Surah सूरा अल्-मुमिनून - Al-Mu’minūn

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Surah सूरा अल्-मुमिनून - Al-Mu’minūn - Aya count 118

قَدۡ أَفۡلَحَ ٱلۡمُؤۡمِنُونَ ﴿١﴾

निश्चय सफल हो गए ईमान वाले।


Arabic explanations of the Qur’an:

ٱلَّذِینَ هُمۡ فِی صَلَاتِهِمۡ خَـٰشِعُونَ ﴿٢﴾

जो अपनी नमाज़ में विनम्रता अपनाने वाले हैं।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَٱلَّذِینَ هُمۡ عَنِ ٱللَّغۡوِ مُعۡرِضُونَ ﴿٣﴾

और जो व्यर्थ चीज़ों[1] से मुँह मोड़ने वाले हैं।

1. अर्थात प्रत्येक व्यर्थ कार्य तथा कथन से। आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : जो अल्लाह और प्रलय के दिन पर ईमान रखता है, वह अच्छी बात बोले, अन्यथा चुप रहे। (सह़ीह़ बुख़ारी : 6019, मुस्लिम : 48)


Arabic explanations of the Qur’an:

وَٱلَّذِینَ هُمۡ لِلزَّكَوٰةِ فَـٰعِلُونَ ﴿٤﴾

तथा जो ज़कात अदा करने वाले हैं।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَٱلَّذِینَ هُمۡ لِفُرُوجِهِمۡ حَـٰفِظُونَ ﴿٥﴾

और जो अपने गुप्तांगों की रक्षा करने वाले हैं।


Arabic explanations of the Qur’an:

إِلَّا عَلَىٰۤ أَزۡوَ ٰ⁠جِهِمۡ أَوۡ مَا مَلَكَتۡ أَیۡمَـٰنُهُمۡ فَإِنَّهُمۡ غَیۡرُ مَلُومِینَ ﴿٦﴾

सिवाय अपनी पत्नियों या उन महिलाओं के जो उनके स्वामित्व में हैं, तो निःसंदेह वे निंदित नहीं हैं।


Arabic explanations of the Qur’an:

فَمَنِ ٱبۡتَغَىٰ وَرَاۤءَ ذَ ٰ⁠لِكَ فَأُوْلَـٰۤىِٕكَ هُمُ ٱلۡعَادُونَ ﴿٧﴾

फिर जो इसके अलावा तलाश करे, तो वही लोग सीमा का उल्लंघन करने वाले हैं।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَٱلَّذِینَ هُمۡ لِأَمَـٰنَـٰتِهِمۡ وَعَهۡدِهِمۡ رَ ٰ⁠عُونَ ﴿٨﴾

और जो अपनी अमानतों तथा अपनी प्रतिज्ञा का ध्यान रखने वाले हैं।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَٱلَّذِینَ هُمۡ عَلَىٰ صَلَوَ ٰ⁠تِهِمۡ یُحَافِظُونَ ﴿٩﴾

तथा जो अपनी नमाज़ों की रक्षा करते हैं।


Arabic explanations of the Qur’an:

أُوْلَـٰۤىِٕكَ هُمُ ٱلۡوَ ٰ⁠رِثُونَ ﴿١٠﴾

यही लोग हैं, जो वारिस (उत्तराधिकारी) हैं।


Arabic explanations of the Qur’an:

ٱلَّذِینَ یَرِثُونَ ٱلۡفِرۡدَوۡسَ هُمۡ فِیهَا خَـٰلِدُونَ ﴿١١﴾

जो फ़िरदौस[2] के वारिस होंगे, वे उसमें हमेशा रहने वाले हैं।

2. फ़िरदौस, स्वर्ग का सर्वोच्च स्थान है।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَلَقَدۡ خَلَقۡنَا ٱلۡإِنسَـٰنَ مِن سُلَـٰلَةࣲ مِّن طِینࣲ ﴿١٢﴾

और निःसंदेह हमने मनुष्य को तुच्छ मिट्टी के एक सार से पैदा किया।


Arabic explanations of the Qur’an:

ثُمَّ جَعَلۡنَـٰهُ نُطۡفَةࣰ فِی قَرَارࣲ مَّكِینࣲ ﴿١٣﴾

फिर हमने उसे वीर्य बनाकर एक सुरक्षित स्थान[3] में रखा।

3. अर्थात गर्भाशय में।


Arabic explanations of the Qur’an:

ثُمَّ خَلَقۡنَا ٱلنُّطۡفَةَ عَلَقَةࣰ فَخَلَقۡنَا ٱلۡعَلَقَةَ مُضۡغَةࣰ فَخَلَقۡنَا ٱلۡمُضۡغَةَ عِظَـٰمࣰا فَكَسَوۡنَا ٱلۡعِظَـٰمَ لَحۡمࣰا ثُمَّ أَنشَأۡنَـٰهُ خَلۡقًا ءَاخَرَۚ فَتَبَارَكَ ٱللَّهُ أَحۡسَنُ ٱلۡخَـٰلِقِینَ ﴿١٤﴾

फिर हमने उस वीर्य को एक जमा हुआ रक्त बनाया, फिर हमने उस जमे हुए रक्त को एक बोटी बनाया, फिर हमने उस बोटी को हड्डियाँ बनाया, फिर हमने उन हड्डियों को कुछ माँस पहनाया, फिर हमने उसे एक अन्य रूप में पैदा कर दिया। तो बहुत बरकत वाला है अल्लाह, जो बनाने वालों में सबसे अच्छा है।


Arabic explanations of the Qur’an:

ثُمَّ إِنَّكُم بَعۡدَ ذَ ٰ⁠لِكَ لَمَیِّتُونَ ﴿١٥﴾

फिर निःसंदेह तुम इसके पश्चात् अवश्य मरने वाले हो।


Arabic explanations of the Qur’an:

ثُمَّ إِنَّكُمۡ یَوۡمَ ٱلۡقِیَـٰمَةِ تُبۡعَثُونَ ﴿١٦﴾

फिर निःसंदेह तुम क़ियामत के दिन उठाए जाओगे।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَلَقَدۡ خَلَقۡنَا فَوۡقَكُمۡ سَبۡعَ طَرَاۤىِٕقَ وَمَا كُنَّا عَنِ ٱلۡخَلۡقِ غَـٰفِلِینَ ﴿١٧﴾

और निःसंदेह हमने तुम्हारे ऊपर सात आकाश बनाए और हम कभी सृष्टि से ग़ाफ़िल[4] नहीं।

4. अर्थात उत्पत्ति की आवश्यकता तथा जीवन के संसाधन की व्यवस्था भी कर रहे हैं।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَأَنزَلۡنَا مِنَ ٱلسَّمَاۤءِ مَاۤءَۢ بِقَدَرࣲ فَأَسۡكَنَّـٰهُ فِی ٱلۡأَرۡضِۖ وَإِنَّا عَلَىٰ ذَهَابِۭ بِهِۦ لَقَـٰدِرُونَ ﴿١٨﴾

और हमने आकाश से एक अंदाज़े के साथ कुछ पानी उतारा, फिर उसे धरती में ठहराया और निश्चय हम उसे किसी भी तरह से ले जाने पर सामर्थ्यवान हैं।


Arabic explanations of the Qur’an:

فَأَنشَأۡنَا لَكُم بِهِۦ جَنَّـٰتࣲ مِّن نَّخِیلࣲ وَأَعۡنَـٰبࣲ لَّكُمۡ فِیهَا فَوَ ٰ⁠كِهُ كَثِیرَةࣱ وَمِنۡهَا تَأۡكُلُونَ ﴿١٩﴾

फिर हमने तुम्हारे लिए उस (पानी) के द्वारा खजूरों तथा अंगूरों के बाग़ पैदा किए। तुम्हारे लिए उनमें बहुत-से फल हैं और तुम उन्ही में से खाते हो।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَشَجَرَةࣰ تَخۡرُجُ مِن طُورِ سَیۡنَاۤءَ تَنۢبُتُ بِٱلدُّهۡنِ وَصِبۡغࣲ لِّلۡـَٔاكِلِینَ ﴿٢٠﴾

तथा वह वृक्ष भी जो 'तूर सैना' (पर्वत) से निकलता है, जो तेल लेकर उगता है तथा खाने वालों के लिए एक तरह का सालन भी।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَإِنَّ لَكُمۡ فِی ٱلۡأَنۡعَـٰمِ لَعِبۡرَةࣰۖ نُّسۡقِیكُم مِّمَّا فِی بُطُونِهَا وَلَكُمۡ فِیهَا مَنَـٰفِعُ كَثِیرَةࣱ وَمِنۡهَا تَأۡكُلُونَ ﴿٢١﴾

और निःसंदेह तुम्हारे लिए चौपायों में निश्चय बड़ी शिक्षा है। हम तुम्हें उसमें से जो उनके पेटों में[5] है, पिलाते हैं। तथा तुम्हारे लिए उनके अंदर बहुत-से लाभ हैं और उनमें से कुछ को तुम खाते हो।

5. अर्थात दूध।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَعَلَیۡهَا وَعَلَى ٱلۡفُلۡكِ تُحۡمَلُونَ ﴿٢٢﴾

तथा उनपर और नावों पर तुम सवार किए जाते हो।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَلَقَدۡ أَرۡسَلۡنَا نُوحًا إِلَىٰ قَوۡمِهِۦ فَقَالَ یَـٰقَوۡمِ ٱعۡبُدُواْ ٱللَّهَ مَا لَكُم مِّنۡ إِلَـٰهٍ غَیۡرُهُۥۤۚ أَفَلَا تَتَّقُونَ ﴿٢٣﴾

तथा निःसंदेह हमने नूह़[6] को उसकी जाति की ओर भेजा। तो उसने कहा : ऐ मेरी जाति के लोगो! अल्लाह की इबादत करो। उसके सिवा तुम्हारा कोई पूज्य नहीं। तो क्या तुम डरते नहीं?

6. यहाँ यह बताया जा रहा है कि अल्लाह ने जिस प्रकार तुम्हारे आर्थिक जीवन के साधन बनाए, उसी प्रकार तुम्हारे आत्मिक मार्गदर्शन की व्यवस्था की और रसूलों को भेजा जिनमें नूह़ अलैहिस्सलाम प्रथम रसूल थे।


Arabic explanations of the Qur’an:

فَقَالَ ٱلۡمَلَؤُاْ ٱلَّذِینَ كَفَرُواْ مِن قَوۡمِهِۦ مَا هَـٰذَاۤ إِلَّا بَشَرࣱ مِّثۡلُكُمۡ یُرِیدُ أَن یَتَفَضَّلَ عَلَیۡكُمۡ وَلَوۡ شَاۤءَ ٱللَّهُ لَأَنزَلَ مَلَـٰۤىِٕكَةࣰ مَّا سَمِعۡنَا بِهَـٰذَا فِیۤ ءَابَاۤىِٕنَا ٱلۡأَوَّلِینَ ﴿٢٤﴾

तो उनकी जाति के उन प्रमुखों ने कहा, जिन्होंने कुफ़्र किया : यह तो तुम्हारे ही जैसा एक मनुष्य है। जो चाहता है कि तुमपर वरीयता प्राप्त कर ले। और यदि अल्लाह चाहता, तो अवश्य कोई फ़रिश्ते उतार देता। हमने यह[7] अपने पहले बाप-दादा में नहीं सुना।

7. अर्थात एकेश्वरवाद की बात अपने पूर्वजों के समय में सुनी ही नहीं।


Arabic explanations of the Qur’an:

إِنۡ هُوَ إِلَّا رَجُلُۢ بِهِۦ جِنَّةࣱ فَتَرَبَّصُواْ بِهِۦ حَتَّىٰ حِینࣲ ﴿٢٥﴾

यह तो बस एक उन्मादग्रस्त व्यक्ति है। अतः एक समय तक इसके बारे में प्रतीक्षा करो।


Arabic explanations of the Qur’an:

قَالَ رَبِّ ٱنصُرۡنِی بِمَا كَذَّبُونِ ﴿٢٦﴾

उसने कहा : ऐ मेरे पालनहार! मेरी मदद कर, इसलिए कि इन्होंने मुझे झुठलाया है।


Arabic explanations of the Qur’an:

فَأَوۡحَیۡنَاۤ إِلَیۡهِ أَنِ ٱصۡنَعِ ٱلۡفُلۡكَ بِأَعۡیُنِنَا وَوَحۡیِنَا فَإِذَا جَاۤءَ أَمۡرُنَا وَفَارَ ٱلتَّنُّورُ فَٱسۡلُكۡ فِیهَا مِن كُلࣲّ زَوۡجَیۡنِ ٱثۡنَیۡنِ وَأَهۡلَكَ إِلَّا مَن سَبَقَ عَلَیۡهِ ٱلۡقَوۡلُ مِنۡهُمۡۖ وَلَا تُخَـٰطِبۡنِی فِی ٱلَّذِینَ ظَلَمُوۤاْ إِنَّهُم مُّغۡرَقُونَ ﴿٢٧﴾

तो हमने उसकी ओर वह़्य (प्रकाशना) की कि हमारी आँखों के सामने और हमारी वह़्य के अनुसार नौका बना। फिर जब हमारा आदेश आ जाए तथा तन्नूर उबल पड़े, तो प्रत्येक जीव का जोड़ा नर और मादा तथा अपने परिवार वालों को उसमें सवार कर ले, उनमें से उसके सिवाय जिसके बारे में पहले निर्णय हो चुका है। और मुझसे उनके बारे में बात न करना, जिन्होंने अत्याचार किया है। निश्चय वे डुबोए जाने वाले हैं।


Arabic explanations of the Qur’an:

فَإِذَا ٱسۡتَوَیۡتَ أَنتَ وَمَن مَّعَكَ عَلَى ٱلۡفُلۡكِ فَقُلِ ٱلۡحَمۡدُ لِلَّهِ ٱلَّذِی نَجَّىٰنَا مِنَ ٱلۡقَوۡمِ ٱلظَّـٰلِمِینَ ﴿٢٨﴾

फिर जब तू और जो तेरे साथ हैं, नाव पर बैठ जाओ, तो कह : सब प्रशंसा अल्लाह के लिए है, जिसने हमें अत्याचारी लोगों से छुटकारा दिया।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَقُل رَّبِّ أَنزِلۡنِی مُنزَلࣰا مُّبَارَكࣰا وَأَنتَ خَیۡرُ ٱلۡمُنزِلِینَ ﴿٢٩﴾

तथा तू कह : ऐ मेरे पालनहार! मुझे बरकत वाली जगह उतार और तू सब उतारने वालों से उत्तम है।


Arabic explanations of the Qur’an:

إِنَّ فِی ذَ ٰ⁠لِكَ لَـَٔایَـٰتࣲ وَإِن كُنَّا لَمُبۡتَلِینَ ﴿٣٠﴾

निःसंदेह इसमें निश्चय कई निशानियाँ हैं तथा निःसंदेह हम निश्चय परीक्षा लेने वाले[8] हैं।

8. अर्थात रसूलों के द्वारा परीक्षा लेते रहे हैं।


Arabic explanations of the Qur’an:

ثُمَّ أَنشَأۡنَا مِنۢ بَعۡدِهِمۡ قَرۡنًا ءَاخَرِینَ ﴿٣١﴾

फिर हमने उनके पश्चात् दूसरे समुदाय को पैदा किया।


Arabic explanations of the Qur’an:

فَأَرۡسَلۡنَا فِیهِمۡ رَسُولࣰا مِّنۡهُمۡ أَنِ ٱعۡبُدُواْ ٱللَّهَ مَا لَكُم مِّنۡ إِلَـٰهٍ غَیۡرُهُۥۤۚ أَفَلَا تَتَّقُونَ ﴿٣٢﴾

फिर हमने उनके अंदर उन्हीं में से एक रसूल भेजा कि अल्लाह की इबादत करो, उसके सिवा तुम्हारा कोई पूज्य नहीं। तो क्या तुम डरते नहीं?


Arabic explanations of the Qur’an:

وَقَالَ ٱلۡمَلَأُ مِن قَوۡمِهِ ٱلَّذِینَ كَفَرُواْ وَكَذَّبُواْ بِلِقَاۤءِ ٱلۡـَٔاخِرَةِ وَأَتۡرَفۡنَـٰهُمۡ فِی ٱلۡحَیَوٰةِ ٱلدُّنۡیَا مَا هَـٰذَاۤ إِلَّا بَشَرࣱ مِّثۡلُكُمۡ یَأۡكُلُ مِمَّا تَأۡكُلُونَ مِنۡهُ وَیَشۡرَبُ مِمَّا تَشۡرَبُونَ ﴿٣٣﴾

और उसकी जाति के उन प्रमुखों ने, जिन्होंने कुफ़्र किया और आख़िरत की भेंट को झुठलाया, तथा हमने उन्हें सांसारिक जीवन में सुख-समृद्धि प्रदान कर रखी थी, कहा : यह तो बस तुम्हारे ही जैसा एक इनसान है। जो उसमें से खाता है, जिसमें से तुम खाते हो और उसमें से पीता है, जो तुम पीते हो।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَلَىِٕنۡ أَطَعۡتُم بَشَرࣰا مِّثۡلَكُمۡ إِنَّكُمۡ إِذࣰا لَّخَـٰسِرُونَ ﴿٣٤﴾

और निःसंदेह यदि तुमने अपने ही जैसे एक मनुष्य का कहना मान लिया, तो निश्चय तुम उस समय अवश्य घाटा उठाने वाले होगे।


Arabic explanations of the Qur’an:

أَیَعِدُكُمۡ أَنَّكُمۡ إِذَا مِتُّمۡ وَكُنتُمۡ تُرَابࣰا وَعِظَـٰمًا أَنَّكُم مُّخۡرَجُونَ ﴿٣٥﴾

क्या यह तुमसे वादा करता है कि जब तुम मर गए और धूल तथा हड्डियाँ बन गए, तो तुम निकाले जाने वाले हो?


Arabic explanations of the Qur’an:

۞ هَیۡهَاتَ هَیۡهَاتَ لِمَا تُوعَدُونَ ﴿٣٦﴾

दूरी है, दूरी है उसके लिए जिसका तुमसे वादा किया जाता है।


Arabic explanations of the Qur’an:

إِنۡ هِیَ إِلَّا حَیَاتُنَا ٱلدُّنۡیَا نَمُوتُ وَنَحۡیَا وَمَا نَحۡنُ بِمَبۡعُوثِینَ ﴿٣٧﴾

यह (जीवन) तो बस हमारा सांसारिक जीवन है। हम (यहीं) मरते और जीते हैं। और हम कभी उठाए जाने वाले नहीं।


Arabic explanations of the Qur’an:

إِنۡ هُوَ إِلَّا رَجُلٌ ٱفۡتَرَىٰ عَلَى ٱللَّهِ كَذِبࣰا وَمَا نَحۡنُ لَهُۥ بِمُؤۡمِنِینَ ﴿٣٨﴾

यह तो बस एक व्यक्ति है, जिसने अल्लाह पर एक झूठ गढ़ लिया है और हम कदापि उसे मानने वाले नहीं हैं।


Arabic explanations of the Qur’an:

قَالَ رَبِّ ٱنصُرۡنِی بِمَا كَذَّبُونِ ﴿٣٩﴾

उसने कहा : ऐ मेरे पालनहार! मेरी मदद कर, इसलिए कि इन्होंने मुझे झुठलाया है।


Arabic explanations of the Qur’an:

قَالَ عَمَّا قَلِیلࣲ لَّیُصۡبِحُنَّ نَـٰدِمِینَ ﴿٤٠﴾

(अल्लाह ने) कहा : बहुत ही कम समय में ये अवश्य पछताएँगे।


Arabic explanations of the Qur’an:

فَأَخَذَتۡهُمُ ٱلصَّیۡحَةُ بِٱلۡحَقِّ فَجَعَلۡنَـٰهُمۡ غُثَاۤءࣰۚ فَبُعۡدࣰا لِّلۡقَوۡمِ ٱلظَّـٰلِمِینَ ﴿٤١﴾

अन्ततः उन्हें चीख़ ने सत्य के साथ आ पकड़ा। तो हमने उन्हें कूड़ा-कर्कट बना दिया। तो दूरी हो अत्याचारियों के लिए।


Arabic explanations of the Qur’an:

ثُمَّ أَنشَأۡنَا مِنۢ بَعۡدِهِمۡ قُرُونًا ءَاخَرِینَ ﴿٤٢﴾

फिर हमने उनके पश्चात् कई और युग के लोगों को पैदा किया।


Arabic explanations of the Qur’an:

مَا تَسۡبِقُ مِنۡ أُمَّةٍ أَجَلَهَا وَمَا یَسۡتَـٔۡخِرُونَ ﴿٤٣﴾

कोई समुदाय अपने निश्चित समय से न आगे बढ़ता है और न वे पीछे रहते हैं।[9]

9. अर्थात किसी जाति के विनाश का समय आ जाता है, तो एक क्षण की भी देर-सवेर नहीं होती।


Arabic explanations of the Qur’an:

ثُمَّ أَرۡسَلۡنَا رُسُلَنَا تَتۡرَاۖ كُلَّ مَا جَاۤءَ أُمَّةࣰ رَّسُولُهَا كَذَّبُوهُۖ فَأَتۡبَعۡنَا بَعۡضَهُم بَعۡضࣰا وَجَعَلۡنَـٰهُمۡ أَحَادِیثَۚ فَبُعۡدࣰا لِّقَوۡمࣲ لَّا یُؤۡمِنُونَ ﴿٤٤﴾

फिर हमने अपने रसूल निरंतर भेजे। जब कभी किसी समुदाय के पास उसका रसूल आया, तो उसके लोगों ने उसे झुठला दिया। तो हमने उनमें से कुछ को कुछ के पीछे चलता किया[10] और उन्हें कहानियाँ बना दिया। तो दूरी हो उन लोगों के लिए, जो ईमान नहीं लाते।

10. अर्थात विनाश में।


Arabic explanations of the Qur’an:

ثُمَّ أَرۡسَلۡنَا مُوسَىٰ وَأَخَاهُ هَـٰرُونَ بِـَٔایَـٰتِنَا وَسُلۡطَـٰنࣲ مُّبِینٍ ﴿٤٥﴾

फिर हमने मूसा तथा उसके भाई हारून को अपनी निशानियों तथा स्पष्ट तर्क के साथ भेजा।


Arabic explanations of the Qur’an:

إِلَىٰ فِرۡعَوۡنَ وَمَلَإِیْهِۦ فَٱسۡتَكۡبَرُواْ وَكَانُواْ قَوۡمًا عَالِینَ ﴿٤٦﴾

फ़िरऔन और उसके सरदारों की ओर। तो उन्होंने घमंड किया और वे सरकश लोग थे।


Arabic explanations of the Qur’an:

فَقَالُوۤاْ أَنُؤۡمِنُ لِبَشَرَیۡنِ مِثۡلِنَا وَقَوۡمُهُمَا لَنَا عَـٰبِدُونَ ﴿٤٧﴾

उन्होंने कहा : क्या हम अपने जैसे दो व्यक्तियों पर ईमान ले आएँ , जबकि उनके लोग हमारे दास हैं?


Arabic explanations of the Qur’an:

فَكَذَّبُوهُمَا فَكَانُواْ مِنَ ٱلۡمُهۡلَكِینَ ﴿٤٨﴾

तो उन्होंने दोनों को झुठला दिया, तो वे विनष्ट किए गए लोगों में से हो गए।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَلَقَدۡ ءَاتَیۡنَا مُوسَى ٱلۡكِتَـٰبَ لَعَلَّهُمۡ یَهۡتَدُونَ ﴿٤٩﴾

और निःसंदेह हमने मूसा को पुस्तक[11] प्रदान की, ताकि वे (लोग) मार्गदर्शन पा जाएँ।

11. अर्थात तौरात।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَجَعَلۡنَا ٱبۡنَ مَرۡیَمَ وَأُمَّهُۥۤ ءَایَةࣰ وَءَاوَیۡنَـٰهُمَاۤ إِلَىٰ رَبۡوَةࣲ ذَاتِ قَرَارࣲ وَمَعِینࣲ ﴿٥٠﴾

और हमने मरयम के पुत्र (ईसा) तथा उसकी माँ को महान निशानी बनाया तथा दोनों को एक ऊँची भूमि[12] पर ठिकाना दिया, जो रहने के योग्य तथा प्रवाहित पानी वाली थी।

12. इससे अभिप्राय बैतुल मक़्दिस है।


Arabic explanations of the Qur’an:

یَـٰۤأَیُّهَا ٱلرُّسُلُ كُلُواْ مِنَ ٱلطَّیِّبَـٰتِ وَٱعۡمَلُواْ صَـٰلِحًاۖ إِنِّی بِمَا تَعۡمَلُونَ عَلِیمࣱ ﴿٥١﴾

ऐ रसूलो! पाक चीज़ों[13] में से खाओ तथा अच्छे कर्म करो। निश्चय मैं उससे भली-भाँति अवगत हूँ, जो तुम करते हो।

13. नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : अल्लाह पाक है और पाक (हलाल) चीज़ ही को स्वीकार करता है। और ईमान वालों को वही आदेश दिया है जो रसूलों को दिया है। फिर आपने यही आयत पढ़ी। (संक्षिप्त अनुवाद मुस्लिम : 1015)


Arabic explanations of the Qur’an:

وَإِنَّ هَـٰذِهِۦۤ أُمَّتُكُمۡ أُمَّةࣰ وَ ٰ⁠حِدَةࣰ وَأَنَا۠ رَبُّكُمۡ فَٱتَّقُونِ ﴿٥٢﴾

और निःसंदेह यह तुम्हारा समुदाय (धर्म) एक ही समुदाय (धर्म) है और मैं तुम सबका पालनहार (पूज्य) हूँ। अतः मुझसे डरो।


Arabic explanations of the Qur’an:

فَتَقَطَّعُوۤاْ أَمۡرَهُم بَیۡنَهُمۡ زُبُرࣰاۖ كُلُّ حِزۡبِۭ بِمَا لَدَیۡهِمۡ فَرِحُونَ ﴿٥٣﴾

फिर वे अपने मामले (धर्म) में परस्पर कई समूहों में विभाजित होकर टुकड़े-टुकड़े हो गए। प्रत्येक समूह के लोग उसी पर खुश हैं, जो उनके पास[14] है।

14. इन आयतों में कहा गया है कि सब रसूलों ने यही शिक्षा दी है कि स्वच्छ पवित्र चीज़ें खाओ और सत्कर्म करो। तुम्हारा पालनहार एक है और तुम सभी का धर्म एक है। परंतु लोगों ने धर्म में विभेद करके बहुत से संप्रदाय बना लिए, और अब प्रत्येक संप्रदाय अपने विश्वास तथा कर्म में मग्न है, भले ही वह सत्य से दूर हो।


Arabic explanations of the Qur’an:

فَذَرۡهُمۡ فِی غَمۡرَتِهِمۡ حَتَّىٰ حِینٍ ﴿٥٤﴾

अतः (ऐ नबी!) आप उन्हें एक समय तक उनकी अचेतना में छोड़ दें।


Arabic explanations of the Qur’an:

أَیَحۡسَبُونَ أَنَّمَا نُمِدُّهُم بِهِۦ مِن مَّالࣲ وَبَنِینَ ﴿٥٥﴾

क्या वे समझते हैं कि हम धन और संतान में से जिन चीज़ों के साथ उनकी सहायता कर रहे हैं।


Arabic explanations of the Qur’an:

نُسَارِعُ لَهُمۡ فِی ٱلۡخَیۡرَ ٰ⁠تِۚ بَل لَّا یَشۡعُرُونَ ﴿٥٦﴾

हम उन्हें भलाइयाँ देने में जल्दी कर रहे हैं? बल्कि वे नहीं समझते।[15]

15. अर्थात यह कि हम उन्हें अवसर दे रहे हैं।


Arabic explanations of the Qur’an:

إِنَّ ٱلَّذِینَ هُم مِّنۡ خَشۡیَةِ رَبِّهِم مُّشۡفِقُونَ ﴿٥٧﴾

निःसंदेह वे लोग जो अपने पालनहार के भय से डरने वाले हैं।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَٱلَّذِینَ هُم بِـَٔایَـٰتِ رَبِّهِمۡ یُؤۡمِنُونَ ﴿٥٨﴾

और वे जो अपने पालनहार की आयतों पर ईमान रखते हैं।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَٱلَّذِینَ هُم بِرَبِّهِمۡ لَا یُشۡرِكُونَ ﴿٥٩﴾

और वे जो अपने पालनहार का साझी नहीं बनाते।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَٱلَّذِینَ یُؤۡتُونَ مَاۤ ءَاتَواْ وَّقُلُوبُهُمۡ وَجِلَةٌ أَنَّهُمۡ إِلَىٰ رَبِّهِمۡ رَ ٰ⁠جِعُونَ ﴿٦٠﴾

और वे लोग कि जो कुछ भी दें, इस हाल में देते हैं कि उनके दिल डरने वाले होते हैं कि वे अपने पालनहार ही की ओर लौटने वाले हैं।


Arabic explanations of the Qur’an:

أُوْلَـٰۤىِٕكَ یُسَـٰرِعُونَ فِی ٱلۡخَیۡرَ ٰ⁠تِ وَهُمۡ لَهَا سَـٰبِقُونَ ﴿٦١﴾

यही लोग हैं, जो भलाइयों में जल्दी करते हैं और यही लोग उनकी तरफ़ आगे बढ़ने वाले हैं।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَلَا نُكَلِّفُ نَفۡسًا إِلَّا وُسۡعَهَاۚ وَلَدَیۡنَا كِتَـٰبࣱ یَنطِقُ بِٱلۡحَقِّ وَهُمۡ لَا یُظۡلَمُونَ ﴿٦٢﴾

और हम किसी प्राणी पर उसकी क्षमता से अधिक बोझ नहीं डालते। तथा हमारे पास एक पुस्तक है, जो सत्य के साथ बोलती है। और उनपर अत्याचार नहीं किया[16] जाएगा।

16. अर्थात प्रत्येक का कर्म-लेख है, जिसके अनुसार ही उसे बदला दिया जाएगा।


Arabic explanations of the Qur’an:

بَلۡ قُلُوبُهُمۡ فِی غَمۡرَةࣲ مِّنۡ هَـٰذَا وَلَهُمۡ أَعۡمَـٰلࣱ مِّن دُونِ ذَ ٰ⁠لِكَ هُمۡ لَهَا عَـٰمِلُونَ ﴿٦٣﴾

बल्कि उनके दिल इससे अचेत हैं तथा इसके सिवा भी उनके कई काम हैं। वे उन्हीं को करने वाले हैं।


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حَتَّىٰۤ إِذَاۤ أَخَذۡنَا مُتۡرَفِیهِم بِٱلۡعَذَابِ إِذَا هُمۡ یَجۡـَٔرُونَ ﴿٦٤﴾

यहाँ तक कि जब हम उनके सुखी लोगों को यातना में पकड़ेंगे, तो वे बिलबिलाने लगेंगे।


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لَا تَجۡـَٔرُواْ ٱلۡیَوۡمَۖ إِنَّكُم مِّنَّا لَا تُنصَرُونَ ﴿٦٥﴾

आज मत बिलबिलाओ। निःसंदेह तुम्हें हमारी ओर से कोई सहायता नहीं मिलेगी।


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قَدۡ كَانَتۡ ءَایَـٰتِی تُتۡلَىٰ عَلَیۡكُمۡ فَكُنتُمۡ عَلَىٰۤ أَعۡقَـٰبِكُمۡ تَنكِصُونَ ﴿٦٦﴾

निःसंदेह मेरी आयतें तुम्हें सुनाई जाती थीं, तो तुम अपनी एड़ियों के बल फिर जाया करते थे।


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مُسۡتَكۡبِرِینَ بِهِۦ سَـٰمِرࣰا تَهۡجُرُونَ ﴿٦٧﴾

अभिमान करते हुए, रात को बातें करते हुए उसके बारे में अनर्थ बकते थे।


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أَفَلَمۡ یَدَّبَّرُواْ ٱلۡقَوۡلَ أَمۡ جَاۤءَهُم مَّا لَمۡ یَأۡتِ ءَابَاۤءَهُمُ ٱلۡأَوَّلِینَ ﴿٦٨﴾

तो क्या उन्होंने इस वाणी (क़ुरआन) पर विचार नहीं किया, अथवा उनके पास वह चीज़[17] आई है, जो उनके पहले बाप-दादा के पास नहीं आई?

17. अर्थात् कुरआन तथा रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम। इसपर तो इन्हें अल्लाह का कृतज्ञ होना और इसे स्वीकार करना चाहिए।


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أَمۡ لَمۡ یَعۡرِفُواْ رَسُولَهُمۡ فَهُمۡ لَهُۥ مُنكِرُونَ ﴿٦٩﴾

या उन्होंने अपने रसूल को नहीं पहचाना, इस कारण वे उसका इनकार कर रहे[18] हैं?

18. इसमें चेतावनी है कि वे अपने रसूल की सत्यता, अमानत तथा उनके चरित्र और वंश से भली भाँति अवगत हैं।


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أَمۡ یَقُولُونَ بِهِۦ جِنَّةُۢۚ بَلۡ جَاۤءَهُم بِٱلۡحَقِّ وَأَكۡثَرُهُمۡ لِلۡحَقِّ كَـٰرِهُونَ ﴿٧٠﴾

या वे कहते हैं कि उसे कोई पागलपन हैं। बल्कि वह तो उनके पास सत्य लेकर आए हैं और उनमें से अधिकांश लोग सत्य को बुरा जानने वाले हैं।


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وَلَوِ ٱتَّبَعَ ٱلۡحَقُّ أَهۡوَاۤءَهُمۡ لَفَسَدَتِ ٱلسَّمَـٰوَ ٰ⁠تُ وَٱلۡأَرۡضُ وَمَن فِیهِنَّۚ بَلۡ أَتَیۡنَـٰهُم بِذِكۡرِهِمۡ فَهُمۡ عَن ذِكۡرِهِم مُّعۡرِضُونَ ﴿٧١﴾

और यदि सत्य उनकी इच्छाओं के पीछे चले, तो निश्चय सब आकाश और धरती और जो कोई उनमें है, सब बिगड़ जाएँ। बल्कि हम उनके पास उनकी नसीह़त लेकर आए हैं। ते वे अपनी नसीह़त से मुँह मोड़ने वाले हैं।


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أَمۡ تَسۡـَٔلُهُمۡ خَرۡجࣰا فَخَرَاجُ رَبِّكَ خَیۡرࣱۖ وَهُوَ خَیۡرُ ٱلرَّ ٰ⁠زِقِینَ ﴿٧٢﴾

(ऐ नबी!) क्या आप उनसे कोई पारिश्रमिक माँग रहे हैं? तो आपके पालनहार का पारिश्रमिक उत्तम है और वह सब रोज़ी देने वालों से उत्तम है।


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وَإِنَّكَ لَتَدۡعُوهُمۡ إِلَىٰ صِرَ ٰ⁠طࣲ مُّسۡتَقِیمࣲ ﴿٧٣﴾

निःसंदेह आप तो उन्हें सीधे रास्ते की ओर बुलाते हैं।


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وَإِنَّ ٱلَّذِینَ لَا یُؤۡمِنُونَ بِٱلۡـَٔاخِرَةِ عَنِ ٱلصِّرَ ٰ⁠طِ لَنَـٰكِبُونَ ﴿٧٤﴾

और निःसंदेह जो लोग आख़िरत पर ईमान नहीं रखते, निश्चय वे सीधे रास्ते से हटने वाले हैं।


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۞ وَلَوۡ رَحِمۡنَـٰهُمۡ وَكَشَفۡنَا مَا بِهِم مِّن ضُرࣲّ لَّلَجُّواْ فِی طُغۡیَـٰنِهِمۡ یَعۡمَهُونَ ﴿٧٥﴾

और यदि हम उनपर दया करें और जिस कष्ट[19] से वे पीड़ित हैं, उसे दूर कर दें, तो भी वे निश्चय अपनी सरकशी में दृढ़ता से बने रहेंगे इस हाल में कि भटक रहे होंगे।

20. इससे अभिप्राय वह अकाल है जो मक्का के काफ़िरों पर नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की अवज्ञा के कारण आ पड़ा था। (देखिए : बुख़ारी : 4823)


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وَلَقَدۡ أَخَذۡنَـٰهُم بِٱلۡعَذَابِ فَمَا ٱسۡتَكَانُواْ لِرَبِّهِمۡ وَمَا یَتَضَرَّعُونَ ﴿٧٦﴾

और निःसंदेह हमने उन्हें यातना में (भी) पकड़ा। फिर भी वे न अपने पालनहार के आगे झुके और न गिड़गिड़ाते थे।


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حَتَّىٰۤ إِذَا فَتَحۡنَا عَلَیۡهِم بَابࣰا ذَا عَذَابࣲ شَدِیدٍ إِذَا هُمۡ فِیهِ مُبۡلِسُونَ ﴿٧٧﴾

यहाँ तक कि जब हमने उनपर कोई कठोर यातना[20] वाला द्वार खोल दिया, तो तुरंत वे उसमें निराश हो गए।[21]

20. कठोर यातना से अभिप्राय परलोक की यातना है। 21. अर्थात प्रत्येक भलाई से।


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وَهُوَ ٱلَّذِیۤ أَنشَأَ لَكُمُ ٱلسَّمۡعَ وَٱلۡأَبۡصَـٰرَ وَٱلۡأَفۡـِٔدَةَۚ قَلِیلࣰا مَّا تَشۡكُرُونَ ﴿٧٨﴾

और वही है, जिसने तुम्हारे लिए कान तथा आँखें और दिल बनाए।[22] तुम बहुत कम आभार प्रकट करते हो।

22. सत्य को सुनने, देखने और उसपर विचार करके उसे स्वीकार करने के लिए।


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وَهُوَ ٱلَّذِی ذَرَأَكُمۡ فِی ٱلۡأَرۡضِ وَإِلَیۡهِ تُحۡشَرُونَ ﴿٧٩﴾

और वही है, जिसने तुम्हें धरती में फैलाया और उसी की ओर तुम एकत्र किए जाओगे।


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وَهُوَ ٱلَّذِی یُحۡیِۦ وَیُمِیتُ وَلَهُ ٱخۡتِلَـٰفُ ٱلَّیۡلِ وَٱلنَّهَارِۚ أَفَلَا تَعۡقِلُونَ ﴿٨٠﴾

तथा वही है, जो जीवित करता और मारता है और उसी के अधिकार में रात और दिन का बदलना है। तो क्या तुम नहीं समझते?


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بَلۡ قَالُواْ مِثۡلَ مَا قَالَ ٱلۡأَوَّلُونَ ﴿٨١﴾

बल्कि उन्होंने वही बात कही, जो अगलों ने कही थी।


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قَالُوۤاْ أَءِذَا مِتۡنَا وَكُنَّا تُرَابࣰا وَعِظَـٰمًا أَءِنَّا لَمَبۡعُوثُونَ ﴿٨٢﴾

उन्होंने कहा : क्या जब हम मर जाएँगे और मिट्टी तथा हड्डियाँ हो जाएँगे, तो क्या सचमुच हम अवश्य उठाए जाने वाले हैं?


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لَقَدۡ وُعِدۡنَا نَحۡنُ وَءَابَاۤؤُنَا هَـٰذَا مِن قَبۡلُ إِنۡ هَـٰذَاۤ إِلَّاۤ أَسَـٰطِیرُ ٱلۡأَوَّلِینَ ﴿٨٣﴾

निःसंदेह यही वादा हमसे और इससे पहले हमारे बाप-दादा से किया गया। यह तो पहले लोगों की कहानियों के सिवा कुछ नहीं।


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قُل لِّمَنِ ٱلۡأَرۡضُ وَمَن فِیهَاۤ إِن كُنتُمۡ تَعۡلَمُونَ ﴿٨٤﴾

(ऐ नबी!) उनसे कह दें : यह धरती और इसमें जो कोई भी है किसका है, यदि तुम जानते हो?


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سَیَقُولُونَ لِلَّهِۚ قُلۡ أَفَلَا تَذَكَّرُونَ ﴿٨٥﴾

वे कहेंगे : अल्लाह का है। आप कह दें : फिर क्या तुम शिक्षा ग्रहण नहीं करते?


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قُلۡ مَن رَّبُّ ٱلسَّمَـٰوَ ٰ⁠تِ ٱلسَّبۡعِ وَرَبُّ ٱلۡعَرۡشِ ٱلۡعَظِیمِ ﴿٨٦﴾

आप पूछिए : सातों आकाशों का स्वामी तथा महान सिंहासन (अर्श) का स्वामी कौन है?


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سَیَقُولُونَ لِلَّهِۚ قُلۡ أَفَلَا تَتَّقُونَ ﴿٨٧﴾

वे कहेंगे : अल्लाह ही के लिए है। आप कह दें : फिर क्या तुम डरते नहीं?


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قُلۡ مَنۢ بِیَدِهِۦ مَلَكُوتُ كُلِّ شَیۡءࣲ وَهُوَ یُجِیرُ وَلَا یُجَارُ عَلَیۡهِ إِن كُنتُمۡ تَعۡلَمُونَ ﴿٨٨﴾

आप उनसे कहिए : कौन है जिसके हाथ में हर चीज़ का अधिकार और वह शरण देता है और उसके मुक़ाबले में शरण नहीं दी जाती, यदि तुम जानते हो (तो बताओ)?


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سَیَقُولُونَ لِلَّهِۚ قُلۡ فَأَنَّىٰ تُسۡحَرُونَ ﴿٨٩﴾

वे बोल पड़ेंगे : अल्लाह के लिए है। आप कहिए : फिर तुम कहाँ से जादू[23] किए जाते हो?

23. अर्थात जब यह मानते हो कि सब अधिकार अल्लाह के हाथ में है और शरण भी वही देता है, तो फिर उसके साझी कहाँ से आ गए और उन्हें कहाँ से अधिकार मिल गया?


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بَلۡ أَتَیۡنَـٰهُم بِٱلۡحَقِّ وَإِنَّهُمۡ لَكَـٰذِبُونَ ﴿٩٠﴾

बल्कि हम उनके पास पूर्ण सत्य लाए हैं और निःसंदेह वे निश्चय झूठे हैं।


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مَا ٱتَّخَذَ ٱللَّهُ مِن وَلَدࣲ وَمَا كَانَ مَعَهُۥ مِنۡ إِلَـٰهٍۚ إِذࣰا لَّذَهَبَ كُلُّ إِلَـٰهِۭ بِمَا خَلَقَ وَلَعَلَا بَعۡضُهُمۡ عَلَىٰ بَعۡضࣲۚ سُبۡحَـٰنَ ٱللَّهِ عَمَّا یَصِفُونَ ﴿٩١﴾

अल्लाह ने न कोई संतान बनाई और न कभी उसके साथ कोई पूज्य था। उस समय अवश्य प्रत्येक पूज्य, जो कुछ उसने पैदा किया था, उसे लेकर चल देता और निश्चय उनमें से एक, दूसरे पर चढ़ाई कर देता। पवित्र है अल्लाह उससे, जो वे बयान करते हैं।


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عَـٰلِمِ ٱلۡغَیۡبِ وَٱلشَّهَـٰدَةِ فَتَعَـٰلَىٰ عَمَّا یُشۡرِكُونَ ﴿٩٢﴾

वह परोक्ष (छिपे) तथा प्रत्यक्ष (खुले) को जानने वाला है। सो वह बहुत ऊँचा है उससे, जो वे साझी बनाते हैं।


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قُل رَّبِّ إِمَّا تُرِیَنِّی مَا یُوعَدُونَ ﴿٩٣﴾

(ऐ नबी!) आप दुआ करें : ऐ मेरे पालनहार! यदि तू कभी मुझे अवश्य ही वह (यातना) दिखाए, जिसका उनसे वादा किया जा रहा है।


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رَبِّ فَلَا تَجۡعَلۡنِی فِی ٱلۡقَوۡمِ ٱلظَّـٰلِمِینَ ﴿٩٤﴾

तो ऐ मेरे पालनहार! मुझे उन अत्याचारी लोगों में शामिल न करना।


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وَإِنَّا عَلَىٰۤ أَن نُّرِیَكَ مَا نَعِدُهُمۡ لَقَـٰدِرُونَ ﴿٩٥﴾

तथा निःसंदेह हम आपको वह (यातना) दिखाने में, जिसका हम उनसे वादा करते हैं, अवश्य सक्षम हैं।


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ٱدۡفَعۡ بِٱلَّتِی هِیَ أَحۡسَنُ ٱلسَّیِّئَةَۚ نَحۡنُ أَعۡلَمُ بِمَا یَصِفُونَ ﴿٩٦﴾

(हे नबी!) आप बुराई को उस ढंग से दूर करें, जो सबसे उत्तम हो। हम अधिक जानने वाले हैं, जो कुछ वे बयान करते हैं।


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وَقُل رَّبِّ أَعُوذُ بِكَ مِنۡ هَمَزَ ٰ⁠تِ ٱلشَّیَـٰطِینِ ﴿٩٧﴾

तथा आप दुआ करें : ऐ मेरे पालनहार! मैं शैतानों की उकसाहटों से तेरी शरण चाहता हूँ।


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وَأَعُوذُ بِكَ رَبِّ أَن یَحۡضُرُونِ ﴿٩٨﴾

तथा ऐ मेरे पालनहार! मैं इस बात से भी तेरी शरण माँगता हूँ कि वे मेरे पास आएँ।


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حَتَّىٰۤ إِذَا جَاۤءَ أَحَدَهُمُ ٱلۡمَوۡتُ قَالَ رَبِّ ٱرۡجِعُونِ ﴿٩٩﴾

यहाँ तक कि जब उनमें से किसी के पास मौत आती है, तो कहता है : ऐ मेरे पालनहार! मुझे (संसार में) वापस भेजो।[24]

24. यहाँ मरण के समय काफ़िर की दशा को बताया जा रहा है। (इब्ने कसीर)


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لَعَلِّیۤ أَعۡمَلُ صَـٰلِحࣰا فِیمَا تَرَكۡتُۚ كَلَّاۤۚ إِنَّهَا كَلِمَةٌ هُوَ قَاۤىِٕلُهَاۖ وَمِن وَرَاۤىِٕهِم بَرۡزَخٌ إِلَىٰ یَوۡمِ یُبۡعَثُونَ ﴿١٠٠﴾

ताकि मैं जो कुछ छोड़ आया हूँ, उसमें कोई नेक कार्य कर लूँ। हरगिज़ नहीं, यह तो मात्र एक बात है, जिसे वह कहने वाला[25] है और उनके पीछे उस दिन तक जब वे (पुनः) उठाए जाएँगे, एक ओट[26] है।

25. अर्थात उसके कथन का कोई प्रभाव नहीं होगा। 26. ओट जिसके लिए बर्ज़ख शब्द आया है, उस अवधि का नाम है जो मृत्यु तथा प्रलय के बीच होगी।


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فَإِذَا نُفِخَ فِی ٱلصُّورِ فَلَاۤ أَنسَابَ بَیۡنَهُمۡ یَوۡمَىِٕذࣲ وَلَا یَتَسَاۤءَلُونَ ﴿١٠١﴾

फिर जब सूर (नरसिंघा) में फूँक मारी जाएगी, तो उस दिन[27] उनके बीच न कोई रिश्ते-नाते होंगे और न वे एक-दूसरे को पूछेंगे।

27. अर्थात प्रलय के दिन। उस दिन भय के कारण सबको अपनी चिंता होगी।


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فَمَن ثَقُلَتۡ مَوَ ٰ⁠زِینُهُۥ فَأُوْلَـٰۤىِٕكَ هُمُ ٱلۡمُفۡلِحُونَ ﴿١٠٢﴾

फिर जिसके पलड़े भारी हो गए, वही लोग सफल हैं।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَمَنۡ خَفَّتۡ مَوَ ٰ⁠زِینُهُۥ فَأُوْلَـٰۤىِٕكَ ٱلَّذِینَ خَسِرُوۤاْ أَنفُسَهُمۡ فِی جَهَنَّمَ خَـٰلِدُونَ ﴿١٠٣﴾

और जिसके पलड़े हलके हो गए, तो वही लोग हैं, जिन्होंने अपने आपको घाटे में डाला। जहन्नम ही में सदावासी होंगे।


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تَلۡفَحُ وُجُوهَهُمُ ٱلنَّارُ وَهُمۡ فِیهَا كَـٰلِحُونَ ﴿١٠٤﴾

उनके चेहरों को आग झुलसाएगी तथा उसमें उनके जबड़े (झुलसकर) बाहर निकले होंगे।


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أَلَمۡ تَكُنۡ ءَایَـٰتِی تُتۡلَىٰ عَلَیۡكُمۡ فَكُنتُم بِهَا تُكَذِّبُونَ ﴿١٠٥﴾

क्या मेरी आयतें तुमपर पढ़ी न जाती थीं, तो तुम उन्हें झुठलाया करते थे?


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قَالُواْ رَبَّنَا غَلَبَتۡ عَلَیۡنَا شِقۡوَتُنَا وَكُنَّا قَوۡمࣰا ضَاۤلِّینَ ﴿١٠٦﴾

वे कहेंगे : ऐ हमारे पालनहार! हमारा दुर्भाग्य हमपर प्रभावी हो गया[28] और हम गुमराह लोग थे।

28. अर्थात अपने दुर्भाग्य के कारण हमने तेरी आयतों को अस्वीकार कर दिया।


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رَبَّنَاۤ أَخۡرِجۡنَا مِنۡهَا فَإِنۡ عُدۡنَا فَإِنَّا ظَـٰلِمُونَ ﴿١٠٧﴾

ऐ हमारे पालनहार! हमें इससे निकाल ले। फिर यदि हम दोबारा ऐसा करें, तो निश्चय हम अत्याचारी होंगे।


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قَالَ ٱخۡسَـُٔواْ فِیهَا وَلَا تُكَلِّمُونِ ﴿١٠٨﴾

वह (अल्लाह) कहेगा : इसी में अपमानित होकर पड़े रहो और मुझसे बात न करो।


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إِنَّهُۥ كَانَ فَرِیقࣱ مِّنۡ عِبَادِی یَقُولُونَ رَبَّنَاۤ ءَامَنَّا فَٱغۡفِرۡ لَنَا وَٱرۡحَمۡنَا وَأَنتَ خَیۡرُ ٱلرَّ ٰ⁠حِمِینَ ﴿١٠٩﴾

निःसंदेह मेरे बंदों में से कुछ लोग थे, जो कहते थे : ऐ हमारे पालनहार! हम ईमान ले आए। अतः तू हमें क्षमा कर दे और हमपर दया कर। और तू सब दया करने वालों से बेहतर है।


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فَٱتَّخَذۡتُمُوهُمۡ سِخۡرِیًّا حَتَّىٰۤ أَنسَوۡكُمۡ ذِكۡرِی وَكُنتُم مِّنۡهُمۡ تَضۡحَكُونَ ﴿١١٠﴾

तो तुमने उन्हें मज़ाक़ बना लिया, यहाँ तक कि उन्होंने तुम्हें मेरी याद भुला दी और तुम उनसे हँसी किया करते थे।


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إِنِّی جَزَیۡتُهُمُ ٱلۡیَوۡمَ بِمَا صَبَرُوۤاْ أَنَّهُمۡ هُمُ ٱلۡفَاۤىِٕزُونَ ﴿١١١﴾

निःसंदेह आज मैंने उन्हें उनके धैर्य का यह बदला दिया है कि वही सफल हैं।


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قَـٰلَ كَمۡ لَبِثۡتُمۡ فِی ٱلۡأَرۡضِ عَدَدَ سِنِینَ ﴿١١٢﴾

वह (अल्लाह) कहेगा : तुम धरती पर कितने वर्षों तक रहे?


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قَالُواْ لَبِثۡنَا یَوۡمًا أَوۡ بَعۡضَ یَوۡمࣲ فَسۡـَٔلِ ٱلۡعَاۤدِّینَ ﴿١١٣﴾

वे कहेंगे : हम एक दिन या दिन का कुछ भाग रहे। आप गणना करने वालों से पूछ लें।


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قَـٰلَ إِن لَّبِثۡتُمۡ إِلَّا قَلِیلࣰاۖ لَّوۡ أَنَّكُمۡ كُنتُمۡ تَعۡلَمُونَ ﴿١١٤﴾

वह (अल्लाह) कहेगा : तुम नहीं रहे परंतु थोड़ा ही। काश कि तुमने जानते होते।[29]

29. आयत का भावार्थ यह है कि यदि तुम यह जानते कि परलोक का जीवन स्थायी है तथा संसार का अस्थायी, तो आज तुम भी ईमान वालों के समान अल्लाह की आज्ञा का पालन करके सफल हो जाते, और अवज्ञा तथा दुष्कर्म न करते।


Arabic explanations of the Qur’an:

أَفَحَسِبۡتُمۡ أَنَّمَا خَلَقۡنَـٰكُمۡ عَبَثࣰا وَأَنَّكُمۡ إِلَیۡنَا لَا تُرۡجَعُونَ ﴿١١٥﴾

तो क्या तुमने समझ रखा था कि हमने तुम्हें उद्देश्यहीन पैदा किया है और यह कि तुम हमारी ओर नहीं लौटाए[30] जाओगे?

30. अर्थात परलोक में।


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فَتَعَـٰلَى ٱللَّهُ ٱلۡمَلِكُ ٱلۡحَقُّۖ لَاۤ إِلَـٰهَ إِلَّا هُوَ رَبُّ ٱلۡعَرۡشِ ٱلۡكَرِیمِ ﴿١١٦﴾

तो बहुत ऊँचा है अल्लाह, जो सच्चा बादशाह है। उसके सिवा कोई सच्चा पूज्य नहीं, सम्मान वाले अर्श (सिंहासन) का रब है।


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وَمَن یَدۡعُ مَعَ ٱللَّهِ إِلَـٰهًا ءَاخَرَ لَا بُرۡهَـٰنَ لَهُۥ بِهِۦ فَإِنَّمَا حِسَابُهُۥ عِندَ رَبِّهِۦۤۚ إِنَّهُۥ لَا یُفۡلِحُ ٱلۡكَـٰفِرُونَ ﴿١١٧﴾

और जो (भी) अल्लाह के साथ किसी अन्य पूज्य को पुकारे, जिसका उसके पास कोई प्रमाण नहीं, तो उसका हिसाब केवल उसके पालनहार के पास है। निःसंदेह काफ़िर लोग सफल नहीं होंगे।[31]

31. अर्थात परलोक में उन्हें सफलता प्राप्त नहीं होगी, और न मुक्ति ही मिलेगी।


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وَقُل رَّبِّ ٱغۡفِرۡ وَٱرۡحَمۡ وَأَنتَ خَیۡرُ ٱلرَّ ٰ⁠حِمِینَ ﴿١١٨﴾

तथा आप प्रार्थना करें : ऐ मेरे पालनहार! क्षमा कर दे और दया कर, और तू सब दया करने वालों में सबसे अधिक दया करने वाला है।


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