Surah सूरा अज़्-ज़ुमर - Az-Zumar

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Surah सूरा अज़्-ज़ुमर - Az-Zumar - Aya count 75

تَنزِیلُ ٱلۡكِتَـٰبِ مِنَ ٱللَّهِ ٱلۡعَزِیزِ ٱلۡحَكِیمِ ﴿١﴾

इस पुस्तक का उतारना अल्लाह की ओर से है, जो अत्यंत प्रभुत्वशाली, पूर्ण हिकमत वाला है।


Arabic explanations of the Qur’an:

إِنَّاۤ أَنزَلۡنَاۤ إِلَیۡكَ ٱلۡكِتَـٰبَ بِٱلۡحَقِّ فَٱعۡبُدِ ٱللَّهَ مُخۡلِصࣰا لَّهُ ٱلدِّینَ ﴿٢﴾

निःसंदेह हमने आपकी ओर यह पुस्तक सत्य के साथ उतारी है। अतः आप अल्लाह की इबादत इस तरह करें कि धर्म को उसी के लिए खालिस करने वाले हों।


Arabic explanations of the Qur’an:

أَلَا لِلَّهِ ٱلدِّینُ ٱلۡخَالِصُۚ وَٱلَّذِینَ ٱتَّخَذُواْ مِن دُونِهِۦۤ أَوۡلِیَاۤءَ مَا نَعۡبُدُهُمۡ إِلَّا لِیُقَرِّبُونَاۤ إِلَى ٱللَّهِ زُلۡفَىٰۤ إِنَّ ٱللَّهَ یَحۡكُمُ بَیۡنَهُمۡ فِی مَا هُمۡ فِیهِ یَخۡتَلِفُونَۗ إِنَّ ٱللَّهَ لَا یَهۡدِی مَنۡ هُوَ كَـٰذِبࣱ كَفَّارࣱ ﴿٣﴾

सुन लो! ख़ालिस (विशुद्ध) धर्म केवल अल्लाह ही के लिए है। तथा जिन लोगों ने अल्लाह के सिवा अन्य संरक्षक बना रखे हैं (वे कहते हैं कि) हम उनकी पूजा केवल इसलिए करते हैं कि वे हमें अल्लाह से क़रीब[1] कर दें। निश्चय अल्लाह उनके बीच उसके बारे में निर्णय करेगा, जिसमें वे मतभेद कर रहे हैं। निःसंदेह अल्लाह उसे मार्गदर्शन नहीं करता, जो झूठा, बड़ा नाशुक्रा हो।

1. मक्का के काफ़िर यह मानते थे कि अल्लाह ही वास्तविक पूज्य है। परंतु वे यह समझते थे कि उसका दरबार बहुत ऊँचा है, इसलिए वे इन पूज्यों को माध्यम बनाते थे। ताकि इनके द्वारा उनकी प्रार्थनाएँ अल्लाह तक पहुँच जाएँ। यही बात साधारणतः मुश्रिक कहते आए हैं। इन तीन आयतों में उनके इसी कुविचार का खंडन किया गया है। फिर उनमें कुछ ऐसे थे जो समझते थे कि अल्लाह के संतान है। कुछ, फ़रिश्तों को अल्लाह की पुत्रियाँ कहते, और कुछ, नबियों (जैसे ईसा) को अल्लाह का पुत्र कहते थे। यहाँ इसी का खंडन किया गया है।


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لَّوۡ أَرَادَ ٱللَّهُ أَن یَتَّخِذَ وَلَدࣰا لَّٱصۡطَفَىٰ مِمَّا یَخۡلُقُ مَا یَشَاۤءُۚ سُبۡحَـٰنَهُۥۖ هُوَ ٱللَّهُ ٱلۡوَ ٰ⁠حِدُ ٱلۡقَهَّارُ ﴿٤﴾

यदि अल्लाह चाहता कि (किसी को) संतान बनाए, तो वह उनमें से जिन्हें वह पैदा करता है, जिसे चाहता अवश्य चुन लेता, वह पवित्र है! वह तो अल्लाह है, जो अकेला है, बहुत प्रभुत्व वाला है।


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خَلَقَ ٱلسَّمَـٰوَ ٰ⁠تِ وَٱلۡأَرۡضَ بِٱلۡحَقِّۖ یُكَوِّرُ ٱلَّیۡلَ عَلَى ٱلنَّهَارِ وَیُكَوِّرُ ٱلنَّهَارَ عَلَى ٱلَّیۡلِۖ وَسَخَّرَ ٱلشَّمۡسَ وَٱلۡقَمَرَۖ كُلࣱّ یَجۡرِی لِأَجَلࣲ مُّسَمًّىۗ أَلَا هُوَ ٱلۡعَزِیزُ ٱلۡغَفَّـٰرُ ﴿٥﴾

उसने आकाशों तथा धरती को सत्य के साथ पैदा किया। वह रात को दिन पर लपेटता है तथा दिन को रात पर लपेटता है। तथा उसने सूर्य और चन्द्रमा को वशीभूत कर रखा है। प्रत्येक, एक नियत समय के लिए चल रहा है। सावधान! वही सब पर प्रभुत्वशाली, अत्यंत क्षमाशील है।


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خَلَقَكُم مِّن نَّفۡسࣲ وَ ٰ⁠حِدَةࣲ ثُمَّ جَعَلَ مِنۡهَا زَوۡجَهَا وَأَنزَلَ لَكُم مِّنَ ٱلۡأَنۡعَـٰمِ ثَمَـٰنِیَةَ أَزۡوَ ٰ⁠جࣲۚ یَخۡلُقُكُمۡ فِی بُطُونِ أُمَّهَـٰتِكُمۡ خَلۡقࣰا مِّنۢ بَعۡدِ خَلۡقࣲ فِی ظُلُمَـٰتࣲ ثَلَـٰثࣲۚ ذَ ٰ⁠لِكُمُ ٱللَّهُ رَبُّكُمۡ لَهُ ٱلۡمُلۡكُۖ لَاۤ إِلَـٰهَ إِلَّا هُوَۖ فَأَنَّىٰ تُصۡرَفُونَ ﴿٦﴾

उसने तुम्हें एक जान से पैदा किया, फिर उसी से उसका जोड़ा बनाया, तथा तुम्हारे लिए पशुओं में से आठ प्रकार (नर-मादा) उतारे। वह तुम्हें तुम्हारी माताओं के पेटों में, तीन अंधेरों में, एक रचना के बाद दूसरी रचना में, पैदा करता है। यही अल्लाह तुम्हारा पालनहार है। उसी का राज्य है। उसके सिवा कोई (सच्चा) पूज्य नहीं। फिर तुम किस तरह फेरे जाते हो?


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إِن تَكۡفُرُواْ فَإِنَّ ٱللَّهَ غَنِیٌّ عَنكُمۡۖ وَلَا یَرۡضَىٰ لِعِبَادِهِ ٱلۡكُفۡرَۖ وَإِن تَشۡكُرُواْ یَرۡضَهُ لَكُمۡۗ وَلَا تَزِرُ وَازِرَةࣱ وِزۡرَ أُخۡرَىٰۚ ثُمَّ إِلَىٰ رَبِّكُم مَّرۡجِعُكُمۡ فَیُنَبِّئُكُم بِمَا كُنتُمۡ تَعۡمَلُونَۚ إِنَّهُۥ عَلِیمُۢ بِذَاتِ ٱلصُّدُورِ ﴿٧﴾

यदि तुम नाशुक्री करो, तो अल्लाह तुमसे बहुत बेनियाज़ है और वह अपने बंदों के लिए नाशुक्री पसंद नहीं करता, और यदि तुम शुक्रिया अदा करो, तो वह उसे तुम्हारे लिए पसंद करेगा। और कोई बोझ उठाने वाला किसी दूसरे का बोझ नहीं उठाएगा। फिर तुम्हारा लौटना तुम्हारे पालनहार ही की ओर है। तो वह तुम्हें बतलाएगा जो कुछ तुम किया करते थे। निश्चय वह दिलों के भेदों को भली-भाँति जानने वाला है।


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۞ وَإِذَا مَسَّ ٱلۡإِنسَـٰنَ ضُرࣱّ دَعَا رَبَّهُۥ مُنِیبًا إِلَیۡهِ ثُمَّ إِذَا خَوَّلَهُۥ نِعۡمَةࣰ مِّنۡهُ نَسِیَ مَا كَانَ یَدۡعُوۤاْ إِلَیۡهِ مِن قَبۡلُ وَجَعَلَ لِلَّهِ أَندَادࣰا لِّیُضِلَّ عَن سَبِیلِهِۦۚ قُلۡ تَمَتَّعۡ بِكُفۡرِكَ قَلِیلًا إِنَّكَ مِنۡ أَصۡحَـٰبِ ٱلنَّارِ ﴿٨﴾

तथा जब मनुष्य को कोई कष्ट पहुँचता है, तो वह अपने पालनहार को पुकारता है, इस हाल में कि उसी की ओर एकाग्र, ध्यानमग्न होता है। फिर जब वह उसे अपनी ओर से कोई सुख प्रदान करता है, तो वह उसे भूल जाता है, जिसे वह इससे पहले पुकार रहा था, तथा वह अल्लाह का साझी बना लेता है, ताकि उसके मार्ग से गुमराह कर दे। आप कह दें कि अपने कुफ़्र का थोड़ा सा लाभ उठा लो। निश्चय तुम जहन्नमियों में से हो।


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أَمَّنۡ هُوَ قَـٰنِتٌ ءَانَاۤءَ ٱلَّیۡلِ سَاجِدࣰا وَقَاۤىِٕمࣰا یَحۡذَرُ ٱلۡـَٔاخِرَةَ وَیَرۡجُواْ رَحۡمَةَ رَبِّهِۦۗ قُلۡ هَلۡ یَسۡتَوِی ٱلَّذِینَ یَعۡلَمُونَ وَٱلَّذِینَ لَا یَعۡلَمُونَۗ إِنَّمَا یَتَذَكَّرُ أُوْلُواْ ٱلۡأَلۡبَـٰبِ ﴿٩﴾

(क्या यह बेहतर) या वह व्यक्ति जो रात की घड़ियों में सजदा करते हुए तथा क़ियाम करते हुए इबादत करने वाला है। आख़िरत का भय रखता है तथा अपने पालनहार की दया की आशा रखता है? आप कह दें कि क्या समान हैं वे लोग जो ज्ञान रखते हों तथा वे जो ज्ञान नहीं रखते? उपदेश तो वही ग्रहण करते हैं, जो बुद्धि वाले हैं।


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قُلۡ یَـٰعِبَادِ ٱلَّذِینَ ءَامَنُواْ ٱتَّقُواْ رَبَّكُمۡۚ لِلَّذِینَ أَحۡسَنُواْ فِی هَـٰذِهِ ٱلدُّنۡیَا حَسَنَةࣱۗ وَأَرۡضُ ٱللَّهِ وَ ٰ⁠سِعَةٌۗ إِنَّمَا یُوَفَّى ٱلصَّـٰبِرُونَ أَجۡرَهُم بِغَیۡرِ حِسَابࣲ ﴿١٠﴾

(ऐ रसूल!) आप कह दें : ऐ मेरे बंदो, जो ईमान लाए हो! अपने पालनहार से डरो। उन लोगों के लिए जिन्होंने इस दुनिया में अच्छे कार्य किए, बड़ी भलाई है। तथा अल्लाह की धरती विस्तृत है। केवल सब्र करने वालों ही को उनका बदला बिना किसी हिसाब (शुमार) के दिया जाएगा।


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قُلۡ إِنِّیۤ أُمِرۡتُ أَنۡ أَعۡبُدَ ٱللَّهَ مُخۡلِصࣰا لَّهُ ٱلدِّینَ ﴿١١﴾

आप कह दें : निःसंदेह मुझे आदेश दिया गया है कि मैं अल्लाह की इबादत करूँ, इस हाल में कि धर्म को उसी के लिए ख़ालिस (विशुद्ध) करने वाला हूँ।


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وَأُمِرۡتُ لِأَنۡ أَكُونَ أَوَّلَ ٱلۡمُسۡلِمِینَ ﴿١٢﴾

तथा मुझे आदेश दिया गया है कि आज्ञाकारियों में से पहला मैं बनूँ।


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قُلۡ إِنِّیۤ أَخَافُ إِنۡ عَصَیۡتُ رَبِّی عَذَابَ یَوۡمٍ عَظِیمࣲ ﴿١٣﴾

आप कह दें : निःसंदेह मैं एक बहुत बड़े दिन की यातना से डरता हूँ, यदि मैं अपने पालनहार की अवज्ञा करूँ।


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قُلِ ٱللَّهَ أَعۡبُدُ مُخۡلِصࣰا لَّهُۥ دِینِی ﴿١٤﴾

आप कह दें : मैं अल्लाह ही की इबादत करता हूँ, इस हाल में कि उसी के लिए अपने धर्म को विशुद्ध (ख़ालिस) करने वाला हूँ।


Arabic explanations of the Qur’an:

فَٱعۡبُدُواْ مَا شِئۡتُم مِّن دُونِهِۦۗ قُلۡ إِنَّ ٱلۡخَـٰسِرِینَ ٱلَّذِینَ خَسِرُوۤاْ أَنفُسَهُمۡ وَأَهۡلِیهِمۡ یَوۡمَ ٱلۡقِیَـٰمَةِۗ أَلَا ذَ ٰ⁠لِكَ هُوَ ٱلۡخُسۡرَانُ ٱلۡمُبِینُ ﴿١٥﴾

अतः तुम उसके सिवा जिसकी चाहो इबादत करो। आप कह दें : निःसंदेह वास्तविक घाटे में पड़ने वाले तो वे हैं, जिन्होंने क़ियामत के दिन खुद को तथा अपने घर वालों को घाटे में डाला। सुन लो! यही खुला घाटा है।


Arabic explanations of the Qur’an:

لَهُم مِّن فَوۡقِهِمۡ ظُلَلࣱ مِّنَ ٱلنَّارِ وَمِن تَحۡتِهِمۡ ظُلَلࣱۚ ذَ ٰ⁠لِكَ یُخَوِّفُ ٱللَّهُ بِهِۦ عِبَادَهُۥۚ یَـٰعِبَادِ فَٱتَّقُونِ ﴿١٦﴾

उनके लिए उनके ऊपर से आग के छत्र होंगे तथा उनके नीचे से भी छत्र होंगे। यही वह चीज़ है, जिससे अल्लाह अपने बंदों को डराता है। ऐ मेरे बंदो! अतः तुम मुझसे डरो।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَٱلَّذِینَ ٱجۡتَنَبُواْ ٱلطَّـٰغُوتَ أَن یَعۡبُدُوهَا وَأَنَابُوۤاْ إِلَى ٱللَّهِ لَهُمُ ٱلۡبُشۡرَىٰۚ فَبَشِّرۡ عِبَادِ ﴿١٧﴾

तथा जो लोग 'ताग़ूत'[2] की पूजा करने से बचे रहे और अल्लाह की ओर ध्यानमग्न हो गए, उन्हीं के लिए शुभ सूचना है। अतः आप मेरे बंदों को शुभ सूचना सुना दें।

2. अल्लाह के अतिरिक्त मिथ्या पूज्यों से।


Arabic explanations of the Qur’an:

ٱلَّذِینَ یَسۡتَمِعُونَ ٱلۡقَوۡلَ فَیَتَّبِعُونَ أَحۡسَنَهُۥۤۚ أُوْلَـٰۤىِٕكَ ٱلَّذِینَ هَدَىٰهُمُ ٱللَّهُۖ وَأُوْلَـٰۤىِٕكَ هُمۡ أُوْلُواْ ٱلۡأَلۡبَـٰبِ ﴿١٨﴾

वे जो ध्यान से बात सुनते हैं, फिर उसमें से सबसे अच्छी बात का अनुसरण करते हैं। यही लोग हैं, जिन्हें अल्लाह ने मार्गदर्श प्रदान किया है तथा यही बुद्धि वाले हैं।


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أَفَمَنۡ حَقَّ عَلَیۡهِ كَلِمَةُ ٱلۡعَذَابِ أَفَأَنتَ تُنقِذُ مَن فِی ٱلنَّارِ ﴿١٩﴾

तो क्या वह व्यक्ति जिसपर यातना की बात सिद्ध हो चुकी, फिर क्या आप उसे बचा लेंगे, जो आग में है?


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لَـٰكِنِ ٱلَّذِینَ ٱتَّقَوۡاْ رَبَّهُمۡ لَهُمۡ غُرَفࣱ مِّن فَوۡقِهَا غُرَفࣱ مَّبۡنِیَّةࣱ تَجۡرِی مِن تَحۡتِهَا ٱلۡأَنۡهَـٰرُۖ وَعۡدَ ٱللَّهِ لَا یُخۡلِفُ ٱللَّهُ ٱلۡمِیعَادَ ﴿٢٠﴾

किंतु जो लोग अपने पालनहार से डरते रहे, उनके लिए उच्च भवन हैं। जिनके ऊपर निर्मित भवन हैं। जिनके नीचे से नहरें प्रवाहित हैं। यह अल्लाह का वादा है और अल्लाह अपने वादे का उल्लंघन नहीं करता।


Arabic explanations of the Qur’an:

أَلَمۡ تَرَ أَنَّ ٱللَّهَ أَنزَلَ مِنَ ٱلسَّمَاۤءِ مَاۤءࣰ فَسَلَكَهُۥ یَنَـٰبِیعَ فِی ٱلۡأَرۡضِ ثُمَّ یُخۡرِجُ بِهِۦ زَرۡعࣰا مُّخۡتَلِفًا أَلۡوَ ٰ⁠نُهُۥ ثُمَّ یَهِیجُ فَتَرَىٰهُ مُصۡفَرࣰّا ثُمَّ یَجۡعَلُهُۥ حُطَـٰمًاۚ إِنَّ فِی ذَ ٰ⁠لِكَ لَذِكۡرَىٰ لِأُوْلِی ٱلۡأَلۡبَـٰبِ ﴿٢١﴾

क्या तुमने नहीं देखा[3] कि अल्लाह ने आकाश से कुछ पानी उतारा। फिर उसे स्रोतों के रूप में धरती में चलाया। फिर वह उसके साथ विभिन्न रंगों की खेती निकालता है। फिर वह सूख जाती है, तो तुम उसे पीली देखते हो। फिर वह उसे चूरा-चूरा कर देता है। निःसंदेह इसमें बुद्धि वालों के लिए निश्चय बड़ी सीख है।

3. इस आयत में अल्लाह के एक नियम की ओर संकेत है जो सब में समान रूप से प्रचलित है। अर्थात वर्षा से खेती का उगना और अनेक स्थितियों से गुज़रकर नाश हो जाना। इसे मतिमानों के लिए शिक्षा कहा गया है। क्योंकि मनुष्य की भी यही दशा है। वह शिशु जन्म लेता है फिर युवक और बूढ़ा हो जाता है। और अंततः संसार से चला जाता है।


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أَفَمَن شَرَحَ ٱللَّهُ صَدۡرَهُۥ لِلۡإِسۡلَـٰمِ فَهُوَ عَلَىٰ نُورࣲ مِّن رَّبِّهِۦۚ فَوَیۡلࣱ لِّلۡقَـٰسِیَةِ قُلُوبُهُم مِّن ذِكۡرِ ٱللَّهِۚ أُوْلَـٰۤىِٕكَ فِی ضَلَـٰلࣲ مُّبِینٍ ﴿٢٢﴾

तो क्या वह व्यक्ति जिसका सीना अल्लाह ने इस्लाम के लिए खोल दिया है, तो वह अपने पालनहार की ओर से एक प्रकाश पर है (किसी कठोर हृदय काफ़िर के समान हो सकता है?) अतः उनके लिए विनाश है, जिनके दिल अल्लाह के स्मरण के प्रति कठोर हैं। ये लोग खुली गुमराही में हैं।


Arabic explanations of the Qur’an:

ٱللَّهُ نَزَّلَ أَحۡسَنَ ٱلۡحَدِیثِ كِتَـٰبࣰا مُّتَشَـٰبِهࣰا مَّثَانِیَ تَقۡشَعِرُّ مِنۡهُ جُلُودُ ٱلَّذِینَ یَخۡشَوۡنَ رَبَّهُمۡ ثُمَّ تَلِینُ جُلُودُهُمۡ وَقُلُوبُهُمۡ إِلَىٰ ذِكۡرِ ٱللَّهِۚ ذَ ٰ⁠لِكَ هُدَى ٱللَّهِ یَهۡدِی بِهِۦ مَن یَشَاۤءُۚ وَمَن یُضۡلِلِ ٱللَّهُ فَمَا لَهُۥ مِنۡ هَادٍ ﴿٢٣﴾

अल्लाह ने सबसे अच्छी बात (क़ुरआन) अवतरित की, ऐसी पुस्तक जो परस्पर मिलती-जुलती, (जिसकी आयतें) बार-बार दोहराई जाने वाली हैं। इससे उन लोगों की खालों के रोंगटे खड़े हो जाते हैं, जो अपने पालनहार से डरते हैं। फिर उनकी खालें तथा उनके दिल अल्लाह के स्मरण की ओर कोमल हो जाते हैं। यह अल्लाह का मार्गदर्शन है, जिसके द्वारा वह जिसे चाहता है, संमार्ग पर लगा देता है, और जिसे अल्लाह गुमराह कर दे, तो उसे कोई राह पर लाने वाला नहीं।


Arabic explanations of the Qur’an:

أَفَمَن یَتَّقِی بِوَجۡهِهِۦ سُوۤءَ ٱلۡعَذَابِ یَوۡمَ ٱلۡقِیَـٰمَةِۚ وَقِیلَ لِلظَّـٰلِمِینَ ذُوقُواْ مَا كُنتُمۡ تَكۡسِبُونَ ﴿٢٤﴾

तो क्या जो व्यक्ति क़ियामत के दिन अपने चेहरे[4] के साथ, बुरी यातना से, अपनी रक्षा करेगा? तथा अत्याचारियों से कहा जाएगा : उसे चखो, जो तुम किया करते थे।

4. इसलिए कि उसके हाथ पीछे बंधे होंगे। वह अच्छा है या जो स्वर्ग के सुख में होगा वह अच्छा है?


Arabic explanations of the Qur’an:

كَذَّبَ ٱلَّذِینَ مِن قَبۡلِهِمۡ فَأَتَىٰهُمُ ٱلۡعَذَابُ مِنۡ حَیۡثُ لَا یَشۡعُرُونَ ﴿٢٥﴾

इनसे पहले के लोगों ने भी झुठलाया, तो उनपर वहाँ से यातना आई कि वे सोचते भी न थे।


Arabic explanations of the Qur’an:

فَأَذَاقَهُمُ ٱللَّهُ ٱلۡخِزۡیَ فِی ٱلۡحَیَوٰةِ ٱلدُّنۡیَاۖ وَلَعَذَابُ ٱلۡـَٔاخِرَةِ أَكۡبَرُۚ لَوۡ كَانُواْ یَعۡلَمُونَ ﴿٢٦﴾

तो अल्लाह ने उन्हें सांसारिक जीवन में अपमान चखाया और निश्चय आख़िरत (परलोक) की यातना अत्यधिक बड़ी है। काश! वे जानते होते।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَلَقَدۡ ضَرَبۡنَا لِلنَّاسِ فِی هَـٰذَا ٱلۡقُرۡءَانِ مِن كُلِّ مَثَلࣲ لَّعَلَّهُمۡ یَتَذَكَّرُونَ ﴿٢٧﴾

और निःसंदेह हमने इस क़ुरआन में लोगों के लिए हर प्रकार के उदाहरण दिए हैं, ताकि वे उपदेश ग्रहण करें।


Arabic explanations of the Qur’an:

قُرۡءَانًا عَرَبِیًّا غَیۡرَ ذِی عِوَجࣲ لَّعَلَّهُمۡ یَتَّقُونَ ﴿٢٨﴾

अरबी भाषा में क़ुरआन, जिसमें कोई टेढ़ापन नहीं है, ताकि वे अल्लाह से डरें।


Arabic explanations of the Qur’an:

ضَرَبَ ٱللَّهُ مَثَلࣰا رَّجُلࣰا فِیهِ شُرَكَاۤءُ مُتَشَـٰكِسُونَ وَرَجُلࣰا سَلَمࣰا لِّرَجُلٍ هَلۡ یَسۡتَوِیَانِ مَثَلًاۚ ٱلۡحَمۡدُ لِلَّهِۚ بَلۡ أَكۡثَرُهُمۡ لَا یَعۡلَمُونَ ﴿٢٩﴾

अल्लाह ने एक व्यक्ति का उदाहरण दिया है, जिसमें कई परस्पर विरोधी साझी हैं तथा एक और व्यक्ति का, जो पूरा एक ही व्यक्ति का (दास) है। क्या दोनों की स्थिति समान हैं?[5] सब प्रशंसा अल्लाह के लिए है। बल्कि उनमें से अधिकतर लोग नहीं जानते।

5. इस आयत में मिश्रणवादी और एकेश्वरवादी की दशा का वर्णन किया गया है कि मिश्रणवादी अनेक पूज्यों को प्रसन्न करने में व्याकुल रहता है। तथा एकेश्वरवादी शांत होकर केवल एक अल्लाह की इबादत करता है और एक ही को प्रसन्न करता है।


Arabic explanations of the Qur’an:

إِنَّكَ مَیِّتࣱ وَإِنَّهُم مَّیِّتُونَ ﴿٣٠﴾

(ऐ नबी!) निःसंदेह आप मरने वाले हैं तथा निःसंदेह वे भी मरने वाले हैंl[6]

6. इस आयत में नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की मौत को सिद्ध किया गया है। जिस प्रकार सूरत आले-इमरान, आयत : 144 में आपकी मौत का प्रमाण बताया गया है।


Arabic explanations of the Qur’an:

ثُمَّ إِنَّكُمۡ یَوۡمَ ٱلۡقِیَـٰمَةِ عِندَ رَبِّكُمۡ تَخۡتَصِمُونَ ﴿٣١﴾

फिर निःसंदेह तुम क़ियामत के दिन अपने पालनहार के पास झगड़ोगे।


Arabic explanations of the Qur’an:

۞ فَمَنۡ أَظۡلَمُ مِمَّن كَذَبَ عَلَى ٱللَّهِ وَكَذَّبَ بِٱلصِّدۡقِ إِذۡ جَاۤءَهُۥۤۚ أَلَیۡسَ فِی جَهَنَّمَ مَثۡوࣰى لِّلۡكَـٰفِرِینَ ﴿٣٢﴾

तथा उससे अधिक अत्याचारी कौन होगा, जो अल्लाह पर झूठ गढ़े या जब सच उसके पास आ जाए, तो उसे झुठलाए? तो क्या जहन्नम में काफ़िरों का आवास नहीं होगा?


Arabic explanations of the Qur’an:

وَٱلَّذِی جَاۤءَ بِٱلصِّدۡقِ وَصَدَّقَ بِهِۦۤ أُوْلَـٰۤىِٕكَ هُمُ ٱلۡمُتَّقُونَ ﴿٣٣﴾

तथा जो सत्य लेकर आया[7] और जिसने उसे सच माना, तो वही (यातना से) सुरक्षित रहने वाले लोग हैं।

7. इससे अभिप्राय अंतिम नबी मुह़म्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) हैं।


Arabic explanations of the Qur’an:

لَهُم مَّا یَشَاۤءُونَ عِندَ رَبِّهِمۡۚ ذَ ٰ⁠لِكَ جَزَاۤءُ ٱلۡمُحۡسِنِینَ ﴿٣٤﴾

उनके लिए उनके पालनहार के यहाँ वह सब कुछ होगा, जो वे चाहेंगे। और यही सदाचारियों का प्रतिफल है।


Arabic explanations of the Qur’an:

لِیُكَفِّرَ ٱللَّهُ عَنۡهُمۡ أَسۡوَأَ ٱلَّذِی عَمِلُواْ وَیَجۡزِیَهُمۡ أَجۡرَهُم بِأَحۡسَنِ ٱلَّذِی كَانُواْ یَعۡمَلُونَ ﴿٣٥﴾

ताकि जो बुरे कर्म उन्होंने किए हैं, उन्हें अल्लाह क्षमा कर दे तथा उनके अच्छे कर्मों के बदले, जो वे कर रहे थे, उन्हें उनका प्रतिफल प्रदान करे।


Arabic explanations of the Qur’an:

أَلَیۡسَ ٱللَّهُ بِكَافٍ عَبۡدَهُۥۖ وَیُخَوِّفُونَكَ بِٱلَّذِینَ مِن دُونِهِۦۚ وَمَن یُضۡلِلِ ٱللَّهُ فَمَا لَهُۥ مِنۡ هَادࣲ ﴿٣٦﴾

क्या अल्लाह अपने बंदे के लिए काफ़ी नहीं है? तथा वे आपको उन (झूठे पूज्यों) से डराते हैं, जो उसके सिवा हैं। तथा जिसे अल्लाह राह से हटा दे, उसे कोई राह पर लाने वाला नहीं है।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَمَن یَهۡدِ ٱللَّهُ فَمَا لَهُۥ مِن مُّضِلٍّۗ أَلَیۡسَ ٱللَّهُ بِعَزِیزࣲ ذِی ٱنتِقَامࣲ ﴿٣٧﴾

और जिसे अल्लाह सीधी राह पर लगा दे, उसे कोई राह से भटका नहीं सकता। क्या अल्लाह प्रभुत्वशाली, बदला लेने वाला नहीं है?


Arabic explanations of the Qur’an:

وَلَىِٕن سَأَلۡتَهُم مَّنۡ خَلَقَ ٱلسَّمَـٰوَ ٰ⁠تِ وَٱلۡأَرۡضَ لَیَقُولُنَّ ٱللَّهُۚ قُلۡ أَفَرَءَیۡتُم مَّا تَدۡعُونَ مِن دُونِ ٱللَّهِ إِنۡ أَرَادَنِیَ ٱللَّهُ بِضُرٍّ هَلۡ هُنَّ كَـٰشِفَـٰتُ ضُرِّهِۦۤ أَوۡ أَرَادَنِی بِرَحۡمَةٍ هَلۡ هُنَّ مُمۡسِكَـٰتُ رَحۡمَتِهِۦۚ قُلۡ حَسۡبِیَ ٱللَّهُۖ عَلَیۡهِ یَتَوَكَّلُ ٱلۡمُتَوَكِّلُونَ ﴿٣٨﴾

और यदि आप उनसे पूछें कि आकाशों तथा धरती को किसने पैदा किया है? तो वे अवश्य कहेंगे कि अल्लाह ने। आप कह दीजिए कि तुम बताओ कि जिन्हें तुम अल्लाह के सिवा पुकारते हो, यदि अल्लाह मुझे कोई हानि पहुँचाना चाहे, तो क्या ये उसकी हानि दूर कर सकते हैं? या मेरे साथ दया करना चाहे, तो क्या ये उसकी दया को रोक सकते हैं? आप कह दें कि मेरे लिए अल्लाह ही काफ़ी है। उसीपर भरोसा करने वाले भरोसा करते हैं।


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قُلۡ یَـٰقَوۡمِ ٱعۡمَلُواْ عَلَىٰ مَكَانَتِكُمۡ إِنِّی عَـٰمِلࣱۖ فَسَوۡفَ تَعۡلَمُونَ ﴿٣٩﴾

आप कह दें कि ऐ मेरी जाति के लोगो! तुम काम करो अपने स्थान पर, मैं भी काम कर रहा हूँ। फिर शीघ्र ही तुम्हें पता चल जाएगा।


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مَن یَأۡتِیهِ عَذَابࣱ یُخۡزِیهِ وَیَحِلُّ عَلَیۡهِ عَذَابࣱ مُّقِیمٌ ﴿٤٠﴾

कि कौन है वह व्यक्ति, जिसपर अपमानकारी यातना आएगी और उसपर स्थायी अज़ाब उतरेगा?


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إِنَّاۤ أَنزَلۡنَا عَلَیۡكَ ٱلۡكِتَـٰبَ لِلنَّاسِ بِٱلۡحَقِّۖ فَمَنِ ٱهۡتَدَىٰ فَلِنَفۡسِهِۦۖ وَمَن ضَلَّ فَإِنَّمَا یَضِلُّ عَلَیۡهَاۖ وَمَاۤ أَنتَ عَلَیۡهِم بِوَكِیلٍ ﴿٤١﴾

वास्तव में, हमने ही आपपर यह पुस्तक लोगों के लिए सत्य के साथ उतारी है। अब जिसने सीधा मार्ग ग्रहण किया, तो अपने लिए, तथा जो भटका, तो वह भटककर अपना नुकसान करता है। तथा आप उनके ज़िम्मेवार नहीं हैं।


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ٱللَّهُ یَتَوَفَّى ٱلۡأَنفُسَ حِینَ مَوۡتِهَا وَٱلَّتِی لَمۡ تَمُتۡ فِی مَنَامِهَاۖ فَیُمۡسِكُ ٱلَّتِی قَضَىٰ عَلَیۡهَا ٱلۡمَوۡتَ وَیُرۡسِلُ ٱلۡأُخۡرَىٰۤ إِلَىٰۤ أَجَلࣲ مُّسَمًّىۚ إِنَّ فِی ذَ ٰ⁠لِكَ لَـَٔایَـٰتࣲ لِّقَوۡمࣲ یَتَفَكَّرُونَ ﴿٤٢﴾

अल्लाह ही प्राणों को उनकी मौत के समय क़ब्ज़ करता है, तथा जिसकी मौत का समय नहीं आया, उसकी नींद की अवस्था में। फिर (उसे) रोक लेता है, जिसके बारे में मौत का निर्णय कर दिया हो तथा अन्य को एक निर्धारित समय तक के लिए भेज देता है। निःसंदेह इसमें उन लोगों के लिए निश्चय कई निशानियाँ हैं, जो मनन-चिंतन[8] करते हैं।

8. इस आयत में बताया जा रहा है कि मरण तथा जीवन अल्लाह के नियंत्रण में हैं। निद्रा में प्राणों को खींचने का अर्थ है, उनकी संवेदन शक्ति को समाप्त कर देना। अतः कोई इस निद्रा की दशा पर विचार करे, तो यह समझ सकता है कि अल्लाह मुर्दों को भी जीवित कर सकता है।


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أَمِ ٱتَّخَذُواْ مِن دُونِ ٱللَّهِ شُفَعَاۤءَۚ قُلۡ أَوَلَوۡ كَانُواْ لَا یَمۡلِكُونَ شَیۡـࣰٔا وَلَا یَعۡقِلُونَ ﴿٤٣﴾

क्या उन्होंने अल्लाह के अतिरिक्त बहुत-से सिफ़ारिशी बना लिए हैं? आप कह दें: क्या यदि वे किसी चीज़ का अधिकार न रखते हों और न कुछ समझते हों तो भी (वे सिफ़ारिश करेंगे)?


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قُل لِّلَّهِ ٱلشَّفَـٰعَةُ جَمِیعࣰاۖ لَّهُۥ مُلۡكُ ٱلسَّمَـٰوَ ٰ⁠تِ وَٱلۡأَرۡضِۖ ثُمَّ إِلَیۡهِ تُرۡجَعُونَ ﴿٤٤﴾

आप कह दें कि सिफ़ारिश तो सब अल्लाह के अधिकार में है। उसी के लिए है आकाशों तथा धरती का राज्य। फिर उसी की ओर तुम लौटाए जाओगे।


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وَإِذَا ذُكِرَ ٱللَّهُ وَحۡدَهُ ٱشۡمَأَزَّتۡ قُلُوبُ ٱلَّذِینَ لَا یُؤۡمِنُونَ بِٱلۡـَٔاخِرَةِۖ وَإِذَا ذُكِرَ ٱلَّذِینَ مِن دُونِهِۦۤ إِذَا هُمۡ یَسۡتَبۡشِرُونَ ﴿٤٥﴾

तथा जब अकेले अल्लाह का ज़िक्र किया जाता है, तो उन लोगों के दिल संकीर्ण होने लगते हैं, जो आख़िरत[9] पर ईमान नहीं रखते तथा जब उसके सिवा अन्य पूज्यों का ज़िक्र आता है, तो वे सहसा प्रसन्न हो जाते हैं।

9. इसमें मुश्रिकों की दशा का वर्णन किया जा रहा है कि वे अल्लाह की महिमा और प्रेम को स्वीकार तो करते हैं, फिर भी जब अकेले अल्लाह की महिमा तथा प्रशंसा का वर्णन किया जाता है, तो प्रसन्न नहीं होते जब तक दूसरे पीरों-फ़क़ीरों तथा देवताओं के चमत्कार की चर्चा न की जाए।


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قُلِ ٱللَّهُمَّ فَاطِرَ ٱلسَّمَـٰوَ ٰ⁠تِ وَٱلۡأَرۡضِ عَـٰلِمَ ٱلۡغَیۡبِ وَٱلشَّهَـٰدَةِ أَنتَ تَحۡكُمُ بَیۡنَ عِبَادِكَ فِی مَا كَانُواْ فِیهِ یَخۡتَلِفُونَ ﴿٤٦﴾

(ऐ नबी!) आप कह दें: ऐ अल्लाह, आकाशों तथा धरती के पैदा करने वाले, परोक्ष तथा प्रत्यक्ष के जानने वाले! तू ही अपने बंदों के बीच उस बात के बारे में निर्णय करेगा, जिसमें वे झगड़ रहे थे।


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وَلَوۡ أَنَّ لِلَّذِینَ ظَلَمُواْ مَا فِی ٱلۡأَرۡضِ جَمِیعࣰا وَمِثۡلَهُۥ مَعَهُۥ لَٱفۡتَدَوۡاْ بِهِۦ مِن سُوۤءِ ٱلۡعَذَابِ یَوۡمَ ٱلۡقِیَـٰمَةِۚ وَبَدَا لَهُم مِّنَ ٱللَّهِ مَا لَمۡ یَكُونُواْ یَحۡتَسِبُونَ ﴿٤٧﴾

और जिन लोगों ने अत्याचार किया है, अगर धरती की सारी चीज़ें उनकी हो जाएँ, और उनके साथ उतना ही और भी, तो वे क़ियामत के दिन बुरी यातना से बचने के लिए इन सारी चीज़ों को फ़िदया में दे देंगे।[10] तथा अल्लाह की ओर से उनके लिए वह बात खुल जाएगी, जिसका वे गुमान भी न करते थे।

10. परंतु वह सब स्वीकार्य नहीं होगा। (देखिए : सूरतुल-बक़रा, आयत : 48, तथा सूरत आल-इमरान, आयत : 91)


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وَبَدَا لَهُمۡ سَیِّـَٔاتُ مَا كَسَبُواْ وَحَاقَ بِهِم مَّا كَانُواْ بِهِۦ یَسۡتَهۡزِءُونَ ﴿٤٨﴾

और उनके कुकर्मों की बुराइयाँ उनके सामने आ जाएँगी और उन्हें वह यातना घेर लेगी, जिसका वे मज़ाक उड़ाया करते थे।


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فَإِذَا مَسَّ ٱلۡإِنسَـٰنَ ضُرࣱّ دَعَانَا ثُمَّ إِذَا خَوَّلۡنَـٰهُ نِعۡمَةࣰ مِّنَّا قَالَ إِنَّمَاۤ أُوتِیتُهُۥ عَلَىٰ عِلۡمِۭۚ بَلۡ هِیَ فِتۡنَةࣱ وَلَـٰكِنَّ أَكۡثَرَهُمۡ لَا یَعۡلَمُونَ ﴿٤٩﴾

और जब इनसान को कोई दुःख पहुँचाता है, तो हमें पुकारता है। फिर जब हम उसे अपनी ओर से कोई सुख प्रदान करते हैं, तो कहता हैः "यह तो मुझे ज्ञान के कारण प्राप्त हुआ है।" बल्कि, यह एक परीक्षा है। किन्तु, उनमें से अधिकतर लोग (इसे) नहीं जानते।


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قَدۡ قَالَهَا ٱلَّذِینَ مِن قَبۡلِهِمۡ فَمَاۤ أَغۡنَىٰ عَنۡهُم مَّا كَانُواْ یَكۡسِبُونَ ﴿٥٠﴾

यही बात, उन लोगों ने भी कही थी, जो इनसे पूर्व थे। तो नहीं काम आया उनके, जो कुछ वे कमा रहे थे।


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فَأَصَابَهُمۡ سَیِّـَٔاتُ مَا كَسَبُواْۚ وَٱلَّذِینَ ظَلَمُواْ مِنۡ هَـٰۤؤُلَاۤءِ سَیُصِیبُهُمۡ سَیِّـَٔاتُ مَا كَسَبُواْ وَمَا هُم بِمُعۡجِزِینَ ﴿٥١﴾

तो उनपर उनके कर्मों की बुराइयाँ आ पड़ीं। और इनमें से जिन लोगों ने अत्याचार किया, उनपर उनके कर्मों की बुराइयाँ आ पड़ेंगी। और वे (हमें) विवश करने वाले नहीं हैं।


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أَوَلَمۡ یَعۡلَمُوۤاْ أَنَّ ٱللَّهَ یَبۡسُطُ ٱلرِّزۡقَ لِمَن یَشَاۤءُ وَیَقۡدِرُۚ إِنَّ فِی ذَ ٰ⁠لِكَ لَـَٔایَـٰتࣲ لِّقَوۡمࣲ یُؤۡمِنُونَ ﴿٥٢﴾

क्या उन्हें मालूम नहीं कि अल्लाह जिसके लिए चाहता है, रोज़ी कुशादा कर देता है, और (जिसे चाहता है) नापकर देता है? निश्चय इसमें बहुत-सी निशानियाँ हैं, उन लोगों के लिए, जो ईमान लाते हैं।


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۞ قُلۡ یَـٰعِبَادِیَ ٱلَّذِینَ أَسۡرَفُواْ عَلَىٰۤ أَنفُسِهِمۡ لَا تَقۡنَطُواْ مِن رَّحۡمَةِ ٱللَّهِۚ إِنَّ ٱللَّهَ یَغۡفِرُ ٱلذُّنُوبَ جَمِیعًاۚ إِنَّهُۥ هُوَ ٱلۡغَفُورُ ٱلرَّحِیمُ ﴿٥٣﴾

(ऐ नबी!) आप मेरे उन बंदों से कह दें, जिन्होंने अपने ऊपर अत्याचार किए हैं कि तुम अल्लाह की दया से निराश न हो।[11] निःसंदेह अल्लाह सब पापों को क्षमा कर देता है। निःसंदेह वही तो अति क्षमाशील, अत्यंत दयावान् है।

11. नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के पास कुछ मुश्रिक आए जिन्होंने बहुत जानें मारीं और बहुत व्यभिचार किए थे। और कहा वास्तव में, आप जो कुछ कह रहे हैं वह बहुत अच्छा है। तो आप बताएँ कि हमने जो कुकर्म किए हैं उनके लिए कोई कफ़्फ़ारा (प्रायश्चित) है? उसी पर क़ुरआन की आयत 68 और यह आयत उतरी। (सह़ीह़ बुख़ारी : 4810)


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وَأَنِیبُوۤاْ إِلَىٰ رَبِّكُمۡ وَأَسۡلِمُواْ لَهُۥ مِن قَبۡلِ أَن یَأۡتِیَكُمُ ٱلۡعَذَابُ ثُمَّ لَا تُنصَرُونَ ﴿٥٤﴾

तथा अपने पालनहार की ओर झुक पड़ो और उसके आज्ञाकारी हो जाओ, इससे पहले कि तुमपर यातना आ जाए, फिर तुम्हारी सहायता न की जाए।


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وَٱتَّبِعُوۤاْ أَحۡسَنَ مَاۤ أُنزِلَ إِلَیۡكُم مِّن رَّبِّكُم مِّن قَبۡلِ أَن یَأۡتِیَكُمُ ٱلۡعَذَابُ بَغۡتَةࣰ وَأَنتُمۡ لَا تَشۡعُرُونَ ﴿٥٥﴾

तथा उस सबसे उत्तम वाणी का पालन करो, जो अल्लाह की ओर से तुम्हारी तरफ़ उतारी गई है, इससे पूर्व कि तुमपर यातना आ पड़े और तुम्हें एहसास तक न हो।


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أَن تَقُولَ نَفۡسࣱ یَـٰحَسۡرَتَىٰ عَلَىٰ مَا فَرَّطتُ فِی جَنۢبِ ٱللَّهِ وَإِن كُنتُ لَمِنَ ٱلسَّـٰخِرِینَ ﴿٥٦﴾

(ऐसा न हो कि) कोई व्यक्ति कहे कि अफ़सोस है उस कोताही पर, जो मैंने अल्लाह के हक में की तथा मैं उपहास करने वालों में रह गया।


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أَوۡ تَقُولَ لَوۡ أَنَّ ٱللَّهَ هَدَىٰنِی لَكُنتُ مِنَ ٱلۡمُتَّقِینَ ﴿٥٧﴾

या फिर कहे कि यदि अल्लाह मुझे सीधा रास्ता दिखाता, तो मैं डरने वालों में से हो जाता।


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أَوۡ تَقُولَ حِینَ تَرَى ٱلۡعَذَابَ لَوۡ أَنَّ لِی كَرَّةࣰ فَأَكُونَ مِنَ ٱلۡمُحۡسِنِینَ ﴿٥٨﴾

या जब यातना को देख ले, तो कहने लगे कि अगर मुझे (संसार की ओर) वापस जाने का अवसर मिले, तो मैं अवश्य सदाचारियों में से हो जाऊँगा।


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بَلَىٰ قَدۡ جَاۤءَتۡكَ ءَایَـٰتِی فَكَذَّبۡتَ بِهَا وَٱسۡتَكۡبَرۡتَ وَكُنتَ مِنَ ٱلۡكَـٰفِرِینَ ﴿٥٩﴾

हाँ, तुम्हारे पास मेरी निशानियाँ आईं, तो तुमने उन्हें झुठला दिया और अभिमान किया तथा तुम थे ही काफ़िरों में से।


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وَیَوۡمَ ٱلۡقِیَـٰمَةِ تَرَى ٱلَّذِینَ كَذَبُواْ عَلَى ٱللَّهِ وُجُوهُهُم مُّسۡوَدَّةٌۚ أَلَیۡسَ فِی جَهَنَّمَ مَثۡوࣰى لِّلۡمُتَكَبِّرِینَ ﴿٦٠﴾

और क़ियामत के दिन आप उन लोगों को देखेंगे, जिन्होंने अल्लाह पर झूठ बोला कि उनके चेहरे काले होंगे। तो क्या अभिमानियों का ठिकाना जहन्नम में नहीं है?


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وَیُنَجِّی ٱللَّهُ ٱلَّذِینَ ٱتَّقَوۡاْ بِمَفَازَتِهِمۡ لَا یَمَسُّهُمُ ٱلسُّوۤءُ وَلَا هُمۡ یَحۡزَنُونَ ﴿٦١﴾

तथा अल्लाह उन लोगों को उनकी सफलता के साथ बचा लेगा, जो आज्ञाकारी रहे। न उन्हें कोई तकलीफ छुएगी और न वे शोकाकुल होंगे।


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ٱللَّهُ خَـٰلِقُ كُلِّ شَیۡءࣲۖ وَهُوَ عَلَىٰ كُلِّ شَیۡءࣲ وَكِیلࣱ ﴿٦٢﴾

अल्लाह ही प्रत्येक वस्तु का पैदा करने वाला है तथा वही प्रत्येक वस्तु का संरक्षक है।


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لَّهُۥ مَقَالِیدُ ٱلسَّمَـٰوَ ٰ⁠تِ وَٱلۡأَرۡضِۗ وَٱلَّذِینَ كَفَرُواْ بِـَٔایَـٰتِ ٱللَّهِ أُوْلَـٰۤىِٕكَ هُمُ ٱلۡخَـٰسِرُونَ ﴿٦٣﴾

आकाशों तथा धरती की कुंजियाँ[12] उसी के पास हैं तथा जिन लोगों ने अल्लाह की आयतों का इनकार किया, वही लोग घाटा उठाने वाले हैं।

12. अर्थात सबका विधाता तथा स्वामी वही है। वही सबकी व्यवस्था करता है। और सब उसी के अधीन तथा अधिकार में हैं।


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قُلۡ أَفَغَیۡرَ ٱللَّهِ تَأۡمُرُوۤنِّیۤ أَعۡبُدُ أَیُّهَا ٱلۡجَـٰهِلُونَ ﴿٦٤﴾

आप कह दें के ऐ अज्ञानो! क्या तुम मुझे आदेश देते हो कि मैं अल्लाह के सिवा किसी और की इबादत (वंदना) करूँ?


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وَلَقَدۡ أُوحِیَ إِلَیۡكَ وَإِلَى ٱلَّذِینَ مِن قَبۡلِكَ لَىِٕنۡ أَشۡرَكۡتَ لَیَحۡبَطَنَّ عَمَلُكَ وَلَتَكُونَنَّ مِنَ ٱلۡخَـٰسِرِینَ ﴿٦٥﴾

और निःसंदेह तुम्हारी ओर एवं तुमसे पहले के नबियों की ओर वह़्य की गई है कि यदि तुमने शिर्क किया, तो निश्चय तुम्हारा कर्म अवश्य नष्ट हो जाएगा और तुम निश्चित रूप से हानि उठाने वालों में से हो जाओगे।[13]

13. इस आयत का भावार्थ यह है कि यदि मान लिया जाए कि आपके जीवन का अंत शिर्क पर हुआ, और क्षमा याचना नहीं की तो आपके भी कर्म नष्ट हो जाएँगे। ह़ालाँकि आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) और सभी नबी शिर्क से पाक थे। इसलिए कि उनका संदेश ही एकेश्वरवाद और शिर्क का खंडन है। फिर भी इसमें संबोधित नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को किया गया और यह साधारण नियम बताया गया कि शिर्क के साथ अल्लाह के हाँ कोई कर्म स्वीकार्य नहीं। तथा ऐसे सभी कर्म निष्फल होंगे जो एकेश्वरवाद की आस्था पर आधारित न हों। चाहे वह नबी हो या उसका अनुयायी हो।


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بَلِ ٱللَّهَ فَٱعۡبُدۡ وَكُن مِّنَ ٱلشَّـٰكِرِینَ ﴿٦٦﴾

बल्कि आप अल्लाह ही की इबादत (वंदना) करें तथा शुक्र करने वालों में से हो जाएँ।


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وَمَا قَدَرُواْ ٱللَّهَ حَقَّ قَدۡرِهِۦ وَٱلۡأَرۡضُ جَمِیعࣰا قَبۡضَتُهُۥ یَوۡمَ ٱلۡقِیَـٰمَةِ وَٱلسَّمَـٰوَ ٰ⁠تُ مَطۡوِیَّـٰتُۢ بِیَمِینِهِۦۚ سُبۡحَـٰنَهُۥ وَتَعَـٰلَىٰ عَمَّا یُشۡرِكُونَ ﴿٦٧﴾

तथा उन्होंने अल्लाह का सम्मान नहीं किया, जैसे उसका सम्मान करना चाहिए था और क़ियामत के दिन पूरी धरती उसकी एक मुट्ठी में होगी, तथा आकाश उसके दाएँ हाथ[14] में लिपटे होंगे। वह उस शिर्क से पवित्र तथा उच्च है, जो वे कर रहे हैं।

14. ह़दीस में आता है कि एक यहूदी विद्वान नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के पास आया और कहा : हम अल्लाह के विषय में (अपनी धर्म पुस्तकों में) यह पाते हैं कि प्रलय के दिन आकाशों को एक उँगली, तथा भूमि को एक उँगली पर और पेड़ों को एक उंँगली, जल तथा तरी को एक उंँगली पर और समस्त उत्पत्ति को एक उंँगली पर रख लेगा, तथा कहेगा : "मैं ही राजा हूँ।" यह सुनकर आप हँस पड़े और इसी आयत को पढ़ा। (सह़ीह़ बुख़ारी, ह़दीस : 4812, 6519, 7382, 7413)


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وَنُفِخَ فِی ٱلصُّورِ فَصَعِقَ مَن فِی ٱلسَّمَـٰوَ ٰ⁠تِ وَمَن فِی ٱلۡأَرۡضِ إِلَّا مَن شَاۤءَ ٱللَّهُۖ ثُمَّ نُفِخَ فِیهِ أُخۡرَىٰ فَإِذَا هُمۡ قِیَامࣱ یَنظُرُونَ ﴿٦٨﴾

तथा सूर (नरसिंघा) में फूँक[15] मारी जाएगी, तो जो कोई आकाशों और धरती में होगा, बेहोश हो जाएगा। सिवाय उसके, जिसको अल्लाह चाहे। फिर उसमें पुनः फूँक मारी जाएगी, तो अचानक सब खड़े होकर देखने लगेंगे।

15. नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने कहा : दूसरी फूँक के पश्चात् सबसे पहले मैं सिर उठाऊँगा। तो मूसा अर्श पकड़े हुए खड़े होंगे। मुझे ज्ञान नहीं कि वह ऐसे ही रह गए थे, या फूँकने के पश्चात् मुझसे पहले उठ चुके होंगे। (सह़ीह़ बुख़ारी : 4813) दूसरी ह़दीस में है कि दोनों फूँकों के बीच चालीस की अवधि होगी। और मनुष्य की दुमची की हड्डी के सिवा सब सड़ जाएगा। और उसी से उसको फिर बनाया जाएगा। (सह़ीह़ बुख़ारी : 4814)


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وَأَشۡرَقَتِ ٱلۡأَرۡضُ بِنُورِ رَبِّهَا وَوُضِعَ ٱلۡكِتَـٰبُ وَجِاْیۤءَ بِٱلنَّبِیِّـۧنَ وَٱلشُّهَدَاۤءِ وَقُضِیَ بَیۡنَهُم بِٱلۡحَقِّ وَهُمۡ لَا یُظۡلَمُونَ ﴿٦٩﴾

तथा धरती अपने पालनहार की ज्योति से जगमगाने लगेगी, और कर्मलेख (खोलकर लोगों के आगे) रख दिए जाएँगे, तथा नबियों और साक्षियों को लाया जाएगा, और उनके बीच सत्य के साथ निर्णय कर दिया जाएगा और उनपर अत्याचार नहीं किया जाएगा।


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وَوُفِّیَتۡ كُلُّ نَفۡسࣲ مَّا عَمِلَتۡ وَهُوَ أَعۡلَمُ بِمَا یَفۡعَلُونَ ﴿٧٠﴾

तथा प्रत्येक प्राणी को उसके कर्म का पूरा-पूरा फल दिया जाएगा। तथा वह भली-भाँति जानता है उसे, जो वे करते हैं।


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وَسِیقَ ٱلَّذِینَ كَفَرُوۤاْ إِلَىٰ جَهَنَّمَ زُمَرًاۖ حَتَّىٰۤ إِذَا جَاۤءُوهَا فُتِحَتۡ أَبۡوَ ٰ⁠بُهَا وَقَالَ لَهُمۡ خَزَنَتُهَاۤ أَلَمۡ یَأۡتِكُمۡ رُسُلࣱ مِّنكُمۡ یَتۡلُونَ عَلَیۡكُمۡ ءَایَـٰتِ رَبِّكُمۡ وَیُنذِرُونَكُمۡ لِقَاۤءَ یَوۡمِكُمۡ هَـٰذَاۚ قَالُواْ بَلَىٰ وَلَـٰكِنۡ حَقَّتۡ كَلِمَةُ ٱلۡعَذَابِ عَلَى ٱلۡكَـٰفِرِینَ ﴿٧١﴾

तथा जो लोग काफ़िर होंगे, वे जहन्नम की ओर गिरोह के गिरोह हाँके जाएँगे। यहाँ तक कि जब वे उसके पास आएँगे, तो उसके द्वार खोल दिए जाएँगे तथा उसके रक्षक उनसे कहेंगेः "क्या तुम्हारे पास तुम्हीं में से रसूल नहीं आए थे, जो तुम्हें तुम्हारे पालनहार की आयतें सुनाते रहे तथा तुम्हें अपने इस दिन का सामना करने से सचेत करते रहे?" वे कहेंगेः "क्यों नहीं? परन्तु, काफ़िरों पर यातना की बात सिद्ध हो चुकी है।"


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قِیلَ ٱدۡخُلُوۤاْ أَبۡوَ ٰ⁠بَ جَهَنَّمَ خَـٰلِدِینَ فِیهَاۖ فَبِئۡسَ مَثۡوَى ٱلۡمُتَكَبِّرِینَ ﴿٧٢﴾

उनसे कहा जाएगाः जहन्नम के द्वारों में प्रवेश कर जाओ। उसमें सदावासी रहोगे। अतः क्या ही बुरा है अभिमानियों का ठिकाना!


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وَسِیقَ ٱلَّذِینَ ٱتَّقَوۡاْ رَبَّهُمۡ إِلَى ٱلۡجَنَّةِ زُمَرًاۖ حَتَّىٰۤ إِذَا جَاۤءُوهَا وَفُتِحَتۡ أَبۡوَ ٰ⁠بُهَا وَقَالَ لَهُمۡ خَزَنَتُهَا سَلَـٰمٌ عَلَیۡكُمۡ طِبۡتُمۡ فَٱدۡخُلُوهَا خَـٰلِدِینَ ﴿٧٣﴾

तथा जो लोग अपने पालनहार से डरते रहे, वे जन्नत की ओर गिरोह के गिरोह ले जाए जाएँगे। यहाँ तक कि जब वे उसके पास पहुँच जाएँगे तथा उसके द्वार खोल दिए जाएँगे और उसके रक्षक उनसे कहेंगेः सलाम है तुमपर। तुम पवित्र हो। सो तुम इसमें हमेशा रहने को प्रवेश कर जाओ।


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وَقَالُواْ ٱلۡحَمۡدُ لِلَّهِ ٱلَّذِی صَدَقَنَا وَعۡدَهُۥ وَأَوۡرَثَنَا ٱلۡأَرۡضَ نَتَبَوَّأُ مِنَ ٱلۡجَنَّةِ حَیۡثُ نَشَاۤءُۖ فَنِعۡمَ أَجۡرُ ٱلۡعَـٰمِلِینَ ﴿٧٤﴾

तथा वे कहेंगे : सब प्रशंसा अल्लाह के लिए है, जिसने हमसे किया हुआ अपना वचन सच कर दिखाया, तथा हमें इस धरती का उत्तराधिकारी बना दिया। हम स्वर्ग के अंदर जहाँ चाहें, रहें। क्या ही अच्छा बदला है कर्म करने वालों का।[16]

16. अर्थात एकेश्वरवादी सदाचारियों का।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَتَرَى ٱلۡمَلَـٰۤىِٕكَةَ حَاۤفِّینَ مِنۡ حَوۡلِ ٱلۡعَرۡشِ یُسَبِّحُونَ بِحَمۡدِ رَبِّهِمۡۚ وَقُضِیَ بَیۡنَهُم بِٱلۡحَقِّۚ وَقِیلَ ٱلۡحَمۡدُ لِلَّهِ رَبِّ ٱلۡعَـٰلَمِینَ ﴿٧٥﴾

तथा आप फ़रिश्तों को अर्श (सिंहासन) के चारों ओर से उसे घेरे हुए देखेंगे। वे अपने पालनहार की पवित्रता गान कर रहे होंगे, उसकी प्रशंसा के साथ। और लोगों के बीच सत्य के साथ निर्णय कर दिया जाएगा। तथा कह दिया जाएगा कि सब प्रशंसा अल्लाह के लिए है, जो सारे संसार का पालनहार है।[17]

17. अर्थात जब ईमान वाले स्वर्ग में और मुश्रिक नरक में चले जाएँगे तो उस समय का चित्र यह होगा कि अल्लाह के अर्श को फ़रिश्ते हर ओर से घेरे हुए उसकी पवित्रता तथा प्रशंसा का गान कर रहे होंगे।


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