1. (1-4) इन आयतों का भावार्थ यह है कि जिस प्रकार रात-दिन तथा नर-मादा (स्त्री-पुरुष) भिन्न हैं, और उनके लक्षण और प्रभाव भी भिन्न हैं, इसी प्रकार मानवजाति (इनसान) के विश्वास, कर्म भी दो भिन्न प्रकार के हैं। और दोनों के प्रभाव और परिणाम भी विभिन्न हैं।
Arabic explanations of the Qur’an:
فَأَمَّا مَنۡ أَعۡطَىٰ وَٱتَّقَىٰ ﴿٥﴾
फिर जिसने (दान) दिया और (अवज्ञा से) बचा।
Arabic explanations of the Qur’an:
وَصَدَّقَ بِٱلۡحُسۡنَىٰ ﴿٦﴾
और सबसे अच्छी बात को सत्य माना।
Arabic explanations of the Qur’an:
فَسَنُیَسِّرُهُۥ لِلۡیُسۡرَىٰ ﴿٧﴾
तो निश्चय हम उसके लिए भलाई को आसान कर देंगे।
Arabic explanations of the Qur’an:
وَأَمَّا مَنۢ بَخِلَ وَٱسۡتَغۡنَىٰ ﴿٨﴾
लेकिन वह (व्यक्ति) जिसने कंजूसी की और बेपरवाही बरती।
Arabic explanations of the Qur’an:
وَكَذَّبَ بِٱلۡحُسۡنَىٰ ﴿٩﴾
और सबसे अच्छी बात को झुठलाया।
Arabic explanations of the Qur’an:
فَسَنُیَسِّرُهُۥ لِلۡعُسۡرَىٰ ﴿١٠﴾
तो हम उसके लिए कठिनाई (बुराई का मार्ग) आसान कर देंगे।[2]
2. (5-10) इन आयतों में दोनों भिन्न कर्मों के प्रभाव का वर्णन है कि कोई अपना धन भलाई में लगाता है तथा अल्लाह से डरता है और भलाई को मानता है। सत्य आस्था, स्वभाव और सत्कर्म का पालन करता है। जिसका प्रभाव यह होता है कि अल्लाह उसके लिए सत्कर्मों का मार्ग सरल कर देता है। और उसमें पाप करने तथा स्वार्थ के लिए अवैध धन अर्जन की भावना नहीं रह जाती। ऐसे व्यक्ति के लिए दोनों लोक में सुख है। दूसरा वह होता है जो धन का लोभी, तथा अल्लाह से निश्न्तचिंत होता है और भलाई को नहीं मानता। जिसका प्रभाव यह होता है कि उसका स्वभाव ऐसा बन जाता है कि उसे बुराई का मार्ग सरल लगने लगता है। तथा अपने स्वार्थ और मनोकामना की पूर्ति के लिए प्रयास करता है। फिर इस बात को इस वाक्य पर समाप्त कर दिया गया है कि धन के लिए वह जान देता है, परंतु वह उसे अपने साथ लेकर नहीं जाएगा। फिर वह उसके किस काम आएगा?
और जब वह (जहन्नम के गड्ढे में) गिरेगा, तो उसका धन उसके किसी काम नहीं आएगा।
Arabic explanations of the Qur’an:
إِنَّ عَلَیۡنَا لَلۡهُدَىٰ ﴿١٢﴾
निःसंदेह हमारा ही ज़िम्मे मार्ग दिखाना है।
Arabic explanations of the Qur’an:
وَإِنَّ لَنَا لَلۡـَٔاخِرَةَ وَٱلۡأُولَىٰ ﴿١٣﴾
निःसंदेह हमारे ही अधिकार में आख़िरत और दुनिया है।
Arabic explanations of the Qur’an:
فَأَنذَرۡتُكُمۡ نَارࣰا تَلَظَّىٰ ﴿١٤﴾
अतः मैंने तुम्हें भड़कती आग से सावधान कर दिया है।[3]
3. (11-14) इन आयतों में मानवजाति (इनसान) को सावधान किया गया है कि अल्लाह का, दया और न्याय के कारण मात्र यह दायित्व था कि सत्य मार्ग दिखा दे। और क़ुरआन द्वारा उसने अपना यह दायित्व पूरा कर दिया। किसी को सत्य मार्ग पर लगा देना उसका दायित्व नहीं है। अब इस सीधी राह को अपनाओगे तो तुम्हारा ही भला होगा। अन्यथा याद रखो कि संसार और परलोक दोनों ही अल्लाह के अधिकार में हैं। न यहाँ कोई तुम्हें बचा सकता है, और न वहाँ कोई तुम्हारा सहायक होगा।
Arabic explanations of the Qur’an:
لَا یَصۡلَىٰهَاۤ إِلَّا ٱلۡأَشۡقَى ﴿١٥﴾
जिसमें केवल सबसे बड़ा अभागा ही प्रवेश करेगा।
Arabic explanations of the Qur’an:
ٱلَّذِی كَذَّبَ وَتَوَلَّىٰ ﴿١٦﴾
जिसने झुठलाया तथा मुँह फेरा।
Arabic explanations of the Qur’an:
وَسَیُجَنَّبُهَا ٱلۡأَتۡقَى ﴿١٧﴾
और उससे उस व्यक्ति को बचा लिया जाएगा, जो सबसे ज़्यादा परहेज़गार है।
4. (15-21) इन आयतों में यह वर्णन किया गया है कि कौन से कुकर्मी नरक में पड़ेंगे और कौन सुकर्मी उससे सुरक्षित रखे जाएँगे। और उन्हें क्या फल मिलेगा। आयत संख्या 10 के बारे में यह बात याद रखने की है कि अल्लाह ने सभी वस्तुओं और कर्मों का अपने नियमानुसार स्वभाविक प्रभाव रखा है। और क़ुरआन इसीलिए सभी कर्मों के स्वभाविक प्रभाव और फल को अल्लाह से जोड़ता है। और यूँ कहता है कि अल्लाह ने उसके लिए बुराई की राह सरल कर दी। कभी कहता है कि उनके दिलों पर मुहर लगा दी, जिसका अर्थ यह होता है कि यह अल्लाह के बनाए हुए नियमों के विरोध का स्वभाविक फल है। (देखिए : उम्मुल किताब, मौलाना आज़ाद)