Surah सूरा अल्-मुतफ़्फ़िफ़ीन - Al-Mutaffifīn

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Surah सूरा अल्-मुतफ़्फ़िफ़ीन - Al-Mutaffifīn - Aya count 36

وَیۡلࣱ لِّلۡمُطَفِّفِینَ ﴿١﴾

विनाश है नाप-तौल में कमी करने वालों के लिए।


Arabic explanations of the Qur’an:

ٱلَّذِینَ إِذَا ٱكۡتَالُواْ عَلَى ٱلنَّاسِ یَسۡتَوۡفُونَ ﴿٢﴾

वे लोग कि जब लोगों से नापकर लेते हैं, तो पूरा लेते हैं।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَإِذَا كَالُوهُمۡ أَو وَّزَنُوهُمۡ یُخۡسِرُونَ ﴿٣﴾

और जब उन्हें नापकर या तौलकर देते हैं, तो कम देते हैं।


Arabic explanations of the Qur’an:

أَلَا یَظُنُّ أُوْلَـٰۤىِٕكَ أَنَّهُم مَّبۡعُوثُونَ ﴿٤﴾

क्या वे लोग विश्वास नहीं रखते कि वे (मरने के बाद) उठाए जाने वाले हैं?


Arabic explanations of the Qur’an:

لِیَوۡمٍ عَظِیمࣲ ﴿٥﴾

एक बहुत बड़े दिन के लिए।


Arabic explanations of the Qur’an:

یَوۡمَ یَقُومُ ٱلنَّاسُ لِرَبِّ ٱلۡعَـٰلَمِینَ ﴿٦﴾

जिस दिन लोग सर्व संसार के पालनहार के सामने खड़े होंगे।[1]

1. (1-6) इस सूरत की प्रथम छह आयतों में इसी व्यवसायिक विश्वास घात पर पकड़ की गई है कि न्याय तो यह है कि अपने लिए अन्याय नहीं चाहते, तो दूसरों के साथ न्याय करो। और इस रोग का निवारण अल्लाह के भय तथा परलोक पर विश्वास ही से हो सकता है। क्योंकि इस स्थिति में अमानतदारी एक नीति ही नहीं, बल्कि धार्मिक कर्तव्य होगा औ इस पर स्थित रहना लाभ तथा हानि पर निर्भर नहीं रहेगा।


Arabic explanations of the Qur’an:

كَلَّاۤ إِنَّ كِتَـٰبَ ٱلۡفُجَّارِ لَفِی سِجِّینࣲ ﴿٧﴾

हरगिज़ नहीं, निःसंदेह दुराचारियों का कर्म-पत्र "सिज्जीन" में है।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَمَاۤ أَدۡرَىٰكَ مَا سِجِّینࣱ ﴿٨﴾

और तुम क्या जानो कि 'सिज्जीन' क्या है?


Arabic explanations of the Qur’an:

كِتَـٰبࣱ مَّرۡقُومࣱ ﴿٩﴾

वह एक लिखित पुस्तक है।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَیۡلࣱ یَوۡمَىِٕذࣲ لِّلۡمُكَذِّبِینَ ﴿١٠﴾

उस दिन झुठलाने वालों के लिए विनाश है।


Arabic explanations of the Qur’an:

ٱلَّذِینَ یُكَذِّبُونَ بِیَوۡمِ ٱلدِّینِ ﴿١١﴾

जो बदले के दिन को झुठलाते हैं।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَمَا یُكَذِّبُ بِهِۦۤ إِلَّا كُلُّ مُعۡتَدٍ أَثِیمٍ ﴿١٢﴾

तथा उसे केवल वही झुठलाता है, जो सीमा का उल्लंघन करने वाला, बड़ा पापी है।


Arabic explanations of the Qur’an:

إِذَا تُتۡلَىٰ عَلَیۡهِ ءَایَـٰتُنَا قَالَ أَسَـٰطِیرُ ٱلۡأَوَّلِینَ ﴿١٣﴾

जब उसके सामने हमारी आयतों को पढ़ा जाता है, तो कहता है : यह पहले लोगों की कहानियाँ हैं।


Arabic explanations of the Qur’an:

كَلَّاۖ بَلۡۜ رَانَ عَلَىٰ قُلُوبِهِم مَّا كَانُواْ یَكۡسِبُونَ ﴿١٤﴾

हरगिज़ नहीं, बल्कि जो कुछ वे कमाते थे, वह ज़ंग बनकर उनके दिलों पर छा गया है।


Arabic explanations of the Qur’an:

كَلَّاۤ إِنَّهُمۡ عَن رَّبِّهِمۡ یَوۡمَىِٕذࣲ لَّمَحۡجُوبُونَ ﴿١٥﴾

हरगिज़ नहीं, निश्चय वे उस दिन अपने पालनहार (के दर्शन) से रोक दिए जाएँगे।


Arabic explanations of the Qur’an:

ثُمَّ إِنَّهُمۡ لَصَالُواْ ٱلۡجَحِیمِ ﴿١٦﴾

फिर निःसंदेह वे अवश्य जहन्नम में प्रवेश करने वाले हैं।


Arabic explanations of the Qur’an:

ثُمَّ یُقَالُ هَـٰذَا ٱلَّذِی كُنتُم بِهِۦ تُكَذِّبُونَ ﴿١٧﴾

फिर कहा जाएगा : यही है, जिसे तुम झुठलाया करते थे।[2]

2. (7-17) इन आयतों में कुकर्मियों के दुष्परिणाम का विवरण दिया गया है। तथा यह बताया गया है कि उनके कुकर्म पहले ही से अपराध पत्रों में अंकित किए जा रहे हैं। तथा वे परलोक में कड़ी यातना का सामना करेंगे। और नरक में झोंक दिए जाएँगे। "सिज्जीन" से अभिप्राय, एक जगह है जहाँ पर काफ़िरों, अत्याचारियों और मुश्रिकों के कुकर्म पत्र तथा प्राण एकत्र किए जाते हैं। दिलों का लोहमल, पापों की कालिमा को कहा गया है। पाप अंतरात्मा को अंधकार बना देते हैं, तो सत्य को स्वीकार करने की स्वभाविक योग्यता खो देते हैं।


Arabic explanations of the Qur’an:

كَلَّاۤ إِنَّ كِتَـٰبَ ٱلۡأَبۡرَارِ لَفِی عِلِّیِّینَ ﴿١٨﴾

हरगिज़ नहीं, निःसंदेह नेक लोगों का कर्म-पत्र निश्चय "इल्लिय्यीन" में है।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَمَاۤ أَدۡرَىٰكَ مَا عِلِّیُّونَ ﴿١٩﴾

और तुम क्या जानो कि 'इल्लिय्यीन' क्या है?


Arabic explanations of the Qur’an:

كِتَـٰبࣱ مَّرۡقُومࣱ ﴿٢٠﴾

वह एक लिखित पुस्तक है।


Arabic explanations of the Qur’an:

یَشۡهَدُهُ ٱلۡمُقَرَّبُونَ ﴿٢١﴾

जिसके पास समीपवर्ती (फरिश्ते) उपस्थित रहते हैं।


Arabic explanations of the Qur’an:

إِنَّ ٱلۡأَبۡرَارَ لَفِی نَعِیمٍ ﴿٢٢﴾

निःसंदेह नेक लोग बड़ी नेमत (आनंद) में होंगे।


Arabic explanations of the Qur’an:

عَلَى ٱلۡأَرَاۤىِٕكِ یَنظُرُونَ ﴿٢٣﴾

तख़्तों पर (बैठे) देख रहे होंगे।


Arabic explanations of the Qur’an:

تَعۡرِفُ فِی وُجُوهِهِمۡ نَضۡرَةَ ٱلنَّعِیمِ ﴿٢٤﴾

तुम उनके चेहरों पर नेमत की ताज़गी का आभास करोगे।


Arabic explanations of the Qur’an:

یُسۡقَوۡنَ مِن رَّحِیقࣲ مَّخۡتُومٍ ﴿٢٥﴾

उन्हें मुहर लगी शुद्ध शराब पिलाई जाएगी।


Arabic explanations of the Qur’an:

خِتَـٰمُهُۥ مِسۡكࣱۚ وَفِی ذَ ٰ⁠لِكَ فَلۡیَتَنَافَسِ ٱلۡمُتَنَـٰفِسُونَ ﴿٢٦﴾

उसकी मुहर कस्तूरी की होगी। अतः प्रतिस्पर्धा करने वालों को इसी (की प्राप्ति) के लिए प्रतिस्पर्धा करना चाहिए।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَمِزَاجُهُۥ مِن تَسۡنِیمٍ ﴿٢٧﴾

उसमें 'तसनीम' की मिलावट होगी।


Arabic explanations of the Qur’an:

عَیۡنࣰا یَشۡرَبُ بِهَا ٱلۡمُقَرَّبُونَ ﴿٢٨﴾

वह एक स्रोत है, जिससे समीपवर्ती लोग पिएँगे।[3]

3. (18-28) इन आयतों में बताया गया है कि सदाचारियों के कर्म ऊँचे पत्रों में अंकित किए जा रहे हैं जो फ़रिश्तों के पास सुरक्षित हैं। और वे स्वर्ग में सुख के साथ रहेंगे। "इल्लिय्यीन" से अभिप्राय, जन्नत में एक जगह है। जहाँ पर नेक लोगों के कर्म पत्र तथा प्राण एकत्र किए जाते हैं। वहाँ पर समीपवर्ती फ़रिश्ते उपस्थित रहते हैं।


Arabic explanations of the Qur’an:

إِنَّ ٱلَّذِینَ أَجۡرَمُواْ كَانُواْ مِنَ ٱلَّذِینَ ءَامَنُواْ یَضۡحَكُونَ ﴿٢٩﴾

निःसंदेह जो लोग अपराधी हैं, वे (दुनिया में) ईमान लाने वालों पर हँसा करते थे।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَإِذَا مَرُّواْ بِهِمۡ یَتَغَامَزُونَ ﴿٣٠﴾

और जब वे उनके पास से गुज़रते, तो आपस में आँखों से इशारे किया करते थे।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَإِذَا ٱنقَلَبُوۤاْ إِلَىٰۤ أَهۡلِهِمُ ٱنقَلَبُواْ فَكِهِینَ ﴿٣١﴾

और जब अपने घर वालों की ओर लौटते, तो (मोमिनों के परिहास का) आनंद लेते हुए लौटते थे।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَإِذَا رَأَوۡهُمۡ قَالُوۤاْ إِنَّ هَـٰۤؤُلَاۤءِ لَضَاۤلُّونَ ﴿٣٢﴾

और जब वे उन (मोमिनों) को देखते, तो कहते थे : निःसंदेह ये लोग निश्चय भटके हुए हैं।


Arabic explanations of the Qur’an:

وَمَاۤ أُرۡسِلُواْ عَلَیۡهِمۡ حَـٰفِظِینَ ﴿٣٣﴾

हालाँकि वे उनपर निरीक्षक बनाकर नहीं भेजे गए थे।


Arabic explanations of the Qur’an:

فَٱلۡیَوۡمَ ٱلَّذِینَ ءَامَنُواْ مِنَ ٱلۡكُفَّارِ یَضۡحَكُونَ ﴿٣٤﴾

तो आज वे लोग जो ईमान लाए, काफ़िरों पर हँस रहे हैं।


Arabic explanations of the Qur’an:

عَلَى ٱلۡأَرَاۤىِٕكِ یَنظُرُونَ ﴿٣٥﴾

तख़्तों पर बैठे देख रहे हैं।


Arabic explanations of the Qur’an:

هَلۡ ثُوِّبَ ٱلۡكُفَّارُ مَا كَانُواْ یَفۡعَلُونَ ﴿٣٦﴾

क्या काफ़िरों को उसका बदला मिल गया, जो वे किया करते थे?[4]

4. (29-36) इन आयतों में बताया गया है कि परलोक में कर्मों का फल दिया जाएगा, तो सांसारिक परिस्थितियाँ बदल जाएँगी। संसार में तो सब के लिए अल्लाह की दया है, परंतु न्याय के दिन जो अपने सुख सुविधा पर गर्व करते थे और जिन निर्धन मुसलमानों को देखकर आँखें मारते थे, वहाँ पर वही उनके दुष्परिणाम को देख कर प्रसन्न होंगे। अंतिम आयत में विश्वासहीनों के दुष्परिणाम को उनका कर्म कहा गया है। जिसमें यह संकेत है कि अच्छा फल और कुफल स्वयं इमसान के अपने कर्मों का स्वभाविक प्रभाव होगा।


Arabic explanations of the Qur’an: