Surah सूरा अल्-जिन्न - Al-Jinn

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Surah सूरा अल्-जिन्न - Al-Jinn - Aya count 28

قُلۡ أُوحِیَ إِلَیَّ أَنَّهُ ٱسۡتَمَعَ نَفَرࣱ مِّنَ ٱلۡجِنِّ فَقَالُوۤاْ إِنَّا سَمِعۡنَا قُرۡءَانًا عَجَبࣰا ﴿١﴾

(ऐ नबी!) कह दें : मेरी ओर वह़्य[1] की गई है कि जिन्नों के एक समूह ने (मेरे क़ुरआन पढ़ने को) ध्यान से सुना। फिर उन्होंने कहा : निःसंदेह हमने एक अद्भुत क़ुरआन सुना है।

1. सूरतुल-अह़्क़ाफ़, आयत : 29 में इसका वर्णन किया गया है। इस सूरत में यह बताया गया है कि जब जिन्नों ने क़ुरआन सुना, तो आपने न जिन्नों को देखा और न आपको उसका ज्ञान हुआ। बल्कि आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को वह़्य (प्रकाशना) द्वारा इससे सूचित किया गया।


Arabic explanations of the Qur’an:

یَهۡدِیۤ إِلَى ٱلرُّشۡدِ فَـَٔامَنَّا بِهِۦۖ وَلَن نُّشۡرِكَ بِرَبِّنَاۤ أَحَدࣰا ﴿٢﴾

जो सीधी राह दिखाता है, तो हम उसपर ईमान ले आए और (अब) हम अपने पालनहार के साथ किसी को कभी साझी नहीं बनाएँगे।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَأَنَّهُۥ تَعَـٰلَىٰ جَدُّ رَبِّنَا مَا ٱتَّخَذَ صَـٰحِبَةࣰ وَلَا وَلَدࣰا ﴿٣﴾

तथा यह कि हमारे पालनहार की महिमा बहुत ऊँची है। उसने न (अपनी) कोई संगिनी (पत्नी) बनाई है और न कोई संतान।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَأَنَّهُۥ كَانَ یَقُولُ سَفِیهُنَا عَلَى ٱللَّهِ شَطَطࣰا ﴿٤﴾

तथा यह कि हमारा मूर्ख अल्लाह के बारे में सत्य से हटी हुई बात कहा करता था।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَأَنَّا ظَنَنَّاۤ أَن لَّن تَقُولَ ٱلۡإِنسُ وَٱلۡجِنُّ عَلَى ٱللَّهِ كَذِبࣰا ﴿٥﴾

और यह कि हमने समझ रखा था कि मनुष्य और जिन्न अल्लाह पर हरगिज़ कोई झूठी बात नहीं बोलेंगे।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَأَنَّهُۥ كَانَ رِجَالࣱ مِّنَ ٱلۡإِنسِ یَعُوذُونَ بِرِجَالࣲ مِّنَ ٱلۡجِنِّ فَزَادُوهُمۡ رَهَقࣰا ﴿٦﴾

और वास्तविकता यह है कि मनुष्यों में से कुछ लोग, जिन्नों में से कुछ लोगों की शरण लिया करते थे। तो उन्होंने उन (जिन्नों) को सरकशी में बढ़ा दिया।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَأَنَّهُمۡ ظَنُّواْ كَمَا ظَنَنتُمۡ أَن لَّن یَبۡعَثَ ٱللَّهُ أَحَدࣰا ﴿٧﴾

और यह कि उन (इनसानों) ने गुमान किया था, जैसे कि तुमने गुमान किया था कि अल्लाह किसी को कभी नहीं उठाएगा।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَأَنَّا لَمَسۡنَا ٱلسَّمَاۤءَ فَوَجَدۡنَـٰهَا مُلِئَتۡ حَرَسࣰا شَدِیدࣰا وَشُهُبࣰا ﴿٨﴾

तथा यह कि हमने आकाश को टटोला, तो उसे सख़्त पहरेदारों और उल्काओं से भरा हुआ पाया।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَأَنَّا كُنَّا نَقۡعُدُ مِنۡهَا مَقَـٰعِدَ لِلسَّمۡعِۖ فَمَن یَسۡتَمِعِ ٱلۡـَٔانَ یَجِدۡ لَهُۥ شِهَابࣰا رَّصَدࣰا ﴿٩﴾

और यह कि हम उसके कई स्थानों में सुनने के लिए बैठा करते थे। परन्तु, अब जो सुनने का प्रयास करता है, वह अपने लिए एक उल्का घात में लगा हुआ पाता है।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَأَنَّا لَا نَدۡرِیۤ أَشَرٌّ أُرِیدَ بِمَن فِی ٱلۡأَرۡضِ أَمۡ أَرَادَ بِهِمۡ رَبُّهُمۡ رَشَدࣰا ﴿١٠﴾

और यह कि हम नहीं जानते कि क्या धरती वालों के साथ किसी बुराई का इरादा किया गया है या उनके पालनहार ने उनके साथ किसी भलाई का इरादा किया है?


Arabic explanations of the Qur’an:

وَأَنَّا مِنَّا ٱلصَّـٰلِحُونَ وَمِنَّا دُونَ ذَ ٰ⁠لِكَۖ كُنَّا طَرَاۤىِٕقَ قِدَدࣰا ﴿١١﴾

और यह कि हममें से कुछ सदाचारी हैं तथा हममें से कुछ इसके अलावा हैं। हम विभिन्न तरीक़ों पर हैं।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَأَنَّا ظَنَنَّاۤ أَن لَّن نُّعۡجِزَ ٱللَّهَ فِی ٱلۡأَرۡضِ وَلَن نُّعۡجِزَهُۥ هَرَبࣰا ﴿١٢﴾

तथा यह कि हमें विश्वास हो गया कि निःसंदेह हम धरती में अल्लाह को कदापि विवश नहीं कर सकेंगे और न ही उसे भागकर कभी विवश कर सकेंगे।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَأَنَّا لَمَّا سَمِعۡنَا ٱلۡهُدَىٰۤ ءَامَنَّا بِهِۦۖ فَمَن یُؤۡمِنۢ بِرَبِّهِۦ فَلَا یَخَافُ بَخۡسࣰا وَلَا رَهَقࣰا ﴿١٣﴾

तथा यह कि जब हमने मार्गदर्शन की बात सुनी, तो उसपर ईमान ले आए। अब जो कोई अपने पालनहार पर ईमान लाएगा, तो वह न किसी हानि से डरेगा और न किसी अत्याचार से।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَأَنَّا مِنَّا ٱلۡمُسۡلِمُونَ وَمِنَّا ٱلۡقَـٰسِطُونَۖ فَمَنۡ أَسۡلَمَ فَأُوْلَـٰۤىِٕكَ تَحَرَّوۡاْ رَشَدࣰا ﴿١٤﴾

और यह कि हममें से कुछ आज्ञाकारी हैं और हममें से कुछ अत्याचारी हैं। फिर जो आज्ञाकारी हो गया, तो वही लोग हैं जिन्होंने सीधा रास्ता खोजा।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَأَمَّا ٱلۡقَـٰسِطُونَ فَكَانُواْ لِجَهَنَّمَ حَطَبࣰا ﴿١٥﴾

तथा जो अत्याचारी हैं, तो वे जहन्नम का ईंधन होंगे।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَأَلَّوِ ٱسۡتَقَـٰمُواْ عَلَى ٱلطَّرِیقَةِ لَأَسۡقَیۡنَـٰهُم مَّاۤءً غَدَقࣰا ﴿١٦﴾

और यह (वह़्य की गई है) कि यदि वे सीधी राह पर क़ायम रहते, तो हम उन्हें अवश्य भरपूर जल से सैराब करते।


Arabic explanations of the Qur’an:

لِّنَفۡتِنَهُمۡ فِیهِۚ وَمَن یُعۡرِضۡ عَن ذِكۡرِ رَبِّهِۦ یَسۡلُكۡهُ عَذَابࣰا صَعَدࣰا ﴿١٧﴾

ताकि हम उसमें उनका परीक्षण करें। और जो अपने पालनहार की याद से विमुख होगा, वह उसे कड़ी यातना में दाख़िल करेगा।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَأَنَّ ٱلۡمَسَـٰجِدَ لِلَّهِ فَلَا تَدۡعُواْ مَعَ ٱللَّهِ أَحَدࣰا ﴿١٨﴾

और यह कि मस्जिदें[2] केवल अल्लाह के लिए हैं। अतः अल्लाह के साथ किसी को भी मत पुकारो।

2. मस्जिद का अर्थ सज्दा करने का स्थान है। भावार्थ यह है कि अल्लाह के सिवा किसी अन्य की इबादत तथा उसके सिवा किसी से प्रार्थना तथा विनय करना अवैध है।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَأَنَّهُۥ لَمَّا قَامَ عَبۡدُ ٱللَّهِ یَدۡعُوهُ كَادُواْ یَكُونُونَ عَلَیۡهِ لِبَدࣰا ﴿١٩﴾

और यह कि जब अल्लाह का बंदा[3] उसे पुकारता हुआ खड़ा हुआ, तो निकट था कि वे उनपर जत्थे बनकर टूट पड़ते।

3. अल्लाह के भक्त से अभिप्राय मुह़म्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) हैं। तथा भावार्थ यह है कि जिन्न तथा मनुष्य मिल कर क़ुर्आन तथा इस्लाम की राह से रोकना चाहते हैं।


Arabic explanations of the Qur’an:

قُلۡ إِنَّمَاۤ أَدۡعُواْ رَبِّی وَلَاۤ أُشۡرِكُ بِهِۦۤ أَحَدࣰا ﴿٢٠﴾

आप कह दें : मैं तो केवल अपने पालनहार को पुकारता हूँ और उसके साथ किसी को साझी नहीं ठहराता।


Arabic explanations of the Qur’an:

قُلۡ إِنِّی لَاۤ أَمۡلِكُ لَكُمۡ ضَرࣰّا وَلَا رَشَدࣰا ﴿٢١﴾

आप कह दें : निःसंदेह मैं तुम्हारे लिए न किसी हानि का अधिकार रखता हूँ और न किसी भलाई का।


Arabic explanations of the Qur’an:

قُلۡ إِنِّی لَن یُجِیرَنِی مِنَ ٱللَّهِ أَحَدࣱ وَلَنۡ أَجِدَ مِن دُونِهِۦ مُلۡتَحَدًا ﴿٢٢﴾

आप कह दें : निश्चय मुझे कदापि कोई अल्लाह से नहीं बचा सकेगा[4] और न मैं उसके सिवा कभी कोई शरण का स्थान पाऊँगा।

4. अर्थात यदि मैं उसकी अवज्ञा करूँ और वह मुझे यातना देना चाहे।


Arabic explanations of the Qur’an:

إِلَّا بَلَـٰغࣰا مِّنَ ٱللَّهِ وَرِسَـٰلَـٰتِهِۦۚ وَمَن یَعۡصِ ٱللَّهَ وَرَسُولَهُۥ فَإِنَّ لَهُۥ نَارَ جَهَنَّمَ خَـٰلِدِینَ فِیهَاۤ أَبَدًا ﴿٢٣﴾

परंतु (मैं तो केवल) अल्लाह के आदेश पहुँचाने और उसके संदेशों का (अधिकार रखता हूँ)। और जो अल्लाह तथा उसके रसूल की अवज्ञा करेगा, तो निश्चय उसी के लिए जहन्नम की आग है, जिसमें वे हमेशा के लिए रहने वाले हैं।


Arabic explanations of the Qur’an:

حَتَّىٰۤ إِذَا رَأَوۡاْ مَا یُوعَدُونَ فَسَیَعۡلَمُونَ مَنۡ أَضۡعَفُ نَاصِرࣰا وَأَقَلُّ عَدَدࣰا ﴿٢٤﴾

यहाँ तक कि जब वे उस चीज़ को देख लेंगे, जिसका उनसे वादा किया जाता है, तो अवश्य जान लेंगे कि कौन है जो सहायक की दृष्टि से अधिक कमज़ोर है और जो संख्या में अधिक कम है?


Arabic explanations of the Qur’an:

قُلۡ إِنۡ أَدۡرِیۤ أَقَرِیبࣱ مَّا تُوعَدُونَ أَمۡ یَجۡعَلُ لَهُۥ رَبِّیۤ أَمَدًا ﴿٢٥﴾

आप कह दें : मैं नहीं जानता कि जिस चीज़ का तुमसे वादा किया जाता है, वह निकट है अथवा मेरा पालनहार उसके लिए कोई अवधि निर्धारित करेगा?


Arabic explanations of the Qur’an:

عَـٰلِمُ ٱلۡغَیۡبِ فَلَا یُظۡهِرُ عَلَىٰ غَیۡبِهِۦۤ أَحَدًا ﴿٢٦﴾

वही ग़ैब (प्रोक्ष) का जानने वाला है। वह अपने ग़ैब (प्रोक्ष) को किसी पर प्रकट नहीं करता।


Arabic explanations of the Qur’an:

إِلَّا مَنِ ٱرۡتَضَىٰ مِن رَّسُولࣲ فَإِنَّهُۥ یَسۡلُكُ مِنۢ بَیۡنِ یَدَیۡهِ وَمِنۡ خَلۡفِهِۦ رَصَدࣰا ﴿٢٧﴾

सिवाय किसी रसूल के, जिसे वह पसंद कर ले। तो निःसंदेह वह उसके आगे तथा उसके पीछे पहरेदार नियुक्त कर देता है।[5]

5. अर्थात ग़ैब (परोक्ष) का ज्ञान तो अल्लाह ही को है। किंतु यदि धर्म के विषय में कुछ परोक्ष की बातों की वह़्य अपने किसी रसूल की ओर करता है, तो फ़रिश्तों द्वारा उसकी रक्षा की व्यवस्था भी करता है ताकि उसमें कुछ मिलाया न जा सके। रसूल को जितना ग़ैब का ज्ञान दिया जाता है, वह इस आयत से उजागर हो जाता है। फिर भी कुछ लोग आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को पूरे ग़ैब का ज्ञानी मानते हैं। और आप को गुहारते और सब जगह उपस्थित कहते हैं। और तौह़ीद को आघात पहुँचा कर शिर्क करते हैं।


Arabic explanations of the Qur’an:

لِّیَعۡلَمَ أَن قَدۡ أَبۡلَغُواْ رِسَـٰلَـٰتِ رَبِّهِمۡ وَأَحَاطَ بِمَا لَدَیۡهِمۡ وَأَحۡصَىٰ كُلَّ شَیۡءٍ عَدَدَۢا ﴿٢٨﴾

ताकि वह जान ले कि उन्होंने वास्तव में अपने पालनहार के संदेश[6] पहुँचा दिए हैं। और उसने उन सभी चीज़ों को घेर रखा है, जो उनके पास हैं और प्रत्येक वस्तु को गिन रखा है।

6. अर्थात वह रसूलों की दशा को जानता है। उसने प्रत्येक चीज़ को गिन रखा है, ताकि रसूलों के संदेश पहुँचाने में कोई कमी-बेशी न हो। इसलिए लोगों को रसूलों की बातें मान लेनी चाहिए।


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