Surah सूरा यासीन - Yā-Sīn

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Surah सूरा यासीन - Yā-Sīn - Aya count 83

یسۤ ﴿١﴾

या, सीन।


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وَٱلۡقُرۡءَانِ ٱلۡحَكِیمِ ﴿٢﴾

क़सम है हिकमत वाले क़ुरआन की!


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إِنَّكَ لَمِنَ ٱلۡمُرۡسَلِینَ ﴿٣﴾

निःसंदेह आप रसूलों में से हैं।


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عَلَىٰ صِرَ ٰ⁠طࣲ مُّسۡتَقِیمࣲ ﴿٤﴾

सीधे रास्ते पर हैं।


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تَنزِیلَ ٱلۡعَزِیزِ ٱلرَّحِیمِ ﴿٥﴾

(यह) प्रभुत्वशाली, अति दयावान् (अल्लाह) का उतारा हुआ है।


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لِتُنذِرَ قَوۡمࣰا مَّاۤ أُنذِرَ ءَابَاۤؤُهُمۡ فَهُمۡ غَـٰفِلُونَ ﴿٦﴾

ताकि आप उस जाति[1] को डराएँ, जिनके बााप-दादा नहीं डराए गए थे। इसलिए वे ग़ाफ़िल हैं।

1. अर्थात् मक्का वासियों को, जिनके पास इसमाईल (अलैहिस्सलाम) के पश्चात् कोई नबी नहीं आया।


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لَقَدۡ حَقَّ ٱلۡقَوۡلُ عَلَىٰۤ أَكۡثَرِهِمۡ فَهُمۡ لَا یُؤۡمِنُونَ ﴿٧﴾

उनमें से अधिकतर लोगों पर बात[2] सिद्ध हो चुकी है। अतः वे ईमान नहीं लाएँगे।

2. अर्थात अल्लाह की यह बात कि ''मैं जिन्नों तथा मनुष्यों से नरक को भर दूँगा।'' (देखिए : सूरतुस सजदा, आयत :13)


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إِنَّا جَعَلۡنَا فِیۤ أَعۡنَـٰقِهِمۡ أَغۡلَـٰلࣰا فَهِیَ إِلَى ٱلۡأَذۡقَانِ فَهُم مُّقۡمَحُونَ ﴿٨﴾

तथा हमने उनकी गर्दनों में तौक़ डाल दिए हैं, जो ठुड्डियों से लगे हैं।[3] इसलिए वे सिर ऊपर किए हुए हैं।

3. इससे अभिप्राय उनका कुफ़्र पर दुराग्रह तथा ईमान न लाना है।


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وَجَعَلۡنَا مِنۢ بَیۡنِ أَیۡدِیهِمۡ سَدࣰّا وَمِنۡ خَلۡفِهِمۡ سَدࣰّا فَأَغۡشَیۡنَـٰهُمۡ فَهُمۡ لَا یُبۡصِرُونَ ﴿٩﴾

तथा हमने उनके आगे एक आड़ बना दी है और उनके पीछे एक आड़। फिर हमने उनको ढाँक दिया है। अतः वे[4] देख ही नहीं पाते।

4. अर्थात सत्य की ओर ध्यान नहीं दे रहे हैं, और न उससे लाभान्वित हो रहे हैं।


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وَسَوَاۤءٌ عَلَیۡهِمۡ ءَأَنذَرۡتَهُمۡ أَمۡ لَمۡ تُنذِرۡهُمۡ لَا یُؤۡمِنُونَ ﴿١٠﴾

और उनके लिए बराबर है, चाहे आप उन्हें डराएँ या न डराएँ, वे ईमान नहीं लाएँगे।


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إِنَّمَا تُنذِرُ مَنِ ٱتَّبَعَ ٱلذِّكۡرَ وَخَشِیَ ٱلرَّحۡمَـٰنَ بِٱلۡغَیۡبِۖ فَبَشِّرۡهُ بِمَغۡفِرَةࣲ وَأَجۡرࣲ كَرِیمٍ ﴿١١﴾

आप तो केवल उस व्यक्ति को डरा सकते हैं, जो इस ज़िक्र (क़ुरआन) का पालन करे, तथा बिन देखे रहमान (अत्यंत दयावान् अल्लाह) से डरे। तो आप उसे क्षमा तथा सम्मानजनक बदले की शुभ सूचना दे दें।


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إِنَّا نَحۡنُ نُحۡیِ ٱلۡمَوۡتَىٰ وَنَكۡتُبُ مَا قَدَّمُواْ وَءَاثَـٰرَهُمۡۚ وَكُلَّ شَیۡءٍ أَحۡصَیۡنَـٰهُ فِیۤ إِمَامࣲ مُّبِینࣲ ﴿١٢﴾

निःसंदेह हम ही मुर्दों को जीवित करेंगे। तथा हम उनके कर्मों और उनके पद्चिह्नों[5] को लिख रहे हैं। तथा प्रत्येक वस्तु को हमने स्पष्ट पुस्तक में दर्ज कर रखा है।

5. अर्थात पुण्य अथवा पाप करने के लिए आते-जाते जो उन के पद्चिह्न धरती पर बने हैं, उन्हें भी लिख रखा है। इसी में उनके अच्छे-बुरे वे कर्म भी आते हैं, जो उन्होंने किए हैं और जिनका उनके पश्चात् अनुसरण किया जा रहा है।


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وَٱضۡرِبۡ لَهُم مَّثَلًا أَصۡحَـٰبَ ٱلۡقَرۡیَةِ إِذۡ جَاۤءَهَا ٱلۡمُرۡسَلُونَ ﴿١٣﴾

तथा आप उन्हें[6] बस्ती वालों का एक उदाहरण दीजिए। जब वहाँ (अल्लाह के) भेजे हुए रसूल आए।

6. अर्थात् अपने आमंत्रण के विरोधियों को।


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إِذۡ أَرۡسَلۡنَاۤ إِلَیۡهِمُ ٱثۡنَیۡنِ فَكَذَّبُوهُمَا فَعَزَّزۡنَا بِثَالِثࣲ فَقَالُوۤاْ إِنَّاۤ إِلَیۡكُم مُّرۡسَلُونَ ﴿١٤﴾

जब हमने उनकी ओर दो (रसूलों को) भेजा। तो उन्होंने उन दोनों को झुठला दिया। तब हमने तीसरे के द्वारा शक्ति पहुँचाई। तो तीनों ने कहा : निःसंदेह हम तुम्हारी ओर भेजे गए हैं।


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قَالُواْ مَاۤ أَنتُمۡ إِلَّا بَشَرࣱ مِّثۡلُنَا وَمَاۤ أَنزَلَ ٱلرَّحۡمَـٰنُ مِن شَیۡءٍ إِنۡ أَنتُمۡ إِلَّا تَكۡذِبُونَ ﴿١٥﴾

उन्होंने कहा : तुम सब तो हमारे ही जैसे मनुष्य[7] हो, और अत्यंत दयावान् (अल्लाह) ने कुछ भी नहीं उतारा है। तुम तो बस झूठ बोल रहे हो।

7. प्राचीन युग से मुश्रिकों तथा कुपथों ने अल्लाह के रसूलों को इसी कारण नहीं माना कि एक मनुष्य अल्लाह का रसूल कैसे हो सकता है? यह तो खाता-पीता तथा बाज़ारों में चलता-फिरता है। (देखिए : सूरतुल-फ़ुर्क़ान, आयत : 7-20, सूरतुल-अंबिया, आयत : 3,7,8, सूरतुल-मूमिनून, आयत : 24, 33-34, सूरत इबराहीम, आयत : 10-11, सूरतुल-इसरा, आयत : 94-95, और सूरतुत्-तग़ाबुन, आयत : 6)


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قَالُواْ رَبُّنَا یَعۡلَمُ إِنَّاۤ إِلَیۡكُمۡ لَمُرۡسَلُونَ ﴿١٦﴾

उन रसूलों ने कहा : हमारा पालनहार जानता है कि हम निश्चय ही तुम्हारी ओर रसूल बनाकर भेजे गए हैं।


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وَمَا عَلَیۡنَاۤ إِلَّا ٱلۡبَلَـٰغُ ٱلۡمُبِینُ ﴿١٧﴾

तथा हमारा दायित्व खुले तौर पर संदेश पहुँचा देने के सिवा और कुछ नहीं है।


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قَالُوۤاْ إِنَّا تَطَیَّرۡنَا بِكُمۡۖ لَىِٕن لَّمۡ تَنتَهُواْ لَنَرۡجُمَنَّكُمۡ وَلَیَمَسَّنَّكُم مِّنَّا عَذَابٌ أَلِیمࣱ ﴿١٨﴾

उन लोगों ने कहा : हम तुम्हें अशुभ (मनहूस) समझते हैं। यदि तुम बाज़ नहीं आए, तो हम तुम्हें निश्चित रूप से पथराव करके मार डालेंगे और तुम्हें अवश्य ही हमारी ओर से दुःखदायी यातना पहुँचेगी।


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قَالُواْ طَـٰۤىِٕرُكُم مَّعَكُمۡ أَىِٕن ذُكِّرۡتُمۚ بَلۡ أَنتُمۡ قَوۡمࣱ مُّسۡرِفُونَ ﴿١٩﴾

उन लोगों ने कहा : तुम्हारा अपशकुन तुम्हारे ही साथ है। क्या इसलिए कि तुम्हें उपदेश दिया गया? बल्कि तुम उल्लंघनकारी लोग हो।


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وَجَاۤءَ مِنۡ أَقۡصَا ٱلۡمَدِینَةِ رَجُلࣱ یَسۡعَىٰ قَالَ یَـٰقَوۡمِ ٱتَّبِعُواْ ٱلۡمُرۡسَلِینَ ﴿٢٠﴾

तथा नगर के अंतिम किनारे से एक व्यक्ति दौड़ता हुआ आया। उसने कहा : ऐ मेरी जाति के लोगो! रसूलों का कहा मानो।


Arabic explanations of the Qur’an:

ٱتَّبِعُواْ مَن لَّا یَسۡـَٔلُكُمۡ أَجۡرࣰا وَهُم مُّهۡتَدُونَ ﴿٢١﴾

तुम उनका अनुसरण करो, जो तुमसे कोई पारिश्रमिक (बदला) नहीं माँगते तथा वे सीधे मार्ग पर हैं।


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وَمَا لِیَ لَاۤ أَعۡبُدُ ٱلَّذِی فَطَرَنِی وَإِلَیۡهِ تُرۡجَعُونَ ﴿٢٢﴾

तथा मुझे क्या हुआ है कि मैं उसकी इबादत न करूँ, जिसने मुझे पैदा किया है और तुम (सब) उसी की ओर लौटाए जाओगे?[8]

8. अर्थात मैं तो उसी की इबादत करता हूँ और करता रहूँगा। और उसी की इबादत करनी भी चाहिए। क्योंकि वही इबादत किए जाने के योग्य है। उसके अतिरिक्त कोई इबादत के योग्य हो ही नहीं सकता।


Arabic explanations of the Qur’an:

ءَأَتَّخِذُ مِن دُونِهِۦۤ ءَالِهَةً إِن یُرِدۡنِ ٱلرَّحۡمَـٰنُ بِضُرࣲّ لَّا تُغۡنِ عَنِّی شَفَـٰعَتُهُمۡ شَیۡـࣰٔا وَلَا یُنقِذُونِ ﴿٢٣﴾

क्या मैं उसे छोड़कर दूसरे पूज्य बना लूँ? यदि रहमान (अत्यंत दयावान् अल्लाह) मुझे कोई हानि पहुँचाना चाहे, तो उनकी सिफ़ारिश मुझे कुछ लाभ नहीं पहुँचा सकेगी और न वे मुझे बचा सकेंगे।


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إِنِّیۤ إِذࣰا لَّفِی ضَلَـٰلࣲ مُّبِینٍ ﴿٢٤﴾

निःसंदेह मैं उस समय खुली गुमराही में हूँगा।


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إِنِّیۤ ءَامَنتُ بِرَبِّكُمۡ فَٱسۡمَعُونِ ﴿٢٥﴾

निःसंदेह मैं तुम्हारे पालनहार पर ईमान ले आया। अतः मेरी बात सुनो।


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قِیلَ ٱدۡخُلِ ٱلۡجَنَّةَۖ قَالَ یَـٰلَیۡتَ قَوۡمِی یَعۡلَمُونَ ﴿٢٦﴾

(उससे) कहा गया : जन्नत में प्रवेश कर जा। उसने कहा : काश मेरी जाति भी जान लेती!


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بِمَا غَفَرَ لِی رَبِّی وَجَعَلَنِی مِنَ ٱلۡمُكۡرَمِینَ ﴿٢٧﴾

कि मेरे पालनहार ने मुझे क्षमा[9] कर दिया और मुझे सम्मानित लोगों में शामिल कर दिया।

9. अर्थात एकेश्वरवाद तथा अल्लाह की आज्ञा के पालन पर धैर्य के कारण।


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۞ وَمَاۤ أَنزَلۡنَا عَلَىٰ قَوۡمِهِۦ مِنۢ بَعۡدِهِۦ مِن جُندࣲ مِّنَ ٱلسَّمَاۤءِ وَمَا كُنَّا مُنزِلِینَ ﴿٢٨﴾

तथा हमने उसके पश्चात् उसकी जाति पर आकाश से कोई सेना नहीं उतारी और न हम उतारने वाले थे।[10]

10. अर्थात यातना देने के लिए हम सेनाएँ नहीं उतारते।


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إِن كَانَتۡ إِلَّا صَیۡحَةࣰ وَ ٰ⁠حِدَةࣰ فَإِذَا هُمۡ خَـٰمِدُونَ ﴿٢٩﴾

वह तो मात्र एक तेज़ आवाज़ (चिंघाड़) थी। फिर एकाएक वे बुझे हुए थे।[11]

11. अर्थात एक चीख़ ने उनको बुझी हुई राख के समान कर दिया। इससे ज्ञात होता है कि मनुष्य कितना निर्बल है।


Arabic explanations of the Qur’an:

یَـٰحَسۡرَةً عَلَى ٱلۡعِبَادِۚ مَا یَأۡتِیهِم مِّن رَّسُولٍ إِلَّا كَانُواْ بِهِۦ یَسۡتَهۡزِءُونَ ﴿٣٠﴾

हाय अफसोस है[12] बंदों पर! उनके पास जो भी रसूल आता, वे उसका उपहास किया करते थे।

12. अर्थात प्रलय के दिन रसूलों का उपहास बंदों के लिए अफसोस का कारण होगा।


Arabic explanations of the Qur’an:

أَلَمۡ یَرَوۡاْ كَمۡ أَهۡلَكۡنَا قَبۡلَهُم مِّنَ ٱلۡقُرُونِ أَنَّهُمۡ إِلَیۡهِمۡ لَا یَرۡجِعُونَ ﴿٣١﴾

क्या उन्होंने नहीं देखा कि हमने उनसे पहले कितने ही समुदायों को विनष्ट कर दिया कि वे उनकी ओर लौटकर नहीं आएँगे।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَإِن كُلࣱّ لَّمَّا جَمِیعࣱ لَّدَیۡنَا مُحۡضَرُونَ ﴿٣٢﴾

तथा वे जितने भी हैं सबके सब हमारे सामने उपस्थित किए जाएँगे।[13]

13. प्रलय के दिन ह़िसाब तथा बदले के लिए।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَءَایَةࣱ لَّهُمُ ٱلۡأَرۡضُ ٱلۡمَیۡتَةُ أَحۡیَیۡنَـٰهَا وَأَخۡرَجۡنَا مِنۡهَا حَبࣰّا فَمِنۡهُ یَأۡكُلُونَ ﴿٣٣﴾

तथा उनके[14] लिए एक बड़ी निशानी मृत भूमि है। हमने उसे जीवित किया और उससे अन्न निकाला। तो वे उसी में से खाते हैं।

14. यहाँ एकेश्वरवाद तथा आख़िरत (परलोक) के विषय का वर्णन किया जा रहा है। जो नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) तथा मक्का के काफ़िरों के बीच विवाद का कारण था।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَجَعَلۡنَا فِیهَا جَنَّـٰتࣲ مِّن نَّخِیلࣲ وَأَعۡنَـٰبࣲ وَفَجَّرۡنَا فِیهَا مِنَ ٱلۡعُیُونِ ﴿٣٤﴾

तथा हमने उसमें खजूरों और अंगूरों के कई बाग बनाए और उनमें कई जल स्रोत प्रवाहित कर दिए।


Arabic explanations of the Qur’an:

لِیَأۡكُلُواْ مِن ثَمَرِهِۦ وَمَا عَمِلَتۡهُ أَیۡدِیهِمۡۚ أَفَلَا یَشۡكُرُونَ ﴿٣٥﴾

ताकि वे उसके फल खाएँ, हालाँकि उसे उनके हाथों ने नहीं बनाया है। तो क्या वे आभार प्रकट नहीं करते?


Arabic explanations of the Qur’an:

سُبۡحَـٰنَ ٱلَّذِی خَلَقَ ٱلۡأَزۡوَ ٰ⁠جَ كُلَّهَا مِمَّا تُنۢبِتُ ٱلۡأَرۡضُ وَمِنۡ أَنفُسِهِمۡ وَمِمَّا لَا یَعۡلَمُونَ ﴿٣٦﴾

पवित्र है वह अस्तित्व जिसने सभी जोड़े पैदा किए, उन चीज़ों के भी जिन्हें धरती उगाती है, और स्वयं उन (मनुष्यों) के अपने भी, और उनके भी जिन्हें वे नहीं जानते।


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وَءَایَةࣱ لَّهُمُ ٱلَّیۡلُ نَسۡلَخُ مِنۡهُ ٱلنَّهَارَ فَإِذَا هُم مُّظۡلِمُونَ ﴿٣٧﴾

तथा एक निशानी उनके लिए रात है। जिससे हम दिन को खींच लेते हैं, तो एकाएक वे अंधेरे में हो जाते हैं।


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وَٱلشَّمۡسُ تَجۡرِی لِمُسۡتَقَرࣲّ لَّهَاۚ ذَ ٰ⁠لِكَ تَقۡدِیرُ ٱلۡعَزِیزِ ٱلۡعَلِیمِ ﴿٣٨﴾

तथा सूर्य अपने नियत ठिकाने की ओर चला जा रहा है। यह प्रभुत्वशाली, सब कुछ जानने वाले (अल्लाह) का निर्धारित किया हुआ है।


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وَٱلۡقَمَرَ قَدَّرۡنَـٰهُ مَنَازِلَ حَتَّىٰ عَادَ كَٱلۡعُرۡجُونِ ٱلۡقَدِیمِ ﴿٣٩﴾

तथा चाँद की हमने मंज़िलें निर्धारित कर दी हैं। यहाँ तक कि वह फिर खजूर की पुरानी सूखी टेढ़ी टहनी के समान हो जाता है।


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لَا ٱلشَّمۡسُ یَنۢبَغِی لَهَاۤ أَن تُدۡرِكَ ٱلۡقَمَرَ وَلَا ٱلَّیۡلُ سَابِقُ ٱلنَّهَارِۚ وَكُلࣱّ فِی فَلَكࣲ یَسۡبَحُونَ ﴿٤٠﴾

न तो सूर्य ही से हो सकता है कि चाँद को जा पकड़े और न रात ही दिन से पहले आने वाली है। और सब एक-एक कक्षा में तैर रहे हैं।


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وَءَایَةࣱ لَّهُمۡ أَنَّا حَمَلۡنَا ذُرِّیَّتَهُمۡ فِی ٱلۡفُلۡكِ ٱلۡمَشۡحُونِ ﴿٤١﴾

तथा उनके लिए एक निशानी (यह भी) है कि हमने उनकी नस्ल को भरी हुई नाव में सवार किया।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَخَلَقۡنَا لَهُم مِّن مِّثۡلِهِۦ مَا یَرۡكَبُونَ ﴿٤٢﴾

तथा हमने उनके लिए उस (नाव) जैसी कई और चीज़ें बनाईं, जिनपर वे सवार होते हैं।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَإِن نَّشَأۡ نُغۡرِقۡهُمۡ فَلَا صَرِیخَ لَهُمۡ وَلَا هُمۡ یُنقَذُونَ ﴿٤٣﴾

और यदि हम चाहें, तो उन्हें डुबो दें। फिर न कोई उनकी फ़र्याद को पहुँचने वाला हो और न वे बचाए जाएँ।


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إِلَّا رَحۡمَةࣰ مِّنَّا وَمَتَـٰعًا إِلَىٰ حِینࣲ ﴿٤٤﴾

परंतु हमारी ओर से दया और एक समय तक लाभ पहुँचाने की वजह से।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَإِذَا قِیلَ لَهُمُ ٱتَّقُواْ مَا بَیۡنَ أَیۡدِیكُمۡ وَمَا خَلۡفَكُمۡ لَعَلَّكُمۡ تُرۡحَمُونَ ﴿٤٥﴾

और[15] जब उनसे कहा जाता है कि उस (यातना) से डरो, जो तुम्हारे आगे है और जो तुम्हारे पीछे है, ताकि तुमपर दया की जाए।

15. आयत संख्या 33 से यहाँ तक एकेश्वरवाद तथा परलोक के प्रमाणों, जिन्हें सभी लोग देखते तथा सुनते हैं, और जो सभी इस संसार की व्यवस्था तथा जीवन के संसाधनों से संबंधित हैं, उनका वर्णन करने के पश्चात् अब बहुदेववादियों तथा काफ़िरों की दशा और उनके आचरण का वर्णन किया जा रहा है।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَمَا تَأۡتِیهِم مِّنۡ ءَایَةࣲ مِّنۡ ءَایَـٰتِ رَبِّهِمۡ إِلَّا كَانُواْ عَنۡهَا مُعۡرِضِینَ ﴿٤٦﴾

और उनके पास उनके पालनहार की निशानियों में से कोई निशानी नहीं आती परंतु वे उससे मुँह फेरने वाले होते हैं।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَإِذَا قِیلَ لَهُمۡ أَنفِقُواْ مِمَّا رَزَقَكُمُ ٱللَّهُ قَالَ ٱلَّذِینَ كَفَرُواْ لِلَّذِینَ ءَامَنُوۤاْ أَنُطۡعِمُ مَن لَّوۡ یَشَاۤءُ ٱللَّهُ أَطۡعَمَهُۥۤ إِنۡ أَنتُمۡ إِلَّا فِی ضَلَـٰلࣲ مُّبِینࣲ ﴿٤٧﴾

तथा जब उनसे कहा जाता है कि उस धन में से खर्च करो, जो अल्लाह ने तुम्हें प्रदान किया है, तो काफ़िर लोग ईमान वालों से कहते हैं : क्या हम उसे खाना खिलाएँ, जिसे यदि अल्लाह चाहता, तो खिला देता? तुम तो खुली गुमराही में हो।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَیَقُولُونَ مَتَىٰ هَـٰذَا ٱلۡوَعۡدُ إِن كُنتُمۡ صَـٰدِقِینَ ﴿٤٨﴾

तथा वे कहते हैं : यह (क़ियामत का) वादा कब पूरा होगा, यदि तुम सच्चे हो?


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مَا یَنظُرُونَ إِلَّا صَیۡحَةࣰ وَ ٰ⁠حِدَةࣰ تَأۡخُذُهُمۡ وَهُمۡ یَخِصِّمُونَ ﴿٤٩﴾

वे केवल एक चिंघाड़[16] की प्रतीक्षा कर रहे हैं, जो उन्हें आ पकड़ेगी, जबकि वे (आपस में) झगड़ रहे होंगे।

16. इससे अभिप्राय प्रथम सूर है जिसमें फूँकते ही अल्लाह के सिवा सब मर जाएँगे।


Arabic explanations of the Qur’an:

فَلَا یَسۡتَطِیعُونَ تَوۡصِیَةࣰ وَلَاۤ إِلَىٰۤ أَهۡلِهِمۡ یَرۡجِعُونَ ﴿٥٠﴾

फिर वे न कोई वसीयत कर सकेंगे और न अपने परिजनों की ओर वापस आ सकेंगे।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَنُفِخَ فِی ٱلصُّورِ فَإِذَا هُم مِّنَ ٱلۡأَجۡدَاثِ إِلَىٰ رَبِّهِمۡ یَنسِلُونَ ﴿٥١﴾

तथा सूर (नरसिंघा) में फूँक[17] मारी जाएगी, तो एकाएक वे क़ब्रों से (निकलकर) अपने पालनहार की ओर दौड़ रहे होंगे।

17. इससे अभिप्राय दूसरी बार सूर फूँकना है जिससे सभी जीवित होकर अपनी समाधियों से निकल पड़ेंगे।


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قَالُواْ یَـٰوَیۡلَنَا مَنۢ بَعَثَنَا مِن مَّرۡقَدِنَاۜۗ هَـٰذَا مَا وَعَدَ ٱلرَّحۡمَـٰنُ وَصَدَقَ ٱلۡمُرۡسَلُونَ ﴿٥٢﴾

वे कहेंगे : हाय हमारा विनाश! किसने हमें हमारी क़ब्रों से उठा दिया? यही है जो रहमान ने वादा किया था और रसूलों ने सच कहा था।


Arabic explanations of the Qur’an:

إِن كَانَتۡ إِلَّا صَیۡحَةࣰ وَ ٰ⁠حِدَةࣰ فَإِذَا هُمۡ جَمِیعࣱ لَّدَیۡنَا مُحۡضَرُونَ ﴿٥٣﴾

वह तो बस एक चिंघाड़ होगी, तो अचानक वे सब हमारे पास उपस्थित किए हुए होंगे।


Arabic explanations of the Qur’an:

فَٱلۡیَوۡمَ لَا تُظۡلَمُ نَفۡسࣱ شَیۡـࣰٔا وَلَا تُجۡزَوۡنَ إِلَّا مَا كُنتُمۡ تَعۡمَلُونَ ﴿٥٤﴾

तो आज किसी प्राणी पर कुछ भी अत्याचार नहीं किया जाएगा और तुम्हें केवल उसी का बदला दिया जाएगा, जो तुम किया करते थे।


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إِنَّ أَصۡحَـٰبَ ٱلۡجَنَّةِ ٱلۡیَوۡمَ فِی شُغُلࣲ فَـٰكِهُونَ ﴿٥٥﴾

निःसंदेह जन्नती लोग आज (नेमतों) का आनंद लेने में व्यस्त हैं।


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هُمۡ وَأَزۡوَ ٰ⁠جُهُمۡ فِی ظِلَـٰلٍ عَلَى ٱلۡأَرَاۤىِٕكِ مُتَّكِـُٔونَ ﴿٥٦﴾

वे तथा उनकी पत्नियाँ छायों में मस्नदों पर तकिया लगाए हुए हैं।


Arabic explanations of the Qur’an:

لَهُمۡ فِیهَا فَـٰكِهَةࣱ وَلَهُم مَّا یَدَّعُونَ ﴿٥٧﴾

उनके लिए उसमें बहुत सारा फल है तथा उनके लिए वह कुछ है, जो वे माँग करेंगे।


Arabic explanations of the Qur’an:

سَلَـٰمࣱ قَوۡلࣰا مِّن رَّبࣲّ رَّحِیمࣲ ﴿٥٨﴾

सलाम हो। उस पालनहार की ओर से कहा जाएगा, जो अत्यंत दयावान् है।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَٱمۡتَـٰزُواْ ٱلۡیَوۡمَ أَیُّهَا ٱلۡمُجۡرِمُونَ ﴿٥٩﴾

तथा ऐ अपराधियो! आज तुम अलग[18] हो जाओ।

18. अर्थात ईमान वालों से।


Arabic explanations of the Qur’an:

۞ أَلَمۡ أَعۡهَدۡ إِلَیۡكُمۡ یَـٰبَنِیۤ ءَادَمَ أَن لَّا تَعۡبُدُواْ ٱلشَّیۡطَـٰنَۖ إِنَّهُۥ لَكُمۡ عَدُوࣱّ مُّبِینࣱ ﴿٦٠﴾

ऐ आदम की संतान! क्या मैंने तुम्हें ताकीद[19] नहीं की थी कि शैतान की उपासना न करना? निश्चय वह तुम्हारा खुला शत्रु है।

19. भाष्य के लिए देखिए : सूरतुल-आराफ़, आयत : 172.


Arabic explanations of the Qur’an:

وَأَنِ ٱعۡبُدُونِیۚ هَـٰذَا صِرَ ٰ⁠طࣱ مُّسۡتَقِیمࣱ ﴿٦١﴾

तथा यह कि तुम मेरी ही इबादत करो। यही सीधा मार्ग है।


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وَلَقَدۡ أَضَلَّ مِنكُمۡ جِبِلࣰّا كَثِیرًاۖ أَفَلَمۡ تَكُونُواْ تَعۡقِلُونَ ﴿٦٢﴾

तथा उसने तुममें से बहुत-से लोगों को पथभ्रष्ट कर दिया। तो क्या तुम समझते नहीं थे?


Arabic explanations of the Qur’an:

هَـٰذِهِۦ جَهَنَّمُ ٱلَّتِی كُنتُمۡ تُوعَدُونَ ﴿٦٣﴾

यही वह जहन्नम है, जिसका तुमसे वादा किया जाता था।


Arabic explanations of the Qur’an:

ٱصۡلَوۡهَا ٱلۡیَوۡمَ بِمَا كُنتُمۡ تَكۡفُرُونَ ﴿٦٤﴾

आज उसमें प्रवेश कर जाओ, उस कुफ़्र के बदले जो तुम किया करते थे।


Arabic explanations of the Qur’an:

ٱلۡیَوۡمَ نَخۡتِمُ عَلَىٰۤ أَفۡوَ ٰ⁠هِهِمۡ وَتُكَلِّمُنَاۤ أَیۡدِیهِمۡ وَتَشۡهَدُ أَرۡجُلُهُم بِمَا كَانُواْ یَكۡسِبُونَ ﴿٦٥﴾

आज हम उनके मुँहों पर मुहर लगा देंगे और उनके हाथ हमसे बात करेंगे तथा उनके पैर उन कर्मों की गवाही देंगे, जो वे किया करते थे।[20]

20. यह उस समय होगा जब बहुदेववादी शपथ लेंगे कि वे शिर्क नहीं करते थे। देखिए : सूरतुल-अन्आम, आयत : 23.


Arabic explanations of the Qur’an:

وَلَوۡ نَشَاۤءُ لَطَمَسۡنَا عَلَىٰۤ أَعۡیُنِهِمۡ فَٱسۡتَبَقُواْ ٱلصِّرَ ٰ⁠طَ فَأَنَّىٰ یُبۡصِرُونَ ﴿٦٦﴾

और यदि हम चाहें, तो निश्चय उनकी आँखें मिटा दें। फिर वे रास्ते की ओर दौड़ें, तो कैसे देखेंगे?


Arabic explanations of the Qur’an:

وَلَوۡ نَشَاۤءُ لَمَسَخۡنَـٰهُمۡ عَلَىٰ مَكَانَتِهِمۡ فَمَا ٱسۡتَطَـٰعُواْ مُضِیࣰّا وَلَا یَرۡجِعُونَ ﴿٦٧﴾

और यदि हम चाहें, तो उनके स्थान ही पर उनके रूप को परिवर्तित कर दें, फिर वे न आगे जा सकें और न पीछे लौट सकें।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَمَن نُّعَمِّرۡهُ نُنَكِّسۡهُ فِی ٱلۡخَلۡقِۚ أَفَلَا یَعۡقِلُونَ ﴿٦٨﴾

तथा जिसे हम दीर्घायु प्रदान करते हैं, उसे उसकी संरचना में उल्टा[21] फेर देते हैं। तो क्या ये नहीं समझते?

21. अर्थात वह शिशु की तरह़ निर्बल तथा निर्बोध हो जाता है।


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وَمَا عَلَّمۡنَـٰهُ ٱلشِّعۡرَ وَمَا یَنۢبَغِی لَهُۥۤۚ إِنۡ هُوَ إِلَّا ذِكۡرࣱ وَقُرۡءَانࣱ مُّبِینࣱ ﴿٦٩﴾

और हमने न उन्हें शे'र (काव्य)[22] सिखाया है और न वह उनके योग्य है। वह तो सर्वथा उपदेश तथा स्पष्ट क़ुरआन के सिवा कुछ नहीं।

22. मक्का के मूर्तिपूजक नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के संबंध में कई प्रकार की बातें कहते थे जिनमें यह बात भी थी कि आप कवि हैं। अल्लाह ने इस आयत में इसी का खंडन किया है।


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لِّیُنذِرَ مَن كَانَ حَیࣰّا وَیَحِقَّ ٱلۡقَوۡلُ عَلَى ٱلۡكَـٰفِرِینَ ﴿٧٠﴾

ताकि वह उसे डराए, जो जीवित हो[23] तथा काफ़िरों पर (यातना की) बात सिद्ध हो जाए।

23. जीवित होने का अर्थ अंतरात्मा का जीवित होना और सत्य को समझने के योग्य होना है।


Arabic explanations of the Qur’an:

أَوَلَمۡ یَرَوۡاْ أَنَّا خَلَقۡنَا لَهُم مِّمَّا عَمِلَتۡ أَیۡدِینَاۤ أَنۡعَـٰمࣰا فَهُمۡ لَهَا مَـٰلِكُونَ ﴿٧١﴾

क्या उन्होंने नहीं देखा कि हमने अपने हाथों से बनाई हुई चीज़ों में से उनके लिए चौपाए पैदा किए, तो वे उनके मालिक हैं?


Arabic explanations of the Qur’an:

وَذَلَّلۡنَـٰهَا لَهُمۡ فَمِنۡهَا رَكُوبُهُمۡ وَمِنۡهَا یَأۡكُلُونَ ﴿٧٢﴾

तथा हमने उन्हें उनके वश में कर दिया, तो उनमें से कुछ उनकी सवारी हैं और उनमें से कुछ को वे खाते हैं।


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وَلَهُمۡ فِیهَا مَنَـٰفِعُ وَمَشَارِبُۚ أَفَلَا یَشۡكُرُونَ ﴿٧٣﴾

तथा उनके लिए उन (चौपायों) में कई लाभ और पीने की चीज़ें हैं। तो क्या (फिर भी) वे आभार प्रकट नहीं करते?


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وَٱتَّخَذُواْ مِن دُونِ ٱللَّهِ ءَالِهَةࣰ لَّعَلَّهُمۡ یُنصَرُونَ ﴿٧٤﴾

और उन्होंने अल्लाह के सिवा कई पूज्य बना लिए, ताकि उनकी सहायता की जाए।


Arabic explanations of the Qur’an:

لَا یَسۡتَطِیعُونَ نَصۡرَهُمۡ وَهُمۡ لَهُمۡ جُندࣱ مُّحۡضَرُونَ ﴿٧٥﴾

वे उनकी सहायता करने का सामर्थ्य नहीं रखते, तथा ये उनकी सेना हैं, जो उपस्थित[24] किए हुए हैं।

24. अर्थात वे अपने पूज्यों सहित नरक में झोंक दिए जाएँगे।


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فَلَا یَحۡزُنكَ قَوۡلُهُمۡۘ إِنَّا نَعۡلَمُ مَا یُسِرُّونَ وَمَا یُعۡلِنُونَ ﴿٧٦﴾

अतः उनकी बात आपको शोकग्रस्त न करे। निःसंदेह हम जानते हैं जो वे छिपाते हैं और जो वे प्रकट करते हैं।


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أَوَلَمۡ یَرَ ٱلۡإِنسَـٰنُ أَنَّا خَلَقۡنَـٰهُ مِن نُّطۡفَةࣲ فَإِذَا هُوَ خَصِیمࣱ مُّبِینࣱ ﴿٧٧﴾

क्या मनुष्य ने नहीं देखा कि हमने उसे वीर्य से पैदा किया? फिर अचानक वह खुला झगड़ालू बन बैठा।


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وَضَرَبَ لَنَا مَثَلࣰا وَنَسِیَ خَلۡقَهُۥۖ قَالَ مَن یُحۡیِ ٱلۡعِظَـٰمَ وَهِیَ رَمِیمࣱ ﴿٧٨﴾

और उसने हमारे लिए एक उदाहरण प्रस्तुत किया, और अपनी रचना को भूल गया। उसने कहा : इन अस्थियों को कौन जीवित करेगा, जबकि वे जीर्ण-शीर्ण हो चुकी होंगी?


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قُلۡ یُحۡیِیهَا ٱلَّذِیۤ أَنشَأَهَاۤ أَوَّلَ مَرَّةࣲۖ وَهُوَ بِكُلِّ خَلۡقٍ عَلِیمٌ ﴿٧٩﴾

आप कह दें : उन्हें वही (अल्लाह) जीवित करेगा, जिसने उन्हें प्रथम बार पैदा किया और वह प्रत्येक उत्पत्ति को भली-भाँति जानने वाला है।


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ٱلَّذِی جَعَلَ لَكُم مِّنَ ٱلشَّجَرِ ٱلۡأَخۡضَرِ نَارࣰا فَإِذَاۤ أَنتُم مِّنۡهُ تُوقِدُونَ ﴿٨٠﴾

वह जिसने तुम्हारे लिए हरे वृक्ष से आग पैदा कर दी, फिर तुम उससे आग[25] सुलगाते हो।

25. भावार्थ यह है कि जो अल्लाह जल से हरे वृक्ष पैदा करता है फिर उसे सुखा देता है जिससे तुम आग सुलगाते हो, तो क्या वह इसी प्रकार तुम्हारे मरने-गलने के पश्चात् फिर तुम्हें जीवित नहीं कर सकता?


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أَوَلَیۡسَ ٱلَّذِی خَلَقَ ٱلسَّمَـٰوَ ٰ⁠تِ وَٱلۡأَرۡضَ بِقَـٰدِرٍ عَلَىٰۤ أَن یَخۡلُقَ مِثۡلَهُمۚ بَلَىٰ وَهُوَ ٱلۡخَلَّـٰقُ ٱلۡعَلِیمُ ﴿٨١﴾

तथा क्या वह (अल्लाह) जिसने आकाशों और धरती को पैदा किया, इस बात का सामर्थ्य नहीं रखता कि उन जैसे और पैदा कर दे? क्यों नहीं, और वही सब कुछ पैदा करने वाला, सब कुछ जानने वाला है?


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إِنَّمَاۤ أَمۡرُهُۥۤ إِذَاۤ أَرَادَ شَیۡـًٔا أَن یَقُولَ لَهُۥ كُن فَیَكُونُ ﴿٨٢﴾

उसका आदेश, जब वह किसी चीज़ का इरादा करता है, तो केवल यह होता है कि उससे कहता है "हो जा", तो वह हो जाती है।


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فَسُبۡحَـٰنَ ٱلَّذِی بِیَدِهِۦ مَلَكُوتُ كُلِّ شَیۡءࣲ وَإِلَیۡهِ تُرۡجَعُونَ ﴿٨٣﴾

अतः पवित्र है वह (अल्लाह), जिसके हाथ में प्रत्येक चीज़ का राज्य (पूर्ण अधिकार) है और तुम सब उसी की ओर लौटाए[26] जाओगे।

26. प्रलय के दिन अपने कर्मों का बदला प्राप्त करने के लिए।


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