فِیۤ أَدۡنَى ٱلۡأَرۡضِ وَهُم مِّنۢ بَعۡدِ غَلَبِهِمۡ سَیَغۡلِبُونَ ﴿٣﴾
निकटतम क्षेत्र में। और वे अपनी पराजय के बाद जल्द ही विजयी हो जाएँगे!
فِی بِضۡعِ سِنِینَۗ لِلَّهِ ٱلۡأَمۡرُ مِن قَبۡلُ وَمِنۢ بَعۡدُۚ وَیَوۡمَىِٕذࣲ یَفۡرَحُ ٱلۡمُؤۡمِنُونَ ﴿٤﴾
कुछ वर्षों में। सारा मामला अल्लाह के अधिकार में है, पहले भी और बाद में भी। और उस दिन ईमान वाले प्रसन्न होंगे।
بِنَصۡرِ ٱللَّهِۚ یَنصُرُ مَن یَشَاۤءُۖ وَهُوَ ٱلۡعَزِیزُ ٱلرَّحِیمُ ﴿٥﴾
अल्लाह की सहायता से। वह जिसकी चाहता है, सहायता करता है। वह सब पर प्रभुत्वशाली, अत्यंत दयावान है।
وَعۡدَ ٱللَّهِۖ لَا یُخۡلِفُ ٱللَّهُ وَعۡدَهُۥ وَلَـٰكِنَّ أَكۡثَرَ ٱلنَّاسِ لَا یَعۡلَمُونَ ﴿٦﴾
यह अल्लाह का वादा है। अल्लाह अपने वादे[1] के विरुद्ध नहीं करता। परंतु अधिकतर लोग नहीं जानते।
یَعۡلَمُونَ ظَـٰهِرࣰا مِّنَ ٱلۡحَیَوٰةِ ٱلدُّنۡیَا وَهُمۡ عَنِ ٱلۡـَٔاخِرَةِ هُمۡ غَـٰفِلُونَ ﴿٧﴾
वे केवल दुनिया के जीवन के कुछ बाहरी स्वरूप[2] को जानते हैं, और वे आख़िरत से बिलकुल गाफ़िल हैं।
أَوَلَمۡ یَتَفَكَّرُواْ فِیۤ أَنفُسِهِمۗ مَّا خَلَقَ ٱللَّهُ ٱلسَّمَـٰوَ ٰتِ وَٱلۡأَرۡضَ وَمَا بَیۡنَهُمَاۤ إِلَّا بِٱلۡحَقِّ وَأَجَلࣲ مُّسَمࣰّىۗ وَإِنَّ كَثِیرࣰا مِّنَ ٱلنَّاسِ بِلِقَاۤىِٕ رَبِّهِمۡ لَكَـٰفِرُونَ ﴿٨﴾
क्या उन लोगों ने अपने दिलों में विचार नहीं किया कि अल्लाह ने आकाशों और धरती को और उन दोनों के बीच मौजूद सारी चीज़ों[3] को सत्य के साथ और एक निश्चित अवधि के लिए ही पैदा किया है?! और निःसंदेह बहुत-से लोग अपने पालनहार से मिलने का इनकार करते हैं।
أَوَلَمۡ یَسِیرُواْ فِی ٱلۡأَرۡضِ فَیَنظُرُواْ كَیۡفَ كَانَ عَـٰقِبَةُ ٱلَّذِینَ مِن قَبۡلِهِمۡۚ كَانُوۤاْ أَشَدَّ مِنۡهُمۡ قُوَّةࣰ وَأَثَارُواْ ٱلۡأَرۡضَ وَعَمَرُوهَاۤ أَكۡثَرَ مِمَّا عَمَرُوهَا وَجَاۤءَتۡهُمۡ رُسُلُهُم بِٱلۡبَیِّنَـٰتِۖ فَمَا كَانَ ٱللَّهُ لِیَظۡلِمَهُمۡ وَلَـٰكِن كَانُوۤاْ أَنفُسَهُمۡ یَظۡلِمُونَ ﴿٩﴾
और क्या वे धरती में चले-फिरे नहीं कि देखते उन लोगों का परिणाम कैसा हुआ, जो उनसे पहले थे? वे उनसे अधिक शक्तिशाली थे और उन्होंने धरती को जोता-बोया और उसे आबाद किया उससे अधिक जितना उन्होंने उसे आबाद किया था, और उनके पास उनके रसूल खुली निशानियाँ लेकर आए। तो अल्लाह ऐसा न था कि उनपर अत्याचार करे, लेकिन वे स्वयं अपने ऊपर अत्याचार करते थे।
ثُمَّ كَانَ عَـٰقِبَةَ ٱلَّذِینَ أَسَـٰۤـُٔواْ ٱلسُّوۤأَىٰۤ أَن كَذَّبُواْ بِـَٔایَـٰتِ ٱللَّهِ وَكَانُواْ بِهَا یَسۡتَهۡزِءُونَ ﴿١٠﴾
फिर जिन लोगों ने बुराई की, उनका बहुत ही बुरा अंत हुआ, इसलिए कि उन्होंने अल्लाह की आयतों को झुठलाया और वे उनका उपहास करते थे।
ٱللَّهُ یَبۡدَؤُاْ ٱلۡخَلۡقَ ثُمَّ یُعِیدُهُۥ ثُمَّ إِلَیۡهِ تُرۡجَعُونَ ﴿١١﴾
अल्लाह ही सृष्टि का आरंभ करता है। फिर वही उसे दोबारा पैदा करेगा। फिर तुम उसी की ओर लौटाए[4] जाओगे।
وَیَوۡمَ تَقُومُ ٱلسَّاعَةُ یُبۡلِسُ ٱلۡمُجۡرِمُونَ ﴿١٢﴾
और जिस दिन क़ियामत क़ायम होगी, अपराधी निराश[5] हो जाएँगे।
وَلَمۡ یَكُن لَّهُم مِّن شُرَكَاۤىِٕهِمۡ شُفَعَـٰۤؤُاْ وَكَانُواْ بِشُرَكَاۤىِٕهِمۡ كَـٰفِرِینَ ﴿١٣﴾
और उनके लिए उनके साझियों में से कोई सिफ़ारिश करने वाले नहीं होंगे और वे अपने साझियों का इनकार करने वाले[6] होंगे।
وَیَوۡمَ تَقُومُ ٱلسَّاعَةُ یَوۡمَىِٕذࣲ یَتَفَرَّقُونَ ﴿١٤﴾
और जिस दिन क़ियामत क़ायम होगी, उस दिन वे अलग-अलग हो जाएँगे।
فَأَمَّا ٱلَّذِینَ ءَامَنُواْ وَعَمِلُواْ ٱلصَّـٰلِحَـٰتِ فَهُمۡ فِی رَوۡضَةࣲ یُحۡبَرُونَ ﴿١٥﴾
फिर जो लोग ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कार्य किए, वे जन्नत में प्रसन्नमय रखे जाएँगे।
وَأَمَّا ٱلَّذِینَ كَفَرُواْ وَكَذَّبُواْ بِـَٔایَـٰتِنَا وَلِقَاۤىِٕ ٱلۡـَٔاخِرَةِ فَأُوْلَـٰۤىِٕكَ فِی ٱلۡعَذَابِ مُحۡضَرُونَ ﴿١٦﴾
और जिन लोगों ने कुफ़्र किया और हमारी आयतों और आख़िरत की मुलाक़ात को झुठलाया, वे यातना में उपस्थित किए जाएँगे।
فَسُبۡحَـٰنَ ٱللَّهِ حِینَ تُمۡسُونَ وَحِینَ تُصۡبِحُونَ ﴿١٧﴾
अतः तुम अल्लाह की पवित्रता का वर्णन करो,जब तुम शाम करते हो और जब सुबह करते हो।
وَلَهُ ٱلۡحَمۡدُ فِی ٱلسَّمَـٰوَ ٰتِ وَٱلۡأَرۡضِ وَعَشِیࣰّا وَحِینَ تُظۡهِرُونَ ﴿١٨﴾
तथा उसी के लिए सब प्रशंसा है आकाशों एवं धरती में, और तीसरे पहर तथा जब तुम ज़ुहर के समय में प्रवेश करते हो।
یُخۡرِجُ ٱلۡحَیَّ مِنَ ٱلۡمَیِّتِ وَیُخۡرِجُ ٱلۡمَیِّتَ مِنَ ٱلۡحَیِّ وَیُحۡیِ ٱلۡأَرۡضَ بَعۡدَ مَوۡتِهَاۚ وَكَذَ ٰلِكَ تُخۡرَجُونَ ﴿١٩﴾
वह जीवित को मृत से निकालता[7] है तथा मृत को जीवित से निकालता है और धरती को उसके मृत हो जाने के बाद जीवित करता है। और इसी प्रकार, तुम (भी) निकाले जाओगे।
وَمِنۡ ءَایَـٰتِهِۦۤ أَنۡ خَلَقَكُم مِّن تُرَابࣲ ثُمَّ إِذَاۤ أَنتُم بَشَرࣱ تَنتَشِرُونَ ﴿٢٠﴾
और उसकी निशानियों में से है कि उसने तुम्हें मिट्टी से पैदा किया, फिर एकाएक तुम मनुष्य हो, जो फैल रहे हो।
وَمِنۡ ءَایَـٰتِهِۦۤ أَنۡ خَلَقَ لَكُم مِّنۡ أَنفُسِكُمۡ أَزۡوَ ٰجࣰا لِّتَسۡكُنُوۤاْ إِلَیۡهَا وَجَعَلَ بَیۡنَكُم مَّوَدَّةࣰ وَرَحۡمَةًۚ إِنَّ فِی ذَ ٰلِكَ لَـَٔایَـٰتࣲ لِّقَوۡمࣲ یَتَفَكَّرُونَ ﴿٢١﴾
तथा उसकी निशानियों में से है कि उसने तुम्हारे लिए तुम्ही में से जोड़े पैदा किए, ताकि तुम उनके पास शांति प्राप्त करो। तथा उसने तुम्हारे बीच प्रेम और दया रख दी। निःसंदेह इसमें उन लोगों के लिए बहुत-सी निशाननियाँ हैं, जो सोच-विचार करते हैं।
وَمِنۡ ءَایَـٰتِهِۦ خَلۡقُ ٱلسَّمَـٰوَ ٰتِ وَٱلۡأَرۡضِ وَٱخۡتِلَـٰفُ أَلۡسِنَتِكُمۡ وَأَلۡوَ ٰنِكُمۡۚ إِنَّ فِی ذَ ٰلِكَ لَـَٔایَـٰتࣲ لِّلۡعَـٰلِمِینَ ﴿٢٢﴾
तथा उसकी निशानियों में से आकाशों और धरती को पैदा करना तथा तुम्हारी भाषाओं और तुम्हारे रंगों का अलग-अलग होना है। निःसंदेह इसमें ज्ञान रखने वालों के लिए निश्चय बहुत-सी निशानियाँ[8] है।
وَمِنۡ ءَایَـٰتِهِۦ مَنَامُكُم بِٱلَّیۡلِ وَٱلنَّهَارِ وَٱبۡتِغَاۤؤُكُم مِّن فَضۡلِهِۦۤۚ إِنَّ فِی ذَ ٰلِكَ لَـَٔایَـٰتࣲ لِّقَوۡمࣲ یَسۡمَعُونَ ﴿٢٣﴾
तथा उसकी निशानियों में से तुम्हारा रात और दिन को सोना और तुम्हारा उसके अनुग्रह को तलाश करना है। निःसंदेह इसमें उन लोगों के लिए निश्चय बहुत-सी निशानियाँ हैं, जो सुनते हैं।
وَمِنۡ ءَایَـٰتِهِۦ یُرِیكُمُ ٱلۡبَرۡقَ خَوۡفࣰا وَطَمَعࣰا وَیُنَزِّلُ مِنَ ٱلسَّمَاۤءِ مَاۤءࣰ فَیُحۡیِۦ بِهِ ٱلۡأَرۡضَ بَعۡدَ مَوۡتِهَاۤۚ إِنَّ فِی ذَ ٰلِكَ لَـَٔایَـٰتࣲ لِّقَوۡمࣲ یَعۡقِلُونَ ﴿٢٤﴾
और उसकी निशानियों में से (यह भी) है कि वह तुम्हें भय और आशा के लिए बिजली दिखाता है और आकाश से पानी उतारता है, फिर उसके द्वारा धरती को उसके मृत हो जाने के बाद जीवित कर देता है। निःसंदेह इसमें उन लोगों के लिए बहुत-सी निशानियाँ हैं, जो समझते हैं।
وَمِنۡ ءَایَـٰتِهِۦۤ أَن تَقُومَ ٱلسَّمَاۤءُ وَٱلۡأَرۡضُ بِأَمۡرِهِۦۚ ثُمَّ إِذَا دَعَاكُمۡ دَعۡوَةࣰ مِّنَ ٱلۡأَرۡضِ إِذَاۤ أَنتُمۡ تَخۡرُجُونَ ﴿٢٥﴾
और उसकी निशानियों में से है कि आकाश तथा धरती उसके आदेश से स्थापित हैं। फिर जब वह तुम्हें धरती में से एक ही बार पुकारेगा, तो सहसा तुम (बाहर) निकल आओगे।
وَلَهُۥ مَن فِی ٱلسَّمَـٰوَ ٰتِ وَٱلۡأَرۡضِۖ كُلࣱّ لَّهُۥ قَـٰنِتُونَ ﴿٢٦﴾
और आकाशों और धरती में जो भी है, उसी का है। सब उसी के आज्ञाकारी हैं।
وَهُوَ ٱلَّذِی یَبۡدَؤُاْ ٱلۡخَلۡقَ ثُمَّ یُعِیدُهُۥ وَهُوَ أَهۡوَنُ عَلَیۡهِۚ وَلَهُ ٱلۡمَثَلُ ٱلۡأَعۡلَىٰ فِی ٱلسَّمَـٰوَ ٰتِ وَٱلۡأَرۡضِۚ وَهُوَ ٱلۡعَزِیزُ ٱلۡحَكِیمُ ﴿٢٧﴾
तथा वही है, जो उत्पत्ति का आरंभ करता है। फिर वही उसे पुनः पैदा करेगा। और यह उसके लिए अधिक सरल है। तथा आकाशों और धरती में सर्वोच्च गुण उसी का है। और वही प्रभुत्वशाली, हिकमत वाला है।
ضَرَبَ لَكُم مَّثَلࣰا مِّنۡ أَنفُسِكُمۡۖ هَل لَّكُم مِّن مَّا مَلَكَتۡ أَیۡمَـٰنُكُم مِّن شُرَكَاۤءَ فِی مَا رَزَقۡنَـٰكُمۡ فَأَنتُمۡ فِیهِ سَوَاۤءࣱ تَخَافُونَهُمۡ كَخِیفَتِكُمۡ أَنفُسَكُمۡۚ كَذَ ٰلِكَ نُفَصِّلُ ٱلۡـَٔایَـٰتِ لِقَوۡمࣲ یَعۡقِلُونَ ﴿٢٨﴾
उसने तुम्हारे लिए स्वयं तुम्हीं में से एक उदाहरण पेश किया है। हमने जो रोज़ी तुम्हें प्रदान की है, क्या उसमें तुम्हारे[9] दासों में से तुम्हारा कोई साझी है कि तुम उसमें समान हो, उनसे वैसे ही डरते हो, जैसे एक-दूसरे से डरते हो? इसी प्रकार हम उन लोगों के लिए आयतें खोल-खोलकर वर्णन करते हैं, जो समझ रखते हैं।
بَلِ ٱتَّبَعَ ٱلَّذِینَ ظَلَمُوۤاْ أَهۡوَاۤءَهُم بِغَیۡرِ عِلۡمࣲۖ فَمَن یَهۡدِی مَنۡ أَضَلَّ ٱللَّهُۖ وَمَا لَهُم مِّن نَّـٰصِرِینَ ﴿٢٩﴾
बल्कि वे लोग जिन्होंने अत्याचार किया बिना किसी ज्ञान के अपनी इच्छाओं के पीछे चल पड़े।फिर उसे कौन मार्ग पर लाए, जिसे अल्लाह ने गुमराह कर दिया हो। और उनके लिए कोई सहायक नहीं है।
فَأَقِمۡ وَجۡهَكَ لِلدِّینِ حَنِیفࣰاۚ فِطۡرَتَ ٱللَّهِ ٱلَّتِی فَطَرَ ٱلنَّاسَ عَلَیۡهَاۚ لَا تَبۡدِیلَ لِخَلۡقِ ٱللَّهِۚ ذَ ٰلِكَ ٱلدِّینُ ٱلۡقَیِّمُ وَلَـٰكِنَّ أَكۡثَرَ ٱلنَّاسِ لَا یَعۡلَمُونَ ﴿٣٠﴾
तो (ऐ नबी!) आप एकाग्र होकर अपने चेहरे को इस धर्म की ओर स्थापित करें। उस फ़ितरत पर जमे रहें, जिसपर[10] अल्लाह ने लोगों को पैदा किया है। अल्लाह की रचना में कोई बदलाव नहीं हो सकता। यही सीधा धर्म है, लेकिन अधिकतर लोग नहीं जानते।[11]
۞ مُنِیبِینَ إِلَیۡهِ وَٱتَّقُوهُ وَأَقِیمُواْ ٱلصَّلَوٰةَ وَلَا تَكُونُواْ مِنَ ٱلۡمُشۡرِكِینَ ﴿٣١﴾
उसी (अल्लाह) की ओर पलटते हुए, और उससे डरो तथा नमाज़ क़ायम करो और मुश्रिकों में से न हो जाओ।
مِنَ ٱلَّذِینَ فَرَّقُواْ دِینَهُمۡ وَكَانُواْ شِیَعࣰاۖ كُلُّ حِزۡبِۭ بِمَا لَدَیۡهِمۡ فَرِحُونَ ﴿٣٢﴾
उन लोगों में से जिन्होंने अपने धर्म को टुकड़े-टुकड़े कर दिया, और कई गिरोह हो गए। प्रत्येक गिरोह उसी[12] पर खुश है, जो उसके पास है।
وَإِذَا مَسَّ ٱلنَّاسَ ضُرࣱّ دَعَوۡاْ رَبَّهُم مُّنِیبِینَ إِلَیۡهِ ثُمَّ إِذَاۤ أَذَاقَهُم مِّنۡهُ رَحۡمَةً إِذَا فَرِیقࣱ مِّنۡهُم بِرَبِّهِمۡ یُشۡرِكُونَ ﴿٣٣﴾
और जब लोगों को कोई कष्ट पहुँचता है, तो वे अपने पालनहार को, उसकी ओर लौटते हुए पुकारते हैं। फिर जब वह उन्हें अपनी ओर से कोई दया चखाता है, तो सहसा उनमें से एक समूह अपने पालनहार के साथ शिर्क करने लगता है।
لِیَكۡفُرُواْ بِمَاۤ ءَاتَیۡنَـٰهُمۡۚ فَتَمَتَّعُواْ فَسَوۡفَ تَعۡلَمُونَ ﴿٣٤﴾
ताकि वे उसके प्रति कृतघ्नता दिखाएँ, जो हमने उन्हें प्रदान किया है। तो तुम लाभ उठा लो, शीघ्र ही तुम्हें पता चल जाएगा।
أَمۡ أَنزَلۡنَا عَلَیۡهِمۡ سُلۡطَـٰنࣰا فَهُوَ یَتَكَلَّمُ بِمَا كَانُواْ بِهِۦ یُشۡرِكُونَ ﴿٣٥﴾
क्या हमने उनपर कोई प्रमाण उतारा है कि वह उस चीज़ को (उचित) बताता है, जिसे वे अल्लाह के साथ साझी ठहराया[13] करते थे।
وَإِذَاۤ أَذَقۡنَا ٱلنَّاسَ رَحۡمَةࣰ فَرِحُواْ بِهَاۖ وَإِن تُصِبۡهُمۡ سَیِّئَةُۢ بِمَا قَدَّمَتۡ أَیۡدِیهِمۡ إِذَا هُمۡ یَقۡنَطُونَ ﴿٣٦﴾
और जब हम लोगों को कोई दया चखाते हैं, तो वे उससे प्रसन्न हो जाते हैं, और अगर उन्हें उनकी करतूतों के कारण कोई विपत्ति पहुँचती है, तो वे सहसा निराश हो जाते हैं।
أَوَلَمۡ یَرَوۡاْ أَنَّ ٱللَّهَ یَبۡسُطُ ٱلرِّزۡقَ لِمَن یَشَاۤءُ وَیَقۡدِرُۚ إِنَّ فِی ذَ ٰلِكَ لَـَٔایَـٰتࣲ لِّقَوۡمࣲ یُؤۡمِنُونَ ﴿٣٧﴾
क्या उन्होंने नहीं देखा कि अल्लाह जिसके लिए चाहता है, रोज़ी विस्तृत कर देता है, और जिसके लिए चाहता है, तंग कर देता है? निःसंदेह इसमें उन लोगों के लिए बहुत-सी निशानियाँ हैं, जो ईमान रखते हैं।
فَـَٔاتِ ذَا ٱلۡقُرۡبَىٰ حَقَّهُۥ وَٱلۡمِسۡكِینَ وَٱبۡنَ ٱلسَّبِیلِۚ ذَ ٰلِكَ خَیۡرࣱ لِّلَّذِینَ یُرِیدُونَ وَجۡهَ ٱللَّهِۖ وَأُوْلَـٰۤىِٕكَ هُمُ ٱلۡمُفۡلِحُونَ ﴿٣٨﴾
अतः रिश्तेदार को उसका हक़ दो, तथा निर्धन और यात्री को (भी)। यह उन लोगों के लिए बेहतर है, जो अल्लाह का चेहरा चाहते हैं और वही सफल होने वाले हैं।
وَمَاۤ ءَاتَیۡتُم مِّن رِّبࣰا لِّیَرۡبُوَاْ فِیۤ أَمۡوَ ٰلِ ٱلنَّاسِ فَلَا یَرۡبُواْ عِندَ ٱللَّهِۖ وَمَاۤ ءَاتَیۡتُم مِّن زَكَوٰةࣲ تُرِیدُونَ وَجۡهَ ٱللَّهِ فَأُوْلَـٰۤىِٕكَ هُمُ ٱلۡمُضۡعِفُونَ ﴿٣٩﴾
और तुम ब्याज पर जो (उधार) देते हो, ताकि वह लोगों के धनों में मिलकर अधिक[14] हो जाए, तो वह अल्लाह के यहाँ अधिक नहीं होता। तथा तुम अल्लाह का चेहरा चाहते हुए जो कुछ ज़कात से देते हो, तो वही लोग कई गुना बढ़ाने वाले हैं।
ٱللَّهُ ٱلَّذِی خَلَقَكُمۡ ثُمَّ رَزَقَكُمۡ ثُمَّ یُمِیتُكُمۡ ثُمَّ یُحۡیِیكُمۡۖ هَلۡ مِن شُرَكَاۤىِٕكُم مَّن یَفۡعَلُ مِن ذَ ٰلِكُم مِّن شَیۡءࣲۚ سُبۡحَـٰنَهُۥ وَتَعَـٰلَىٰ عَمَّا یُشۡرِكُونَ ﴿٤٠﴾
अल्लाह वह (अस्तित्व) है, जिसने तुम्हें पैदा किया, फिर तुम्हें जीविका प्रदान की, फिर तुम्हें मृत्यु देगा, फिर तुम्हें जीवित करेगा।[15] क्या तुम्हारे साझियों में से कोई है, जो इन कामों में से कुछ भी कर सके? वह पवित्र है और सर्वोच्च है, उनके साझी बनाने से।
ظَهَرَ ٱلۡفَسَادُ فِی ٱلۡبَرِّ وَٱلۡبَحۡرِ بِمَا كَسَبَتۡ أَیۡدِی ٱلنَّاسِ لِیُذِیقَهُم بَعۡضَ ٱلَّذِی عَمِلُواْ لَعَلَّهُمۡ یَرۡجِعُونَ ﴿٤١﴾
जल और थल में लोगों के हाथों की कमाई के कारण बिगाड़ फैल गया[16] है, ताकि वह (अल्लाह) उन्हें उनके कुछ कर्मों का मज़ा चखाए, ताकि वे बाज़ आ जाएँ।
قُلۡ سِیرُواْ فِی ٱلۡأَرۡضِ فَٱنظُرُواْ كَیۡفَ كَانَ عَـٰقِبَةُ ٱلَّذِینَ مِن قَبۡلُۚ كَانَ أَكۡثَرُهُم مُّشۡرِكِینَ ﴿٤٢﴾
आप कह दें कि धरती में चलो-फिरो, फिर देखो कि उन लोगों का अंत कैसा रहा, जो इनसे पहले थे। उनमें अधिकतर मुश्रिक थे।
فَأَقِمۡ وَجۡهَكَ لِلدِّینِ ٱلۡقَیِّمِ مِن قَبۡلِ أَن یَأۡتِیَ یَوۡمࣱ لَّا مَرَدَّ لَهُۥ مِنَ ٱللَّهِۖ یَوۡمَىِٕذࣲ یَصَّدَّعُونَ ﴿٤٣﴾
अतः आप अपना चेहरा सीधे धर्म पर स्थापित रखें, इससे पहले कि वह दिन आ जाए, जिसे अल्लाह की ओर से टलना नहीं है। उस दिन लोग अलग-अलग[17] हो जाएँगे।
مَن كَفَرَ فَعَلَیۡهِ كُفۡرُهُۥۖ وَمَنۡ عَمِلَ صَـٰلِحࣰا فَلِأَنفُسِهِمۡ یَمۡهَدُونَ ﴿٤٤﴾
जिसने कुफ़्र किया, उसके कुफ़्र का नुकसान उसी पर है, और जिसने सत्कर्म किया, तो वे अपने ही लिए (आराम का) साधन जुटा रहे हैं।
لِیَجۡزِیَ ٱلَّذِینَ ءَامَنُواْ وَعَمِلُواْ ٱلصَّـٰلِحَـٰتِ مِن فَضۡلِهِۦۤۚ إِنَّهُۥ لَا یُحِبُّ ٱلۡكَـٰفِرِینَ ﴿٤٥﴾
ताकि वह (अल्लाह) अपने अनुग्रह से उन लोगों को बदला दे, जो ईमान लाए और उन्होंने सत्कर्म किए। निःसंदेह वह काफ़िरों से प्रेम नहीं करता।
وَمِنۡ ءَایَـٰتِهِۦۤ أَن یُرۡسِلَ ٱلرِّیَاحَ مُبَشِّرَ ٰتࣲ وَلِیُذِیقَكُم مِّن رَّحۡمَتِهِۦ وَلِتَجۡرِیَ ٱلۡفُلۡكُ بِأَمۡرِهِۦ وَلِتَبۡتَغُواْ مِن فَضۡلِهِۦ وَلَعَلَّكُمۡ تَشۡكُرُونَ ﴿٤٦﴾
और उसकी निशानियों में से है कि वह शुभ सूचना देने वाली हवाएँ भेजता है, और ताकि तुम्हें अपनी दया (वर्षा) चखाए, और ताकि उसके आदेश से नावें चलें, और ताकि तुम उसका अनुग्रह (रोज़ी) तलाश करो, और ताकि तुम आभार प्रकट करो।
وَلَقَدۡ أَرۡسَلۡنَا مِن قَبۡلِكَ رُسُلًا إِلَىٰ قَوۡمِهِمۡ فَجَاۤءُوهُم بِٱلۡبَیِّنَـٰتِ فَٱنتَقَمۡنَا مِنَ ٱلَّذِینَ أَجۡرَمُواْۖ وَكَانَ حَقًّا عَلَیۡنَا نَصۡرُ ٱلۡمُؤۡمِنِینَ ﴿٤٧﴾
निश्चय हमने आपसे पहले कई रसूल उनकी जातियों की ओर भेजे। तो वे उनके पास खुली निशानियाँ लेकर आए। फिर हमने उन लोगों से बदला लिया, जिन्होंने अपराध किया। और हमपर ईमान वालों की सहायता[18] करना अनिवार्य था।
ٱللَّهُ ٱلَّذِی یُرۡسِلُ ٱلرِّیَـٰحَ فَتُثِیرُ سَحَابࣰا فَیَبۡسُطُهُۥ فِی ٱلسَّمَاۤءِ كَیۡفَ یَشَاۤءُ وَیَجۡعَلُهُۥ كِسَفࣰا فَتَرَى ٱلۡوَدۡقَ یَخۡرُجُ مِنۡ خِلَـٰلِهِۦۖ فَإِذَاۤ أَصَابَ بِهِۦ مَن یَشَاۤءُ مِنۡ عِبَادِهِۦۤ إِذَا هُمۡ یَسۡتَبۡشِرُونَ ﴿٤٨﴾
अल्लाह ही है, जो हवाओं को भेजता है। तो वे बादल उठाती हैं। फिर वह उसे जैसे चाहता है, आकाश में फैला देता है, और उसे टुकड़े-टुकड़े कर देता है। तो तुम वर्षा की बूँदों को उसके बीच से निकलते देखते हो। फिर जब वह उसे अपने बंदों में से जिसपर चाहता है, बरसाता है, तो सहसा वे बहुत खुश हो जाते हैं।
وَإِن كَانُواْ مِن قَبۡلِ أَن یُنَزَّلَ عَلَیۡهِم مِّن قَبۡلِهِۦ لَمُبۡلِسِینَ ﴿٤٩﴾
हालाँकि निश्चय वे इससे पहले, उसके उनपर बरसाए जाने से पहले बहुत निराश थे।
فَٱنظُرۡ إِلَىٰۤ ءَاثَـٰرِ رَحۡمَتِ ٱللَّهِ كَیۡفَ یُحۡیِ ٱلۡأَرۡضَ بَعۡدَ مَوۡتِهَاۤۚ إِنَّ ذَ ٰلِكَ لَمُحۡیِ ٱلۡمَوۡتَىٰۖ وَهُوَ عَلَىٰ كُلِّ شَیۡءࣲ قَدِیرࣱ ﴿٥٠﴾
तो आप अल्लाह की दया के संकेतों को देखें कि वह किस तरह धरती को उसके मृत हो जाने के पश्चात् जीवित करता है! निःसंदेह वही निश्चय मुर्दों को जीवित करने वाला है और वह हर चीज़ में पूरी तरह सक्षम है।
وَلَىِٕنۡ أَرۡسَلۡنَا رِیحࣰا فَرَأَوۡهُ مُصۡفَرࣰّا لَّظَلُّواْ مِنۢ بَعۡدِهِۦ یَكۡفُرُونَ ﴿٥١﴾
और निश्चय अगर हम कोई वायु भेजे, फिर वे उस (खेती) को पीली पड़ी हुई देखें, तो वे इसके बाद अवश्य नाशुक्री करने लगेंगे।
فَإِنَّكَ لَا تُسۡمِعُ ٱلۡمَوۡتَىٰ وَلَا تُسۡمِعُ ٱلصُّمَّ ٱلدُّعَاۤءَ إِذَا وَلَّوۡاْ مُدۡبِرِینَ ﴿٥٢﴾
निःसंदेह आप मुर्दों[19] को नहीं सुना सकते और न बहरों को (अपनी) पुकार सुना सकते हैं, जब वे पीठ फेरकर लौट जाएँ।
وَمَاۤ أَنتَ بِهَـٰدِ ٱلۡعُمۡیِ عَن ضَلَـٰلَتِهِمۡۖ إِن تُسۡمِعُ إِلَّا مَن یُؤۡمِنُ بِـَٔایَـٰتِنَا فَهُم مُّسۡلِمُونَ ﴿٥٣﴾
तथा आप अंधों को उनकी गुमारही से हटाकर सीधे मार्ग पर नहीं ला सकते। आप तो केवल उन्हीं को सुना सकते हैं, जो हमारी आयतों पर ईमान रखते हैं। तो वही आज्ञाकारी हैं।
۞ ٱللَّهُ ٱلَّذِی خَلَقَكُم مِّن ضَعۡفࣲ ثُمَّ جَعَلَ مِنۢ بَعۡدِ ضَعۡفࣲ قُوَّةࣰ ثُمَّ جَعَلَ مِنۢ بَعۡدِ قُوَّةࣲ ضَعۡفࣰا وَشَیۡبَةࣰۚ یَخۡلُقُ مَا یَشَاۤءُۚ وَهُوَ ٱلۡعَلِیمُ ٱلۡقَدِیرُ ﴿٥٤﴾
अल्लाह वह है, जिसने तुम्हें कमज़ोरी (की स्थिति) से पैदा, फिर (बचपन की) कमज़ोरी के बाद शक्ति प्रदान की, फिर शक्ति के बाद कमज़ोरी और बुढ़ापा[20] बना दिया। वह जो चाहता है, पैदा करता है। और वही सब कुछ जानने वाला, हर चीज़ पर सर्वशक्तिमान है।
وَیَوۡمَ تَقُومُ ٱلسَّاعَةُ یُقۡسِمُ ٱلۡمُجۡرِمُونَ مَا لَبِثُواْ غَیۡرَ سَاعَةࣲۚ كَذَ ٰلِكَ كَانُواْ یُؤۡفَكُونَ ﴿٥٥﴾
और जिस दिन क़ियामत क़ायम होगी, अपराधी क़समें खाएँगें कि वे घड़ी भर[21] से अधिक नहीं ठहरे। इसी तरह वे बहकाए जाते थे।
وَقَالَ ٱلَّذِینَ أُوتُواْ ٱلۡعِلۡمَ وَٱلۡإِیمَـٰنَ لَقَدۡ لَبِثۡتُمۡ فِی كِتَـٰبِ ٱللَّهِ إِلَىٰ یَوۡمِ ٱلۡبَعۡثِۖ فَهَـٰذَا یَوۡمُ ٱلۡبَعۡثِ وَلَـٰكِنَّكُمۡ كُنتُمۡ لَا تَعۡلَمُونَ ﴿٥٦﴾
तथा जिन लोगों को ज्ञान और ईमान दिया गया, वे कहेंगे कि तुम अल्लाह के लेख के अनुसार उठाए जाने के दिन तक ठहरे रहे। तो यह उठाए जाने का दिन है। लेकिन तुम नहीं जानते थे।
فَیَوۡمَىِٕذࣲ لَّا یَنفَعُ ٱلَّذِینَ ظَلَمُواْ مَعۡذِرَتُهُمۡ وَلَا هُمۡ یُسۡتَعۡتَبُونَ ﴿٥٧﴾
तो उस दिन, अत्याचारियों को उनका बहाना लाभ न देगा और न उनसे अल्लाह को खुश करने के लिए कहा जाएगा।
وَلَقَدۡ ضَرَبۡنَا لِلنَّاسِ فِی هَـٰذَا ٱلۡقُرۡءَانِ مِن كُلِّ مَثَلࣲۚ وَلَىِٕن جِئۡتَهُم بِـَٔایَةࣲ لَّیَقُولَنَّ ٱلَّذِینَ كَفَرُوۤاْ إِنۡ أَنتُمۡ إِلَّا مُبۡطِلُونَ ﴿٥٨﴾
और निःसंदेह हमने इस क़ुरआन में लोगों के लिए हर तरह के उदाहरण बयान किए हैं और यदि आप उनके पास कोई निशानी लाएँ, तो निश्चय कुफ़्र करने वाले अवश्य कहेंगे कि तुम तो केवल मिथ्यावादी हो।
كَذَ ٰلِكَ یَطۡبَعُ ٱللَّهُ عَلَىٰ قُلُوبِ ٱلَّذِینَ لَا یَعۡلَمُونَ ﴿٥٩﴾
इसी प्रकार, अल्लाह उन लोगों के दिलों पर मुहर लगा देता है, जो नहीं जानते।
فَٱصۡبِرۡ إِنَّ وَعۡدَ ٱللَّهِ حَقࣱّۖ وَلَا یَسۡتَخِفَّنَّكَ ٱلَّذِینَ لَا یُوقِنُونَ ﴿٦٠﴾
तो आप धैर्य से काम लें। निःसंदेह अल्लाह का वचन सत्य है और वे लोग आपको[22] कदापि हल्का (अधीर) न कर दें, जो यक़ीन नहीं रखते।