سَأَلَ سَاۤىِٕلُۢ بِعَذَابࣲ وَاقِعࣲ ﴿١﴾
एक माँगने वाले[1] ने वह यातना माँगी, जो घटित होने वाली है।
تَعۡرُجُ ٱلۡمَلَـٰۤىِٕكَةُ وَٱلرُّوحُ إِلَیۡهِ فِی یَوۡمࣲ كَانَ مِقۡدَارُهُۥ خَمۡسِینَ أَلۡفَ سَنَةࣲ ﴿٤﴾
फ़रिश्ते और रूह[2] उसकी ओर चढ़ेंगे, एक ऐसे दिन में जिसकी मात्रा पचास हज़ार वर्ष है।
وَتَكُونُ ٱلۡجِبَالُ كَٱلۡعِهۡنِ ﴿٩﴾
और पर्वत धुने हुए ऊन के समान हो जाएँगे।[3]
یُبَصَّرُونَهُمۡۚ یَوَدُّ ٱلۡمُجۡرِمُ لَوۡ یَفۡتَدِی مِنۡ عَذَابِ یَوۡمِىِٕذِۭ بِبَنِیهِ ﴿١١﴾
हालाँकि वे उन्हें दिखाए जा रहे होंगे। अपराधी चाहेगा कि काश उस दिन की यातना से बचने के लिए छुड़ौती में दे दे अपने बेटों को।
وَمَن فِی ٱلۡأَرۡضِ جَمِیعࣰا ثُمَّ یُنجِیهِ ﴿١٤﴾
और उन सभी लोगों[4] को जो धरती में हैं। फिर अपने आपको बचा ले।
تَدۡعُواْ مَنۡ أَدۡبَرَ وَتَوَلَّىٰ ﴿١٧﴾
वह उसे पुकारेगी, जिसने पीठ फेरी[5] और मुँह मोड़ा।
لِّلسَّاۤىِٕلِ وَٱلۡمَحۡرُومِ ﴿٢٥﴾
माँगने वाले तथा वंचित[6] के लिए।
وَٱلَّذِینَ هُم مِّنۡ عَذَابِ رَبِّهِم مُّشۡفِقُونَ ﴿٢٧﴾
और जो अपने पालनहार की यातना से डरने वाले हैं।
إِنَّ عَذَابَ رَبِّهِمۡ غَیۡرُ مَأۡمُونࣲ ﴿٢٨﴾
निश्चय उनके पालनहार की यातना ऐसी चीज़ है, जिससे निश्चिंत नहीं हुआ जा सकता।
إِلَّا عَلَىٰۤ أَزۡوَ ٰجِهِمۡ أَوۡ مَا مَلَكَتۡ أَیۡمَـٰنُهُمۡ فَإِنَّهُمۡ غَیۡرُ مَلُومِینَ ﴿٣٠﴾
सिवाय अपनी पत्नियों से या अपने स्वामित्व में आई दासियों[7] से, तो निश्चय वे निंदनीय नहीं हैं।
فَمَنِ ٱبۡتَغَىٰ وَرَاۤءَ ذَ ٰلِكَ فَأُوْلَـٰۤىِٕكَ هُمُ ٱلۡعَادُونَ ﴿٣١﴾
फिर जो इसके अलावा कुछ और चाहे, तो ऐसे ही लोग सीमा का उल्लंघन करने वाले हैं।
وَٱلَّذِینَ هُمۡ لِأَمَـٰنَـٰتِهِمۡ وَعَهۡدِهِمۡ رَ ٰعُونَ ﴿٣٢﴾
और जो अपनी अमानतों तथा अपनी प्रतिज्ञा का ध्यान रखने वाले हैं।
فَمَالِ ٱلَّذِینَ كَفَرُواْ قِبَلَكَ مُهۡطِعِینَ ﴿٣٦﴾
फिर इन काफ़िरों को क्या हुआ है कि वे आपकी ओर दौड़े चले आ रहे है?
عَنِ ٱلۡیَمِینِ وَعَنِ ٱلشِّمَالِ عِزِینَ ﴿٣٧﴾
दाएँ से और बाएँ से समूह के समूह।[8]
أَیَطۡمَعُ كُلُّ ٱمۡرِئࣲ مِّنۡهُمۡ أَن یُدۡخَلَ جَنَّةَ نَعِیمࣲ ﴿٣٨﴾
क्या उनमें से प्रत्येक व्यक्ति यह लालच रखता है कि उसे नेमत वाली जन्नत में दाखिल किया जाएगा?
كَلَّاۤۖ إِنَّا خَلَقۡنَـٰهُم مِّمَّا یَعۡلَمُونَ ﴿٣٩﴾
कदापि नहीं, निश्चय हमने उन्हें उस चीज़[9] से पैदा किया है, जिसे वे जानते हैं।
فَلَاۤ أُقۡسِمُ بِرَبِّ ٱلۡمَشَـٰرِقِ وَٱلۡمَغَـٰرِبِ إِنَّا لَقَـٰدِرُونَ ﴿٤٠﴾
तो मैं क़सम खाता हूँ पूर्वों (सूर्योदय के स्थानों) तथा पश्चिमों (सूर्यास्त के स्थानों) के रब की! निश्चय हम सक्षम हैं।
عَلَىٰۤ أَن نُّبَدِّلَ خَیۡرࣰا مِّنۡهُمۡ وَمَا نَحۡنُ بِمَسۡبُوقِینَ ﴿٤١﴾
कि उनके स्थान पर उनसे उत्तम लोग ले आएँ तथा हम विवश नहीं हैं।
فَذَرۡهُمۡ یَخُوضُواْ وَیَلۡعَبُواْ حَتَّىٰ یُلَـٰقُواْ یَوۡمَهُمُ ٱلَّذِی یُوعَدُونَ ﴿٤٢﴾
अतः आप उन्हें छोड़ दें कि वे व्यर्थ की बातों में लगे रहें तथा खेलते रहें, यहाँ तक कि उनका सामना उनके उस दिन से हो जाए, जिसका उनसे वादा किया जाता है।
یَوۡمَ یَخۡرُجُونَ مِنَ ٱلۡأَجۡدَاثِ سِرَاعࣰا كَأَنَّهُمۡ إِلَىٰ نُصُبࣲ یُوفِضُونَ ﴿٤٣﴾
जिस दिन वे क़ब्रों से तेज़ी से बाहर निकलेंगे, जैसे कि वे किसी निशान की ओर[10] दौड़े जा रहे हैं।