سُورَةٌ أَنزَلۡنَـٰهَا وَفَرَضۡنَـٰهَا وَأَنزَلۡنَا فِیهَاۤ ءَایَـٰتِۭ بَیِّنَـٰتࣲ لَّعَلَّكُمۡ تَذَكَّرُونَ ﴿١﴾
यह एक महान सूरत है, हमने इसे उतारा तथा हमने इसे अनिवार्य किया और हमने इसमें स्पष्ट आयतें उतारीं हैं; ताकि तुम शिक्षा ग्रहण करो।
ٱلزَّانِیَةُ وَٱلزَّانِی فَٱجۡلِدُواْ كُلَّ وَ ٰحِدࣲ مِّنۡهُمَا مِاْئَةَ جَلۡدَةࣲۖ وَلَا تَأۡخُذۡكُم بِهِمَا رَأۡفَةࣱ فِی دِینِ ٱللَّهِ إِن كُنتُمۡ تُؤۡمِنُونَ بِٱللَّهِ وَٱلۡیَوۡمِ ٱلۡـَٔاخِرِۖ وَلۡیَشۡهَدۡ عَذَابَهُمَا طَاۤىِٕفَةࣱ مِّنَ ٱلۡمُؤۡمِنِینَ ﴿٢﴾
जो व्यभिचार[1] करने वाली महिला है और जो व्यभिचार करने वाला पुरुष है, दोनों में से प्रत्येक को सौ कोड़े मारो। और तुम्हें अल्लाह के धर्म के विषय में उन दोनों पर कोई तरस न आए[2], यदि तुम अल्लाह तथा अंतिम दिन पर ईमान रखते हो। और आवश्यक है कि उनके दंड के समय ईमानवालों का एक समूह उपस्थित[3] हो।
ٱلزَّانِی لَا یَنكِحُ إِلَّا زَانِیَةً أَوۡ مُشۡرِكَةࣰ وَٱلزَّانِیَةُ لَا یَنكِحُهَاۤ إِلَّا زَانٍ أَوۡ مُشۡرِكࣱۚ وَحُرِّمَ ذَ ٰلِكَ عَلَى ٱلۡمُؤۡمِنِینَ ﴿٣﴾
व्यभिचारी नहीं विवाह[4] करेगा, परंतु किसी व्यभिचारिणी अथवा बहुदेववादी स्त्री से, तथा व्यभिचारिणी से नहीं विवाह करेगा, परंतु कोई व्यभिचारी अथवा बहुदेववादी। और यह ईमान वालों पर हराम (निषिद्ध) कर दिया गया है।
وَٱلَّذِینَ یَرۡمُونَ ٱلۡمُحۡصَنَـٰتِ ثُمَّ لَمۡ یَأۡتُواْ بِأَرۡبَعَةِ شُهَدَاۤءَ فَٱجۡلِدُوهُمۡ ثَمَـٰنِینَ جَلۡدَةࣰ وَلَا تَقۡبَلُواْ لَهُمۡ شَهَـٰدَةً أَبَدࣰاۚ وَأُوْلَـٰۤىِٕكَ هُمُ ٱلۡفَـٰسِقُونَ ﴿٤﴾
तथा जो लोग सच्चरित्रा स्त्रियों पर व्यभिचार का आरोप[5] लगाएँ, फिर चार गवाह न लाएँ, तो उन्हें अस्सी कोड़े मारो और उनकी कोई गवाही कभी स्वीकार न करो और वही अवज्ञाकारी लोग हैं।
إِلَّا ٱلَّذِینَ تَابُواْ مِنۢ بَعۡدِ ذَ ٰلِكَ وَأَصۡلَحُواْ فَإِنَّ ٱللَّهَ غَفُورࣱ رَّحِیمࣱ ﴿٥﴾
परंतु जो लोग इसके बाद तौबा करें तथा सुधार कर लें, तो निश्चय अल्लाह अत्यंत क्षमाशील, असीम दयावान् है।[6]
وَٱلَّذِینَ یَرۡمُونَ أَزۡوَ ٰجَهُمۡ وَلَمۡ یَكُن لَّهُمۡ شُهَدَاۤءُ إِلَّاۤ أَنفُسُهُمۡ فَشَهَـٰدَةُ أَحَدِهِمۡ أَرۡبَعُ شَهَـٰدَ ٰتِۭ بِٱللَّهِ إِنَّهُۥ لَمِنَ ٱلصَّـٰدِقِینَ ﴿٦﴾
और जो लोग अपनी पत्नियों पर व्यभिचार का आरोप लगाएँ और उनके पास स्वयं के अलावा कोई गवाह न हों[7], तो उनमें से हर एक की गवाही यह है कि अल्लाह की क़सम खाकर चार बार यह गवाही दे कि निःसंदेह वह सच्चों में से है।[8]
وَٱلۡخَـٰمِسَةُ أَنَّ لَعۡنَتَ ٱللَّهِ عَلَیۡهِ إِن كَانَ مِنَ ٱلۡكَـٰذِبِینَ ﴿٧﴾
और पाँचवीं बार यह (कहे) कि उसपर अल्लाह की धिक्कार हो, यदि वह झूठों में से हो।
وَیَدۡرَؤُاْ عَنۡهَا ٱلۡعَذَابَ أَن تَشۡهَدَ أَرۡبَعَ شَهَـٰدَ ٰتِۭ بِٱللَّهِ إِنَّهُۥ لَمِنَ ٱلۡكَـٰذِبِینَ ﴿٨﴾
और उस (स्त्री) से दंड[9] को यह बात हटाएगी कि वह अल्लाह की क़सम खाकर चार बार गवाही दे कि निःसंदेह वह (व्यक्ति) झूठों में से है।
وَٱلۡخَـٰمِسَةَ أَنَّ غَضَبَ ٱللَّهِ عَلَیۡهَاۤ إِن كَانَ مِنَ ٱلصَّـٰدِقِینَ ﴿٩﴾
और पाँचवीं बार यह (कहे) कि उसपर अल्लाह का प्रकोप हो, यदि वह (व्यक्ति) सच्चों में से है।[10]
وَلَوۡلَا فَضۡلُ ٱللَّهِ عَلَیۡكُمۡ وَرَحۡمَتُهُۥ وَأَنَّ ٱللَّهَ تَوَّابٌ حَكِیمٌ ﴿١٠﴾
और यदि तुमपर अल्लाह का अनुग्रह और उसकी दया न होती और यह कि अल्लाह बहुत तौबा स्वीकार करने वाला, पूर्ण हिकमत वाला है (तो झूठे को दुनिया ही में सज़ा मिल जाती)।
إِنَّ ٱلَّذِینَ جَاۤءُو بِٱلۡإِفۡكِ عُصۡبَةࣱ مِّنكُمۡۚ لَا تَحۡسَبُوهُ شَرࣰّا لَّكُمۖ بَلۡ هُوَ خَیۡرࣱ لَّكُمۡۚ لِكُلِّ ٱمۡرِئࣲ مِّنۡهُم مَّا ٱكۡتَسَبَ مِنَ ٱلۡإِثۡمِۚ وَٱلَّذِی تَوَلَّىٰ كِبۡرَهُۥ مِنۡهُمۡ لَهُۥ عَذَابٌ عَظِیمࣱ ﴿١١﴾
निःसंदेह जो लोग झूठ गढ़[11] लाए हैं, वे तुम्हारे ही भीतर के एक समूह हैं। तुम उसे अपने लिए बुरा मत समझो, बल्कि वह तुम्हारे लिए बेहतर[12] है। उनमें से प्रत्येक आदमी के लिए गुनाह में से उतना ही भाग है, जितना उसने कमाया। और उनमें से जो उसके बड़े भाग का ज़िम्मेदार[13] बना, उसके लिए बहुत बड़ी यातना है।
لَّوۡلَاۤ إِذۡ سَمِعۡتُمُوهُ ظَنَّ ٱلۡمُؤۡمِنُونَ وَٱلۡمُؤۡمِنَـٰتُ بِأَنفُسِهِمۡ خَیۡرࣰا وَقَالُواْ هَـٰذَاۤ إِفۡكࣱ مُّبِینࣱ ﴿١٢﴾
क्यों न जब तुमने उसे सुना, तो ईमान वाले पुरुषों तथा ईमान वाली स्त्रियों ने अपने बारे में अच्छा गुमान किया और कहा कि यह स्पष्ट मिथ्यारोपण है?
لَّوۡلَا جَاۤءُو عَلَیۡهِ بِأَرۡبَعَةِ شُهَدَاۤءَۚ فَإِذۡ لَمۡ یَأۡتُواْ بِٱلشُّهَدَاۤءِ فَأُوْلَـٰۤىِٕكَ عِندَ ٱللَّهِ هُمُ ٱلۡكَـٰذِبُونَ ﴿١٣﴾
वे इसपर चार गवाह क्यों न लाए? फिर जब वे गवाह नहीं लाए, तो निःसंदेह अल्लाह के निकट वही झूठे हैं।
وَلَوۡلَا فَضۡلُ ٱللَّهِ عَلَیۡكُمۡ وَرَحۡمَتُهُۥ فِی ٱلدُّنۡیَا وَٱلۡـَٔاخِرَةِ لَمَسَّكُمۡ فِی مَاۤ أَفَضۡتُمۡ فِیهِ عَذَابٌ عَظِیمٌ ﴿١٤﴾
और यदि तुमपर दुनिया एवं आख़िरत में अल्लाह का अनुग्रह और उसकी दया न होती, तो निश्चय उस बात के कारण जिसमें तुम पड़ गए, तुमपर बहुत बड़ी यातना आ जाती।
إِذۡ تَلَقَّوۡنَهُۥ بِأَلۡسِنَتِكُمۡ وَتَقُولُونَ بِأَفۡوَاهِكُم مَّا لَیۡسَ لَكُم بِهِۦ عِلۡمࣱ وَتَحۡسَبُونَهُۥ هَیِّنࣰا وَهُوَ عِندَ ٱللَّهِ عَظِیمࣱ ﴿١٥﴾
जब तुम इसे एक-दूसरे से अपनी ज़बानों के साथ ले रहे थे और अपने मुँहों से वह बात कह रहे थे, जिसका तुम्हें कोई ज्ञान नहीं तथा तुम इसे साधारण समझते थे, हालाँकि वह अल्लाह के निकट बहुत बड़ी थी।
وَلَوۡلَاۤ إِذۡ سَمِعۡتُمُوهُ قُلۡتُم مَّا یَكُونُ لَنَاۤ أَن نَّتَكَلَّمَ بِهَـٰذَا سُبۡحَـٰنَكَ هَـٰذَا بُهۡتَـٰنٌ عَظِیمࣱ ﴿١٦﴾
और जब तुमने इसे सुना, तो क्यों नहीं कहा : हमारे लिए उचित नहीं है कि हम यह बात बोलें? (ऐ अल्लाह!) तू पवित्र है! यह तो बहुत बड़ा आरोप है।
یَعِظُكُمُ ٱللَّهُ أَن تَعُودُواْ لِمِثۡلِهِۦۤ أَبَدًا إِن كُنتُم مُّؤۡمِنِینَ ﴿١٧﴾
अल्लाह तुम्हें नसीहत करता है कि पुनः कभी ऐसा न करना, यदि तुम ईमान वाले हो।
وَیُبَیِّنُ ٱللَّهُ لَكُمُ ٱلۡـَٔایَـٰتِۚ وَٱللَّهُ عَلِیمٌ حَكِیمٌ ﴿١٨﴾
और अल्लाह तुम्हारे लिए आयतें खोलकर बयान करता है तथा अल्लाह सब कुछ जानने वाला, पूर्ण हिकमत वाला है।
إِنَّ ٱلَّذِینَ یُحِبُّونَ أَن تَشِیعَ ٱلۡفَـٰحِشَةُ فِی ٱلَّذِینَ ءَامَنُواْ لَهُمۡ عَذَابٌ أَلِیمࣱ فِی ٱلدُّنۡیَا وَٱلۡـَٔاخِرَةِۚ وَٱللَّهُ یَعۡلَمُ وَأَنتُمۡ لَا تَعۡلَمُونَ ﴿١٩﴾
निःसंदेह जो लोग चाहते हैं कि ईमान वालों के अंदर अश्लीलता[14] फैले, उनके लिए दुनिया एवं आख़िरत में दुःखदायी यातना है, तथा अल्लाह जानता[15] है और तुम नहीं जानते।
وَلَوۡلَا فَضۡلُ ٱللَّهِ عَلَیۡكُمۡ وَرَحۡمَتُهُۥ وَأَنَّ ٱللَّهَ رَءُوفࣱ رَّحِیمࣱ ﴿٢٠﴾
और यदि तुमपर अल्लाह का अनुग्रह तथा उसकी दया न होती, और यह कि अल्लाह अत्यंत करुणामय, असीम दयावान् है (तो आरोप लगाने वालों पर तुरंत यातना आ जाती)
۞ یَـٰۤأَیُّهَا ٱلَّذِینَ ءَامَنُواْ لَا تَتَّبِعُواْ خُطُوَ ٰتِ ٱلشَّیۡطَـٰنِۚ وَمَن یَتَّبِعۡ خُطُوَ ٰتِ ٱلشَّیۡطَـٰنِ فَإِنَّهُۥ یَأۡمُرُ بِٱلۡفَحۡشَاۤءِ وَٱلۡمُنكَرِۚ وَلَوۡلَا فَضۡلُ ٱللَّهِ عَلَیۡكُمۡ وَرَحۡمَتُهُۥ مَا زَكَىٰ مِنكُم مِّنۡ أَحَدٍ أَبَدࣰا وَلَـٰكِنَّ ٱللَّهَ یُزَكِّی مَن یَشَاۤءُۗ وَٱللَّهُ سَمِیعٌ عَلِیمࣱ ﴿٢١﴾
ऐ ईमान वालो! शैतान के पदचिह्नों पर न चलो और जो शैतान के पदचिह्नों पर चले, तो वह तो अश्लीलता तथा बुराई का आदेश देता है। और यदि तुमपर अल्लाह का अनुग्रह और उसकी दया न होती, तो तुममें से कोई भी कभी पवित्र न होता। परंतु अल्लाह जिसे चाहता है, पवित्र करता है, और अल्लाह सब कुछ सुनने वाला, सब कुछ जानने वाला है।
وَلَا یَأۡتَلِ أُوْلُواْ ٱلۡفَضۡلِ مِنكُمۡ وَٱلسَّعَةِ أَن یُؤۡتُوۤاْ أُوْلِی ٱلۡقُرۡبَىٰ وَٱلۡمَسَـٰكِینَ وَٱلۡمُهَـٰجِرِینَ فِی سَبِیلِ ٱللَّهِۖ وَلۡیَعۡفُواْ وَلۡیَصۡفَحُوۤاْۗ أَلَا تُحِبُّونَ أَن یَغۡفِرَ ٱللَّهُ لَكُمۡۚ وَٱللَّهُ غَفُورࣱ رَّحِیمٌ ﴿٢٢﴾
और तुममें से प्रतिष्ठा और विस्तार वाले (धनी) लोग, नातेदारों और निर्धनों और अल्लाह की राह में हिजरत करने वालों को देने से क़सम न खा लें। और उन्हें चाहिए कि क्षमा कर दें तथा जाने दें! क्या तुम पसंद नहीं करते कि अल्लाह तुम्हें क्षमा कर दे?! और अल्लाह अति क्षमाशील, अत्यंत दयावान् है।
إِنَّ ٱلَّذِینَ یَرۡمُونَ ٱلۡمُحۡصَنَـٰتِ ٱلۡغَـٰفِلَـٰتِ ٱلۡمُؤۡمِنَـٰتِ لُعِنُواْ فِی ٱلدُّنۡیَا وَٱلۡـَٔاخِرَةِ وَلَهُمۡ عَذَابٌ عَظِیمࣱ ﴿٢٣﴾
निःसंदेह जो लोग सच्चरित्रा, भोली-भाली ईमान वाली स्त्रियों पर आरोप लगाते हैं, वे दुनिया एवं आख़िरत में धिक्कार दिए गए और उनके लिए बड़ी यातना है।
یَوۡمَ تَشۡهَدُ عَلَیۡهِمۡ أَلۡسِنَتُهُمۡ وَأَیۡدِیهِمۡ وَأَرۡجُلُهُم بِمَا كَانُواْ یَعۡمَلُونَ ﴿٢٤﴾
जिस दिन उनकी ज़बानें, उनके हाथ और उनके पैर, उनके विरुद्ध उसकी गवाही देंगे, जो वे किया करते थे।
یَوۡمَىِٕذࣲ یُوَفِّیهِمُ ٱللَّهُ دِینَهُمُ ٱلۡحَقَّ وَیَعۡلَمُونَ أَنَّ ٱللَّهَ هُوَ ٱلۡحَقُّ ٱلۡمُبِینُ ﴿٢٥﴾
उस दिन अल्लाह उन्हें उनका न्यायपूर्ण बदला पूरा-पूरा देगा तथा वे जान लेंगे कि अल्लाह ही सत्य, (तथा सच को) उजागर करने वाला है।
ٱلۡخَبِیثَـٰتُ لِلۡخَبِیثِینَ وَٱلۡخَبِیثُونَ لِلۡخَبِیثَـٰتِۖ وَٱلطَّیِّبَـٰتُ لِلطَّیِّبِینَ وَٱلطَّیِّبُونَ لِلطَّیِّبَـٰتِۚ أُوْلَـٰۤىِٕكَ مُبَرَّءُونَ مِمَّا یَقُولُونَۖ لَهُم مَّغۡفِرَةࣱ وَرِزۡقࣱ كَرِیمࣱ ﴿٢٦﴾
अपवित्र स्त्रियाँ, अपवित्र पुरुषों के लिए हैं तथा अपवित्र पुरुष, अपवित्र स्त्रियों के लिए हैं। और पवित्र स्त्रियाँ, पवित्र पुरुषों के लिए हैं तथा पवित्र पुरुष, पवित्र स्त्रियों[17] के लिए हैं। ये लोग उससे बरी किए हुए हैं, जो वे कहते हैं। इनके लिए बड़ी क्षमा तथा सम्मान वाली जीविका है।
یَـٰۤأَیُّهَا ٱلَّذِینَ ءَامَنُواْ لَا تَدۡخُلُواْ بُیُوتًا غَیۡرَ بُیُوتِكُمۡ حَتَّىٰ تَسۡتَأۡنِسُواْ وَتُسَلِّمُواْ عَلَىٰۤ أَهۡلِهَاۚ ذَ ٰلِكُمۡ خَیۡرࣱ لَّكُمۡ لَعَلَّكُمۡ تَذَكَّرُونَ ﴿٢٧﴾
ऐ ईमान वालो![18] अपने घरों के सिवा अन्य घरों में प्रवेश न करो, यहाँ तक कि अनुमति ले लो और उनके रहने वालों को सलाम कर लो।[19] यह तुम्हारे लिए उत्तम है, ताकि तुम याद रखो।
فَإِن لَّمۡ تَجِدُواْ فِیهَاۤ أَحَدࣰا فَلَا تَدۡخُلُوهَا حَتَّىٰ یُؤۡذَنَ لَكُمۡۖ وَإِن قِیلَ لَكُمُ ٱرۡجِعُواْ فَٱرۡجِعُواْۖ هُوَ أَزۡكَىٰ لَكُمۡۚ وَٱللَّهُ بِمَا تَعۡمَلُونَ عَلِیمࣱ ﴿٢٨﴾
फिर यदि तुम उनमें किसी को न पाओ, तो उनमें प्रवेश न करो, यहाँ तक कि तुम्हें अनुमति दे दी जाए। और यदि तुमसे कहा जाए कि वापस हो जाओ, तो वापस हो जाओ। यह तुम्हारे लिए अधिक पवित्र है। तथा अल्लाह जो कुछ तुम करते हो, उसे भली-भाँति जानने वाला है।
لَّیۡسَ عَلَیۡكُمۡ جُنَاحٌ أَن تَدۡخُلُواْ بُیُوتًا غَیۡرَ مَسۡكُونَةࣲ فِیهَا مَتَـٰعࣱ لَّكُمۡۚ وَٱللَّهُ یَعۡلَمُ مَا تُبۡدُونَ وَمَا تَكۡتُمُونَ ﴿٢٩﴾
तुमपर कोई दोष नहीं कि उन घरों में प्रवेश करो, जिनमें कोई न रहता हो, जिनमें तुम्हारे लाभ की कोई चीज़ हो। और अल्लाह जानता है, जो तुम प्रकट करते हो और जो तुम छिपाते हो।
قُل لِّلۡمُؤۡمِنِینَ یَغُضُّواْ مِنۡ أَبۡصَـٰرِهِمۡ وَیَحۡفَظُواْ فُرُوجَهُمۡۚ ذَ ٰلِكَ أَزۡكَىٰ لَهُمۡۚ إِنَّ ٱللَّهَ خَبِیرُۢ بِمَا یَصۡنَعُونَ ﴿٣٠﴾
(ऐ नबी!) आप ईमान वाले पुरुषों से कह दें कि अपनी निगाहें नीची रखें और अपने गुप्तांगों की रक्षा करें। यह उनके लिए अधिक पवित्र है। निःसंदेह अल्लाह उससे पूरी तरह अवगत है, जो वे करते हैं।
وَقُل لِّلۡمُؤۡمِنَـٰتِ یَغۡضُضۡنَ مِنۡ أَبۡصَـٰرِهِنَّ وَیَحۡفَظۡنَ فُرُوجَهُنَّ وَلَا یُبۡدِینَ زِینَتَهُنَّ إِلَّا مَا ظَهَرَ مِنۡهَاۖ وَلۡیَضۡرِبۡنَ بِخُمُرِهِنَّ عَلَىٰ جُیُوبِهِنَّۖ وَلَا یُبۡدِینَ زِینَتَهُنَّ إِلَّا لِبُعُولَتِهِنَّ أَوۡ ءَابَاۤىِٕهِنَّ أَوۡ ءَابَاۤءِ بُعُولَتِهِنَّ أَوۡ أَبۡنَاۤىِٕهِنَّ أَوۡ أَبۡنَاۤءِ بُعُولَتِهِنَّ أَوۡ إِخۡوَ ٰنِهِنَّ أَوۡ بَنِیۤ إِخۡوَ ٰنِهِنَّ أَوۡ بَنِیۤ أَخَوَ ٰتِهِنَّ أَوۡ نِسَاۤىِٕهِنَّ أَوۡ مَا مَلَكَتۡ أَیۡمَـٰنُهُنَّ أَوِ ٱلتَّـٰبِعِینَ غَیۡرِ أُوْلِی ٱلۡإِرۡبَةِ مِنَ ٱلرِّجَالِ أَوِ ٱلطِّفۡلِ ٱلَّذِینَ لَمۡ یَظۡهَرُواْ عَلَىٰ عَوۡرَ ٰتِ ٱلنِّسَاۤءِۖ وَلَا یَضۡرِبۡنَ بِأَرۡجُلِهِنَّ لِیُعۡلَمَ مَا یُخۡفِینَ مِن زِینَتِهِنَّۚ وَتُوبُوۤاْ إِلَى ٱللَّهِ جَمِیعًا أَیُّهَ ٱلۡمُؤۡمِنُونَ لَعَلَّكُمۡ تُفۡلِحُونَ ﴿٣١﴾
और ईमान वाली स्त्रियों से कह दें कि अपनी निगाहें नीची रखें और अपने गुप्तांगों की रक्षा करें। और अपने श्रृंगार[20] का प्रदर्शन न करें, सिवाय उसके जो उसमें से प्रकट हो जाए। तथा अपनी ओढ़नियाँ अपने सीनों पर डाले रहें। और अपने श्रृंगार को ज़ाहिर न करें, परंतु अपने पतियों के लिए, या अपने पिताओं, या अपने पतियों के पिताओं, या अपने बेटों[21], या अपने पतियों के बेटों, या अपने भाइयों[23], या अपने भतीजों, या अपने भाँजों[24], या अपनी स्त्रियों[25], या अपने दास-दासियों, या अधीन रहने वाले पुरुषों[26] के लिए जो कामवासना वाले नहीं, या उन लड़कों के लिए जो स्त्रियों की पर्दे की बातों से परिचित नहीं हुए। तथा अपने पैर (धरती पर) न मारें, ताकि उनका वह श्रृंगार मालूम हो जाए, जो वह छिपाती हैं। और ऐ ईमान वालो! तुम सब अल्लाह से तौबा करो, ताकि तुम सफल हो जाओ।
وَأَنكِحُواْ ٱلۡأَیَـٰمَىٰ مِنكُمۡ وَٱلصَّـٰلِحِینَ مِنۡ عِبَادِكُمۡ وَإِمَاۤىِٕكُمۡۚ إِن یَكُونُواْ فُقَرَاۤءَ یُغۡنِهِمُ ٱللَّهُ مِن فَضۡلِهِۦۗ وَٱللَّهُ وَ ٰسِعٌ عَلِیمࣱ ﴿٣٢﴾
तथा तुम अपने में से अविवाहित पुरुषों तथा स्त्रियों का निकाह कर दो[27], और अपने दासों और अपनी दासियों में से जो सदाचारी हैं उनका भी (विवाह कर दो)। यदि वे निर्धन होंगे, तो अल्लाह उन्हें अपने अनुग्रह से धनी बना देगा। और अल्लाह विस्तार वाला, सब कुछ जानने वाला है।
وَلۡیَسۡتَعۡفِفِ ٱلَّذِینَ لَا یَجِدُونَ نِكَاحًا حَتَّىٰ یُغۡنِیَهُمُ ٱللَّهُ مِن فَضۡلِهِۦۗ وَٱلَّذِینَ یَبۡتَغُونَ ٱلۡكِتَـٰبَ مِمَّا مَلَكَتۡ أَیۡمَـٰنُكُمۡ فَكَاتِبُوهُمۡ إِنۡ عَلِمۡتُمۡ فِیهِمۡ خَیۡرࣰاۖ وَءَاتُوهُم مِّن مَّالِ ٱللَّهِ ٱلَّذِیۤ ءَاتَىٰكُمۡۚ وَلَا تُكۡرِهُواْ فَتَیَـٰتِكُمۡ عَلَى ٱلۡبِغَاۤءِ إِنۡ أَرَدۡنَ تَحَصُّنࣰا لِّتَبۡتَغُواْ عَرَضَ ٱلۡحَیَوٰةِ ٱلدُّنۡیَاۚ وَمَن یُكۡرِههُّنَّ فَإِنَّ ٱللَّهَ مِنۢ بَعۡدِ إِكۡرَ ٰهِهِنَّ غَفُورࣱ رَّحِیمࣱ ﴿٣٣﴾
और उन लोगों को (बहुत) पवित्र रहना चाहिए, जो विवाह का सामर्थ्य नहीं रखते, यहाँ तक कि अल्लाह उन्हें अपने अनुग्रह से समृद्ध कर दे। तथा तुम्हारे दास-दासियों में से जो लोग मुक्ति के लिए लेख की माँग करें, तो तुम उन्हें लिख दो, यदि तुम उनमें कुछ भलाई[28] जानो। और उन्हें अल्लाह के उस माल में से दो, जो उसने तुम्हें प्रदान किया है। तथा अपनी दासियों को वेश्यावृत्ति के लिए मजबूर न करो, यदि वे पवित्र रहना चाहें[29], ताकि तुम सांसारिक जीवन का सामान प्राप्त करो। और जो उन्हें मजबूर करेगा, तो निश्चय अल्लाह उनके मजबूर किए जाने के बाद[30], अति क्षमाशील, अत्यंत दयावान् है।
وَلَقَدۡ أَنزَلۡنَاۤ إِلَیۡكُمۡ ءَایَـٰتࣲ مُّبَیِّنَـٰتࣲ وَمَثَلࣰا مِّنَ ٱلَّذِینَ خَلَوۡاْ مِن قَبۡلِكُمۡ وَمَوۡعِظَةࣰ لِّلۡمُتَّقِینَ ﴿٣٤﴾
तथा निःसंदेह हमने तुम्हारी ओर स्पष्ट आयतें और तुमसे पहले गुज़रे हुए लोगों का उदाहरण और डरने वालों के लिए शिक्षा उतारी है।
۞ ٱللَّهُ نُورُ ٱلسَّمَـٰوَ ٰتِ وَٱلۡأَرۡضِۚ مَثَلُ نُورِهِۦ كَمِشۡكَوٰةࣲ فِیهَا مِصۡبَاحٌۖ ٱلۡمِصۡبَاحُ فِی زُجَاجَةٍۖ ٱلزُّجَاجَةُ كَأَنَّهَا كَوۡكَبࣱ دُرِّیࣱّ یُوقَدُ مِن شَجَرَةࣲ مُّبَـٰرَكَةࣲ زَیۡتُونَةࣲ لَّا شَرۡقِیَّةࣲ وَلَا غَرۡبِیَّةࣲ یَكَادُ زَیۡتُهَا یُضِیۤءُ وَلَوۡ لَمۡ تَمۡسَسۡهُ نَارࣱۚ نُّورٌ عَلَىٰ نُورࣲۚ یَهۡدِی ٱللَّهُ لِنُورِهِۦ مَن یَشَاۤءُۚ وَیَضۡرِبُ ٱللَّهُ ٱلۡأَمۡثَـٰلَ لِلنَّاسِۗ وَٱللَّهُ بِكُلِّ شَیۡءٍ عَلِیمࣱ ﴿٣٥﴾
अल्लाह आकाशों तथा धरती का[31] प्रकाश है। उसके प्रकाश की मिसाल एक ताक़ की तरह है, जिसमें एक दीप है। वह दीप (काँच के) एक फानूस में है। वह फानूस गोया चमकता हुआ तारा है। वह (दीप) एक बरकत वाले वृक्ष 'ज़ैतून' (के तेल) से जलाया जाता है, जो न पूर्वी है और न पश्चिमी। उसका तेल निकट है कि (स्वयं) प्रकाश देने लगे, यद्यपि उसे आग ने न छुआ हो। प्रकाश पर प्रकाश है। अल्लाह अपने प्रकाश की ओर जिसका चाहता है, मार्गदर्शन करता है। और अल्लाह लोगों के लिए मिसालें प्रस्तुत करता है। और अल्लाह प्रत्येक चीज़ को भली-भाँति जानने वाला है।
فِی بُیُوتٍ أَذِنَ ٱللَّهُ أَن تُرۡفَعَ وَیُذۡكَرَ فِیهَا ٱسۡمُهُۥ یُسَبِّحُ لَهُۥ فِیهَا بِٱلۡغُدُوِّ وَٱلۡـَٔاصَالِ ﴿٣٦﴾
(यह चिराग़) उन महान घरों[32] में (जलाया जाता है), जिनके बारे में अल्लाह ने आदेश दिया है कि वे ऊँचे किए जाएँ और उनमें उसका नाम याद किया जाए। उनमें सुबह और शाम उसकी महिमा का गान करते हैं।
رِجَالࣱ لَّا تُلۡهِیهِمۡ تِجَـٰرَةࣱ وَلَا بَیۡعٌ عَن ذِكۡرِ ٱللَّهِ وَإِقَامِ ٱلصَّلَوٰةِ وَإِیتَاۤءِ ٱلزَّكَوٰةِ یَخَافُونَ یَوۡمࣰا تَتَقَلَّبُ فِیهِ ٱلۡقُلُوبُ وَٱلۡأَبۡصَـٰرُ ﴿٣٧﴾
ऐसे लोग, जिन्हें व्यापार तथा क्रय-विक्रय अल्लाह के स्मरण, नमाज़ क़ायम करने और ज़कात देने से ग़ाफ़िल नहीं करता। वे उस दिन[33] से डरते हैं, जिसमें दिल तथा आँखें उलट जाएँगी।
لِیَجۡزِیَهُمُ ٱللَّهُ أَحۡسَنَ مَا عَمِلُواْ وَیَزِیدَهُم مِّن فَضۡلِهِۦۗ وَٱللَّهُ یَرۡزُقُ مَن یَشَاۤءُ بِغَیۡرِ حِسَابࣲ ﴿٣٨﴾
ताकि अल्लाह उन्हें उसका सर्वश्रेष्ठ बदला दे जो उन्होंने किया, और उन्हें अपने अनुग्रह से अधिक प्रदान करे और अल्लाह जिसे चाहता है, बेहिसाब जीविका देता है।
وَٱلَّذِینَ كَفَرُوۤاْ أَعۡمَـٰلُهُمۡ كَسَرَابِۭ بِقِیعَةࣲ یَحۡسَبُهُ ٱلظَّمۡـَٔانُ مَاۤءً حَتَّىٰۤ إِذَا جَاۤءَهُۥ لَمۡ یَجِدۡهُ شَیۡـࣰٔا وَوَجَدَ ٱللَّهَ عِندَهُۥ فَوَفَّىٰهُ حِسَابَهُۥۗ وَٱللَّهُ سَرِیعُ ٱلۡحِسَابِ ﴿٣٩﴾
तथा जिन लोगों ने कुफ़्र किया[34], उनके कर्म किसी चटियल मैदान में एक सराब (मरीचिका)[35] की तरह हैं, जिसे सख़्त प्यासा आदमी पानी समझता है। यहाँ तक कि जब उसके पास आता है, तो उसे कुछ भी नहीं पाता और अल्लाह को अपने पास पाता है, तो वह उसे उसका हिसाब पूरा चुका देता है। और अल्लाह बहुत जल्द हिसाब करने वाला है।
أَوۡ كَظُلُمَـٰتࣲ فِی بَحۡرࣲ لُّجِّیࣲّ یَغۡشَىٰهُ مَوۡجࣱ مِّن فَوۡقِهِۦ مَوۡجࣱ مِّن فَوۡقِهِۦ سَحَابࣱۚ ظُلُمَـٰتُۢ بَعۡضُهَا فَوۡقَ بَعۡضٍ إِذَاۤ أَخۡرَجَ یَدَهُۥ لَمۡ یَكَدۡ یَرَىٰهَاۗ وَمَن لَّمۡ یَجۡعَلِ ٱللَّهُ لَهُۥ نُورࣰا فَمَا لَهُۥ مِن نُّورٍ ﴿٤٠﴾
अथवा (उनके कर्म) उन अँधेरों के समान हैं, जो अत्यंत गहरे सागर में हों, जिसे एक लहर ढाँप रही हो, जिसके ऊपर एक और लहर हो, जिसके ऊपर एक बादल हो, कई अँधेरे हों, जिनमें से कुछ, कुछ के ऊपर हों। जब (इन अँधेरों में फँसा हुआ व्यक्ति) अपना हाथ निकाले, तो क़रीब नहीं कि उसे देख पाए। और वह व्यक्ति जिसके लिए अल्लाह प्रकाश न बनाए, तो उसके लिए कोई भी प्रकाश[36] नहीं।
أَلَمۡ تَرَ أَنَّ ٱللَّهَ یُسَبِّحُ لَهُۥ مَن فِی ٱلسَّمَـٰوَ ٰتِ وَٱلۡأَرۡضِ وَٱلطَّیۡرُ صَـٰۤفَّـٰتࣲۖ كُلࣱّ قَدۡ عَلِمَ صَلَاتَهُۥ وَتَسۡبِیحَهُۥۗ وَٱللَّهُ عَلِیمُۢ بِمَا یَفۡعَلُونَ ﴿٤١﴾
क्या आपने नहीं देखा कि अल्लाह ही की पवित्रता का गान करते हैं, जो आकाशों तथा धरती में हैं तथा पंख फैलाए हुए पक्षी (भी)? प्रत्येक ने निश्चय अपनी नमाज़ और पवित्रता गान को जान लिया[37] है। और अल्लाह उसे भली-भाँति जानने वाला है, जो वे करते हैं।
وَلِلَّهِ مُلۡكُ ٱلسَّمَـٰوَ ٰتِ وَٱلۡأَرۡضِۖ وَإِلَى ٱللَّهِ ٱلۡمَصِیرُ ﴿٤٢﴾
और अल्लाह ही के लिए आकाशों तथा धरती का राज्य है और अल्लाह ही की ओर लौटकर[38] जाना है।
أَلَمۡ تَرَ أَنَّ ٱللَّهَ یُزۡجِی سَحَابࣰا ثُمَّ یُؤَلِّفُ بَیۡنَهُۥ ثُمَّ یَجۡعَلُهُۥ رُكَامࣰا فَتَرَى ٱلۡوَدۡقَ یَخۡرُجُ مِنۡ خِلَـٰلِهِۦ وَیُنَزِّلُ مِنَ ٱلسَّمَاۤءِ مِن جِبَالࣲ فِیهَا مِنۢ بَرَدࣲ فَیُصِیبُ بِهِۦ مَن یَشَاۤءُ وَیَصۡرِفُهُۥ عَن مَّن یَشَاۤءُۖ یَكَادُ سَنَا بَرۡقِهِۦ یَذۡهَبُ بِٱلۡأَبۡصَـٰرِ ﴿٤٣﴾
क्या आपने नहीं देखा कि अल्लाह बादल को चलाता है। फिर उसे परस्पर मिलाता है। फिर उसे तह-ब-तह कर देता है। फिर आप बारिश को देखते हैं कि उसके बीच से निकल रही है। और वह आकाश से उसमें (मौजूद) पर्वतों जैसे बादलों से ओले बरसाता है। फिर जिसपर चाहता है, उन्हें गिराता है और जिससे चाहता है, उन्हें फेर देता है। निकट है कि उसकी बिजली की चमक आँखों को ले जाए।
یُقَلِّبُ ٱللَّهُ ٱلَّیۡلَ وَٱلنَّهَارَۚ إِنَّ فِی ذَ ٰلِكَ لَعِبۡرَةࣰ لِّأُوْلِی ٱلۡأَبۡصَـٰرِ ﴿٤٤﴾
अल्लाह ही रात और दिन को बदलता[39] रहता है। बेशक इसमें समझ-बूझ वालों के लिए निश्चय बड़ी शिक्षा है।
وَٱللَّهُ خَلَقَ كُلَّ دَاۤبَّةࣲ مِّن مَّاۤءࣲۖ فَمِنۡهُم مَّن یَمۡشِی عَلَىٰ بَطۡنِهِۦ وَمِنۡهُم مَّن یَمۡشِی عَلَىٰ رِجۡلَیۡنِ وَمِنۡهُم مَّن یَمۡشِی عَلَىٰۤ أَرۡبَعࣲۚ یَخۡلُقُ ٱللَّهُ مَا یَشَاۤءُۚ إِنَّ ٱللَّهَ عَلَىٰ كُلِّ شَیۡءࣲ قَدِیرࣱ ﴿٤٥﴾
अल्लाह ही ने प्रत्येक जीवधारी को पानी से पैदा किया। तो उनमें से कुछ अपने पेट के बल चलते हैं और उनमें से कुछ दो पैरों पर चलते हैं तथा उनमें से कुछ चार (पैरों) पर चलते हैं। अल्लाह जो चाहता है, पैदा करता है। निःसंदेह अल्लाह हर चीज़ पर सर्वशक्तिमान है।
لَّقَدۡ أَنزَلۡنَاۤ ءَایَـٰتࣲ مُّبَیِّنَـٰتࣲۚ وَٱللَّهُ یَهۡدِی مَن یَشَاۤءُ إِلَىٰ صِرَ ٰطࣲ مُّسۡتَقِیمࣲ ﴿٤٦﴾
निःसंदेह हमने स्पष्ट आयतें (क़ुरआन) अवतरित कर दी हैं और अल्लाह जिसे चाहता है, सीधा मार्ग दिखा देता है।
وَیَقُولُونَ ءَامَنَّا بِٱللَّهِ وَبِٱلرَّسُولِ وَأَطَعۡنَا ثُمَّ یَتَوَلَّىٰ فَرِیقࣱ مِّنۡهُم مِّنۢ بَعۡدِ ذَ ٰلِكَۚ وَمَاۤ أُوْلَـٰۤىِٕكَ بِٱلۡمُؤۡمِنِینَ ﴿٤٧﴾
और वे[40] कहते हैं कि हम अल्लाह पर तथा रसूल पर ईमान लाए और हमने आज्ञापालन किया। फिर इसके बाद उनमें से एक गिरोह मुँह फेर लेता है। और ये लोग ईमान वाले नहीं हैं।
وَإِذَا دُعُوۤاْ إِلَى ٱللَّهِ وَرَسُولِهِۦ لِیَحۡكُمَ بَیۡنَهُمۡ إِذَا فَرِیقࣱ مِّنۡهُم مُّعۡرِضُونَ ﴿٤٨﴾
और जब वे अल्लाह तथा उसके रसूल की ओर बुलाए जाते हैं, ताकि वह (रसूल) उनके बीच (विवाद का) निर्णय करें, तो अचानक उनमें से एक गिरोह मुँह फेरने वाला होता है।
وَإِن یَكُن لَّهُمُ ٱلۡحَقُّ یَأۡتُوۤاْ إِلَیۡهِ مُذۡعِنِینَ ﴿٤٩﴾
और यदि उन्हीं के लिए अधिकार हो, तो आज्ञाकारी बनकर आपके पास चले आते हैं।
أَفِی قُلُوبِهِم مَّرَضٌ أَمِ ٱرۡتَابُوۤاْ أَمۡ یَخَافُونَ أَن یَحِیفَ ٱللَّهُ عَلَیۡهِمۡ وَرَسُولُهُۥۚ بَلۡ أُوْلَـٰۤىِٕكَ هُمُ ٱلظَّـٰلِمُونَ ﴿٥٠﴾
क्या उनके दिलों में कोई रोग है, अथवा वे संदेह में पड़े हुए हैं, अथवा वे डर रहे हैं कि उनपर अल्लाह और उसका रसूल अत्याचार करेंगे? बल्कि वे लोग स्वयं ही अत्याचारी हैं।
إِنَّمَا كَانَ قَوۡلَ ٱلۡمُؤۡمِنِینَ إِذَا دُعُوۤاْ إِلَى ٱللَّهِ وَرَسُولِهِۦ لِیَحۡكُمَ بَیۡنَهُمۡ أَن یَقُولُواْ سَمِعۡنَا وَأَطَعۡنَاۚ وَأُوْلَـٰۤىِٕكَ هُمُ ٱلۡمُفۡلِحُونَ ﴿٥١﴾
ईमान वालों का कथन तो यह होता है कि जब अल्लाह और उसके रसूल की ओर बुलाए जाएँ, ताकि आप उनके बीच निर्णय कर दें, तो कहें कि हमने सुन लिया तथा मान लिया। और वही सफल होने वाले हैं।
وَمَن یُطِعِ ٱللَّهَ وَرَسُولَهُۥ وَیَخۡشَ ٱللَّهَ وَیَتَّقۡهِ فَأُوْلَـٰۤىِٕكَ هُمُ ٱلۡفَاۤىِٕزُونَ ﴿٥٢﴾
तथा जो अल्लाह और उसके रसूल की आज्ञा का पालन करे और अल्लाह का भय रखे और उसकी (यातना से) डरे, तो यही लोग सफल होने वाले हैं।
۞ وَأَقۡسَمُواْ بِٱللَّهِ جَهۡدَ أَیۡمَـٰنِهِمۡ لَىِٕنۡ أَمَرۡتَهُمۡ لَیَخۡرُجُنَّۖ قُل لَّا تُقۡسِمُواْۖ طَاعَةࣱ مَّعۡرُوفَةٌۚ إِنَّ ٱللَّهَ خَبِیرُۢ بِمَا تَعۡمَلُونَ ﴿٥٣﴾
और उन (मुनाफ़िक़ों) ने अल्लाह की मज़बूत क़समें खाईं कि यदि आप उन्हें आदेश दें, तो वे अवश्य (जिहाद के लिए) निकलेंगे। आप उनसे कह दें : क़समें न खाओ। तुम्हारे आज्ञापालन की दशा जानी-पहचानी है। निःसंदेह अल्लाह तुम्हारे कर्मों से भली-भाँति अवगत है।
قُلۡ أَطِیعُواْ ٱللَّهَ وَأَطِیعُواْ ٱلرَّسُولَۖ فَإِن تَوَلَّوۡاْ فَإِنَّمَا عَلَیۡهِ مَا حُمِّلَ وَعَلَیۡكُم مَّا حُمِّلۡتُمۡۖ وَإِن تُطِیعُوهُ تَهۡتَدُواْۚ وَمَا عَلَى ٱلرَّسُولِ إِلَّا ٱلۡبَلَـٰغُ ٱلۡمُبِینُ ﴿٥٤﴾
(ऐ नबी!) आप कह दें कि अल्लाह की आज्ञा का पालन करो तथा रसूल की आज्ञा का पालन करो, और यदि तुम विमुख हो जाओ, तो उस (रसूल) का कर्तव्य केवल वही है, जिसका उसपर भार डाला गया है, और तुम्हारे ज़िम्मे वह है, जिसका भार तुमपर डाला गया है, और यदि तुम उसका आज्ञापालन करोगे, तो मार्गदर्शन पा जाओगे। और रसूल का दायित्व केवल स्पष्ट रूप से पहुँचा देना है।
وَعَدَ ٱللَّهُ ٱلَّذِینَ ءَامَنُواْ مِنكُمۡ وَعَمِلُواْ ٱلصَّـٰلِحَـٰتِ لَیَسۡتَخۡلِفَنَّهُمۡ فِی ٱلۡأَرۡضِ كَمَا ٱسۡتَخۡلَفَ ٱلَّذِینَ مِن قَبۡلِهِمۡ وَلَیُمَكِّنَنَّ لَهُمۡ دِینَهُمُ ٱلَّذِی ٱرۡتَضَىٰ لَهُمۡ وَلَیُبَدِّلَنَّهُم مِّنۢ بَعۡدِ خَوۡفِهِمۡ أَمۡنࣰاۚ یَعۡبُدُونَنِی لَا یُشۡرِكُونَ بِی شَیۡـࣰٔاۚ وَمَن كَفَرَ بَعۡدَ ذَ ٰلِكَ فَأُوْلَـٰۤىِٕكَ هُمُ ٱلۡفَـٰسِقُونَ ﴿٥٥﴾
अल्लाह ने उन लोगों से, जो तुममें से ईमान लाए तथा उन्होंने सुकर्म किए, वादा[41] किया है कि वह उन्हें धरती में अवश्य ही अधिकार प्रदान करेगा, जिस तरह उन लोगों को अधिकार प्रदान किया, जो उनसे पहले थे, तथा उनके लिए उनके उस धर्म को अवश्य ही प्रभुत्व प्रदान करेगा, जिसे उसने उनके लिए पसंद किया है, तथा उन (की दशा) को उनके भय के पश्चात् शांति में बदल देगा। वे मेरी इबादत करेंगे, मेरे साथ किसी चीज़ को साझी नहीं बनाएँगे। और जिसने इसके बाद कुफ़्र किया, तो वही लोग अवज्ञाकारी हैं।
وَأَقِیمُواْ ٱلصَّلَوٰةَ وَءَاتُواْ ٱلزَّكَوٰةَ وَأَطِیعُواْ ٱلرَّسُولَ لَعَلَّكُمۡ تُرۡحَمُونَ ﴿٥٦﴾
तथा नमाज़ क़ायम करो और ज़कात दो तथा रसूल की आज्ञा का पालन करो, ताकि तुमपर दया की जाए।
لَا تَحۡسَبَنَّ ٱلَّذِینَ كَفَرُواْ مُعۡجِزِینَ فِی ٱلۡأَرۡضِۚ وَمَأۡوَىٰهُمُ ٱلنَّارُۖ وَلَبِئۡسَ ٱلۡمَصِیرُ ﴿٥٧﴾
और (ऐ नबी!) आप उन लोगों को जिन्होंने कुफ़्र किया, कदापि न समझें कि वे (अल्लाह को) धरती में विवश कर देने वाले हैं। और उनका ठिकाना आग (जहन्नम) है और निःसंदेह वह बुरा ठिकाना है।
یَـٰۤأَیُّهَا ٱلَّذِینَ ءَامَنُواْ لِیَسۡتَـٔۡذِنكُمُ ٱلَّذِینَ مَلَكَتۡ أَیۡمَـٰنُكُمۡ وَٱلَّذِینَ لَمۡ یَبۡلُغُواْ ٱلۡحُلُمَ مِنكُمۡ ثَلَـٰثَ مَرَّ ٰتࣲۚ مِّن قَبۡلِ صَلَوٰةِ ٱلۡفَجۡرِ وَحِینَ تَضَعُونَ ثِیَابَكُم مِّنَ ٱلظَّهِیرَةِ وَمِنۢ بَعۡدِ صَلَوٰةِ ٱلۡعِشَاۤءِۚ ثَلَـٰثُ عَوۡرَ ٰتࣲ لَّكُمۡۚ لَیۡسَ عَلَیۡكُمۡ وَلَا عَلَیۡهِمۡ جُنَاحُۢ بَعۡدَهُنَّۚ طَوَّ ٰفُونَ عَلَیۡكُم بَعۡضُكُمۡ عَلَىٰ بَعۡضࣲۚ كَذَ ٰلِكَ یُبَیِّنُ ٱللَّهُ لَكُمُ ٱلۡـَٔایَـٰتِۗ وَٱللَّهُ عَلِیمٌ حَكِیمࣱ ﴿٥٨﴾
ऐ ईमान वालो! जो (दास-दासी) तुम्हारे स्वामित्व में हों, और तुममें से जो अभी युवावस्था को न पहुँचे हों, उन्हें चाहिए कि तीन समयों में (तुम्हारे पास आने के लिए) तुमसे[42] अनुमति लें; फ़ज्र की नमाज़ से पहले, और जिस समय तुम दोपहर को अपने कपड़े उतार देते हो और इशा की नमाज़ के बाद। तुम्हारे लिए ये तीन पर्दे (के समय) हैं। इनके पश्चात न तो तुमपर कोई गुनाह है और न उनपर। तुम अकसर एक-दूसरे के पास आने-जाने वाले हो। इसी प्रकार, अल्लाह तुम्हारे लिए आयतों को स्पष्ट करता है। और अल्लाह सब कुछ जानने वाला, पूर्ण हिकमत वाला है।
وَإِذَا بَلَغَ ٱلۡأَطۡفَـٰلُ مِنكُمُ ٱلۡحُلُمَ فَلۡیَسۡتَـٔۡذِنُواْ كَمَا ٱسۡتَـٔۡذَنَ ٱلَّذِینَ مِن قَبۡلِهِمۡۚ كَذَ ٰلِكَ یُبَیِّنُ ٱللَّهُ لَكُمۡ ءَایَـٰتِهِۦۗ وَٱللَّهُ عَلِیمٌ حَكِیمࣱ ﴿٥٩﴾
और जब तुममें से बच्चे युवावस्था को पहुँच जाएँ, तो वे उसी तरह अनुमति लें, जिस तरह उनसे पहले के लोग अनुमति लेते रहे हैं। इसी प्रकार अल्लाह तुम्हारे लिए अपनी आयतों को स्पष्ट करता है। तथा अल्लाह भली-भाँति जानने वाला, पूर्ण हिकमत वाला है।
وَٱلۡقَوَ ٰعِدُ مِنَ ٱلنِّسَاۤءِ ٱلَّـٰتِی لَا یَرۡجُونَ نِكَاحࣰا فَلَیۡسَ عَلَیۡهِنَّ جُنَاحٌ أَن یَضَعۡنَ ثِیَابَهُنَّ غَیۡرَ مُتَبَرِّجَـٰتِۭ بِزِینَةࣲۖ وَأَن یَسۡتَعۡفِفۡنَ خَیۡرࣱ لَّهُنَّۗ وَٱللَّهُ سَمِیعٌ عَلِیمࣱ ﴿٦٠﴾
तथा जो बूढ़ी स्त्रियाँ विवाह की आशा न रखती हों, उनपर कोई दोष नहीं कि अपनी (पर्दे की) चादरें उतारकर रख दें, प्रतिबंध यह है कि किसी प्रकार की शोभा का प्रदर्शन करने वाली न हों। और यदि (इससे भी) बचें[43] तो उनके लिए अधिक अच्छा है। और अल्लाह सब कुछ सुनने वाला, सब कुछ जानने वाला है।
لَّیۡسَ عَلَى ٱلۡأَعۡمَىٰ حَرَجࣱ وَلَا عَلَى ٱلۡأَعۡرَجِ حَرَجࣱ وَلَا عَلَى ٱلۡمَرِیضِ حَرَجࣱ وَلَا عَلَىٰۤ أَنفُسِكُمۡ أَن تَأۡكُلُواْ مِنۢ بُیُوتِكُمۡ أَوۡ بُیُوتِ ءَابَاۤىِٕكُمۡ أَوۡ بُیُوتِ أُمَّهَـٰتِكُمۡ أَوۡ بُیُوتِ إِخۡوَ ٰنِكُمۡ أَوۡ بُیُوتِ أَخَوَ ٰتِكُمۡ أَوۡ بُیُوتِ أَعۡمَـٰمِكُمۡ أَوۡ بُیُوتِ عَمَّـٰتِكُمۡ أَوۡ بُیُوتِ أَخۡوَ ٰلِكُمۡ أَوۡ بُیُوتِ خَـٰلَـٰتِكُمۡ أَوۡ مَا مَلَكۡتُم مَّفَاتِحَهُۥۤ أَوۡ صَدِیقِكُمۡۚ لَیۡسَ عَلَیۡكُمۡ جُنَاحٌ أَن تَأۡكُلُواْ جَمِیعًا أَوۡ أَشۡتَاتࣰاۚ فَإِذَا دَخَلۡتُم بُیُوتࣰا فَسَلِّمُواْ عَلَىٰۤ أَنفُسِكُمۡ تَحِیَّةࣰ مِّنۡ عِندِ ٱللَّهِ مُبَـٰرَكَةࣰ طَیِّبَةࣰۚ كَذَ ٰلِكَ یُبَیِّنُ ٱللَّهُ لَكُمُ ٱلۡـَٔایَـٰتِ لَعَلَّكُمۡ تَعۡقِلُونَ ﴿٦١﴾
अंधे पर कोई दोष नहीं है, न लंगड़े पर कोई दोष[44] है, न रोगी पर कोई दोष है और न स्वयं तुमपर कोई दोष है कि तुम अपने घरों[45] से खाओ, या अपने बापों के घरों से, या अपनी माँओं के घरों से, या अपने भाइयों के घरों से, या अपनी बहनों के घरों से, या अपने चाचाओं के घरों से, या अपनी फूफियों के घरों से, या अपने मामाओं के घरों से, या अपनी मौसियों के घरों से, या (उस घर से) जिसकी चाबियों के तुम स्वामी[46] हो, या अपने मित्र (के घर) से। तुमपर कोई दोष नहीं कि एक साथ खाओ या अलग-अलग। फिर जब तुम घरों में प्रवेश करो, तो अपनों को सलाम करो। अल्लाह की ओर से निर्धारित की हुई सुरक्षा एवं शांति की दुआ, जो बरकत वाली, पवित्र है। इसी प्रकार अल्लाह तुम्हारे लिए आयतों को खोलकर बयान करता है, ताकि तुम समझ जाओ।
إِنَّمَا ٱلۡمُؤۡمِنُونَ ٱلَّذِینَ ءَامَنُواْ بِٱللَّهِ وَرَسُولِهِۦ وَإِذَا كَانُواْ مَعَهُۥ عَلَىٰۤ أَمۡرࣲ جَامِعࣲ لَّمۡ یَذۡهَبُواْ حَتَّىٰ یَسۡتَـٔۡذِنُوهُۚ إِنَّ ٱلَّذِینَ یَسۡتَـٔۡذِنُونَكَ أُوْلَـٰۤىِٕكَ ٱلَّذِینَ یُؤۡمِنُونَ بِٱللَّهِ وَرَسُولِهِۦۚ فَإِذَا ٱسۡتَـٔۡذَنُوكَ لِبَعۡضِ شَأۡنِهِمۡ فَأۡذَن لِّمَن شِئۡتَ مِنۡهُمۡ وَٱسۡتَغۡفِرۡ لَهُمُ ٱللَّهَۚ إِنَّ ٱللَّهَ غَفُورࣱ رَّحِیمࣱ ﴿٦٢﴾
ईमान वाले तो केवल वे लोग हैं, जो अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान लाए और जब वे उसके साथ किसी सामूहिक कार्य पर होते हैं, तो उस समय तक नहीं जाते, जब तक उससे अनुमति न ले लें। निःसंदेह जो लोग आपसे अनुमति माँगते हैं, वही लोग अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान रखते हैं। अतः जब वे आपसे अपने किसी कार्य के लिए अनुमति माँगें, तो आप उनमें से जिसे चाहें, अनुमति प्रदान कर दें और उनके लिए अल्लाह से क्षमा की प्रार्थना करें। निःसंदेह अल्लाह अति क्षमाशील, अत्यंत दयावान् है|
لَّا تَجۡعَلُواْ دُعَاۤءَ ٱلرَّسُولِ بَیۡنَكُمۡ كَدُعَاۤءِ بَعۡضِكُم بَعۡضࣰاۚ قَدۡ یَعۡلَمُ ٱللَّهُ ٱلَّذِینَ یَتَسَلَّلُونَ مِنكُمۡ لِوَاذࣰاۚ فَلۡیَحۡذَرِ ٱلَّذِینَ یُخَالِفُونَ عَنۡ أَمۡرِهِۦۤ أَن تُصِیبَهُمۡ فِتۡنَةٌ أَوۡ یُصِیبَهُمۡ عَذَابٌ أَلِیمٌ ﴿٦٣﴾
और तुम रसूल के बुलाने को, परस्पर एक-दूसरे को बुलाने जैसा[47] न बना लो। निःसंदेह अल्लाह उन लोगों को जानता है, जो तुममें से एक-दूसरे की आड़ लेते हुए (चुपके से) खिसक जाते हैं। अतः उन लोगों को डरना चाहिए, जो आपके आदेश का विरोध करते हैं कि उनपर कोई आपदा आ पड़े अथवा उनपर कोई दुःखदायी यातना आ जाए।
أَلَاۤ إِنَّ لِلَّهِ مَا فِی ٱلسَّمَـٰوَ ٰتِ وَٱلۡأَرۡضِۖ قَدۡ یَعۡلَمُ مَاۤ أَنتُمۡ عَلَیۡهِ وَیَوۡمَ یُرۡجَعُونَ إِلَیۡهِ فَیُنَبِّئُهُم بِمَا عَمِلُواْۗ وَٱللَّهُ بِكُلِّ شَیۡءٍ عَلِیمُۢ ﴿٦٤﴾
सावधान! अल्लाह ही का है, जो कुछ आकाशों तथा धरती में है। निश्चय वह जानता है जिस (दशा) पर तुम हो। और जिस दिन वे उसकी ओर लौटाए जाएँगे, तो वह उन्हें बताएगा[48], जो कुछ उन्होंने किया और अल्लाह प्रत्येक चीज़ को भली-भाँति जानने वाला है।