أَحَسِبَ ٱلنَّاسُ أَن یُتۡرَكُوۤاْ أَن یَقُولُوۤاْ ءَامَنَّا وَهُمۡ لَا یُفۡتَنُونَ ﴿٢﴾
क्या लोगों ने यह समझ लिया है कि वे केवल यह कहने पर छोड़ दिए जाएँगे कि "हम ईमान लाए" और उनकी परीक्षा न ली जाएगी?
وَلَقَدۡ فَتَنَّا ٱلَّذِینَ مِن قَبۡلِهِمۡۖ فَلَیَعۡلَمَنَّ ٱللَّهُ ٱلَّذِینَ صَدَقُواْ وَلَیَعۡلَمَنَّ ٱلۡكَـٰذِبِینَ ﴿٣﴾
हालाँकि निःसंदेह हमने उन लोगों की परीक्षा ली जो इनसे पहले थे। अतः अल्लाह उन लोगों को अवश्य जान लेगा जिन्होंने सच कहा, तथा वह उन लोगों को (भी) अवश्य जान लेगा जो झूठे हैं।
أَمۡ حَسِبَ ٱلَّذِینَ یَعۡمَلُونَ ٱلسَّیِّـَٔاتِ أَن یَسۡبِقُونَاۚ سَاۤءَ مَا یَحۡكُمُونَ ﴿٤﴾
या उन लोगों ने जो बुरे काम करते हैं, यह समझ लिया है कि वे हमसे बचकर निकल जाएँगे?[1] बुरा है जो वे निर्णय कर रहे हैं।
مَن كَانَ یَرۡجُواْ لِقَاۤءَ ٱللَّهِ فَإِنَّ أَجَلَ ٱللَّهِ لَـَٔاتࣲۚ وَهُوَ ٱلسَّمِیعُ ٱلۡعَلِیمُ ﴿٥﴾
जो अल्लाह से मिलने[2] की आशा रखता हो, तो निःसंदेह अल्लाह का नियत समय[3] अवश्य आने वाला है। और वही सब कुछ सुनने वाला, सब कुछ जानने[4] वाला है।
وَمَن جَـٰهَدَ فَإِنَّمَا یُجَـٰهِدُ لِنَفۡسِهِۦۤۚ إِنَّ ٱللَّهَ لَغَنِیٌّ عَنِ ٱلۡعَـٰلَمِینَ ﴿٦﴾
और जो व्यक्ति संघर्ष करता है, तो वह अपने ही लिए संघर्ष करता है। निश्चय अल्लाह सारे संसार से बड़ा बेपरवाह है।
وَٱلَّذِینَ ءَامَنُواْ وَعَمِلُواْ ٱلصَّـٰلِحَـٰتِ لَنُكَفِّرَنَّ عَنۡهُمۡ سَیِّـَٔاتِهِمۡ وَلَنَجۡزِیَنَّهُمۡ أَحۡسَنَ ٱلَّذِی كَانُواْ یَعۡمَلُونَ ﴿٧﴾
तथा जो लोग ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए, निश्चय हम उनसे उनकी बुराइयाँ अवश्य दूर कर देंगे तथा निश्चय उन्हें उस कार्य का उत्तम बदला अवश्य देंगे जो वे किया करते थे।
وَوَصَّیۡنَا ٱلۡإِنسَـٰنَ بِوَ ٰلِدَیۡهِ حُسۡنࣰاۖ وَإِن جَـٰهَدَاكَ لِتُشۡرِكَ بِی مَا لَیۡسَ لَكَ بِهِۦ عِلۡمࣱ فَلَا تُطِعۡهُمَاۤۚ إِلَیَّ مَرۡجِعُكُمۡ فَأُنَبِّئُكُم بِمَا كُنتُمۡ تَعۡمَلُونَ ﴿٨﴾
और हमने मनुष्य को अपने माँ-बाप के साथ भलाई करने की ताकीद[5] की है और यदि वे तुझपर ज़ोर डालें कि तू मेरे साथ उस चीज़ को साझी ठहराए, जिसका तुझको कोई ज्ञान नहीं, तो उनकी बात न मान।[6] तुम्हें मेरी ओर ही लौटकर आना है। फिर मैं तुम्हें बताऊँगा जो तुम किया करते थे।
وَٱلَّذِینَ ءَامَنُواْ وَعَمِلُواْ ٱلصَّـٰلِحَـٰتِ لَنُدۡخِلَنَّهُمۡ فِی ٱلصَّـٰلِحِینَ ﴿٩﴾
और जो लोग ईमान लाए तथा अच्छे कर्म किए, हम उन्हें अवश्य सदाचारियों में सम्मिलित करेंगे।
وَمِنَ ٱلنَّاسِ مَن یَقُولُ ءَامَنَّا بِٱللَّهِ فَإِذَاۤ أُوذِیَ فِی ٱللَّهِ جَعَلَ فِتۡنَةَ ٱلنَّاسِ كَعَذَابِ ٱللَّهِۖ وَلَىِٕن جَاۤءَ نَصۡرࣱ مِّن رَّبِّكَ لَیَقُولُنَّ إِنَّا كُنَّا مَعَكُمۡۚ أَوَلَیۡسَ ٱللَّهُ بِأَعۡلَمَ بِمَا فِی صُدُورِ ٱلۡعَـٰلَمِینَ ﴿١٠﴾
और लोगों में से कुछ ऐसे हैं, जो कहते हैं : हम अल्लाह पर ईमान लाए। फिर जब अल्लाह के मामले में उसे सताया जए, तो लोगों के सताने को अल्लाह की यातना के समान समझ लेता है। और निश्चय यदि आपके पालनहार की ओर से कोई सहायता आ जाए, तो निश्चय ज़रूर कहेंगे : हम तो तुम्हारे साथ थे। और क्या अल्लाह उसे अधिक जानने वाला नहीं, जो सारे संसार के दिलों में है?
وَلَیَعۡلَمَنَّ ٱللَّهُ ٱلَّذِینَ ءَامَنُواْ وَلَیَعۡلَمَنَّ ٱلۡمُنَـٰفِقِینَ ﴿١١﴾
और निश्चय अल्लाह उन लोगों को अवश्य जान लेगा, जो ईमान लाए तथा निश्चय उन्हें भी अवश्य जान लेगा, जो मुनाफ़िक़ हैं।
وَقَالَ ٱلَّذِینَ كَفَرُواْ لِلَّذِینَ ءَامَنُواْ ٱتَّبِعُواْ سَبِیلَنَا وَلۡنَحۡمِلۡ خَطَـٰیَـٰكُمۡ وَمَا هُم بِحَـٰمِلِینَ مِنۡ خَطَـٰیَـٰهُم مِّن شَیۡءٍۖ إِنَّهُمۡ لَكَـٰذِبُونَ ﴿١٢﴾
और काफ़िरों ने उन लोगों से कहा जो ईमान लाए कि तुम हमारे पथ पर चलो और हम तुम्हारे पापों का बोझ उठा लेंगे। हालाँकि वे कदापि उनके पापों में से कुछ भी उठाने वाले नहीं हैं। बेशक वे निश्चय झूठे हैं।
وَلَیَحۡمِلُنَّ أَثۡقَالَهُمۡ وَأَثۡقَالࣰا مَّعَ أَثۡقَالِهِمۡۖ وَلَیُسۡـَٔلُنَّ یَوۡمَ ٱلۡقِیَـٰمَةِ عَمَّا كَانُواْ یَفۡتَرُونَ ﴿١٣﴾
और निश्चय वे अवश्य अपने बोझ उठाएँगे और अपने बोझों के साथ कई और[7] बोझ भी। और निश्चय वे क़ियामत के दिन उसके बारे में अवश्य पूछे जाएँगे, जो वे झूठ गढ़ा करते थे।
وَلَقَدۡ أَرۡسَلۡنَا نُوحًا إِلَىٰ قَوۡمِهِۦ فَلَبِثَ فِیهِمۡ أَلۡفَ سَنَةٍ إِلَّا خَمۡسِینَ عَامࣰا فَأَخَذَهُمُ ٱلطُّوفَانُ وَهُمۡ ظَـٰلِمُونَ ﴿١٤﴾
और निःसंदेह हमने[8] नूह़ को उसकी जाति की ओर भेजा, तो वह उनके बीच पचास वर्ष कम हज़ार वर्ष[9] रहा। फिर उन्हें तूफ़ान ने पकड़ लिया इस स्थिति में कि वे अत्याचारी थे।
فَأَنجَیۡنَـٰهُ وَأَصۡحَـٰبَ ٱلسَّفِینَةِ وَجَعَلۡنَـٰهَاۤ ءَایَةࣰ لِّلۡعَـٰلَمِینَ ﴿١٥﴾
फिर हमने उसे और नाव वालों को बचा लिया और उस (नाव) को सारे संसार के लिए एक निशानी बना दिया।
وَإِبۡرَ ٰهِیمَ إِذۡ قَالَ لِقَوۡمِهِ ٱعۡبُدُواْ ٱللَّهَ وَٱتَّقُوهُۖ ذَ ٰلِكُمۡ خَیۡرࣱ لَّكُمۡ إِن كُنتُمۡ تَعۡلَمُونَ ﴿١٦﴾
तथा इबराहीम को (याद करो) जब उसने अपनी जाति से कहा : अल्लाह की इबादत करो तथा उससे डरो। यह तुम्हारे लिए उत्तम है, यदि तुम जानते हो।
إِنَّمَا تَعۡبُدُونَ مِن دُونِ ٱللَّهِ أَوۡثَـٰنࣰا وَتَخۡلُقُونَ إِفۡكًاۚ إِنَّ ٱلَّذِینَ تَعۡبُدُونَ مِن دُونِ ٱللَّهِ لَا یَمۡلِكُونَ لَكُمۡ رِزۡقࣰا فَٱبۡتَغُواْ عِندَ ٱللَّهِ ٱلرِّزۡقَ وَٱعۡبُدُوهُ وَٱشۡكُرُواْ لَهُۥۤۖ إِلَیۡهِ تُرۡجَعُونَ ﴿١٧﴾
तुम अल्लाह के सिवा कुछ मूर्तियों ही की तो पूजा करते हो और तुम घोर झूठ गढ़ते हो। निःसंदेह अल्लाह के सिवा जिनकी तुम पूजा करते हो, वे तुम्हारे लिए किसी रोज़ी के मालिक नहीं हैं। अतः तुम अल्लाह के पास ही रोज़ी तलाश करो और उसकी इबादत करो और उसका शुक्र करो। तुम उसी की तरफ़ लौटाए जाओगे।
وَإِن تُكَذِّبُواْ فَقَدۡ كَذَّبَ أُمَمࣱ مِّن قَبۡلِكُمۡۖ وَمَا عَلَى ٱلرَّسُولِ إِلَّا ٱلۡبَلَـٰغُ ٱلۡمُبِینُ ﴿١٨﴾
और यदि तुम झुठलाते हो, तो तुमसे पहले (भी) बहुत-से समुदायों ने झुठलाया है और रसूल का दायित्व[10] स्पष्ट रूप से पहुँचा देने के सिवा कुछ नहीं है।
أَوَلَمۡ یَرَوۡاْ كَیۡفَ یُبۡدِئُ ٱللَّهُ ٱلۡخَلۡقَ ثُمَّ یُعِیدُهُۥۤۚ إِنَّ ذَ ٰلِكَ عَلَى ٱللَّهِ یَسِیرࣱ ﴿١٩﴾
क्या उन्होंने नहीं देखा कि अल्लाह किस प्रकार सृष्टि का आरंभ करता है, फिर उसे दोहराएगा? निश्चय ही यह अल्लाह के लिए अत्यंत सरल है।
قُلۡ سِیرُواْ فِی ٱلۡأَرۡضِ فَٱنظُرُواْ كَیۡفَ بَدَأَ ٱلۡخَلۡقَۚ ثُمَّ ٱللَّهُ یُنشِئُ ٱلنَّشۡأَةَ ٱلۡـَٔاخِرَةَۚ إِنَّ ٱللَّهَ عَلَىٰ كُلِّ شَیۡءࣲ قَدِیرࣱ ﴿٢٠﴾
कह दें : धरती में चलो-फिरो, फिर देखो कि उसने किस प्रकार सृष्टि का आरंभ किया? फिर अल्लाह ही दूसरी बार पैदा[11] करेगा। निःसंदेह अल्लाह प्रत्येक वस्तु पर सर्वशक्तिमान है।
یُعَذِّبُ مَن یَشَاۤءُ وَیَرۡحَمُ مَن یَشَاۤءُۖ وَإِلَیۡهِ تُقۡلَبُونَ ﴿٢١﴾
वह जिसे चाहता है, दंड देता है और जिसपर चाहता है दया करता है, और तुम उसी की ओर लौटाए जाओगे।
وَمَاۤ أَنتُم بِمُعۡجِزِینَ فِی ٱلۡأَرۡضِ وَلَا فِی ٱلسَّمَاۤءِۖ وَمَا لَكُم مِّن دُونِ ٱللَّهِ مِن وَلِیࣲّ وَلَا نَصِیرࣲ ﴿٢٢﴾
और न तुम किसी भी तरह धरती में विवश करने वाले हो और न आकाश में, और न अल्लाह के अलावा तुम्हारा कोई दोस्त है और न कोई मददगार।
وَٱلَّذِینَ كَفَرُواْ بِـَٔایَـٰتِ ٱللَّهِ وَلِقَاۤىِٕهِۦۤ أُوْلَـٰۤىِٕكَ یَىِٕسُواْ مِن رَّحۡمَتِی وَأُوْلَـٰۤىِٕكَ لَهُمۡ عَذَابٌ أَلِیمࣱ ﴿٢٣﴾
तथा जिन लोगों ने अल्लाह की आयतों और उससे मिलने का इनकार किया, वे मेरी दया से निराश हो गए हैं और वही लोग हैं जिनके लिए दर्दनाक यातना है।
فَمَا كَانَ جَوَابَ قَوۡمِهِۦۤ إِلَّاۤ أَن قَالُواْ ٱقۡتُلُوهُ أَوۡ حَرِّقُوهُ فَأَنجَىٰهُ ٱللَّهُ مِنَ ٱلنَّارِۚ إِنَّ فِی ذَ ٰلِكَ لَـَٔایَـٰتࣲ لِّقَوۡمࣲ یُؤۡمِنُونَ ﴿٢٤﴾
फिर उस (इबराहीम) की जाति का उत्तर बस यही था कि उन्होंने कहा कि इसे क़त्ल कर दो, या इसे जला दो। तो अल्लाह ने उसे आग से बचा लिया। निःसंदेह इसमें उन लोगों के लिए बहुत-सी निशानियाँ हैं जो ईमान रखते हैं।
وَقَالَ إِنَّمَا ٱتَّخَذۡتُم مِّن دُونِ ٱللَّهِ أَوۡثَـٰنࣰا مَّوَدَّةَ بَیۡنِكُمۡ فِی ٱلۡحَیَوٰةِ ٱلدُّنۡیَاۖ ثُمَّ یَوۡمَ ٱلۡقِیَـٰمَةِ یَكۡفُرُ بَعۡضُكُم بِبَعۡضࣲ وَیَلۡعَنُ بَعۡضُكُم بَعۡضࣰا وَمَأۡوَىٰكُمُ ٱلنَّارُ وَمَا لَكُم مِّن نَّـٰصِرِینَ ﴿٢٥﴾
और उसने कहा : बात यही है कि तुमने अल्लाह के सिवा मूर्तियाँ बना रखी हैं, दुनिया के जीवन में पारस्परिक दोस्ती के कारण। फिर क़ियामत के दिन तुम एक-दूसरे का इनकार करोगे तथा तुम एक-दूसरे पर ला'नत करोगे। और तुम्हारा ठिकाना आग ही है और तुम्हारे लिए कोई मदद करने वाले नहीं।
۞ فَـَٔامَنَ لَهُۥ لُوطࣱۘ وَقَالَ إِنِّی مُهَاجِرٌ إِلَىٰ رَبِّیۤۖ إِنَّهُۥ هُوَ ٱلۡعَزِیزُ ٱلۡحَكِیمُ ﴿٢٦﴾
तो लूत[12] उसपर ईमान ले आया। और उस (इबराहीम) ने कहा : निःसंदेह मैं अपने रब[13] की ओर हिजरत करने वाला हूँ। निश्चय वही सब पर प्रभुत्वशाली, पूर्ण हिकमत वाला है।
وَوَهَبۡنَا لَهُۥۤ إِسۡحَـٰقَ وَیَعۡقُوبَ وَجَعَلۡنَا فِی ذُرِّیَّتِهِ ٱلنُّبُوَّةَ وَٱلۡكِتَـٰبَ وَءَاتَیۡنَـٰهُ أَجۡرَهُۥ فِی ٱلدُّنۡیَاۖ وَإِنَّهُۥ فِی ٱلۡـَٔاخِرَةِ لَمِنَ ٱلصَّـٰلِحِینَ ﴿٢٧﴾
और हमने उसे इसह़ाक़ तथा याक़ूब प्रदान किया। तथा हमने उसकी संतान में नुबुव्वत तथा किताब रख दी। और हमने उसे दुनिया में उसका बदला दिया और निःसंदेह वह आख़िरत में निश्चय नेक लोगों में से है।
وَلُوطًا إِذۡ قَالَ لِقَوۡمِهِۦۤ إِنَّكُمۡ لَتَأۡتُونَ ٱلۡفَـٰحِشَةَ مَا سَبَقَكُم بِهَا مِنۡ أَحَدࣲ مِّنَ ٱلۡعَـٰلَمِینَ ﴿٢٨﴾
तथा लूत को (याद करो) जब उसने अपनी जाति से कहा : तुम तो वह निर्लज्जता का कार्य करते हो, जो तुमसे पहले दुनिया वालों में से किसी ने नहीं किया।
أَىِٕنَّكُمۡ لَتَأۡتُونَ ٱلرِّجَالَ وَتَقۡطَعُونَ ٱلسَّبِیلَ وَتَأۡتُونَ فِی نَادِیكُمُ ٱلۡمُنكَرَۖ فَمَا كَانَ جَوَابَ قَوۡمِهِۦۤ إِلَّاۤ أَن قَالُواْ ٱئۡتِنَا بِعَذَابِ ٱللَّهِ إِن كُنتَ مِنَ ٱلصَّـٰدِقِینَ ﴿٢٩﴾
क्या तुम सचमुच पुरुषों के पास जाते हो और (यात्रियों का) रास्ता काटते हो तथा अपनी सभा में बुरे काम करते हो? तो उसकी जाति का उत्तर इसके सिवा कुछ न था कि उन्होंने कहा : हम पर अल्लाह की यातना ले आ, यदि तू सच्चा है।
قَالَ رَبِّ ٱنصُرۡنِی عَلَى ٱلۡقَوۡمِ ٱلۡمُفۡسِدِینَ ﴿٣٠﴾
उसने कहा : ऐ मेरे पालनहार! इन बिगाड़ पैदा करने वाले लोगों के विरुद्ध मेरी सहायता कर।
وَلَمَّا جَاۤءَتۡ رُسُلُنَاۤ إِبۡرَ ٰهِیمَ بِٱلۡبُشۡرَىٰ قَالُوۤاْ إِنَّا مُهۡلِكُوۤاْ أَهۡلِ هَـٰذِهِ ٱلۡقَرۡیَةِۖ إِنَّ أَهۡلَهَا كَانُواْ ظَـٰلِمِینَ ﴿٣١﴾
और जब हमारे भेजे हुए (फ़रिश्ते) इबराहीम के पास शुभ-सूचना लेकर आए, तो उन्होंने कहा : निश्चय हम इस बस्ती के वासियों को विनष्ट करने वाले हैं। निःसंदेह इसके निवासी अत्याचारी रहे हैं।
قَالَ إِنَّ فِیهَا لُوطࣰاۚ قَالُواْ نَحۡنُ أَعۡلَمُ بِمَن فِیهَاۖ لَنُنَجِّیَنَّهُۥ وَأَهۡلَهُۥۤ إِلَّا ٱمۡرَأَتَهُۥ كَانَتۡ مِنَ ٱلۡغَـٰبِرِینَ ﴿٣٢﴾
उसने कहा : उसमें तो लूत है। उन्होंने कहा : हम उसे अधिक जानने वाले हैं, जो उसमें है। निश्चय हम उसे और उसके घर वालों को अवश्य बचा लेंगे, सिवाय उसकी पत्नी के। वह पीछे रहने वालों में से है।
وَلَمَّاۤ أَن جَاۤءَتۡ رُسُلُنَا لُوطࣰا سِیۤءَ بِهِمۡ وَضَاقَ بِهِمۡ ذَرۡعࣰاۖ وَقَالُواْ لَا تَخَفۡ وَلَا تَحۡزَنۡ إِنَّا مُنَجُّوكَ وَأَهۡلَكَ إِلَّا ٱمۡرَأَتَكَ كَانَتۡ مِنَ ٱلۡغَـٰبِرِینَ ﴿٣٣﴾
और जब हमारे भेजे हुए (फ़रिश्ते) लूत के पास आए, तो वह उनके आने से उदास हुआ और उनके कारण उसका मन व्याकुल[14] हो गया। और उन्होंने कहा : न डरो और न शोक करो। निःसंदेह हम तुम्हें और तुम्हारे घर वालों को बचाने वाले हैं, सिवाय तुम्हारी पत्नी के, वह पीछो रह जाने वालों में से है।
إِنَّا مُنزِلُونَ عَلَىٰۤ أَهۡلِ هَـٰذِهِ ٱلۡقَرۡیَةِ رِجۡزࣰا مِّنَ ٱلسَّمَاۤءِ بِمَا كَانُواْ یَفۡسُقُونَ ﴿٣٤﴾
निःसंदेह हम इस बस्ती वालों पर आकाश से एक यातना उतारने वाले हैं, इस कारण कि वे अवज्ञा किया करते थे।
وَلَقَد تَّرَكۡنَا مِنۡهَاۤ ءَایَةَۢ بَیِّنَةࣰ لِّقَوۡمࣲ یَعۡقِلُونَ ﴿٣٥﴾
तथा निःसंदेह हमने उससे उन लोगों के लिए एक स्पष्ट निशानी छोड़ दी, जो समझ-बूझ रखते हैं।
وَإِلَىٰ مَدۡیَنَ أَخَاهُمۡ شُعَیۡبࣰا فَقَالَ یَـٰقَوۡمِ ٱعۡبُدُواْ ٱللَّهَ وَٱرۡجُواْ ٱلۡیَوۡمَ ٱلۡـَٔاخِرَ وَلَا تَعۡثَوۡاْ فِی ٱلۡأَرۡضِ مُفۡسِدِینَ ﴿٣٦﴾
तथा मदयन की ओर उनके भाई शुऐब को (भेजा), तो उसने कहा : ऐ मेरी जाति के लोगो! अल्लाह की इबादत करो तथा आख़िरत के दिन[15] की आशा रखो और धरती में बिगाड़ पैदा करने वाले बनकर उपद्रव न मचाओ।
فَكَذَّبُوهُ فَأَخَذَتۡهُمُ ٱلرَّجۡفَةُ فَأَصۡبَحُواْ فِی دَارِهِمۡ جَـٰثِمِینَ ﴿٣٧﴾
तो उन्होंने उसे झुठला दिया। अंततः उन्हें भूकंप ने पकड़ लिया, फिर वे अपने घरों में औंधे मुँह पड़े रह गए।
وَعَادࣰا وَثَمُودَاْ وَقَد تَّبَیَّنَ لَكُم مِّن مَّسَـٰكِنِهِمۡۖ وَزَیَّنَ لَهُمُ ٱلشَّیۡطَـٰنُ أَعۡمَـٰلَهُمۡ فَصَدَّهُمۡ عَنِ ٱلسَّبِیلِ وَكَانُواْ مُسۡتَبۡصِرِینَ ﴿٣٨﴾
तथा हमने आद और समूद को भी विनष्ट कर दिया और उनके आवासों से तुम्हारे लिए (उनका विनाश) स्पष्ट हो चुका है। और शैतान ने उनके लिए उनके कर्मों को शोभनीय बना दिया था। अतः उसने उन्हें सीधे रास्ते से रोक दिया था, हालाँकि वे बहुत समझ-बूझ वाले थे।
وَقَـٰرُونَ وَفِرۡعَوۡنَ وَهَـٰمَـٰنَۖ وَلَقَدۡ جَاۤءَهُم مُّوسَىٰ بِٱلۡبَیِّنَـٰتِ فَٱسۡتَكۡبَرُواْ فِی ٱلۡأَرۡضِ وَمَا كَانُواْ سَـٰبِقِینَ ﴿٣٩﴾
तथा क़ारून और फ़िरऔन और हामान को (विनष्ट किया) और निःसंदेह उनके पास मूसा खुली निशानियाँ लेकर आए, तो उन्होंने धरती में अभिमान किया और वे बच निकलने[16] वाले न थे।
فَكُلًّا أَخَذۡنَا بِذَنۢبِهِۦۖ فَمِنۡهُم مَّنۡ أَرۡسَلۡنَا عَلَیۡهِ حَاصِبࣰا وَمِنۡهُم مَّنۡ أَخَذَتۡهُ ٱلصَّیۡحَةُ وَمِنۡهُم مَّنۡ خَسَفۡنَا بِهِ ٱلۡأَرۡضَ وَمِنۡهُم مَّنۡ أَغۡرَقۡنَاۚ وَمَا كَانَ ٱللَّهُ لِیَظۡلِمَهُمۡ وَلَـٰكِن كَانُوۤاْ أَنفُسَهُمۡ یَظۡلِمُونَ ﴿٤٠﴾
तो हमने हर एक को उसके पाप के कारण पकड़ लिया। फिर उनमें से कुछ पर हमने पथराव करने वाली हवा[17] भेजी, और उनमें से कुछ को चीख[18] ने पकड़ लिया, और उनमें से कुछ को हमने धरती में धँसा[19] दिया और उनमें से कुछ को हमने डुबो[20] दिया। तथा अल्लाह ऐसा नहीं था कि उनपर अत्याचार करे, परंतु वे स्वयं अपने आपपर अत्याचार करते थे।
مَثَلُ ٱلَّذِینَ ٱتَّخَذُواْ مِن دُونِ ٱللَّهِ أَوۡلِیَاۤءَ كَمَثَلِ ٱلۡعَنكَبُوتِ ٱتَّخَذَتۡ بَیۡتࣰاۖ وَإِنَّ أَوۡهَنَ ٱلۡبُیُوتِ لَبَیۡتُ ٱلۡعَنكَبُوتِۚ لَوۡ كَانُواْ یَعۡلَمُونَ ﴿٤١﴾
उन लोगों का उदाहरण जिन्होंने अल्लाह के सिवा अन्य संरक्षक बना रखे हैं, मकड़ी के उदाहरण जैसा है, जिसने एक घर बनाया। हालाँकि, निःसंदेह सब घरों से कमज़ोर[21] तो मकड़ी का घर है, अगर वे जानते होते।
إِنَّ ٱللَّهَ یَعۡلَمُ مَا یَدۡعُونَ مِن دُونِهِۦ مِن شَیۡءࣲۚ وَهُوَ ٱلۡعَزِیزُ ٱلۡحَكِیمُ ﴿٤٢﴾
निश्चय ही अल्लाह जानता है जिसे वे उसे छोड़कर पुकारते हैं कोई भी चीज़ हो, और वही सबपर प्रभुत्वशाली, पूर्ण हिकमत वाला है।
وَتِلۡكَ ٱلۡأَمۡثَـٰلُ نَضۡرِبُهَا لِلنَّاسِۖ وَمَا یَعۡقِلُهَاۤ إِلَّا ٱلۡعَـٰلِمُونَ ﴿٤٣﴾
और ये उदाहरण हैं, जो हम लोगों के लिए प्रस्तुत करते हैं और इन्हें केवल जानने वाले ही समझते हैं।
خَلَقَ ٱللَّهُ ٱلسَّمَـٰوَ ٰتِ وَٱلۡأَرۡضَ بِٱلۡحَقِّۚ إِنَّ فِی ذَ ٰلِكَ لَـَٔایَةࣰ لِّلۡمُؤۡمِنِینَ ﴿٤٤﴾
अल्लाह ने आकाशों तथा धरती को सत्य के साथ पैदा किया। निःसंदेह इसमें ईमान वालों के लिए निश्चय बड़ी निशानी है।[22]
ٱتۡلُ مَاۤ أُوحِیَ إِلَیۡكَ مِنَ ٱلۡكِتَـٰبِ وَأَقِمِ ٱلصَّلَوٰةَۖ إِنَّ ٱلصَّلَوٰةَ تَنۡهَىٰ عَنِ ٱلۡفَحۡشَاۤءِ وَٱلۡمُنكَرِۗ وَلَذِكۡرُ ٱللَّهِ أَكۡبَرُۗ وَٱللَّهُ یَعۡلَمُ مَا تَصۡنَعُونَ ﴿٤٥﴾
आप उस पुस्तक को पढ़ें, जो आपकी ओर वह़्य (प्रकाशना) की गई है तथा नमाज़ क़ायम करें। निःसंदेह नमाज़ निर्लज्जता और बुराई से रोकती है। और निश्चय अल्लाह का स्मरण सबसे बड़ा है और अल्लाह जानता है[23], जो कुछ तुम करते हो।
۞ وَلَا تُجَـٰدِلُوۤاْ أَهۡلَ ٱلۡكِتَـٰبِ إِلَّا بِٱلَّتِی هِیَ أَحۡسَنُ إِلَّا ٱلَّذِینَ ظَلَمُواْ مِنۡهُمۡۖ وَقُولُوۤاْ ءَامَنَّا بِٱلَّذِیۤ أُنزِلَ إِلَیۡنَا وَأُنزِلَ إِلَیۡكُمۡ وَإِلَـٰهُنَا وَإِلَـٰهُكُمۡ وَ ٰحِدࣱ وَنَحۡنُ لَهُۥ مُسۡلِمُونَ ﴿٤٦﴾
और तुम किताब वालों[24] से केवल ऐसे तरीक़े से वाद-विवाद करो, जो सबसे उत्तम हो, सिवाय उन लोगों के जिन्होंने उनमें से ज़ुल्म किया। तथा तुम कहो : हम ईमान लाए उसपर, जो हमारी ओर उतारा गया और तुम्हारी ओर उतारा गया, तथा हमारा पूज्य और तुम्हारा पूज्य एक ही है[25] और हम उसी के आज्ञाकारी हैं।[26]
وَكَذَ ٰلِكَ أَنزَلۡنَاۤ إِلَیۡكَ ٱلۡكِتَـٰبَۚ فَٱلَّذِینَ ءَاتَیۡنَـٰهُمُ ٱلۡكِتَـٰبَ یُؤۡمِنُونَ بِهِۦۖ وَمِنۡ هَـٰۤؤُلَاۤءِ مَن یُؤۡمِنُ بِهِۦۚ وَمَا یَجۡحَدُ بِـَٔایَـٰتِنَاۤ إِلَّا ٱلۡكَـٰفِرُونَ ﴿٤٧﴾
और इसी प्रकार, हमने आपकी ओर यह पुस्तक उतारी है। तो जिन लोगों को हमने (आपसे पहले) पुस्तक प्रदान की है, वे इसपर ईमान लाते हैं।[27] और इन (मुश्रिकों) में से भी कुछ[28] ऐसे हैं, जो इस (क़ुरआन) पर ईमान लाते हैं। और हमारी आयतों का इनकार वही लोग करते हैं, जो काफ़िर हैं।
وَمَا كُنتَ تَتۡلُواْ مِن قَبۡلِهِۦ مِن كِتَـٰبࣲ وَلَا تَخُطُّهُۥ بِیَمِینِكَۖ إِذࣰا لَّٱرۡتَابَ ٱلۡمُبۡطِلُونَ ﴿٤٨﴾
और आप इससे पहले न कोई पुस्तक पढ़ते थे और न उसे अपने दाहिने हाथ से लिखते थे। (यदि ऐसा होता) तो असत्यवादी अवश्य संदेह करते।[29]
بَلۡ هُوَ ءَایَـٰتُۢ بَیِّنَـٰتࣱ فِی صُدُورِ ٱلَّذِینَ أُوتُواْ ٱلۡعِلۡمَۚ وَمَا یَجۡحَدُ بِـَٔایَـٰتِنَاۤ إِلَّا ٱلظَّـٰلِمُونَ ﴿٤٩﴾
बल्कि यह (क़ुरआन) स्पष्ट आयतें हैं, उन लोगों के सीनों में जिन्हें ज्ञान दिया गया है तथा हमारी आयतों का इनकार वही लोग करते हैं, जो अत्याचारी हैं।
وَقَالُواْ لَوۡلَاۤ أُنزِلَ عَلَیۡهِ ءَایَـٰتࣱ مِّن رَّبِّهِۦۚ قُلۡ إِنَّمَا ٱلۡـَٔایَـٰتُ عِندَ ٱللَّهِ وَإِنَّمَاۤ أَنَا۠ نَذِیرࣱ مُّبِینٌ ﴿٥٠﴾
तथा उन्होंने कहा : उसपर उसके पालनहार की ओर से निशानियाँ क्यों नहीं उतारी गईं? आप कह दें : निशानियाँ तो अल्लाह ही के पास[30] हैं और मैं तो केवल स्पष्ट रूप से सावधान करने वाला हूँ।
أَوَلَمۡ یَكۡفِهِمۡ أَنَّاۤ أَنزَلۡنَا عَلَیۡكَ ٱلۡكِتَـٰبَ یُتۡلَىٰ عَلَیۡهِمۡۚ إِنَّ فِی ذَ ٰلِكَ لَرَحۡمَةࣰ وَذِكۡرَىٰ لِقَوۡمࣲ یُؤۡمِنُونَ ﴿٥١﴾
क्या उनके लिए यह पर्याप्त नहीं है कि हमने आपपर यह पुस्तक (क़ुरआन) उतारी, जो उनके सामने पढ़ी जाती है। निःसंदेह इसमें उन लोगों के लिए बड़ी दया और उपदेश है, जो ईमान रखते हैं।
قُلۡ كَفَىٰ بِٱللَّهِ بَیۡنِی وَبَیۡنَكُمۡ شَهِیدࣰاۖ یَعۡلَمُ مَا فِی ٱلسَّمَـٰوَ ٰتِ وَٱلۡأَرۡضِۗ وَٱلَّذِینَ ءَامَنُواْ بِٱلۡبَـٰطِلِ وَكَفَرُواْ بِٱللَّهِ أُوْلَـٰۤىِٕكَ هُمُ ٱلۡخَـٰسِرُونَ ﴿٥٢﴾
आप कह दें : अल्लाह मेरे और तुम्हारे बीच गवाह के रूप में काफ़ी[31] है। वह जानता है, जो कुछ आकाशों और धरती में है। तथा जो लोग असत्य पर ईमान लाए और उन्होंने अल्लाह का इनकार किया, वही घाटा उठाने वाले हैं।
وَیَسۡتَعۡجِلُونَكَ بِٱلۡعَذَابِ وَلَوۡلَاۤ أَجَلࣱ مُّسَمࣰّى لَّجَاۤءَهُمُ ٱلۡعَذَابُۚ وَلَیَأۡتِیَنَّهُم بَغۡتَةࣰ وَهُمۡ لَا یَشۡعُرُونَ ﴿٥٣﴾
और वे[32] आपसे यातना के लिए जल्दी मचा रहे हैं। और यदि (उसका) एक नियत समय न होता, तो उनपर यातना अवश्य आ जाती। और निश्चय वह उनपर अचानक आएगी और उन्हें ख़बर तक न होगी।
یَسۡتَعۡجِلُونَكَ بِٱلۡعَذَابِ وَإِنَّ جَهَنَّمَ لَمُحِیطَةُۢ بِٱلۡكَـٰفِرِینَ ﴿٥٤﴾
वे आपसे यातना के लिए जल्दी मचा[33] रहे है, हालाँकि निःसंदेह जहन्नम निश्चय काफ़िरों को घेरने वाला[34] है।
یَوۡمَ یَغۡشَىٰهُمُ ٱلۡعَذَابُ مِن فَوۡقِهِمۡ وَمِن تَحۡتِ أَرۡجُلِهِمۡ وَیَقُولُ ذُوقُواْ مَا كُنتُمۡ تَعۡمَلُونَ ﴿٥٥﴾
जिस दिन यातना उन्हें उनके ऊपर से और उनके पाँव के नीचे से ढाँप लेगी और अल्लाह कहेगा : चखो उसका मज़ा जो तुम किया करते थे।
یَـٰعِبَادِیَ ٱلَّذِینَ ءَامَنُوۤاْ إِنَّ أَرۡضِی وَ ٰسِعَةࣱ فَإِیَّـٰیَ فَٱعۡبُدُونِ ﴿٥٦﴾
ऐ मेरे बंदो जो ईमान लाए हो! निःसंदेह मेरी धरती विशाल है। अतः तुम मेरी ही इबादत[35] करो।
كُلُّ نَفۡسࣲ ذَاۤىِٕقَةُ ٱلۡمَوۡتِۖ ثُمَّ إِلَیۡنَا تُرۡجَعُونَ ﴿٥٧﴾
प्रत्येक प्राणी मौत का स्वाद चखने वाला है, फिर तुम हमारी ही ओर लौटाए[36] जाओगे।
وَٱلَّذِینَ ءَامَنُواْ وَعَمِلُواْ ٱلصَّـٰلِحَـٰتِ لَنُبَوِّئَنَّهُم مِّنَ ٱلۡجَنَّةِ غُرَفࣰا تَجۡرِی مِن تَحۡتِهَا ٱلۡأَنۡهَـٰرُ خَـٰلِدِینَ فِیهَاۚ نِعۡمَ أَجۡرُ ٱلۡعَـٰمِلِینَ ﴿٥٨﴾
तथा जो लोग ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कार्य किए, हम उन्हें अवश्य ही जन्नत के ऊँचे भवनों में जगह देंगे, जिनके नीचे से नहरें बहती हैं, वे उनमें सदावासी होंगे। यह उन कर्म करने वालों का क्या ही अच्छा बदला है!
ٱلَّذِینَ صَبَرُواْ وَعَلَىٰ رَبِّهِمۡ یَتَوَكَّلُونَ ﴿٥٩﴾
जिन्होंने धैर्य से काम लिया तथा अपने पालनहार ही पर भरोसा रखते हैं।
وَكَأَیِّن مِّن دَاۤبَّةࣲ لَّا تَحۡمِلُ رِزۡقَهَا ٱللَّهُ یَرۡزُقُهَا وَإِیَّاكُمۡۚ وَهُوَ ٱلسَّمِیعُ ٱلۡعَلِیمُ ﴿٦٠﴾
कितने ही जीव हैं, जो अपनी रोज़ी नहीं उठा सकते।[37] अल्लाह ही उन्हें रोज़ी देता है और तुम्हें भी! और वह सब कुछ सुनने वाला, सब कुछ जानने वाला है।
وَلَىِٕن سَأَلۡتَهُم مَّنۡ خَلَقَ ٱلسَّمَـٰوَ ٰتِ وَٱلۡأَرۡضَ وَسَخَّرَ ٱلشَّمۡسَ وَٱلۡقَمَرَ لَیَقُولُنَّ ٱللَّهُۖ فَأَنَّىٰ یُؤۡفَكُونَ ﴿٦١﴾
और निश्चय यदि आप उनसे पूछें कि आकाशों और धरती को किसने पैदा किया और (किसने) सूर्य और चाँद को वशीभूत किया? तो वे अवश्य कहेंगे कि अल्लाह ने। तो फिर वे कहाँ बहकाए जा रहे हैं?
ٱللَّهُ یَبۡسُطُ ٱلرِّزۡقَ لِمَن یَشَاۤءُ مِنۡ عِبَادِهِۦ وَیَقۡدِرُ لَهُۥۤۚ إِنَّ ٱللَّهَ بِكُلِّ شَیۡءٍ عَلِیمࣱ ﴿٦٢﴾
अल्लाह अपने बंदों में से जिसके लिए चाहता है जीविका विस्तृत कर देता है और जिसके लिए चाहता है तंग कर देता है। निःसंदेह अल्लाह हर चीज़ को अच्छी तरह जानने वाला है।
وَلَىِٕن سَأَلۡتَهُم مَّن نَّزَّلَ مِنَ ٱلسَّمَاۤءِ مَاۤءࣰ فَأَحۡیَا بِهِ ٱلۡأَرۡضَ مِنۢ بَعۡدِ مَوۡتِهَا لَیَقُولُنَّ ٱللَّهُۚ قُلِ ٱلۡحَمۡدُ لِلَّهِۚ بَلۡ أَكۡثَرُهُمۡ لَا یَعۡقِلُونَ ﴿٦٣﴾
और निश्चय यदि आप उनसे पूछें कि किसने आकाश से पानी उतारा, फिर उसके द्वारा धरती को, उसके मुर्दा हो जाने के बाद जीवित किया? तो वे अवश्य कहेंगे कि अल्लाह ने। आप कह दें कि सब प्रशंसा अल्लाह के लिए है। बल्कि उनमें से अधिकतर लोग नहीं समझते।[38]
وَمَا هَـٰذِهِ ٱلۡحَیَوٰةُ ٱلدُّنۡیَاۤ إِلَّا لَهۡوࣱ وَلَعِبࣱۚ وَإِنَّ ٱلدَّارَ ٱلۡـَٔاخِرَةَ لَهِیَ ٱلۡحَیَوَانُۚ لَوۡ كَانُواْ یَعۡلَمُونَ ﴿٦٤﴾
और दुनिया का यह जीवन[39] केवल मनोरंजन और खेल है। और निःसंदेह आखिरत का घर ही निश्चय वास्तविक जीवन है, यदि वे जानते होते।
فَإِذَا رَكِبُواْ فِی ٱلۡفُلۡكِ دَعَوُاْ ٱللَّهَ مُخۡلِصِینَ لَهُ ٱلدِّینَ فَلَمَّا نَجَّىٰهُمۡ إِلَى ٱلۡبَرِّ إِذَا هُمۡ یُشۡرِكُونَ ﴿٦٥﴾
फिर जब वे नाव पर सवार होते हैं, तो अल्लाह को, उसके लिए धर्म को विशुद्ध करते हुए, पुकारते हैं। फिर जब वह उन्हें बचाकर थल तक ले आता है, तो शिर्क करने लगते हैं।
لِیَكۡفُرُواْ بِمَاۤ ءَاتَیۡنَـٰهُمۡ وَلِیَتَمَتَّعُواْۚ فَسَوۡفَ یَعۡلَمُونَ ﴿٦٦﴾
ताकि जो कुछ हमने उन्हें प्रदान किया है, उसकी नाशुक्री करें, और ताकि वे (जीवन का) लाभ उठाएँ। तो शीघ्र ही उन्हें पता चल जाएगा।
أَوَلَمۡ یَرَوۡاْ أَنَّا جَعَلۡنَا حَرَمًا ءَامِنࣰا وَیُتَخَطَّفُ ٱلنَّاسُ مِنۡ حَوۡلِهِمۡۚ أَفَبِٱلۡبَـٰطِلِ یُؤۡمِنُونَ وَبِنِعۡمَةِ ٱللَّهِ یَكۡفُرُونَ ﴿٦٧﴾
क्या उन्होंने नहीं देखा कि हमने (उनके लिए) एक सुरक्षित व शांतिमय हरम बनाया है, जबकि उनके आस-पास से लोग उचक लिए जाते हैं? तो क्या वे असत्य पर ईमान लाते हैं और अल्लाह की नेमत की नाशुक्री करते हैं?
وَمَنۡ أَظۡلَمُ مِمَّنِ ٱفۡتَرَىٰ عَلَى ٱللَّهِ كَذِبًا أَوۡ كَذَّبَ بِٱلۡحَقِّ لَمَّا جَاۤءَهُۥۤۚ أَلَیۡسَ فِی جَهَنَّمَ مَثۡوࣰى لِّلۡكَـٰفِرِینَ ﴿٦٨﴾
तथा उससे अधिक अत्याचारी कौन है, जो अल्लाह पर झूठ गढ़े या जब सच उसके पास आ जाए, तो उसे झुठला दे? क्या (ऐसे) काफ़िरों का ठिकाना जहन्नम में नहीं है?