1. (1-5) इन आयतों में प्रथम वह़्य (प्रकाशना) का वर्णन है। नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) मक्का से कुछ दूर "जबल नूर" (ज्योति पर्वत) की एक गुफा में जिसका नाम "ह़िरा" है जाकर एकांत में अल्लाह को याद किया करते थे। और वहीं कई दिन तक रह जाते थे। एक दिन आप इसी गुफा में थे कि अकस्मात आपपर प्रथम वह़्य (प्रकाशना) लेकर फ़रिश्ता उतरा। और आपसे कहा : "पढ़ो"। आपने कहा : मैं पढ़ना नहीं जानता। इसपर फ़रिश्ते ने आपको अपने सीने से लगाकर दबाया। इसी प्रकार तीन बार किया और आपको पाँच आयतें सुनाईं। यह प्रथम प्रकाशना थी। अब आप मुह़म्मद पुत्र अब्दुल्लाह से मुह़म्मद रसूलुल्लाह होकर डरते-काँपते घर आए। इस समय आपकी आयु 40 वर्ष थी। घर आकर कहा कि मुझे चादर उढ़ा दो। जब कुछ शांत हुए तो अपनी पत्नी ख़दीजा (रज़ियल्लाहु अन्हा) को पूरी बात सुनाई। उन्होंने आपको सांत्वना दी और अपने चाचा के पुत्र "वरक़ा बिन नौफ़ल" के पास ले गईं जो ईसाई विद्वान थे। उन्होंने आपकी बात सुनकर कहा : यह वही फ़रिश्ता है जो मूसा (अलैहिस्सलाम) पर उतारा गया था। काश मैं तुम्हारी नुबुव्वत (दूतत्व) के समय शक्तिशाली युवक होता और उस समय तक जीवित रहता जब तुम्हारी जाति तुम्हें मक्का से निकाल देगी! आपने कहा : क्या लोग मुझे निकाल देंगे? वरक़ा ने कहा : कभी ऐसा नहीं हुआ कि जो आप लाए हैं, उससे शत्रुता न की गई हो। यदि मैंने आपका वह समय पाया, तो आपकी भरपूर सहायता करूँगा। परंतु कुछ ही समय गुज़रा था कि वरक़ा का देहाँत हो गया। और वह समय आया जब आपको 13 वर्ष बाद मक्का से निकाल दिया गया। और आप मदीना की ओर हिजरत (प्रस्थान) कर गए। (देखिए : इब्ने कसीर) आयत संख्या 1 से 5 तक निर्देश दिया गया है कि अपने पालनहार के नाम से उसके आदेश क़ुरआन का अध्ययन करो जिसने इनसान को रक्त के लोथड़े से बनाया। तो जिसने अपनी शक्ति और दक्षता से जीता जागता इनसान बना दिया, वह उसे पुनः जीवित कर देने की भी शक्ति रखता है। फिर ज्ञान अर्थात क़ुरआन प्रदान किए जाने की शुभ सूचना दी गई है।
Arabic explanations of the Qur’an:
كَلَّاۤ إِنَّ ٱلۡإِنسَـٰنَ لَیَطۡغَىٰۤ ﴿٦﴾
कदापि नहीं, निःसंदेह मनुष्य सीमा पार कर जाता है।
Arabic explanations of the Qur’an:
أَن رَّءَاهُ ٱسۡتَغۡنَىٰۤ ﴿٧﴾
इसलिए कि वह स्वयं को बेनियाज़ (धनवान्) देखता है।
Arabic explanations of the Qur’an:
إِنَّ إِلَىٰ رَبِّكَ ٱلرُّجۡعَىٰۤ ﴿٨﴾
निःसंदेह, तेरे पालनहार ही की ओर वापस लौटना है।[2]
2. (6-8) इन आयतों में उनको धिक्कारा है जो धन के अभिमान में अल्लाह की अवज्ञा करते हैं और इस बात से निश्चिन्त हैं कि एक दिन उन्हें अपने कर्मों का जवाब देने के लिए अल्लाह के पास जाना भी है।
Arabic explanations of the Qur’an:
أَرَءَیۡتَ ٱلَّذِی یَنۡهَىٰ ﴿٩﴾
क्या आपने उस व्यक्ति को देखा, जो रोकता है।
Arabic explanations of the Qur’an:
عَبۡدًا إِذَا صَلَّىٰۤ ﴿١٠﴾
एक बंदे को, जब वह नमाज़ अदा करता है।
Arabic explanations of the Qur’an:
أَرَءَیۡتَ إِن كَانَ عَلَى ٱلۡهُدَىٰۤ ﴿١١﴾
क्या आपने देखा यदि वह सीधे मार्ग पर हो।
Arabic explanations of the Qur’an:
أَوۡ أَمَرَ بِٱلتَّقۡوَىٰۤ ﴿١٢﴾
या अल्लाह से डरने का आदेश देता हो?
Arabic explanations of the Qur’an:
أَرَءَیۡتَ إِن كَذَّبَ وَتَوَلَّىٰۤ ﴿١٣﴾
क्या आपने देखा यदि उसने झुठलाया तथा मुँह फेरा?[3]
3. (9-13) इन आयतों में उनपर धिक्कार है जो नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के विरोध पर तुल गए। और इस्लाम और मुसलमानों की राह में रुकावट डालते और नमाज़ से रोकते हैं।
कदापि नहीं, निश्चय यदि वह नहीं माना, तो हम अवश्य उसे माथे की लट पकड़कर घसीटेंगे।
Arabic explanations of the Qur’an:
نَاصِیَةࣲ كَـٰذِبَةٍ خَاطِئَةࣲ ﴿١٦﴾
ऐसे माथे की लट जो झूठा और पापी है।
Arabic explanations of the Qur’an:
فَلۡیَدۡعُ نَادِیَهُۥ ﴿١٧﴾
तो वह अपनी सभा को बुला ले।
Arabic explanations of the Qur’an:
سَنَدۡعُ ٱلزَّبَانِیَةَ ﴿١٨﴾
हम भी जहन्नम के फ़रिश्तों को बुला लेंगे।[4]
4. (14-18) इन आयतों में सत्य के विरोधी को दुष्परिणाम की चेतावनी है।
Arabic explanations of the Qur’an:
كَلَّا لَا تُطِعۡهُ وَٱسۡجُدۡ وَٱقۡتَرِب ۩ ﴿١٩﴾
कदापि नहीं, आप उसकी बात न मानें, (बल्कि) सजदा करें और (अल्लाह के) निकट हो जाएँ।[5]
5. (19) इस में नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम और आपके माध्यम से साधारण मुसलमानों को निर्देश दिया गया है कि सहनशीलता के साथ किसी धमकी पर ध्यान न देते हुए नमाज़ अदा करते रहो ताकि इसके द्वारा तुम अल्लाह के समीप हो जाओ।