تَنزِیلُ ٱلۡكِتَـٰبِ لَا رَیۡبَ فِیهِ مِن رَّبِّ ٱلۡعَـٰلَمِینَ ﴿٢﴾
इस पुस्तक का अवतरण, जिसमें कोई संदेह नहीं, पूरे संसार के पालनहार की ओर से है।
أَمۡ یَقُولُونَ ٱفۡتَرَىٰهُۚ بَلۡ هُوَ ٱلۡحَقُّ مِن رَّبِّكَ لِتُنذِرَ قَوۡمࣰا مَّاۤ أَتَىٰهُم مِّن نَّذِیرࣲ مِّن قَبۡلِكَ لَعَلَّهُمۡ یَهۡتَدُونَ ﴿٣﴾
क्या वे कहते हैं कि उसने इसे स्वयं गढ़ लिया है? बल्कि वही आपके पालनहार की ओर से सत्य है, ताकि आप उन लोगों को सावधान करें, जिनके[1] पास आपसे पहले कोई सावधान करने वाला नहीं आया। ताकि वे सीधी राह पर आ जाएँ।
ٱللَّهُ ٱلَّذِی خَلَقَ ٱلسَّمَـٰوَ ٰتِ وَٱلۡأَرۡضَ وَمَا بَیۡنَهُمَا فِی سِتَّةِ أَیَّامࣲ ثُمَّ ٱسۡتَوَىٰ عَلَى ٱلۡعَرۡشِۖ مَا لَكُم مِّن دُونِهِۦ مِن وَلِیࣲّ وَلَا شَفِیعٍۚ أَفَلَا تَتَذَكَّرُونَ ﴿٤﴾
अल्लाह वह है, जिसने आकाशों तथा धरती तथा उन दोनों के बीच मौजूद सारी चीज़ों को छः दिनों में पैदा किया। फिर वह अर्श पर मुस्तवी (बुलंद) हुआ। उसके सिवा तुम्हारा न कोई संरक्षक है और न कोई सिफ़ारिश करने वाला। तो क्या तुम उपदेश ग्रहण नहीं करते?
یُدَبِّرُ ٱلۡأَمۡرَ مِنَ ٱلسَّمَاۤءِ إِلَى ٱلۡأَرۡضِ ثُمَّ یَعۡرُجُ إِلَیۡهِ فِی یَوۡمࣲ كَانَ مِقۡدَارُهُۥۤ أَلۡفَ سَنَةࣲ مِّمَّا تَعُدُّونَ ﴿٥﴾
वह आकाश से धरती तक (प्रत्येक) कार्य का प्रबंध करता है। फिर वह (कार्य) उसकी ओर एक ऐसे दिन में ऊपर जाता है, जिसकी मात्रा तुम्हारे हिसाब के अनुसार एक हज़ार वर्ष है।
ذَ ٰلِكَ عَـٰلِمُ ٱلۡغَیۡبِ وَٱلشَّهَـٰدَةِ ٱلۡعَزِیزُ ٱلرَّحِیمُ ﴿٦﴾
वही परोक्ष और प्रत्यक्ष का जानने वाला, अत्यंत प्रभुत्वशाली, अति दयावान है।
ٱلَّذِیۤ أَحۡسَنَ كُلَّ شَیۡءٍ خَلَقَهُۥۖ وَبَدَأَ خَلۡقَ ٱلۡإِنسَـٰنِ مِن طِینࣲ ﴿٧﴾
जिसने अच्छा बनाया हर चीज़ को जो उसने पैदा की और उसने मनुष्य की रचना मिट्टी से शुरू की।
ثُمَّ جَعَلَ نَسۡلَهُۥ مِن سُلَـٰلَةࣲ مِّن مَّاۤءࣲ مَّهِینࣲ ﴿٨﴾
फिर उसके वंश को एक तुच्छ पानी के निचोड़ (वीर्य) से बनाया।
ثُمَّ سَوَّىٰهُ وَنَفَخَ فِیهِ مِن رُّوحِهِۦۖ وَجَعَلَ لَكُمُ ٱلسَّمۡعَ وَٱلۡأَبۡصَـٰرَ وَٱلۡأَفۡـِٔدَةَۚ قَلِیلࣰا مَّا تَشۡكُرُونَ ﴿٩﴾
फिर उसे ठीक-ठाक किया, और उसमें अपनी एक आत्मा (प्राण) फूँकी, तथा तुम्हारे लिए कान और आँखें तथा दिल बनाए। तुम बहुत कम ही शुक्र करते हो।
وَقَالُوۤاْ أَءِذَا ضَلَلۡنَا فِی ٱلۡأَرۡضِ أَءِنَّا لَفِی خَلۡقࣲ جَدِیدِۭۚ بَلۡ هُم بِلِقَاۤءِ رَبِّهِمۡ كَـٰفِرُونَ ﴿١٠﴾
तथा उन्होंने कहा : क्या जब हम धरती में खो जाएँगे, तो क्या हम वास्तव में नए सिरे से पैदा किए जाएँगे? बल्कि वे अपने पालनहार से मिलने का इनकार करने वाले लोग हैं।
۞ قُلۡ یَتَوَفَّىٰكُم مَّلَكُ ٱلۡمَوۡتِ ٱلَّذِی وُكِّلَ بِكُمۡ ثُمَّ إِلَىٰ رَبِّكُمۡ تُرۡجَعُونَ ﴿١١﴾
आप कह दें कि मौत का फ़रिश्ता तुम्हारे प्राण निकाल लेगा, जो तुमपर नियुक्त किया गया है, फिर तुम अपने पालनहार ही की ओर लौटाए जाओगे।[2]
وَلَوۡ تَرَىٰۤ إِذِ ٱلۡمُجۡرِمُونَ نَاكِسُواْ رُءُوسِهِمۡ عِندَ رَبِّهِمۡ رَبَّنَاۤ أَبۡصَرۡنَا وَسَمِعۡنَا فَٱرۡجِعۡنَا نَعۡمَلۡ صَـٰلِحًا إِنَّا مُوقِنُونَ ﴿١٢﴾
और यदि आप देखें, जब अपराधी लोग अपने पालनहार के सामने अपने सिर झुकाए (खड़े) होंगे। (वे कहेंगे :) ऐ हमारे पालनहार! हमने देख लिया और सुन लिया। अतः हमें (दुनिया में) वापस भेज दे कि हम अच्छे कार्य करें। निःसंदेह हम विश्वास करने वाले हैं।
وَلَوۡ شِئۡنَا لَـَٔاتَیۡنَا كُلَّ نَفۡسٍ هُدَىٰهَا وَلَـٰكِنۡ حَقَّ ٱلۡقَوۡلُ مِنِّی لَأَمۡلَأَنَّ جَهَنَّمَ مِنَ ٱلۡجِنَّةِ وَٱلنَّاسِ أَجۡمَعِینَ ﴿١٣﴾
और यदि हम चाहते, तो प्रत्येक प्राणी को उसका मार्गदर्शन प्रदान कर देते। लेकिन मेरी ओर से बात प्रमाणित (निश्चित) हो चुकी कि मैं जहन्नम को जिन्नों तथा इनसानों, सबसे से ज़रूर भरूँगा।
فَذُوقُواْ بِمَا نَسِیتُمۡ لِقَاۤءَ یَوۡمِكُمۡ هَـٰذَاۤ إِنَّا نَسِینَـٰكُمۡۖ وَذُوقُواْ عَذَابَ ٱلۡخُلۡدِ بِمَا كُنتُمۡ تَعۡمَلُونَ ﴿١٤﴾
तो (अब यातना) चखो, इस कारण कि तुमने अपने इस दिन के मिलने को भुला दिया। निःसंदेह हमने तुम्हें भुला दिया।[3] और जो तुम किया करते थे उसके कारण शाश्वत यातना का मज़ा चखो।
إِنَّمَا یُؤۡمِنُ بِـَٔایَـٰتِنَا ٱلَّذِینَ إِذَا ذُكِّرُواْ بِهَا خَرُّواْ سُجَّدࣰا وَسَبَّحُواْ بِحَمۡدِ رَبِّهِمۡ وَهُمۡ لَا یَسۡتَكۡبِرُونَ ۩ ﴿١٥﴾
हमारी आयतों पर तो केवल वही लोग ईमान लाते हैं कि जब उन्हें उन (आयतों) के साथ नसीहत की जाती है, तो वे सजदा करते हुए गिर जाते हैं, और अपने पालनहार की प्रशंसा के साथ उसकी पवित्रता का गान करते हैं, और वे अभिमान नहीं करते।[4]
تَتَجَافَىٰ جُنُوبُهُمۡ عَنِ ٱلۡمَضَاجِعِ یَدۡعُونَ رَبَّهُمۡ خَوۡفࣰا وَطَمَعࣰا وَمِمَّا رَزَقۡنَـٰهُمۡ یُنفِقُونَ ﴿١٦﴾
उनके पहलू बिस्तरों से अलग रहते हैं। वे अपने पालनहार को भय तथा आशा के साथ पुकारते हैं। तथा हमने जो कुछ उन्हें प्रदान किया है, उसमें से खर्च करते हैं।
فَلَا تَعۡلَمُ نَفۡسࣱ مَّاۤ أُخۡفِیَ لَهُم مِّن قُرَّةِ أَعۡیُنࣲ جَزَاۤءَۢ بِمَا كَانُواْ یَعۡمَلُونَ ﴿١٧﴾
तो कोई प्राणी नहीं जानता कि उनके लिए आँखों की ठंढक[5] में से क्या कुछ छिपाकर रखा गया है, उसके बदले के तौर पर, जो वे (दुनिया में) किया करते थे।
أَفَمَن كَانَ مُؤۡمِنࣰا كَمَن كَانَ فَاسِقࣰاۚ لَّا یَسۡتَوُۥنَ ﴿١٨﴾
तो क्या वह व्यक्ति जो ईमान वाला हो, वह उसके समान है, जो अवज्ञाकारी हो? वे समान नहीं हो सकते।
أَمَّا ٱلَّذِینَ ءَامَنُواْ وَعَمِلُواْ ٱلصَّـٰلِحَـٰتِ فَلَهُمۡ جَنَّـٰتُ ٱلۡمَأۡوَىٰ نُزُلَۢا بِمَا كَانُواْ یَعۡمَلُونَ ﴿١٩﴾
लेकिन जो लोग ईमान लाए तथा उन्होंने सत्कर्म किए, तो उनके लिए रहने के बाग़ हैं, उन कार्यों के बदले में आतिथ्य स्वरूप, जो वे किया करते थे।
وَأَمَّا ٱلَّذِینَ فَسَقُواْ فَمَأۡوَىٰهُمُ ٱلنَّارُۖ كُلَّمَاۤ أَرَادُوۤاْ أَن یَخۡرُجُواْ مِنۡهَاۤ أُعِیدُواْ فِیهَا وَقِیلَ لَهُمۡ ذُوقُواْ عَذَابَ ٱلنَّارِ ٱلَّذِی كُنتُم بِهِۦ تُكَذِّبُونَ ﴿٢٠﴾
और रहे वे लोग, जिन्होंने अवज्ञा की, तो उनका ठिकाना आग है। जब भी वे उससे निकलना चाहेंगे, उसी में लौटा दिए जाएँगे, तथा उनसे कहा जाएगा कि उस आग की यातना चखो, जिसे तुम झुठलाया करते थे।
وَلَنُذِیقَنَّهُم مِّنَ ٱلۡعَذَابِ ٱلۡأَدۡنَىٰ دُونَ ٱلۡعَذَابِ ٱلۡأَكۡبَرِ لَعَلَّهُمۡ یَرۡجِعُونَ ﴿٢١﴾
और निश्चय हम उन्हें (आख़िरत की) सबसे बड़ी यातना से पहले (दुनिया की) निकटतम यातना अवश्य चखाएँगे, ताकि वे पलट आएँ।[6]
وَمَنۡ أَظۡلَمُ مِمَّن ذُكِّرَ بِـَٔایَـٰتِ رَبِّهِۦ ثُمَّ أَعۡرَضَ عَنۡهَاۤۚ إِنَّا مِنَ ٱلۡمُجۡرِمِینَ مُنتَقِمُونَ ﴿٢٢﴾
और उससे बड़ा अत्याचारी कौन है, जिसे उसके पालनहार की आयतों द्वारा नसीहत की गई, फिर वह उनसे विमुख हो गया। निश्चय ही हम अपराधियों से बदला लेने वाले हैं।
وَلَقَدۡ ءَاتَیۡنَا مُوسَى ٱلۡكِتَـٰبَ فَلَا تَكُن فِی مِرۡیَةࣲ مِّن لِّقَاۤىِٕهِۦۖ وَجَعَلۡنَـٰهُ هُدࣰى لِّبَنِیۤ إِسۡرَ ٰۤءِیلَ ﴿٢٣﴾
तथा निःसंदेह हमने मूसा को पुस्तक प्रदान की। तो आप उससे[7] मिलने के बारे में किसी संदेह में न रहें। तथा हमने उस (तौरात) को इसराईल की संतान के लिए मार्गदर्शन बनाया।
وَجَعَلۡنَا مِنۡهُمۡ أَىِٕمَّةࣰ یَهۡدُونَ بِأَمۡرِنَا لَمَّا صَبَرُواْۖ وَكَانُواْ بِـَٔایَـٰتِنَا یُوقِنُونَ ﴿٢٤﴾
और हमने उनमें से कई अगुवे (इमाम) बनाए, जो हमारे आदेश से मार्गदर्शन करते थे, जब उन्होंने धैर्य से काम लिया, तथा वे हमारी आयतों पर विश्वास करते थे।[8]
إِنَّ رَبَّكَ هُوَ یَفۡصِلُ بَیۡنَهُمۡ یَوۡمَ ٱلۡقِیَـٰمَةِ فِیمَا كَانُواْ فِیهِ یَخۡتَلِفُونَ ﴿٢٥﴾
निःसंदेह आपका पालनहार ही क़ियामत के दिन उनके बीच उस बारे में निर्णय करेगा, जिसमें वे मतभेद किया करते थे।
أَوَلَمۡ یَهۡدِ لَهُمۡ كَمۡ أَهۡلَكۡنَا مِن قَبۡلِهِم مِّنَ ٱلۡقُرُونِ یَمۡشُونَ فِی مَسَـٰكِنِهِمۡۚ إِنَّ فِی ذَ ٰلِكَ لَـَٔایَـٰتٍۚ أَفَلَا یَسۡمَعُونَ ﴿٢٦﴾
और क्या उनके लिए यह स्पष्ट नहीं हुआ कि हमने उनसे पहले कितने ही समुदायों को विनष्ट कर दिया, जिनके रहने-सहने की जगहों में वे चलते-फिरते हैं? निश्चय इसमें बहुत-सी निशानियाँ (शिक्षाएँ) हैं। तो क्या वे सुनते नहीं?
أَوَلَمۡ یَرَوۡاْ أَنَّا نَسُوقُ ٱلۡمَاۤءَ إِلَى ٱلۡأَرۡضِ ٱلۡجُرُزِ فَنُخۡرِجُ بِهِۦ زَرۡعࣰا تَأۡكُلُ مِنۡهُ أَنۡعَـٰمُهُمۡ وَأَنفُسُهُمۡۚ أَفَلَا یُبۡصِرُونَ ﴿٢٧﴾
और क्या उन्होंने नहीं देखा कि हम पानी को सूखी (बंजर) भूमि की ओर बहा ले जाते हैं, फिर हम उसके द्वारा खेती निकालते हैं, जिसमें से उनके चौपाये तथा वे स्वयं भी खाते हैं। तो क्या वे देखते नहीं?
وَیَقُولُونَ مَتَىٰ هَـٰذَا ٱلۡفَتۡحُ إِن كُنتُمۡ صَـٰدِقِینَ ﴿٢٨﴾
तथा वे कहते हैं : यह निर्णय कब होगा, यदि तुम सच्चे हो?
قُلۡ یَوۡمَ ٱلۡفَتۡحِ لَا یَنفَعُ ٱلَّذِینَ كَفَرُوۤاْ إِیمَـٰنُهُمۡ وَلَا هُمۡ یُنظَرُونَ ﴿٢٩﴾
आप कह दें : निर्णय के दिन काफ़िरों को उनका ईमान लाना लाभ नहीं देगा और न उन्हें मोहलत दी जाएगी।[9]