Surah सूरा अल्-अन्फ़ाल - Al-Anfāl

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Surah सूरा अल्-अन्फ़ाल - Al-Anfāl - Aya count 75

یَسۡـَٔلُونَكَ عَنِ ٱلۡأَنفَالِۖ قُلِ ٱلۡأَنفَالُ لِلَّهِ وَٱلرَّسُولِۖ فَٱتَّقُواْ ٱللَّهَ وَأَصۡلِحُواْ ذَاتَ بَیۡنِكُمۡۖ وَأَطِیعُواْ ٱللَّهَ وَرَسُولَهُۥۤ إِن كُنتُم مُّؤۡمِنِینَ ﴿١﴾

(ऐ नबी!) वे (आपके साथी) आपसे युद्ध में प्राप्त धन के विषय में पूछते हैं। आप कह दें कि युद्ध में प्राप्त धन अल्लाह और रसूल के हैं। अतः अल्लाह से डरो और आपस में सुधार रखो तथा अल्लाह और उसके रसूल की आज्ञा का पालन करो[1], यदि तुम ईमान वाले हो।

1. नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने तेरह वर्ष तक मक्का के मिश्रणवादियों के अत्याचार सहन किए। फिर मदीना हिजरत कर गए। परंतु वहाँ भी मक्का वासियों ने आप को चैन नहीं लेने दिया। और निरंतर आक्रमण आरंभ कर दिए। ऐसी दशा में आप भी अपनी रक्षा के लिए वीरता के साथ अपने 313 साथियों को लेकर बद्र के रणक्षेत्र में पहुँचे। जिसमें मिश्रणवादियों की पराजय हुई। और कुछ सामान भी मुसलमानों के हाथ आया। जिसे इस्लामी परिभाषा में "माले-ग़नीमत" कहा जाता है। और उसी के विषय में प्रश्न का उत्तर इस आयत में दिया गया है। यह प्रथम युद्ध हिजरत के दूसरे वर्ष हुआ।


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إِنَّمَا ٱلۡمُؤۡمِنُونَ ٱلَّذِینَ إِذَا ذُكِرَ ٱللَّهُ وَجِلَتۡ قُلُوبُهُمۡ وَإِذَا تُلِیَتۡ عَلَیۡهِمۡ ءَایَـٰتُهُۥ زَادَتۡهُمۡ إِیمَـٰنࣰا وَعَلَىٰ رَبِّهِمۡ یَتَوَكَّلُونَ ﴿٢﴾

(वास्तव में) ईमान वाले तो वही हैं कि जब अल्लाह का ज़िक्र किया जाए, तो उनके दिल काँप उठते हैं, और जब उनके सामने उसकी आयतें पढ़ी जाएँ, तो उनका ईमान बढ़ा देती हैं, और वे अपने पालनहार ही पर भरोसा रखते हैं।


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ٱلَّذِینَ یُقِیمُونَ ٱلصَّلَوٰةَ وَمِمَّا رَزَقۡنَـٰهُمۡ یُنفِقُونَ ﴿٣﴾

वे लोग जो नमाज़ स्थापित करते हैं तथा हमने उन्हें जो कुछ प्रदान किया है, उसमें से ख़र्च करते हैं।


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أُوْلَـٰۤىِٕكَ هُمُ ٱلۡمُؤۡمِنُونَ حَقࣰّاۚ لَّهُمۡ دَرَجَـٰتٌ عِندَ رَبِّهِمۡ وَمَغۡفِرَةࣱ وَرِزۡقࣱ كَرِیمࣱ ﴿٤﴾

वही सच्चे ईमान वाले हैं, उन्हीं के लिए उनके पालनहार के पास बहुत से दर्जे तथा बड़ी क्षमा और सम्मानित (उत्तम) जीविका है।


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كَمَاۤ أَخۡرَجَكَ رَبُّكَ مِنۢ بَیۡتِكَ بِٱلۡحَقِّ وَإِنَّ فَرِیقࣰا مِّنَ ٱلۡمُؤۡمِنِینَ لَكَـٰرِهُونَ ﴿٥﴾

जिस प्रकार[2] आपके पालनहार ने आपको आपके घर (मदीना) से (बहुदेववादियों से युद्ध के लिए) सत्य के साथ निकाला, हालाँकि निश्चय ईमान वालों का एक समूह तो (इसे) नापसंद करने वाला था।

2. अर्थात यह युद्ध के माल का विषय भी उसी प्रकार है कि अल्लाह ने उसे अपने और अपने रसूल का भाग बना दिया, जिस प्रकार अपने आदेश से आपको यूद्ध के लिये निकाला।


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یُجَـٰدِلُونَكَ فِی ٱلۡحَقِّ بَعۡدَ مَا تَبَیَّنَ كَأَنَّمَا یُسَاقُونَ إِلَى ٱلۡمَوۡتِ وَهُمۡ یَنظُرُونَ ﴿٦﴾

वे आपसे सच के बारे में झगड़ते थे, इसके बाद कि वह स्पष्ट हो चुका था, जैसे उन्हें मौत की ओर हाँका जा रहा है और वे उसे देख रहे हैं।


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وَإِذۡ یَعِدُكُمُ ٱللَّهُ إِحۡدَى ٱلطَّاۤىِٕفَتَیۡنِ أَنَّهَا لَكُمۡ وَتَوَدُّونَ أَنَّ غَیۡرَ ذَاتِ ٱلشَّوۡكَةِ تَكُونُ لَكُمۡ وَیُرِیدُ ٱللَّهُ أَن یُحِقَّ ٱلۡحَقَّ بِكَلِمَـٰتِهِۦ وَیَقۡطَعَ دَابِرَ ٱلۡكَـٰفِرِینَ ﴿٧﴾

तथा (वह समय याद करो) जब अल्लाह तुम्हें वचन दे रहा था कि दो गिरोहों[3] में से एक तुम्हारे हाथ आएगा और तुम चाहते थे कि निर्बल (निःशस्त्र) गिरोह तुम्हारे हाथ लगे। और अल्लाह चाहता था कि अपने वचन द्वारा सत्य को सिद्ध कर दे और काफ़िरों की जड़ काट दे।

3. अर्थात क़ुरैश मक्का का व्यापारिक क़ाफ़िला जो सीरिया की ओर से आ रहा था, या उनकी सेना जो मक्का से आ रही थी। इसमें निर्बल गिरोह व्यापारिक क़ाफ़िले को कहा गया है।


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لِیُحِقَّ ٱلۡحَقَّ وَیُبۡطِلَ ٱلۡبَـٰطِلَ وَلَوۡ كَرِهَ ٱلۡمُجۡرِمُونَ ﴿٨﴾

ताकि वह सत्य को सत्य कर दे और असत्य को असत्य कर दे, यद्यपि अपराधियों को बुरा लगे।


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إِذۡ تَسۡتَغِیثُونَ رَبَّكُمۡ فَٱسۡتَجَابَ لَكُمۡ أَنِّی مُمِدُّكُم بِأَلۡفࣲ مِّنَ ٱلۡمَلَـٰۤىِٕكَةِ مُرۡدِفِینَ ﴿٩﴾

जब तुम अपने पालनहार से (बद्र के युद्ध के समय) मदद माँग रहे थे, तो उसने तुम्हारी प्रार्थना स्वीकार कर ली कि निःसंदेह मैं एक हज़ार फ़रिश्तों के साथ तुम्हारी सहायता करने वाला हूँ, जो एक-दूसरे के पीछे आने वाले हैं।[4]

4. नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने बद्र के दिन कहा : यह घोड़े की लगाम थामे और हथियार लगाए जिब्रील अलैहिस्सलाम आए हुए हैं। (देखिए : सह़ीह़ बुख़ारी : 3995) इसी प्रकार एक मुसलमान एक मुश्रिक का पीछा कर रहा था कि अपने ऊपर से घुड़सवार की आवाज़ सुनी : हैज़ूम (घोड़े का नाम) आगे बढ़। फिर देखा कि मुश्रिक उसके सामने चित गिरा हुआ है। उसकी नाक और चेहरे पर कोड़े की मार का निशान है। फिर उसने यह बात नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को बताई। तो आपने कहा : सच्च है। यह तीसरे आकाश की सहायता है। (देखिए : सह़ीह़ मुस्लिम : 1763)


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وَمَا جَعَلَهُ ٱللَّهُ إِلَّا بُشۡرَىٰ وَلِتَطۡمَىِٕنَّ بِهِۦ قُلُوبُكُمۡۚ وَمَا ٱلنَّصۡرُ إِلَّا مِنۡ عِندِ ٱللَّهِۚ إِنَّ ٱللَّهَ عَزِیزٌ حَكِیمٌ ﴿١٠﴾

और अल्लाह ने यह इसलिए किया कि (तुम्हारे लिए) शुभ सूचना हो और ताकि इसके साथ तुम्हारे दिल संतुष्ट हो जाएँ। अन्यथा सहायता तो अल्लाह ही की ओर से होती है। निःसंदेह अल्लाह सब पर प्रभुत्वशाली, पूर्ण हिकमत वाला है।


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إِذۡ یُغَشِّیكُمُ ٱلنُّعَاسَ أَمَنَةࣰ مِّنۡهُ وَیُنَزِّلُ عَلَیۡكُم مِّنَ ٱلسَّمَاۤءِ مَاۤءࣰ لِّیُطَهِّرَكُم بِهِۦ وَیُذۡهِبَ عَنكُمۡ رِجۡزَ ٱلشَّیۡطَـٰنِ وَلِیَرۡبِطَ عَلَىٰ قُلُوبِكُمۡ وَیُثَبِّتَ بِهِ ٱلۡأَقۡدَامَ ﴿١١﴾

और वह समय याद करो जब अल्लाह अपनी ओर से शांति के लिए तुमपर ऊँघ डाल रहा था और तुमपर आकाश से जल बरसा रहा था, ताकि उसके द्वारा तुम्हें पाक कर दे और तुमसे शैतान की मलिनता दूर कर दे और तुम्हारे दिलों को मज़बूत कर दे और उसके द्वारा (तुम्हारे) पाँव जमा दे।[5]

5. बद्र के युद्ध के समय मुसलमानों की संख्या मात्र 313 थी। और सिवाय एक व्यक्ति के किसी के पास घोड़ा न था। मुसलमान डरे-सहमे थे। जल के स्थान पर शत्रु ने पहले ही अधिकार कर लिया था। भूमि रेतीली थी जिसमें पाँव धंस जाते थे। और शत्रु सवार थे। और उनकी संख्या भी तीन गुना थी। ऐसी दशा में अल्लाह ने मुसलमानों पर निद्रा उतारकर उन्हें निश्चिंत कर दिया और वर्षा करके पानी की व्यवस्था कर दी। जिससे भूमि भी कड़ी हो गई। और अपनी असफलता का भय जो शैतानी संशय था, वह भी दूर हो गया।


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إِذۡ یُوحِی رَبُّكَ إِلَى ٱلۡمَلَـٰۤىِٕكَةِ أَنِّی مَعَكُمۡ فَثَبِّتُواْ ٱلَّذِینَ ءَامَنُواْۚ سَأُلۡقِی فِی قُلُوبِ ٱلَّذِینَ كَفَرُواْ ٱلرُّعۡبَ فَٱضۡرِبُواْ فَوۡقَ ٱلۡأَعۡنَاقِ وَٱضۡرِبُواْ مِنۡهُمۡ كُلَّ بَنَانࣲ ﴿١٢﴾

जब आपका पालनहार फ़रिश्तों की ओर वह़्य कर रहा था कि निःसंदेह मैं तुम्हारे साथ हूँ। अतः तुम ईमान वालों को स्थिर रखो। शीघ्र ही मैं काफ़िरों के दिलों में भय डाल दूँगा। तो (ऐ मुसलमानों!) तुम उनकी गरदनों के ऊपर मारो तथा उनके पोर-पोर पर आघात पहुँचाओ।


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ذَ ٰ⁠لِكَ بِأَنَّهُمۡ شَاۤقُّواْ ٱللَّهَ وَرَسُولَهُۥۚ وَمَن یُشَاقِقِ ٱللَّهَ وَرَسُولَهُۥ فَإِنَّ ٱللَّهَ شَدِیدُ ٱلۡعِقَابِ ﴿١٣﴾

यह इसलिए कि निःसंदेह उन्होंने अल्लाह और उसके रसूल का विरोध किया तथा जो अल्लाह और उसके रसूल का विरोध करे, तो निःसंदेह अल्लाह कड़ी यातना देने वाला है।


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ذَ ٰ⁠لِكُمۡ فَذُوقُوهُ وَأَنَّ لِلۡكَـٰفِرِینَ عَذَابَ ٱلنَّارِ ﴿١٤﴾

यह है (तुम्हारी यातना), तो इसका स्वाद चखो और (जान लो कि) निःसंदेह काफ़िरों के लिए जहन्नम की यातना (भी) है।


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یَـٰۤأَیُّهَا ٱلَّذِینَ ءَامَنُوۤاْ إِذَا لَقِیتُمُ ٱلَّذِینَ كَفَرُواْ زَحۡفࣰا فَلَا تُوَلُّوهُمُ ٱلۡأَدۡبَارَ ﴿١٥﴾

ऐ ईमान वालो! जब तुम काफ़िरों की सेना से भिड़ो, तो उनसे पीठें न फेरो।


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وَمَن یُوَلِّهِمۡ یَوۡمَىِٕذࣲ دُبُرَهُۥۤ إِلَّا مُتَحَرِّفࣰا لِّقِتَالٍ أَوۡ مُتَحَیِّزًا إِلَىٰ فِئَةࣲ فَقَدۡ بَاۤءَ بِغَضَبࣲ مِّنَ ٱللَّهِ وَمَأۡوَىٰهُ جَهَنَّمُۖ وَبِئۡسَ ٱلۡمَصِیرُ ﴿١٦﴾

और जो कोई उस दिन उनसे अपनी पीठ फेरे, सिवाय उसके जो पलटकर आक्रमण करने वाला अथवा (अपने) किसी गिरोह से मिलने वाला हो, तो निश्चय वह अल्लाह के प्रकोप के साथ लौटा, और उसका ठिकाना जहन्नम है और वह लौटने की बुरी जगह है।


Arabic explanations of the Qur’an:

فَلَمۡ تَقۡتُلُوهُمۡ وَلَـٰكِنَّ ٱللَّهَ قَتَلَهُمۡۚ وَمَا رَمَیۡتَ إِذۡ رَمَیۡتَ وَلَـٰكِنَّ ٱللَّهَ رَمَىٰ وَلِیُبۡلِیَ ٱلۡمُؤۡمِنِینَ مِنۡهُ بَلَاۤءً حَسَنًاۚ إِنَّ ٱللَّهَ سَمِیعٌ عَلِیمࣱ ﴿١٧﴾

अतः (रणक्षेत्र में) तुमने उन्हें क़त्ल नहीं किया, परंतु अल्लाह ने उन्हें क़त्ल किया। और (ऐ नबी!) आपने नहीं फेंका जब आपने फेंका, परंतु अल्लाह ने फेंका। और (यह इसलिए हुआ) ताकि वह इसके द्वारा ईमान वालों को अच्छी तरह आज़माए। निःसंदेह अल्लाह सब कुछ सुनने वाला, सब कुछ जानने वाला है।[6]

6. आयत का भावार्थ यह है कि शत्रु पर विजय तुम्हारी शक्ति से नहीं हुई। इसी प्रकार नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने रणक्षेत्र में कंकरियाँ लेकर शत्रु की सेना की ओर फेंकी, जो प्रत्येक शत्रु की आँख में पड़ गई। और वहीं से उनकी पराजय का आरंभ हुआ, तो उस धूल को शत्रु की आँखों तक अल्लाह ही ने पहुँचाया था। (इब्ने कसीर)


Arabic explanations of the Qur’an:

ذَ ٰ⁠لِكُمۡ وَأَنَّ ٱللَّهَ مُوهِنُ كَیۡدِ ٱلۡكَـٰفِرِینَ ﴿١٨﴾

यह सब अल्लाह की ओर से है और निश्चय अल्लाह काफ़िरों की चालों को कमज़ोर करने वाला है।


Arabic explanations of the Qur’an:

إِن تَسۡتَفۡتِحُواْ فَقَدۡ جَاۤءَكُمُ ٱلۡفَتۡحُۖ وَإِن تَنتَهُواْ فَهُوَ خَیۡرࣱ لَّكُمۡۖ وَإِن تَعُودُواْ نَعُدۡ وَلَن تُغۡنِیَ عَنكُمۡ فِئَتُكُمۡ شَیۡـࣰٔا وَلَوۡ كَثُرَتۡ وَأَنَّ ٱللَّهَ مَعَ ٱلۡمُؤۡمِنِینَ ﴿١٩﴾

यदि तुम[7] निर्णय चाहते हो, तो तुम्हारे पास निर्णय आ चुका, और यदि तुम रुक जाओ, तो वह तुम्हारे लिए बेहतर है। और यदि तुम फिर पहले जैसा करोगे, तो हम (भी) वैसा ही करेंगे, और तुम्हारा जत्था हरगिज़ तुम्हारे कुछ काम न आएगा, चाहे वह बहुत अधिक हो। और निश्चय अल्लाह ईमान वालों के साथ है।

7. आयत में मक्का के काफ़िरों को संबोधित किया गया है, जो कहते थे कि यदि तुम सच्चे हो तो इसका निर्णय कब होगा? (देखिए : सूरतुस-सजदा, आयत : 28)


Arabic explanations of the Qur’an:

یَـٰۤأَیُّهَا ٱلَّذِینَ ءَامَنُوۤاْ أَطِیعُواْ ٱللَّهَ وَرَسُولَهُۥ وَلَا تَوَلَّوۡاْ عَنۡهُ وَأَنتُمۡ تَسۡمَعُونَ ﴿٢٠﴾

ऐ ईमान वालो! अल्लाह और उसके रसूल का आज्ञापालन करो और उससे मुँह न फेरो, जबकि तुम सुन रहे हो।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَلَا تَكُونُواْ كَٱلَّذِینَ قَالُواْ سَمِعۡنَا وَهُمۡ لَا یَسۡمَعُونَ ﴿٢١﴾

तथा उन लोगों के समान[8] न हो जाओ, जिन्होंने कहा कि हमने सुन लिया, हालाँकि वे नहीं सुनते।

8. इसमें संकेत अह्ले किताब की ओर है।


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۞ إِنَّ شَرَّ ٱلدَّوَاۤبِّ عِندَ ٱللَّهِ ٱلصُّمُّ ٱلۡبُكۡمُ ٱلَّذِینَ لَا یَعۡقِلُونَ ﴿٢٢﴾

निःसंदेह अल्लाह के निकट सब जानवरों से बुरे वे बहरे-गूँगे हैं, जो समझते नहीं।


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وَلَوۡ عَلِمَ ٱللَّهُ فِیهِمۡ خَیۡرࣰا لَّأَسۡمَعَهُمۡۖ وَلَوۡ أَسۡمَعَهُمۡ لَتَوَلَّواْ وَّهُم مُّعۡرِضُونَ ﴿٢٣﴾

और यदि अल्लाह उनके अंदर कोई भलाई जानता, तो उन्हें अवश्य सुना देता और यदि वह उन्हें सुना देता, तो भी वे मुँह फेर जाते, इस हाल में कि वे उपेक्षा करने वाले होते।


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یَـٰۤأَیُّهَا ٱلَّذِینَ ءَامَنُواْ ٱسۡتَجِیبُواْ لِلَّهِ وَلِلرَّسُولِ إِذَا دَعَاكُمۡ لِمَا یُحۡیِیكُمۡۖ وَٱعۡلَمُوۤاْ أَنَّ ٱللَّهَ یَحُولُ بَیۡنَ ٱلۡمَرۡءِ وَقَلۡبِهِۦ وَأَنَّهُۥۤ إِلَیۡهِ تُحۡشَرُونَ ﴿٢٤﴾

ऐ ईमान वालो! अल्लाह और उसके रसूल के बुलावे को स्वीकार करो, जब वह तुम्हें उस चीज़ के लिए बुलाए, जो तुम्हें[9] जीवन प्रदान करती है। और जान लो कि निःसंदेह अल्लाह आदमी और उसके दिल के बीच रुकावट[10] बन जाता है। और यह कि निःसंदेह तुम उसी की ओर लौटाए जाओगे।

9. इससे अभिप्राय क़ुरआन तथा इस्लाम है। (इब्ने कसीर) 10. अर्थात जो अल्लाह और उसके रसूल की बात नहीं मानता, तो अल्लाह उसे मार्गदर्शन भी नहीं देता।


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وَٱتَّقُواْ فِتۡنَةࣰ لَّا تُصِیبَنَّ ٱلَّذِینَ ظَلَمُواْ مِنكُمۡ خَاۤصَّةࣰۖ وَٱعۡلَمُوۤاْ أَنَّ ٱللَّهَ شَدِیدُ ٱلۡعِقَابِ ﴿٢٥﴾

तथा उस फ़ितने से बचो, जो तुममें से विशेष रूप से अत्याचारियों ही पर नहीं आएगा और जान लो कि अल्लाह कड़ी यातना[11] देने वाला है।

11. इस आयत का भावार्थ यह है कि अपने समाज में बुराइयों को न पनपने दो। अन्यथा जो आपदा आएगी वह सब पर आएगी। (इब्ने कसीर)


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وَٱذۡكُرُوۤاْ إِذۡ أَنتُمۡ قَلِیلࣱ مُّسۡتَضۡعَفُونَ فِی ٱلۡأَرۡضِ تَخَافُونَ أَن یَتَخَطَّفَكُمُ ٱلنَّاسُ فَـَٔاوَىٰكُمۡ وَأَیَّدَكُم بِنَصۡرِهِۦ وَرَزَقَكُم مِّنَ ٱلطَّیِّبَـٰتِ لَعَلَّكُمۡ تَشۡكُرُونَ ﴿٢٦﴾

तथा वह समय याद करो, जब तुम बहुत थोड़े थे, धरती (मक्का) में बहुत कमज़ोर समझे गए थे। तुम डरते थे कि लोग तुम्हें उचक कर ले जाएँगे। तो उस (अल्लाह) ने तुम्हें (मदीना में) शरण दी और अपनी सहायता द्वारा तुम्हें शक्ति प्रदान की और तुम्हें पवित्र चीज़ों से जीविका प्रदान की, ताकि तुम शुक्रिया अदा करो।


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یَـٰۤأَیُّهَا ٱلَّذِینَ ءَامَنُواْ لَا تَخُونُواْ ٱللَّهَ وَٱلرَّسُولَ وَتَخُونُوۤاْ أَمَـٰنَـٰتِكُمۡ وَأَنتُمۡ تَعۡلَمُونَ ﴿٢٧﴾

ऐ ईमान वालो! अल्लाह तथा उसके रसूल के साथ विश्वासघात न करो और न अपनी अमानतों में ख़यानत[12] करो, जबकि तुम जानते हो।

12. अर्थात अल्लाह और उसके रसूल के लिए जो तुम्हारा दायित्व और कर्तव्य है, उसे पूरा करो। (इब्ने कसीर)


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وَٱعۡلَمُوۤاْ أَنَّمَاۤ أَمۡوَ ٰ⁠لُكُمۡ وَأَوۡلَـٰدُكُمۡ فِتۡنَةࣱ وَأَنَّ ٱللَّهَ عِندَهُۥۤ أَجۡرٌ عَظِیمࣱ ﴿٢٨﴾

तथा जान लो कि तुम्हारे धन और तुम्हारी संतान एक परीक्षण हैं और यह कि निश्चय अल्लाह के पास बहुत बड़ा प्रतिफल है।


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یَـٰۤأَیُّهَا ٱلَّذِینَ ءَامَنُوۤاْ إِن تَتَّقُواْ ٱللَّهَ یَجۡعَل لَّكُمۡ فُرۡقَانࣰا وَیُكَفِّرۡ عَنكُمۡ سَیِّـَٔاتِكُمۡ وَیَغۡفِرۡ لَكُمۡۗ وَٱللَّهُ ذُو ٱلۡفَضۡلِ ٱلۡعَظِیمِ ﴿٢٩﴾

ऐ ईमान वालो! यदि तुम अल्लाह से डरोगे, तो वह तुम्हें (सत्य और असत्य के बीच) अंतर करने की शक्ति[13] प्रदान करेगा तथा तुमसे तुम्हारी बुराइयाँ दूर कर देगा और तुम्हे क्षमा कर देगा। और अल्लाह बहुत बड़े अनुग्रह वाला है।

13. कुछ ने इसका अर्थ निर्णय लिया है। अर्थात अल्लाह तुम्हारे और तुम्हारे विरोधियों के बीच निर्णय कर देगा।


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وَإِذۡ یَمۡكُرُ بِكَ ٱلَّذِینَ كَفَرُواْ لِیُثۡبِتُوكَ أَوۡ یَقۡتُلُوكَ أَوۡ یُخۡرِجُوكَۚ وَیَمۡكُرُونَ وَیَمۡكُرُ ٱللَّهُۖ وَٱللَّهُ خَیۡرُ ٱلۡمَـٰكِرِینَ ﴿٣٠﴾

तथा (ऐ नबी! वह समय याद करो) जब (मक्का में) काफ़िर आपके विरुद्ध गुप्त उपाय कर रहे थे, ताकि आपको क़ैद कर दें, अथवा आपका वध कर दें अथवा आपको (देश से) बाहर निकाल दें। तथा वे गुप्त उपाय कर रहे थे और अल्लाह भी गुप्त उपाय कर रहा था और अल्लाह सब गुप्त उपाय करने वालों से बेहतर गुप्त उपाय करने वाला है।[14]

14. अर्थात उनकी सभी योजनाओं को विफल करके आपको सुरक्षित मदीना पहुँचा दिया।


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وَإِذَا تُتۡلَىٰ عَلَیۡهِمۡ ءَایَـٰتُنَا قَالُواْ قَدۡ سَمِعۡنَا لَوۡ نَشَاۤءُ لَقُلۡنَا مِثۡلَ هَـٰذَاۤ إِنۡ هَـٰذَاۤ إِلَّاۤ أَسَـٰطِیرُ ٱلۡأَوَّلِینَ ﴿٣١﴾

और जब उनके सामने हमारी आयतें पढ़ी जाती है, तो वे कहते हैं : निःसंदेह हमने सुन लिया। यदि हम चाहें, तो निश्चय इस (क़ुरआन) जैसा हम भी कह दें। यह तो पहले लोगों की काल्पनिक कहानियों के सिवा कुछ नहीं।


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وَإِذۡ قَالُواْ ٱللَّهُمَّ إِن كَانَ هَـٰذَا هُوَ ٱلۡحَقَّ مِنۡ عِندِكَ فَأَمۡطِرۡ عَلَیۡنَا حِجَارَةࣰ مِّنَ ٱلسَّمَاۤءِ أَوِ ٱئۡتِنَا بِعَذَابٍ أَلِیمࣲ ﴿٣٢﴾

तथा (याद करो) जब उन्होंने कहा : ऐ अल्लाह! यदि यही[15] तेरी ओर से सत्य है, तो हमपर आकाश से पत्थरों की वर्षा कर दे अथवा हमपर कोई दुःखदायी यातना ले आ।

15. अर्थात क़ुरआन। यह बात क़ुरैश के मुखिया अबू जह्ल ने कही थी, जिसपर आगे की आयत उतरी। (सह़ीह़ बुख़ारी : 4648)


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وَمَا كَانَ ٱللَّهُ لِیُعَذِّبَهُمۡ وَأَنتَ فِیهِمۡۚ وَمَا كَانَ ٱللَّهُ مُعَذِّبَهُمۡ وَهُمۡ یَسۡتَغۡفِرُونَ ﴿٣٣﴾

और अल्लाह कभी ऐसा नहीं कि उनमें आपके होते हुए उन्हें यातना दे, और अल्लाह उन्हें कभी यातना देने वाला नहीं, जब कि वे क्षमा याचना करते हों।


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وَمَا لَهُمۡ أَلَّا یُعَذِّبَهُمُ ٱللَّهُ وَهُمۡ یَصُدُّونَ عَنِ ٱلۡمَسۡجِدِ ٱلۡحَرَامِ وَمَا كَانُوۤاْ أَوۡلِیَاۤءَهُۥۤۚ إِنۡ أَوۡلِیَاۤؤُهُۥۤ إِلَّا ٱلۡمُتَّقُونَ وَلَـٰكِنَّ أَكۡثَرَهُمۡ لَا یَعۡلَمُونَ ﴿٣٤﴾

और उन्हें क्या है कि अल्लाह उन्हें यातना न दे, जबकि वे 'मस्जिदे ह़राम' (का'बा) से रोक रहे हैं, हालाँकि वे उसके संरक्षक नहीं। उसके संरक्षक तो केवल अल्लाह के डरने वाले बंदे हैं। परंतु उनके अधिकांश लोग नहीं जानते।


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وَمَا كَانَ صَلَاتُهُمۡ عِندَ ٱلۡبَیۡتِ إِلَّا مُكَاۤءࣰ وَتَصۡدِیَةࣰۚ فَذُوقُواْ ٱلۡعَذَابَ بِمَا كُنتُمۡ تَكۡفُرُونَ ﴿٣٥﴾

और उनकी नमाज़ उस घर (काबा) के पास सीटियाँ बजाने और तालियाँ बजाने के सिवा कुछ भी नहीं होती। तो अब अपने कुफ़्र (इनकार) के बदले यातना[16] का स्वाद चखो।

16. अर्थात बद्र में पराजय की यातना।


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إِنَّ ٱلَّذِینَ كَفَرُواْ یُنفِقُونَ أَمۡوَ ٰ⁠لَهُمۡ لِیَصُدُّواْ عَن سَبِیلِ ٱللَّهِۚ فَسَیُنفِقُونَهَا ثُمَّ تَكُونُ عَلَیۡهِمۡ حَسۡرَةࣰ ثُمَّ یُغۡلَبُونَۗ وَٱلَّذِینَ كَفَرُوۤاْ إِلَىٰ جَهَنَّمَ یُحۡشَرُونَ ﴿٣٦﴾

निःसंदेह जिन लोगों ने कुफ़्र किया, वे अपने धन ख़र्च करते हैं ताकि अल्लाह के रास्ते से रोकें। तो वे उन्हें ख़र्च करते रहेंगे, फिर (ऐसा समय आएगा कि) वह उनके लिए पछतावे का कारण होगा। फिर वे पराजित होंगे। तथा जिन लोगों ने कुफ़्र किया, वे जहन्नम की ओर एकत्र किए जाएँगे।


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لِیَمِیزَ ٱللَّهُ ٱلۡخَبِیثَ مِنَ ٱلطَّیِّبِ وَیَجۡعَلَ ٱلۡخَبِیثَ بَعۡضَهُۥ عَلَىٰ بَعۡضࣲ فَیَرۡكُمَهُۥ جَمِیعࣰا فَیَجۡعَلَهُۥ فِی جَهَنَّمَۚ أُوْلَـٰۤىِٕكَ هُمُ ٱلۡخَـٰسِرُونَ ﴿٣٧﴾

ताकि अल्लाह अपवित्र को पवित्र से अलग कर दे, तथा अपवित्र को एक पर एक रखकर ढेर बना दे। फिर उसे जहन्नम में फेंक दे। यही लोग घाटे में पड़ने वाले हैं।


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قُل لِّلَّذِینَ كَفَرُوۤاْ إِن یَنتَهُواْ یُغۡفَرۡ لَهُم مَّا قَدۡ سَلَفَ وَإِن یَعُودُواْ فَقَدۡ مَضَتۡ سُنَّتُ ٱلۡأَوَّلِینَ ﴿٣٨﴾

(ऐ नबी!) इन काफ़िरों से कह दें : यदि वे बाज़ आ जाएँ[17], तो जो कुछ हो चुका, उन्हें क्षमा कर दिया जाएगा, और यदि वे फिर ऐसा ही करें, तो पहले लोगों (के बारे में अल्लाह) का तरीक़ा गुज़र ही चुका है।

17. अर्थात ईमान ले आएँ।


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وَقَـٰتِلُوهُمۡ حَتَّىٰ لَا تَكُونَ فِتۡنَةࣱ وَیَكُونَ ٱلدِّینُ كُلُّهُۥ لِلَّهِۚ فَإِنِ ٱنتَهَوۡاْ فَإِنَّ ٱللَّهَ بِمَا یَعۡمَلُونَ بَصِیرࣱ ﴿٣٩﴾

तथा उनसे युद्ध करो, यहाँ तक कि कोई फ़ितना[18] न रह जाए और धर्म पूरा का पूरा अल्लाह के लिए हो जाए। फिर यदि वे बाज़ आ जाएँ, तो निःसंदेह अल्लाह जो कुछ वे कर रहे हैं, उसे खूब देखने वाला है।

18. इब्ने उमर (रज़ियल्लाहु अन्हुमा) ने कहा : नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) मुश्रिकों से उस समय युद्ध कर रहे थे जब मुसलमान कम थे। और उन्हें अपने धर्म के कारण सताया, मारा और बंदी बना लिया जाता था। (सह़ीह़ बुख़ारी : 4650, 4651)


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وَإِن تَوَلَّوۡاْ فَٱعۡلَمُوۤاْ أَنَّ ٱللَّهَ مَوۡلَىٰكُمۡۚ نِعۡمَ ٱلۡمَوۡلَىٰ وَنِعۡمَ ٱلنَّصِیرُ ﴿٤٠﴾

और यदि वे मुँह फेरें, तो जान लो कि निश्चय अल्लाह तुम्हारा संरक्षक है। वह बहुत अच्छा संरक्षक तथा बहुत अच्छा सहायक है।


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۞ وَٱعۡلَمُوۤاْ أَنَّمَا غَنِمۡتُم مِّن شَیۡءࣲ فَأَنَّ لِلَّهِ خُمُسَهُۥ وَلِلرَّسُولِ وَلِذِی ٱلۡقُرۡبَىٰ وَٱلۡیَتَـٰمَىٰ وَٱلۡمَسَـٰكِینِ وَٱبۡنِ ٱلسَّبِیلِ إِن كُنتُمۡ ءَامَنتُم بِٱللَّهِ وَمَاۤ أَنزَلۡنَا عَلَىٰ عَبۡدِنَا یَوۡمَ ٱلۡفُرۡقَانِ یَوۡمَ ٱلۡتَقَى ٱلۡجَمۡعَانِۗ وَٱللَّهُ عَلَىٰ كُلِّ شَیۡءࣲ قَدِیرٌ ﴿٤١﴾

और जान लो[19] कि निःसंदेह तुम्हें जो कुछ भी ग़नीमत के रूप में मिले, तो निश्चय उसका पाँचवाँ भाग अल्लाह के लिए तथा रसूल के लिए और (आपके) निकट-संबंधियों तथा अनाथों, निर्धनों और यात्रियों के लिए है, यदि तुम अल्लाह पर तथा उस चीज़ पर ईमान लाए हो, जो हमने अपने बंदे[20] पर निर्णय के दिन उतारी। जिस दिन, दो सेनाएँ भिड़ गईं और अल्लाह हर चीज़ पर सर्वशक्तिमान है।

19. इसमें ग़नीमत (युद्ध में मिले सामान) के वितरण का नियम बताया गया है कि उसके पाँच भाग करके चार भाग मुजाहिदों को दिए जाएँ। पैदल को एक भाग तथा सवार को तीन भाग। फिर पाँचवाँ भाग अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के लिए था जिसे आप अपने परिवार और रिश्तेदारों तथा अनाथों और निर्धनों की सहायता के लिए ख़र्च करते थे। इस प्रकार इस्लाम ने अनाथों और निर्धनों की सहायता पर सदा ध्यान दिया है। और ग़नीमत में उन्हें भी भाग दिया है, यह इस्लाम की वह विशेषता है जो किसी धर्म में नहीं मिलेगी। 20. अर्थात मुह़म्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) पर। निर्णय के दिन से अभिप्राय बद्र के युद्ध का दिन है जो सत्य और असत्य के बीच निर्णय का दिन था। जिसमें काफ़िरों के बड़े-बड़े प्रमुख और वीर मारे गए, जिनके शव बद्र के एक कुएँ में फेंक दिए गए। फिर आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) कुएँ के किनारे खड़े हुए और उन्हें उनके नामों से पुकारने लगे कि क्या तुम प्रसन्न होते कि अल्लाह और उसके रसूल को मानते? हमने अपने पालनहार का वचन सच्च पाया तो क्या तुमने सच्च पाया? उमर (रज़ियल्लाहु अन्हु) ने कहा : क्या आप ऐसे शरीरों से बात कर रहे हैं जिनमें प्राण नहीं? आपने कहा : मेरी बात तुम उनसे अधिक नहीं सुन रहे हो। (सह़ीह़ बुख़ारी : 3976)


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إِذۡ أَنتُم بِٱلۡعُدۡوَةِ ٱلدُّنۡیَا وَهُم بِٱلۡعُدۡوَةِ ٱلۡقُصۡوَىٰ وَٱلرَّكۡبُ أَسۡفَلَ مِنكُمۡۚ وَلَوۡ تَوَاعَدتُّمۡ لَٱخۡتَلَفۡتُمۡ فِی ٱلۡمِیعَـٰدِ وَلَـٰكِن لِّیَقۡضِیَ ٱللَّهُ أَمۡرࣰا كَانَ مَفۡعُولࣰا لِّیَهۡلِكَ مَنۡ هَلَكَ عَنۢ بَیِّنَةࣲ وَیَحۡیَىٰ مَنۡ حَیَّ عَنۢ بَیِّنَةࣲۗ وَإِنَّ ٱللَّهَ لَسَمِیعٌ عَلِیمٌ ﴿٤٢﴾

तथा उस समय को याद करो, जब तुम (घाटी के) निकटवर्ती छोर पर थे तथा वे (तुम्हारे शत्रु) दूरस्थ छोर पर थे और क़ाफ़िला तुमसे नीचे की ओर था। और अगर तुमने एक-दूसरे से वादा किया होता, तो तुम निश्चित रूप से नियत समय के बारे में आगे-पीछे हो जाते। लेकिन ताकि अल्लाह उस काम को पूरा कर दे, जो किया जाने वाला था। ताकि जो नष्ट हो, वह स्पष्ट प्रमाण के साथ नष्ट हो और जो जीवित रहे वह स्पष्ट प्रमाण के साथ जीवित रहे, और निःसंदेह अल्लाह सब कुछ सुनने वाला, सब कुछ जानने वाला है।


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إِذۡ یُرِیكَهُمُ ٱللَّهُ فِی مَنَامِكَ قَلِیلࣰاۖ وَلَوۡ أَرَىٰكَهُمۡ كَثِیرࣰا لَّفَشِلۡتُمۡ وَلَتَنَـٰزَعۡتُمۡ فِی ٱلۡأَمۡرِ وَلَـٰكِنَّ ٱللَّهَ سَلَّمَۚ إِنَّهُۥ عَلِیمُۢ بِذَاتِ ٱلصُّدُورِ ﴿٤٣﴾

जब अल्लाह आपको आपके सपने[21] में उन्हें थोड़े दिखा रहा था, और यदि वह आपको उन्हें अधिक दिखाता, तो तुम अवश्य साहस खो देते और अवश्य इस मामले में आपस में झगड़ पड़ते। परंतु अल्लाह ने बचा लिया। निःसंदेह वह सीनों की बातों से भली-भाँति अवगत है।

21. इसमें उस स्वप्न की ओर संकेत है, जो आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को युद्ध से पहले दिखाया गया था।


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وَإِذۡ یُرِیكُمُوهُمۡ إِذِ ٱلۡتَقَیۡتُمۡ فِیۤ أَعۡیُنِكُمۡ قَلِیلࣰا وَیُقَلِّلُكُمۡ فِیۤ أَعۡیُنِهِمۡ لِیَقۡضِیَ ٱللَّهُ أَمۡرࣰا كَانَ مَفۡعُولࣰاۗ وَإِلَى ٱللَّهِ تُرۡجَعُ ٱلۡأُمُورُ ﴿٤٤﴾

तथा जब वह तुम्हें, जब तुम्हारी परस्पर मुठभेड़ हुई, उनको तुम्हारी नज़रों में थोड़े दिखाता था, और तुमको उनकी नज़रों में बहुत कम करके दिखाता था, ताकि अल्लाह उस काम को पूरा कर दे, जो किया जाने वाला था। और सारे मामले अल्लाह ही की ओर लौटाए जाते हैं।[22]

22. अर्थात सबका निर्णय वही करता है।


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یَـٰۤأَیُّهَا ٱلَّذِینَ ءَامَنُوۤاْ إِذَا لَقِیتُمۡ فِئَةࣰ فَٱثۡبُتُواْ وَٱذۡكُرُواْ ٱللَّهَ كَثِیرࣰا لَّعَلَّكُمۡ تُفۡلِحُونَ ﴿٤٥﴾

ऐ ईमान वालो! जब तुम किसी गिरोह से भिड़ो, तो जमे रहो तथा अल्लाह को बहुत याद करो, ताकि तुम्हें सफलता प्राप्त हो।


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وَأَطِیعُواْ ٱللَّهَ وَرَسُولَهُۥ وَلَا تَنَـٰزَعُواْ فَتَفۡشَلُواْ وَتَذۡهَبَ رِیحُكُمۡۖ وَٱصۡبِرُوۤاْۚ إِنَّ ٱللَّهَ مَعَ ٱلصَّـٰبِرِینَ ﴿٤٦﴾

तथा अल्लाह और उसके रसूल की आज्ञा का पालन करो और आपस में विवाद न करो, अन्यथा तुम कायर बन जाओगे और तुम्हारी हवा उखड़ जाएगी। तथा धैर्य रखो, निःसंदेह अल्लाह धैर्य रखने वालों के साथ है।


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وَلَا تَكُونُواْ كَٱلَّذِینَ خَرَجُواْ مِن دِیَـٰرِهِم بَطَرࣰا وَرِئَاۤءَ ٱلنَّاسِ وَیَصُدُّونَ عَن سَبِیلِ ٱللَّهِۚ وَٱللَّهُ بِمَا یَعۡمَلُونَ مُحِیطࣱ ﴿٤٧﴾

और उन[23] लोगों के समान न हो जाओ, जो अपने घरों से इतराते हुए तथा लोगों को दिखावा करते हुए निकले। और वे अल्लाह के मार्ग से रोकते थे। हालाँकि जो कुछ वे कर रहे थे, अल्लाह उसे (अपने ज्ञान के) घेरे में लिए हुए है।

23. इससे अभिप्राय मक्का की सेना है, जिसको अबू जह्ल लाया था।


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وَإِذۡ زَیَّنَ لَهُمُ ٱلشَّیۡطَـٰنُ أَعۡمَـٰلَهُمۡ وَقَالَ لَا غَالِبَ لَكُمُ ٱلۡیَوۡمَ مِنَ ٱلنَّاسِ وَإِنِّی جَارࣱ لَّكُمۡۖ فَلَمَّا تَرَاۤءَتِ ٱلۡفِئَتَانِ نَكَصَ عَلَىٰ عَقِبَیۡهِ وَقَالَ إِنِّی بَرِیۤءࣱ مِّنكُمۡ إِنِّیۤ أَرَىٰ مَا لَا تَرَوۡنَ إِنِّیۤ أَخَافُ ٱللَّهَۚ وَٱللَّهُ شَدِیدُ ٱلۡعِقَابِ ﴿٤٨﴾

और जब शैतान[24] ने उनके लिए उनके कर्मों को सुंदर बना दिया और कहा : आज लोगों में से कोई भी तुमपर प्रबल नहीं होगा और निश्चय मैं तुम्हारा समर्थक हूँ। फिर जब दोनों समूह आमने-सामने हुए, तो वह अपनी एड़ियों के बल फिर गया और उसने कहा : निःसंदेह मैं तुमसे अलग हूँ। निःसंदेह मैं वह कुछ देख रहा हूँ, जो तुम नहीं देखते। निश्चय मैं अल्लाह से डरता हूँ और अल्लाह बहुत कठोर यातना देने वाला है।

24. बद्र के युद्ध में शैतान भी अपनी सेना के साथ सुराक़ा बिन मालिक के रूप में आया था। परंतु जब फ़रिश्तों को देखा, तो भाग गया। (इब्ने कसीर)


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إِذۡ یَقُولُ ٱلۡمُنَـٰفِقُونَ وَٱلَّذِینَ فِی قُلُوبِهِم مَّرَضٌ غَرَّ هَـٰۤؤُلَاۤءِ دِینُهُمۡۗ وَمَن یَتَوَكَّلۡ عَلَى ٱللَّهِ فَإِنَّ ٱللَّهَ عَزِیزٌ حَكِیمࣱ ﴿٤٩﴾

जब मुनाफ़िक़ तथा वे लोग जिनके दिलों में बीमारी थे, कह रहे थे : इन लोगों को इनके धर्म ने धोखा दिया है। हालाँकि जो अल्लाह पर भरोसा करे, तो निःसंदेह अल्लाह सबपर प्रभुत्वशाली, पूर्ण हिकमत वाला है।


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وَلَوۡ تَرَىٰۤ إِذۡ یَتَوَفَّى ٱلَّذِینَ كَفَرُواْ ٱلۡمَلَـٰۤىِٕكَةُ یَضۡرِبُونَ وُجُوهَهُمۡ وَأَدۡبَـٰرَهُمۡ وَذُوقُواْ عَذَابَ ٱلۡحَرِیقِ ﴿٥٠﴾

और काश! आप देखें, जब फ़रिश्ते काफ़िरों के प्राण निकालते हैं, उनके चेहरों और उनकी पीठों पर मारते हैं (और कहते हैं) जलाने वाली यातना[25] का मज़ा चखो।

25. बद्र के युद्ध में काफ़िरों के कई प्रमुख मारे गए। आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने युद्ध से पहले बता दिया कि अमुक इस स्थान पर मारा जाएगा तथा अमुक इस स्थान पर। और युद्ध समाप्त होने पर उनका शव उन्हीं स्थानों पर मिला। तनिक भी इधर-उधर नहीं हुआ। (बुख़ारी : 4480) ऐसे ही आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने युद्ध के समय कहा कि सारे जत्थे पराजित हो जाएँगे और पीठ दिखा देंगे। और उसी समय शत्रु पराजित होने लगे। (बुख़ारी : 4875)


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ذَ ٰ⁠لِكَ بِمَا قَدَّمَتۡ أَیۡدِیكُمۡ وَأَنَّ ٱللَّهَ لَیۡسَ بِظَلَّـٰمࣲ لِّلۡعَبِیدِ ﴿٥١﴾

यह उसके बदले में है जो तुम्हारे हाथों ने आगे भेजा और इसलिए कि निश्चय अल्लाह बंदों पर तनिक भी अत्याचार नहीं करता।


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كَدَأۡبِ ءَالِ فِرۡعَوۡنَ وَٱلَّذِینَ مِن قَبۡلِهِمۡۚ كَفَرُواْ بِـَٔایَـٰتِ ٱللَّهِ فَأَخَذَهُمُ ٱللَّهُ بِذُنُوبِهِمۡۚ إِنَّ ٱللَّهَ قَوِیࣱّ شَدِیدُ ٱلۡعِقَابِ ﴿٥٢﴾

(इनका हाल) फ़िरऔनियों तथा उनसे पहले के लोगों के हाल की तरह हुआ। उन्होंने अल्लाह की निशानियों का इनकार किया, तो अल्लाह ने उन्हें उनके गुनाहों के कारण पकड़ लिया। निःसंदेह अल्लाह बहुत शक्तिशाली, बहुत कठोर दंड वाला है।


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ذَ ٰ⁠لِكَ بِأَنَّ ٱللَّهَ لَمۡ یَكُ مُغَیِّرࣰا نِّعۡمَةً أَنۡعَمَهَا عَلَىٰ قَوۡمٍ حَتَّىٰ یُغَیِّرُواْ مَا بِأَنفُسِهِمۡ وَأَنَّ ٱللَّهَ سَمِیعٌ عَلِیمࣱ ﴿٥٣﴾

यह इस कारण (हुआ) कि अल्लाह कभी भी उस नेमत को बदलने वाला नहीं है, जो उसने किसी जाति पर की हो, यहाँ तक कि वे (स्वयं) बदल दें जो उनके दिलों में है। और इसलिए कि अल्लाह सब कुछ सुनने वाला, सब कुछ जानने वाला है।


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كَدَأۡبِ ءَالِ فِرۡعَوۡنَ وَٱلَّذِینَ مِن قَبۡلِهِمۡۚ كَذَّبُواْ بِـَٔایَـٰتِ رَبِّهِمۡ فَأَهۡلَكۡنَـٰهُم بِذُنُوبِهِمۡ وَأَغۡرَقۡنَاۤ ءَالَ فِرۡعَوۡنَۚ وَكُلࣱّ كَانُواْ ظَـٰلِمِینَ ﴿٥٤﴾

इनकी दशा फ़िरऔनियों तथा उन लोगों जैसी हुई, जो उनसे पहले थे। उन्होंने अल्लाह की आयतों को झुठलाया, तो हमने उन्हें उनके पापों के कारण विनष्ट कर दिया तथा फ़िरऔनियों को डुबो दिया। और वे सभी अत्याचारी थे।[26]

26. इस आयत में तथा आयत संख्या 52 में व्यक्तियों तथा जातियों के उत्थान और पतन का विधान बताया गया है कि वे स्वयं अपने कर्मों से अपना-अपना जीवन बनाती या अपना विनाश करती हैं।


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إِنَّ شَرَّ ٱلدَّوَاۤبِّ عِندَ ٱللَّهِ ٱلَّذِینَ كَفَرُواْ فَهُمۡ لَا یُؤۡمِنُونَ ﴿٥٥﴾

निःसंदेह अल्लाह की दृष्टि में सभी जानवरों से बुरे वे लोग हैं, जिन्होंने कुफ़्र किया, इसलिए वे ईमान नहीं लाते।


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ٱلَّذِینَ عَـٰهَدتَّ مِنۡهُمۡ ثُمَّ یَنقُضُونَ عَهۡدَهُمۡ فِی كُلِّ مَرَّةࣲ وَهُمۡ لَا یَتَّقُونَ ﴿٥٦﴾

वे लोग[27] जिनसे तूने संधि की। फिर वे हर बार अपना वचन भंग कर देते हैं। और वे (अल्लाह से) नहीं डरते।

27. इसमें मदीना के यहूदियों की ओर संकेत है। जिनसे नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की संधि थी। फिर भी वे मुसलमानों के विरोध में गतिशील थे और बद्र के तुरंत बाद ही क़ुरैश को बदले के लिए भड़काने लगे थे।


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فَإِمَّا تَثۡقَفَنَّهُمۡ فِی ٱلۡحَرۡبِ فَشَرِّدۡ بِهِم مَّنۡ خَلۡفَهُمۡ لَعَلَّهُمۡ یَذَّكَّرُونَ ﴿٥٧﴾

तो यदि कभी तुम उन्हें युद्ध में पा जाओ, तो उनपर भारी प्रहार करने के साथ उन लोगों को भगा दो, जो उनके पीछे हैं, ताकि वे सीख ग्रहण करें।


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وَإِمَّا تَخَافَنَّ مِن قَوۡمٍ خِیَانَةࣰ فَٱنۢبِذۡ إِلَیۡهِمۡ عَلَىٰ سَوَاۤءٍۚ إِنَّ ٱللَّهَ لَا یُحِبُّ ٱلۡخَاۤىِٕنِینَ ﴿٥٨﴾

और यदि कभी आपको किसी जाति की ओर से किसी विश्वासघात का भय हो, तो समानता के आधार पर उनका वचन उन पर फेंक दें।[28] निःसंदेह अल्लाह विश्वासघात करने वालों से प्रेम नहीं करता।

28. अर्थात उन्हें पहले सूचित कर दो कि अब हमारे तुम्हारे बीच संधि नहीं है।


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وَلَا یَحۡسَبَنَّ ٱلَّذِینَ كَفَرُواْ سَبَقُوۤاْۚ إِنَّهُمۡ لَا یُعۡجِزُونَ ﴿٥٩﴾

जिन लोगों ने कुफ़्र किया, हरगिज़ न समझें कि वे बचकर निकले गए। निश्चय वे (हमें) विवश नहीं कर सकेंगे।


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وَأَعِدُّواْ لَهُم مَّا ٱسۡتَطَعۡتُم مِّن قُوَّةࣲ وَمِن رِّبَاطِ ٱلۡخَیۡلِ تُرۡهِبُونَ بِهِۦ عَدُوَّ ٱللَّهِ وَعَدُوَّكُمۡ وَءَاخَرِینَ مِن دُونِهِمۡ لَا تَعۡلَمُونَهُمُ ٱللَّهُ یَعۡلَمُهُمۡۚ وَمَا تُنفِقُواْ مِن شَیۡءࣲ فِی سَبِیلِ ٱللَّهِ یُوَفَّ إِلَیۡكُمۡ وَأَنتُمۡ لَا تُظۡلَمُونَ ﴿٦٠﴾

तथा जहाँ तक तुमसे हो सके, अपनी शक्ति बढ़ाकर और घोड़ों को तैयार करके उनके (मुक़ाबले के) लिए अपने उपकरण तैयार करो, जिसके साथ तुम अल्लाह के दुश्मन और अपने दुश्मन को और उनके अलावा कुछ और लोगों को भयभीत[29] करोगे, जिन्हें तुम नहीं जानते, अल्लाह उन्हें जानता है। और तुम जो चीज़ भी अल्लाह की राह में खर्च करोगे, वह तुम्हें पूरी-पूरी लौटा दी जाएगी और तुमपर अत्याचार नहीं किया जाएगा।

29. ताकि वे तुमपर आक्रमण करने का साहस न करें, और आक्रमण करें तो अपनी रक्षा करो।


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۞ وَإِن جَنَحُواْ لِلسَّلۡمِ فَٱجۡنَحۡ لَهَا وَتَوَكَّلۡ عَلَى ٱللَّهِۚ إِنَّهُۥ هُوَ ٱلسَّمِیعُ ٱلۡعَلِیمُ ﴿٦١﴾

और यदि वे (शत्रु) संधि की ओर झुकें, तो आप भी उसकी ओर झुक जाएँ और अल्लाह पर भरोसा रखें। निःसंदेह वही सब कुछ सुनने वाला, सब कुछ जानने वाला है।


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وَإِن یُرِیدُوۤاْ أَن یَخۡدَعُوكَ فَإِنَّ حَسۡبَكَ ٱللَّهُۚ هُوَ ٱلَّذِیۤ أَیَّدَكَ بِنَصۡرِهِۦ وَبِٱلۡمُؤۡمِنِینَ ﴿٦٢﴾

और यदि वे यह चाहें कि आपको धोखा दें, तो निःसंदेह आपके लिए अल्लाह ही काफ़ी है। वही है जिसने आपको अपनी मदद से और मोमिनों के द्वारा शक्ति प्रदान की।


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وَأَلَّفَ بَیۡنَ قُلُوبِهِمۡۚ لَوۡ أَنفَقۡتَ مَا فِی ٱلۡأَرۡضِ جَمِیعࣰا مَّاۤ أَلَّفۡتَ بَیۡنَ قُلُوبِهِمۡ وَلَـٰكِنَّ ٱللَّهَ أَلَّفَ بَیۡنَهُمۡۚ إِنَّهُۥ عَزِیزٌ حَكِیمࣱ ﴿٦٣﴾

और उसने उनके दिलों को आपस में जोड़ दिया। यदि आप धरती में जो कुछ है, सब खर्च कर देते, तो भी उनके दिलों को जोड़ न पाते। लेकिन अल्लाह ने उन्हें आपस में जोड़ दिया। निःसंदेह वह सबपर प्रभुत्वशाली, पूर्ण हिकमत वाला है।


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یَـٰۤأَیُّهَا ٱلنَّبِیُّ حَسۡبُكَ ٱللَّهُ وَمَنِ ٱتَّبَعَكَ مِنَ ٱلۡمُؤۡمِنِینَ ﴿٦٤﴾

ऐ नबी! आपके लिए तथा आपके पीछे चलने वाले ईमानवालों के लिए अल्लाह काफ़ी है।


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یَـٰۤأَیُّهَا ٱلنَّبِیُّ حَرِّضِ ٱلۡمُؤۡمِنِینَ عَلَى ٱلۡقِتَالِۚ إِن یَكُن مِّنكُمۡ عِشۡرُونَ صَـٰبِرُونَ یَغۡلِبُواْ مِاْئَتَیۡنِۚ وَإِن یَكُن مِّنكُم مِّاْئَةࣱ یَغۡلِبُوۤاْ أَلۡفࣰا مِّنَ ٱلَّذِینَ كَفَرُواْ بِأَنَّهُمۡ قَوۡمࣱ لَّا یَفۡقَهُونَ ﴿٦٥﴾

ऐ नबी! ईमान वालों को लड़ाई पर उभारें।[30] यदि तुममें से बीस धैर्य रखने वाले हों, तो वे दो सौ पर विजय प्राप्त करेंगे, और यदि तुममें से एक सौ हों, तो वे कुफ़्र करने वालों में से एक हज़ार पर विजय प्राप्त करेंगे। यह इसलिए कि निःसंदेह वे ऐसे लोग हैं जो समझते नहीं।

30. इसलिए कि काफ़िर मैदान में आ गए हैं और आपसे युद्ध करना चाहते हैं। ऐसी दशा में जिहाद अनिवार्य हो जाता है, ताकि शत्रु के आक्रमण से बचा जाए।


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ٱلۡـَٔـٰنَ خَفَّفَ ٱللَّهُ عَنكُمۡ وَعَلِمَ أَنَّ فِیكُمۡ ضَعۡفࣰاۚ فَإِن یَكُن مِّنكُم مِّاْئَةࣱ صَابِرَةࣱ یَغۡلِبُواْ مِاْئَتَیۡنِۚ وَإِن یَكُن مِّنكُمۡ أَلۡفࣱ یَغۡلِبُوۤاْ أَلۡفَیۡنِ بِإِذۡنِ ٱللَّهِۗ وَٱللَّهُ مَعَ ٱلصَّـٰبِرِینَ ﴿٦٦﴾

अब अल्लाह ने तुम्हारा बोझ हल्का कर दिया और जान लिया कि तुम्हारे अंदर कुछ कमज़ोरी है। तो यदि तुममें से सौ धैर्य रखने वाले हों, तो दो सौ पर विजय प्राप्त करेंगे, और यदि तुममें से एक हज़ार आदमी हों, तो अल्लाह के हुक्म से दो हज़ार पर विजय प्राप्त करेंगे, और अल्लाह धैर्य रखने वालों के साथ है।[31]

31. अर्थात उनका सहायक है जो दुःख तथा सुख प्रत्येक दशा में उसके नियमों का पालन करते हैं।


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مَا كَانَ لِنَبِیٍّ أَن یَكُونَ لَهُۥۤ أَسۡرَىٰ حَتَّىٰ یُثۡخِنَ فِی ٱلۡأَرۡضِۚ تُرِیدُونَ عَرَضَ ٱلدُّنۡیَا وَٱللَّهُ یُرِیدُ ٱلۡـَٔاخِرَةَۗ وَٱللَّهُ عَزِیزٌ حَكِیمࣱ ﴿٦٧﴾

किसी नबी के लिए उचित नहीं कि उसके पास बंदी हों, यहाँ तक कि वह धरती में (उनका) अच्छी तरह खून बहा ले। तुम संसार की सामग्री चाहते हो और अल्लाह आख़िरत (परलोक) चाहता है। और अल्लाह सबपर प्रभुत्वशाली, पूर्ण हिकमत वाला है।


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لَّوۡلَا كِتَـٰبࣱ مِّنَ ٱللَّهِ سَبَقَ لَمَسَّكُمۡ فِیمَاۤ أَخَذۡتُمۡ عَذَابٌ عَظِیمࣱ ﴿٦٨﴾

यदि अल्लाह के द्वारा लिखी गई बात न होती, जो पहले तय हो चुकी, तो तुमने जो कुछ भी लिया[32] उसके कारण तुम्हें बहुत बड़ी यातना पहुँचती।

32. यह आयत बद्र के बंदियों के बारे में उतरी। जब अल्लाह के किसी आदेश के बिना आपस के परामर्श से उनसे फिरौती ले ली गई। (इब्ने कसीर)


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فَكُلُواْ مِمَّا غَنِمۡتُمۡ حَلَـٰلࣰا طَیِّبࣰاۚ وَٱتَّقُواْ ٱللَّهَۚ إِنَّ ٱللَّهَ غَفُورࣱ رَّحِیمࣱ ﴿٦٩﴾

तो जो ग़नीमत का धन तुमने प्राप्त किया है, उसमें से खाओ[33], इस हाल में कि हलाल और पवित्र है, और अल्लाह से डरो। निःसंदेह अल्लाह बहुत क्षमा करने वाला, अत्यंत दयावान है।

33. आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमाया : मेरी एक विशेषता यह भी है कि मेरे लिए ग़नीमत हलाल कर दी गई, जो मुझसे पहले किसी नबी के लिए हलाल नहीं थी। (बुख़ारी : 335, मुस्लिम : 521)


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یَـٰۤأَیُّهَا ٱلنَّبِیُّ قُل لِّمَن فِیۤ أَیۡدِیكُم مِّنَ ٱلۡأَسۡرَىٰۤ إِن یَعۡلَمِ ٱللَّهُ فِی قُلُوبِكُمۡ خَیۡرࣰا یُؤۡتِكُمۡ خَیۡرࣰا مِّمَّاۤ أُخِذَ مِنكُمۡ وَیَغۡفِرۡ لَكُمۡۚ وَٱللَّهُ غَفُورࣱ رَّحِیمࣱ ﴿٧٠﴾

ऐ नबी! तुम्हारे हाथों में जो बंदी हैं, उनसे कह दो : यदि अल्लाह तुम्हारे दिलों में कोई भलाई जानेगा, तो तुम्हें उससे बेहतर प्रदान करेगा, जो तुमसे लिया गया है और तुम्हें क्षमा कर देगा। और अल्लाह अति क्षमाशील, अत्यंत दयावान है।


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وَإِن یُرِیدُواْ خِیَانَتَكَ فَقَدۡ خَانُواْ ٱللَّهَ مِن قَبۡلُ فَأَمۡكَنَ مِنۡهُمۡۗ وَٱللَّهُ عَلِیمٌ حَكِیمٌ ﴿٧١﴾

और यदि वे आपके साथ विश्वासघात करना चाहें, तो निःसंदेह वे इससे पहले अल्लाह के साथ विश्वासघात कर चुके हैं। तो उसने (आपको) उनपर नियंत्रण दे दिया। तथा अल्लाह सब कुछ जानने वाला, पूर्ण हिकमत वाला है।


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إِنَّ ٱلَّذِینَ ءَامَنُواْ وَهَاجَرُواْ وَجَـٰهَدُواْ بِأَمۡوَ ٰ⁠لِهِمۡ وَأَنفُسِهِمۡ فِی سَبِیلِ ٱللَّهِ وَٱلَّذِینَ ءَاوَواْ وَّنَصَرُوۤاْ أُوْلَـٰۤىِٕكَ بَعۡضُهُمۡ أَوۡلِیَاۤءُ بَعۡضࣲۚ وَٱلَّذِینَ ءَامَنُواْ وَلَمۡ یُهَاجِرُواْ مَا لَكُم مِّن وَلَـٰیَتِهِم مِّن شَیۡءٍ حَتَّىٰ یُهَاجِرُواْۚ وَإِنِ ٱسۡتَنصَرُوكُمۡ فِی ٱلدِّینِ فَعَلَیۡكُمُ ٱلنَّصۡرُ إِلَّا عَلَىٰ قَوۡمِۭ بَیۡنَكُمۡ وَبَیۡنَهُم مِّیثَـٰقࣱۗ وَٱللَّهُ بِمَا تَعۡمَلُونَ بَصِیرࣱ ﴿٧٢﴾

निःसंदेह जो लोग ईमान लाए और उन्होंने हिजरत की तथा अल्लाह के मार्ग में अपने धन और अपने प्राण के साथ जिहाद किया, तथा जिन लोगों ने (उन्हें) शरण दिया और सहायता की, ये लोग आपस में मित्र हैं। और जो लोग ईमान लाए और हिजरत नहीं की, तुम्हारे लिए उनकी मित्रता में से कुछ भी नहीं, यहाँ तक कि वे हिजरत करें। और यदि वे धर्म के बारें में तुमसे सहायता माँगें, तो तुमपर सहायता करना आवश्यक है। परंतु किसी ऐसी जाति के विरुद्ध नहीं, जिनके और तुम्हारे बीच कोई संधि हो। तथा जो कुछ तुम कर रहे हो, अल्लाह उसे ख़ूब देखने वाला है।


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وَٱلَّذِینَ كَفَرُواْ بَعۡضُهُمۡ أَوۡلِیَاۤءُ بَعۡضٍۚ إِلَّا تَفۡعَلُوهُ تَكُن فِتۡنَةࣱ فِی ٱلۡأَرۡضِ وَفَسَادࣱ كَبِیرࣱ ﴿٧٣﴾

और जिन लोगों ने कुफ़्र किया, वे आपस में एक-दूसरे के मित्र हैं। यदि तुम ऐसा न करोगे, तो धरती में बड़ा फ़ितना तथा बहुत बड़ा बिगाड़ पैदा होगा।


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وَٱلَّذِینَ ءَامَنُواْ وَهَاجَرُواْ وَجَـٰهَدُواْ فِی سَبِیلِ ٱللَّهِ وَٱلَّذِینَ ءَاوَواْ وَّنَصَرُوۤاْ أُوْلَـٰۤىِٕكَ هُمُ ٱلۡمُؤۡمِنُونَ حَقࣰّاۚ لَّهُم مَّغۡفِرَةࣱ وَرِزۡقࣱ كَرِیمࣱ ﴿٧٤﴾

तथ जो लोग ईमान लाए और उन्होंने हिजरत की और अल्लाह के मार्ग में जिहाद किया और जिन लोगों ने (उन्हें) शरण दी और सहायता की, वही सच्चे मोमिन हैं। उन्हीं के लिए बड़ी क्षमा और सम्मानजनक जीविका है।


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وَٱلَّذِینَ ءَامَنُواْ مِنۢ بَعۡدُ وَهَاجَرُواْ وَجَـٰهَدُواْ مَعَكُمۡ فَأُوْلَـٰۤىِٕكَ مِنكُمۡۚ وَأُوْلُواْ ٱلۡأَرۡحَامِ بَعۡضُهُمۡ أَوۡلَىٰ بِبَعۡضࣲ فِی كِتَـٰبِ ٱللَّهِۚ إِنَّ ٱللَّهَ بِكُلِّ شَیۡءٍ عَلِیمُۢ ﴿٧٥﴾

तथा जो लोग बाद में ईमान लाए और हिजरत की और तुम्हारे साथ मिलकर जिहाद किया, तो वे तुम ही में से हैं। और अल्लाह की किताब में रिश्तेदार एक-दूसरे के अधिक हक़दार[34] हैं। निःसंदेह अल्लाह प्रत्येक चीज़ को भली-भाँति जानने वाला है।

34. अर्थात मीरास में उनको प्राथमिकता प्राप्त है।


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