كَذَّبَتۡ ثَمُودُ وَعَادُۢ بِٱلۡقَارِعَةِ ﴿٤﴾
समूद तथा आद (जातियों) ने खड़खड़ाने वाली (क़ियामत) को झुठला दिया।
فَأَمَّا ثَمُودُ فَأُهۡلِكُواْ بِٱلطَّاغِیَةِ ﴿٥﴾
फिर जो समूद थे, वे हद से बढ़ी हुई (तेज़) आवाज़ से विनष्ट कर दिए गए।
وَأَمَّا عَادࣱ فَأُهۡلِكُواْ بِرِیحࣲ صَرۡصَرٍ عَاتِیَةࣲ ﴿٦﴾
और रही बात आद की, तो वे बड़ी ठंडी और प्रचंड आँधी से नष्ट कर दिए गए।
سَخَّرَهَا عَلَیۡهِمۡ سَبۡعَ لَیَالࣲ وَثَمَـٰنِیَةَ أَیَّامٍ حُسُومࣰاۖ فَتَرَى ٱلۡقَوۡمَ فِیهَا صَرۡعَىٰ كَأَنَّهُمۡ أَعۡجَازُ نَخۡلٍ خَاوِیَةࣲ ﴿٧﴾
अल्लाह ने उसे उनपर सात रातें और आठ दिन निरंतर चलाए रखा, तो आप उस जाति के लोगों को उसमें इस तरह गिरे हुए देखते, जैसे वे गिरी हुई खजूरों के खोखले तने हों।[1]
وَجَاۤءَ فِرۡعَوۡنُ وَمَن قَبۡلَهُۥ وَٱلۡمُؤۡتَفِكَـٰتُ بِٱلۡخَاطِئَةِ ﴿٩﴾
और फ़िरऔन ने तथा उससे पहले के लोगों ने एवं उलट जाने वाली बस्तियों ने पाप किया।
فَعَصَوۡاْ رَسُولَ رَبِّهِمۡ فَأَخَذَهُمۡ أَخۡذَةࣰ رَّابِیَةً ﴿١٠﴾
उन्होंने अपने पालनहार के रसूल की अवज्ञा की। तो अल्लाह ने उन्हें बड़ी कठोर पकड़ में ले लिया।
إِنَّا لَمَّا طَغَا ٱلۡمَاۤءُ حَمَلۡنَـٰكُمۡ فِی ٱلۡجَارِیَةِ ﴿١١﴾
निःसंदेह हमने ही, जब पानी सीमा पार कर गया, तुम्हें नाव[2] में सवार किया।
لِنَجۡعَلَهَا لَكُمۡ تَذۡكِرَةࣰ وَتَعِیَهَاۤ أُذُنࣱ وَ ٰعِیَةࣱ ﴿١٢﴾
ताकि हम उसे तुम्हारे लिए एक (शिक्षाप्रद) यादगार बना दें और (ताकि) याद रखने वाले कान उसे याद रखें।
وَحُمِلَتِ ٱلۡأَرۡضُ وَٱلۡجِبَالُ فَدُكَّتَا دَكَّةࣰ وَ ٰحِدَةࣰ ﴿١٤﴾
और धरती तथा पर्वतों को उठाया जाएगा और दोनों को एक ही बार में चूर्ण-विचूर्ण कर दिया जाएगा।[3]
وَٱنشَقَّتِ ٱلسَّمَاۤءُ فَهِیَ یَوۡمَىِٕذࣲ وَاهِیَةࣱ ﴿١٦﴾
तथा आकाश फट जाएगा, तो उस दिन वह कमज़ोर होगा।
وَٱلۡمَلَكُ عَلَىٰۤ أَرۡجَاۤىِٕهَاۚ وَیَحۡمِلُ عَرۡشَ رَبِّكَ فَوۡقَهُمۡ یَوۡمَىِٕذࣲ ثَمَـٰنِیَةࣱ ﴿١٧﴾
और फ़रिश्ते उसके किनारों पर होंगे तथा उस दिन आपके पालनहार का अर्श (सिंहासन) आठ फ़रिश्ते अपने ऊपर उठाए हुए होंगे।
یَوۡمَىِٕذࣲ تُعۡرَضُونَ لَا تَخۡفَىٰ مِنكُمۡ خَافِیَةࣱ ﴿١٨﴾
उस दिन तुम (अल्लाह के सामने) पेश किए जाओगे। तुम्हारी कोई छिपी हुई बात छिपी नहीं रहेगी।
فَأَمَّا مَنۡ أُوتِیَ كِتَـٰبَهُۥ بِیَمِینِهِۦ فَیَقُولُ هَاۤؤُمُ ٱقۡرَءُواْ كِتَـٰبِیَهۡ ﴿١٩﴾
फिर जिसे उसका कर्म-पत्र उसके दाएँ हाथ में दिया गिया, तो वह कहेगा : यह लो, मेरा कर्म-पत्र पढ़ो।
إِنِّی ظَنَنتُ أَنِّی مُلَـٰقٍ حِسَابِیَهۡ ﴿٢٠﴾
मुझे विश्वास था कि मैं अपने हिसाब से मिलने वाला हूँ।
كُلُواْ وَٱشۡرَبُواْ هَنِیۤـَٔۢا بِمَاۤ أَسۡلَفۡتُمۡ فِی ٱلۡأَیَّامِ ٱلۡخَالِیَةِ ﴿٢٤﴾
(उनसे कहा जायेगा :) आनंदपूर्वक खाओ और पियो, उसके बदले जो तुमने बीते दिनों में आगे भेजे।
وَأَمَّا مَنۡ أُوتِیَ كِتَـٰبَهُۥ بِشِمَالِهِۦ فَیَقُولُ یَـٰلَیۡتَنِی لَمۡ أُوتَ كِتَـٰبِیَهۡ ﴿٢٥﴾
और लेकिन जिसे उसका कर्म-पत्र उसके बाएँ हाथ में दिया गया, तो वह कहेगा : ऐ काश! मुझे मेरा कर्म-पत्र न दिया जाता।
یَـٰلَیۡتَهَا كَانَتِ ٱلۡقَاضِیَةَ ﴿٢٧﴾
ऐ काश! वह (मृत्यु) काम तमाम कर देने वाली[4] होती।
هَلَكَ عَنِّی سُلۡطَـٰنِیَهۡ ﴿٢٩﴾
मेरी सत्ता[5] मुझसे जाती रही।
ثُمَّ فِی سِلۡسِلَةࣲ ذَرۡعُهَا سَبۡعُونَ ذِرَاعࣰا فَٱسۡلُكُوهُ ﴿٣٢﴾
फिर एक ज़ंजीर में, जिसकी लंबाई सत्तर गज़ है, उसे जकड़ दो।
إِنَّهُۥ كَانَ لَا یُؤۡمِنُ بِٱللَّهِ ٱلۡعَظِیمِ ﴿٣٣﴾
निःसंदेह वह सबसे महान अल्लाह पर ईमान नहीं रखता था।
وَلَا یَحُضُّ عَلَىٰ طَعَامِ ٱلۡمِسۡكِینِ ﴿٣٤﴾
तथा ग़रीब को खाना खिलाने के लिए प्रोत्साहित नहीं करता था।
إِنَّهُۥ لَقَوۡلُ رَسُولࣲ كَرِیمࣲ ﴿٤٠﴾
निःसंदेह यह (क़ुरआन) एक सम्मानित रसूल[6] का कथन है।
وَمَا هُوَ بِقَوۡلِ شَاعِرࣲۚ قَلِیلࣰا مَّا تُؤۡمِنُونَ ﴿٤١﴾
और यह किसी कवि की वाणी नहीं है। तुम बहुत कम ईमान लाते हो।
وَلَا بِقَوۡلِ كَاهِنࣲۚ قَلِیلࣰا مَّا تَذَكَّرُونَ ﴿٤٢﴾
और न किसी काहिन की वाणी है, तुम बहुत कम शिक्षा ग्रहण करते हो।
وَلَوۡ تَقَوَّلَ عَلَیۡنَا بَعۡضَ ٱلۡأَقَاوِیلِ ﴿٤٤﴾
और यदि वह (नबी) हमपर कोई बात बनाकर[7] लगाता।
وَإِنَّا لَنَعۡلَمُ أَنَّ مِنكُم مُّكَذِّبِینَ ﴿٤٩﴾
तथा निःसंदेह हम निश्चित रूप से जानते हैं कि बेशक तुममें से कुछ झुठलाने वाले हैं।
وَإِنَّهُۥ لَحَسۡرَةٌ عَلَى ٱلۡكَـٰفِرِینَ ﴿٥٠﴾
और निःसंदेह वह निश्चित रूप से काफ़िरों[8] के लिए पछतावे का कारण है।