Surah सूरा ताहा - Tā-ha

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Surah सूरा ताहा - Tā-ha - Aya count 135

طه ﴿١﴾

ता, हा।


Arabic explanations of the Qur’an:

مَاۤ أَنزَلۡنَا عَلَیۡكَ ٱلۡقُرۡءَانَ لِتَشۡقَىٰۤ ﴿٢﴾

हमने आपपर यह क़ुरआन इसलिए नहीं अवतरित किया कि आप कष्ट में पड़ जाएँ।[1]

1. अर्थात विरोधियों के ईमान न लाने पर।


Arabic explanations of the Qur’an:

إِلَّا تَذۡكِرَةࣰ لِّمَن یَخۡشَىٰ ﴿٣﴾

परंतु उसकी याददहानी (नसीहत) के लिए, जो डरता[2] है।

2. अर्थात ईमान न लाने तथा कुकर्मों के दुष्परिणाम से।


Arabic explanations of the Qur’an:

تَنزِیلࣰا مِّمَّنۡ خَلَقَ ٱلۡأَرۡضَ وَٱلسَّمَـٰوَ ٰ⁠تِ ٱلۡعُلَى ﴿٤﴾

उसकी ओर से उतारा हुआ है, जिसने पृथ्वी और ऊँचे आकाशों को बनाया।।


Arabic explanations of the Qur’an:

ٱلرَّحۡمَـٰنُ عَلَى ٱلۡعَرۡشِ ٱسۡتَوَىٰ ﴿٥﴾

वह रहमान (अत्यंत दयावान् अल्लाह) अर्श (सिंहासन) पर बुलंद हुआ।


Arabic explanations of the Qur’an:

لَهُۥ مَا فِی ٱلسَّمَـٰوَ ٰ⁠تِ وَمَا فِی ٱلۡأَرۡضِ وَمَا بَیۡنَهُمَا وَمَا تَحۡتَ ٱلثَّرَىٰ ﴿٦﴾

उसी का[3] है, जो कुछ आकाशों में और जो कुछ धरती में है और जो उन दोनों के बीच है तथा जो गीली मिट्टी के नीचे है।

3. अर्थात उसी के स्वामित्व में तथा उसी के अधीन है।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَإِن تَجۡهَرۡ بِٱلۡقَوۡلِ فَإِنَّهُۥ یَعۡلَمُ ٱلسِّرَّ وَأَخۡفَى ﴿٧﴾

यदि तुम उच्च स्वर में बात करो, तो वह गुप्त और उससे भी अधिक गुप्त बात को जानता है।


Arabic explanations of the Qur’an:

ٱللَّهُ لَاۤ إِلَـٰهَ إِلَّا هُوَۖ لَهُ ٱلۡأَسۡمَاۤءُ ٱلۡحُسۡنَىٰ ﴿٨﴾

अल्लाह वह है जिसके सिवा कोई पूज्य नहीं, सबसे अच्छे नाम उसी के हैं।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَهَلۡ أَتَىٰكَ حَدِیثُ مُوسَىٰۤ ﴿٩﴾

और क्या (ऐ नबी!) आपके पास मूसा की ख़बर पहुँची?


Arabic explanations of the Qur’an:

إِذۡ رَءَا نَارࣰا فَقَالَ لِأَهۡلِهِ ٱمۡكُثُوۤاْ إِنِّیۤ ءَانَسۡتُ نَارࣰا لَّعَلِّیۤ ءَاتِیكُم مِّنۡهَا بِقَبَسٍ أَوۡ أَجِدُ عَلَى ٱلنَّارِ هُدࣰى ﴿١٠﴾

जब उसने एक आग देखी, तो अपने घरवालों से कहा : ठहरो, निःसंदेह मैंने एक आग देखी है, शायद मैं तुम्हारे पास उससे कोई अंगार लाे आऊँ, अथवा उस आग पर कोई मार्गदर्शन पा लूँ।[4]

4. यह उस समय की बात है, जब मूसा अलैहिस्सलाम अपने परिवार के साथ मदयन नगर से मिस्र आ रहे थे और मार्ग भूल गए थे।


Arabic explanations of the Qur’an:

فَلَمَّاۤ أَتَىٰهَا نُودِیَ یَـٰمُوسَىٰۤ ﴿١١﴾

फिर जब वह उसके पास आया तो उसे आवाज़ दी गई : ऐ मूसा!


Arabic explanations of the Qur’an:

إِنِّیۤ أَنَا۠ رَبُّكَ فَٱخۡلَعۡ نَعۡلَیۡكَ إِنَّكَ بِٱلۡوَادِ ٱلۡمُقَدَّسِ طُوࣰى ﴿١٢﴾

निःसंदेह मैं ही तेरा पालनहार हूँ, अतः अपने दोनों जूते उतार दे, निःसंदेह तू पवित्र वादी “तुवा” में है।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَأَنَا ٱخۡتَرۡتُكَ فَٱسۡتَمِعۡ لِمَا یُوحَىٰۤ ﴿١٣﴾

और मैंने तुझे चुन[5] लिया है। अतः ध्यान से सुन, जो वह़्य की जा रही है।

5. अर्थात नबी बना दिया।


Arabic explanations of the Qur’an:

إِنَّنِیۤ أَنَا ٱللَّهُ لَاۤ إِلَـٰهَ إِلَّاۤ أَنَا۠ فَٱعۡبُدۡنِی وَأَقِمِ ٱلصَّلَوٰةَ لِذِكۡرِیۤ ﴿١٤﴾

निःसंदेह मैं ही अल्लाह हूँ, मेरे सिवा कोई पूज्य नहीं, तो मेरी ही इबादत कर तथा मेरे स्मरण (याद) के लिए नमाज़ स्थापित कर।[6]

6. इबादत में नमाज़ सम्मिलित है, फिर भी उसका महत्त्व दिखाने के लिए उसका विशेष आदेश दिया गया है।


Arabic explanations of the Qur’an:

إِنَّ ٱلسَّاعَةَ ءَاتِیَةٌ أَكَادُ أُخۡفِیهَا لِتُجۡزَىٰ كُلُّ نَفۡسِۭ بِمَا تَسۡعَىٰ ﴿١٥﴾

निश्चय क़ियामत आने वाली है, मैं क़रीब हूँ कि उसे छिपाकर रखूँ। ताकि प्रत्येक प्राणी को उसका बदला दिया जाए, जो वह प्रयास करता है।


Arabic explanations of the Qur’an:

فَلَا یَصُدَّنَّكَ عَنۡهَا مَن لَّا یُؤۡمِنُ بِهَا وَٱتَّبَعَ هَوَىٰهُ فَتَرۡدَىٰ ﴿١٦﴾

अतः तुझे उससे वह व्यक्ति कहीं रोक न दे, जो उसपर ईमान (विश्वास) नहीं रखता और अपनी इच्छा के पालन में लगा है, अन्यथा तेरा नाश हो जाएगा।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَمَا تِلۡكَ بِیَمِینِكَ یَـٰمُوسَىٰ ﴿١٧﴾

और ऐ मूसा! यह तेरे दाहिने हाथ में क्या है?


Arabic explanations of the Qur’an:

قَالَ هِیَ عَصَایَ أَتَوَكَّؤُاْ عَلَیۡهَا وَأَهُشُّ بِهَا عَلَىٰ غَنَمِی وَلِیَ فِیهَا مَـَٔارِبُ أُخۡرَىٰ ﴿١٨﴾

उसने कहा : यह मेरी लाठी है। मैं इसपर टेक लगाता हूँ और इससे अपनी बकरियों के लिए पत्ते झाड़ता हूँ और मेरे लिए इसमें और भी कई ज़रूरतें हैं।


Arabic explanations of the Qur’an:

قَالَ أَلۡقِهَا یَـٰمُوسَىٰ ﴿١٩﴾

फरमाया : इसे फेंक दे, ऐ मूसा!


Arabic explanations of the Qur’an:

فَأَلۡقَىٰهَا فَإِذَا هِیَ حَیَّةࣱ تَسۡعَىٰ ﴿٢٠﴾

तो उसने उसे फेंक दिया और सहसा वह एक साँप था, जो दोड़ रहा था।


Arabic explanations of the Qur’an:

قَالَ خُذۡهَا وَلَا تَخَفۡۖ سَنُعِیدُهَا سِیرَتَهَا ٱلۡأُولَىٰ ﴿٢١﴾

फरमाया : इसे पकड़ ले और डर मत, जल्द ही हम इसे इसकी प्रथम स्थिति में लौटा देंगे।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَٱضۡمُمۡ یَدَكَ إِلَىٰ جَنَاحِكَ تَخۡرُجۡ بَیۡضَاۤءَ مِنۡ غَیۡرِ سُوۤءٍ ءَایَةً أُخۡرَىٰ ﴿٢٢﴾

और अपना हाथ अपनी कांख (बग़ल) की ओर लगा दे, वह बिना किसी दोष के सफेद (चमकता हुआ) निकलेगा, जबकि यह एक और निशानी है।


Arabic explanations of the Qur’an:

لِنُرِیَكَ مِنۡ ءَایَـٰتِنَا ٱلۡكُبۡرَى ﴿٢٣﴾

ताकि हम तुझे अपनी कुछ बड़ी निशानियाँ दिखाएँ।


Arabic explanations of the Qur’an:

ٱذۡهَبۡ إِلَىٰ فِرۡعَوۡنَ إِنَّهُۥ طَغَىٰ ﴿٢٤﴾

फ़िरऔन के पास जा, निश्चय वह सरकश हो गया है।


Arabic explanations of the Qur’an:

قَالَ رَبِّ ٱشۡرَحۡ لِی صَدۡرِی ﴿٢٥﴾

उसने कहा : ऐ मेरे पालनहार! मेरे लिए मेरा सीना खोल दे।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَیَسِّرۡ لِیۤ أَمۡرِی ﴿٢٦﴾

तथा मेरे लिए मेरा काम सरल कर दे।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَٱحۡلُلۡ عُقۡدَةࣰ مِّن لِّسَانِی ﴿٢٧﴾

और मेरी ज़बान की गाँठ खोल दे।


Arabic explanations of the Qur’an:

یَفۡقَهُواْ قَوۡلِی ﴿٢٨﴾

ताकि वे मेरी बात समझ लें।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَٱجۡعَل لِّی وَزِیرࣰا مِّنۡ أَهۡلِی ﴿٢٩﴾

तथा मेरे लिए मेरे अपने घरवालों में से एक सहायकबना दे।


Arabic explanations of the Qur’an:

هَـٰرُونَ أَخِی ﴿٣٠﴾

हारून को, जो मेरा भाई है।


Arabic explanations of the Qur’an:

ٱشۡدُدۡ بِهِۦۤ أَزۡرِی ﴿٣١﴾

उसके साथ मेरी पीठ मज़बूत़ कर दे।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَأَشۡرِكۡهُ فِیۤ أَمۡرِی ﴿٣٢﴾

और उसे मेरे काम में शरीक कर दे।


Arabic explanations of the Qur’an:

كَیۡ نُسَبِّحَكَ كَثِیرࣰا ﴿٣٣﴾

ताकि हम तेरी बहुत ज़्यादा पवित्रता बयान करें।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَنَذۡكُرَكَ كَثِیرًا ﴿٣٤﴾

तथा हम तुझे बहुत ज़्यादा याद करें।


Arabic explanations of the Qur’an:

إِنَّكَ كُنتَ بِنَا بَصِیرࣰا ﴿٣٥﴾

निःसंदेह तू हमेशा हमारी स्थिति को भली प्रकार देखने वाला है।


Arabic explanations of the Qur’an:

قَالَ قَدۡ أُوتِیتَ سُؤۡلَكَ یَـٰمُوسَىٰ ﴿٣٦﴾

फरमाया : निःसंदेह तुझे दिया गया जो तूने माँगा, ऐ मूसा!


Arabic explanations of the Qur’an:

وَلَقَدۡ مَنَنَّا عَلَیۡكَ مَرَّةً أُخۡرَىٰۤ ﴿٣٧﴾

और निश्चय ही हमने तुझपर एक और बार भी उपकार किया।[7]

7. यह उस समय की बात है जब मूसा का जन्म हुआ। उस समय फ़िरऔन का आदेश था कि बनी इसराईल में जो भी शिशु जन्म ले, उसे वध कर दिया जाए।


Arabic explanations of the Qur’an:

إِذۡ أَوۡحَیۡنَاۤ إِلَىٰۤ أُمِّكَ مَا یُوحَىٰۤ ﴿٣٨﴾

जब हमने तेरी माँ की ओर वह़्य की, जो वह़्य की जाती थी।


Arabic explanations of the Qur’an:

أَنِ ٱقۡذِفِیهِ فِی ٱلتَّابُوتِ فَٱقۡذِفِیهِ فِی ٱلۡیَمِّ فَلۡیُلۡقِهِ ٱلۡیَمُّ بِٱلسَّاحِلِ یَأۡخُذۡهُ عَدُوࣱّ لِّی وَعَدُوࣱّ لَّهُۥۚ وَأَلۡقَیۡتُ عَلَیۡكَ مَحَبَّةࣰ مِّنِّی وَلِتُصۡنَعَ عَلَىٰ عَیۡنِیۤ ﴿٣٩﴾

यह कि तू इसे ताबूत (संदूक़) में रख दे, फिर उसे नदी में डाल दे, फिर नदी उसे किनारे पर डाल दे, उसे मेरा एक शत्रु और उसका शत्रु उठा लेगा[8] और मैंने तुझपर अपनी ओर से एक प्रेम[9] डाल दिया और ताकि तेरा पालन-पोषण मेरी आँखों के सामने किया जाए।

8. इस से तात्पर्य मिस्र का राजा फ़िरऔन है। 9. अर्थात तुम्हें सबका प्रिय अथवा फ़िरऔन का भी प्रिय बना दिया।


Arabic explanations of the Qur’an:

إِذۡ تَمۡشِیۤ أُخۡتُكَ فَتَقُولُ هَلۡ أَدُلُّكُمۡ عَلَىٰ مَن یَكۡفُلُهُۥۖ فَرَجَعۡنَـٰكَ إِلَىٰۤ أُمِّكَ كَیۡ تَقَرَّ عَیۡنُهَا وَلَا تَحۡزَنَۚ وَقَتَلۡتَ نَفۡسࣰا فَنَجَّیۡنَـٰكَ مِنَ ٱلۡغَمِّ وَفَتَنَّـٰكَ فُتُونࣰاۚ فَلَبِثۡتَ سِنِینَ فِیۤ أَهۡلِ مَدۡیَنَ ثُمَّ جِئۡتَ عَلَىٰ قَدَرࣲ یَـٰمُوسَىٰ ﴿٤٠﴾

जब तेरी बहन[10] चल रही थी और कह रही थी : क्या मैं तुम्हें उसका पता बता दूँ, जो इसका पालन-पोषण करे? फिर हमने तुझे तेरी माँ के पास लौटा दिया, ताकि उसकी आँख ठंडी हो और वह शोक न करे। तथा तूने एक आदमी को मार डाला[11], तो हमने तुझे दुःखसे बचा लिया और हमने तुम्हारी अच्छी तरह से परीक्षा ली। फिर तू कई वर्ष मदयन वालों के बीच ठहरा रहा, फिर तू एक निश्चित अनुमान पर आया, ऐ मूसा!

10. अर्थात संदूक़ के पीछे नदी के किनारे। 11. अर्थात एक फ़िरऔनी को मारा और वह मर गया, तो तुम मदयन चले गए, इसका वर्णन सूरतुल-क़स़स़ में आएगा।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَٱصۡطَنَعۡتُكَ لِنَفۡسِی ﴿٤١﴾

और मैंने तुझे विशेष रूप से अपने लिए बनाया है।


Arabic explanations of the Qur’an:

ٱذۡهَبۡ أَنتَ وَأَخُوكَ بِـَٔایَـٰتِی وَلَا تَنِیَا فِی ذِكۡرِی ﴿٤٢﴾

तू और तेरा भाई मेरी निशानियाँ लेकर जाओ और मुझे याद करने में आलस्य न करो।


Arabic explanations of the Qur’an:

ٱذۡهَبَاۤ إِلَىٰ فِرۡعَوۡنَ إِنَّهُۥ طَغَىٰ ﴿٤٣﴾

तुम दोनों फ़िरऔन के पास जाओ, निःसंदेह वह सरकश हो गया है।


Arabic explanations of the Qur’an:

فَقُولَا لَهُۥ قَوۡلࣰا لَّیِّنࣰا لَّعَلَّهُۥ یَتَذَكَّرُ أَوۡ یَخۡشَىٰ ﴿٤٤﴾

तो उससे कोमल बात करो, आशा है कि वह उपदेश ग्रहण करे, या (अल्लाह से) डर जाए।


Arabic explanations of the Qur’an:

قَالَا رَبَّنَاۤ إِنَّنَا نَخَافُ أَن یَفۡرُطَ عَلَیۡنَاۤ أَوۡ أَن یَطۡغَىٰ ﴿٤٥﴾

दोनों ने कहा : ऐ हमारे पालनहार! निश्चय ह डरते हैं कि वह हमपर अत्याचार करेगा, या हद से बढ़ जाएगा।


Arabic explanations of the Qur’an:

قَالَ لَا تَخَافَاۤۖ إِنَّنِی مَعَكُمَاۤ أَسۡمَعُ وَأَرَىٰ ﴿٤٦﴾

फरमाया : डरो मत, मैं तुम्हारे साथ हूँ, सब कुछ सुन रहा हूँ और सब कुछ देख रहा हूँ।


Arabic explanations of the Qur’an:

فَأۡتِیَاهُ فَقُولَاۤ إِنَّا رَسُولَا رَبِّكَ فَأَرۡسِلۡ مَعَنَا بَنِیۤ إِسۡرَ ٰ⁠ۤءِیلَ وَلَا تُعَذِّبۡهُمۡۖ قَدۡ جِئۡنَـٰكَ بِـَٔایَةࣲ مِّن رَّبِّكَۖ وَٱلسَّلَـٰمُ عَلَىٰ مَنِ ٱتَّبَعَ ٱلۡهُدَىٰۤ ﴿٤٧﴾

अतः तुम दोनों उसके पास जाओ और कहो : हम तेरे पालनहार के रसूल हैं। अतः तू हमारे साथ बनी इसराईल को भेज दे और उन्हें यातना न दे, निश्चय हम तेरे पास तेरे पालनहार की ओर से एक निशानी लेकर आए हैं और सलामती है उसके लिए, जो मार्गदर्शन का अनुसरण करे।


Arabic explanations of the Qur’an:

إِنَّا قَدۡ أُوحِیَ إِلَیۡنَاۤ أَنَّ ٱلۡعَذَابَ عَلَىٰ مَن كَذَّبَ وَتَوَلَّىٰ ﴿٤٨﴾

निःसंदेह हमारी ओर वह़्य (प्रकाशना) की गई है कि निश्चय ही यातना उसके लिए है, जिसने झुठलाया और मुँह फेरा।


Arabic explanations of the Qur’an:

قَالَ فَمَن رَّبُّكُمَا یَـٰمُوسَىٰ ﴿٤٩﴾

उसने कहा : तुम दोनों का पालनहार कौन है, ऐ मूसा!?


Arabic explanations of the Qur’an:

قَالَ رَبُّنَا ٱلَّذِیۤ أَعۡطَىٰ كُلَّ شَیۡءٍ خَلۡقَهُۥ ثُمَّ هَدَىٰ ﴿٥٠﴾

(मूसा ने) कहा : हमारा पालनहार वह है, जिसने हर चीज़ को उसका आकार और रूप दिया, फिर रास्ता दिखाया।[12]

12. आयत का भावार्थ यह है कि अल्लाह ने प्रत्येक जीव-जंतु के योग्य उसका रूप बनाया। और उसके जीवन की आवश्यकता के अनुसार उसे खाने-पीने तथा निवास की विधि समझा दी है।


Arabic explanations of the Qur’an:

قَالَ فَمَا بَالُ ٱلۡقُرُونِ ٱلۡأُولَىٰ ﴿٥١﴾

उसने कहा : अच्छा, तो पहले ज़माने के लोगों का क्या हाल है?


Arabic explanations of the Qur’an:

قَالَ عِلۡمُهَا عِندَ رَبِّی فِی كِتَـٰبࣲۖ لَّا یَضِلُّ رَبِّی وَلَا یَنسَى ﴿٥٢﴾

(मूसा ने) कहा : उनका ज्ञान मेरे रब के पास एक किताब में है, मेरा रब न भटकता है और न भूलता है।[13]

13. अर्थात उन्होंने जैसा किया होगा, उनके आगे उनका परिणाम आएगा।


Arabic explanations of the Qur’an:

ٱلَّذِی جَعَلَ لَكُمُ ٱلۡأَرۡضَ مَهۡدࣰا وَسَلَكَ لَكُمۡ فِیهَا سُبُلࣰا وَأَنزَلَ مِنَ ٱلسَّمَاۤءِ مَاۤءࣰ فَأَخۡرَجۡنَا بِهِۦۤ أَزۡوَ ٰ⁠جࣰا مِّن نَّبَاتࣲ شَتَّىٰ ﴿٥٣﴾

वही है जिसने तुम्हारे लिए ज़मीन को बिछौना बनाया और उसमें तुम्हारे लिए रास्ते बनाए और आसमान से कुछ पानी उतारा, फिर हमने उसके द्वारा विभिन्न पौधों की कई क़िस्में निकालीं।


Arabic explanations of the Qur’an:

كُلُواْ وَٱرۡعَوۡاْ أَنۡعَـٰمَكُمۡۚ إِنَّ فِی ذَ ٰ⁠لِكَ لَـَٔایَـٰتࣲ لِّأُوْلِی ٱلنُّهَىٰ ﴿٥٤﴾

खाओ और अपने चौपायों को चराओ, निःसंदेह इसमें बुद्धि वाले लोगों के लिए निश्चय बहुत-सी निशानियाँ हैं।


Arabic explanations of the Qur’an:

۞ مِنۡهَا خَلَقۡنَـٰكُمۡ وَفِیهَا نُعِیدُكُمۡ وَمِنۡهَا نُخۡرِجُكُمۡ تَارَةً أُخۡرَىٰ ﴿٥٥﴾

इसी से हमने तुम्हें पैदा किया और इसी में हम तुम्हें लौटाएँगे और इसी से हम तुम्हें एक बार फिर[14] निकालेंगे।

14. अर्थात प्रलय के दिन पुनः जीवित निकालेंगे।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَلَقَدۡ أَرَیۡنَـٰهُ ءَایَـٰتِنَا كُلَّهَا فَكَذَّبَ وَأَبَىٰ ﴿٥٦﴾

और निःसंदेह हमने उसे अपनी सब निशानियाँ दिखाईं, तो उसने झुठलाया और इनकार किया।


Arabic explanations of the Qur’an:

قَالَ أَجِئۡتَنَا لِتُخۡرِجَنَا مِنۡ أَرۡضِنَا بِسِحۡرِكَ یَـٰمُوسَىٰ ﴿٥٧﴾

उसने कहा : क्या तू हमारे पास इसलिए आया है कि हमें हमारी धरती से अपने जादू के द्वारा निकाल दे, ऐ मूसा!?


Arabic explanations of the Qur’an:

فَلَنَأۡتِیَنَّكَ بِسِحۡرࣲ مِّثۡلِهِۦ فَٱجۡعَلۡ بَیۡنَنَا وَبَیۡنَكَ مَوۡعِدࣰا لَّا نُخۡلِفُهُۥ نَحۡنُ وَلَاۤ أَنتَ مَكَانࣰا سُوࣰى ﴿٥٨﴾

तो हम भी अवश्य तेरे पास ऐसा ही जादू लाएँगे, अतः तू हमारे और अपने बीच वादे का एक समय निर्धारित कर दे, कि न हम उसके ख़िलाफ़ हों और न तू, ऐसी जगह जो बराबर हो।


Arabic explanations of the Qur’an:

قَالَ مَوۡعِدُكُمۡ یَوۡمُ ٱلزِّینَةِ وَأَن یُحۡشَرَ ٱلنَّاسُ ضُحࣰى ﴿٥٩﴾

(मूसा ने) कहा : तुम्हारे वादे का समय उत्सव का दिन[15] है तथा यह कि लोग दिन चढ़े इकट्ठे हो जाएँ।

15. इससे अभिप्राय उनका कोई वार्षिक उत्सव (मेले) का दिन था।


Arabic explanations of the Qur’an:

فَتَوَلَّىٰ فِرۡعَوۡنُ فَجَمَعَ كَیۡدَهُۥ ثُمَّ أَتَىٰ ﴿٦٠﴾

फिर फ़िरऔन वापस लौटा,[16] उसने अपने सारे हथकंडे जुटाए, फिर आ गया।

16. मूसा के सत्य को न मान कर, मुक़ाबले की तैयारी में व्यस्त हो गया।


Arabic explanations of the Qur’an:

قَالَ لَهُم مُّوسَىٰ وَیۡلَكُمۡ لَا تَفۡتَرُواْ عَلَى ٱللَّهِ كَذِبࣰا فَیُسۡحِتَكُم بِعَذَابࣲۖ وَقَدۡ خَابَ مَنِ ٱفۡتَرَىٰ ﴿٦١﴾

मूसा ने उन (जादूगरों) से कहा : तुम्हारा विनाश हो! अल्लाह पर कोई झूठ मत गढ़ना, नहीं तो वह तुम्हें यातना देकर नष्ट कर देगा और निश्चय विफल हुआ, जिसने झूठ गढ़ा।


Arabic explanations of the Qur’an:

فَتَنَـٰزَعُوۤاْ أَمۡرَهُم بَیۡنَهُمۡ وَأَسَرُّواْ ٱلنَّجۡوَىٰ ﴿٦٢﴾

तो वे अपने मामले में आपस में मतभेद करने लगे[17] और उन्होंने चुपके-चुपके कानाफूसी की।

17. अर्थात मूसा (अलैहिस्सलाम) की बात सुनकर उनमें मतभेद हो गया। कुछ ने कहा कि यह जादूगर है और कुछ ने कहा कि यह चेहरा जादूगर का नहीं हो सकता।


Arabic explanations of the Qur’an:

قَالُوۤاْ إِنۡ هَـٰذَ ٰ⁠نِ لَسَـٰحِرَ ٰ⁠نِ یُرِیدَانِ أَن یُخۡرِجَاكُم مِّنۡ أَرۡضِكُم بِسِحۡرِهِمَا وَیَذۡهَبَا بِطَرِیقَتِكُمُ ٱلۡمُثۡلَىٰ ﴿٦٣﴾

(कुछ ने) कहा : निःसंदेह ये दोनों जादूगर हैं, वे अपने जादू द्वारा तुम्हें तुम्हारे भूभाग से निकाल देना चाहते हैं और तुम्हारे सबसे अच्छे रास्ते (आदर्श प्रणाली) को समाप्त कर देना चाहते हैं।


Arabic explanations of the Qur’an:

فَأَجۡمِعُواْ كَیۡدَكُمۡ ثُمَّ ٱئۡتُواْ صَفࣰّاۚ وَقَدۡ أَفۡلَحَ ٱلۡیَوۡمَ مَنِ ٱسۡتَعۡلَىٰ ﴿٦٤﴾

अतः तुम अपने उपाय को मज़बूत कर लो, फिर पंक्तिबद्ध होकर आ जाओ और निश्चय आज वही सफल होगा, जो हावी रहेगा।


Arabic explanations of the Qur’an:

قَالُواْ یَـٰمُوسَىٰۤ إِمَّاۤ أَن تُلۡقِیَ وَإِمَّاۤ أَن نَّكُونَ أَوَّلَ مَنۡ أَلۡقَىٰ ﴿٦٥﴾

उन्होंने कहा : ऐ मूसा! या तो तुम फेंको या यह कि हम पहले फेंकने वाले हो जाएँ।


Arabic explanations of the Qur’an:

قَالَ بَلۡ أَلۡقُواْۖ فَإِذَا حِبَالُهُمۡ وَعِصِیُّهُمۡ یُخَیَّلُ إِلَیۡهِ مِن سِحۡرِهِمۡ أَنَّهَا تَسۡعَىٰ ﴿٦٦﴾

(मूसा ने) कहा : बल्कि तुम्हीं फेंको। फिर उनकी रस्सियाँ तथा लाठियाँ, उसकी कल्पना में आता था कि उनके जादू के कारण सचमुच दौड़ रही हैं।


Arabic explanations of the Qur’an:

فَأَوۡجَسَ فِی نَفۡسِهِۦ خِیفَةࣰ مُّوسَىٰ ﴿٦٧﴾

तो मूसा ने अपने मन में एक डर महसूस किया।[18]

18. मूसा अलैहिस्सलाम को यह भय हुआ कि लोग जादूगरों के धोखे में न आ जाएँ।


Arabic explanations of the Qur’an:

قُلۡنَا لَا تَخَفۡ إِنَّكَ أَنتَ ٱلۡأَعۡلَىٰ ﴿٦٨﴾

हमने कहा : डरो मत, निश्चित रूप से तू ही प्रबल होगा।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَأَلۡقِ مَا فِی یَمِینِكَ تَلۡقَفۡ مَا صَنَعُوۤاْۖ إِنَّمَا صَنَعُواْ كَیۡدُ سَـٰحِرࣲۖ وَلَا یُفۡلِحُ ٱلسَّاحِرُ حَیۡثُ أَتَىٰ ﴿٦٩﴾

और फेंक दे, जो तेरे दाहिने हाथ में है, वह निगल जाएगा जो कुछ उन्होंने रचा है। निःसंदेह उन्होंने जो कुछ रचा है, वह जादूगर की चाल है और जादूगर जहाँ भी आए, सफल नहीं होता।


Arabic explanations of the Qur’an:

فَأُلۡقِیَ ٱلسَّحَرَةُ سُجَّدࣰا قَالُوۤاْ ءَامَنَّا بِرَبِّ هَـٰرُونَ وَمُوسَىٰ ﴿٧٠﴾

फिर जादूगर सजदे में गिर गए, उन्होंने कहा : हम हारून और मूसा के रब पर ईमान लाए।


Arabic explanations of the Qur’an:

قَالَ ءَامَنتُمۡ لَهُۥ قَبۡلَ أَنۡ ءَاذَنَ لَكُمۡۖ إِنَّهُۥ لَكَبِیرُكُمُ ٱلَّذِی عَلَّمَكُمُ ٱلسِّحۡرَۖ فَلَأُقَطِّعَنَّ أَیۡدِیَكُمۡ وَأَرۡجُلَكُم مِّنۡ خِلَـٰفࣲ وَلَأُصَلِّبَنَّكُمۡ فِی جُذُوعِ ٱلنَّخۡلِ وَلَتَعۡلَمُنَّ أَیُّنَاۤ أَشَدُّ عَذَابࣰا وَأَبۡقَىٰ ﴿٧١﴾

उसने कहा : तुम उसपर ईमान ले आए इससे पहले कि मैं तुम्हें अनुमति दूँ? निश्चय ही यह तुम्हारा बड़ा है, जिसने तुम्हें जादू सिखाया है। इसलिए निश्चित रूप से मैं तुम्हारे हाथ और तुम्हारे पैर विपरीत दिशा[19] से बुरी तरह काट दूँगा, और अवश्य ही तुम्हें खजूर के तनों पर सूली दूँगा तथा निश्चय ही तुम अवश्य जान लोगे कि हममें से कौन अधिक कठोर एवं स्थायी यातना देने वाला है।

19. अर्थात दाहिना हाथ और बायाँ पैर अथवा बायाँ हाथ और दाहिना पैर।


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قَالُواْ لَن نُّؤۡثِرَكَ عَلَىٰ مَا جَاۤءَنَا مِنَ ٱلۡبَیِّنَـٰتِ وَٱلَّذِی فَطَرَنَاۖ فَٱقۡضِ مَاۤ أَنتَ قَاضٍۖ إِنَّمَا تَقۡضِی هَـٰذِهِ ٱلۡحَیَوٰةَ ٱلدُّنۡیَاۤ ﴿٧٢﴾

उन्होंने कहा : हम तुझे कदापि तरजीह नहीं देंगे उन स्पष्ट तर्कों पर जो हमारे पास आए हैं और उसपर, जिसने हमें पैदा किया है। अतः फैसला कर, जो तू फ़ैसला करने वाला है। तू केवल इस दुनिया के जीवन का फ़ैसला कर सकता है।


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إِنَّاۤ ءَامَنَّا بِرَبِّنَا لِیَغۡفِرَ لَنَا خَطَـٰیَـٰنَا وَمَاۤ أَكۡرَهۡتَنَا عَلَیۡهِ مِنَ ٱلسِّحۡرِۗ وَٱللَّهُ خَیۡرࣱ وَأَبۡقَىٰۤ ﴿٧٣﴾

निःसंदेह हम अपने पालनहार पर ईमान लाए हैं, ताकि वह हमारे लिए हमारे पापों और जादू के उन कामों को क्षमा कर दे, जो तूने हमें करने के लिए मजबूर किया है और अल्लाह सर्वोत्तम और सदा रहने वाला है।[20]

20. और तेरा राज्य तथा जीवन तो सामयिक है।


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إِنَّهُۥ مَن یَأۡتِ رَبَّهُۥ مُجۡرِمࣰا فَإِنَّ لَهُۥ جَهَنَّمَ لَا یَمُوتُ فِیهَا وَلَا یَحۡیَىٰ ﴿٧٤﴾

निःसंदेह तथ्य यह है कि जो अपने पालनहार के पास अपराधी बनकर आएगा, तो निश्चित रूप से उसी के लिए नरक है, जिसमें न वह मरेगा और न जिएगा।


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وَمَن یَأۡتِهِۦ مُؤۡمِنࣰا قَدۡ عَمِلَ ٱلصَّـٰلِحَـٰتِ فَأُوْلَـٰۤىِٕكَ لَهُمُ ٱلدَّرَجَـٰتُ ٱلۡعُلَىٰ ﴿٧٥﴾

तथा जो उसके पास मोमिन बनकर आएगा कि उसने अच्छे कर्म किए होंगे, तो यही लोग हैं जिनके लिए सर्वोच्च पद हैं।


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جَنَّـٰتُ عَدۡنࣲ تَجۡرِی مِن تَحۡتِهَا ٱلۡأَنۡهَـٰرُ خَـٰلِدِینَ فِیهَاۚ وَذَ ٰ⁠لِكَ جَزَاۤءُ مَن تَزَكَّىٰ ﴿٧٦﴾

स्थायी निवास के बाग़, जिनके नीचे से नहरें बहती हैं, उनमें हमेशा के लिए रहने वाले हैं और यह उसका प्रतिफल है, जो पवित्र हुआ।


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وَلَقَدۡ أَوۡحَیۡنَاۤ إِلَىٰ مُوسَىٰۤ أَنۡ أَسۡرِ بِعِبَادِی فَٱضۡرِبۡ لَهُمۡ طَرِیقࣰا فِی ٱلۡبَحۡرِ یَبَسࣰا لَّا تَخَـٰفُ دَرَكࣰا وَلَا تَخۡشَىٰ ﴿٧٧﴾

और निश्चय ही हमने मूसा की ओर वह़्य की कि मेरे बंदो को रातों-रात ले जा, फिर उनके लिए समुद्र में एक सूखा मार्ग बना,[21] न तू पकड़े जाने से भय खाएगा और न डरेगा।

21. इसका सविस्तार वर्णन सूरतुश शुअरा : 26 में आ रहा है।


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فَأَتۡبَعَهُمۡ فِرۡعَوۡنُ بِجُنُودِهِۦ فَغَشِیَهُم مِّنَ ٱلۡیَمِّ مَا غَشِیَهُمۡ ﴿٧٨﴾

फिर फ़िरऔन ने अपनी सेना के साथ उनका पीछा किया, तो उन्हें समुद्र से उस चीज़ ने ढाँप लिया जिसने उन्हें ढाँप लिया।


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وَأَضَلَّ فِرۡعَوۡنُ قَوۡمَهُۥ وَمَا هَدَىٰ ﴿٧٩﴾

और फ़िरऔन ने अपनी क़ौम को गुमराह किया और उन्हें सीधे रास्ते पर न चलाया।


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یَـٰبَنِیۤ إِسۡرَ ٰ⁠ۤءِیلَ قَدۡ أَنجَیۡنَـٰكُم مِّنۡ عَدُوِّكُمۡ وَوَ ٰ⁠عَدۡنَـٰكُمۡ جَانِبَ ٱلطُّورِ ٱلۡأَیۡمَنَ وَنَزَّلۡنَا عَلَیۡكُمُ ٱلۡمَنَّ وَٱلسَّلۡوَىٰ ﴿٨٠﴾

ऐ बनी इसराईल! निःसंदेह हमने तुम्हें तुम्हारे शत्रुओं से छुड़ाया और तुम्हें पर्वत के दाहिनी ओर[22] का वचन दिया और तुमपर 'मन्न' और 'सल्वा' उतारा।[23]

22. अर्ताथ तुमपर तौरात उतारने के लिए। 23. मन्न तथा सल्वा के भाष्य के लिये देखिए : सूरतुल-बक़रा, आयत : 57


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كُلُواْ مِن طَیِّبَـٰتِ مَا رَزَقۡنَـٰكُمۡ وَلَا تَطۡغَوۡاْ فِیهِ فَیَحِلَّ عَلَیۡكُمۡ غَضَبِیۖ وَمَن یَحۡلِلۡ عَلَیۡهِ غَضَبِی فَقَدۡ هَوَىٰ ﴿٨١﴾

खाओ उन पवित्र चीज़ों में से, जो हमने तुम्हें प्रदान की हैं तथा उनमें हद से न बढ़ो। अन्यथा तुमपर मेरा प्रकोप उतरेगा और जिसपर मेरा प्रकोप उतरा, तो निश्चय उसका सर्वनाश हो गया।


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وَإِنِّی لَغَفَّارࣱ لِّمَن تَابَ وَءَامَنَ وَعَمِلَ صَـٰلِحࣰا ثُمَّ ٱهۡتَدَىٰ ﴿٨٢﴾

और निःसंदेह मैं निश्चय उसको बहुत क्षमा करने वाला हूँ, जो तौबा करे और ईमान लाए और अच्छा कर्म करे, फिर सीधे मार्ग पर चले।


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۞ وَمَاۤ أَعۡجَلَكَ عَن قَوۡمِكَ یَـٰمُوسَىٰ ﴿٨٣﴾

और तुझे तेरी जाति से जल्दी क्या चीज़ ले आई ऐ मूसा!?[24]

24. अर्थात तुम पर्वत की दाहिनी ओर अपनी जाति से पहले क्यों आ गए और उन्हें पीछे क्यों छोड़ दिया?


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قَالَ هُمۡ أُوْلَاۤءِ عَلَىٰۤ أَثَرِی وَعَجِلۡتُ إِلَیۡكَ رَبِّ لِتَرۡضَىٰ ﴿٨٤﴾

उसने कहा : वे मेरे पीछे ही हैं और मैं तेरी ओर जल्दी आ गया, ऐ मेरे पालनहार! ताकि तू प्रसन्न हो जाए।


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قَالَ فَإِنَّا قَدۡ فَتَنَّا قَوۡمَكَ مِنۢ بَعۡدِكَ وَأَضَلَّهُمُ ٱلسَّامِرِیُّ ﴿٨٥﴾

(अल्लाह ने) फरमाया : तो निश्चय हमने तेरे पीछे तेरी जाति के लोगों को परीक्षा में डाल दिया है और सामिरी ने उन्हें पथभ्रष्ट कर दिया है।


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فَرَجَعَ مُوسَىٰۤ إِلَىٰ قَوۡمِهِۦ غَضۡبَـٰنَ أَسِفࣰاۚ قَالَ یَـٰقَوۡمِ أَلَمۡ یَعِدۡكُمۡ رَبُّكُمۡ وَعۡدًا حَسَنًاۚ أَفَطَالَ عَلَیۡكُمُ ٱلۡعَهۡدُ أَمۡ أَرَدتُّمۡ أَن یَحِلَّ عَلَیۡكُمۡ غَضَبࣱ مِّن رَّبِّكُمۡ فَأَخۡلَفۡتُم مَّوۡعِدِی ﴿٨٦﴾

फिर मूसा ग़ुस्से से भरा हुआ, खेद में डूबा हुआ अपनी जाति की ओर वापस आया। उसने कहा : ऐ मेरी जाति के लोगो! क्या तुम्हारे रब ने तुम्हें अच्छा वादा नहीं दिया था?[25] तो क्या वह अवधि तुम पर लंबी हो गई,[26] या तुमने चाहा कि तुमपर तुम्हारे रब का कोई प्रकोप उतरे? तो तुमने मेरा वादा[27] तोड़ दिया।

25. अर्थात धर्म-पुस्तक तौरात देने का वादा। 26. अर्थात वादा की अवधि दीर्घ प्रतीत होने लगी। 27. अर्थात मेरे वापस आने तक, अल्लाह की इबादत पर स्थिर रहने की जो प्रतिज्ञा की थी।


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قَالُواْ مَاۤ أَخۡلَفۡنَا مَوۡعِدَكَ بِمَلۡكِنَا وَلَـٰكِنَّا حُمِّلۡنَاۤ أَوۡزَارࣰا مِّن زِینَةِ ٱلۡقَوۡمِ فَقَذَفۡنَـٰهَا فَكَذَ ٰ⁠لِكَ أَلۡقَى ٱلسَّامِرِیُّ ﴿٨٧﴾

उन्होंने कहा : हमने अपने अधिकार से आपके वचन का उल्लंघन नहीं किया, लेकिन लोगों[28] के गहनों का कुछ बोझ हमपर लाद दिया गया था, तो हमने उन्हें फेंक[29] दिया और ऐसे ही सामिरी[30] ने फेंक दिया।

28. इससे अभिप्रेत फ़िरऔन की जाति है, जिनके आभूषण उन्होंने उधार ले रखे थे। 29. अर्थात अपने पास रखना नहीं चाहा, और एक अग्नि कुंड में फेंक दिया। 30. अर्थात जो कुछ उसके पास था।


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فَأَخۡرَجَ لَهُمۡ عِجۡلࣰا جَسَدࣰا لَّهُۥ خُوَارࣱ فَقَالُواْ هَـٰذَاۤ إِلَـٰهُكُمۡ وَإِلَـٰهُ مُوسَىٰ فَنَسِیَ ﴿٨٨﴾

फिर उसने[31] उनके लिए एक बछड़ा निकाला, जो मात्र शरीर था, जिसकी गाय की सी आवाज़ थी। तो उन्होंने कहा : यही तुम्हारा पूज्य तथा मूसा का पूज्य है, सो वह भूल गया है।

31. अर्थात सामिरी ने आभूषणों को पिघला कर बछड़ा बना लिया।


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أَفَلَا یَرَوۡنَ أَلَّا یَرۡجِعُ إِلَیۡهِمۡ قَوۡلࣰا وَلَا یَمۡلِكُ لَهُمۡ ضَرࣰّا وَلَا نَفۡعࣰا ﴿٨٩﴾

तो क्या वे देखते नहीं कि वह न उनकी किसी बात का उत्तर देता है और न वह उनके किसी नुक़सान का मालिक है और न किसी लाभ का।[32]

32. फिर वह पूज्य कैसे हो सकता है?


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وَلَقَدۡ قَالَ لَهُمۡ هَـٰرُونُ مِن قَبۡلُ یَـٰقَوۡمِ إِنَّمَا فُتِنتُم بِهِۦۖ وَإِنَّ رَبَّكُمُ ٱلرَّحۡمَـٰنُ فَٱتَّبِعُونِی وَأَطِیعُوۤاْ أَمۡرِی ﴿٩٠﴾

और निःसंदेह हारून उनसे पहले ही कह चुका था : ऐ मेरी जाति के लोगो! बात यह है कि इसके द्वारा तुम्हारी परीक्षा की गई है और निश्चय तुम्हारा पालनहार रहमान (अत्यंत दयावान् अल्लाह) ही है। अतः मेरा अनुसरण करो तथा मेरे आदेश का पालन करो।


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قَالُواْ لَن نَّبۡرَحَ عَلَیۡهِ عَـٰكِفِینَ حَتَّىٰ یَرۡجِعَ إِلَیۡنَا مُوسَىٰ ﴿٩١﴾

उन्होंने कहा : हम इसी पर जमें बैठे रहेंगे, यहाँ तक कि मूसा हमारे पास वापस आ जाए।


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قَالَ یَـٰهَـٰرُونُ مَا مَنَعَكَ إِذۡ رَأَیۡتَهُمۡ ضَلُّوۤاْ ﴿٩٢﴾

(मूसा ने) कहा : ऐ हारून! तुझे किस बात ने रोका, जब तूने उन्हें देखा कि वे पथभ्रष्ट हो गए हैं?


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أَلَّا تَتَّبِعَنِۖ أَفَعَصَیۡتَ أَمۡرِی ﴿٩٣﴾

कि तू मेरा अनुसरण न करे? तो क्या तूने मेरे आदेश की अवहेलना की?


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قَالَ یَبۡنَؤُمَّ لَا تَأۡخُذۡ بِلِحۡیَتِی وَلَا بِرَأۡسِیۤۖ إِنِّی خَشِیتُ أَن تَقُولَ فَرَّقۡتَ بَیۡنَ بَنِیۤ إِسۡرَ ٰ⁠ۤءِیلَ وَلَمۡ تَرۡقُبۡ قَوۡلِی ﴿٩٤﴾

उसने कहा : ऐ मेरी माँ के बेटे! न मेरी दाढ़ी पकड़ और न मेरा सिर। मैं तो इससे डरा कि तू कहेगा : तूने बनी इसराईल में फूट डाल दी और मेरी बात की प्रतीक्षा नहीं की।


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قَالَ فَمَا خَطۡبُكَ یَـٰسَـٰمِرِیُّ ﴿٩٥﴾

(मूसा ने) कहा : तो ऐ सामिरी! तोरा मामला क्या है?


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قَالَ بَصُرۡتُ بِمَا لَمۡ یَبۡصُرُواْ بِهِۦ فَقَبَضۡتُ قَبۡضَةࣰ مِّنۡ أَثَرِ ٱلرَّسُولِ فَنَبَذۡتُهَا وَكَذَ ٰ⁠لِكَ سَوَّلَتۡ لِی نَفۡسِی ﴿٩٦﴾

उसने कहा : मैंने वह चीज़ देखी, जो इन लोगों नहीं देखी, तो मैंने रसूल के पदचिह्न से एक मुट्ठी उठाली, फिर मैंने उसे डाल दिया और मेरे दिल ने इसी तरह करना मेरे लिए सुसज्जित कर दिया।[33]

33. अधिकांश भाष्यकारों ने रसूल से अभिप्राय जिबरील (फ़रिश्ता) लिया है। अर्थ यह है कि सामिरी ने यह बात बनाई कि जब उसने फ़िरऔन और उसकी सेना के डूबने के समय जिबरील (अलैहिस्सलाम) को घोड़े पर सवार वहाँ देखा, तो उन के घोड़े के पद्चिह्न की मिट्टी रख ली। और जब सोने का बछड़ा बनाकर उस धूल को उसपर फेंक दिया, तो उसके प्रभाव से उसमें से एक प्रकार की आवाज़ निकलने लगी, जो उनके कुपथ होने का कारण बनी।


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قَالَ فَٱذۡهَبۡ فَإِنَّ لَكَ فِی ٱلۡحَیَوٰةِ أَن تَقُولَ لَا مِسَاسَۖ وَإِنَّ لَكَ مَوۡعِدࣰا لَّن تُخۡلَفَهُۥۖ وَٱنظُرۡ إِلَىٰۤ إِلَـٰهِكَ ٱلَّذِی ظَلۡتَ عَلَیۡهِ عَاكِفࣰاۖ لَّنُحَرِّقَنَّهُۥ ثُمَّ لَنَنسِفَنَّهُۥ فِی ٱلۡیَمِّ نَسۡفًا ﴿٩٧﴾

(मूसा ने) कहा : "बस चला जा, निःसंदेह तेरे लिए जीवन भर यह है कि तू कहता रहे : मुझे स्पर्श न करना।[1] और निःसंदेह तेरे लिए एक और भी वादा[2] है, जो तुझसे कदापि न टलेगा। तथा अपने पूज्य को देख, जिसका तू पुजारी बना रहा, निश्चय हम उसे अवश्य अच्छी तरह जलाएँगे, फिर निश्चय ही उसे समुद्र में अच्छी तरह से उड़ा देंगे।

34. अर्थात मेरे समीप न आना और न मुझे छूना, मैं अछूत हूँ। 35. अर्थात परलोक की यातना का।


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إِنَّمَاۤ إِلَـٰهُكُمُ ٱللَّهُ ٱلَّذِی لَاۤ إِلَـٰهَ إِلَّا هُوَۚ وَسِعَ كُلَّ شَیۡءٍ عِلۡمࣰا ﴿٩٨﴾

तुम्हारा पूज्य तो अल्लाह ही है, जिसके अलावा कोई पूज्य नहीं, उसने हर चीज को ज्ञान से घेर रखा है।


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كَذَ ٰ⁠لِكَ نَقُصُّ عَلَیۡكَ مِنۡ أَنۢبَاۤءِ مَا قَدۡ سَبَقَۚ وَقَدۡ ءَاتَیۡنَـٰكَ مِن لَّدُنَّا ذِكۡرࣰا ﴿٩٩﴾

इसी प्रकार हम आपको कुछ ऐसी ख़बरें सुनाते हैं जो गुज़र चुकी हैं और निःसंदेह हमने आपको अपनी तरफ़ से एक नसीहत प्रदान की है।


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مَّنۡ أَعۡرَضَ عَنۡهُ فَإِنَّهُۥ یَحۡمِلُ یَوۡمَ ٱلۡقِیَـٰمَةِ وِزۡرًا ﴿١٠٠﴾

जो उससे मुँह फेरेगा, तो निश्चय ही वह क़ियामत के दिन एक भारी[36] बोझ उठाएगा।

36. अर्थात पापों का बोझ।


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خَـٰلِدِینَ فِیهِۖ وَسَاۤءَ لَهُمۡ یَوۡمَ ٱلۡقِیَـٰمَةِ حِمۡلࣰا ﴿١٠١﴾

वे उसमें हमेशा रहने वाले होंगे और क़ियामत के दिन वह उनके लिए बुरा बोझ होगा।


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یَوۡمَ یُنفَخُ فِی ٱلصُّورِۚ وَنَحۡشُرُ ٱلۡمُجۡرِمِینَ یَوۡمَىِٕذࣲ زُرۡقࣰا ﴿١٠٢﴾

जिस दिन सूर[37] में फूँका जाएगा और हम अपराधियों को उस दिन इस दशा में इकट्ठा करेंगे कि नीली आँखों वाले होंगे।

37. "सूर" का अर्थ नरसिंघा है, जिसमें अल्लाह के आदेश से एक फ़रिश्ता इसराफ़ील अलैहिस्सलाम फूँकेगा, और प्रलय आ जाएगी। (मुसनद अह़्मद : 2191) और पुनः फूँकेगा तो सब जीवित होकर हश्र के मैदान में आ जाएँगे।


Arabic explanations of the Qur’an:

یَتَخَـٰفَتُونَ بَیۡنَهُمۡ إِن لَّبِثۡتُمۡ إِلَّا عَشۡرࣰا ﴿١٠٣﴾

वे आपस में चुपके-चुपके कह रहे होंगे, तुम (संसार में) दस दिन के सिवा नहीं ठहरे।


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نَّحۡنُ أَعۡلَمُ بِمَا یَقُولُونَ إِذۡ یَقُولُ أَمۡثَلُهُمۡ طَرِیقَةً إِن لَّبِثۡتُمۡ إِلَّا یَوۡمࣰا ﴿١٠٤﴾

हम अधिक जानने वाले हैं जो कुछ वे कह रहे होंगे, जब उनका सबसे समझदार व्यक्ति कह रहा होगा कि तुम केवल एक दिन ठहरे हो।


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وَیَسۡـَٔلُونَكَ عَنِ ٱلۡجِبَالِ فَقُلۡ یَنسِفُهَا رَبِّی نَسۡفࣰا ﴿١٠٥﴾

वे आपसे पहाड़ों के विषय में पूछते हैं। आप कह दें कि मेरा पालनहार उन्हें उड़ाकर तितर-बितर कर देगा।


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فَیَذَرُهَا قَاعࣰا صَفۡصَفࣰا ﴿١٠٦﴾

फिर धरती को एक समतल मैदान बनाकर छोड़ेगा।


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لَّا تَرَىٰ فِیهَا عِوَجࣰا وَلَاۤ أَمۡتࣰا ﴿١٠٧﴾

तुम उसमें कोई टेढ़ापन और नीच-ऊँच नहीं देखोगे।


Arabic explanations of the Qur’an:

یَوۡمَىِٕذࣲ یَتَّبِعُونَ ٱلدَّاعِیَ لَا عِوَجَ لَهُۥۖ وَخَشَعَتِ ٱلۡأَصۡوَاتُ لِلرَّحۡمَـٰنِ فَلَا تَسۡمَعُ إِلَّا هَمۡسࣰا ﴿١٠٨﴾

उस दिन वे पुकारने वाले का अनुसरण करेंगे, उसका अनुसरण करने से कोई विमुख नहीं होगा, और सभी आवाजें रहमान के लिए धीमी हो जाएँगी, फिर तुम एक बहुत ही धीमी आवाज के अलावा कुछ भी नहीं सुनोगे।


Arabic explanations of the Qur’an:

یَوۡمَىِٕذࣲ لَّا تَنفَعُ ٱلشَّفَـٰعَةُ إِلَّا مَنۡ أَذِنَ لَهُ ٱلرَّحۡمَـٰنُ وَرَضِیَ لَهُۥ قَوۡلࣰا ﴿١٠٩﴾

उस दिन सिफ़ारिश लाभ नहीं देगी, परंतु जिसके लिए रहमान अनुज्ञा दे और जिसके लिए वह बात करना पसंद करे।


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یَعۡلَمُ مَا بَیۡنَ أَیۡدِیهِمۡ وَمَا خَلۡفَهُمۡ وَلَا یُحِیطُونَ بِهِۦ عِلۡمࣰا ﴿١١٠﴾

वह जानता है जो कुछ उनके आगे है और जो कुछ उनके पीछे है और वे उसे अपने ज्ञान के घेरे में नहीं ला सकते।


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۞ وَعَنَتِ ٱلۡوُجُوهُ لِلۡحَیِّ ٱلۡقَیُّومِۖ وَقَدۡ خَابَ مَنۡ حَمَلَ ظُلۡمࣰا ﴿١١١﴾

तथा सभी चेहरे उस जीवित रहने वाले, क़ायम रखने वाले लिए झुक जाएँगे और निश्चय विफल हो गया, जिसने अत्याचार का बोझ[38] उठाया।

38. संसार में किसी पर अत्याचार, तथा अल्लाह के साथ शिर्क किया।


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وَمَن یَعۡمَلۡ مِنَ ٱلصَّـٰلِحَـٰتِ وَهُوَ مُؤۡمِنࣱ فَلَا یَخَافُ ظُلۡمࣰا وَلَا هَضۡمࣰا ﴿١١٢﴾

तथा जो व्यक्ति नेक काम करे और वह मोमिन हो, तो वह न किसी अत्याचार से डरेगा और न अधिकार हनन से।


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وَكَذَ ٰ⁠لِكَ أَنزَلۡنَـٰهُ قُرۡءَانًا عَرَبِیࣰّا وَصَرَّفۡنَا فِیهِ مِنَ ٱلۡوَعِیدِ لَعَلَّهُمۡ یَتَّقُونَ أَوۡ یُحۡدِثُ لَهُمۡ ذِكۡرࣰا ﴿١١٣﴾

और इसी प्रकार हमने इसे अरबी क़ुरआन बनाकर अवतरित किया तथा इसमें चेतावनी की बातें विभिन्न प्रकार से वर्णन कीं, शायद कि वे डर जाएँ, अथवा यह उनके लिए कोई उपदेश पैदा कर दे।


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فَتَعَـٰلَى ٱللَّهُ ٱلۡمَلِكُ ٱلۡحَقُّۗ وَلَا تَعۡجَلۡ بِٱلۡقُرۡءَانِ مِن قَبۡلِ أَن یُقۡضَىٰۤ إِلَیۡكَ وَحۡیُهُۥۖ وَقُل رَّبِّ زِدۡنِی عِلۡمࣰا ﴿١١٤﴾

अतः सर्वोच्च है अल्लाह, जो सच्चा बादशाह है, और क़ुरआन को पढ़ने में जल्दी[39] न करें, इससे पूर्व कि आपकी ओर उसकी वह़्य पूरी की जाए तथा कहें : ऐ मेरे पालनहार! मुझे ज्ञान में बढ़ा दे।

39. जब जिबरील अलैहिस्सलाम नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास वह़्य (प्रकाशना) लाते, तो आप इस भय से कि कुछ भूल न जाएँ, उनके साथ-साथ ही पढ़ने लगते। अल्लाह ने आपको ऐसा करने से रोक दिया। इसका वर्णन सूरतुल-क़ियामा, आयत : 75 में आ रहा है।


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وَلَقَدۡ عَهِدۡنَاۤ إِلَىٰۤ ءَادَمَ مِن قَبۡلُ فَنَسِیَ وَلَمۡ نَجِدۡ لَهُۥ عَزۡمࣰا ﴿١١٥﴾

और निःसंदेह हमने इससे पहले आदम को ताकीद की, फिर वह भूल गया और हमने उसमें कोई दृढ़ संकल्प नहीं पाया ।


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وَإِذۡ قُلۡنَا لِلۡمَلَـٰۤىِٕكَةِ ٱسۡجُدُواْ لِـَٔادَمَ فَسَجَدُوۤاْ إِلَّاۤ إِبۡلِیسَ أَبَىٰ ﴿١١٦﴾

तथा जब हमने फ़रिश्तों से कहा : आदम को सजदा करो। तो उन्होंने सजदा किया, सिवाय इबलीस के, उसने इनकार किया।


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فَقُلۡنَا یَـٰۤـَٔادَمُ إِنَّ هَـٰذَا عَدُوࣱّ لَّكَ وَلِزَوۡجِكَ فَلَا یُخۡرِجَنَّكُمَا مِنَ ٱلۡجَنَّةِ فَتَشۡقَىٰۤ ﴿١١٧﴾

तो हमने कहा : निःसंदेह यह तुम्हारा और तुम्हारी पत्नी का दुश्मन है, इसलिए कहीं तुम दोनों को जन्नत से न निकलवा दे कि तुम मुसीबत में पड़ जाओगे।


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إِنَّ لَكَ أَلَّا تَجُوعَ فِیهَا وَلَا تَعۡرَىٰ ﴿١١٨﴾

निःसंदेह तुम्हारे लिए यह है कि तुम इसमें न भूखे होगे और न नग्न होगे।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَأَنَّكَ لَا تَظۡمَؤُاْ فِیهَا وَلَا تَضۡحَىٰ ﴿١١٩﴾

और यह कि निश्चय ही तुम इसमें न प्यासे होगे और न धूप खाओगा।


Arabic explanations of the Qur’an:

فَوَسۡوَسَ إِلَیۡهِ ٱلشَّیۡطَـٰنُ قَالَ یَـٰۤـَٔادَمُ هَلۡ أَدُلُّكَ عَلَىٰ شَجَرَةِ ٱلۡخُلۡدِ وَمُلۡكࣲ لَّا یَبۡلَىٰ ﴿١٢٠﴾

तो शैतान ने उसके दिल में विचार डाला, कहने लगा : ऐ आदम! क्या मैं तुम्हें अनंत जीवन का वृक्ष और ऐसा राज्य दिखाऊँ जो कभी पुराना न हो?


Arabic explanations of the Qur’an:

فَأَكَلَا مِنۡهَا فَبَدَتۡ لَهُمَا سَوۡءَ ٰ⁠ تُهُمَا وَطَفِقَا یَخۡصِفَانِ عَلَیۡهِمَا مِن وَرَقِ ٱلۡجَنَّةِۚ وَعَصَىٰۤ ءَادَمُ رَبَّهُۥ فَغَوَىٰ ﴿١٢١﴾

अंततः उन दोनों ने उसमें से खा लिया, तो उन दोनों के लिए उनके गुप्तांग प्रकट हो गए और वे दोनों अपने ऊपर जन्नत के पत्ते चिपकाने लगे और आदम ने अपने रब की अवज्ञा की, तो वह भटक गया।


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ثُمَّ ٱجۡتَبَـٰهُ رَبُّهُۥ فَتَابَ عَلَیۡهِ وَهَدَىٰ ﴿١٢٢﴾

फिर उसके रब ने उसे चुन लिया, तो उसकी तौबा क़बूल कर ली और उसे मार्गदर्शन प्रदान किया।


Arabic explanations of the Qur’an:

قَالَ ٱهۡبِطَا مِنۡهَا جَمِیعَۢاۖ بَعۡضُكُمۡ لِبَعۡضٍ عَدُوࣱّۖ فَإِمَّا یَأۡتِیَنَّكُم مِّنِّی هُدࣰى فَمَنِ ٱتَّبَعَ هُدَایَ فَلَا یَضِلُّ وَلَا یَشۡقَىٰ ﴿١٢٣﴾

फरमाया : तुम दोनों यहाँ से एक साथ उतर जाओ, तुम एक-दूसरे के शत्रु हो। फिर अगर कभी मेरी ओर से तुम्हारे पास कोई हिदायत आए, तो जो कोई मेरी हिदायत पर चला, तो न वह भटकेगा और न मुसीबत में पड़ेगा।


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وَمَنۡ أَعۡرَضَ عَن ذِكۡرِی فَإِنَّ لَهُۥ مَعِیشَةࣰ ضَنكࣰا وَنَحۡشُرُهُۥ یَوۡمَ ٱلۡقِیَـٰمَةِ أَعۡمَىٰ ﴿١٢٤﴾

तथा जिसने मेरी नसीहत से मुँह फेरा, तो निःसंदेह उसके लिए तंग[40] जीवन है और हम उसे क़ियामत के दिन अंधा करके उठाएँगे।

40. अर्थात वह संसार में धनी हो, तब भी उसे संतोष नहीं होगा। और सदा चिंतित और व्याकुल रहेगा।


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قَالَ رَبِّ لِمَ حَشَرۡتَنِیۤ أَعۡمَىٰ وَقَدۡ كُنتُ بَصِیرࣰا ﴿١٢٥﴾

वह कहेगा : ऐ मेरे पालनहार! तूने मुझे अंधा करके क्यों उठाया? हालाँकि, मैं तो देखने वाला था।


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قَالَ كَذَ ٰ⁠لِكَ أَتَتۡكَ ءَایَـٰتُنَا فَنَسِیتَهَاۖ وَكَذَ ٰ⁠لِكَ ٱلۡیَوۡمَ تُنسَىٰ ﴿١٢٦﴾

(अल्लाह) फरमाएगा : इसी प्रकार तेरे पास हमारी आयतें आईं, तो तू उन्हें भूल गया और इसी प्रकार आज तू भुलाया जाएगा।


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وَكَذَ ٰ⁠لِكَ نَجۡزِی مَنۡ أَسۡرَفَ وَلَمۡ یُؤۡمِنۢ بِـَٔایَـٰتِ رَبِّهِۦۚ وَلَعَذَابُ ٱلۡـَٔاخِرَةِ أَشَدُّ وَأَبۡقَىٰۤ ﴿١٢٧﴾

तथा इसी प्रकार हम उस व्यक्ति को बदला देते हैं, जो हद से बढ़ जाए और अपने पालनहार की आयतों पर ईमान न लाए और निश्चय आख़िरत की यातना अधिक कठोर और अधिक स्थायी है।


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أَفَلَمۡ یَهۡدِ لَهُمۡ كَمۡ أَهۡلَكۡنَا قَبۡلَهُم مِّنَ ٱلۡقُرُونِ یَمۡشُونَ فِی مَسَـٰكِنِهِمۡۚ إِنَّ فِی ذَ ٰ⁠لِكَ لَـَٔایَـٰتࣲ لِّأُوْلِی ٱلنُّهَىٰ ﴿١٢٨﴾

फिर क्या इस बात ने उन्हें मार्गदर्शन नहीं दिया कि हमने उनसे पहले कितने ही समुदायों को विनष्ट कर दिया, जिनके घरों में वे चलते-फिरते हैं। निःसंदेह इसमें बुद्धियों वालों के लिए निश्चय बहुत-सी निशानियाँ हैं।


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وَلَوۡلَا كَلِمَةࣱ سَبَقَتۡ مِن رَّبِّكَ لَكَانَ لِزَامࣰا وَأَجَلࣱ مُّسَمࣰّى ﴿١٢٩﴾

और यदि वह बात न होती जो तुम्हारे पालनहार की ओर से पहले निश्चित हो चुकी और एक नियत समय न होता, तो वही (अगले लोगों का अज़ाब) आवश्यक हो जाता।[41]

41. आयत का भावार्थ यह है कि अल्लाह का यह निर्णय है कि वह किसी जाति का उसके विरुद्ध तर्क तथा उसकी निश्चित अवधि पूरी होने पर ही विनाश करता है, यदि यह बात न होती तो इन मक्का के मिश्रणवादियों पर यातना आ चुकी होती।


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فَٱصۡبِرۡ عَلَىٰ مَا یَقُولُونَ وَسَبِّحۡ بِحَمۡدِ رَبِّكَ قَبۡلَ طُلُوعِ ٱلشَّمۡسِ وَقَبۡلَ غُرُوبِهَاۖ وَمِنۡ ءَانَاۤىِٕ ٱلَّیۡلِ فَسَبِّحۡ وَأَطۡرَافَ ٱلنَّهَارِ لَعَلَّكَ تَرۡضَىٰ ﴿١٣٠﴾

अतः जो कुछ वे कहते हैं, उसपर सब्र करें तथा सूर्य उगने से पहले[42] और उसके डूबने से पहले[43] अपने पालनहार की प्रशंसा के साथ उसकी पवित्रता बयान करें, और रात की कुछ घड़ियों[44] में भी पवित्रता बयान करें, और दिन के किनारों[45] में, ताकि आप प्रसन्न हो जाएँ।

42. अर्थात फ़ज्र की नमाज में। 43. अर्थात अस्र की नमाज़ में। 44. अर्थात इशा की नमाज़ में। 45. अर्थात ज़ुह्र तथा मग़्रिब की नमाज़ में।


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وَلَا تَمُدَّنَّ عَیۡنَیۡكَ إِلَىٰ مَا مَتَّعۡنَا بِهِۦۤ أَزۡوَ ٰ⁠جࣰا مِّنۡهُمۡ زَهۡرَةَ ٱلۡحَیَوٰةِ ٱلدُّنۡیَا لِنَفۡتِنَهُمۡ فِیهِۚ وَرِزۡقُ رَبِّكَ خَیۡرࣱ وَأَبۡقَىٰ ﴿١٣١﴾

और अपनी आँखों को उन चीज़ों की ओर कदापि न उठाएँ जो हमने उनके[46] विभिन्न प्रकार के लोगों को सांसारिक जीवन के लिए आभूषण के रूप में उपयोग करने के लिए दी हैं, ताकि हम उसमें उनकी परीक्षा लें, और आपके पालनहार का दिया[47] हुआ सबसे अच्छा और सबसे अधिक स्थायी है।

46. अर्थात मिश्रणवादियों के। 47. अर्थात प्रलोक का प्रतिफल।


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وَأۡمُرۡ أَهۡلَكَ بِٱلصَّلَوٰةِ وَٱصۡطَبِرۡ عَلَیۡهَاۖ لَا نَسۡـَٔلُكَ رِزۡقࣰاۖ نَّحۡنُ نَرۡزُقُكَۗ وَٱلۡعَـٰقِبَةُ لِلتَّقۡوَىٰ ﴿١٣٢﴾

और आप अपने घरवालों को नमाज़ का आदेश दें और स्वयं भी उसपर स्थित रहें, हम आपसे कोई जीविका नहीं माँगते, हम ही आपको जीविका प्रदान करते हैं और अच्छा परिणाम परहेज़गारी का है।


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وَقَالُواْ لَوۡلَا یَأۡتِینَا بِـَٔایَةࣲ مِّن رَّبِّهِۦۤۚ أَوَلَمۡ تَأۡتِهِم بَیِّنَةُ مَا فِی ٱلصُّحُفِ ٱلۡأُولَىٰ ﴿١٣٣﴾

तथा उन्होंने कहा : यह हमारे पास अपने रब की ओर से कोई निशानी क्यों नहीं लाता? और क्या उनके पास वह स्पष्ट प्रमाण नहीं आया जो पहली किताबों में है?


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وَلَوۡ أَنَّاۤ أَهۡلَكۡنَـٰهُم بِعَذَابࣲ مِّن قَبۡلِهِۦ لَقَالُواْ رَبَّنَا لَوۡلَاۤ أَرۡسَلۡتَ إِلَیۡنَا رَسُولࣰا فَنَتَّبِعَ ءَایَـٰتِكَ مِن قَبۡلِ أَن نَّذِلَّ وَنَخۡزَىٰ ﴿١٣٤﴾

और यदि हम वास्तव में उन्हें इससे पहले किसी अज़ाब से विनष्ट कर देते, तो ये लोग अवश्य कहते : ऐ हमारे रब! तूने हमारी ओर कोई रसूल क्यों नहीं भेजा कि हम तेरी आयतों की पैरवी करते, इससे[48] पहले कि हम ज़लील और रुसवा हों?

48. अर्थात नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम और क़ुरआन के आने से पहले।


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قُلۡ كُلࣱّ مُّتَرَبِّصࣱ فَتَرَبَّصُواْۖ فَسَتَعۡلَمُونَ مَنۡ أَصۡحَـٰبُ ٱلصِّرَ ٰ⁠طِ ٱلسَّوِیِّ وَمَنِ ٱهۡتَدَىٰ ﴿١٣٥﴾

आप कह दें : हर एक प्रतीक्षारत है। अतः तुम (भी) प्रतीक्षा करो। फिर शीघ्र ही तुम जान लोगे कि सीधे मार्ग वाले कौन हैं और कौन है जिसे मार्गदर्शन प्राप्त हुआ।


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