Surah सूरा अल्-मुनाफ़िक़ून - Al-Munāfiqūn

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Surah सूरा अल्-मुनाफ़िक़ून - Al-Munāfiqūn - Aya count 11

إِذَا جَاۤءَكَ ٱلۡمُنَـٰفِقُونَ قَالُواْ نَشۡهَدُ إِنَّكَ لَرَسُولُ ٱللَّهِۗ وَٱللَّهُ یَعۡلَمُ إِنَّكَ لَرَسُولُهُۥ وَٱللَّهُ یَشۡهَدُ إِنَّ ٱلۡمُنَـٰفِقِینَ لَكَـٰذِبُونَ ﴿١﴾

जब आपके पास मुनाफ़िक़ आते हैं, तो कहते हैं : हम गवाही देते हैं कि निःसंदेह आप निश्चय अल्लाह के रसूल हैं। तथा अल्लाह जानता है कि निःसंदेह आप निश्चय अल्लाह के रसूल हैं और अल्लाह गवाही देता है कि मुनाफ़िक़ निश्चित रूप से झूठे[1] हैं।

1. आदरणीय ज़ैद पुत्र अर्क़म (रज़ियल्लाहु अन्हु) कहते हैं कि एक युद्ध में मैंने (मुनाफ़िक़ों के प्रमुख) अब्दुल्लाह पुत्र उबय्य को कहते हुए सुना कि उनपर ख़र्च न करो जो अल्लाह के रसूल के पास हैं। यहाँ तक कि वे आपके आस-पास से बिखर जाएँ। और यदि हम मदीना वापस गए, तो हम सम्मानित उससे अपमानित (इससे अभिप्राय वह मुसलमानों को ले रहे थे।) को अवश्य निकाल देंगे। मैंने अपने चाचा को यह बात बता दी। और उन्होंने नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को बता दी। तो आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने अब्दुल्लाह पुत्र उबय्य को बुलाया। उसने और उसके साथियों ने शपथ ले ली कि उन्होंने यह बात नहीं कही है। इस कारण मुझे झूठा समझ लिया गया। जिसपर मुझे बड़ा शोक हुआ और मैं घर में रहने लगा। फिर अल्लाह ने यह सूरह उतारी, तो आपने मुझे बुलाकर सुनाई और कहा : ऐ ज़ैद! अल्लाह ने तुम्हें सच्चा सिद्ध कर दिया है। (सह़ीह़ बुख़ारी : 4900)


Arabic explanations of the Qur’an:

ٱتَّخَذُوۤاْ أَیۡمَـٰنَهُمۡ جُنَّةࣰ فَصَدُّواْ عَن سَبِیلِ ٱللَّهِۚ إِنَّهُمۡ سَاۤءَ مَا كَانُواْ یَعۡمَلُونَ ﴿٢﴾

उन्होंने अपनी क़समों को ढाल बना लिया है, फिर उन्होंने (लोगों को) अल्लाह की राह से रोका है। निःसंदेह बहुत बुरा है, जो कुछ वे करते रहे हैं।


Arabic explanations of the Qur’an:

ذَ ٰ⁠لِكَ بِأَنَّهُمۡ ءَامَنُواْ ثُمَّ كَفَرُواْ فَطُبِعَ عَلَىٰ قُلُوبِهِمۡ فَهُمۡ لَا یَفۡقَهُونَ ﴿٣﴾

यह इस कारण कि वे ईमान लाए, फिर उन्होंने कुफ़्र किया। तो अल्लाह ने उनके दिलों पर मुहर लगा दी। अतः वे नहीं समझते।


Arabic explanations of the Qur’an:

۞ وَإِذَا رَأَیۡتَهُمۡ تُعۡجِبُكَ أَجۡسَامُهُمۡۖ وَإِن یَقُولُواْ تَسۡمَعۡ لِقَوۡلِهِمۡۖ كَأَنَّهُمۡ خُشُبࣱ مُّسَنَّدَةࣱۖ یَحۡسَبُونَ كُلَّ صَیۡحَةٍ عَلَیۡهِمۡۚ هُمُ ٱلۡعَدُوُّ فَٱحۡذَرۡهُمۡۚ قَـٰتَلَهُمُ ٱللَّهُۖ أَنَّىٰ یُؤۡفَكُونَ ﴿٤﴾

और यदि तुम उन्हें देखो, तो तुम्हें उनके शरीर अच्छे लगेंगे और यदि वे बात करें, तो तुम उनकी बात पर कान लगाओगे। मानो कि वे टेक लगाई हुई लकड़ियाँ[2] हैं। वे हर तेज़ आवाज़ को अपने ही विरुद्ध[3] समझते हैं। वही वास्तविक शत्रु हैं। अतः आप उनसे सावधान रहें। अल्लाह उन्हें नाश करे! वे किधर फेरे जा रहे हैं!

2. जो देखने में सुंदर, परंतु निर्बोध होती हैं। 3. अर्थात प्रत्येक समय उन्हें धड़का लगा रहता है कि उनके अपराध खुल न जाएँ।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَإِذَا قِیلَ لَهُمۡ تَعَالَوۡاْ یَسۡتَغۡفِرۡ لَكُمۡ رَسُولُ ٱللَّهِ لَوَّوۡاْ رُءُوسَهُمۡ وَرَأَیۡتَهُمۡ یَصُدُّونَ وَهُم مُّسۡتَكۡبِرُونَ ﴿٥﴾

और जब उनसे कहा जाए : आओ, अल्लाह के रसूल तुम्हारे लिए क्षमा की प्रार्थना करें, तो वे अपने सिर फेर लेते हैं। तथा आप उन्हें देखेंगे कि वे अभिमान करते हुए विमुख हो जाते हैं।


Arabic explanations of the Qur’an:

سَوَاۤءٌ عَلَیۡهِمۡ أَسۡتَغۡفَرۡتَ لَهُمۡ أَمۡ لَمۡ تَسۡتَغۡفِرۡ لَهُمۡ لَن یَغۡفِرَ ٱللَّهُ لَهُمۡۚ إِنَّ ٱللَّهَ لَا یَهۡدِی ٱلۡقَوۡمَ ٱلۡفَـٰسِقِینَ ﴿٦﴾

(ऐ नबी!) उनके लिए बराबर है, चाहे आप उनके लिए क्षमा की प्रार्थना करें या क्षमा की प्रार्थना न करें। अल्लाह उन्हें कदापि क्षमा नहीं करेगा। निःसंदेह अल्लाह अवज्ञाकारियों को सीधा मार्ग नहीं दिखाता।


Arabic explanations of the Qur’an:

هُمُ ٱلَّذِینَ یَقُولُونَ لَا تُنفِقُواْ عَلَىٰ مَنۡ عِندَ رَسُولِ ٱللَّهِ حَتَّىٰ یَنفَضُّواْۗ وَلِلَّهِ خَزَاۤىِٕنُ ٱلسَّمَـٰوَ ٰ⁠تِ وَٱلۡأَرۡضِ وَلَـٰكِنَّ ٱلۡمُنَـٰفِقِینَ لَا یَفۡقَهُونَ ﴿٧﴾

ये वही लोग हैं, जो कहते हैं कि उन लोगों पर खर्च न करो, जो अल्लाह के रसूल के पास हैं, यहाँ तक कि वे तितर-बितर हो जाएँ। हालाँकि आकाशों और धरती के खज़ाने अल्लाह ही के हैं। परंतु मुनाफ़िक़ नहीं समझते।


Arabic explanations of the Qur’an:

یَقُولُونَ لَىِٕن رَّجَعۡنَاۤ إِلَى ٱلۡمَدِینَةِ لَیُخۡرِجَنَّ ٱلۡأَعَزُّ مِنۡهَا ٱلۡأَذَلَّۚ وَلِلَّهِ ٱلۡعِزَّةُ وَلِرَسُولِهِۦ وَلِلۡمُؤۡمِنِینَ وَلَـٰكِنَّ ٱلۡمُنَـٰفِقِینَ لَا یَعۡلَمُونَ ﴿٨﴾

वे कहते हैं : यदि हम मदीना वापस गए, तो जो सबसे अधिक सम्मान वाला है, वह वहाँ से तुच्छतर को निकाल[4] बाहर करेगा। हालाँकि सम्मान तो केवल अल्लाह के लिए और उसके रसूल के लिए और ईमान वालों के लिए है। परंतु मुनाफ़िक़ नहीं जानते।

4. मुनाफ़िक़ों के मुखिया अब्दुल्लाह पुत्र उबय्य ने स्वयं को अधिक सम्मान वाला तथा रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को अधिक अपमान वाला कहा था।


Arabic explanations of the Qur’an:

یَـٰۤأَیُّهَا ٱلَّذِینَ ءَامَنُواْ لَا تُلۡهِكُمۡ أَمۡوَ ٰ⁠لُكُمۡ وَلَاۤ أَوۡلَـٰدُكُمۡ عَن ذِكۡرِ ٱللَّهِۚ وَمَن یَفۡعَلۡ ذَ ٰ⁠لِكَ فَأُوْلَـٰۤىِٕكَ هُمُ ٱلۡخَـٰسِرُونَ ﴿٩﴾

ऐ ईमान वालो! तुम्हारे धन तथा तुम्हारी संतानें तुम्हें अल्लाह की याद से गाफ़िल न कर दें। और जो ऐसा करे, तो वही लोग घाटा उठाने वाले हैं।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَأَنفِقُواْ مِن مَّا رَزَقۡنَـٰكُم مِّن قَبۡلِ أَن یَأۡتِیَ أَحَدَكُمُ ٱلۡمَوۡتُ فَیَقُولَ رَبِّ لَوۡلَاۤ أَخَّرۡتَنِیۤ إِلَىٰۤ أَجَلࣲ قَرِیبࣲ فَأَصَّدَّقَ وَأَكُن مِّنَ ٱلصَّـٰلِحِینَ ﴿١٠﴾

तथा हमने तुम्हें जो कुछ दिया है, उसमें से खर्च करो, इससे पहले कि तुममें से किसी की मृत्यु[5] आ जाए, फिर वह कहे : ऐ मेरे पालनहार! मुझे थोड़ी-सी मोहलत क्यों न दी कि मैं दान करता तथा सदाचारियों में से हो जाता।

5. ह़दीस में है कि मनुष्य का वास्तविक धन वही है, जो वह इस संसार में दान कर जाए। और जो वह छोड़ जाए, तो वह उसका नहीं, बल्कि उसके वारिस का धन है। (सह़ीह़ बुख़ारी : 6442)


Arabic explanations of the Qur’an:

وَلَن یُؤَخِّرَ ٱللَّهُ نَفۡسًا إِذَا جَاۤءَ أَجَلُهَاۚ وَٱللَّهُ خَبِیرُۢ بِمَا تَعۡمَلُونَ ﴿١١﴾

और अल्लाह किसी प्राणी को कदापि अवसर नहीं देगा, जब उसका निर्धारित समय आ गया। और अल्लाह उससे भली-भाँति अवगत है, जो कुछ तुम करते हो।


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