Surah सूरा फ़ुस्सिलत - Fussilat

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Surah सूरा फ़ुस्सिलत - Fussilat - Aya count 54

حمۤ ﴿١﴾

ह़ा, मीम।


Arabic explanations of the Qur’an:

تَنزِیلࣱ مِّنَ ٱلرَّحۡمَـٰنِ ٱلرَّحِیمِ ﴿٢﴾

(यह कुरआन) अत्यंत दयावान्, असीम दयालु की ओर से अवतरित हुआ है।


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كِتَـٰبࣱ فُصِّلَتۡ ءَایَـٰتُهُۥ قُرۡءَانًا عَرَبِیࣰّا لِّقَوۡمࣲ یَعۡلَمُونَ ﴿٣﴾

(यह ऐसी) पुस्तक है, जिसकी आयतें खोलकर बयान की गई हैं। (यह) क़ुरआन अरबी (भाषा में) है, उन लोगों के लिए जो ज्ञान रखते हैं।


Arabic explanations of the Qur’an:

بَشِیرࣰا وَنَذِیرࣰا فَأَعۡرَضَ أَكۡثَرُهُمۡ فَهُمۡ لَا یَسۡمَعُونَ ﴿٤﴾

वह शुभ सूचना देने वाला तथा सचेत करने वाला है। लेकिन उनमें से अधिकतर ने (उससे) मुँह फेर लिया, तो वे सुनते ही नहीं।


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وَقَالُواْ قُلُوبُنَا فِیۤ أَكِنَّةࣲ مِّمَّا تَدۡعُونَاۤ إِلَیۡهِ وَفِیۤ ءَاذَانِنَا وَقۡرࣱ وَمِنۢ بَیۡنِنَا وَبَیۡنِكَ حِجَابࣱ فَٱعۡمَلۡ إِنَّنَا عَـٰمِلُونَ ﴿٥﴾

तथा उन्होंने[1] कहा : हमारे दिल उससे पर्दों में हैं, जिसकी ओर आप हमें बुला रहे हैं तथा हमारे कानों में बोझ (बहरापन) है तथा हमारे और आपके बीच एक ओट है। अतः आप अपना काम करें और हम अपना काम कर रहे हैं।

1. अर्थात मक्का के मुश्रिकों ने कहा कि यह एकेश्वरवाद की बात हमें समझ में नहीं आती। इसलिए आप हमें हमारे धर्म पर ही रहने दें।


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قُلۡ إِنَّمَاۤ أَنَا۠ بَشَرࣱ مِّثۡلُكُمۡ یُوحَىٰۤ إِلَیَّ أَنَّمَاۤ إِلَـٰهُكُمۡ إِلَـٰهࣱ وَ ٰ⁠حِدࣱ فَٱسۡتَقِیمُوۤاْ إِلَیۡهِ وَٱسۡتَغۡفِرُوهُۗ وَوَیۡلࣱ لِّلۡمُشۡرِكِینَ ﴿٦﴾

आप कह दें कि मैं तो तुम्हारे ही जैसा एक इनसान हूँ। मेरी ओर वह़्य की जाती है कि तुम्हारा पूज्य मात्र एक ही पूज्य है। अतः सीधे उसी की ओर एकाग्र रहो तथा उससे क्षमा माँगो और साझी ठहराने वालों के लिए बड़ा विनाश है।


Arabic explanations of the Qur’an:

ٱلَّذِینَ لَا یُؤۡتُونَ ٱلزَّكَوٰةَ وَهُم بِٱلۡـَٔاخِرَةِ هُمۡ كَـٰفِرُونَ ﴿٧﴾

जो ज़कात नहीं देते तथा वे आख़िरत का (भी) इनकार करते हैं।


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إِنَّ ٱلَّذِینَ ءَامَنُواْ وَعَمِلُواْ ٱلصَّـٰلِحَـٰتِ لَهُمۡ أَجۡرٌ غَیۡرُ مَمۡنُونࣲ ﴿٨﴾

निःसंदेह जो लोग ईमान लाए तथा अच्छे कर्म किए, उनके लिए समाप्त न होने वाला बदला है।


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۞ قُلۡ أَىِٕنَّكُمۡ لَتَكۡفُرُونَ بِٱلَّذِی خَلَقَ ٱلۡأَرۡضَ فِی یَوۡمَیۡنِ وَتَجۡعَلُونَ لَهُۥۤ أَندَادࣰاۚ ذَ ٰ⁠لِكَ رَبُّ ٱلۡعَـٰلَمِینَ ﴿٩﴾

आप कह दें कि क्या तुम उस अस्तित्व का इनकार करते हो, जिसने धरती को दो दिनों में पैदा किया और उसके समकक्ष ठहराते हो? वह तो समस्त संसार का पालनहार है।


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وَجَعَلَ فِیهَا رَوَ ٰ⁠سِیَ مِن فَوۡقِهَا وَبَـٰرَكَ فِیهَا وَقَدَّرَ فِیهَاۤ أَقۡوَ ٰ⁠تَهَا فِیۤ أَرۡبَعَةِ أَیَّامࣲ سَوَاۤءࣰ لِّلسَّاۤىِٕلِینَ ﴿١٠﴾

तथा उस (धरती) में उसके ऊपर से पर्वत बनाए, तथा उसमें बरकत रख दी और उसमें उसके वासियों के आहार चार[2] दिनों में निर्धारित किए, समान रूप[3] से, प्रश्न करने वालों के लिए।

2. अर्थात धरती को पैदा करने और फैलाने के कुल चार दिन हुए। 3. अर्थात धरती के सभी जीवों के आहार के संसाधन की व्यवस्था कर दी। और यह बात बता दी ताकि कोई प्रश्न करे तो उसे इसका ज्ञान करा दिया जाए।


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ثُمَّ ٱسۡتَوَىٰۤ إِلَى ٱلسَّمَاۤءِ وَهِیَ دُخَانࣱ فَقَالَ لَهَا وَلِلۡأَرۡضِ ٱئۡتِیَا طَوۡعًا أَوۡ كَرۡهࣰا قَالَتَاۤ أَتَیۡنَا طَاۤىِٕعِینَ ﴿١١﴾

फिर उसने आकाश की ओर रुख़ किया, जबकि वह धुआँ था। तो उसने उससे और धरती से कहा : तुम दोनों आओ, स्वेच्छा से या मजबूरी से। दोनों ने कहा : हम स्वेच्छा से आ गए।


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فَقَضَىٰهُنَّ سَبۡعَ سَمَـٰوَاتࣲ فِی یَوۡمَیۡنِ وَأَوۡحَىٰ فِی كُلِّ سَمَاۤءٍ أَمۡرَهَاۚ وَزَیَّنَّا ٱلسَّمَاۤءَ ٱلدُّنۡیَا بِمَصَـٰبِیحَ وَحِفۡظࣰاۚ ذَ ٰ⁠لِكَ تَقۡدِیرُ ٱلۡعَزِیزِ ٱلۡعَلِیمِ ﴿١٢﴾

फिर उसने उन्हें दो दिनों में सात आकाश बना दिए और प्रत्येक आकाश में उससे संबंधित काम की वह़्य की। तथा हमने निकटतम (निचले) आकाश को दीपों (चमकदार सितारों) से सुशोभित किया, तथा (उनके द्वारा) उसको सुरक्षित कर दिया।[4] यह अत्यंत प्रभुत्वशाली, सब कुछ जानने वाले (अल्लाह) की योजना है।

4. अर्थात शैतानों से सुरक्षित कर दिया। (देखिए : सूरतुस-साफ़्फ़ात, आयत 7 से 10 तक)।


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فَإِنۡ أَعۡرَضُواْ فَقُلۡ أَنذَرۡتُكُمۡ صَـٰعِقَةࣰ مِّثۡلَ صَـٰعِقَةِ عَادࣲ وَثَمُودَ ﴿١٣﴾

फिर यदि वे विमुख हों, तो आप कह दें कि मैंने तुम्हें ऐसी कड़क (भयंकर यातना) से सावधान कर दिया है, जो आद और समूद की कड़क जैसी होगी।


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إِذۡ جَاۤءَتۡهُمُ ٱلرُّسُلُ مِنۢ بَیۡنِ أَیۡدِیهِمۡ وَمِنۡ خَلۡفِهِمۡ أَلَّا تَعۡبُدُوۤاْ إِلَّا ٱللَّهَۖ قَالُواْ لَوۡ شَاۤءَ رَبُّنَا لَأَنزَلَ مَلَـٰۤىِٕكَةࣰ فَإِنَّا بِمَاۤ أُرۡسِلۡتُم بِهِۦ كَـٰفِرُونَ ﴿١٤﴾

जब उनके पास रसूल उनके आगे से तथा उनके पीछे से आए[5] (और कहा) कि अल्लाह के सिवा किसी की इबादत न करो। तो उन्होंने कहा : यदि हमारा पालनहार चाहता, तो किसी फ़रिश्ते को उतार देता।[6] अतः जिस बात के साथ तुम भेजे गए हो, हम उसका इनकार करते हैं।

5. अर्थात प्रत्येक प्रकार से समझाते रहे। 6. वे मनुष्य को रसूल मानने के लिए तैयार नहीं थे। (जिस प्रकार कुछ लोग जो रसूल को मानते हैं पर वे उन्हें मनुष्य मानने को तैयार नहीं हैं)। (देखिए : सूरतुल-अन्आम, आयत : 9-10, सूरतुल-मूमिनून, आयत : 24)


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فَأَمَّا عَادࣱ فَٱسۡتَكۡبَرُواْ فِی ٱلۡأَرۡضِ بِغَیۡرِ ٱلۡحَقِّ وَقَالُواْ مَنۡ أَشَدُّ مِنَّا قُوَّةًۖ أَوَلَمۡ یَرَوۡاْ أَنَّ ٱللَّهَ ٱلَّذِی خَلَقَهُمۡ هُوَ أَشَدُّ مِنۡهُمۡ قُوَّةࣰۖ وَكَانُواْ بِـَٔایَـٰتِنَا یَجۡحَدُونَ ﴿١٥﴾

फिर रहे आद समुदाय के लोग, तो उन्होंने धरती में नाहक़ अभिमान किया तथा कहने लगे : कौन शक्ति में हमसे बढ़कर है? क्या उन्होंने नहीं देखा कि अल्लाह, जिसने उनको पैदा किया, वह शक्ति में उनसे बहुत बढ़कर है?! तथा वे हमारी आयतों का इनकार करते रहे।


Arabic explanations of the Qur’an:

فَأَرۡسَلۡنَا عَلَیۡهِمۡ رِیحࣰا صَرۡصَرࣰا فِیۤ أَیَّامࣲ نَّحِسَاتࣲ لِّنُذِیقَهُمۡ عَذَابَ ٱلۡخِزۡیِ فِی ٱلۡحَیَوٰةِ ٱلدُّنۡیَاۖ وَلَعَذَابُ ٱلۡـَٔاخِرَةِ أَخۡزَىٰۖ وَهُمۡ لَا یُنصَرُونَ ﴿١٦﴾

अंततः, हमने कुछ अशुभ दिनों में उनपर प्रचंड वायु भेज दी। ताकि हम उन्हें सांसारिक जीवन में अपमानकारी यातना चखाएँ और आख़िरत (परलोक) की यातना तो और अधिक अपमानकारी है। तथा उन्हें कोई सहायता नहीं दी जाएगी।


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وَأَمَّا ثَمُودُ فَهَدَیۡنَـٰهُمۡ فَٱسۡتَحَبُّواْ ٱلۡعَمَىٰ عَلَى ٱلۡهُدَىٰ فَأَخَذَتۡهُمۡ صَـٰعِقَةُ ٱلۡعَذَابِ ٱلۡهُونِ بِمَا كَانُواْ یَكۡسِبُونَ ﴿١٧﴾

और रहे समूद समुदाय के लोग, तो हमने उन्हें सीधा मार्ग दिखाया, परंतु उन्होंने मार्गदर्शन की अपेक्षा अंधेपन को पसंद किया। अंततः उन्हें अपमानकारी यातना की कड़क ने पकड़ लिया, उसके कारण जो वे कमा रहे थे।


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وَنَجَّیۡنَا ٱلَّذِینَ ءَامَنُواْ وَكَانُواْ یَتَّقُونَ ﴿١٨﴾

तथा हमने उन लोगों को बचा लिया, जो ईमान लाए और वे डरते थे।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَیَوۡمَ یُحۡشَرُ أَعۡدَاۤءُ ٱللَّهِ إِلَى ٱلنَّارِ فَهُمۡ یُوزَعُونَ ﴿١٩﴾

और जिस दिन अल्लाह के शत्रुओं को एकत्रित कर जहन्नम की ओर लाया जाएगा, तो उन्हें पंक्तिबद्ध कर दिया जाएगा।


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حَتَّىٰۤ إِذَا مَا جَاۤءُوهَا شَهِدَ عَلَیۡهِمۡ سَمۡعُهُمۡ وَأَبۡصَـٰرُهُمۡ وَجُلُودُهُم بِمَا كَانُواْ یَعۡمَلُونَ ﴿٢٠﴾

यहाँ तक कि जब वे उस (जहन्नम) के पास आ जाएँगे, तो उनके कान तथा उनकी आँखें और उनकी खालें उनके विरुद्ध उन कर्मों की गवाही देंगी, जो वे किया करते थे।


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وَقَالُواْ لِجُلُودِهِمۡ لِمَ شَهِدتُّمۡ عَلَیۡنَاۖ قَالُوۤاْ أَنطَقَنَا ٱللَّهُ ٱلَّذِیۤ أَنطَقَ كُلَّ شَیۡءࣲۚ وَهُوَ خَلَقَكُمۡ أَوَّلَ مَرَّةࣲ وَإِلَیۡهِ تُرۡجَعُونَ ﴿٢١﴾

और वे अपनी खालों से कहेंगे : तुमने हमारे विरुद्ध क्यों गवाही दी? तो वे उत्तर देंगी : हमें उसी अल्लाह ने बोलने की शक्ति प्रदान की, जिसने प्रत्येक वस्तु को बोलने की शक्ति दी है। तथा उसी ने तुम्हें प्रथम बार पैदा किया और तुम उसी की ओर लौटाए जाओगे।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَمَا كُنتُمۡ تَسۡتَتِرُونَ أَن یَشۡهَدَ عَلَیۡكُمۡ سَمۡعُكُمۡ وَلَاۤ أَبۡصَـٰرُكُمۡ وَلَا جُلُودُكُمۡ وَلَـٰكِن ظَنَنتُمۡ أَنَّ ٱللَّهَ لَا یَعۡلَمُ كَثِیرࣰا مِّمَّا تَعۡمَلُونَ ﴿٢٢﴾

तथा तुम (पाप करते समय) छिपते[7] भी नहीं थे कि कहीं तुम्हारे कान, तुम्हारी आँखें और तुम्हारी खालें तुम्हारे विरुद्ध गवाही न दे दें। बल्कि, तुम यह समझते रहे कि अल्लाह उनमें से अधिकतर बातों को जानता ही नहीं, जो तुम करते हो।

7. आदरणीय अब्दुल्लाह बिन मसऊद रज़ियल्लाहु अन्हु कहते हैं कि ख़ाना काबा के पास एक घर में दो क़ुरैशी तथा एक सक़फ़ी अथवा दो सक़फ़ी और एक क़ुरैशी थे। तो एक ने दूसरे से कहा कि तुम समझते हो कि अल्लाह हमारी बातें सुन रहा है? किसी ने कहा : यदि कुछ सुनता है तो सब कुछ सुनता है। उसी पर यह आयत उतरी। (सह़ीह़ बुख़ारी : 4816, 4817, 7521)


Arabic explanations of the Qur’an:

وَذَ ٰ⁠لِكُمۡ ظَنُّكُمُ ٱلَّذِی ظَنَنتُم بِرَبِّكُمۡ أَرۡدَىٰكُمۡ فَأَصۡبَحۡتُم مِّنَ ٱلۡخَـٰسِرِینَ ﴿٢٣﴾

तुम्हारी इसी दुर्भावना ने, जो तुमने अपने पालनहार के प्रति रखा, तुम्हें विनष्ट कर दिया और तुम घाटा उठाने वालों में से हो गए।


Arabic explanations of the Qur’an:

فَإِن یَصۡبِرُواْ فَٱلنَّارُ مَثۡوࣰى لَّهُمۡۖ وَإِن یَسۡتَعۡتِبُواْ فَمَا هُم مِّنَ ٱلۡمُعۡتَبِینَ ﴿٢٤﴾

अब यदि वे धैर्य रखें, तो भी जहन्नम ही उनका ठिकाना है। और यदि वे क्षमा माँगें, तो भी वे क्षमा नहीं किए जाएँगे।


Arabic explanations of the Qur’an:

۞ وَقَیَّضۡنَا لَهُمۡ قُرَنَاۤءَ فَزَیَّنُواْ لَهُم مَّا بَیۡنَ أَیۡدِیهِمۡ وَمَا خَلۡفَهُمۡ وَحَقَّ عَلَیۡهِمُ ٱلۡقَوۡلُ فِیۤ أُمَمࣲ قَدۡ خَلَتۡ مِن قَبۡلِهِم مِّنَ ٱلۡجِنِّ وَٱلۡإِنسِۖ إِنَّهُمۡ كَانُواْ خَـٰسِرِینَ ﴿٢٥﴾

और हमने उनके लिए कुछ साथी नियुक्त कर दिए, तो उन्होंने उनके अगले और पिछले कामों को उनके लिए शोभित बनाकर पेश किया। तथा उनपर भी जिन्नों और इनसानों के उन समूहों के साथ, जो उनसे पहले गुज़र चुके थे, अल्लाह (की यातना) का वादा सिद्ध हो गया। निश्चय ही वे घाटा उठाने वाले थे।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَقَالَ ٱلَّذِینَ كَفَرُواْ لَا تَسۡمَعُواْ لِهَـٰذَا ٱلۡقُرۡءَانِ وَٱلۡغَوۡاْ فِیهِ لَعَلَّكُمۡ تَغۡلِبُونَ ﴿٢٦﴾

तथा काफ़िरों ने कहा[8] कि इस क़ुरआन को न सुनो और (जब पढ़ा जाए तो) इसमें शोर करो। ताकि तुम प्रभावशाली रहो।

8. मक्का के काफ़िरों ने जब देखा कि लोग क़ुरआन सुनकर प्रभावित हो रहे हैं, तो उन्होंने यह योजना बनाई।


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فَلَنُذِیقَنَّ ٱلَّذِینَ كَفَرُواْ عَذَابࣰا شَدِیدࣰا وَلَنَجۡزِیَنَّهُمۡ أَسۡوَأَ ٱلَّذِی كَانُواْ یَعۡمَلُونَ ﴿٢٧﴾

अतः हम अवश्य ही उन लोगों को जो काफ़िर हो गए, कठोर यातना का मज़ा चखाएँगे, तथा निश्चय ही हम उन्हें उन दुष्कर्मों का बदला अवश्य देंगे, जो वे किया करते थे।


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ذَ ٰ⁠لِكَ جَزَاۤءُ أَعۡدَاۤءِ ٱللَّهِ ٱلنَّارُۖ لَهُمۡ فِیهَا دَارُ ٱلۡخُلۡدِ جَزَاۤءَۢ بِمَا كَانُواْ بِـَٔایَـٰتِنَا یَجۡحَدُونَ ﴿٢٨﴾

यह अल्लाह के शत्रुओं का प्रतिकार जहन्नम है। उनके लिए उसी में स्थायी घर होगा। यह उसका बदला है, जो वे हमारी अयतों का इनकार किया करते थे।


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وَقَالَ ٱلَّذِینَ كَفَرُواْ رَبَّنَاۤ أَرِنَا ٱلَّذَیۡنِ أَضَلَّانَا مِنَ ٱلۡجِنِّ وَٱلۡإِنسِ نَجۡعَلۡهُمَا تَحۡتَ أَقۡدَامِنَا لِیَكُونَا مِنَ ٱلۡأَسۡفَلِینَ ﴿٢٩﴾

तथा जिन लोगों ने कुफ़्र किया, वे कहेंगे : ऐ हमारे पालनहर! हमें जिन्नों और इनसानों में से वे लोग दिखा दे, जिन्होंने हमें गुमराह किया था, हम उन्हें अपने पैरों तले रौंद डालें। ताकि वे सबसे निचले लोगों में से हो जाएँ।


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إِنَّ ٱلَّذِینَ قَالُواْ رَبُّنَا ٱللَّهُ ثُمَّ ٱسۡتَقَـٰمُواْ تَتَنَزَّلُ عَلَیۡهِمُ ٱلۡمَلَـٰۤىِٕكَةُ أَلَّا تَخَافُواْ وَلَا تَحۡزَنُواْ وَأَبۡشِرُواْ بِٱلۡجَنَّةِ ٱلَّتِی كُنتُمۡ تُوعَدُونَ ﴿٣٠﴾

निःसंदेह जिन लोगों ने कहा : हमारा पालनहार केवल अल्लाह है, फिर उसपर मज़बूती से जमे रहे[9], उनपर फ़रिश्ते उतरते[10] हैं कि भय न करो और न शोकाकुल हो तथा उस जन्नत से खुश हो जाओ, जिसका तुमसे वादा किया जाता था।

9. अर्थात प्रत्येक दशा में आज्ञापालन तथा एकेश्वरवाद पर स्थिर रहे। 10. उनके मरण के समय।


Arabic explanations of the Qur’an:

نَحۡنُ أَوۡلِیَاۤؤُكُمۡ فِی ٱلۡحَیَوٰةِ ٱلدُّنۡیَا وَفِی ٱلۡـَٔاخِرَةِۖ وَلَكُمۡ فِیهَا مَا تَشۡتَهِیۤ أَنفُسُكُمۡ وَلَكُمۡ فِیهَا مَا تَدَّعُونَ ﴿٣١﴾

हम सांसारिक जीवन में भी तुम्हारे सहायक हैं तथा आख़िरत में भी,और तुम्हारे लिए उस (जन्नत) में वह कुछ है, जो तुम्हारे दिल चाहेंगे तथा उसमें तुम्हारे लिए वह कुछ है, जिसकी तुम माँग करोगे।


Arabic explanations of the Qur’an:

نُزُلࣰا مِّنۡ غَفُورࣲ رَّحِیمࣲ ﴿٣٢﴾

(यह) अति क्षमाशील, असीम दयावान् की ओर से आतिथ्य है।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَمَنۡ أَحۡسَنُ قَوۡلࣰا مِّمَّن دَعَاۤ إِلَى ٱللَّهِ وَعَمِلَ صَـٰلِحࣰا وَقَالَ إِنَّنِی مِنَ ٱلۡمُسۡلِمِینَ ﴿٣٣﴾

और उस व्यक्ति से अच्छी बात किसकी हो सकती है, जिसने अल्लाह की ओर बुलाया तथा सत्कर्म किया और कहा : निःसंदेह मैं मुसलमानों (आज्ञाकारियों) में से हूँ।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَلَا تَسۡتَوِی ٱلۡحَسَنَةُ وَلَا ٱلسَّیِّئَةُۚ ٱدۡفَعۡ بِٱلَّتِی هِیَ أَحۡسَنُ فَإِذَا ٱلَّذِی بَیۡنَكَ وَبَیۡنَهُۥ عَدَ ٰ⁠وَةࣱ كَأَنَّهُۥ وَلِیٌّ حَمِیمࣱ ﴿٣٤﴾

भलाई और बुराई बराबर नहीं हो सकते। आप बुराई को ऐसे तरीक़े से दूर करें जो सर्वोत्तम हो। तो सहसा वह व्यक्ति जिसके और आपके बीच बैर है, ऐसा हो जाएगा मानो वह हार्दिक मित्र है।[10]

10. इस आयत में नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को तथा आपके माध्यम से सर्वसाधारण मुसलमानों को यह निर्देश दिया गया है कि बुराई का बदला अच्छाई से तथा अपकार का बदला उपकार से दें। जिसका प्रभाव यह होगा कि अपना शत्रु भी हार्दिक मित्र बन जाएगा।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَمَا یُلَقَّىٰهَاۤ إِلَّا ٱلَّذِینَ صَبَرُواْ وَمَا یُلَقَّىٰهَاۤ إِلَّا ذُو حَظٍّ عَظِیمࣲ ﴿٣٥﴾

और यह गुण उन्हीं लोगों को प्राप्त होता है, जो धैर्य से काम लेते हैं तथा यह उसी को प्राप्त होता है, जो बड़ा भाग्यशाली हो।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَإِمَّا یَنزَغَنَّكَ مِنَ ٱلشَّیۡطَـٰنِ نَزۡغࣱ فَٱسۡتَعِذۡ بِٱللَّهِۖ إِنَّهُۥ هُوَ ٱلسَّمِیعُ ٱلۡعَلِیمُ ﴿٣٦﴾

और यदि शैतान आपको उकसाए, तो अल्लाह से शरण माँगिए। निःसंदेह वह सब कुछ सुनने वाला, जानने वाला है।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَمِنۡ ءَایَـٰتِهِ ٱلَّیۡلُ وَٱلنَّهَارُ وَٱلشَّمۡسُ وَٱلۡقَمَرُۚ لَا تَسۡجُدُواْ لِلشَّمۡسِ وَلَا لِلۡقَمَرِ وَٱسۡجُدُواْ لِلَّهِ ٱلَّذِی خَلَقَهُنَّ إِن كُنتُمۡ إِیَّاهُ تَعۡبُدُونَ ﴿٣٧﴾

तथा उसकी निशानियों में से रात और दिन तथा सूरज और चाँद हैं। तुम न तो सूरज को सजदा करो और न चाँद को, और उस अल्लाह को सजदा करो, जिसने उन्हें पैदा किया है, यदि तुम उसी (अल्लाह) की इबादत करते हो।[11]

11. अर्थात सच्चा पूज्य अल्लाह के सिवा कोई नहीं है। ये सूर्य, चंद्रमा और अन्य आकाशीय ग्रहें अल्लाह के बनाए हुए हैं। और उसी के अधीन हैं। इसलिए इनको सजदा करना व्यर्थ है। और जो ऐसा करता है, वह अल्लाह के साथ उसकी बनाई हुई चीज़ को उसका साझी बनाता है, जो शिर्क और अक्षम्य पापा तथा अन्याय है। सजदा करना इबादत है, जो अल्लाह ही के लिए विशिष्ट है। इसीलिए कहा कि यदि अल्लाह ही की इबादत करते हो, तो सजदा भी उसी को करो। उसके सिवा कोई ऐसा नहीं जिसे सजदा करना उचित हो। क्योंकि सब अल्लाह के बनाए हुए हैं, सूर्य हो या कोई मनुष्य। सजदा आदर के लिए हो या इबादत (वंदना) के लिए। अल्लाह के सिवा किसी को भी सजदा करना अवैध तथा शिर्क है, जिसाका परिणाम सदैव के लिए नरक है। आयत 38 पूरी करके सजदा करें।


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فَإِنِ ٱسۡتَكۡبَرُواْ فَٱلَّذِینَ عِندَ رَبِّكَ یُسَبِّحُونَ لَهُۥ بِٱلَّیۡلِ وَٱلنَّهَارِ وَهُمۡ لَا یَسۡـَٔمُونَ ۩ ﴿٣٨﴾

फिर यदि वे अभिमान करें, तो जो (फ़रिश्ते) आपके पालनहार के पास हैं, वे रात दिन उसकी पवित्रता का वर्णन करते रहते हैं, और वे थकते नहीं हैं।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَمِنۡ ءَایَـٰتِهِۦۤ أَنَّكَ تَرَى ٱلۡأَرۡضَ خَـٰشِعَةࣰ فَإِذَاۤ أَنزَلۡنَا عَلَیۡهَا ٱلۡمَاۤءَ ٱهۡتَزَّتۡ وَرَبَتۡۚ إِنَّ ٱلَّذِیۤ أَحۡیَاهَا لَمُحۡیِ ٱلۡمَوۡتَىٰۤۚ إِنَّهُۥ عَلَىٰ كُلِّ شَیۡءࣲ قَدِیرٌ ﴿٣٩﴾

तथा उसकी निशानियों में से है कि आप धरती को सूखी हुई (बंजर) देखते हैं। फिर जब हम उसपर बारिश बरसाते हैं, तो वह हरित हो जाती है और बढ़ने लगती है। निःसंदेह जिस (अल्लाह) ने उसे जीवित किया, वह मुर्दों को अवश्य जीवित करने वाला है। निःसंदेह वह हर चीज़ पर समार्थ्यवान् है।


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إِنَّ ٱلَّذِینَ یُلۡحِدُونَ فِیۤ ءَایَـٰتِنَا لَا یَخۡفَوۡنَ عَلَیۡنَاۤۗ أَفَمَن یُلۡقَىٰ فِی ٱلنَّارِ خَیۡرٌ أَم مَّن یَأۡتِیۤ ءَامِنࣰا یَوۡمَ ٱلۡقِیَـٰمَةِۚ ٱعۡمَلُواْ مَا شِئۡتُمۡ إِنَّهُۥ بِمَا تَعۡمَلُونَ بَصِیرٌ ﴿٤٠﴾

निःसंदेह जो लोग हमारी आयतों में टेढ़ापन अपनाते हैं, वे हमसे छिपे हुए नहीं हैं। तो क्या जो व्यक्ति आग में डाला जाएगा, वह उत्तम है अथवा जो क़ियामत के दिन निश्चिंत होकर आएगा? तुम जो चाहो करो। निःसंदेह, तुम जो कुछ करते हो, वह उसे ख़ूब देखने वाला है।[12]

12. अर्थात तुम्हारे मनमानी करने का कुफल तुम्हें अवश्य देगा।


Arabic explanations of the Qur’an:

إِنَّ ٱلَّذِینَ كَفَرُواْ بِٱلذِّكۡرِ لَمَّا جَاۤءَهُمۡۖ وَإِنَّهُۥ لَكِتَـٰبٌ عَزِیزࣱ ﴿٤١﴾

निःसंदेह जिन लोगों ने इस ज़िक्र (क़ुरआन) का इनकार किया, जब वह उनके पास आया, (वे विनष्ट होने वाले हैं)। और निःसंदेह यह एक प्रभुत्वशाली पुस्तक है।


Arabic explanations of the Qur’an:

لَّا یَأۡتِیهِ ٱلۡبَـٰطِلُ مِنۢ بَیۡنِ یَدَیۡهِ وَلَا مِنۡ خَلۡفِهِۦۖ تَنزِیلࣱ مِّنۡ حَكِیمٍ حَمِیدࣲ ﴿٤٢﴾

इसके पास झूठ न इसके आगे से आ सकता है और न इसके पीछे से। यह पूर्ण हिकमत वाले, सर्व प्रशंसित (अल्लाह) की ओर से अवतरित है।


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مَّا یُقَالُ لَكَ إِلَّا مَا قَدۡ قِیلَ لِلرُّسُلِ مِن قَبۡلِكَۚ إِنَّ رَبَّكَ لَذُو مَغۡفِرَةࣲ وَذُو عِقَابٍ أَلِیمࣲ ﴿٤٣﴾

आपसे वही कहा जा रहा है, जो आपसे पहले के रसूलों से कहा जा चुका है।[13] निःसंदेह आपका पालनहार निश्चय बड़ी क्षमा वाला और बहुत दुःखदायी यातना वाला है।

13. अर्थात उन्हें जादूगर, झूठा तथा कवि इत्यादि कहा गया। (देखिए : सूरतुज़्-ज़ारियात, आयत : 52-53)


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وَلَوۡ جَعَلۡنَـٰهُ قُرۡءَانًا أَعۡجَمِیࣰّا لَّقَالُواْ لَوۡلَا فُصِّلَتۡ ءَایَـٰتُهُۥۤۖ ءَا۬عۡجَمِیࣱّ وَعَرَبِیࣱّۗ قُلۡ هُوَ لِلَّذِینَ ءَامَنُواْ هُدࣰى وَشِفَاۤءࣱۚ وَٱلَّذِینَ لَا یُؤۡمِنُونَ فِیۤ ءَاذَانِهِمۡ وَقۡرࣱ وَهُوَ عَلَیۡهِمۡ عَمًىۚ أُوْلَـٰۤىِٕكَ یُنَادَوۡنَ مِن مَّكَانِۭ بَعِیدࣲ ﴿٤٤﴾

और यदि हम इसे ग़ैर अरबी क़ुरआन बनाते, तो वे अवश्य कहते कि इसकी आयतें क्यों नहीं खोलकर बयान की गईं? क्या (पुस्तक) ग़ैर अरबी है और (नबी) अरबी? आप कह दीजिए : वह उन लोगों के लिए जो ईमान लाए, मार्गदर्शन और आरोग्य है, तथा जो लोग ईमान नहीं लाते, उनके कानों में बोझ है और यह उनके हक़ में अंधेपन का कारण है। वे लोग ऐसे हैं जो दूर स्थान से पुकारे जा रहे हैं।[14]

14. अर्थात क़ुरआन से प्रभावित होने के लिए ईमान आवश्यक है। इसके बिना इसका कोई प्रभाव नहीं होता।


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وَلَقَدۡ ءَاتَیۡنَا مُوسَى ٱلۡكِتَـٰبَ فَٱخۡتُلِفَ فِیهِۚ وَلَوۡلَا كَلِمَةࣱ سَبَقَتۡ مِن رَّبِّكَ لَقُضِیَ بَیۡنَهُمۡۚ وَإِنَّهُمۡ لَفِی شَكࣲّ مِّنۡهُ مُرِیبࣲ ﴿٤٥﴾

और हमने मूसा को पुस्तक (तौरात) प्रदान की। तो उसमें मतभेद किया गया। और यदि आपके पालनहार की ओर से एक बात पहले ही से निर्धारित न होती[15], तो उनके बीच अवश्य निर्णय कर दिया गया होता। और निःसंदेह वे उस (कुरआन) के बारे में असमंजस में डाल देने वाले संदेह में पड़े हुए हैं।

15. अर्थात प्रलय के दिन निर्णय करने की, तो संसार ही में निर्णय कर दिया जाता और उन्हें कोई अवसर नहीं दिया जाता। (देखिए : सूरत फ़ातिर, आयत : 45)


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مَّنۡ عَمِلَ صَـٰلِحࣰا فَلِنَفۡسِهِۦۖ وَمَنۡ أَسَاۤءَ فَعَلَیۡهَاۗ وَمَا رَبُّكَ بِظَلَّـٰمࣲ لِّلۡعَبِیدِ ﴿٤٦﴾

जो व्यक्ति अच्छा कर्म करेगा, तो वह अपने ही लाभ के लिए करेगा और जो बुरा कार्य करेगा, तो उसका दुष्परिणाम उसी पर होगा और आपका पालनहार बंदों पर तनिक भी अत्याचार करने वाला नहीं है।[16]

16. अर्थात किसी को बिना पाप के यातना नहीं देता।


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۞ إِلَیۡهِ یُرَدُّ عِلۡمُ ٱلسَّاعَةِۚ وَمَا تَخۡرُجُ مِن ثَمَرَ ٰ⁠تࣲ مِّنۡ أَكۡمَامِهَا وَمَا تَحۡمِلُ مِنۡ أُنثَىٰ وَلَا تَضَعُ إِلَّا بِعِلۡمِهِۦۚ وَیَوۡمَ یُنَادِیهِمۡ أَیۡنَ شُرَكَاۤءِی قَالُوۤاْ ءَاذَنَّـٰكَ مَا مِنَّا مِن شَهِیدࣲ ﴿٤٧﴾

क़ियामत का ज्ञान उसी (अल्लाह) की ओर लौटाया जाता है। तथा जो भी फल अपने गाभों से निकलते हैं और जो भी मादा गर्भ धारण करती है और बच्चा जनती है, सबका उसे ज्ञान है। और जिस दिन वह उन्हें पुकारेगा : कहाँ हैं मेरे साझी? वे कहेंगे : हमने तुझे स्पष्ट कर दिया है कि हममें से कोई (इसकी) गवाही देने वाला नहीं है।


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وَضَلَّ عَنۡهُم مَّا كَانُواْ یَدۡعُونَ مِن قَبۡلُۖ وَظَنُّواْ مَا لَهُم مِّن مَّحِیصࣲ ﴿٤٨﴾

और वे उनसे ग़ायब हो जाएँगे, जिन्हें वे इससे पूर्व पुकारते थे। तथा उन्हें यह विश्वास हो जाएगा कि उनके लिए भागने की कोई जगह नहीं है।


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لَّا یَسۡـَٔمُ ٱلۡإِنسَـٰنُ مِن دُعَاۤءِ ٱلۡخَیۡرِ وَإِن مَّسَّهُ ٱلشَّرُّ فَیَـُٔوسࣱ قَنُوطࣱ ﴿٤٩﴾

मनुष्य भलाई माँगने से नहीं थकता और यदि उसे कोई बुराई पहुँच जाए, तो हताश और निराश[17] हो जाता है।

17. यह साधारण लोगों की दशा है। अन्यथा मुसलमान निराश नहीं होता।


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وَلَىِٕنۡ أَذَقۡنَـٰهُ رَحۡمَةࣰ مِّنَّا مِنۢ بَعۡدِ ضَرَّاۤءَ مَسَّتۡهُ لَیَقُولَنَّ هَـٰذَا لِی وَمَاۤ أَظُنُّ ٱلسَّاعَةَ قَاۤىِٕمَةࣰ وَلَىِٕن رُّجِعۡتُ إِلَىٰ رَبِّیۤ إِنَّ لِی عِندَهُۥ لَلۡحُسۡنَىٰۚ فَلَنُنَبِّئَنَّ ٱلَّذِینَ كَفَرُواْ بِمَا عَمِلُواْ وَلَنُذِیقَنَّهُم مِّنۡ عَذَابٍ غَلِیظࣲ ﴿٥٠﴾

और निश्चय यदि हम उसे, किसी तकलीफ़ के पश्चात् जो उसे पहुँची हो, अपनी रहमत का मज़ा चखाएँ, तो अवश्य कहेगा : यह मेरा हक़ है, और मैं नहीं समझता कि क़ियामत आने वाली है, और यदि मैं अपने पालनहार की ओर लौटाया गया, तो निश्चय ही मेरे लिए उसके पास अवश्य भलाई है। अतः हम निश्चय उन लोगों को जिन्होंने कुफ़्र किया अवश्य बता देंगे जो कुछ उन्होंने किया, तथा निश्चय हम उन्हें एक कठिन यातना अवश्य चखाएँगे।[18]

18. आयत का भावार्थ यह है कि काफ़िर की यह दशा होती है। उसे अल्लाह के यहाँ जाने का विश्वास नहीं होता। फिर यदि प्रलय का होना मान ले, तो भी इसी कुविचार में मग्न रहता है कि यदि अल्लाह ने मुझे संसार में सुख-सुविधा दी है, तो वहाँ भी अवश्य देगा। और यह नहीं समझता कि यहाँ उसे जो कुछ दिया गया है, वह परीक्षा के लिए दिया गया है। और प्रलय के दिन कर्मों के आधार पर प्रतिकार दिया जाएगा।


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وَإِذَاۤ أَنۡعَمۡنَا عَلَى ٱلۡإِنسَـٰنِ أَعۡرَضَ وَنَـَٔا بِجَانِبِهِۦ وَإِذَا مَسَّهُ ٱلشَّرُّ فَذُو دُعَاۤءٍ عَرِیضࣲ ﴿٥١﴾

और जब हम इनसान पर उपकार करते हैं, तो वह मुँह फेर लेता है और दूर हो जाता है। तथा जब उसे बुराई पहुँचती है, तो लंबी-चौड़ी दुआएँ करने वाला हो जाता है।


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قُلۡ أَرَءَیۡتُمۡ إِن كَانَ مِنۡ عِندِ ٱللَّهِ ثُمَّ كَفَرۡتُم بِهِۦ مَنۡ أَضَلُّ مِمَّنۡ هُوَ فِی شِقَاقِۭ بَعِیدࣲ ﴿٥٢﴾

आप कह दें : मुझे बतलाओ कि यदि यह (क़ुरआन) अल्लाह की ओर से हुआ, फ़िर तुमने उसका इनकार कर दिया, तो उससे अधिक भटका हुआ कौन होगा, जो बहुत दूर के विरोध में पड़ा हो?


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سَنُرِیهِمۡ ءَایَـٰتِنَا فِی ٱلۡـَٔافَاقِ وَفِیۤ أَنفُسِهِمۡ حَتَّىٰ یَتَبَیَّنَ لَهُمۡ أَنَّهُ ٱلۡحَقُّۗ أَوَلَمۡ یَكۡفِ بِرَبِّكَ أَنَّهُۥ عَلَىٰ كُلِّ شَیۡءࣲ شَهِیدٌ ﴿٥٣﴾

शीघ्र ही हम उन्हें अपनी निशानियाँ संसार के किनारों में तथा स्वयं उनके भीतर दिखाएँगे, यहाँ तक कि उनके लिए स्पष्ट हो जाए कि निश्चय यही सत्य है।[19] और क्या आपका पालनहार प्रयाप्त नहीं इस बात के लिए कि निःसंदेह वह चीज़ पर गवाह है?

19. अर्थात् क़ुरआन। और निशानियों से अभिप्राय वह विजय है जो नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) तथा आपके पश्चात् मुसलमानों को प्राप्त होंगी। जिनसे उन्हें विश्वास हो जाएगा कि क़ुरआन ही सत्य है। इस आयत का एक दूसरा भावार्थ यह भी लिया गया है कि अल्लाह इस संसार में तथा स्वयं तुम्हारे भीतर ऐसी निशानियाँ दिखाएगा। और यह निशानियाँ निरंतर वैज्ञानिक आविष्कारों द्वारा सामने आ रहीं हैं। और प्रलय तक आती रहेंगी जिनसे क़ुरआन पाक का सत्य होना सिद्ध होता रहेगा।


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أَلَاۤ إِنَّهُمۡ فِی مِرۡیَةࣲ مِّن لِّقَاۤءِ رَبِّهِمۡۗ أَلَاۤ إِنَّهُۥ بِكُلِّ شَیۡءࣲ مُّحِیطُۢ ﴿٥٤﴾

सुन लो! निश्चय वे लोग अपने पालनहार से मिलने के विषय में संदेह में हैं। सुन लो! निश्चय वह (अल्लाह) प्रत्येक वस्तु को घेरे हुए है।


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