إِنَّمَا تُوعَدُونَ لَصَادِقࣱ ﴿٥﴾
निःसंदेह जो तुमसे वादा किया जाता है, निश्चय वह सत्य है।[1]
إِنَّكُمۡ لَفِی قَوۡلࣲ مُّخۡتَلِفࣲ ﴿٨﴾
निःसंदेह तुम निश्चय एक विवादास्पद बात[2] में पड़े हो।
یَسۡـَٔلُونَ أَیَّانَ یَوۡمُ ٱلدِّینِ ﴿١٢﴾
वे पूछते[3] हैं कि बदले का दिन कब है?
ذُوقُواْ فِتۡنَتَكُمۡ هَـٰذَا ٱلَّذِی كُنتُم بِهِۦ تَسۡتَعۡجِلُونَ ﴿١٤﴾
अपने फ़ितने (यातना) का मज़ा चखो, यही है जिसके लिए तुम जल्दी मचा रहे थे।
إِنَّ ٱلۡمُتَّقِینَ فِی جَنَّـٰتࣲ وَعُیُونٍ ﴿١٥﴾
निःसंदेह परहेज़गार लोग बाग़ों और जल स्रोतों में होंगे।
ءَاخِذِینَ مَاۤ ءَاتَىٰهُمۡ رَبُّهُمۡۚ إِنَّهُمۡ كَانُواْ قَبۡلَ ذَ ٰلِكَ مُحۡسِنِینَ ﴿١٦﴾
जो कुछ उनका रब उन्हें देगा, उसे वे लेने वाले होंगे। निश्चय ही वे इससे पहले नेकी करने वाले थे।
كَانُواْ قَلِیلࣰا مِّنَ ٱلَّیۡلِ مَا یَهۡجَعُونَ ﴿١٧﴾
वे रात के बहुत थोड़े भाग में सोते थे।[4]
وَبِٱلۡأَسۡحَارِ هُمۡ یَسۡتَغۡفِرُونَ ﴿١٨﴾
तथा रात्रि की अंतिम घड़ियों[5] में वे क्षमा याचना करते थे।
وَفِیۤ أَمۡوَ ٰلِهِمۡ حَقࣱّ لِّلسَّاۤىِٕلِ وَٱلۡمَحۡرُومِ ﴿١٩﴾
और उनके धनों में माँगने वाले तथा वंचित[6] के लिए एक हक़ (हिस्सा) था।
وَفِی ٱلۡأَرۡضِ ءَایَـٰتࣱ لِّلۡمُوقِنِینَ ﴿٢٠﴾
तथा धरती में विश्वास करने वालों के लिए बहुत-सी निशानियाँ हैं।
وَفِی ٱلسَّمَاۤءِ رِزۡقُكُمۡ وَمَا تُوعَدُونَ ﴿٢٢﴾
और आकाश ही में तुम्हारी रोज़ी[7] है तथा वह भी जिसका तुमसे वादा किया जा रहा है।
فَوَرَبِّ ٱلسَّمَاۤءِ وَٱلۡأَرۡضِ إِنَّهُۥ لَحَقࣱّ مِّثۡلَ مَاۤ أَنَّكُمۡ تَنطِقُونَ ﴿٢٣﴾
सो क़सम है आकाश एवं धरती के पालनहार की! निःसंदेह यह बात निश्चित रूप से सत्य है, इस बात की तरह कि निःसंदेह तुम बोलते हो।[8]
هَلۡ أَتَىٰكَ حَدِیثُ ضَیۡفِ إِبۡرَ ٰهِیمَ ٱلۡمُكۡرَمِینَ ﴿٢٤﴾
क्या आपके पास इबराहीम के सम्मानित अतिथियों की सूचना आई है?
إِذۡ دَخَلُواْ عَلَیۡهِ فَقَالُواْ سَلَـٰمࣰاۖ قَالَ سَلَـٰمࣱ قَوۡمࣱ مُّنكَرُونَ ﴿٢٥﴾
जब वे उसके पास आए, तो उन्होंने सलाम कहा। उसने कहा : सलाम हो। कुछ अपरिचित लोग हैं।
فَرَاغَ إِلَىٰۤ أَهۡلِهِۦ فَجَاۤءَ بِعِجۡلࣲ سَمِینࣲ ﴿٢٦﴾
फिर वह चुपके से अपने घरवालों के पास गया। फिर एक मोटा-ताज़ा (भुना हुआ) बछड़ा ले आया।
فَقَرَّبَهُۥۤ إِلَیۡهِمۡ قَالَ أَلَا تَأۡكُلُونَ ﴿٢٧﴾
फिर उसे उनके सामने रख दिया। कहा : क्या तुम नहीं खाते?
فَأَوۡجَسَ مِنۡهُمۡ خِیفَةࣰۖ قَالُواْ لَا تَخَفۡۖ وَبَشَّرُوهُ بِغُلَـٰمٍ عَلِیمࣲ ﴿٢٨﴾
तो उसने उनसे दिल में डर महसूस किया। उन्होंने कहा : डरो नहीं। और उन्होंने उसे एक बहुत ही ज्ञानी पुत्र की शुभ-सूचना दी।
فَأَقۡبَلَتِ ٱمۡرَأَتُهُۥ فِی صَرَّةࣲ فَصَكَّتۡ وَجۡهَهَا وَقَالَتۡ عَجُوزٌ عَقِیمࣱ ﴿٢٩﴾
यह सुनकर उसकी पत्नी चिल्लाती हुई आगे आई, तो उसने अपना चेहरा पीट लिया और बोली : बूढ़ी बाँझ!
قَالُواْ كَذَ ٰلِكِ قَالَ رَبُّكِۖ إِنَّهُۥ هُوَ ٱلۡحَكِیمُ ٱلۡعَلِیمُ ﴿٣٠﴾
उन्होंने कहा : तेरे पालनहार ने ऐसे ही फरमाया है। निश्चय वही पूर्ण हिकमत वाला, अत्यंत ज्ञानी है।
۞ قَالَ فَمَا خَطۡبُكُمۡ أَیُّهَا ٱلۡمُرۡسَلُونَ ﴿٣١﴾
उसने कहा : ऐ भेजे हुए (दूतो!) तुम्हारा अभियान क्या है?
قَالُوۤاْ إِنَّاۤ أُرۡسِلۡنَاۤ إِلَىٰ قَوۡمࣲ مُّجۡرِمِینَ ﴿٣٢﴾
उन्होंने कहा : निःसंदेह हम कुछ अपराधी लोगों की ओर भेजे गए हैं।
مُّسَوَّمَةً عِندَ رَبِّكَ لِلۡمُسۡرِفِینَ ﴿٣٤﴾
जो तुम्हारे पालनहार के पास से सीमा से आगे बढ़ने वालों के लिए चिह्नित[9] हैं।
فَأَخۡرَجۡنَا مَن كَانَ فِیهَا مِنَ ٱلۡمُؤۡمِنِینَ ﴿٣٥﴾
फिर हमने उस (बस्ती) में जो भी ईमानवाले थे उन्हें निकाल लिया।
فَمَا وَجَدۡنَا فِیهَا غَیۡرَ بَیۡتࣲ مِّنَ ٱلۡمُسۡلِمِینَ ﴿٣٦﴾
तो हमने उसमें मुसलमानों के एक घर[10] के सिवा कोई और नहीं पाया।
وَتَرَكۡنَا فِیهَاۤ ءَایَةࣰ لِّلَّذِینَ یَخَافُونَ ٱلۡعَذَابَ ٱلۡأَلِیمَ ﴿٣٧﴾
तथा हमने उसमें उन लोगों के लिए एक निशानी छोड़ दी, जो दुःखदायी यातना से डरते हैं।
وَفِی مُوسَىٰۤ إِذۡ أَرۡسَلۡنَـٰهُ إِلَىٰ فِرۡعَوۡنَ بِسُلۡطَـٰنࣲ مُّبِینࣲ ﴿٣٨﴾
तथा मूसा (की कहानी) में (भी एक निशानी है), जब हमने उसे फ़िरऔन की ओर एक स्पष्ट प्रमाण देकर भेजा।
فَتَوَلَّىٰ بِرُكۡنِهِۦ وَقَالَ سَـٰحِرٌ أَوۡ مَجۡنُونࣱ ﴿٣٩﴾
तो उसने अपनी शक्ति के कारण मुँह फेर लिया और उसने कहा : यह जादूगर है, या पागल।
فَأَخَذۡنَـٰهُ وَجُنُودَهُۥ فَنَبَذۡنَـٰهُمۡ فِی ٱلۡیَمِّ وَهُوَ مُلِیمࣱ ﴿٤٠﴾
अंततः हमने उसे और उसकी सेनाओं को पकड़ लिया, फिर उन्हें समुद्र में फेंक दिया, जबकि वह एक निंदनीय काम करने वाला था।
وَفِی عَادٍ إِذۡ أَرۡسَلۡنَا عَلَیۡهِمُ ٱلرِّیحَ ٱلۡعَقِیمَ ﴿٤١﴾
तथा आद में, जब हमने उनपर बाँझ[11] हवा भेजी दी।
مَا تَذَرُ مِن شَیۡءٍ أَتَتۡ عَلَیۡهِ إِلَّا جَعَلَتۡهُ كَٱلرَّمِیمِ ﴿٤٢﴾
वह जिस चीज़ पर से भी गुज़रती, उसे सड़ी हुई हड्डी की तरह कर देती थी।
وَفِی ثَمُودَ إِذۡ قِیلَ لَهُمۡ تَمَتَّعُواْ حَتَّىٰ حِینࣲ ﴿٤٣﴾
तथा समूद में, जब उनसे कहा गया कि एक समय तक के लिए लाभ उठा लो।
فَعَتَوۡاْ عَنۡ أَمۡرِ رَبِّهِمۡ فَأَخَذَتۡهُمُ ٱلصَّـٰعِقَةُ وَهُمۡ یَنظُرُونَ ﴿٤٤﴾
फिर उन्होंने अपने पालनहार के आदेश की अवज्ञा की, तो उन्हें कड़क ने पकड़ लिया और वे देख रहे थे।
فَمَا ٱسۡتَطَـٰعُواْ مِن قِیَامࣲ وَمَا كَانُواْ مُنتَصِرِینَ ﴿٤٥﴾
फिर उनमें न तो खड़े होने की शक्ति थी और न ही वे प्रतिकार करने वाले थे।
وَقَوۡمَ نُوحࣲ مِّن قَبۡلُۖ إِنَّهُمۡ كَانُواْ قَوۡمࣰا فَـٰسِقِینَ ﴿٤٦﴾
तथा इससे पहले नूह़ की जाति को (विनष्ट कर दिया)। निश्चय ही वे अवज्ञाकारी लोग थे।[12]
وَٱلسَّمَاۤءَ بَنَیۡنَـٰهَا بِأَیۡیْدࣲ وَإِنَّا لَمُوسِعُونَ ﴿٤٧﴾
तथा आकाश को हमने शक्ति के साथ बनाया और निःसंदेह हम निश्चय विस्तार करने वाले हैं।
وَٱلۡأَرۡضَ فَرَشۡنَـٰهَا فَنِعۡمَ ٱلۡمَـٰهِدُونَ ﴿٤٨﴾
तथा धरती को हमने बिछा दिया, तो हम क्या ही खूब बिछाने वाले हैं।
وَمِن كُلِّ شَیۡءٍ خَلَقۡنَا زَوۡجَیۡنِ لَعَلَّكُمۡ تَذَكَّرُونَ ﴿٤٩﴾
तथा हमने हर चीज़ के दो प्रकार बनाए, ताकि तुम नसीहत ग्रहण करो।
فَفِرُّوۤاْ إِلَى ٱللَّهِۖ إِنِّی لَكُم مِّنۡهُ نَذِیرࣱ مُّبِینࣱ ﴿٥٠﴾
अतः अल्लाह की ओर दौड़ो। निश्चय ही मैं तुम्हारे लिए उसकी ओर से स्पष्ट सचेतकर्ता हूँ।
وَلَا تَجۡعَلُواْ مَعَ ٱللَّهِ إِلَـٰهًا ءَاخَرَۖ إِنِّی لَكُم مِّنۡهُ نَذِیرࣱ مُّبِینࣱ ﴿٥١﴾
और अल्लाह के साथ कोई दूसरा पूज्य मत बनाओ। निःसंदेह मैं तुम्हारे लिए उसकी ओर से खुला डराने वाला हूँ।
كَذَ ٰلِكَ مَاۤ أَتَى ٱلَّذِینَ مِن قَبۡلِهِم مِّن رَّسُولٍ إِلَّا قَالُواْ سَاحِرٌ أَوۡ مَجۡنُونٌ ﴿٥٢﴾
इसी प्रकार, उन लोगों के पास जो इनसे पहले थे, जब भी कोई रसूल आया, तो उन्होंने कहा : यह जादूगर है, या पागल।
أَتَوَاصَوۡاْ بِهِۦۚ بَلۡ هُمۡ قَوۡمࣱ طَاغُونَ ﴿٥٣﴾
क्या उन्होंने एक-दूसरे को इस (बात) की वसीयत[13] की है? बल्कि वे (स्वयं ही) सरकश लोग हैं।
فَتَوَلَّ عَنۡهُمۡ فَمَاۤ أَنتَ بِمَلُومࣲ ﴿٥٤﴾
अतः आप उनसे मुँह फेर लें। क्योंकि आपपर कोई दोष नहीं है।
وَذَكِّرۡ فَإِنَّ ٱلذِّكۡرَىٰ تَنفَعُ ٱلۡمُؤۡمِنِینَ ﴿٥٥﴾
तथा आप नसीहत करें। क्योंकि निश्चय नसीहत ईमानवालों को लाभ देताी है।
وَمَا خَلَقۡتُ ٱلۡجِنَّ وَٱلۡإِنسَ إِلَّا لِیَعۡبُدُونِ ﴿٥٦﴾
और मैंने जिन्नों तथा मनुष्यों को केवल इसलिए पैदा किया है कि वे मेरी इबादत करें।
مَاۤ أُرِیدُ مِنۡهُم مِّن رِّزۡقࣲ وَمَاۤ أُرِیدُ أَن یُطۡعِمُونِ ﴿٥٧﴾
मैं उनसे कोई रोज़ी नहीं चाहता और न यह चाहता हूँ कि वे मुझे खिलाएँ।
إِنَّ ٱللَّهَ هُوَ ٱلرَّزَّاقُ ذُو ٱلۡقُوَّةِ ٱلۡمَتِینُ ﴿٥٨﴾
निःसंदेह अल्लाह ही बहुत रोज़ी देनेवाला, बड़ा शक्तिशाली, अत्यंत मज़बूत है।
فَإِنَّ لِلَّذِینَ ظَلَمُواْ ذَنُوبࣰا مِّثۡلَ ذَنُوبِ أَصۡحَـٰبِهِمۡ فَلَا یَسۡتَعۡجِلُونِ ﴿٥٩﴾
अतः निश्चय उन लोगों के लिए जिन्होंने अत्याचार किया, उनके साथियों के हिस्से की तरह (यातना का) एक हिस्सा है। सो वे मुझसे जल्दी न मचाएँ।