Surah सूरा अल्-मुज़्ज़म्मिल - Al-Muzzammil

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Surah सूरा अल्-मुज़्ज़म्मिल - Al-Muzzammil - Aya count 20

یَـٰۤأَیُّهَا ٱلۡمُزَّمِّلُ ﴿١﴾

ऐ कपड़े में लिपटने वाले!


Arabic explanations of the Qur’an:

قُمِ ٱلَّیۡلَ إِلَّا قَلِیلࣰا ﴿٢﴾

रात्रि के समय (नमाज़ में) खड़े रहें, सिवाय उसके थोड़े भाग के।[1]

1. ह़दीस में है कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) रात में इतनी नमाज़ पढ़ते थे कि आपके पैर सूज जाते थे। आपसे कहा गया : ऐसा क्यों करते हैं? जबकि अल्लाह ने आपके पहले और पिछले गुनाह क्षमा कर दिए हैं? आपने कहा : क्या मैं उसका कृतज्ञ बंदा न बनूँ? (बुख़ारी : 1130, मुस्लिम : 2819)


Arabic explanations of the Qur’an:

نِّصۡفَهُۥۤ أَوِ ٱنقُصۡ مِنۡهُ قَلِیلًا ﴿٣﴾

आधी रात (नमाज़ पढ़ें) अथवा उससे थोड़ा-सा कम कर लें।


Arabic explanations of the Qur’an:

أَوۡ زِدۡ عَلَیۡهِ وَرَتِّلِ ٱلۡقُرۡءَانَ تَرۡتِیلًا ﴿٤﴾

या उससे कुछ अधिक कर लें। और क़ुरआन को ठहर-ठहर कर पढ़ें।


Arabic explanations of the Qur’an:

إِنَّا سَنُلۡقِی عَلَیۡكَ قَوۡلࣰا ثَقِیلًا ﴿٥﴾

निश्चय हम आपपर (ऐ नबी!) एक भारी वाणी (क़ुरआन) उतारेंगे।


Arabic explanations of the Qur’an:

إِنَّ نَاشِئَةَ ٱلَّیۡلِ هِیَ أَشَدُّ وَطۡـࣰٔا وَأَقۡوَمُ قِیلًا ﴿٦﴾

निःसंदेह रात की इबादत हृदय में अधिक प्रभावी होती है और बात के लिए अधिक उपयुक्त होती है।


Arabic explanations of the Qur’an:

إِنَّ لَكَ فِی ٱلنَّهَارِ سَبۡحࣰا طَوِیلࣰا ﴿٧﴾

निःसंदेह आपके लिए दिन में बहुत-से कार्य हैं।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَٱذۡكُرِ ٱسۡمَ رَبِّكَ وَتَبَتَّلۡ إِلَیۡهِ تَبۡتِیلࣰا ﴿٨﴾

और अपने पालनहार के नाम का स्मरण करें और सबसे अलग होकर उसी की ओर ध्यान आकर्षित कर लें।


Arabic explanations of the Qur’an:

رَّبُّ ٱلۡمَشۡرِقِ وَٱلۡمَغۡرِبِ لَاۤ إِلَـٰهَ إِلَّا هُوَ فَٱتَّخِذۡهُ وَكِیلࣰا ﴿٩﴾

वह पूर्व तथा पश्चिम का पालनहार है। उसके सिवा कोई पूज्य नहीं। अतः तुम उसी को अपना कार्यसाधक बना लो।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَٱصۡبِرۡ عَلَىٰ مَا یَقُولُونَ وَٱهۡجُرۡهُمۡ هَجۡرࣰا جَمِیلࣰا ﴿١٠﴾

और जो कुछ वे कह रहे हैं[2], उसपर धैर्य से काम लें और उन्हें अच्छे ढंग से छोड़ दें।

2. अर्थात आपके तथा सत्धर्म के विरुद्ध।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَذَرۡنِی وَٱلۡمُكَذِّبِینَ أُوْلِی ٱلنَّعۡمَةِ وَمَهِّلۡهُمۡ قَلِیلًا ﴿١١﴾

तथा मुझे और इन झुठलाने वाले संपन्न लोगों को छोड़ दें और उन्हें थोड़ी-सी मोहलत दें।


Arabic explanations of the Qur’an:

إِنَّ لَدَیۡنَاۤ أَنكَالࣰا وَجَحِیمࣰا ﴿١٢﴾

निःसंदेह हमारे पास बेड़ियाँ हैं तथा भड़कती हुई आग।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَطَعَامࣰا ذَا غُصَّةࣲ وَعَذَابًا أَلِیمࣰا ﴿١٣﴾

और गले में फँस जाने वाला भोजन तथा दर्दनाक यातना है।


Arabic explanations of the Qur’an:

یَوۡمَ تَرۡجُفُ ٱلۡأَرۡضُ وَٱلۡجِبَالُ وَكَانَتِ ٱلۡجِبَالُ كَثِیبࣰا مَّهِیلًا ﴿١٤﴾

जिस दिन धरती और पर्वत काँप उठेंगे तथा पर्वत गिराई हुई रेत के ढेर हो जाएँगे।


Arabic explanations of the Qur’an:

إِنَّاۤ أَرۡسَلۡنَاۤ إِلَیۡكُمۡ رَسُولࣰا شَـٰهِدًا عَلَیۡكُمۡ كَمَاۤ أَرۡسَلۡنَاۤ إِلَىٰ فِرۡعَوۡنَ رَسُولࣰا ﴿١٥﴾

निःसंदेह हमने तुम्हारी ओर एक रसूल[3] भेजा, जो तुमपर गवाही देने वाला है, जिस प्रकार हमने फ़िरऔन की ओर एक रसूल भेजा।

3. अर्थात मुह़म्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को। गवाह होने के अर्थ के लिए देखिए : सूरतुल-बक़रा, आयत : 143, तथा सूरतुल-ह़ज्ज, आयत : 78। इसमें चेतावनी है कि यदि तुमने अवज्ञा की, तो तुम्हारी दशा भी फ़िरऔन जैसी होगी।


Arabic explanations of the Qur’an:

فَعَصَىٰ فِرۡعَوۡنُ ٱلرَّسُولَ فَأَخَذۡنَـٰهُ أَخۡذࣰا وَبِیلࣰا ﴿١٦﴾

चुनाँचे फ़िरऔन ने उस रसूल की अवज्ञा की, तो हमने उसकी बड़ी सख़्त पकड़ की।


Arabic explanations of the Qur’an:

فَكَیۡفَ تَتَّقُونَ إِن كَفَرۡتُمۡ یَوۡمࣰا یَجۡعَلُ ٱلۡوِلۡدَ ٰ⁠نَ شِیبًا ﴿١٧﴾

फिर तुम कैसे बचोगे, यदि तुमने कुफ्र किया, उस दिन से जो बच्चों को बूढ़े कर देगा?


Arabic explanations of the Qur’an:

ٱلسَّمَاۤءُ مُنفَطِرُۢ بِهِۦۚ كَانَ وَعۡدُهُۥ مَفۡعُولًا ﴿١٨﴾

उस दिन आकाश फट जाएगा। उसका वादा पूरा होकर रहेगा।


Arabic explanations of the Qur’an:

إِنَّ هَـٰذِهِۦ تَذۡكِرَةࣱۖ فَمَن شَاۤءَ ٱتَّخَذَ إِلَىٰ رَبِّهِۦ سَبِیلًا ﴿١٩﴾

निश्चय यह एक उपदेश है। अतः जो चाहे अपने पालनहार की ओर रास्ता बना ले।[4]

4. अर्थात इन आयतों का पालन करके अल्लाह की प्रसन्नता प्राप्त कर ले।


Arabic explanations of the Qur’an:

۞ إِنَّ رَبَّكَ یَعۡلَمُ أَنَّكَ تَقُومُ أَدۡنَىٰ مِن ثُلُثَیِ ٱلَّیۡلِ وَنِصۡفَهُۥ وَثُلُثَهُۥ وَطَاۤىِٕفَةࣱ مِّنَ ٱلَّذِینَ مَعَكَۚ وَٱللَّهُ یُقَدِّرُ ٱلَّیۡلَ وَٱلنَّهَارَۚ عَلِمَ أَن لَّن تُحۡصُوهُ فَتَابَ عَلَیۡكُمۡۖ فَٱقۡرَءُواْ مَا تَیَسَّرَ مِنَ ٱلۡقُرۡءَانِۚ عَلِمَ أَن سَیَكُونُ مِنكُم مَّرۡضَىٰ وَءَاخَرُونَ یَضۡرِبُونَ فِی ٱلۡأَرۡضِ یَبۡتَغُونَ مِن فَضۡلِ ٱللَّهِ وَءَاخَرُونَ یُقَـٰتِلُونَ فِی سَبِیلِ ٱللَّهِۖ فَٱقۡرَءُواْ مَا تَیَسَّرَ مِنۡهُۚ وَأَقِیمُواْ ٱلصَّلَوٰةَ وَءَاتُواْ ٱلزَّكَوٰةَ وَأَقۡرِضُواْ ٱللَّهَ قَرۡضًا حَسَنࣰاۚ وَمَا تُقَدِّمُواْ لِأَنفُسِكُم مِّنۡ خَیۡرࣲ تَجِدُوهُ عِندَ ٱللَّهِ هُوَ خَیۡرࣰا وَأَعۡظَمَ أَجۡرࣰاۚ وَٱسۡتَغۡفِرُواْ ٱللَّهَۖ إِنَّ ٱللَّهَ غَفُورࣱ رَّحِیمُۢ ﴿٢٠﴾

निःसंदेह आपका पालनहार जानता है कि आप (तहज्जुद की नमाज़ में) रात के दो-तिहाई भाग से कुछ कम तथा उसका आधा भाग और उसका एक-तिहाई भाग खड़े होते हैं। तथा आपके साथियों का एक समूह भी (ऐसा करता है)। और अल्लाह ही रात तथा दिन का अनुमान रखता है। उसने जान लिया कि तुम हरगिज़ उसकी क्षमता नहीं रखोगे। अतः उसने तुमपर दया की। अतः क़ुरआन में से जो आसान हो, पढ़ो।[5] वह जानता है कि निश्चय तुममें से कुछ लोग बीमार होंगे और कुछ अन्य लोग धरती में यात्रा करेंगे, अल्लाह का अनुग्रह तलाश करेंगे और कुछ दूसरे लोग अल्लाह की राह में युद्ध करेंगे। अतः उसमें से जो आसान हो, पढ़ो। तथा नमाज़ क़ायम करो और ज़कात दो और अल्लाह को उत्तम ऋण[6] दो। तथा तुम अपने लिए जो भी भलाई आगे भेजोगे, उसे अल्लाह के पास अति उत्तम और बदले की दृष्टि से बढ़कर पाओगे। और अल्लाह से क्षमा याचना करो। निःसंदेह अल्लाह अति क्षमाशील, अत्यंत दयावान् है।

5. क़ुरआन पढ़ने से अभिप्राय तहज्जुद की नमाज़ है। और अर्थ यह है कि रात्रि में जितनी नमाज़ हो सके, पढ़ लो। ह़दीस में है कि बंदा अल्लाह के सबसे समीप अंतिम रात्रि में होता है। तो तुम यदि हो सके कि उस समय अल्लाह को याद करो, तो याद करो। (तिर्मिज़ी : 3579, यह ह़दीस सह़ीह़ है।) 6.अच्छे ऋण से अभिप्राय अपने उचित साधन से अर्जित किए हुए धन को अल्लाह की प्रसन्नता के लिए उसके मार्ग में ख़र्च करना है। इसी को अल्लाह अपने ऊपर ऋण क़रार देता है। जिसका बदला वह सात सौ गुना तक, बल्कि उससे भी अधिक प्रदान करेगा। (देखिए सूरतुल-बक़रा, आयत : 261)


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