1. (1-5) इन आयतों में सबसे पहले चार चीजों की क़सम खाई गई है, जिन्हें परलोक में कर्मों के फल के सबूत के रूप में प्रस्तुत किया गया है। जिस का अर्थ यह है कि कर्मों का फल सत्य है। जिस व्यवस्था से यह दिन-रात चल रहा है उससे सिद्ध होता है कि अल्लाह ही इसे चला रहा है। "दस रात्रियों" से अभिप्राय "ज़ुल ह़िज्जा" मास की प्रारंभिक दस रातें हैं। सह़ीह़ ह़दीसों में इनकी बड़ी प्रधानता बताई गई है।
Arabic explanations of the Qur’an:
أَلَمۡ تَرَ كَیۡفَ فَعَلَ رَبُّكَ بِعَادٍ ﴿٦﴾
क्या तुमने नहीं देखा कि तुम्हारे पालनहार ने "आद" के साथ किस तरह किया?
तथा 'समूद' के साथ (किस तरह किया) जिन्होंने वादी में चट्टानों को तराशा।
Arabic explanations of the Qur’an:
وَفِرۡعَوۡنَ ذِی ٱلۡأَوۡتَادِ ﴿١٠﴾
और मेखों वाले फ़िरऔन के साथ (किस तरह किया)।
Arabic explanations of the Qur’an:
ٱلَّذِینَ طَغَوۡاْ فِی ٱلۡبِلَـٰدِ ﴿١١﴾
वे लोग, जो नगरों में हद से बढ़ गए।
Arabic explanations of the Qur’an:
فَأَكۡثَرُواْ فِیهَا ٱلۡفَسَادَ ﴿١٢﴾
और उनमें बहुत अधिक उपद्रव फैलाया।
Arabic explanations of the Qur’an:
فَصَبَّ عَلَیۡهِمۡ رَبُّكَ سَوۡطَ عَذَابٍ ﴿١٣﴾
तो तेरे पालनहार ने उनपर यातना का कोड़ा बरसाया।
Arabic explanations of the Qur’an:
إِنَّ رَبَّكَ لَبِٱلۡمِرۡصَادِ ﴿١٤﴾
निःसंदेह तेरा पालनहार निश्चय घात में है।[2]
2. (6-14) इन आयतों में उन जातियों की चर्चा की गई है, जिन्होंने माया मोह में पड़कर परलोक और प्रतिफल का इनकार किया, और अपने नैतिक पतन के कारण धरती में उग्रवाद किया। "आद, इरम" से अभिप्रेत वह पुरानी जाति है जिसे क़ुरआन तथा अरब में "आदे ऊला" (प्रथम आद) कहा गया है। यह वह प्राचीन जाति है जिसके पास हूद (अलैहिस्सलाम) को भेजा गया। और इनको "आदे इरम" इस लिए कहा गया है कि यह शामी वंशक्रम की उस शाखा से संबंधित थे जो इरम बिन शाम बिन नूह़ से चली आती थी। आयत संख्या 11 में इसका संकेत है कि उग्रवाद का उद्गम भौतिकवाद एवं सत्य विश्वास का इनकार है, जिसे वर्तमान युग में भी प्रत्यक्ष रूप में देखा जा सकता है।
लेकिन मनुष्य (का हाल यह है कि) जब उसका पालनहार उसका परीक्षण करे, फिर उसे सम्मानित करे और नेमत प्रदान करे, तो कहता है कि मेरे पालनहार ने मुझे सम्मानित किया।
तथा तुम एक-दूसरे को ग़रीब को खाना खिलाने के लिए प्रोत्साहित नहीं करते हो।
Arabic explanations of the Qur’an:
وَتَأۡكُلُونَ ٱلتُّرَاثَ أَكۡلࣰا لَّمࣰّا ﴿١٩﴾
और तुम मीरास का सारा धन समेटकर खा जाते हो।
Arabic explanations of the Qur’an:
وَتُحِبُّونَ ٱلۡمَالَ حُبࣰّا جَمࣰّا ﴿٢٠﴾
और तुम धन से बहुत अधिक प्रेम करते हो।[3]
3. (15-20) इन आयतों में समाज की साधारण नैतिक स्थिति का सर्वेक्षण किया गया है, और भौतिकवादी विचार की आलोचना की गई है, जो मात्र सांसारिक धन और मान मर्यादा को सम्मान तथा अपमान का पैमाना समझता है और यह भूल गया है कि न धनी होना कोई पुरस्कार है और न निर्धन होना कोई दंड है। अल्लाह दोनों स्थितियों में मानवजाति की परीक्षा ले रहा है। फिर यह बात किसी के बस में हो तो दूसरे का धन भी हड़प कर जाए, क्या ऐसा करना कुकर्म नहीं जिसका ह़िसाब लिया जाना चाहिए?
चुनाँचे उस दिन उस (अल्लाह) के दंड जैसा दंड कोई नहीं देगा।
Arabic explanations of the Qur’an:
وَلَا یُوثِقُ وَثَاقَهُۥۤ أَحَدࣱ ﴿٢٦﴾
और न उसके बाँधने जैसा कोई बाँधेगा।[4]
4. (21-26) इन आयतों मे बताया गया है कि धन पूजने और उससे परलोक न बनाने का दुष्परिणाम नरक की घोर यातना के रूप में सामने आएगा, तब भौतिकवादी कुकर्मियों की समझ में आएगा कि क़ुरआन को न मानकर बड़ी भूल हुई और हाथ मलेंगे।