحِۚ وَأَن تَعۡفُوۤاْ أَقۡرَبُ لِلتَّقۡوَىٰۚ وَلَا تَنسَوُاْ ٱلۡفَضۡلَ بَیۡنَكُمۡۚ إِنَّ ٱللَّهَ بِمَا تَعۡمَلُونَ بَصِیرٌ ﴿٢٣٧﴾
और यदि तुम उन्हें इससे पहले तलाक़ दे दो कि उन्हें हाथ लगाओ, जबकि तुम उनके लिए कोई महर निर्धारित कर चुके हो, तो तुमने जो महर निर्धारित किया है उसका आधा देना अनिवार्य है, सिवाय इसके कि वे (पत्नियाँ) माफ़ कर दें, अथवा वह पुरुष माफ़ कर दे जिसके हाथ में विवाह का बंधन[155] है। और यह (बात) कि तुम माफ़ कर दो तक़वा (परहेज़गारी) के अधिक क़रीब है। और आपस में उपकार करना न भूलो। निःसंदेह अल्लाह उसे ख़ूब देखने वाला है, जो तुम कर रहे हो।
حَـٰفِظُواْ عَلَى ٱلصَّلَوَ ٰتِ وَٱلصَّلَوٰةِ ٱلۡوُسۡطَىٰ وَقُومُواْ لِلَّهِ قَـٰنِتِینَ ﴿٢٣٨﴾
सब नमाज़ों का और (विशेषकर) बीच की नमाज़ (अस्र) का ध्यान रखो[156] तथा अल्लाह के लिए आज्ञाकारी होकर (विनयपूर्वक) खड़े रहो।
فَإِنۡ خِفۡتُمۡ فَرِجَالًا أَوۡ رُكۡبَانࣰاۖ فَإِذَاۤ أَمِنتُمۡ فَٱذۡكُرُواْ ٱللَّهَ كَمَا عَلَّمَكُم مَّا لَمۡ تَكُونُواْ تَعۡلَمُونَ ﴿٢٣٩﴾
फिर यदि तुम्हें भय[157] हो, तो पैदल (नमाज़) पढ़ लो या सवार। फिर जब भय दूर हो जाए, तो अल्लाह को याद करो जैसे उसने तुम्हें सिखाया है, जो तुम नहीं जानते थे।
وَٱلَّذِینَ یُتَوَفَّوۡنَ مِنكُمۡ وَیَذَرُونَ أَزۡوَ ٰجࣰا وَصِیَّةࣰ لِّأَزۡوَ ٰجِهِم مَّتَـٰعًا إِلَى ٱلۡحَوۡلِ غَیۡرَ إِخۡرَاجࣲۚ فَإِنۡ خَرَجۡنَ فَلَا جُنَاحَ عَلَیۡكُمۡ فِی مَا فَعَلۡنَ فِیۤ أَنفُسِهِنَّ مِن مَّعۡرُوفࣲۗ وَٱللَّهُ عَزِیزٌ حَكِیمࣱ ﴿٢٤٠﴾
और जो लोग तुममें से मृत्यु पा जाते हैं तथा पत्नियाँ छोड़ जाते हैं, वे अपनी पत्नियों के लिए एक वर्ष तक घर से निकाले बिना खर्च देने की वसीयत करें। परंतु यदि वे (स्वयं) निकल जाएँ[158], तो तुमपर उसमें कोई पाप नहीं जो वे रीति के अनुसार अपने बारे में करें, और अल्लाह सब पर प्रभुत्वशाली, पूर्ण हिकमत वाला है।
وَلِلۡمُطَلَّقَـٰتِ مَتَـٰعُۢ بِٱلۡمَعۡرُوفِۖ حَقًّا عَلَى ٱلۡمُتَّقِینَ ﴿٢٤١﴾
तथा जिन स्त्रियों को तलाक़ दी गई है, उन्हें रीति के अनुसार कुछ न कुछ सामग्री देना आवश्यक है, डर रखने वालों पर यह हक़ (अनिवार्य) है।
كَذَ ٰلِكَ یُبَیِّنُ ٱللَّهُ لَكُمۡ ءَایَـٰتِهِۦ لَعَلَّكُمۡ تَعۡقِلُونَ ﴿٢٤٢﴾
इसी तरह अल्लाह तुम्हारे लिए अपनी आयतें खोलकर बयान करता है, ताकि तुम समझो।
۞ أَلَمۡ تَرَ إِلَى ٱلَّذِینَ خَرَجُواْ مِن دِیَـٰرِهِمۡ وَهُمۡ أُلُوفٌ حَذَرَ ٱلۡمَوۡتِ فَقَالَ لَهُمُ ٱللَّهُ مُوتُواْ ثُمَّ أَحۡیَـٰهُمۡۚ إِنَّ ٱللَّهَ لَذُو فَضۡلٍ عَلَى ٱلنَّاسِ وَلَـٰكِنَّ أَكۡثَرَ ٱلنَّاسِ لَا یَشۡكُرُونَ ﴿٢٤٣﴾
(ऐ नबी!) क्या आपने उन लोगों को नहीं देखा जो मौत के भय से अपने घरों से निकले[159], जबकि वे कई हज़ार थे, तो अल्लाह ने उनसे कहा कि मर जाओ, फिर उन्हें जीवित कर दिया। निःसंदेह अल्लाह लोगों पर बड़े अनुग्रह वाला है, लेकिन अधिकांश लोग शुक्रिया अदा नहीं करते।[160]
وَقَـٰتِلُواْ فِی سَبِیلِ ٱللَّهِ وَٱعۡلَمُوۤاْ أَنَّ ٱللَّهَ سَمِیعٌ عَلِیمࣱ ﴿٢٤٤﴾
और तुम अल्लाह के मार्ग में युद्ध करो और जान लो कि अल्लाह सब कुछ सुनने वाला, सब कुछ जानने वाला है।
مَّن ذَا ٱلَّذِی یُقۡرِضُ ٱللَّهَ قَرۡضًا حَسَنࣰا فَیُضَـٰعِفَهُۥ لَهُۥۤ أَضۡعَافࣰا كَثِیرَةࣰۚ وَٱللَّهُ یَقۡبِضُ وَیَبۡصُۜطُ وَإِلَیۡهِ تُرۡجَعُونَ ﴿٢٤٥﴾
कौन है वह जो अल्लाह को अच्छा क़र्ज़[161] दे, तो वह उसे उसके लिए बहुत अधिक गुना बढ़ा दे, तथा अल्लाह ही तंगी करता और विस्तार करता है और तुम उसी की ओर लौटाए जाओगे।
أَلَمۡ تَرَ إِلَى ٱلۡمَلَإِ مِنۢ بَنِیۤ إِسۡرَ ٰۤءِیلَ مِنۢ بَعۡدِ مُوسَىٰۤ إِذۡ قَالُواْ لِنَبِیࣲّ لَّهُمُ ٱبۡعَثۡ لَنَا مَلِكࣰا نُّقَـٰتِلۡ فِی سَبِیلِ ٱللَّهِۖ قَالَ هَلۡ عَسَیۡتُمۡ إِن كُتِبَ عَلَیۡكُمُ ٱلۡقِتَالُ أَلَّا تُقَـٰتِلُواْۖ قَالُواْ وَمَا لَنَاۤ أَلَّا نُقَـٰتِلَ فِی سَبِیلِ ٱللَّهِ وَقَدۡ أُخۡرِجۡنَا مِن دِیَـٰرِنَا وَأَبۡنَاۤىِٕنَاۖ فَلَمَّا كُتِبَ عَلَیۡهِمُ ٱلۡقِتَالُ تَوَلَّوۡاْ إِلَّا قَلِیلࣰا مِّنۡهُمۡۚ وَٱللَّهُ عَلِیمُۢ بِٱلظَّـٰلِمِینَ ﴿٢٤٦﴾
(ऐ नबी!) क्या आपने मूसा के बाद बनी इसराईल के प्रमुखों को नहीं देखा, जब उन्होंने अपने एक नबी से कहा : हमारे लिए एक बादशाह निर्धारित कर दो कि हम अल्लाह के मार्ग में युद्ध करें। उस (नबी) ने कहा : ऐसा न हो कि यदि तुमपर युद्ध करना अनिवार्य कर दिया जाए, तो तुम युद्ध न करो? उन्होंने कहा : और हमें क्या है कि हम अल्लाह के मार्ग में युद्ध न करें, हालाँकि हमें हमारे घरों और हमारे बेटों से निकाल दिया गया है? फिर जब उनपर युद्ध करना अनिवार्य कर दिया गया, तो उनमें से बहुत थोड़े लोगों के सिवा सब फिर गए। और अल्लाह उन अत्याचारियों को भली-भाँति जानने वाला है।
وَقَالَ لَهُمۡ نَبِیُّهُمۡ إِنَّ ٱللَّهَ قَدۡ بَعَثَ لَكُمۡ طَالُوتَ مَلِكࣰاۚ قَالُوۤاْ أَنَّىٰ یَكُونُ لَهُ ٱلۡمُلۡكُ عَلَیۡنَا وَنَحۡنُ أَحَقُّ بِٱلۡمُلۡكِ مِنۡهُ وَلَمۡ یُؤۡتَ سَعَةࣰ مِّنَ ٱلۡمَالِۚ قَالَ إِنَّ ٱللَّهَ ٱصۡطَفَىٰهُ عَلَیۡكُمۡ وَزَادَهُۥ بَسۡطَةࣰ فِی ٱلۡعِلۡمِ وَٱلۡجِسۡمِۖ وَٱللَّهُ یُؤۡتِی مُلۡكَهُۥ مَن یَشَاۤءُۚ وَٱللَّهُ وَ ٰسِعٌ عَلِیمࣱ ﴿٢٤٧﴾
तथा उनके नबी ने उनसे कहा : निःसंदेह अल्लाह ने तुम्हारे लिए 'तालूत' को बादशाह निर्धारित किया है। उन्होंने कहा : उसका राज्य हमपर कैसे हो सकता है, जबकि हम राज्य के उससे अधिक हक़दार हैं और उसे धन का विस्तार भी प्राप्त नहीं? उस (नबी) ने कहा : निःसंदेह अल्लाह ने उसे तुमपर चुन लिया है और उसे अधिक ज्ञान तथा शारीरिक बल प्रदान किया है। और अल्लाह अपना राज्य जिसे चाहता है, प्रदान करता है तथा अल्लाह बहुत विस्तार वाला, सब कुछ जानने वाला है।[162]
وَقَالَ لَهُمۡ نَبِیُّهُمۡ إِنَّ ءَایَةَ مُلۡكِهِۦۤ أَن یَأۡتِیَكُمُ ٱلتَّابُوتُ فِیهِ سَكِینَةࣱ مِّن رَّبِّكُمۡ وَبَقِیَّةࣱ مِّمَّا تَرَكَ ءَالُ مُوسَىٰ وَءَالُ هَـٰرُونَ تَحۡمِلُهُ ٱلۡمَلَـٰۤىِٕكَةُۚ إِنَّ فِی ذَ ٰلِكَ لَـَٔایَةࣰ لَّكُمۡ إِن كُنتُم مُّؤۡمِنِینَ ﴿٢٤٨﴾
तथा उनके नबी ने उनसे कहा : निःसंदेह उसके राजा होने की निशानी यह है कि तुम्हारे पास वह ताबूत (संदूक़) आ जाएगा, जिसमें तुम्हारे पालनहार की ओर से एक संतोष (सांत्वना) है तथा मूसा और हारून के घराने के छोड़े हुए अवशेष हैं, उसे फ़रिश्ते उठाए हुए होंगे। निःसंदेह इसमें तुम्हारे लिए निश्चय एक निशानी[163] है, यदि तुम ईमान वाले हो।
فَلَمَّا فَصَلَ طَالُوتُ بِٱلۡجُنُودِ قَالَ إِنَّ ٱللَّهَ مُبۡتَلِیكُم بِنَهَرࣲ فَمَن شَرِبَ مِنۡهُ فَلَیۡسَ مِنِّی وَمَن لَّمۡ یَطۡعَمۡهُ فَإِنَّهُۥ مِنِّیۤ إِلَّا مَنِ ٱغۡتَرَفَ غُرۡفَةَۢ بِیَدِهِۦۚ فَشَرِبُواْ مِنۡهُ إِلَّا قَلِیلࣰا مِّنۡهُمۡۚ فَلَمَّا جَاوَزَهُۥ هُوَ وَٱلَّذِینَ ءَامَنُواْ مَعَهُۥ قَالُواْ لَا طَاقَةَ لَنَا ٱلۡیَوۡمَ بِجَالُوتَ وَجُنُودِهِۦۚ قَالَ ٱلَّذِینَ یَظُنُّونَ أَنَّهُم مُّلَـٰقُواْ ٱللَّهِ كَم مِّن فِئَةࣲ قَلِیلَةٍ غَلَبَتۡ فِئَةࣰ كَثِیرَةَۢ بِإِذۡنِ ٱللَّهِۗ وَٱللَّهُ مَعَ ٱلصَّـٰبِرِینَ ﴿٢٤٩﴾
फिर जब तालूत सेनाएँ लेकर चला, तो उसने कहा : निःसंदेह अल्लाह एक नहर द्वारा तुम्हारी परीक्षा लेने वाला है। अतः जिसने उसमें से पिया, तो वह मुझमें से नहीं है और जिसने उसे नहीं चखा, तो निःसंदेह वह मुझमें से है। परंतु जो अपने हाथ से एक चुल्लू भर पानी ले ले (तो कोई बात नहीं)। तो उनमें से थोड़े लोगों के सिवा सबने उसमें से पी लिया। फिर जब वह (तालूत) और उसके साथ ईमान वाले नहर पार कर गए, तो उन्होंने कहा : आज हमारे पास जालूत और उसकी सेनाओं से लड़ने की कोई शक्ति नहीं है। (परंतु) जो लोग समझते थे कि निश्चय वे अल्लाह से मिलने वाले हैं, उन्होंने कहा : कितने ही थोड़े समूह, अल्लाह की अनुमति से, बड़े समूहों पर विजय प्राप्त कर चुके हैं और अल्लाह सब्र करने वालों के साथ है।
وَلَمَّا بَرَزُواْ لِجَالُوتَ وَجُنُودِهِۦ قَالُواْ رَبَّنَاۤ أَفۡرِغۡ عَلَیۡنَا صَبۡرࣰا وَثَبِّتۡ أَقۡدَامَنَا وَٱنصُرۡنَا عَلَى ٱلۡقَوۡمِ ٱلۡكَـٰفِرِینَ ﴿٢٥٠﴾
और जब वे जालूत और उसकी सेनाओं के सामने हुए, तो दुआ की : ऐ हमारे पालनहार! हमपर धैर्य उँडेल दे तथा हमारे पैरों को जमा दे और इन काफ़िरों के विरुद्ध हमारी सहायता कर।
فَهَزَمُوهُم بِإِذۡنِ ٱللَّهِ وَقَتَلَ دَاوُۥدُ جَالُوتَ وَءَاتَىٰهُ ٱللَّهُ ٱلۡمُلۡكَ وَٱلۡحِكۡمَةَ وَعَلَّمَهُۥ مِمَّا یَشَاۤءُۗ وَلَوۡلَا دَفۡعُ ٱللَّهِ ٱلنَّاسَ بَعۡضَهُم بِبَعۡضࣲ لَّفَسَدَتِ ٱلۡأَرۡضُ وَلَـٰكِنَّ ٱللَّهَ ذُو فَضۡلٍ عَلَى ٱلۡعَـٰلَمِینَ ﴿٢٥١﴾
तो उन्होंने अल्लाह की अनुज्ञा से उन्हें पराजित कर दिया और दाऊद ने जालूत को क़त्ल कर दिया तथा अल्लाह ने उस (दाऊद)[164] को राज्य और ह़िकमत प्रदान की तथा उसे जो कुछ चाहता था, सिखा दिया। और यदि अल्लाह का कुछ लोगों को कुछ लोगों द्वारा हटाना न होता, तो निश्चय धरती की व्यवस्था बिगड़ जाती। परंतु अल्लाह संसार वालों पर बड़े अनुग्रह वाला है।
تِلۡكَ ءَایَـٰتُ ٱللَّهِ نَتۡلُوهَا عَلَیۡكَ بِٱلۡحَقِّۚ وَإِنَّكَ لَمِنَ ٱلۡمُرۡسَلِینَ ﴿٢٥٢﴾
(ऐ नबी!) ये अल्लाह की आयतें हैं, हम उन्हें सत्य के साथ आपपर पढ़ते हैं, और निःसंदेह आप निश्चय रसूलों में से हैं।
۞ تِلۡكَ ٱلرُّسُلُ فَضَّلۡنَا بَعۡضَهُمۡ عَلَىٰ بَعۡضࣲۘ مِّنۡهُم مَّن كَلَّمَ ٱللَّهُۖ وَرَفَعَ بَعۡضَهُمۡ دَرَجَـٰتࣲۚ وَءَاتَیۡنَا عِیسَى ٱبۡنَ مَرۡیَمَ ٱلۡبَیِّنَـٰتِ وَأَیَّدۡنَـٰهُ بِرُوحِ ٱلۡقُدُسِۗ وَلَوۡ شَاۤءَ ٱللَّهُ مَا ٱقۡتَتَلَ ٱلَّذِینَ مِنۢ بَعۡدِهِم مِّنۢ بَعۡدِ مَا جَاۤءَتۡهُمُ ٱلۡبَیِّنَـٰتُ وَلَـٰكِنِ ٱخۡتَلَفُواْ فَمِنۡهُم مَّنۡ ءَامَنَ وَمِنۡهُم مَّن كَفَرَۚ وَلَوۡ شَاۤءَ ٱللَّهُ مَا ٱقۡتَتَلُواْ وَلَـٰكِنَّ ٱللَّهَ یَفۡعَلُ مَا یُرِیدُ ﴿٢٥٣﴾
ये रसूल हैं, हमने इनमें से कुछ को कुछ पर श्रेष्ठता प्रदान की। इनमें से कुछ वे हैं जिनसे अल्लाह ने बात की, और उनमें से कुछ के उसने दर्जे ऊँचे किए। तथा हमने मरयम के पुत्र ईसा को खुली निशानियाँ दीं और उसे रूह़ुल-क़ुदुस[165] द्वारा शक्ति प्रदान की। और यदि अल्लाह चाहता, तो उनके बाद आने वाले लोग उनके पास खुली निशानियाँ आ जाने के पश्चात आपस में न लड़ते। परंतु उन्होंने मतभेद किया, तो उनमें से कोई तो वह था जो ईमान लाया और उनमें से कोई वह था जिसने कुफ़्र किया। और यदि अल्लाह चाहता, तो वे आपस में न लड़ते, लेकिन अल्लाह जो चाहता है, करता है।
یَـٰۤأَیُّهَا ٱلَّذِینَ ءَامَنُوۤاْ أَنفِقُواْ مِمَّا رَزَقۡنَـٰكُم مِّن قَبۡلِ أَن یَأۡتِیَ یَوۡمࣱ لَّا بَیۡعࣱ فِیهِ وَلَا خُلَّةࣱ وَلَا شَفَـٰعَةࣱۗ وَٱلۡكَـٰفِرُونَ هُمُ ٱلظَّـٰلِمُونَ ﴿٢٥٤﴾
ऐ ईमान वालो! उसमें से ख़र्च करो, जो हमने तुम्हें दिया है, इससे पहले कि वह दिन आ जाए, जिसमें न कोई क्रय-विक्रय होगा और न कोई दोस्ती और न कोई अनुशंसा (सिफ़ारिश)। तथा काफ़िर लोग[166] ही अत्याचारी[167] हैं।
ٱللَّهُ لَاۤ إِلَـٰهَ إِلَّا هُوَ ٱلۡحَیُّ ٱلۡقَیُّومُۚ لَا تَأۡخُذُهُۥ سِنَةࣱ وَلَا نَوۡمࣱۚ لَّهُۥ مَا فِی ٱلسَّمَـٰوَ ٰتِ وَمَا فِی ٱلۡأَرۡضِۗ مَن ذَا ٱلَّذِی یَشۡفَعُ عِندَهُۥۤ إِلَّا بِإِذۡنِهِۦۚ یَعۡلَمُ مَا بَیۡنَ أَیۡدِیهِمۡ وَمَا خَلۡفَهُمۡۖ وَلَا یُحِیطُونَ بِشَیۡءࣲ مِّنۡ عِلۡمِهِۦۤ إِلَّا بِمَا شَاۤءَۚ وَسِعَ كُرۡسِیُّهُ ٱلسَّمَـٰوَ ٰتِ وَٱلۡأَرۡضَۖ وَلَا یَـُٔودُهُۥ حِفۡظُهُمَاۚ وَهُوَ ٱلۡعَلِیُّ ٱلۡعَظِیمُ ﴿٢٥٥﴾
अल्लाह (वह है कि) उसके सिवा कोई पूज्य नहीं। (वह) जीवित है, हर चीज़ को सँभालने (क़ायम रखने)[168] वाला है। न उसे कुछ ऊँघ पकड़ती है और न नींद। उसी का है जो कुछ आकाशों में और जो कुछ धरती में है। कौन है, जो उसके पास उसकी अनुमति के बिना अनुशंसा (सिफ़ारिश) करे? वह जानता है जो कुछ उनके सामने और जो कुछ उनके पीछे है। और वे उसके ज्ञान में से किसी चीज़ को (अपने ज्ञान से) नहीं घेर सकते, परंतु जितना वह चाहे। उसकी कुर्सी आकाशों और धरती को व्याप्त है और उन दोनों की रक्षा उसे नहीं थकाती। और वही सबसे ऊँचा, सबसे महान है।[169]
لَاۤ إِكۡرَاهَ فِی ٱلدِّینِۖ قَد تَّبَیَّنَ ٱلرُّشۡدُ مِنَ ٱلۡغَیِّۚ فَمَن یَكۡفُرۡ بِٱلطَّـٰغُوتِ وَیُؤۡمِنۢ بِٱللَّهِ فَقَدِ ٱسۡتَمۡسَكَ بِٱلۡعُرۡوَةِ ٱلۡوُثۡقَىٰ لَا ٱنفِصَامَ لَهَاۗ وَٱللَّهُ سَمِیعٌ عَلِیمٌ ﴿٢٥٦﴾
धर्म के मामले में कोई ज़ोर-ज़बरदस्ती नहीं। निःसंदेह सन्मार्ग, पथभ्रष्टता से स्पष्ट हो चुका है। अतः जो कोई ताग़ूत (अल्लाह के सिवा अन्य पूज्यों) का इनकार करे और अल्लाह पर ईमान लाए, तो निश्चय उसने मज़बूत कड़े को थाम लिया, जिसे किसी भी तरह टूटना नहीं। तथा अल्लाह सब कुछ सुनने वाला, सब कुछ जानने वाला है।[170]
ٱللَّهُ وَلِیُّ ٱلَّذِینَ ءَامَنُواْ یُخۡرِجُهُم مِّنَ ٱلظُّلُمَـٰتِ إِلَى ٱلنُّورِۖ وَٱلَّذِینَ كَفَرُوۤاْ أَوۡلِیَاۤؤُهُمُ ٱلطَّـٰغُوتُ یُخۡرِجُونَهُم مِّنَ ٱلنُّورِ إِلَى ٱلظُّلُمَـٰتِۗ أُوْلَـٰۤىِٕكَ أَصۡحَـٰبُ ٱلنَّارِۖ هُمۡ فِیهَا خَـٰلِدُونَ ﴿٢٥٧﴾
अल्लाह ईमान वालों का दोस्त (संरक्षक) है, वह उन्हें अँधेरों से निकालकर प्रकाश की ओर लाता है। और काफ़िरों के दोस्त 'ताग़ूत' (असत्य पूज्य) हैं, वे उन्हें प्रकाश से निकालकर अँधेरों की ओर ले जाते हैं। ये लोग आग (जहन्नम) वाले हैं, वे उसमें हमेशा रहने वाले हैं।
أَلَمۡ تَرَ إِلَى ٱلَّذِی حَاۤجَّ إِبۡرَ ٰهِـۧمَ فِی رَبِّهِۦۤ أَنۡ ءَاتَىٰهُ ٱللَّهُ ٱلۡمُلۡكَ إِذۡ قَالَ إِبۡرَ ٰهِـۧمُ رَبِّیَ ٱلَّذِی یُحۡیِۦ وَیُمِیتُ قَالَ أَنَا۠ أُحۡیِۦ وَأُمِیتُۖ قَالَ إِبۡرَ ٰهِـۧمُ فَإِنَّ ٱللَّهَ یَأۡتِی بِٱلشَّمۡسِ مِنَ ٱلۡمَشۡرِقِ فَأۡتِ بِهَا مِنَ ٱلۡمَغۡرِبِ فَبُهِتَ ٱلَّذِی كَفَرَۗ وَٱللَّهُ لَا یَهۡدِی ٱلۡقَوۡمَ ٱلظَّـٰلِمِینَ ﴿٢٥٨﴾
(ऐ नबी!) क्या तुमने उस व्यक्ति को नहीं देखा, जिसने इबराहीम से उसके पालनहार के विषय में झगड़ा किया, इस कारण कि अल्लाह ने उसे राज्य दिया था? जब इबराहीम ने कहा : मेरा पालनहार वह है, जो जीवित करता और मृत्यु देता है। उसने कहा : मैं भी जीवित करता और मृत्यु देता हूँ।[171] इबराहीम ने कहा : निःसंदेह अल्लाह तो सूर्य को पूरब से लाता है, तो तू उसे पश्चिम से ले आ। (यह सुनकर) वह काफ़िर चकित रह गया और अल्लाह अत्याचारियों को मार्गदर्शन नहीं देता।
أَوۡ كَٱلَّذِی مَرَّ عَلَىٰ قَرۡیَةࣲ وَهِیَ خَاوِیَةٌ عَلَىٰ عُرُوشِهَا قَالَ أَنَّىٰ یُحۡیِۦ هَـٰذِهِ ٱللَّهُ بَعۡدَ مَوۡتِهَاۖ فَأَمَاتَهُ ٱللَّهُ مِاْئَةَ عَامࣲ ثُمَّ بَعَثَهُۥۖ قَالَ كَمۡ لَبِثۡتَۖ قَالَ لَبِثۡتُ یَوۡمًا أَوۡ بَعۡضَ یَوۡمࣲۖ قَالَ بَل لَّبِثۡتَ مِاْئَةَ عَامࣲ فَٱنظُرۡ إِلَىٰ طَعَامِكَ وَشَرَابِكَ لَمۡ یَتَسَنَّهۡۖ وَٱنظُرۡ إِلَىٰ حِمَارِكَ وَلِنَجۡعَلَكَ ءَایَةࣰ لِّلنَّاسِۖ وَٱنظُرۡ إِلَى ٱلۡعِظَامِ كَیۡفَ نُنشِزُهَا ثُمَّ نَكۡسُوهَا لَحۡمࣰاۚ فَلَمَّا تَبَیَّنَ لَهُۥ قَالَ أَعۡلَمُ أَنَّ ٱللَّهَ عَلَىٰ كُلِّ شَیۡءࣲ قَدِیرࣱ ﴿٢٥٩﴾
अथवा उस व्यक्ति की तरह, जो एक बस्ती के पास से गुज़रा और वह अपनी छतों पर गिरी हुई थी? उसने कहा : अल्लाह इसे इसके मरने के बाद कैसे जीवित करेगा? तो अल्लाह ने उसे सौ वर्ष तक मृत्यु दे दी। फिर उसे जीवित किया। फरमाया : तू कितनी देर (मृत्यु अवस्था में) रहा? उसने कहा : मैं एक दिन अथवा दिन का कुछ हिस्सा रहा हूँ। (अल्लाह ने) कहा : बल्कि, तू सौ वर्ष रहा है। सो अपने खाने और अपने पीने की चीज़ें देख कि प्रभावित (ख़राब) नहीं हुईं तथा अपने गधे को देख, और ताकि हम तुझे लोगों के लिए एक निशानी बना दें, तथा (गधे की) हड्डियों को देख हम उन्हें कैसे उठाकर जोड़ते हैं, फिर उनपर मांस चढ़ाते हैं? फिर जब उसके लिए ख़ूब स्पष्ट हो गया, तो उसने[172] कहा : मैं जानता हूँ कि निःसंदेह अल्लाह हर चीज़ पर सर्वशक्तिमान है।
وَإِذۡ قَالَ إِبۡرَ ٰهِـۧمُ رَبِّ أَرِنِی كَیۡفَ تُحۡیِ ٱلۡمَوۡتَىٰۖ قَالَ أَوَلَمۡ تُؤۡمِنۖ قَالَ بَلَىٰ وَلَـٰكِن لِّیَطۡمَىِٕنَّ قَلۡبِیۖ قَالَ فَخُذۡ أَرۡبَعَةࣰ مِّنَ ٱلطَّیۡرِ فَصُرۡهُنَّ إِلَیۡكَ ثُمَّ ٱجۡعَلۡ عَلَىٰ كُلِّ جَبَلࣲ مِّنۡهُنَّ جُزۡءࣰا ثُمَّ ٱدۡعُهُنَّ یَأۡتِینَكَ سَعۡیࣰاۚ وَٱعۡلَمۡ أَنَّ ٱللَّهَ عَزِیزٌ حَكِیمࣱ ﴿٢٦٠﴾
तथा (याद करें) जब इबराहीम ने कहा : ऐ मेरे पालनहार! मुझे दिखा कि तू मरे हुए लोगों को कैसे ज़िंदा करेगा? (अल्लाह ने) कहा : क्या तुमने विश्वास नहीं किया? उसने कहा : क्यों नहीं? लेकिन इसलिए कि मेरे दिल को (पूर्ण) संतोष हो जाए। (अल्लाह ने) कहा : फिर चार पक्षी लो और उन्हें अपने से परचा लो। फिर हर पर्वत पर उनका एक हिस्सा रख दो। फिर उन्हें बुलाओ। वे तुम्हारे पास दौड़े चले आएँगे। और यह (अच्छी तरह) जान लो कि निःसंदेह अल्लाह सब पर प्रभुत्वशाली, पूर्ण हिकमत वाला है।
مَّثَلُ ٱلَّذِینَ یُنفِقُونَ أَمۡوَ ٰلَهُمۡ فِی سَبِیلِ ٱللَّهِ كَمَثَلِ حَبَّةٍ أَنۢبَتَتۡ سَبۡعَ سَنَابِلَ فِی كُلِّ سُنۢبُلَةࣲ مِّاْئَةُ حَبَّةࣲۗ وَٱللَّهُ یُضَـٰعِفُ لِمَن یَشَاۤءُۚ وَٱللَّهُ وَ ٰسِعٌ عَلِیمٌ ﴿٢٦١﴾
उन लोगों का उदाहरण जो अपने माल अल्लाह के मार्ग में ख़र्च करते हैं, एक दाने के उदाहरण की तरह है जिसने सात बालियाँ उगाईं, प्रत्येक बाली में सौ दाने हैं। और अल्लाह जिसके लिए चाहता है, बढ़ा देता है तथा अल्लाह विस्तार वाला[173], सब कुछ जानने वाला है।
ٱلَّذِینَ یُنفِقُونَ أَمۡوَ ٰلَهُمۡ فِی سَبِیلِ ٱللَّهِ ثُمَّ لَا یُتۡبِعُونَ مَاۤ أَنفَقُواْ مَنࣰّا وَلَاۤ أَذࣰى لَّهُمۡ أَجۡرُهُمۡ عِندَ رَبِّهِمۡ وَلَا خَوۡفٌ عَلَیۡهِمۡ وَلَا هُمۡ یَحۡزَنُونَ ﴿٢٦٢﴾
जो लोग अपना धन अल्लाह के मार्ग में ख़र्च करते हैं, फिर उन्होंने जो खर्च किया उसके बाद न किसी प्रकार का उपकार जताते हैं और न कोई कष्ट पहुँचाते हैं, उनके लिए उनका प्रतिफल उनके पालनहार के पास है और उनपर न कोई डर है और न वे शोकाकुल[174] होंगे।
۞ قَوۡلࣱ مَّعۡرُوفࣱ وَمَغۡفِرَةٌ خَیۡرࣱ مِّن صَدَقَةࣲ یَتۡبَعُهَاۤ أَذࣰىۗ وَٱللَّهُ غَنِیٌّ حَلِیمࣱ ﴿٢٦٣﴾
भली बात कहना तथा क्षमा कर देना, उस दान से बेहतर है, जिसके पीछे किसी प्रकार का कष्ट पहुँचाना हो। और अल्लाह बहुत बेनियाज़, अत्यंत सहनशील है।
یَـٰۤأَیُّهَا ٱلَّذِینَ ءَامَنُواْ لَا تُبۡطِلُواْ صَدَقَـٰتِكُم بِٱلۡمَنِّ وَٱلۡأَذَىٰ كَٱلَّذِی یُنفِقُ مَالَهُۥ رِئَاۤءَ ٱلنَّاسِ وَلَا یُؤۡمِنُ بِٱللَّهِ وَٱلۡیَوۡمِ ٱلۡـَٔاخِرِۖ فَمَثَلُهُۥ كَمَثَلِ صَفۡوَانٍ عَلَیۡهِ تُرَابࣱ فَأَصَابَهُۥ وَابِلࣱ فَتَرَكَهُۥ صَلۡدࣰاۖ لَّا یَقۡدِرُونَ عَلَىٰ شَیۡءࣲ مِّمَّا كَسَبُواْۗ وَٱللَّهُ لَا یَهۡدِی ٱلۡقَوۡمَ ٱلۡكَـٰفِرِینَ ﴿٢٦٤﴾
ऐ ईमान वालो! अपने दान को उपकार जताकर और कष्ट पहुँचाकर नष्ट न करो, उस व्यक्ति की तरह, जो अपना धन लोगों को दिखाने के लिए खर्च करता है और अल्लाह तथा अंतिम दिन पर ईमान नहीं रखता। तो उसका उदाहरण एक चिकने पत्थर के उदाहरण जैसा है, जिसपर थोड़ी-सी मिट्टी हो, फिर उसपर एक ज़ोर की वर्षा हो, तो उसे एक साफ़ चट्टान की दशा में छोड़ जाए। वे उसमें से किसी चीज़ पर सक्षम नहीं हो सकेंगे जो उन्होंने कमाया, और अल्लाह काफ़िर लोगों का मार्गदर्शन नहीं करता।
وَمَثَلُ ٱلَّذِینَ یُنفِقُونَ أَمۡوَ ٰلَهُمُ ٱبۡتِغَاۤءَ مَرۡضَاتِ ٱللَّهِ وَتَثۡبِیتࣰا مِّنۡ أَنفُسِهِمۡ كَمَثَلِ جَنَّةِۭ بِرَبۡوَةٍ أَصَابَهَا وَابِلࣱ فَـَٔاتَتۡ أُكُلَهَا ضِعۡفَیۡنِ فَإِن لَّمۡ یُصِبۡهَا وَابِلࣱ فَطَلࣱّۗ وَٱللَّهُ بِمَا تَعۡمَلُونَ بَصِیرٌ ﴿٢٦٥﴾
तथा उन लोगों का उदाहरण, जो अपना धन अल्लाह की प्रसन्नता चाहते हुए और अपने दिलों को स्थिर रखते हुए ख़र्च करते हैं, उस बाग़ के उदाहरण जैसा है, जो किसी ऊँचे स्थान पर हो, जिसपर एक भारी बारिश बरसे, तो वह अपना फल दोगुना कर दे। फिर यदि उसपर भारी बारिश न बरसे, तो एक हल्की बारिश ही काफ़ी[175] हो। तथा अल्लाह जो कुछ तुम कर रहे हो, उसे ख़ूब देखने वाला है।
أَیَوَدُّ أَحَدُكُمۡ أَن تَكُونَ لَهُۥ جَنَّةࣱ مِّن نَّخِیلࣲ وَأَعۡنَابࣲ تَجۡرِی مِن تَحۡتِهَا ٱلۡأَنۡهَـٰرُ لَهُۥ فِیهَا مِن كُلِّ ٱلثَّمَرَ ٰتِ وَأَصَابَهُ ٱلۡكِبَرُ وَلَهُۥ ذُرِّیَّةࣱ ضُعَفَاۤءُ فَأَصَابَهَاۤ إِعۡصَارࣱ فِیهِ نَارࣱ فَٱحۡتَرَقَتۡۗ كَذَ ٰلِكَ یُبَیِّنُ ٱللَّهُ لَكُمُ ٱلۡـَٔایَـٰتِ لَعَلَّكُمۡ تَتَفَكَّرُونَ ﴿٢٦٦﴾
क्या तुममें से कोई चाहेगा कि उसके पास खजूरों तथा अँगूरों का एक बाग़ हो, जिसके नीचे से नहरें बहती हों, उसमें उसके लिए प्रत्येक प्रकार के कुछ न कुछ फल हों और उसे बुढ़ापा आ जाए और उसके कमज़ोर बच्चे हों, फिर उस (बाग़) पर एक बगूला आ पहुँचे जिसमें एक आग हो, तो वह जल के राख हो जाए।[176] इसी तरह अल्लाह तुम्हारे लिए निशानियाँ उजागर करता है, ताकि तुम सोच-विचार करो।
یَـٰۤأَیُّهَا ٱلَّذِینَ ءَامَنُوۤاْ أَنفِقُواْ مِن طَیِّبَـٰتِ مَا كَسَبۡتُمۡ وَمِمَّاۤ أَخۡرَجۡنَا لَكُم مِّنَ ٱلۡأَرۡضِۖ وَلَا تَیَمَّمُواْ ٱلۡخَبِیثَ مِنۡهُ تُنفِقُونَ وَلَسۡتُم بِـَٔاخِذِیهِ إِلَّاۤ أَن تُغۡمِضُواْ فِیهِۚ وَٱعۡلَمُوۤاْ أَنَّ ٱللَّهَ غَنِیٌّ حَمِیدٌ ﴿٢٦٧﴾
ऐ ईमान वालो! उन पाक और अच्छी चीज़ों में से ख़र्च करो जो तुमने कमाई हैं तथा उनमें से भी, जो हमने तुम्हारे लिए धरती से निकाली हैं तथा उसमें से रद्दी चीज़ का इरादा न करो, जिसे तुम खर्च करते हो, हालाँकि तुम उसे बिल्कुल लेने वाले नहीं, सिवाय इसके कि तुम उसके बारे में अनदेखी कर जाओ। तथा जान लो कि अल्लाह बड़ा बेनियाज़, बहुत ख़ूबियों वाला है।
ٱلشَّیۡطَـٰنُ یَعِدُكُمُ ٱلۡفَقۡرَ وَیَأۡمُرُكُم بِٱلۡفَحۡشَاۤءِۖ وَٱللَّهُ یَعِدُكُم مَّغۡفِرَةࣰ مِّنۡهُ وَفَضۡلࣰاۗ وَٱللَّهُ وَ ٰسِعٌ عَلِیمࣱ ﴿٢٦٨﴾
शैतान तुम्हें निर्धनता से डराता है तथा निर्लज्जता का आदेश देता है, जबकि अल्लाह तुम्हें अपनी ओर से क्षमा और अनुग्रह का वादा देता है। तथा अल्लाह विस्तार वाला, सब कुछ जानने वाला है।
یُؤۡتِی ٱلۡحِكۡمَةَ مَن یَشَاۤءُۚ وَمَن یُؤۡتَ ٱلۡحِكۡمَةَ فَقَدۡ أُوتِیَ خَیۡرࣰا كَثِیرࣰاۗ وَمَا یَذَّكَّرُ إِلَّاۤ أُوْلُواْ ٱلۡأَلۡبَـٰبِ ﴿٢٦٩﴾
वह जिसे चाहता है, हिकमत प्रदान करता है और जिसे हिकमत प्रदान कर दी जाए, तो निःसंदेह उसे बड़ी भलाई दे दी गई। और उपदेश वही ग्रहण करते हैं, जो बुद्धि वाले हैं।
وَمَاۤ أَنفَقۡتُم مِّن نَّفَقَةٍ أَوۡ نَذَرۡتُم مِّن نَّذۡرࣲ فَإِنَّ ٱللَّهَ یَعۡلَمُهُۥۗ وَمَا لِلظَّـٰلِمِینَ مِنۡ أَنصَارٍ ﴿٢٧٠﴾
तथा तुम जो भी दान करो अथवा मन्नत[177] मानो, तो निःसंदेह अल्लाह उसे जानता है और अत्याचारियों के लिए कोई सहायक नहीं।
إِن تُبۡدُواْ ٱلصَّدَقَـٰتِ فَنِعِمَّا هِیَۖ وَإِن تُخۡفُوهَا وَتُؤۡتُوهَا ٱلۡفُقَرَاۤءَ فَهُوَ خَیۡرࣱ لَّكُمۡۚ وَیُكَفِّرُ عَنكُم مِّن سَیِّـَٔاتِكُمۡۗ وَٱللَّهُ بِمَا تَعۡمَلُونَ خَبِیرࣱ ﴿٢٧١﴾
यदि तुम खुले तौर पर दान करो, तो यह अच्छी बात है और यदि उन्हें छिपाओ और उन्हें ग़रीबों को दे दो, तो यह तुम्हारे लिए ज़्यादा अच्छा[178] है। और यह तुमसे तुम्हारे कुछ पापों को दूर कर देगा तथा अल्लाह उससे जो तुम कर रहे हो, पूरी तरह अवगत है।
۞ لَّیۡسَ عَلَیۡكَ هُدَىٰهُمۡ وَلَـٰكِنَّ ٱللَّهَ یَهۡدِی مَن یَشَاۤءُۗ وَمَا تُنفِقُواْ مِنۡ خَیۡرࣲ فَلِأَنفُسِكُمۡۚ وَمَا تُنفِقُونَ إِلَّا ٱبۡتِغَاۤءَ وَجۡهِ ٱللَّهِۚ وَمَا تُنفِقُواْ مِنۡ خَیۡرࣲ یُوَفَّ إِلَیۡكُمۡ وَأَنتُمۡ لَا تُظۡلَمُونَ ﴿٢٧٢﴾
(ऐ नबी!) उन्हें हिदायत देना, आपका दायित्व नहीं; परंतु अल्लाह जिसे चाहता है, हिदायत देता है तथा तुम जो भी धन ख़र्च करोगे, तो तुम्हारे अपने ही (भले के) लिए है और तुम अल्लाह की प्रसन्नता प्राप्त करने के लिए ही ख़र्च करते हो। तथा तुम जो भी धन ख़र्च करोगे, तुम्हें उसका भरपूर बदला दिया जाएगा और तुमपर अत्याचार[179] नहीं किया जाएगा।
لِلۡفُقَرَاۤءِ ٱلَّذِینَ أُحۡصِرُواْ فِی سَبِیلِ ٱللَّهِ لَا یَسۡتَطِیعُونَ ضَرۡبࣰا فِی ٱلۡأَرۡضِ یَحۡسَبُهُمُ ٱلۡجَاهِلُ أَغۡنِیَاۤءَ مِنَ ٱلتَّعَفُّفِ تَعۡرِفُهُم بِسِیمَـٰهُمۡ لَا یَسۡـَٔلُونَ ٱلنَّاسَ إِلۡحَافࣰاۗ وَمَا تُنفِقُواْ مِنۡ خَیۡرࣲ فَإِنَّ ٱللَّهَ بِهِۦ عَلِیمٌ ﴿٢٧٣﴾
(यह दान) उन निर्धनों के लिए है, जो अल्लाह के मार्ग में रोके गए हैं, धरती में यात्रा नहीं कर सकते[180], अनजान उन्हें किसी के सामने हाथ फैलाने से बचने के कारण धनवान् समझता है, तुम उन्हें उनके लक्षणों से पहचान लोगे, वे लोगों के पीछे पड़कर नहीं माँगते। तथा तुम जो भी धन ख़र्च करोगे, तो निश्चय अल्लाह उसे भली-भाँति जानने वाला है।
ٱلَّذِینَ یُنفِقُونَ أَمۡوَ ٰلَهُم بِٱلَّیۡلِ وَٱلنَّهَارِ سِرࣰّا وَعَلَانِیَةࣰ فَلَهُمۡ أَجۡرُهُمۡ عِندَ رَبِّهِمۡ وَلَا خَوۡفٌ عَلَیۡهِمۡ وَلَا هُمۡ یَحۡزَنُونَ ﴿٢٧٤﴾
जो लोग अपने धन रात और दिन, छिपे और खुले खर्च करते हैं, तो उनके लिए उनका प्रतिफल उनके पालनहार के पास है और उन्हें न कोई डर है और न वे शोकाकुल होंगे।
ٱلَّذِینَ یَأۡكُلُونَ ٱلرِّبَوٰاْ لَا یَقُومُونَ إِلَّا كَمَا یَقُومُ ٱلَّذِی یَتَخَبَّطُهُ ٱلشَّیۡطَـٰنُ مِنَ ٱلۡمَسِّۚ ذَ ٰلِكَ بِأَنَّهُمۡ قَالُوۤاْ إِنَّمَا ٱلۡبَیۡعُ مِثۡلُ ٱلرِّبَوٰاْۗ وَأَحَلَّ ٱللَّهُ ٱلۡبَیۡعَ وَحَرَّمَ ٱلرِّبَوٰاْۚ فَمَن جَاۤءَهُۥ مَوۡعِظَةࣱ مِّن رَّبِّهِۦ فَٱنتَهَىٰ فَلَهُۥ مَا سَلَفَ وَأَمۡرُهُۥۤ إِلَى ٱللَّهِۖ وَمَنۡ عَادَ فَأُوْلَـٰۤىِٕكَ أَصۡحَـٰبُ ٱلنَّارِۖ هُمۡ فِیهَا خَـٰلِدُونَ ﴿٢٧٥﴾
जो लोग ब्याज खाते हैं, वे (क़ियामत के दिन अपनी क़ब्रोंं से) ऐसे उठेंगे, जैसे वह व्यक्ति उठता है, जिसे शैतान ने छूकर पागल बना दिया हो। यह इसलिए कि उन्होंने कहा व्यापार तो ब्याज ही जैसा है। हालाँकि अल्लाह ने व्यापार को ह़लाल (वैध) किया तथा ब्याज को हराम[181] (अवैध) ठहराया। फिर जिसके पास उसके पालनहार की ओर से कोई उपदेश आए, सो वह (ब्याज खाने से) रुक जाए, तो जो पहले हो चुका, वह उसी का है और उसका मामला अल्लाह के हवाले है। और जो दोबारा ऐसा करे, तो वही आग वाले हैं, वे उसमें हमेशा रहने वाले हैं।
یَمۡحَقُ ٱللَّهُ ٱلرِّبَوٰاْ وَیُرۡبِی ٱلصَّدَقَـٰتِۗ وَٱللَّهُ لَا یُحِبُّ كُلَّ كَفَّارٍ أَثِیمٍ ﴿٢٧٦﴾
अल्लाह ब्याज को मिटाता है और दान को बढ़ाता है और अल्लाह किसी ऐसे व्यक्ति को पसंद नहीं करता जो बहुत अकृतज्ञ, घोर पापी हो।
إِنَّ ٱلَّذِینَ ءَامَنُواْ وَعَمِلُواْ ٱلصَّـٰلِحَـٰتِ وَأَقَامُواْ ٱلصَّلَوٰةَ وَءَاتَوُاْ ٱلزَّكَوٰةَ لَهُمۡ أَجۡرُهُمۡ عِندَ رَبِّهِمۡ وَلَا خَوۡفٌ عَلَیۡهِمۡ وَلَا هُمۡ یَحۡزَنُونَ ﴿٢٧٧﴾
निःसंदेह जो लोग ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कार्य किए और नमाज़ क़ायम की और ज़कात दी, उनके लिए उनका प्रतिफल उनके पालनहार के पास है और उनपर न कोई भय है और न वे शोकाकुल होंगे।
یَـٰۤأَیُّهَا ٱلَّذِینَ ءَامَنُواْ ٱتَّقُواْ ٱللَّهَ وَذَرُواْ مَا بَقِیَ مِنَ ٱلرِّبَوٰۤاْ إِن كُنتُم مُّؤۡمِنِینَ ﴿٢٧٨﴾
ऐ ईमान वालो! अल्लाह से डरो और ब्याज में से जो शेष रह गया है, उसे छोड़ दो, यदि तुम ईमान रखने वाले हो।
فَإِن لَّمۡ تَفۡعَلُواْ فَأۡذَنُواْ بِحَرۡبࣲ مِّنَ ٱللَّهِ وَرَسُولِهِۦۖ وَإِن تُبۡتُمۡ فَلَكُمۡ رُءُوسُ أَمۡوَ ٰلِكُمۡ لَا تَظۡلِمُونَ وَلَا تُظۡلَمُونَ ﴿٢٧٩﴾
फिर यदि तुमने ऐसा न किया, तो अल्लाह और उसके रसूल की ओर से युद्ध की घोषणा से सावधान हो जाओ। और यदि तुम तौबा कर लो, तो तुम्हारे लिए तुम्हारे मूलधन हैं, न तुम अत्याचार करोगे[182] और न तुमपर अत्याचार किया जाएगा।
وَإِن كَانَ ذُو عُسۡرَةࣲ فَنَظِرَةٌ إِلَىٰ مَیۡسَرَةࣲۚ وَأَن تَصَدَّقُواْ خَیۡرࣱ لَّكُمۡ إِن كُنتُمۡ تَعۡلَمُونَ ﴿٢٨٠﴾
और यदि कोई तंगी वाला हो, तो (उसे) आसानी तक मोहलत देनी चाहिए और दान कर दो, तो यह तुम्हारे लिए बेहतर है, यदि तुम जानते हो।
وَٱتَّقُواْ یَوۡمࣰا تُرۡجَعُونَ فِیهِ إِلَى ٱللَّهِۖ ثُمَّ تُوَفَّىٰ كُلُّ نَفۡسࣲ مَّا كَسَبَتۡ وَهُمۡ لَا یُظۡلَمُونَ ﴿٢٨١﴾
तथा उस दिन से डरो, जिसमें तुम अल्लाह की ओर लौटाए जाओगे, फिर प्रत्येक प्राणी को उसके किए हुए का पूरा बदला दिया जाएगा तथा उनपर अत्याचार नहीं किया जाएगा।
یَـٰۤأَیُّهَا ٱلَّذِینَ ءَامَنُوۤاْ إِذَا تَدَایَنتُم بِدَیۡنٍ إِلَىٰۤ أَجَلࣲ مُّسَمࣰّى فَٱكۡتُبُوهُۚ وَلۡیَكۡتُب بَّیۡنَكُمۡ كَاتِبُۢ بِٱلۡعَدۡلِۚ وَلَا یَأۡبَ كَاتِبٌ أَن یَكۡتُبَ كَمَا عَلَّمَهُ ٱللَّهُۚ فَلۡیَكۡتُبۡ وَلۡیُمۡلِلِ ٱلَّذِی عَلَیۡهِ ٱلۡحَقُّ وَلۡیَتَّقِ ٱللَّهَ رَبَّهُۥ وَلَا یَبۡخَسۡ مِنۡهُ شَیۡـࣰٔاۚ فَإِن كَانَ ٱلَّذِی عَلَیۡهِ ٱلۡحَقُّ سَفِیهًا أَوۡ ضَعِیفًا أَوۡ لَا یَسۡتَطِیعُ أَن یُمِلَّ هُوَ فَلۡیُمۡلِلۡ وَلِیُّهُۥ بِٱلۡعَدۡلِۚ وَٱسۡتَشۡهِدُواْ شَهِیدَیۡنِ مِن رِّجَالِكُمۡۖ فَإِن لَّمۡ یَكُونَا رَجُلَیۡنِ فَرَجُلࣱ وَٱمۡرَأَتَانِ مِمَّن تَرۡضَوۡنَ مِنَ ٱلشُّهَدَاۤءِ أَن تَضِلَّ إِحۡدَىٰهُمَا فَتُذَكِّرَ إِحۡدَىٰهُمَا ٱلۡأُخۡرَىٰۚ وَلَا یَأۡبَ ٱلشُّهَدَاۤءُ إِذَا مَا دُعُواْۚ وَلَا تَسۡـَٔمُوۤاْ أَن تَكۡتُبُوهُ صَغِیرًا أَوۡ كَبِیرًا إِلَىٰۤ أَجَلِهِۦۚ ذَ ٰلِكُمۡ أَقۡسَطُ عِندَ ٱللَّهِ وَأَقۡوَمُ لِلشَّهَـٰدَةِ وَأَدۡنَىٰۤ أَلَّا تَرۡتَابُوۤاْ إِلَّاۤ أَن تَكُونَ تِجَـٰرَةً حَاضِرَةࣰ تُدِیرُونَهَا بَیۡنَكُمۡ فَلَیۡسَ عَلَیۡكُمۡ جُنَاحٌ أَلَّا تَكۡتُبُوهَاۗ وَأَشۡهِدُوۤاْ إِذَا تَبَایَعۡتُمۡۚ وَلَا یُضَاۤرَّ كَاتِبࣱ وَلَا شَهِیدࣱۚ وَإِن تَفۡعَلُواْ فَإِنَّهُۥ فُسُوقُۢ بِكُمۡۗ وَٱتَّقُواْ ٱللَّهَۖ وَیُعَلِّمُكُمُ ٱللَّهُۗ وَٱللَّهُ بِكُلِّ شَیۡءٍ عَلِیمࣱ ﴿٢٨٢﴾
ऐ ईमान वालो! जब तुम आपस में एक निश्चित अवधि के लिए उधार का लेन-देन करो, तो उसे लिख लिया करो। और एक लिखने वाला तुम्हारे बीच न्याय के साथ लिखे। और कोई लिखने वाला उस तरह लिखने से इनकार न करे, जैसे अल्लाह ने उसे सिखाया है। सो उसे चाहिए कि लिखे और वह व्यक्ति लिखवाए जिसपर हक़ (क़र्ज़) हो, तथा वह अपने पालनहार अल्लाह से डरे और उस (कर्ज़) में से कुछ भी कम न करे। फिर यदि वह व्यक्ति जिसके ज़िम्मे हक़ (क़र्ज़) है, नासमझ या कमज़ोर है, या वह स्वयं लिखवाने में सक्षम न हो, तो उसका वली (अभिभावक) न्याय के साथ लिखवा दे। तथा अपने पुरुषों में से दो गवाहों को गवाह बना लो। फिर यदि दो पुरुष न हों, तो एक पुरुष तथा दो स्त्रियाँ उन लोगों में से जिन्हें तुम गवाहों में से पसंद करते हो। (इसलिए) कि दोनों में से एक भूल जाए, तो उनमें से एक दूसरी को याद दिला दे। तथा गवाह जब भी बुलाए जाएँ, इनकार न करें। तथा मामला छोटा हो या बड़ा, उसे उसकी अवधि तक लिखने से न उकताओ। यह काम अल्लाह के निकट अधिक न्यायसंगत, तथा गवाही को अधिक ठीक रखने वाला है और अधिक निकट है कि तुम संदेह में न पड़ो, परंतु यह कि नक़द सौदा हो, जिसका तुम आपस में लेन-देन करते हो, तो उसे न लिखने में तुमपर कोई दोष नहीं। तथा जब आपस में क्रय-विक्रय करो, तो गवाह बना लिया करो। और न किसी लिखने वाले को हानि पहुँचाई जाए और न किसी गवाह को। और यदि ऐसा करोगो, तो निःसंदेह यह तुम में (पाई जाने वाली बहुत) बड़ी अवज्ञा है। तथा अल्लाह से डरो और अल्लाह तुम्हें सिखाता है और अल्लाह हर चीज़ को ख़ूब जानने वाला है।
۞ وَإِن كُنتُمۡ عَلَىٰ سَفَرࣲ وَلَمۡ تَجِدُواْ كَاتِبࣰا فَرِهَـٰنࣱ مَّقۡبُوضَةࣱۖ فَإِنۡ أَمِنَ بَعۡضُكُم بَعۡضࣰا فَلۡیُؤَدِّ ٱلَّذِی ٱؤۡتُمِنَ أَمَـٰنَتَهُۥ وَلۡیَتَّقِ ٱللَّهَ رَبَّهُۥۗ وَلَا تَكۡتُمُواْ ٱلشَّهَـٰدَةَۚ وَمَن یَكۡتُمۡهَا فَإِنَّهُۥۤ ءَاثِمࣱ قَلۡبُهُۥۗ وَٱللَّهُ بِمَا تَعۡمَلُونَ عَلِیمࣱ ﴿٢٨٣﴾
और यदि तुम किसी सफ़र पर हो और कोई लिखने वाला न पाओ, तो ऐसी गिरवी आवश्यक है जो क़ब्ज़े में ले ली गई हो। फिर यदि तुममें से कोई किसी पर भरोसा करे, तो जिसपर भरोसा किया गया है वह अपनी अमानत अदा करे और अपने पालनहार अल्लाह से डरे। तथा गवाही न छिपाओ और जो उसे छिपाए, तो निःसंदेह उसका दिल पापी है। तथा अल्लाह जो कुछ तुम कर रहे हो, उसे ख़ूब जानने वाला है।
لِّلَّهِ مَا فِی ٱلسَّمَـٰوَ ٰتِ وَمَا فِی ٱلۡأَرۡضِۗ وَإِن تُبۡدُواْ مَا فِیۤ أَنفُسِكُمۡ أَوۡ تُخۡفُوهُ یُحَاسِبۡكُم بِهِ ٱللَّهُۖ فَیَغۡفِرُ لِمَن یَشَاۤءُ وَیُعَذِّبُ مَن یَشَاۤءُۗ وَٱللَّهُ عَلَىٰ كُلِّ شَیۡءࣲ قَدِیرٌ ﴿٢٨٤﴾
अल्लाह ही का है जो कुछ आकाशों में और जो धरती में है, और यदि तुम उसे प्रकट करो जो तुम्हारे दिलों में है, या उसे छिपाओ, अल्लाह तुमसे उसका ह़िसाब लेगा। फिर जिसे चाहेगा, माफ़ कर देगा और जिसे चाहेगा, यातना देगा और अल्लाह हर चीज़ पर सर्वशक्तिमान है।
ءَامَنَ ٱلرَّسُولُ بِمَاۤ أُنزِلَ إِلَیۡهِ مِن رَّبِّهِۦ وَٱلۡمُؤۡمِنُونَۚ كُلٌّ ءَامَنَ بِٱللَّهِ وَمَلَـٰۤىِٕكَتِهِۦ وَكُتُبِهِۦ وَرُسُلِهِۦ لَا نُفَرِّقُ بَیۡنَ أَحَدࣲ مِّن رُّسُلِهِۦۚ وَقَالُواْ سَمِعۡنَا وَأَطَعۡنَاۖ غُفۡرَانَكَ رَبَّنَا وَإِلَیۡكَ ٱلۡمَصِیرُ ﴿٢٨٥﴾
रसूल उस चीज़ पर ईमान लाए, जो उनकी तरफ़ उनके पालनहार की ओर से उतारी गई तथा सब ईमान वाले भी। हर एक अल्लाह और उसके फ़रिश्तों और उसकी पुस्तकों और उसके रसूलों पर ईमान लाया। (वे कहते हैं) हम उसके रसूलों में से किसी एक के बीच अंतर नहीं करते। और उन्होंने कहा हमने सुना और हमने आज्ञापालन किया। हम तेरी क्षमा चाहते हैं ऐ हमारे पालनहार! और तेरी ही ओर लौटकर जाना है।[183]
لَا یُكَلِّفُ ٱللَّهُ نَفۡسًا إِلَّا وُسۡعَهَاۚ لَهَا مَا كَسَبَتۡ وَعَلَیۡهَا مَا ٱكۡتَسَبَتۡۗ رَبَّنَا لَا تُؤَاخِذۡنَاۤ إِن نَّسِینَاۤ أَوۡ أَخۡطَأۡنَاۚ رَبَّنَا وَلَا تَحۡمِلۡ عَلَیۡنَاۤ إِصۡرࣰا كَمَا حَمَلۡتَهُۥ عَلَى ٱلَّذِینَ مِن قَبۡلِنَاۚ رَبَّنَا وَلَا تُحَمِّلۡنَا مَا لَا طَاقَةَ لَنَا بِهِۦۖ وَٱعۡفُ عَنَّا وَٱغۡفِرۡ لَنَا وَٱرۡحَمۡنَاۤۚ أَنتَ مَوۡلَىٰنَا فَٱنصُرۡنَا عَلَى ٱلۡقَوۡمِ ٱلۡكَـٰفِرِینَ ﴿٢٨٦﴾
अल्लाह किसी प्राणी पर भार नहीं डालता परंतु उसकी क्षमता के अनुसार। उसी के लिए है जो उसने (नेकी) कमाई और उसी पर है जो उसने (पाप) कमाया। ऐ हमारे पालनहार! हमारी पकड़ न कर यदि हम भूल जाएँ या हमसे चूक हो जाए। ऐ हमारे पालनहार! और हमपर कोई भारी बोझ न डाल, जैसे तूने उसे उन लोगों पर डाला जो हमसे पहले थे। ऐ हमारे पालनहार! और हमसे वह चीज़ न उठवा जिस (के उठाने) की हम में शक्ति न हो। तथा हमें माफ़ कर और हमें क्षमा कर दे और हमपर दया कर। तू ही हमारा स्वामी (संरक्षक) है, इसलिए काफ़िरों के मुक़ाबले में हमारी मदद कर।