سَبَّحَ لِلَّهِ مَا فِی ٱلسَّمَـٰوَ ٰتِ وَمَا فِی ٱلۡأَرۡضِۖ وَهُوَ ٱلۡعَزِیزُ ٱلۡحَكِیمُ ﴿١﴾
अल्लाह की पवित्रता का गान किया हर उस चीज़ ने जो आकाशों में है और जो धरती में है, और वही प्रभुत्वशाली और हिकमत वाला है।
هُوَ ٱلَّذِیۤ أَخۡرَجَ ٱلَّذِینَ كَفَرُواْ مِنۡ أَهۡلِ ٱلۡكِتَـٰبِ مِن دِیَـٰرِهِمۡ لِأَوَّلِ ٱلۡحَشۡرِۚ مَا ظَنَنتُمۡ أَن یَخۡرُجُواْۖ وَظَنُّوۤاْ أَنَّهُم مَّانِعَتُهُمۡ حُصُونُهُم مِّنَ ٱللَّهِ فَأَتَىٰهُمُ ٱللَّهُ مِنۡ حَیۡثُ لَمۡ یَحۡتَسِبُواْۖ وَقَذَفَ فِی قُلُوبِهِمُ ٱلرُّعۡبَۚ یُخۡرِبُونَ بُیُوتَهُم بِأَیۡدِیهِمۡ وَأَیۡدِی ٱلۡمُؤۡمِنِینَ فَٱعۡتَبِرُواْ یَـٰۤأُوْلِی ٱلۡأَبۡصَـٰرِ ﴿٢﴾
वही है, जिसने अह्ले किताब के काफिरों को पहले ही निष्कासन के समय उनके घरों से निकाल बाहर किया। तुम्हें गुमान न था कि वे निकल जाएँगे और वे समझ रहे थे कि उनके क़िले[1] उन्हें अल्लाह से बचाने वाले हैं। लेकिन अल्लाह (का अज़ाब) उनके पास वहाँ से आया, जिसका उन्हें गुमान भी न था और उसने उनके दिलों में भय डाल दिया। वे अपने घरों को खुद अपने हाथों से तथा ईमान वालों के हाथों[2] से उजाड़ रहे थे। अतः सीख ग्रहण करो, ऐ आँखों वालो!
وَلَوۡلَاۤ أَن كَتَبَ ٱللَّهُ عَلَیۡهِمُ ٱلۡجَلَاۤءَ لَعَذَّبَهُمۡ فِی ٱلدُّنۡیَاۖ وَلَهُمۡ فِی ٱلۡـَٔاخِرَةِ عَذَابُ ٱلنَّارِ ﴿٣﴾
और यदि अल्लाह ने उनपर देश-निकाला न लिख दिया होता, तो निश्चय वह उन्हें दुनिया ही में यातना देता तथा उनके लिए आख़िरत में आग की यातना है।
ذَ ٰلِكَ بِأَنَّهُمۡ شَاۤقُّواْ ٱللَّهَ وَرَسُولَهُۥۖ وَمَن یُشَاۤقِّ ٱللَّهَ فَإِنَّ ٱللَّهَ شَدِیدُ ٱلۡعِقَابِ ﴿٤﴾
यह इसलिए कि उन्होंने अल्लाह और उसके रसूल का विरोध किया तथा जो अल्लाह का विरोध करे, तो निःसंदेह अल्लाह बहुत कड़ी सज़ा देने वाला है।
مَا قَطَعۡتُم مِّن لِّینَةٍ أَوۡ تَرَكۡتُمُوهَا قَاۤىِٕمَةً عَلَىٰۤ أُصُولِهَا فَبِإِذۡنِ ٱللَّهِ وَلِیُخۡزِیَ ٱلۡفَـٰسِقِینَ ﴿٥﴾
(ऐ मुसलमानो!) तुमने जो भी खजूर के पेड़ काटे[3] या उन्हें अपने तनों पर खड़ा रहने दिया, वह अल्लाह के आदेश से हुआ और ताकि अल्लाह अवज्ञाकारियों को अपमानित करे।
وَمَاۤ أَفَاۤءَ ٱللَّهُ عَلَىٰ رَسُولِهِۦ مِنۡهُمۡ فَمَاۤ أَوۡجَفۡتُمۡ عَلَیۡهِ مِنۡ خَیۡلࣲ وَلَا رِكَابࣲ وَلَـٰكِنَّ ٱللَّهَ یُسَلِّطُ رُسُلَهُۥ عَلَىٰ مَن یَشَاۤءُۚ وَٱللَّهُ عَلَىٰ كُلِّ شَیۡءࣲ قَدِیرࣱ ﴿٦﴾
और अल्लाह ने जो धन उनसे अपने रसूल पर लौटाया, तो तुमने उसपर न कोई घोड़े दौड़ाए और न ऊँट। परन्तु अल्लाह अपने रसूल को, जिसपर चाहता है, प्रभुत्व प्रदान कर देता है और अल्लाह हर चीज़ पर सर्वशक्तिमान है।
مَّاۤ أَفَاۤءَ ٱللَّهُ عَلَىٰ رَسُولِهِۦ مِنۡ أَهۡلِ ٱلۡقُرَىٰ فَلِلَّهِ وَلِلرَّسُولِ وَلِذِی ٱلۡقُرۡبَىٰ وَٱلۡیَتَـٰمَىٰ وَٱلۡمَسَـٰكِینِ وَٱبۡنِ ٱلسَّبِیلِ كَیۡ لَا یَكُونَ دُولَةَۢ بَیۡنَ ٱلۡأَغۡنِیَاۤءِ مِنكُمۡۚ وَمَاۤ ءَاتَىٰكُمُ ٱلرَّسُولُ فَخُذُوهُ وَمَا نَهَىٰكُمۡ عَنۡهُ فَٱنتَهُواْۚ وَٱتَّقُواْ ٱللَّهَۖ إِنَّ ٱللَّهَ شَدِیدُ ٱلۡعِقَابِ ﴿٧﴾
अल्लाह ने जो कुछ भी इन बस्तियों वालों (के धन)[4] से अपने रसूल पर लौटाया, तो वह अल्लाह के लिए और रसूल के लिए और (रसूल के) रिश्तेदारों, अनाथों, निर्धनों तथा यात्री के लिए है; ताकि वह (धन) तुम्हारे धनवानों ही के बीच चक्कर लगाता न रह जाए[5], और रसूल तुम्हें जो कुछ दें, उसे ले लो और जिस चीज़ से रोक दें, उससे रुक जाओ। तथा अल्लाह से डरते रहो। निश्चय अल्लाह बहुत कड़ी यातना देने वाला है।
لِلۡفُقَرَاۤءِ ٱلۡمُهَـٰجِرِینَ ٱلَّذِینَ أُخۡرِجُواْ مِن دِیَـٰرِهِمۡ وَأَمۡوَ ٰلِهِمۡ یَبۡتَغُونَ فَضۡلࣰا مِّنَ ٱللَّهِ وَرِضۡوَ ٰنࣰا وَیَنصُرُونَ ٱللَّهَ وَرَسُولَهُۥۤۚ أُوْلَـٰۤىِٕكَ هُمُ ٱلصَّـٰدِقُونَ ﴿٨﴾
(यह धन) उन ग़रीब मुहाजिरों के लिए है, जो अपने घरों और अपने मालों से निकाल बाहर कर दिए गए। वे अल्लाह का अनुग्रह तथा प्रसन्नता चाहते हैं और अल्लाह तथा उसके रसूल की सहायता करते हैं। यही लोग सच्चे हैं।
وَٱلَّذِینَ تَبَوَّءُو ٱلدَّارَ وَٱلۡإِیمَـٰنَ مِن قَبۡلِهِمۡ یُحِبُّونَ مَنۡ هَاجَرَ إِلَیۡهِمۡ وَلَا یَجِدُونَ فِی صُدُورِهِمۡ حَاجَةࣰ مِّمَّاۤ أُوتُواْ وَیُؤۡثِرُونَ عَلَىٰۤ أَنفُسِهِمۡ وَلَوۡ كَانَ بِهِمۡ خَصَاصَةࣱۚ وَمَن یُوقَ شُحَّ نَفۡسِهِۦ فَأُوْلَـٰۤىِٕكَ هُمُ ٱلۡمُفۡلِحُونَ ﴿٩﴾
तथा (उनके लिए) जिन्होंने[6] इनसे पहले इस घर (अर्थात् मदीना) में और ईमान में जगह बना ली है। वे अपनी ओर हिजरत करके आने वालों से प्रेम करते हैं। और वे अपने दिलों में उस चीज़ के प्रति कोई चाहत (हसद) नहीं पाते, जो मुहाजिरों को दी जाए और (उन्हें) अपने आप पर प्रधानता देते हैं, चाहे स्वयं ज़रूरतमंद[7] हों। और जो अपने मन की लालच (कृपणता) से बचा लिया गया, तो वही लोग सफल होने वाले हैं।
وَٱلَّذِینَ جَاۤءُو مِنۢ بَعۡدِهِمۡ یَقُولُونَ رَبَّنَا ٱغۡفِرۡ لَنَا وَلِإِخۡوَ ٰنِنَا ٱلَّذِینَ سَبَقُونَا بِٱلۡإِیمَـٰنِ وَلَا تَجۡعَلۡ فِی قُلُوبِنَا غِلࣰّا لِّلَّذِینَ ءَامَنُواْ رَبَّنَاۤ إِنَّكَ رَءُوفࣱ رَّحِیمٌ ﴿١٠﴾
और (उनके लिए) जो उनके पश्चात् आए, वे कहते हैं : ऐ हमारे पालनहार! हमें और हमारे उन भाइयों को क्षमा कर दे, जो हमसे पहले ईमान लाए और हमारे दिलों में उन लोगों के लिए कोई द्वेष न रख, जो ईमान लाए। ऐ हमारे पालनहार! तू अति करुणामय, अत्यंत दयावान् है।
۞ أَلَمۡ تَرَ إِلَى ٱلَّذِینَ نَافَقُواْ یَقُولُونَ لِإِخۡوَ ٰنِهِمُ ٱلَّذِینَ كَفَرُواْ مِنۡ أَهۡلِ ٱلۡكِتَـٰبِ لَىِٕنۡ أُخۡرِجۡتُمۡ لَنَخۡرُجَنَّ مَعَكُمۡ وَلَا نُطِیعُ فِیكُمۡ أَحَدًا أَبَدࣰا وَإِن قُوتِلۡتُمۡ لَنَنصُرَنَّكُمۡ وَٱللَّهُ یَشۡهَدُ إِنَّهُمۡ لَكَـٰذِبُونَ ﴿١١﴾
क्या आपने मुनाफ़िकों[8] को नहीं देखा, वे अह्ले किताब में से अपने काफ़िर भाइयों से कहते हैं : निश्चय अगर तुम्हें निकाला गया, तो हम भी अवश्य तुम्हारे साथ निकल जाएँगे और तुम्हारे बारे में कभी किसी की बात नहीं मानेंगे और यदि तुमसे युद्ध हुआ, तो हम अवश्य तुम्हारी सहायता करेंगे। और अल्लाह गवाही देता है कि निःसंदेह वे झूठे हैं।
لَىِٕنۡ أُخۡرِجُواْ لَا یَخۡرُجُونَ مَعَهُمۡ وَلَىِٕن قُوتِلُواْ لَا یَنصُرُونَهُمۡ وَلَىِٕن نَّصَرُوهُمۡ لَیُوَلُّنَّ ٱلۡأَدۡبَـٰرَ ثُمَّ لَا یُنصَرُونَ ﴿١٢﴾
निश्चय अगर वे निकाले गए तो ये उनके साथ नहीं निकलेंगे और निश्चय अगर उनसे युद्ध किया गया तो ये उनकी सहायता नहीं करेंगे और निश्चय अगर उनकी सहायता की भी तो अवश्य पीठ फेरकर भागेंगे, फिर उनकी सहायता नहीं की जाएगी।
لَأَنتُمۡ أَشَدُّ رَهۡبَةࣰ فِی صُدُورِهِم مِّنَ ٱللَّهِۚ ذَ ٰلِكَ بِأَنَّهُمۡ قَوۡمࣱ لَّا یَفۡقَهُونَ ﴿١٣﴾
निश्चय उनके दिलों में तुम्हारा भय अल्लाह (के भय) से अधिक है। यह इसलिए कि वे ऐसे लोग हैं, जो नहीं समझते।
لَا یُقَـٰتِلُونَكُمۡ جَمِیعًا إِلَّا فِی قُرࣰى مُّحَصَّنَةٍ أَوۡ مِن وَرَاۤءِ جُدُرِۭۚ بَأۡسُهُم بَیۡنَهُمۡ شَدِیدࣱۚ تَحۡسَبُهُمۡ جَمِیعࣰا وَقُلُوبُهُمۡ شَتَّىٰۚ ذَ ٰلِكَ بِأَنَّهُمۡ قَوۡمࣱ لَّا یَعۡقِلُونَ ﴿١٤﴾
वे तुमसे एकत्रित होकर युद्ध नहीं करेंगे, परंतु क़िलेबंद बस्तियों में या दीवारों के पीछे से। उनकी आपस की लड़ाई बहुत सख़्त है। आप उन्हें एकजुट समझते हैं, जबकि उनके दिल अलग-अलग हैं। यह इसलिए कि वे ऐसे लोग हैं, जो बुद्धि नहीं रखते।
كَمَثَلِ ٱلَّذِینَ مِن قَبۡلِهِمۡ قَرِیبࣰاۖ ذَاقُواْ وَبَالَ أَمۡرِهِمۡ وَلَهُمۡ عَذَابٌ أَلِیمࣱ ﴿١٥﴾
इनकी हालत उन लोगों जैसी है, जो इनसे कुछ ही पहले गुज़रे हैं। वे अपने किए का स्वाद चख चुके[9] हैं और उनके लिए दुःखदायी यातना है।
كَمَثَلِ ٱلشَّیۡطَـٰنِ إِذۡ قَالَ لِلۡإِنسَـٰنِ ٱكۡفُرۡ فَلَمَّا كَفَرَ قَالَ إِنِّی بَرِیۤءࣱ مِّنكَ إِنِّیۤ أَخَافُ ٱللَّهَ رَبَّ ٱلۡعَـٰلَمِینَ ﴿١٦﴾
शैतान की तरह, जब उसने मनुष्य से कहा कि कुफ़्र कर। फिर जब वह कुफ़्र कर चुका, तो उसने कहा : निःसंदेह मैं तुझसे बरी हूँ। मैं तो अल्लाह से डरता हूँ, जो सर्व संसार का पालनहार है।
فَكَانَ عَـٰقِبَتَهُمَاۤ أَنَّهُمَا فِی ٱلنَّارِ خَـٰلِدَیۡنِ فِیهَاۚ وَذَ ٰلِكَ جَزَ ٰۤؤُاْ ٱلظَّـٰلِمِینَ ﴿١٧﴾
तो दोनों का परिणाम यह हुआ कि वे हमेशा जहन्नम में रहेंगे और यही अत्याचारियों का बदला है।
یَـٰۤأَیُّهَا ٱلَّذِینَ ءَامَنُواْ ٱتَّقُواْ ٱللَّهَ وَلۡتَنظُرۡ نَفۡسࣱ مَّا قَدَّمَتۡ لِغَدࣲۖ وَٱتَّقُواْ ٱللَّهَۚ إِنَّ ٱللَّهَ خَبِیرُۢ بِمَا تَعۡمَلُونَ ﴿١٨﴾
ऐ लोगो जो ईमान लाए हो! अल्लाह से डरो और प्रत्येक व्यक्ति को देखना चाहिए कि उसने कल के लिए क्या आगे भेजा है तथा अल्लाह से डरते रहो। निश्चय अल्लाह उससे पूरी तरह अवगत है, जो तुम कर रहे हो।
وَلَا تَكُونُواْ كَٱلَّذِینَ نَسُواْ ٱللَّهَ فَأَنسَىٰهُمۡ أَنفُسَهُمۡۚ أُوْلَـٰۤىِٕكَ هُمُ ٱلۡفَـٰسِقُونَ ﴿١٩﴾
और उन लोगों के समान न हो जाओ, जो अल्लाह को भूल गए, तो उसने उन्हें अपने आपको को भुलवा दिया। यही लोग अवज्ञाकारी हैं।
لَا یَسۡتَوِیۤ أَصۡحَـٰبُ ٱلنَّارِ وَأَصۡحَـٰبُ ٱلۡجَنَّةِۚ أَصۡحَـٰبُ ٱلۡجَنَّةِ هُمُ ٱلۡفَاۤىِٕزُونَ ﴿٢٠﴾
जहन्नम वाले और जन्नत वाले वाले बराबर नहीं हो सकते। जन्नत वाले ही वास्तव में सफल हैं।
لَوۡ أَنزَلۡنَا هَـٰذَا ٱلۡقُرۡءَانَ عَلَىٰ جَبَلࣲ لَّرَأَیۡتَهُۥ خَـٰشِعࣰا مُّتَصَدِّعࣰا مِّنۡ خَشۡیَةِ ٱللَّهِۚ وَتِلۡكَ ٱلۡأَمۡثَـٰلُ نَضۡرِبُهَا لِلنَّاسِ لَعَلَّهُمۡ یَتَفَكَّرُونَ ﴿٢١﴾
यदि हम इस क़ुरआन को किसी पर्वत पर अवतरित करते, तो निश्चय आप उसे देखते कि अल्लाह के भय से झुक जाता और फटकर टुकड़े-टुकड़े हो जाता। और हम इन उदाहरणों को लोगों के लिए वर्णन कर रहे हैं, ताकि वे सोच-विचार करें।
هُوَ ٱللَّهُ ٱلَّذِی لَاۤ إِلَـٰهَ إِلَّا هُوَۖ عَـٰلِمُ ٱلۡغَیۡبِ وَٱلشَّهَـٰدَةِۖ هُوَ ٱلرَّحۡمَـٰنُ ٱلرَّحِیمُ ﴿٢٢﴾
वह अल्लाह ही है, जिसके अतिरिक्त कोई सत्य पूज्य नहीं, हर परोक्ष तथा प्रत्यक्ष को जानने वाला है, वह बहुत कृपाशील, अत्यंत दयालु है।
هُوَ ٱللَّهُ ٱلَّذِی لَاۤ إِلَـٰهَ إِلَّا هُوَ ٱلۡمَلِكُ ٱلۡقُدُّوسُ ٱلسَّلَـٰمُ ٱلۡمُؤۡمِنُ ٱلۡمُهَیۡمِنُ ٱلۡعَزِیزُ ٱلۡجَبَّارُ ٱلۡمُتَكَبِّرُۚ سُبۡحَـٰنَ ٱللَّهِ عَمَّا یُشۡرِكُونَ ﴿٢٣﴾
वह अल्लाह ही है, जिसके अतिरिक्त कोई सच्चा पूज्य[10] नहीं, वह बादशाह है, अत्यंत पवित्र, हर दोष से मुक्त, पुष्टि करने वाला, निगरानी करने वाला, प्रभुत्वशाली, शक्तिशाली, बहुत बड़ाई वाला है। पवित्र है अल्लाह उससे, जो वे (उसका) साझी बनाते हैं।
هُوَ ٱللَّهُ ٱلۡخَـٰلِقُ ٱلۡبَارِئُ ٱلۡمُصَوِّرُۖ لَهُ ٱلۡأَسۡمَاۤءُ ٱلۡحُسۡنَىٰۚ یُسَبِّحُ لَهُۥ مَا فِی ٱلسَّمَـٰوَ ٰتِ وَٱلۡأَرۡضِۖ وَهُوَ ٱلۡعَزِیزُ ٱلۡحَكِیمُ ﴿٢٤﴾
वह अल्लाह ही है, जो रचयिता, अस्तित्व प्रदान करने वाला, रूप देने वाला है। सब अच्छे नाम उसी के हैं। उसकी पवित्रता का गान हर वह चीज़ करती है जो आकाशों तथा धरती में है और वह प्रभुत्वशाली, ह़िकमत वाला है।