Surah सूरा अन्-नबा - An-Naba’

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Surah सूरा अन्-नबा - An-Naba’ - Aya count 40

عَمَّ یَتَسَاۤءَلُونَ ﴿١﴾

वे आपस में किस चीज़ के विषय में प्रश्न कर रहे हैं?


Arabic explanations of the Qur’an:

عَنِ ٱلنَّبَإِ ٱلۡعَظِیمِ ﴿٢﴾

बहुत बड़ी सूचना के विषय में।


Arabic explanations of the Qur’an:

ٱلَّذِی هُمۡ فِیهِ مُخۡتَلِفُونَ ﴿٣﴾

जिसमें वे मतभेद करने वाले हैं।


Arabic explanations of the Qur’an:

كَلَّا سَیَعۡلَمُونَ ﴿٤﴾

हरगिज़ नहीं, शीघ्र ही वे जान लेंगे।


Arabic explanations of the Qur’an:

ثُمَّ كَلَّا سَیَعۡلَمُونَ ﴿٥﴾

फिर हरगिज़ नहीं, शीघ्र ही वे जान लेंगे।[1]

1. (1-5) इन आयतों में उनको धिक्कारा गया है, जो प्रलय की हँसी उड़ाते हैं। जैसे उनके लिए प्रलय की सूचना किसी गंभीर चिंता के योग्य नहीं। परंतु वह दिन दूर नहीं जब प्रलय उनके आगे आ जाएगी और वे विश्व विधाता के सामने उत्तरदायित्व के लिए उपस्थित होंगे।


Arabic explanations of the Qur’an:

أَلَمۡ نَجۡعَلِ ٱلۡأَرۡضَ مِهَـٰدࣰا ﴿٦﴾

क्या हमने धरती को बिछौना नहीं बनाया?


Arabic explanations of the Qur’an:

وَٱلۡجِبَالَ أَوۡتَادࣰا ﴿٧﴾

और पर्वतों को मेखें?


Arabic explanations of the Qur’an:

وَخَلَقۡنَـٰكُمۡ أَزۡوَ ٰ⁠جࣰا ﴿٨﴾

तथा हमने तुम्हें जोड़े-जोड़े पैदा किया।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَجَعَلۡنَا نَوۡمَكُمۡ سُبَاتࣰا ﴿٩﴾

तथा हमने तुम्हारी नींद को आराम (का साधन) बनाया।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَجَعَلۡنَا ٱلَّیۡلَ لِبَاسࣰا ﴿١٠﴾

और हमने रात को आवरण बनाया।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَجَعَلۡنَا ٱلنَّهَارَ مَعَاشࣰا ﴿١١﴾

और हमने दिन को कमाने के लिए बनाया।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَبَنَیۡنَا فَوۡقَكُمۡ سَبۡعࣰا شِدَادࣰا ﴿١٢﴾

तथा हमने तुम्हारे ऊपर सात मज़बूत (आकाश) बनाए।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَجَعَلۡنَا سِرَاجࣰا وَهَّاجࣰا ﴿١٣﴾

और हमने एक प्रकाशमान् तप्त दीप (सूर्य) बनाया।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَأَنزَلۡنَا مِنَ ٱلۡمُعۡصِرَ ٰ⁠تِ مَاۤءࣰ ثَجَّاجࣰا ﴿١٤﴾

और हमने बदलियों से मूसलाधार पानी उतारा।


Arabic explanations of the Qur’an:

لِّنُخۡرِجَ بِهِۦ حَبࣰّا وَنَبَاتࣰا ﴿١٥﴾

ताकि हम उसके द्वारा अन्न और वनस्पति उगाएँ।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَجَنَّـٰتٍ أَلۡفَافًا ﴿١٦﴾

और घने-घने बाग़।[2]

2. (6-16) इन आयतों में अल्लाह की शक्ति और प्रतिपालन (रूबूबिय्यत) के लक्षण दर्शाए गए हैं, जो यह साक्ष्य देते हैं कि प्रतिकार (बदले) का दिन आवश्यक है, क्योंकि जिसके लिए इतनी बड़ी व्यवस्था की गई हो और उसे कर्मों के अधिकार भी दिए गए हों, तो उसके कर्मों का पुरस्कार या दंड तो मिलना ही चाहिए।


Arabic explanations of the Qur’an:

إِنَّ یَوۡمَ ٱلۡفَصۡلِ كَانَ مِیقَـٰتࣰا ﴿١٧﴾

निःसंदेह निर्णय (फ़ैसले) का दिन एक नियत समय है।


Arabic explanations of the Qur’an:

یَوۡمَ یُنفَخُ فِی ٱلصُّورِ فَتَأۡتُونَ أَفۡوَاجࣰا ﴿١٨﴾

जिस दिन सूर में फूँक मारी जाएगी, तो तुम दल के दल चले आओगे।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَفُتِحَتِ ٱلسَّمَاۤءُ فَكَانَتۡ أَبۡوَ ٰ⁠بࣰا ﴿١٩﴾

और आकाश खोल दिया जाएगा, तो उसमें द्वार ही द्वार हो जाएँगे।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَسُیِّرَتِ ٱلۡجِبَالُ فَكَانَتۡ سَرَابًا ﴿٢٠﴾

और पर्वत चलाए जाएँगे, तो वे मरीचिका बन जाएँगे।[3]

3. (17-20) इन आयतों में बताया जा रहा है कि निर्णय का दिन अपने निश्चित समय पर आकर रहेगा, उस दिन आकाश तथा धरती में एक बड़ी उथल-पुथल होगी। इसके लिए सूर में एक फूँक मारने की देर है। फिर जिसकी सूचना दी जा रही है तुम्हारे सामने आ जाएगी। तुम्हारे मानने या न मानने का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। और सब अपना ह़िसाब देने के लिए अल्लाह के न्यायालय की ओर चल पड़ेंगे।


Arabic explanations of the Qur’an:

إِنَّ جَهَنَّمَ كَانَتۡ مِرۡصَادࣰا ﴿٢١﴾

निःसंदेह जहन्नम घात में है।


Arabic explanations of the Qur’an:

لِّلطَّـٰغِینَ مَـَٔابࣰا ﴿٢٢﴾

सरकशों का ठिकाना है।


Arabic explanations of the Qur’an:

لَّـٰبِثِینَ فِیهَاۤ أَحۡقَابࣰا ﴿٢٣﴾

जिसमें वे अनगिनत वर्षों तक रहेंगे।


Arabic explanations of the Qur’an:

لَّا یَذُوقُونَ فِیهَا بَرۡدࣰا وَلَا شَرَابًا ﴿٢٤﴾

वे उसमें न कोई ठंड चखेंगे और न पीने की चीज़।


Arabic explanations of the Qur’an:

إِلَّا حَمِیمࣰا وَغَسَّاقࣰا ﴿٢٥﴾

सिवाय अत्यंत गर्म पानी और बहती पीप के।


Arabic explanations of the Qur’an:

جَزَاۤءࣰ وِفَاقًا ﴿٢٦﴾

यह पूरा-पूरा बदला है।


Arabic explanations of the Qur’an:

إِنَّهُمۡ كَانُواْ لَا یَرۡجُونَ حِسَابࣰا ﴿٢٧﴾

निःसंदेह वे हिसाब से नहीं डरते थे।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَكَذَّبُواْ بِـَٔایَـٰتِنَا كِذَّابࣰا ﴿٢٨﴾

तथा उन्होंने हमारी आयतों को बुरी तरह झुठलाया।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَكُلَّ شَیۡءٍ أَحۡصَیۡنَـٰهُ كِتَـٰبࣰا ﴿٢٩﴾

और हमने हर चीज़ को लिखकर संरक्षित कर रखा है।


Arabic explanations of the Qur’an:

فَذُوقُواْ فَلَن نَّزِیدَكُمۡ إِلَّا عَذَابًا ﴿٣٠﴾

तो चखो, हम तुम्हारे लिए यातना ही अधिक करते रहेंगे।[4]

4. (21-30) इन आयतों में बताया गया है कि जो ह़िसाब की आशा नहीं रखते और हमारी आयतों को नहीं मानते हमने उनकी एक-एक करतूत को गिनकर अपने यहाँ लिख रखा है। और उनकी ख़बर लेने के लिए नरक घात लगाए तैयार है, जहाँ उनके कुकर्मों का भरपूर बदला दिया जाएगा।


Arabic explanations of the Qur’an:

إِنَّ لِلۡمُتَّقِینَ مَفَازًا ﴿٣١﴾

निःसंदेह (अल्लाह से) डरने वालों के लिए सफलता है।


Arabic explanations of the Qur’an:

حَدَاۤىِٕقَ وَأَعۡنَـٰبࣰا ﴿٣٢﴾

बाग़ तथा अंगूर।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَكَوَاعِبَ أَتۡرَابࣰا ﴿٣٣﴾

और समान उम्र वाली नवयुवतियाँ।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَكَأۡسࣰا دِهَاقࣰا ﴿٣٤﴾

और छलकते हुए प्याले।


Arabic explanations of the Qur’an:

لَّا یَسۡمَعُونَ فِیهَا لَغۡوࣰا وَلَا كِذَّ ٰ⁠بࣰا ﴿٣٥﴾

वे उसमें न तो कोई व्यर्थ बात सुनेंगे और न (एक दूसरे को) झुठलाना।


Arabic explanations of the Qur’an:

جَزَاۤءࣰ مِّن رَّبِّكَ عَطَاۤءً حِسَابࣰا ﴿٣٦﴾

यह तुम्हारे पालनहार की ओर से बदले में ऐसा प्रदान है जो पर्याप्त होगा।


Arabic explanations of the Qur’an:

رَّبِّ ٱلسَّمَـٰوَ ٰ⁠تِ وَٱلۡأَرۡضِ وَمَا بَیۡنَهُمَا ٱلرَّحۡمَـٰنِۖ لَا یَمۡلِكُونَ مِنۡهُ خِطَابࣰا ﴿٣٧﴾

जो आकाशों और धरती तथा उनके बीच की हर चीज़ का पालनहार है, अत्यंत दयावान् है। उससे बात करने का उन्हें अधिकार नहीं होगा।


Arabic explanations of the Qur’an:

یَوۡمَ یَقُومُ ٱلرُّوحُ وَٱلۡمَلَـٰۤىِٕكَةُ صَفࣰّاۖ لَّا یَتَكَلَّمُونَ إِلَّا مَنۡ أَذِنَ لَهُ ٱلرَّحۡمَـٰنُ وَقَالَ صَوَابࣰا ﴿٣٨﴾

जिस दिन रूह़ (जिबरील) तथा फ़रिश्ते पंक्तियों में खड़े होंगे, उससे केवल वही बात कर सकेगा जिसे रहमान (अल्लाह) आज्ञा देगा और वह ठीक बात कहेगा।


Arabic explanations of the Qur’an:

ذَ ٰ⁠لِكَ ٱلۡیَوۡمُ ٱلۡحَقُّۖ فَمَن شَاۤءَ ٱتَّخَذَ إِلَىٰ رَبِّهِۦ مَـَٔابًا ﴿٣٩﴾

यही (वह) दिन है जो सत्य है। अतः जो चाहे अपने पालनहार की ओर लौटने की जगह (ठिकाना) बना ले।[5]

5. (37-39) इन आयतों में अल्लाह के न्यायालय में उपस्थिति (ह़ाज़िरी) का चित्र दिखाया गया है। और जो इस भ्रम में पड़े हैं कि उनके देवी-देवता आदि अभिस्ताव करेंगे उनको सावधान किया गया है कि उस दिन कोई बिना उस की आज्ञा के मुँह नहीं खोलेगा और अल्लाह की आज्ञा से अभिस्ताव भी करेगा तो उसी के लिए जो संसार में सत्य वचन "ला इलाहा इल्लल्लाह" को मानता हो। अल्लाह के द्रोही और सत्य के विरोधी किसी अभिस्ताव के योग्य नगीं होंगे।


Arabic explanations of the Qur’an:

إِنَّاۤ أَنذَرۡنَـٰكُمۡ عَذَابࣰا قَرِیبࣰا یَوۡمَ یَنظُرُ ٱلۡمَرۡءُ مَا قَدَّمَتۡ یَدَاهُ وَیَقُولُ ٱلۡكَافِرُ یَـٰلَیۡتَنِی كُنتُ تُرَ ٰ⁠بَۢا ﴿٤٠﴾

निःसंदेह हमने तुम्हें एक निकट ही आने वाली यातना से डरा दिया है, जिस दिन मनुष्य देख लेगा, जो कुछ उसके दोनों हाथों ने आगे भेजा है, और काफिर कहेगा : ऐ काश कि मैं मिट्टी होता![6]

6. (40) बात को इस चेतावनी पर समाप्त किया गया है कि जिस दिन के आने की सूचना दी जा रही है, उस का आना सत्य है, उसे दूर न समझो। अब जिसका दिल चाहे इसे मानकर अपने पालनहार की ओर मार्ग बना ले। परंतु इस चेतावनी के होते जो इनकार करेगा, उसका किया-धरा सामने आएगा, तो पछता-पछता कर यह कामना करेगा कि मैं संसार में पैदा ही न होता। उस समय इस संसार के बारे में उसका यह विचार होगा जिसके प्रेम में आज वह परलोक से अंधा बना हुआ है।


Arabic explanations of the Qur’an: