كَذَ ٰلِكَ یُوحِیۤ إِلَیۡكَ وَإِلَى ٱلَّذِینَ مِن قَبۡلِكَ ٱللَّهُ ٱلۡعَزِیزُ ٱلۡحَكِیمُ ﴿٣﴾
इसी प्रकार, आपकी ओर और आपसे पहले के नबियों की ओर, वह अल्लाह वह़्य (प्रकाशना)[1] करता (रहा) है, जो सब पर प्रभुत्वशाली, पूर्ण हिकमत वाला है।
لَهُۥ مَا فِی ٱلسَّمَـٰوَ ٰتِ وَمَا فِی ٱلۡأَرۡضِۖ وَهُوَ ٱلۡعَلِیُّ ٱلۡعَظِیمُ ﴿٤﴾
उसी का है जो कुछ आकाशों में है और जो कुछ धरती में है और वह सर्वोच्च, सबसे महान है।
تَكَادُ ٱلسَّمَـٰوَ ٰتُ یَتَفَطَّرۡنَ مِن فَوۡقِهِنَّۚ وَٱلۡمَلَـٰۤىِٕكَةُ یُسَبِّحُونَ بِحَمۡدِ رَبِّهِمۡ وَیَسۡتَغۡفِرُونَ لِمَن فِی ٱلۡأَرۡضِۗ أَلَاۤ إِنَّ ٱللَّهَ هُوَ ٱلۡغَفُورُ ٱلرَّحِیمُ ﴿٥﴾
निकट है कि आकाश अपने ऊपर से फट[2] पड़ें, और फ़रिश्ते अपने पालनहार की प्रशंसा के साथ पवित्रता गान करते हैं तथा उनके लिए क्षमायाचना करते हैं, जो धरती में हैं। सुन लो! निःसंदेह अल्लाह ही अत्यंत क्षमा करने वाला, असीम दया करने वाला है।
وَٱلَّذِینَ ٱتَّخَذُواْ مِن دُونِهِۦۤ أَوۡلِیَاۤءَ ٱللَّهُ حَفِیظٌ عَلَیۡهِمۡ وَمَاۤ أَنتَ عَلَیۡهِم بِوَكِیلࣲ ﴿٦﴾
तथा जिन लोगों ने अल्लाह के सिवा दूसरे संरक्षक बना लिए, अल्लाह उनपर निगरानी रखे हुए है और आप कदापि उनके उत्तरदायी[3] नहीं हैं।
وَكَذَ ٰلِكَ أَوۡحَیۡنَاۤ إِلَیۡكَ قُرۡءَانًا عَرَبِیࣰّا لِّتُنذِرَ أُمَّ ٱلۡقُرَىٰ وَمَنۡ حَوۡلَهَا وَتُنذِرَ یَوۡمَ ٱلۡجَمۡعِ لَا رَیۡبَ فِیهِۚ فَرِیقࣱ فِی ٱلۡجَنَّةِ وَفَرِیقࣱ فِی ٱلسَّعِیرِ ﴿٧﴾
तथा इसी प्रकार, हमने आपकी ओर अरबी क़ुरआन की वह़्य (प्रकाशना) भेजी है, ताकि आप मक्का[4] वासियों को और उसके आस-पास के लोगों को सावधान कर दें, और एकत्र होने के दिन[5] से सचेत कर दें, जिसमें कोई संदेह नहीं। एक समूह जन्नत में तथा एक समूह भड़कती आग में होगा।
وَلَوۡ شَاۤءَ ٱللَّهُ لَجَعَلَهُمۡ أُمَّةࣰ وَ ٰحِدَةࣰ وَلَـٰكِن یُدۡخِلُ مَن یَشَاۤءُ فِی رَحۡمَتِهِۦۚ وَٱلظَّـٰلِمُونَ مَا لَهُم مِّن وَلِیࣲّ وَلَا نَصِیرٍ ﴿٨﴾
और यदि अल्लाह चाहता, तो अवश्य उन्हें एक समुदाय[6] बना देता। परंतु वह जिसे चाहता है अपनी रहमत में दाख़िल करता है और ज़ालिमों का न तो कोई दोस्त है और न कोई मददगार।
أَمِ ٱتَّخَذُواْ مِن دُونِهِۦۤ أَوۡلِیَاۤءَۖ فَٱللَّهُ هُوَ ٱلۡوَلِیُّ وَهُوَ یُحۡیِ ٱلۡمَوۡتَىٰ وَهُوَ عَلَىٰ كُلِّ شَیۡءࣲ قَدِیرࣱ ﴿٩﴾
या उन्होंने उसके सिवा अन्य संरक्षक बना रखे हैं? सो अल्लाह ही वास्तविक संरक्षक है और वही मुर्दों को जीवित करेगा और वह हर चीज़ पर सर्वशक्तिमान है।[7]
وَمَا ٱخۡتَلَفۡتُمۡ فِیهِ مِن شَیۡءࣲ فَحُكۡمُهُۥۤ إِلَى ٱللَّهِۚ ذَ ٰلِكُمُ ٱللَّهُ رَبِّی عَلَیۡهِ تَوَكَّلۡتُ وَإِلَیۡهِ أُنِیبُ ﴿١٠﴾
और तुम जिस चीज़ के बारे में भी मतभेद करो, उसका निर्णय अल्लाह की ओर है।[8] वही अल्लाह मेरा रब है, उसी पर मैंने भरोसा किया है तथा उसी की ओर मैं लौटता हूँ।
فَاطِرُ ٱلسَّمَـٰوَ ٰتِ وَٱلۡأَرۡضِۚ جَعَلَ لَكُم مِّنۡ أَنفُسِكُمۡ أَزۡوَ ٰجࣰا وَمِنَ ٱلۡأَنۡعَـٰمِ أَزۡوَ ٰجࣰا یَذۡرَؤُكُمۡ فِیهِۚ لَیۡسَ كَمِثۡلِهِۦ شَیۡءࣱۖ وَهُوَ ٱلسَّمِیعُ ٱلۡبَصِیرُ ﴿١١﴾
(वह) आकाशों तथा धरती का रचयिता है। उसने तुम्हारे लिए तुम्हारी अपनी ही जाति से जोड़े बनाए तथा पशुओं से भी जोड़े। वह तुम्हें इसमें फैलाता है। उसके जैसी[9] कोई चीज़ नहीं और वह सब कुछ सुनने वाला, सब कुछ देखने वाला है।
لَهُۥ مَقَالِیدُ ٱلسَّمَـٰوَ ٰتِ وَٱلۡأَرۡضِۖ یَبۡسُطُ ٱلرِّزۡقَ لِمَن یَشَاۤءُ وَیَقۡدِرُۚ إِنَّهُۥ بِكُلِّ شَیۡءٍ عَلِیمࣱ ﴿١٢﴾
आकाशों तथा धरती की कुंजियाँ उसी के पास हैं। वह जिसके लिए चाहता है, रोज़ी कुशादा कर देता है और (जिसकी चाहता है) तंग कर देता है। निःसंदेह वह प्रत्येक वस्तु को ख़ूब जानने वाला है।[10]
۞ شَرَعَ لَكُم مِّنَ ٱلدِّینِ مَا وَصَّىٰ بِهِۦ نُوحࣰا وَٱلَّذِیۤ أَوۡحَیۡنَاۤ إِلَیۡكَ وَمَا وَصَّیۡنَا بِهِۦۤ إِبۡرَ ٰهِیمَ وَمُوسَىٰ وَعِیسَىٰۤۖ أَنۡ أَقِیمُواْ ٱلدِّینَ وَلَا تَتَفَرَّقُواْ فِیهِۚ كَبُرَ عَلَى ٱلۡمُشۡرِكِینَ مَا تَدۡعُوهُمۡ إِلَیۡهِۚ ٱللَّهُ یَجۡتَبِیۤ إِلَیۡهِ مَن یَشَاۤءُ وَیَهۡدِیۤ إِلَیۡهِ مَن یُنِیبُ ﴿١٣﴾
उसने तुम्हारे लिए वही धर्म निर्धारित[11] किया है, जिसका आदेश उसने नूह़ को दिया और जिसकी वह़्य हमने आपकी ओर की, तथा जिसका आदेश हमने इबराहीम तथा मूसा और ईसा को दिया, यह कि इस धर्म को क़ायम करो और उसके विषय में अलग-अलग न हो जाओ। बहुदेववादियों पर वह बात भारी है जिसकी ओर आप उन्हें बुलाते हैं। अल्लाह जिसे चाहता है, अपने लिए चुन लेता है और अपनी ओर मार्ग उसी को दिखाता है, जो उसकी ओर लौटता है।
وَمَا تَفَرَّقُوۤاْ إِلَّا مِنۢ بَعۡدِ مَا جَاۤءَهُمُ ٱلۡعِلۡمُ بَغۡیَۢا بَیۡنَهُمۡۚ وَلَوۡلَا كَلِمَةࣱ سَبَقَتۡ مِن رَّبِّكَ إِلَىٰۤ أَجَلࣲ مُّسَمࣰّى لَّقُضِیَ بَیۡنَهُمۡۚ وَإِنَّ ٱلَّذِینَ أُورِثُواْ ٱلۡكِتَـٰبَ مِنۢ بَعۡدِهِمۡ لَفِی شَكࣲّ مِّنۡهُ مُرِیبࣲ ﴿١٤﴾
और वे[12] लोग आपस की ज़िद के कारण इसके पश्चात् अलग-अलग हुए कि उनके पास ज्ञान आ चुका था। तथा यदि वह बात न होती जो आपके पालनहार की ओर से एक निश्चित समय के लिए पहले तय[13] हो चुकी, तो अवश्य उनके बीच निर्णय कर दिया जाता। और निःसंदेह वे लोग जो उनके पश्चात् पुस्तक के उत्तराधिकारी बनाए[14] गए, वे इस (क़ुरआन) के बारे में दुविधा में डालने वाले संदेह में पड़े हैं।
فَلِذَ ٰلِكَ فَٱدۡعُۖ وَٱسۡتَقِمۡ كَمَاۤ أُمِرۡتَۖ وَلَا تَتَّبِعۡ أَهۡوَاۤءَهُمۡۖ وَقُلۡ ءَامَنتُ بِمَاۤ أَنزَلَ ٱللَّهُ مِن كِتَـٰبࣲۖ وَأُمِرۡتُ لِأَعۡدِلَ بَیۡنَكُمُۖ ٱللَّهُ رَبُّنَا وَرَبُّكُمۡۖ لَنَاۤ أَعۡمَـٰلُنَا وَلَكُمۡ أَعۡمَـٰلُكُمۡۖ لَا حُجَّةَ بَیۡنَنَا وَبَیۡنَكُمُۖ ٱللَّهُ یَجۡمَعُ بَیۡنَنَاۖ وَإِلَیۡهِ ٱلۡمَصِیرُ ﴿١٥﴾
अतः आप लोगों को इसी (धर्म) की ओर बुलाएँ और (उसपर) जमें रहें, जैसाकि आपको आदेश दिया गया है और उनकी इच्छाओं का पालन न करें, तथा कह दें कि अल्लाह ने जो भी किताब उतारी[15] है मैं उसपर ईमान लाया। तथा मुझे आदेश दिया गया है कि मैं तुम्हारे बीच न्याय करूँ। अल्लाह ही हमारा पालनहार तथा तुम्हारा पालनहार है। हमारे लिए हमारे कर्म हैं तथा तुम्हारे लिए तुम्हारे कर्म। हमारे और तुम्हारे बीच कोई झगड़ा नहीं। अल्लाह हम सभी को एकत्र करेगा तथा उसी की ओर लौटकर जाना है।[16]
وَٱلَّذِینَ یُحَاۤجُّونَ فِی ٱللَّهِ مِنۢ بَعۡدِ مَا ٱسۡتُجِیبَ لَهُۥ حُجَّتُهُمۡ دَاحِضَةٌ عِندَ رَبِّهِمۡ وَعَلَیۡهِمۡ غَضَبࣱ وَلَهُمۡ عَذَابࣱ شَدِیدٌ ﴿١٦﴾
तथा जो लोग अल्लाह के (धर्म के) बारे में झगड़ते हैं, इसके पश्चात कि उसे[17] स्वीकार कर लिया गया, उनका तर्क उनके रब के यहाँ बातिल (व्यर्थ) है, तथा उनपर बड़ा प्रकोप है और उनके लिए बुहत कड़ी यातना है।
ٱللَّهُ ٱلَّذِیۤ أَنزَلَ ٱلۡكِتَـٰبَ بِٱلۡحَقِّ وَٱلۡمِیزَانَۗ وَمَا یُدۡرِیكَ لَعَلَّ ٱلسَّاعَةَ قَرِیبࣱ ﴿١٧﴾
अल्लाह ही है जिसने सत्य के साथ यह पुस्तक उतारी तथा तराज़ू[18] भी, और आपको क्या चीज़ सूचित करती है शायद कि क़ियामत क़रीब हो।
یَسۡتَعۡجِلُ بِهَا ٱلَّذِینَ لَا یُؤۡمِنُونَ بِهَاۖ وَٱلَّذِینَ ءَامَنُواْ مُشۡفِقُونَ مِنۡهَا وَیَعۡلَمُونَ أَنَّهَا ٱلۡحَقُّۗ أَلَاۤ إِنَّ ٱلَّذِینَ یُمَارُونَ فِی ٱلسَّاعَةِ لَفِی ضَلَـٰلِۭ بَعِیدٍ ﴿١٨﴾
उसे वे लोग शीघ्र माँगते हैं, जो उसपर ईमान नहीं रखते, तथा वे लोग जो उसपर विश्वास रखते हैं, वे उससे डरने वाले हैं और जानते हैं कि निःसंदेह वह सत्य है। सुनो! निःसंदेह जो लोग क़ियामत के विषय में बहस (संदेह) करते हैं, निश्चय वे बहुत दूर की गुमराही में हैं।
ٱللَّهُ لَطِیفُۢ بِعِبَادِهِۦ یَرۡزُقُ مَن یَشَاۤءُۖ وَهُوَ ٱلۡقَوِیُّ ٱلۡعَزِیزُ ﴿١٩﴾
अल्लाह अपने बंदों पर बड़ा दयालु है। वह जिसे चाहता है रोज़ी देता है और वही सर्वशक्तिमान, सब पर प्रभुत्वशाली है।
مَن كَانَ یُرِیدُ حَرۡثَ ٱلۡـَٔاخِرَةِ نَزِدۡ لَهُۥ فِی حَرۡثِهِۦۖ وَمَن كَانَ یُرِیدُ حَرۡثَ ٱلدُّنۡیَا نُؤۡتِهِۦ مِنۡهَا وَمَا لَهُۥ فِی ٱلۡـَٔاخِرَةِ مِن نَّصِیبٍ ﴿٢٠﴾
जो कोई आख़िरत की खेती[19] चाहता है, हम उसके लिए उसकी खेती में बढ़ोतरी कर देंगे, और जो कोई दुनिया की खेती चाहता है, हम उसे उसमें से कुछ दे देंगे, और आख़िरत में उसका कोई हिस्सा नहीं होगा।
أَمۡ لَهُمۡ شُرَكَـٰۤؤُاْ شَرَعُواْ لَهُم مِّنَ ٱلدِّینِ مَا لَمۡ یَأۡذَنۢ بِهِ ٱللَّهُۚ وَلَوۡلَا كَلِمَةُ ٱلۡفَصۡلِ لَقُضِیَ بَیۡنَهُمۡۗ وَإِنَّ ٱلظَّـٰلِمِینَ لَهُمۡ عَذَابٌ أَلِیمࣱ ﴿٢١﴾
या इन (मुश्रिकों) के कुछ ऐसे साझी[20] हैं, जिन्होंने उनके लिए धर्म का एक ऐसा नियम निर्धारित किया है जिसकी अल्लाह ने अनुमति नहीं दी है? और यदि नियत की हुई बात न होती, तो अवश्य उनके बीच निर्णय कर दिया जाता तथा निश्चय ही अत्याचारियों के लिए दुखद यातना है।
تَرَى ٱلظَّـٰلِمِینَ مُشۡفِقِینَ مِمَّا كَسَبُواْ وَهُوَ وَاقِعُۢ بِهِمۡۗ وَٱلَّذِینَ ءَامَنُواْ وَعَمِلُواْ ٱلصَّـٰلِحَـٰتِ فِی رَوۡضَاتِ ٱلۡجَنَّاتِۖ لَهُم مَّا یَشَاۤءُونَ عِندَ رَبِّهِمۡۚ ذَ ٰلِكَ هُوَ ٱلۡفَضۡلُ ٱلۡكَبِیرُ ﴿٢٢﴾
आप अत्याचारियों को देखेंगे कि वे उससे डरने वाले होंगे जो उन्होंने कमाया, हालाँकि वह उनपर आकर रहने वाला है, तथा जो लोग ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए, वे जन्नतों के बागों में होंगे। उनके लिए जो कुछ भी वे चाहेंगे उनके रब के पास होगा। यही बहुत बड़ा अनुग्रह है।
ذَ ٰلِكَ ٱلَّذِی یُبَشِّرُ ٱللَّهُ عِبَادَهُ ٱلَّذِینَ ءَامَنُواْ وَعَمِلُواْ ٱلصَّـٰلِحَـٰتِۗ قُل لَّاۤ أَسۡـَٔلُكُمۡ عَلَیۡهِ أَجۡرًا إِلَّا ٱلۡمَوَدَّةَ فِی ٱلۡقُرۡبَىٰۗ وَمَن یَقۡتَرِفۡ حَسَنَةࣰ نَّزِدۡ لَهُۥ فِیهَا حُسۡنًاۚ إِنَّ ٱللَّهَ غَفُورࣱ شَكُورٌ ﴿٢٣﴾
यही वह चीज़ है, जिसकी शुभ-सूचना अल्लाह अपने उन बंदों को देता है, जो ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कार्य किए। आप कह दें : मैं इसपर तुमसे कोई पारिश्रमिक नहीं माँगता, रिश्तेदारी के कारण प्रेम-भाव के सिवा।[21] और जो कोई नेकी कमाएगा, हम उसके लिए उसमें अच्छाई की अभिवृद्धि करेंगे। निश्चय अल्लाह अत्यंत क्षमाशील, अति गुण-ग्राहक है।
أَمۡ یَقُولُونَ ٱفۡتَرَىٰ عَلَى ٱللَّهِ كَذِبࣰاۖ فَإِن یَشَإِ ٱللَّهُ یَخۡتِمۡ عَلَىٰ قَلۡبِكَۗ وَیَمۡحُ ٱللَّهُ ٱلۡبَـٰطِلَ وَیُحِقُّ ٱلۡحَقَّ بِكَلِمَـٰتِهِۦۤۚ إِنَّهُۥ عَلِیمُۢ بِذَاتِ ٱلصُّدُورِ ﴿٢٤﴾
या वे कहते हैं कि उसने अल्लाह पर झूठ गढ़ लिया है? तो यदि अल्लाह चाहे, तो आपके दिल पर मुहर लगा दे।[22] और अल्लाह असत्य को मिटा देता है और सत्य को अपने शब्दों (प्रमाणों) द्वारा साबित कर देता है। निश्चय वह सीनों (दिलों) की बातों को ख़ूब जानने वाला है।
وَهُوَ ٱلَّذِی یَقۡبَلُ ٱلتَّوۡبَةَ عَنۡ عِبَادِهِۦ وَیَعۡفُواْ عَنِ ٱلسَّیِّـَٔاتِ وَیَعۡلَمُ مَا تَفۡعَلُونَ ﴿٢٥﴾
वही है, जो अपने बंदों की तौबा क़बूल करता है और बुराइयों[23] को माफ़ करता है और जो कुछ तुम करते हो, उसे जानता है।
وَیَسۡتَجِیبُ ٱلَّذِینَ ءَامَنُواْ وَعَمِلُواْ ٱلصَّـٰلِحَـٰتِ وَیَزِیدُهُم مِّن فَضۡلِهِۦۚ وَٱلۡكَـٰفِرُونَ لَهُمۡ عَذَابࣱ شَدِیدࣱ ﴿٢٦﴾
और उन लोगों की प्रार्थना स्वीकार करता है, जो ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कार्य किए तथा उन्हें अपने अनुग्रह से अधिक प्रदान करता है और जो काफ़िर हैं उनके लिए कड़ी यातना है।
۞ وَلَوۡ بَسَطَ ٱللَّهُ ٱلرِّزۡقَ لِعِبَادِهِۦ لَبَغَوۡاْ فِی ٱلۡأَرۡضِ وَلَـٰكِن یُنَزِّلُ بِقَدَرࣲ مَّا یَشَاۤءُۚ إِنَّهُۥ بِعِبَادِهِۦ خَبِیرُۢ بَصِیرࣱ ﴿٢٧﴾
और यदि अल्लाह अपने (सब) बंदों के लिए रोज़ी कुशादा कर देता, तो वे धरती में सरकशी[24] करते। परंतु वह एक अनुमान से उतारता है, जितना चाहता है। निश्चय वह अपने बंदों से भली-भाँति अवगत, भली-भाँति देखने वाला है।
وَهُوَ ٱلَّذِی یُنَزِّلُ ٱلۡغَیۡثَ مِنۢ بَعۡدِ مَا قَنَطُواْ وَیَنشُرُ رَحۡمَتَهُۥۚ وَهُوَ ٱلۡوَلِیُّ ٱلۡحَمِیدُ ﴿٢٨﴾
तथा वही है जो बारिश बरसाता है, इसके बाद कि वे निराश हो चुके होते हैं और अपनी दया फैला[25] देता है और वही संरक्षक, सराहनीय है।
وَمِنۡ ءَایَـٰتِهِۦ خَلۡقُ ٱلسَّمَـٰوَ ٰتِ وَٱلۡأَرۡضِ وَمَا بَثَّ فِیهِمَا مِن دَاۤبَّةࣲۚ وَهُوَ عَلَىٰ جَمۡعِهِمۡ إِذَا یَشَاۤءُ قَدِیرࣱ ﴿٢٩﴾
तथा उसकी निशानियों में से आकाशों और धरती का पैदा करना है और वे प्राणी जो उसने उन दोनों में फैला रखे हैं, और वह उन्हें इकट्ठा करने में जब चाहे पूर्ण सक्षम है।
وَمَاۤ أَصَـٰبَكُم مِّن مُّصِیبَةࣲ فَبِمَا كَسَبَتۡ أَیۡدِیكُمۡ وَیَعۡفُواْ عَن كَثِیرࣲ ﴿٣٠﴾
तथा जो भी विपत्ति तुम्हें पहुँची, वह उसके कारण है जो तुम्हारे हाथों ने कमाया। तथा वह बहुत-सी चीज़ों को क्षमा कर देता है।[26]
وَمَاۤ أَنتُم بِمُعۡجِزِینَ فِی ٱلۡأَرۡضِۖ وَمَا لَكُم مِّن دُونِ ٱللَّهِ مِن وَلِیࣲّ وَلَا نَصِیرࣲ ﴿٣١﴾
और तुम धरती में (अल्लाह को) विवश करने वाले नहीं हो और न अल्लाह के सिवा तुम्हारा कोई संरक्षक है और न कोई सहायक।
وَمِنۡ ءَایَـٰتِهِ ٱلۡجَوَارِ فِی ٱلۡبَحۡرِ كَٱلۡأَعۡلَـٰمِ ﴿٣٢﴾
तथा उसकी निशानियों में से समुद्र में चलने वाले जहाज़ हैं, जो पहाड़ों के समान हैं।
إِن یَشَأۡ یُسۡكِنِ ٱلرِّیحَ فَیَظۡلَلۡنَ رَوَاكِدَ عَلَىٰ ظَهۡرِهِۦۤۚ إِنَّ فِی ذَ ٰلِكَ لَـَٔایَـٰتࣲ لِّكُلِّ صَبَّارࣲ شَكُورٍ ﴿٣٣﴾
यदि वह चाहे तो वायु को ठहरा दे, तो वे उसकी सतह पर खड़े रह जाएँ। निःसंदेह इसमें हर ऐसे व्यक्ति के लिए निश्चय कई निशानियाँ हैं जो बहुत धैर्यवान, बड़ा कृतज्ञ है।
أَوۡ یُوبِقۡهُنَّ بِمَا كَسَبُواْ وَیَعۡفُ عَن كَثِیرࣲ ﴿٣٤﴾
या वह उन्हें उसके कारण विनष्ट[27] कर दे जो उन्होंने कमाया और वह बहुत-से पापों को क्षमा कर देता है।
وَیَعۡلَمَ ٱلَّذِینَ یُجَـٰدِلُونَ فِیۤ ءَایَـٰتِنَا مَا لَهُم مِّن مَّحِیصࣲ ﴿٣٥﴾
तथा वे लोग जान लें, जो हमारी आयतों में झगड़ते हैं कि उनके लिए भागने का कोई स्थान नहीं है।
فَمَاۤ أُوتِیتُم مِّن شَیۡءࣲ فَمَتَـٰعُ ٱلۡحَیَوٰةِ ٱلدُّنۡیَاۚ وَمَا عِندَ ٱللَّهِ خَیۡرࣱ وَأَبۡقَىٰ لِلَّذِینَ ءَامَنُواْ وَعَلَىٰ رَبِّهِمۡ یَتَوَكَّلُونَ ﴿٣٦﴾
तुम्हें जो चीज़ भी दी गई है, वह सांसारिक जीवन का सामान है, तथा जो कुछ अल्लाह के पास है, वह उत्तम और स्थायी[28] है, उन लोगों के लिए जो अल्लाह पर ईमान लाए तथा केवल अपने पालनहार पर भरोसा रखते हैं।
وَٱلَّذِینَ یَجۡتَنِبُونَ كَبَـٰۤىِٕرَ ٱلۡإِثۡمِ وَٱلۡفَوَ ٰحِشَ وَإِذَا مَا غَضِبُواْ هُمۡ یَغۡفِرُونَ ﴿٣٧﴾
तथा वे लोग जो बड़े पापों एवं निर्लज्जता के कामों से बचते हैं और जब भी गुस्सा आए तो माफ कर देते हैं।
وَٱلَّذِینَ ٱسۡتَجَابُواْ لِرَبِّهِمۡ وَأَقَامُواْ ٱلصَّلَوٰةَ وَأَمۡرُهُمۡ شُورَىٰ بَیۡنَهُمۡ وَمِمَّا رَزَقۡنَـٰهُمۡ یُنفِقُونَ ﴿٣٨﴾
तथा जिन लोगों ने अपने रब का हुक्म माना और नमाज़ क़ायम की और उनका काम आपस में परामर्श करना है[29] और जो कुछ हमने उन्हें दिया है उसमें से ख़र्च करते हैं।
وَٱلَّذِینَ إِذَاۤ أَصَابَهُمُ ٱلۡبَغۡیُ هُمۡ یَنتَصِرُونَ ﴿٣٩﴾
और वे लोग कि जब उनपर अत्याचार होता है, तो वे बदला लेते हैं।
وَجَزَ ٰۤؤُاْ سَیِّئَةࣲ سَیِّئَةࣱ مِّثۡلُهَاۖ فَمَنۡ عَفَا وَأَصۡلَحَ فَأَجۡرُهُۥ عَلَى ٱللَّهِۚ إِنَّهُۥ لَا یُحِبُّ ٱلظَّـٰلِمِینَ ﴿٤٠﴾
और किसी बुराई का बदला उसी जैसी बुराई[30] है। फिर जो क्षमा कर दे तथा सुधार कर ले, तो उसका प्रतिफल अल्लाह के ज़िम्मे है। निःसंदेह वह अत्याचारियों से प्रेम नहीं करता।
وَلَمَنِ ٱنتَصَرَ بَعۡدَ ظُلۡمِهِۦ فَأُوْلَـٰۤىِٕكَ مَا عَلَیۡهِم مِّن سَبِیلٍ ﴿٤١﴾
तथा जो अपने ऊपर अत्याचार होने के पश्चात् बदला ले ले, तो ये वे लोग हैं जिनपर कोई दोष नहीं।
إِنَّمَا ٱلسَّبِیلُ عَلَى ٱلَّذِینَ یَظۡلِمُونَ ٱلنَّاسَ وَیَبۡغُونَ فِی ٱلۡأَرۡضِ بِغَیۡرِ ٱلۡحَقِّۚ أُوْلَـٰۤىِٕكَ لَهُمۡ عَذَابٌ أَلِیمࣱ ﴿٤٢﴾
दोष तो केवल उन्हीं पर है, जो लोगों पर अत्याचार करते हैं और धरती पर बिना अधिकार के सरकशी करते हैं। यही लोग हैं जिनके लिए कष्टदायक यातना है।
وَلَمَن صَبَرَ وَغَفَرَ إِنَّ ذَ ٰلِكَ لَمِنۡ عَزۡمِ ٱلۡأُمُورِ ﴿٤٣﴾
और निःसंदेह जो सब्र करे तथा क्षमा कर दे, तो निःसदंहे यह निश्चय बड़े साहस के कामों में से है।[31]
وَمَن یُضۡلِلِ ٱللَّهُ فَمَا لَهُۥ مِن وَلِیࣲّ مِّنۢ بَعۡدِهِۦۗ وَتَرَى ٱلظَّـٰلِمِینَ لَمَّا رَأَوُاْ ٱلۡعَذَابَ یَقُولُونَ هَلۡ إِلَىٰ مَرَدࣲّ مِّن سَبِیلࣲ ﴿٤٤﴾
तथा जिसे अल्लाह गुमराह कर दे, तो उसके बाद उसका कोई सहायक नहीं। तथा आप अत्याचारियों को देखेंगे कि जब वे यातना देखेंगे, तो कहेंगे : क्या वापसी का कोई रास्ता है?[32]
وَتَرَىٰهُمۡ یُعۡرَضُونَ عَلَیۡهَا خَـٰشِعِینَ مِنَ ٱلذُّلِّ یَنظُرُونَ مِن طَرۡفٍ خَفِیࣲّۗ وَقَالَ ٱلَّذِینَ ءَامَنُوۤاْ إِنَّ ٱلۡخَـٰسِرِینَ ٱلَّذِینَ خَسِرُوۤاْ أَنفُسَهُمۡ وَأَهۡلِیهِمۡ یَوۡمَ ٱلۡقِیَـٰمَةِۗ أَلَاۤ إِنَّ ٱلظَّـٰلِمِینَ فِی عَذَابࣲ مُّقِیمࣲ ﴿٤٥﴾
तथा आप उन्हें देखेंगे कि वे उस (आग) पर इस दशा में पेश किए जाएँगे कि अपमान से झुके हुए, छिपी आँखों से देख रहे होंगे। तथा ईमान वाले कहेंगे : वास्तव में, असल घाटा उठाने वाले वही लोग हैं, जिन्होंने क़ियामत के दिन अपने आपको और अपने परिवार को घाटे में डाल दिया। सुन लो! निःसंदेह अत्याचारी लोग स्थायी यातना में होंगे।
وَمَا كَانَ لَهُم مِّنۡ أَوۡلِیَاۤءَ یَنصُرُونَهُم مِّن دُونِ ٱللَّهِۗ وَمَن یُضۡلِلِ ٱللَّهُ فَمَا لَهُۥ مِن سَبِیلٍ ﴿٤٦﴾
तथा उनके कोई सहायक नहीं होंगे, जो अल्लाह के मुक़ाबले में उनकी सहायता करें। और जिसे अल्लाह राह से भटका दे, फिर उसके लिए कोई मार्ग नहीं।
ٱسۡتَجِیبُواْ لِرَبِّكُم مِّن قَبۡلِ أَن یَأۡتِیَ یَوۡمࣱ لَّا مَرَدَّ لَهُۥ مِنَ ٱللَّهِۚ مَا لَكُم مِّن مَّلۡجَإࣲ یَوۡمَىِٕذࣲ وَمَا لَكُم مِّن نَّكِیرࣲ ﴿٤٧﴾
अपने पालनहार का निमंत्रण स्वीकार करो, इससे पहले कि वह दिन आए, जिसे अल्लाह की ओर से टलना नहीं। उस दिन तुम्हारे लिए न कोई शरण स्थल होगा और न तुम्हारे लिए इनकार का कोई रास्ता होगा।
فَإِنۡ أَعۡرَضُواْ فَمَاۤ أَرۡسَلۡنَـٰكَ عَلَیۡهِمۡ حَفِیظًاۖ إِنۡ عَلَیۡكَ إِلَّا ٱلۡبَلَـٰغُۗ وَإِنَّاۤ إِذَاۤ أَذَقۡنَا ٱلۡإِنسَـٰنَ مِنَّا رَحۡمَةࣰ فَرِحَ بِهَاۖ وَإِن تُصِبۡهُمۡ سَیِّئَةُۢ بِمَا قَدَّمَتۡ أَیۡدِیهِمۡ فَإِنَّ ٱلۡإِنسَـٰنَ كَفُورࣱ ﴿٤٨﴾
फिर यदि वे मुँह फेर लें, तो हमने आपको उनपर कोई संरक्षक बनाकर नहीं भेजा। आपका दायित्व तो केवल (संदेश) पहुँचा देना है। और निःसंदेह जब हम मनुष्य को अपनी ओर से कोई दया चखाते हैं, तो वह उससे खुश हो जाता है, और यदि उनपर उसके कारण कोई विपत्ति आ पड़ती है, जो उनके हाथों ने आगे भेजा है, तो निःसंदेह मनुष्य बड़ा नाशुक्रा है।
لِّلَّهِ مُلۡكُ ٱلسَّمَـٰوَ ٰتِ وَٱلۡأَرۡضِۚ یَخۡلُقُ مَا یَشَاۤءُۚ یَهَبُ لِمَن یَشَاۤءُ إِنَـٰثࣰا وَیَهَبُ لِمَن یَشَاۤءُ ٱلذُّكُورَ ﴿٤٩﴾
आकाशों तथा धरती का राज्य अल्लाह ही का है। वह जो चाहता है पैदा करता है, जिसे चाहता है बेटियाँ देता है और जिसे चाहता है बेटे देता है।
أَوۡ یُزَوِّجُهُمۡ ذُكۡرَانࣰا وَإِنَـٰثࣰاۖ وَیَجۡعَلُ مَن یَشَاۤءُ عَقِیمًاۚ إِنَّهُۥ عَلِیمࣱ قَدِیرࣱ ﴿٥٠﴾
या उन्हें बेटे-बेटियाँ[33] मिलाकर देता है और जिसे चाहता है बाँझ कर देता है। निश्चय ही वह सब कुछ जानने वाला, हर चीज़ की शक्ति रखने वाला है।
۞ وَمَا كَانَ لِبَشَرٍ أَن یُكَلِّمَهُ ٱللَّهُ إِلَّا وَحۡیًا أَوۡ مِن وَرَاۤىِٕ حِجَابٍ أَوۡ یُرۡسِلَ رَسُولࣰا فَیُوحِیَ بِإِذۡنِهِۦ مَا یَشَاۤءُۚ إِنَّهُۥ عَلِیٌّ حَكِیمࣱ ﴿٥١﴾
और किसी मनुष्य के लिए संभव नहीं कि अल्लाह उससे बात करे, परंतु वह़्य[34] के द्वारा, अथवा पर्दे के पीछे से, अथवा यह कि कोई दूत (फ़रिश्ता) भेजे, फिर वह उसकी अनुमति से वह़्य करे, जो कुछ वह चाहे। निःसंदेह वह सबसे ऊँचा, पूर्ण हिकमत वाला है।
وَكَذَ ٰلِكَ أَوۡحَیۡنَاۤ إِلَیۡكَ رُوحࣰا مِّنۡ أَمۡرِنَاۚ مَا كُنتَ تَدۡرِی مَا ٱلۡكِتَـٰبُ وَلَا ٱلۡإِیمَـٰنُ وَلَـٰكِن جَعَلۡنَـٰهُ نُورࣰا نَّهۡدِی بِهِۦ مَن نَّشَاۤءُ مِنۡ عِبَادِنَاۚ وَإِنَّكَ لَتَهۡدِیۤ إِلَىٰ صِرَ ٰطࣲ مُّسۡتَقِیمࣲ ﴿٥٢﴾
और इसी प्रकार हमने आपकी ओर अपने आदेश से एक रूह़ (क़ुरआन) की वह़्य की। आप नहीं जानते थे कि पुस्तक क्या है और न यह कि ईमान[35] क्या है। परंतु हमने उसे एक ऐसा प्रकाश बनाया दिया है, जिसके द्वारा हम अपने बंदों में से जिसे चाहते हैं, मार्ग दिखाते हैं। और निःसंदेह आप सीधी राह[36] की ओर मार्गदर्शन करते हैं।